Friday, 30 December 2022

nav varsh

  नया वर्ष आ गया , फिर से हम अपनी अपनी दीवारों से कलैंडर उतार देंगे क्या वास्तव में कुछ नया होता है ,,।फिर नई तारीखें आयेंगी एक  साल पुरानी तारीख नई होकर झड पंुछ कर चमकेगी पर वही रहेगी कदन वही रहेगा वैसे ही़ । मौसम भी तो वही आता है पर कुछ बदलता नहीं है । एक नया संकल्पलेते हैं कि हम आने वाले वर्ष दुनिया बदल देंगे । चाहते हैं कि हमारे लिये संकल्प को निभायें दूसरे । हम अपने को नहीं बदलेंगे । वही 26 जनवरी आयेगी ,बड़े बड़े नेता अफसर देष भक्ति के गीत गायेंगे और नहीं बता पायेंगे कि यह गणतं़त्र दिवस है या स्वतंत्रता दिवस , झंडे का कौन सा रंग ऊपर रहता है और किसलिये ये रंग लिये गये हैं वे एक ही रंग जानते हैं वह है सत्ता का रंग और उसके लिये वे फिर से देश बेचने के लिये तैयार हो जायेंगे ।

      बसंत के आते ही बेटियों को शिक्षित करने के लिये  हम बेचैन हो उठेंगे क्योंकि ,क्योंकि सरस्वती शिचा की देवी है तथा देश को शिक्षित करना हतारा कर्तव्य है । लेकिन शिक्षा के लिये आवंटित पैसे को  समाज के लिये नहीं अपने घरों को भरने के लिये बेचैन हो उठते हैं लाखों बच्चों के नाम स्कूल में लिख जाते हैं पर स्कूल खाली  शिक्षक नदारद और कागजों में सब मौजूद बच्चे सड़क पर और शिक्षा की कीमतें बढ़कर जमीनी कारोबार करती रहती हैं ।

      होली के साळा सद्भाव का पाठ पढ़ाते हैं बुरार्द की होली जलती है और अधिक सांप्रदायिकता फैल जाती है । अब जरा जरा सी बात पर एक दूसरे के धर्म आहत हो जाते हैं । समाज में बबाल फैलाना है तो कही भी कुछ अपमानजनक लिख दो या मांस उछाल दो  । बवाल तैयार चाहे जितना उपद्रव करालो हमारी युवा शक्ति बेकार है ही  दिशा हीन है कुठित दमित भावनाऐं सामने उछाल मारती हैं । उनका उपयोग कुचक्र रचते हुल्लड़बाज । कहीे गाय का मसला तो कहीं पैगम्बर के लिये कहना कोई मंदिर में गाय काट देगा ।इसलिये कि वर्तमान सरकार को गाली दे सके और अपना वोट बैंक तैयार कर सकें और समान लूटकर बेगुनाहों को उनके न किये गये गुनाहों की सजा दें ।

     शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित हर वर्ष करेंगे पर नये नये शहीद समाने आयेंगे । देष को आजादी दिलाने के लिये जान गंवाने वाले अब शहीद नहीं हैं अब देश के लिये लड़कर जान गंवाने वाले अब शहीद नहीं हैं हाॅं भमल से सीमा लांघने वाले शहीद हैं या उपद्रव कर जेल गये लोग शहीद हैं ।

      पर्यावरण दिवस मनायेंगे जोर शोर से पेड़ लगाते फोटो खिचायेंगे किर भूल जायेंगे कि वह डाली कहाॅं सूख रही है । चुपचाप पेड़ काटकर बिल्डिंग बनवायेंगेगणेशजी की पूजा करेंगे ,देवीजी के आगे नाचेंगे दशहरा मनायेंगे जमुना गंगा को प्रदूषित कर प्रसन्न हो रहे हैं हमने देवता मना लिये अब हमारा कौन बिगाड़ कर सकता है ।दो अक्तूबर के साथ तहखानों में पड़ी गांधीजी की तस्वीर चमकायेंगे ।उनकी बातों को दोहरायेंगे ।उनके बताये मार्ग पर चलने के लिये प्रतिज्ञा करेंगे फिर भूल जायेंगे अगले वर्ष तक के लिये ।

   रावण जला रहे हैं उसने सीता का अपहरण किया लेकिन सीता को आहत नहीं किया यहाॅं अबोध कन्याऐं लड़कियाॅं, महिलाऐं दंुर्दान्तों के हाथों दंुर्दशा प्राप्त कर मार दी जाती हैं जैसे किसी रबर के खिलौने को तोड़ा मरोड़ा और फैक दिया ।उन्हें कुछ नहीं होता सुघारने के नाम पर पुरस्कृत किया जाता है ।

    नव भोर की आशा में फिर कलैंडर बदलता है लेकिन परिस्थितियाॅं और अदतर होती हैं बात असहिष्णुता भेदभाव जातपाॅंत मिटाने की स्त्रियों के उन्नयन की भ्रष्टाचार मिटाने की करेंगे । अपना देना पड़े तो गाली देंगे और लेना पड़े तो अधिकार । चाहेंगे पल भर में दुनिया बदल जाये साफ हो स्वच्छता हो क्योंकि कहा गया है पर हम खुद कुछ नहीं करेंगे गंदगी फैलायेंगे और गाली देंगे कि सफाई नहीं हुई ।

    पाकिस्तान को धोखेबाज कहकर गालियाॅं देंगे पर अपने देश के गद्दारों को कुछ नहीं कहेंगे जो असली भितरघाती हैं । लंका रावण की वजह से नहीं गिरी विभीषण की वजह से नष्ट हुई। धिक्कार तो ऐसे लोगों को है ।


Wednesday, 28 December 2022

भोजन भट्ट महान

 


 भोजन भट्ट महान् 


मथुरा तीन लोक से न्यारी और उसके प्रसि( चैबे अपने आप में निराले  भोजन भट्ट महान हैं। भांग पीकर दो ढाई किलो रबड़ी चट कर जाना बायें हाथ का खेल है उनके ऊपर अनेकों चुटकुले बनते हैं। बहुत प्रसि( चुटकुला है  वैसे हम चुटकुला ही मानते हैं पर सुनाने वाले सत्य घटना ही बताते हैं  ।

एक दूसरे प्रदेश का व्यक्ति मथुरा तीर्थ करने गया उत्सुकता से उनके भोजन के विषय में भी सुनी हुई बातों को आजमाना चाहा और एक चैबे से शर्त लगा बैठे कि ढाई किलो रबड़ी एक बार में खाकर दिखाये। वह चैबे नया लड़का सा बोला ,‘अभी आया ’थोड़ी देर बाद आकर,‘ बोला ठीक है मुुझे शर्त मंजूर है।’ दोनों हलवाई की दुकान पर पहुँचे। ढाई किलो रबड़ी तुलवाई गई और उस चैबे ने चकाचक रबड़ी खाकर पेटपर हाथ फेरा और शर्त के रुपये जेब के हवाले किये। तो उस व्यक्ति ने पूछा, ‘भई तुम शर्त मंजूर करने से पहले तुम कहाँ गये थे कोई पाचक वगरैह खाने गये थे क्या।’

चैबे शरमाता बोाल, नही अभी तक कभी इतनी रबड़ी एक साथ खाई नही थीं सो खाकर देखने गया था कि खा सकता हूँ या नहीं।

एक बहुत दुबला पतला मरियल सा साधु सा दिखने वाला व्यक्ति जो केवल कमर पर एक मैली सी धोती बांधे था बालों की जटा बनी हुई थी हमारे दरवाजे पर आ खड़ा हुआ,‘ भूखा हूँ कुछ खाने को मिल जायेगा क्या?’

मेरे पिताजी को साधु-सन्यासियों को खिलाने में सदा आनन्द आता रहा था। मेरी बहन की शादी होकर चुकी थी। बारात सुबह बिदा हुई थी। रात का बहुत भोजन बचा था साथ ही उत्तर भारतीय दावत का समस्त सामान कचैड़ी, लड्डू आदि सभी पर्याप्त मात्रा में थे। पिताजी ने तुरंत उन साधु की पत्तल लगवाई और हाथ जोड़ कर बोले,‘ महराज जी प्रेम से पाओ।’ ‘बच्चा! वह साधु मुस्कराया और बोला, खिलाने मंे घबड़ायेगा तो नहीं?’ ‘अरे महाराज क्या बता करते हैं... ’पिताजी ने उपेक्षा से कहा, मन में सोचा डेढ़ पसली का आदमी और ऐसे कह रहा है न जाने कितना खायेगा।और हम सामान लाते लाते थक गये पिताजी उनकी पत्तल में सामान रखते जा रहे थे वह व्यक्ति 91 तर पूरी, चवालीस कचैड़ी, पचपन लड्डू खाने के साथ दो किलो के करीब रायता दो किलो करीब सभी सब्जियाँ चट कर गया और पिता से बोला अभी और श्र(ा है क्या? 

‘जैसा हुकुम करे बाबा’ पिताजी विस्मय से उस पतले दुबले व्यक्ति को देखते बोले।

‘बच्चा रबड़ी और खिलादें तो ईश्वर भला करेगा।’

और कोई व्यक्ति होता तो पिताजी पावभर रबड़ी मंगाते पर उस साधु की तरफ शंका से देखते बोले,‘ महराज जरा बता देते कितनी मंगाऊँ।’ ‘वैसे तो जिजमान तेरी श्र(ा है! पर पूछ रहा है तो दो सेर मंगा दे।’ दो सेर रबड़ी खाकर जब वह 

साधु उठा तो उसका पेट जो पहले अंदर धंसा था बस जरा-सा ऊपर था। वह सब सामान कहाँ गया आश्चर्य से कम से कम पन्द्रह मिनट स्तब्ध खड़े रह गये।




Friday, 23 December 2022

aaina

 साहित्य के आइने पर समय की धूल लग जाती है। समाज को उसकी छवि दिखाने वाला आइना अपनी आभा खो बैठता है अनेक और आइने झांकने लगते हैं।वह आइना पास होते हुए भी दूर और दूर होता जाता है छोटा और छोटा,

कभी आइना था कभी हम थे और समाज था । अब समाज है आइना है हमारा अक्स घुधला गया है ।


Friday, 2 December 2022

insan kitna gir sakta hai

 ऽ जिस राज्य से निकले मजदूर क्या उस राज्य केश्षासनाधिकारियों की या वहां के निवासियों की कोई जिम्मेदारी नहीं थी अच्छे अच्छे हमारे बुरे बुरे तुम्हारे इस नीति की विचारधारा पर नेता चल रहे हैं संवेदनाऐं मृत हैं मानवता है ही नहीं केवल दोषारोपण ही मानवता बन गई है बस टके भर की जीभ हिला दो करना धरना कुछ नहीं । जनता ने प्रषासन को गरियाया खूब लेकिन किस हद तक नीचता जनता ने दिखाई जब दवाओं और सिलैंडर के भाव एकदम बढ़ा दिये एक तरफ इंसान मर रहा था दूसरी तरफ पैसे की मार पड़ रही थी क्या यह सरकार की कमी थी । जहां एक की आवष्यकता थी 100 की जरूरत पड़ी तो क्या सिलैंडर हवा में पैदा हो जाते या आॅक्सीजन प्लांट अलादीन के चिराग की तरह तुरंत हाजिर हो जाते । और आॅक्सीजन प्लांट लग भी जाते तो आवष्यकता समाप्ति के बाद लगाने वाला क्या करता वैसे हर चीजबातों से तैयार नहीं होती क्ष्मता बढ़ाई जा सकती है तुरंत पर नये सिरे से इंडस्ट्री नहीं लग सकती रोम एक दिन में नहीं बन गया था। पर आज भी गरियाना सुनकर विरक्ति होती है इंसान कितना गिर सकता है । भगवान् माने जाने  वाले चिकित्सकों ने भी पाप की गंगा में हाथ धोये।

Thursday, 1 December 2022

समझने को नहीं तैयार हम

 ऽ जब बड़े बड़े पत्रकार जो टीवी पर चर्चाऐं आयोजित करते हैं हैं वे निष्पक्ष नहीं हो पाते और कथन को समझ नहीं पाते या सुनना समझना नहीं चाहते तो पार्टी का  सदस्य तो विपक्ष की बात को तोड़ मरोड़ कर पेष करेगा ही । मोदी जी ने  कभी नहीं कहा  िकवे हर नागरिक के खाते में 15 लाख रु देंगें पर समझ को क्या कहा जाये जब पूरा सुनने से पहले ही उसका मजाक उड़ाना प्रारम्भ कर दिया । उनके ष्षब्द थे विदेषों में भारतीयों का इतना काला धन जमा है यदि विदेषों से सारा काला धन वापस आ जाता है तो हर नागरिक के हिस्से में पन्द्रह लाख आजायेंगे । अब इसमें कहां मोदी जी ने कहा कि वो पन्द्रह लाख देंगे लेकिन लोगों की समझ की बलिहारी है ।

kirch kirch baten

  प््रेम कभी नष्ट नहीं होता,उसके पवित्र चिंगारे सदा प्रकाशित रहते हैं। वह स्वर्ग से आता है स्वर्ग में चला जाता है सौदे

ऽ अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद,बुद्ध या राम जन्म लें, तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता। जब तक अपने अज्ञान को दूर करने के लिये कटिबद्ध नहीं होते। तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकते । इसलिये दूसरों का भरोसा मत करो । राम तीर्थ
ऽ विलास प्रियता महापाप है। कर्तव्यपथ का सदा घ्यान रखो,चाहे सुअवसर हो या कुअवसर । अकबर
ऽ ज्ञान के ठंडे प्रकाश में प्रेम की बूटी कभी नहीं उग सकती । कान्ट

Thursday, 17 November 2022

avsar

 अमावस के अंधेरे ने मुझे दिया हे अवसर चमकने का

नहीं तो उजालों को तो जरूरत नहीं मेरे उजाले की

Monday, 14 November 2022

bitiya

 बिटिया पायल की रुन झुन

मधुर मधुर घुंघरू की छुनछुन

गीतों की सुरमयी झंकार

बारिष की ष्षीतल सी फुहार

पिता के आंगन की है बहार

मां के चैखट का श्रृंगार

गले का है वो मनहर हार

अधूरा जिसके बिन श्रृंगार

घरों का जोड़ रही वो तार

बिटिया के बिन सूना संसार

बिटिया हे जीवन का सार

सांस सांस का अदभुत् संसार।


Sunday, 13 November 2022

एक किले की आत्मा

 ऽ एक किले की आत्मा


जर्जर  अकेला खड़ा है

विषाल वृक्षों की बाहों में

झाड़ झंखाडों की उंगली थामे

प््रातीक्षा में 

स्ूानी पगडंडियों को देखते हुए

षायद कोई पदचाप कोई आहट हो

फिर गीत संगीत की धुन सुनाई दे

ढोल ताषों की आवाज

 हो रेषमी कपड़ों की सरसराहट

ईष्वर का आव्हान करते

सुखों को दुखों को बयान करते

सूनी दीवारों को आंखें फाड़ देखते 

पत्तों की हल्की जुंबिष

थरथरा देती है मन को

पीछे से आती है आहट

तलवारों की झनकार

छमछम नर्तकियां 

वाह वाह की आहट

खनकते प्याले

जागते रहो के स्वर

सरकती भारी जंजीरें

कन्याओं की चीखें

और पत्थर हुआ आदमी 

समा गये हैं मुझ में 

न जाने कितने रक्त

लहूलुहान नींव में

चारो ओर सन्नाटा

चीखना चाहते हैं

सब कुछ पत्थर है

बस धड़क रहा है सीना

जो कहता है यहां कभी

महान षासक जन्मा था 

वह था वह था ।




Saturday, 12 November 2022

satta ke pujari

 ऽ कुर्सी के लिये कितना अहित करते हैं लोग

जनता जाये भाड़ में उन्हें चाहिये सत्ता भोग।

सड़क पर बैठ कर ईष्वर से प्रार्थना करने वालेां के लिये मैं ष्षत्र लगा कर कह सकती हूं  िकवे कठपुतली की तरह षारीरिक क्रियाऐ ंतो कर लेंगे पर म नही मनसिवाय यह कहने कि क्या मजा आ रहा है जनता को परेषान करने में । ईष्वर चंद लोगों की प्रार्थना सुनेगा या सैंकड़ोंलोगों की जो गसली दे रहे होंगे क्योंकि किसी की ट्रेन छूट रही होगी किसी मरीज लेकर जाना है किसी की परीक्षा छूट जायेगी तो साल बेकार हो जायेगा किसी को काम पर जाना है देर होगी तो पगार कअ जायेगी किसी को दफ्तर पहुचना होता है। हजारों जलती निगाहों को ईष्वर देखेगा या चंद बंद आंखों को जिनमें उसे याद न कर अहित करने का सुख होगा। याद रखो अहित करने की सोचने वाले को पहले अपना अहित झेलना पड़ता है । कर्मों का फल मिलता अवष्य 


Friday, 11 November 2022

पंछी

 आजाद हैं पंछी कहीं भी उड़े 

सीमा का कोई बंधन नहीं

बसेरा बनाना है किसी भी झाड़ पर

उसका देना कोई किराया नहीं 

बरगद पर बैठे या पाकड़ पर सोये

किसी ने भी उसको हटाना नहीं 

सभी वृक्ष उनके लिये हैं चंदन

नीम हो या बरगद उनका है घर नंदन

इतना सा कोना कि ठिक जाय घर उनका


Wednesday, 2 November 2022

kirch kirch baten

  बहुत जल्दी वह वक्त आयेगा जब इंसान के मायने बदलने होंगे ष्षैतान की कसम ,हैवान की कसम,भगवान् के मायने बदलने हांेगे।

चुनाव में जीतकर आते ही स्वच्छ छवि वाले नेता जी सारी बुराइयां धारण कर लेते हैं,अच्छा अच्छा सब विपक्ष धारण कर लेता है ।

कुर्सी पर बैठे नेता का धर्म ईमान होना चाहिये, बेईमान होने का विपक्ष को देते है,विपक्षबेई मान होने का बोझ ले लेंगे ।


Saturday, 22 October 2022

मैं माती का नन्हा दीपक

 


मैं माटी का नन्हा दीपक



मैं माटी का नन्हा दीपक

चैराहे पर जला रात भर

चंदा तारे उडगन चमके

मैं ठंडी में गला रात भर,

तेज हवाऐं घूम घूमतीं 

मेरा आस्तित्व मिटाने को ,

लेकिन जब तक नेह भरा है,

बुझा नहीं वह पायेगी

जल जाऊं या बुझ जाऊं

अंतर नहीं अर्थ में है

अंत है केवल रोषन कर जग

गल गल कर है मिट जाना

जल जाऊं या मिट जाऊं

माटी में मैं मिल जाउंगा

फिर माटी से नया दीप बन

दीप से दीप जलाउंगा।


Thursday, 20 October 2022

पतंग

 उड़ती पतंग की डोर टूट जाती है

है से थी में बदल जाती है

आसमान में उड़ती है पतंग अनेकों

पर  छत पर चरखी पड़ी रह जती है



चलते चलते चित्र बनाते बनाते

पत्थर में बदल जाती है

फूल पर अश्क बनकर ठहरी बूॅंद

मौत की फिसल पट्टी से सरक जाती है 


Tuesday, 18 October 2022

deepavali shubh ho

  दीपावली

‘असतो मा सद्गमय,तमसो मा ज्योतिर्गमय्,मृत्योर्माऽमृतगमय।।

ष्षुभ कर्म ष्षुभ लाभ ष्षुभ कामनायें ष्षुभदीपावली

दीपावली-पर्व नये धान के आगमन का भव्य और भक्तिपूर्ण अभिनंदन है,आदि षक्ति कावंदन है। मन मंदिर का दीप आलोकित हो अज्ञान तिमिर का लोप हो। हम अपने हृदय के श्रद्धा सुमन विद्याावारिधि श्री गणेष और माता पदमासना के चरणों में अर्पित करते हैं माता महालक्ष्मी का न आदि है न अंत है वे आदिषक्ति हैं माहेष्वरी हैं योग सम्भूता हैं। उनके चरणों में हमारा ष्षत ष्षत नमन।

हमारी मंगल कामना है कि माता विष्णुप्रिया हमारे मन मंदिर का अंधकार दूर करें। हमारे आंगन में हर्ष की फुुलझड़ियां छूटें राक्षसी प्रवृतियों का अन्त हो। धर्म की स्थापना हो सत्य की विजय हो । राष्ट्र में व्याप्त भ्रष्टाचार दुराचार और और तिमिर का नाष हो सर्व, ज्ञान का आलोक बिखरे। हर देहरी दीपों से झिलमिला उठे चाहे वह देहरी द्वारकाधीष कृष्ण की होया दीन हीन विप्र सुदामा की हो। सर्वत्र आलोक बिखरे तभी यह महापर्व सार्थक होगा और हम भाक्त जन स्वर में स्वर मिलाकर कहेंगे ‘षुभदीपावली


Saturday, 15 October 2022

astha

 ऽ कई व्यक्ति अपने धर्म की अवमानना करने वालों की हत्या कर देते हैं लेकिन हिन्दू अपने देवी देवताओं का स्वयं अपमान करता है अपने विष्वास की हत्या करता है । नव दुर्गापर कन्या लांगुरा का पूजन घर घर किया जाता है उन्हें खाना खिलाकर वस़्त्र या कोई समान दिया जाता है साथ ही पूरी हलुआ चना। छोटे छोटे बच्चे दो पूरी खाकर जिनका पेट भर जाता है वह अतिरिक्त पूरियों का बोझा थैली में भरकर  एक घर से दूसरे घर भागते रहते हैं उनके लिये प्रमुख आकर्षण पैसे या मिलने वाली वस्तु है। उसदिन जगह जगह भंडारे होते हैं पेट और घर तो वैसे ही भर जाता है।बच्चे पूड़ी हलुआ सड़क पर फेंक पैसे और सामान रख लेते हैं । खाना सड़क पर घूल मिट्टी में लिथड़ता रहता है ।

इसी प्रकार देवी पर महिलाऐं लोटा ढारती हैं एक महिला देवी का श्रृंगार कर हटने भी नहीं पाती कि दूसरी आकर पानी डाल देती है  देवी के आगे रखीं पूरियां पानी में गल जाती हैं किसी के खाने योग्य नहीं रहतीं पुजारी  उनकी कोने में ढेरी लगाता जाता है लेकिन महिला अपना कर्म करती है और चल देती है । सुबह पुजारी मंदिर साफ करता है और उस ढेर को कूड़े के ढेर पर डाल देता है जिसे गाय कुत्ते भी मुंह नहीं लगाते। हे न अन्न का अपनमान और देवी के भोग का अपमान । वैसे हम भोग का एक दाना भी जमीन पर नहीं गिरने देना चाहते  लेकिन हम में आस्था का स्वरूप बिगड़ा हुआ है कहना न होगा आस्था है ही नहीं ।


Friday, 14 October 2022

muktak

 छोटी सी खता से भी हो जाये पानी 

हाथ न छोड़ो उसका पूरी जिंदगानी

छोटी सी पतवार भी काट देती है 

विषाल उफनते समंदर का पानी 

Wednesday, 12 October 2022

kavita astitva

 तू है तेरे आस्तित्व के लिये दुनिया से लड़ा था मैं 

दुःख आया तो तू कहाॅं है तू कहीं नहीं है अड़ा था मैं 

जर्रे जर्रे में तू है तो मुझे बता ए ईष्वर

नन्हीं बच्ची को कुचला गया तब क्या षीषे में जड़ा था

दरख्त पर बैठी चिड़िया को बाज लेकर उड़ गया

कुछ देर पहले चिड़िया ने भी कीड़े का घर उजाड़ा था।


लोग तो धरती से आसमान में उठ झूम उठते हैं 

    पर यह चांदनी देखो  आसमान से धरती पर आकर खुष है ।


Tuesday, 11 October 2022

rishte

 ऽ आज की तेज रफ्तार जिंदगी में यदि किसी चीज से पीछा छुड़ाया जाता है तो वह है रिष्ते। सबसे नजदीक रिष्ते, सब फालतू रिष्ते हैं ,बोझ बन गये हैं रिष्ते। आज के ग्लोबलाइजेषन के जमाने में जमीन तलाषने की दौड़ में अपनों के भी सिर पर पैर रखकर चलते जाते हैं ।‘इटस माई लाइफ ‘ की रट लगाने वाली इस पीढ़ी ने जिस एक अहम् रिष्ते के महत्व ,गरमाहट,अपनेपन को भुला दिया है वह है बंधुत्व का रिष्ता। क्या कारण है कि जो सबसे नजदीकी है अर्थात् भाई या बहन क्योंकि जिनका रक्त एक है जो एक मां से उत्पन्न हैं आजकल सर्वाधिक दुष्मन वे ही हैं ।पहले कहा जाता था भाई  मुसीबत में काम आयेगा चाहे कुछ भी हो लेकिन अब भाई ही सबसे बड़ा दुष्मन हो गया है पहले कहा जाता था दुःख सुख  रोग ष्षोक में र्भाई ही काम आयेगा । लेकिन अब  भाई ही इन साबका कारण बनता है उसे भाई की रोटी ही कड़वी लगती है उसे छीनने के लिये गैरों का फायदा चाहे हो जाये पर भाई रोटी कैसे खारहा है यह भाव बढ़ता जा रहा है।तीज त्यौहार पर  घरवालों से रौनक हो जाती है माना जाता है पर अब घर वाले जैसे कुढ़े से बैठे रहेंगे कि यह अच्छे से त्यौहार क्यों मना रहा है ।छुट्टियों में यदि भाई के यहां जायेंगे तो कहेंगे छुट्टी बरबाद हो गईं। अगर अब नजदीकी हो गया है वह है दोस्ताना। छुट्टियां दोस्तों के साथ बिताना रोमांचकारी है। इसका मुख्य कारण है बचपन में ही प्रतिस्पर्धा के बीज बो दिये जाते हैं और म न ही मन दुष्मन बना  दिया जाता है

Monday, 10 October 2022

dharm ka apmaan

 ऽ हिंदू धर्म स्वयं अपना धर्म खराब कर रहा है ।जिन मूर्तियों को पूजता है उन्हें नदी में समुद्र में या पेड़ों के नीचे रख कर इतिश्री कर लेता है जिन्हें आपने पूजा जिनपर आप झूठी उंगली भी नहीं रख सकते  वे  पड़ी रहती हैं कूड़े के ढेरों पर कुत्ते उन पर पेषाब करते हैं आप पर तब कोई असर नहीं होता ।गणेष चतुर्थी महाराष्ट्र का प्रमुख त्यौहार है। होता तो सभी राज्यों में है अब सब प्रदेषों में प्रमुखता से मनाया जाने लगा है अन्य प्रदषों में भी बड़ी बड़ी मूर्तियां रखी जाने लगी हैं यही हाल नव दुर्गा का है। नवदुर्गा बंगाल का प्रमुख त्यौहार है पर अब हर प्रदेष में उसी ढंग से मनाया जाने लगा है। पूर्व में नव दुर्गा  पर  कुछ प्रमुख  चैराहों पर पंडाल सजता था लेकिन अब हर प्रदेष में हर बस्ती हर चैराहे पर हर मुहल्ले में दुर्गाजी और गणेष जी की बड़ी बड़ी मूर्तियां सजाई जाती हैं। बस्तियों में विषेष रूप से सजते हैं नौ दिन तक नाच गाना आदि होता है फिर दसवें दिन विसर्जन किया जाता है। टैम्पो मिनी ट्रक आदि करके बस्ती वालेां के संग विसर्जन करने जाया जाता है इन सब पर  खूब पैसा खर्च किया जाता है।अष्लील गानों पर नाच गाना चलता रहता है सबसे अधिक दुःख होता है हिंदू धर्म मानने वालों का अपने देवी देवताओं की स्वयं के द्वारा की गई दुर्दषा । जब समुद्र के किनारे नदियों की तलहटी में और किनारों पर मीलों तक मूर्तिया रखी दिखती हैं टूटती हैं फूटती हैं तब किसी को दर्द नहीं होता ।

अब कपड़ों पर भी देवी देवता के प्रिंट आते हैं हम पहले तो तन पर पहनते हैं तन की गंदगी इन पर लगती है फिर पीट पीट कर उन्हें धोया जाता है फटने पर झााड़पोंछ के काम लिया जाता हैं कार्ड आदि पर देवी देवता की तस्वीर छापते हैं फिर वह कार्ड कूड़ा उठाने के काम आता है । अपने देवी देवता का अपमान जब हम स्वयं करते हैं तो दूसरे करें तो क्या बात है ।


Sunday, 9 October 2022

muktak

 लोग तो धरती से आसमान में उठ झूम उठते हैं 

पर यह चांदनी देखो  आसमान से धरती पर आकर खुष है ।

Saturday, 8 October 2022

pita ka hath

 जिसके कंधे पर पिता का हाथ है 

उसको सारी दुनिया का साथ है

जिनको मिलती हैं माॅं बाप की दुआऐं

हिम्मत नहीं सागर  उनकी नाव डुबाये ।


Friday, 7 October 2022

apna apna najriya

 ऽ समाज को देखने का अपना अपना नजरिया है गिलास आधा खाली है या आधा भरा। हमने एक महिला से पूछा आपका क्या ख्याल है स्त्रियों की स्थ्तिि पहले से बेहतर हुई है’। वह महिला बोली,‘महिलाऐं और दमित हुई हैं कोई स्थिति बेहतर नहीं है। पहले भी संसद में गिनी चुनी महिलाऐं थीं अब भी गिनी चुनी ही हैं जबकि आबादी तिगुनी से  अधिक हो गई है षिक्षा ने पैर पसार लिये हैं।’

दूसरी महिला से पूछा वह बोली ,‘महिलाऐं हर स्थान पर अपने को स्थापित कर रही हैं।स्पेस में जा रही हैं तो बड़े बड़े पदों पर पहुंच रही हैं पुरुष से एक कदम आगे ही हैं महिलाऐं।’ तो यह अपना अपना नजरिया है ऐसे ही हर लेखक का दृष्टिकोण समाज को देखने का अलग हो सकता है और पाठक का समझने का । तुलसी दास के राम चरित मानस की व्याख्या हर व्याख्याकार अलग अलग ढंग से करता है ।


Thursday, 6 October 2022

मेरा घर

 घर


मेरा घर बोलता है मुझसे

आंख झपकाता है कमरा

पलंग देख मुस्कराता है

चादर गरमाता है

स्ुाकून देता है घर

प्यारा प्यारा सा होता है घर

सारी दुनिया घूम आओ

अंतिम डगर है घर

थके पांव मंजिल आ जाये

अंतिम सफर का पड़ाव है घर


डाक्टरी पेशा

 ऽ डाक्टरी पेषे में व्यावसायिकता आ गई है इसके पीछे क्या  सामाजिक विषमताऐं नहीं हैं? आज हम देख रहे हैं कुछ व्यावसायिकश्कोर्स ऐसे हैं जिनमें 22 से 24््््् साल की उम्र में ही बच्चे उच्च वेतनमान पाने लगते हैं । वहां षुरूआत 30 हजार से काॅलेज कैॅपस से निकलते ही हो जाती है और यदि षीर्ष स्थान मिल जाता है तो एक करोड़ प्रति माह तक वेतन मिल जाता है। हर व्यक्ति को प्रतियोगिता से प्रवेष नहीं मिलता है तो डोनेषन 1 से 6 लाख तक है जब कि डाक्टरी पेषे में पहले चार साल  की पढ़ाई उसके बाद इन्टर्रनषिप । एम. बी .बी एस मा़त्र बीए की पढ़ाई रह गई है । विषे ज्ञता हासिल करना आवष्यक है उसका डोनेषन 20 से 50 लाख है। इस प्रकार डाक्टरी पढ़ाई करते व्यक्ति 30 से 32 साल का हो जाता है । करोड रुपया षिक्षा प्राप्त करने में लगता है़ उतना रुपया यदि बैंक ब्याज की भी मानें तो अच्छी खासी आय हो जाये। यदि गाॅंव में डयूटी लग जाती है तो  इसके लिये आना जाना आदि इतना खर्च हो जाता है कि 20 हजार की आय घर चलाने के लिये काफी नहीं होती ।

ब्हुत योज्ञता वाले डाक्टर की अधिक से अधिक 30 या 40 हजार की मैडीकल काॅलेज में नियुक्ति हो जाती है। ऐसे में अतिरिक्त आय के लिये पेषे में सेंध मारनी ही पड़ती है । नेता की प्रतिज्ञाऐं किसी डाक्टर से कम नहीं होती ,लेकिन नेता बनते ही सब भूल जाते हैं। सूखा प्रदेष में हो उनके घर बाढ़ आ जाती है बाढ़ हो तब तो सैलाब ही आ जाता है । चारों ओर के सामाजिक परिवेष को देखते हुए यदि डाक्टर थोड़ी बेईमानी महज अपने कमीषन के लिये करते हक्े तो क्या इसके पीछे यह भावना नही है कि बिलकुल सटीक इलाज हो जाये जब कि विज्ञान ने प्रगति  करली है और बीमारियों ने भी प्रगति कर ली है। साधारण बुखार भी मारक निकलता है तब दो   डाक्टर का ही माना जाता है कि ऐसा बेवकूफ डाक्टर है जाॅंच तक नहीं कराई । हर व्यक्ति डाक्टर के पास जाता है वह यह सोच कर जाता है कि उसे बहुत बडी बीमारी है । यदि़ सधारण दवा लिख देता है तो डाक्टर अयोग्य समझा जाता है । 


Sunday, 2 October 2022

ese the bapu

 ऐसे थे हमारे बापू


उन दिनों बापू बिहार के चंपारण जिले में थे ,आंदोलन अपने चरम पर था । बापू के पास   वाइसराय की  खबर आई कि षीध्र मिलें क्योंकि बात बहुत आवष्यकत है इसलिये हवाई  जहाज से आजायें  बापू ने कहा हवाई जहाज में भारत के   करोडों़ गरीब यात्रा नहीं कर सकते  तो वे कैसे सफर करेंगे, वे रेल मार्गं से ही  आयंेगे ।

गाॅधी जी ने मनु से यात्रा के लिये आवष्यक सामान लेकर रेल के तीसरे दर्ज का इतंजाम करनेके लिये कहा  साथ  ही   मनु बहन से कहा कि सामान कम लेना और तीसरे दर्जे का छोटा  डिब्बा लेना।

मनु बहन ने  डिब्बा तो छोटा चुना लेकिन वह दो भाग का था । एक में बापू के सोने का  इंतजाम था और दूसरे में सामान मनु बहन जानती थी कि जिसे भी पता चलेगा बापू वहाॅ से  गुजर रहे है लोगों की भीड़ होगी इसलिये बापू को असुविधा होगी ऊपर से खाना भी तैयार करना होता था।

पटना से रेल प्रातः 8 बजे रवाना हुई मार्च का महिना था । बापू 9 बजे भोजन करते  थे मनु बहन दूसरे डिब्बे खाना तैयार करने के बाद उस डिब्बे में आई जहाॅ बापू  बैठे थे वे कुछ लिख रहे थे बापू ने मनु बहिन से पूछा ,‘ कहाॅ थीं।’

‘दूसरे डिब्बे में खाना तैयार कर रही थी,’ ‘  जरा खिडकी से बाहर झांको ’ मनु बहन ने झांका तो देखा कई लोग दरवाजे के डंडे को पकड कर लटक रहे हैं । बापू ने मनु बहन को झिड़कते कहा,‘ इस दूसरे कमरे को तुमने कहा था ’मनु बहन बोली,‘ हाॅ मैंने सोचा यहीं खाना वगैरह बनेगा तो  आपको दिक्कत होगी।’

‘इसे कहते हैं ’’अन्धा प्रेम’’,’ बापू ने कहा ,‘तुम सैलून भी मांगती मिल जाता पर क्या षोभा देता है दूसरा कमरा भी सैलून के बराबर हो गया।’’

मनु बहन की आँखों से आंसू टपक पडे यह देखकर बापू बोले ’’अगर बात समझ रही हो तो ये आंसू मत टपकाओ, अगले स्टेषन पर स्टेषन मास्टर को बुलाना और सारा सामान यहीं लेआना’’।

मनु बहन ने सामान हटा लिया लेकिन मन नही मन घबरा रही थी कहीं बापू उपवास न कर बैठें उसकी भूल को वो अपनी भूल मान लेते हैं।

स्टेषन आया स्टेषन मास्टर के आने पर बापू ने कहा ’’यह लडकी मेरी पोती है भोली भाली है, इसे नहीं मालुम क्या करना है इसने दो कमरे ले लिये इसमें मेरा दोश है ,कहीं मेरी सीख में ही कोई कमी है पर अब दूसरा कमरा खाली कर दिया है बाहर जो लोग लटक रहे हैं उन्हें बैठाइये।’’

स्टेषन मास्टर ने कहा कि बापू परेषान न हों जो लटक रहे हैं उनके लिये दूसरा डिब्बा लग जायेगा।

बापू ने कहा ’’डिब्बा तो जरूरत है तो जरूर लगवाइये पर हमें भी जितनी जगह जरूरी है उतनी ही चाहिये बाकी आप उपयोग में लाइये।’’

जब बाहर लटकते लोग बैठ गये तब बापू चैन से बैठे।बात 1909 की है बापू अफ्रीका में थे वे गोरों के विरूð लड रहे थे उनका यष चारों और फैल गया था उनका  नाम बहुत आदर से लिया जाता था इसी प्रसंग में वे लन्दन गये वहाँ भारत की आजादी के लिये अनेक नवयुवक आगे बढ रहे थे उनमें सावरकर भी थे। सावरकर को ज्ञात हुआ कि गाँधी जी लन्दन में हैं उनहीं दिनों भारत के कुछ प्रमुख नेता भी लंदन में थे। उन नवयुवकों ने एक समा बुलाने का निष्चय किया और उसके लिये गाँधी जी को सभपति बनाया सभा  करने के लिये एक खुले स्थान का चयन किया गया जहाँ पहले सभी के लिये भोजन उसके बाद सभा का आयोजन था।

हर प्रंात के युवक वहाँ जुड़ने लगे ,आते और कोई न कोई काम अपने हाथ में ले लेते कोई झाडू लगा रहा था  कोई सब्जी साफ कर रहा था कोई काट रहा था उन्हीं में एक दुबला पतला हिन्दुस्तानी बैठकर सब्जियाँ काटने लगा। सभी हिन्दुस्तानी भारत के अलग-अलग राज्यों के थे कोई पहचानता नहीं था पर काम में लगे थे सब।

       दोपहर का खाना बनते खाते षाम हो गई वह दुबला पता हिन्दुस्तान थालियाँ साफ करने लगा। आखिर में सभा के उपप्रधान वहाँ आये उनकी नजर उस दुबले पतले हिन्दुस्तानी पर पडी वे चैंक पडे और आंखे फाड़ कर उस हिन्दुस्तानी को देखने लगे तो आसपास के नवयुवकों ने उपप्रधान से पूछा कौन हैं ये, क्यों?’

धीरे से उपप्रधान बोले,‘ गाँधी जी,’ एकदम से वह हाॅल भ्न भननाहट से गूॅज उठा,‘ गाॅधी जी गाॅधी जी’’

‘गाॅधी जी तो हमारे सभपति हैं वे यहाॅ ’सारे युवक दंग रह गये कोई उनके हाथ से थाली लेने लगा कोई जूना पर गांधी जी ने बराबर सबके साथ काम किया फिर सभापति बनकर भाशण दिया।.       .   .

आश्रमों में बापू का नियम था कि सब अपना काम अपने आप करें या मिलकर करें पर कोई सेवादार नहीं होगा। कोचरब आश्रम में भी सब काम अपने आप ही करते थे। आश्रम के लिये पानी भी कुएॅ से लाया जाता था कुॅआ सडक के दूसरी तरफ था पानी वहीं से भरकर लाया जाता था।

एक रात बापू को काम करते देर हो गई। सुबह नियमित समय पर उठकर आटा पीसने लगे पानी भरने का समय हुआ तब उस समय गाॅधी थकान महसूस कर रहे थे। साथ ही उनके सिर में दर्द भी होने लगाा।

आश्रम के लोगोें ने बापू से कहा कि अब बहुत काम कर लिया वे आराम करें पानी वे भर लेगें। लेकिन बापू  कुॅए पर पहुॅच गये और घड़ा मांगने लगे । एक भाई आश्रम से छोटे-छोटे बरतन उठा लाया और छोटे बालकों को बुला  लाया छोटे-छोटे बरतन बालकों को पकडा देते वे दौडकर आश्रम में बडे़ बरतन में डाल आते बापू की बारी वे भाई आने ही नही दे रहे थे बच्चे भी यह समझ गये थे कि बापू से इस समय वे काम नहीं कराना चाह रहे हैं तो पहले खड़े हो जाते और बापू की बारी से पहले ही बरतन हाथ में ले लेते।

   पर बापू भी कहाॅ मानने वाले थे वे आश्रम में कोई बरतन देखने लगे उन्हें कोई बरतन नहीं दिखा बच्चों को नहलाने का टब रखा था वे ही उठा लाये और उसे लेकर खडे हो गये भर दो इसे।’’

’’पानी खींचने वाले भाई अचकचा गये इसे कैसे उठायेगें उठा लूॅगा भर दो इसे’’।

वह व्यक्ति समझ गया बापू नहीं मानेगें। चुपचाप उन्हें घड़ा पकडा दिया।

बापू नोआखली में गली-गली घूम रहे थे। नोआखली की गलियाॅ बहुत संकरी थी साथ ही साथ गंदी भी बहुत  थी जगह-जगह नाक थूक मल पड़ा रहता था। बापू नंगे पैर चलते थे उन्हें देख देखकर बहुत दुःख हो रहा था। एक जगह चलते चलते एकदम रुके आस पास से पत्ते उठाये और बीच राह में पडे मल को उठाकर फेंक दिया।

मनु बहन पीछे-पीछे चल रही थी वह अचकचा कर बोली बापू क्यों षर्मिन्दा करते हैं मैं उठा देती खुद ही क्यों  साफ किया।’’  ‘क्यों मैंने कर दिया तो ,बापू नेकहा’’ कहने की बजाय खुद करने में  कुछ तकलीफ है’’? मनु बहन ने कहा ,‘अब इतने गाॅव वाले देख रहे हैं।’’

बापू बोले ,‘यह तो और भी अच्छा है इन लोगों को सबक मिलेगा ,देखना कल मुझे ये काम नहीं करने पडेगें।’’

‘हो सकता है केवल कल गाॅव वाले रास्ता साफ कर दें फिर न करें तब।’’

‘तब फिर तुम्हें देखने भेज दूंगा और अगर रास्ता गंदा मिला तो साफ कर जाऊँगा।’

दूसरे दिन बापू ने वास्तव में मनु बहन को रास्ता देखने भेजा। रास्ता गंदा ही था मनु बहन खुद ही रास्ता साफ  करने लगी गाॅव वालों ने देखा और बहुत षर्मिन्दा हुए और सबने मिलकर रास्ता साफ कर दिया और मनु बहन को बचन दिया कि आगे वे हमेेषा सड़कें साफ रखंेगें।

लौटकर मनु बहन ने गाॅधी जी को पूरा वर्णन बताया तो बापू बोले,‘ अरे तुमने पुण्य ले लिये यह तो मुझे करना  था चलो दो काम हुए एक तो अब सफाई रखेगें। दूसरा देखते हैं वचन निभाते हैं कि नहीं।’

सबका हिस्सा


सन् 1916 की बात है। लखनऊ में कांग्रेस का महाअधिवेशन था। गांधी जी उसमें सम्मलित होने आये थे। चम्पारन जिले में बहुत गरीबी हैं एवम् लोगों को बहुत कष्ट हैं जानकर गांधीजी चम्पारन पहुँचे। साथ में कस्तूर बा भी थीं राजकुमार शुल्क ने वहाँ के लोगों की कष्ट गाथा गांधीजी केा सुनाई। कस्तूबा घर घर जाकर वहाँ की औरतों से मिलने लगी। 

एक दिन कस्तूबा भितिहरवा गाँव में गयी। वहाँ किसान औरतों के कपड़े बहुत गंदे थे। बा ने औरतों को समझाया कि गंदगी से तरह-तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं इसलिये सफाई आवश्यक है।

इस पर एक गरीब किसान औरत, जिसके कपड़े बहुत गंदे थे, कस्तूरबा को अपनी झोंपड़ी मेें ले गयी और अपनी झांेपड़ी दिखला कर बोली ,‘माँ हम बहुत गरीब है हमारे घर में कुछ नहीं है। बस एक यही धोती है जो मेरी देह पर है,क्या पहनकर इस धोती का धोऊँ। अगर गांधी जी से कहकर मुझे एक धोती दिलवा दे तो में धोती साफ रखूँ।’

गांधीजी यह बात सुनकर सोच में पड़ गये। गरीबी की अति से वह अवाक् रह गये थे। उन्होंने सोचा लोगोे के पास तन ढकने के लिए पूरे कपड़े नहीं हैं और हम धोती, चादर कुर्ता, बनियान इतने कपड़े पहनते हैं। जब सबके पास कपड़े नहीं है तो हमें इतने कपड़े पहनने का क्या अधिकार है। 

बस गांधीजी ने उसी दिन से केवल लंगोटी पहनकर तन ढकने की प्रतिज्ञा कर ली।




डाॅ॰ शशि गोयल

3.28ए/2, जवाहरनगर रोड 

खंदारी चैराहा, आगरा-282008








Tuesday, 30 August 2022

chitthi

 


मां 

एक समय आता है जब कोई हमें टोकता है रोकता है तो हमें बुरा लगता है। हम अपने केा इतना बड़ा और समझदार समझने लगते हैं कि हमें किसी का भी कुछ हमारे लिये करना एहसान लगता है। लेकिन वह एहसान  सा समझी जाने वाली भाषा कितनी प्यारी हो जाती है तब वो नहीं रहती ।

लक्ष्मी

हर कोई चाहता है उसके पास अपार दौलत हो समृद्धि हो। इसके लिये सारे प्रयत्न करता है। यहां तक कि टोने टोटके भी । कितनी ही पूजा धन की प्राप्ति के लिये लक्ष्मी जी की की जाती हैं। लेकिन कभी विष्णुजी की व्यथा भी समझी है ?

चिट्ठी

एक लड़की घर छोड़ देती है तब वह अपने पीछे न जाने कितनी निषानियां छोड़ जाती है जिन्हें पीछे से विदा करने वाले सहेजते रहते हैं। अब चिट्ठियां नहीं लिखी जाती बातें फोन पर हो जाती हे लेकिन पहले लिखी चिट्ठियां कागज के नीचे आलमारी के अखबार के नीचे सा पुस्तक में मिल जाती हैं तब जीवन लौट आता है विषेष जब मां की चिट्ठी मिलती है ।


Friday, 26 August 2022

bheed

 आप भीड़ में जा रहे हैं या भाड़ में आपकी मनःस्थिति पर निर्भर करता है

आपकी ईमानदारी डिगती है कपड़े मंहगे हो जाते हैं, आप खुद सस्ते हो जाते हैं ।
भाग रहा है हर आदमी उधर ही जिधर भीड़ है फिर कहता है उफ किस कदर भीड़ है ।

Wednesday, 17 August 2022

Lottery

 लाटरी

रोमन सम्राट आगस्टस व नीरो ने निर्माण कार्य के खर्च के लिये लाटरी आरम्भ की। इंगलैंड की रानी ऐलिजाबेथ प्रथम ने लाटरी पर पुरस्कार की अनुमति दी थी। हमारे भारत में केरल के साम्यवादी मंत्रिमंडल ने लाटरी षुरू करके खूब पैसा कमाया है इसके पूर्व रूस की साम्यवादी सरकार ने दूसरे महायुद्ध का खर्च निकालने  के लिये लाटरी चलायी और एक लाख रूबल पुरस्कार की घोषणा की। भारत में ब्रिटिष राज्य में ही लाटरी का पा्ररम्भ हो चुका था। 1789 में पीटर मैसे कैसीन नामक व्यापारी ने स्टाॅक एक्सचेंज की इमारत बनवाने के लिये लाटरी की योजना सोची। उस समय स्टार पागोडा वाला 3.50 रु॰ कीमत का सिक्का चलता था। ऐसे एक लाख पगोडा के इनाम की घोषणा की गई जिसमें पहला इनाम पांच हजार पागोडा का था,फिर ढाई ढाई हजार के दो, एक हजार के पांच, पांच सौ के दस,,ढाई सौ के बीस ,एक सौ के पचास और पचास के  सौ था बीस पागोडा के 3212 यानि कुल 3400 पुरस्कार रखे गये थे। इसके अलावा पहला टिकिट लेने वाले को 500 और आखिरी टिकिट खरीदने वाले के लिये 360 पगोडा का पुरस्ैकार रखा गया था ।


Sunday, 7 August 2022

cheen to liya

 

·       Nhu rks fy;k

 

Xkys dh tathjsa rks yqVsjksa us Nhu yh

iSjksa dh tathjsa u dksbZ dkV ldk

xqykc rks rksM+us dks c<+ vk;s gkFk

dkWaVksa dks u dksbZ gVk  ldkA

gksBksa dh eqLdku Nhuus vk;s fj’rs

vkWa[kksa ls fxjs vkWalw dksbZ u chu ldk

ejus ds ckn jksus rks cgqr vk;s

ejus ls igys u dksbZ gky iwN ldkA

fxjrh Nr ds uhps ls gV dj lc pys x;s

Mwcrh lkalksa dks dksbZ u  cpk ldk

ihf<;ksa dh ;knsa Fkh vkys rk[ks esa

mu fu’kkfu;ksa dsk dksbZ u ltk ldk

Thursday, 14 July 2022

kaun bhiterghati

 बार बार यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान धोखेबाज है। वह भितरधाती है। एक तरफ वहाँ मोदी जी से मिल रहा है दूसरी तरफ आंतकी भेज रहा है पर एक बार सोचिये भितरघाती कौन हैं? भितरघाती पाकिस्तान नही हमारे अपनों देशवासी हैं जो चंद टुकड़ों के लिये इतने उच्च पद पर होते हुए देश को आंतक के हवाले कर रहे हैं। हमारे देश का अफसर हैं जिसने उन्हें साधन दिया व राह दिखाई पाकिस्तान नही। 

लंका विभीषण की बजह से ढही। हमारे यहाँ हजारों विभीषण हैं। शायद एक बार जिनके मंहगें शौंको को पूरा करने के लिये अतिथियों को निमंत्रण दिया क्या उस अफसर का परिवार समाज में मुँह दिखाने के काबिल रहेगा। बच्चे स्कूल में मुँह उठा कर चल सकेगें। और स्वयं उसका क्या? 

एक बार परिणाम की भी सोच लें पहले तो शायद ऐसे कदम उठाने से पहले सौ बार सोचेगें। लेकिन इंसान यह सोचता है कि वह तो कभी पकड़ा नही जायेगा। एक बार अपने बच्चों के लिये परिवार के लिये देश के लिये भी सोच लें। 


Tuesday, 12 July 2022

guru bhakti allokik udahran

 गुरू भक्ति शिष्य प्रेम का अलौकिक उदाहरण

स्वामी दयानन्द के हृदय में ज्ञानार्जन की अग्नि प्रज्वलित थी। उनके मन मस्तिष्क में अनेकों प्रश्न झंझावात की तरह उठते थे। उनका वे समाधान चाहते थे। ऐसा क्यों ............. वो ज्ञान तत्व तक पहुँचना चाहते थे। इसलिये घर को छोड़कर ज्ञान की खोज में गये। दुर्दान्त दलनकारी शिव के मस्तक पर चढ़कर चूहा अक्षत खा सकता है। तब वह मूर्ति में तो नहीं है, है तो अवश्य पर कहाँ है? किसमें है? शिव है मात्र पार्वती का पति नहीं है। गुरू मिले तो उनकी ज्ञान जिज्ञासा को अमृतमय का ज्ञान करायें । हिमालय की कंदराओं में महान संत रहते हैं वो बद्रीनाथ गंगोत्री गोमुख तक हो आये, पैदल कंटकाकीर्ण पथ चढ़ते गुफाओं को देखते नर्मदा के उद्गम स्थल तक गये। हरिद्वार, वाराणसी जहाँ उन्हें विद्वान सुनाई पड़ते वहाँ पहुँचते उनसे चर्चा करते । जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास करते, लेकिन उन्हें कहीं भी संतोष नहीं मिला, लगता ज्ञान अधूरा है। विद्वानो की खोज करते करते मथुरा पहुँच गये। वहाँ सुना था कि कोई दंडी स्वामी विरजानन्द उद्भट विद्वान हंै। जा पहुँचे विरजानंद स्वामी की शरण में ,उन्हांेने सुना दण्डी स्वामी विरजानन्द की स्मरण शक्ति और धारण शक्ति अद्भुत है। विचार शक्ति प्रबल है। अनेकों ग्रन्थ  उन्हें कण्ठाग्र है। विरजानन्द की व्याकरण विद्या की दीप्ति अद्वितीय है। 

कार्तिक सदी 2 सम्वत् 1917 को स्वामी दयानन्द ने मथुरा में दण्डी जी की अट्टालिका पर चढ़कर द्वार खटखटाया। दण्डी जी ने पूछा ,‘कौन है ’।

 उत्तर मिला‘ दयानन्द सरस्वती ’।

‘तुम कुछ व्याकरण भी पढ़े हो।’ 

‘महाराज! सारस्वत् आदि व्याकरण ग्रन्थ पढ़ा है।’ 

इस उत्तर के साथ ही द्वार खुल गये। प्रणाम कर स्वामी दयानन्द विनीत माव से बैठ गये। विरजानन्द पूछते रहे कि आगन्तुक का ज्ञान कहाँ तक है। दयानन्द से जानकर बोले ‘दयानन्द अब तक जो कुछ अध्ययन किया है। उसका अधिक भाग अनार्ष ग्रन्थ हैं। ऋषि शैली सरल और सुंदर है परन्तु लोक उसका अबलम्बन नही करता। जब तक तुम आनार्ष पद्वति का परित्याग न करोगे तब तक आर्ष ग्रंन्थांे का महत्व और मर्म नहीं समझ सकोगे। पहले सब अनार्ष ग्रन्थ यमुना में बहा आओ और आर्ष ग्रंथ पढ़ने के अधिकारी बनो।’दूसरी बात जो शिष्य बनाने से पहले दण्डी स्वामी ने दयानन्द से कहीं वह थी कि सन्यासियों को विद्यार्थी बनने में बाधा पड़ती है। भोजनाच्छादान की चिन्ता से मुक्त हुए बिना विद्याभ्यास कैसा अतएव अपने आवास और खानपान की व्यवस्था करके आओ। 

मथुरा में प्रवेश के साथ दयानन्द ने अपना डेरा रंगेश्वर मंदिर में डाला था । लेकिन योग्य गुरू से शिक्षा प्राप्त करनी थी । वे विश्राम घाट के ऊपरी भाग स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर की एक छोटी सी कोठरी में रहने लगे। कोठरी आज भी है, लेकिन उसे देखकर विश्वास नहीं होता मात्र लेटने भर की जगह है। वहीं उन्होंने अपना डेरा डाला। बाबा अमरलाल जो ज्योतिष बाबा के नाम से जाने जाते थे । प्रतिदिन सौ ब्राह्मणों को भोजन कराते थे। उनके द्वारा भोजन व्यवस्था हुई और दयानन्द सारा दिन गुरूशरण में रहते। 

दण्डी स्वामी जी के यहाँ प्रातः ही दयानन्द पहुँच जाते थे। उन्हें ज्ञात हुआ विरजानन्द ब्राह्म मुहूर्त में पुष्कल पानी से स्नान करते हैं तो वे बड़ी रात उठकर गुरू स्नान से पूर्व ही यमुना जल के कई घड़े अपने कन्धे पर उठाकर  लाते और स्नान योग्य जल एकत्रित कर देते तथा सांयकाल को भी स्नान के लिये जल ले आते थे। पीने के लिये पानी बीच जल धारा से लाते आंधी होती तूफान चाहे वर्षा लेकिन गुरू कार्य में दयानन्द में कभी व्यवधान नहीं हुआ। 

स्वामी जी की गुरू सेवा, प्रतिभा, स्मरण शक्ति, ग्राह्य शक्ति से दण्डी स्वामी बहुत प्रभावित हुए और अपने इस योग्य शिष्य से अतिशय प्रेम करने लगे। लेकिन प्रेम का अर्थ नहीं था कि वे अध्ययन में किसी प्रकार की कोताही करते। एक दिन दण्डी स्वामी दयानन्द पर कुछ क्रुद्ध हो गये । उनका स्वभाव उग्र था वे शिष्यों पर लाठी भी उठा देते थे। उन्होंने उन्हें कठोर शब्द कहते हुए लाठी मारी। स्वामी दयानन्द पर लाठी के प्रदार से किसी प्रकार का असर नहीं हुआ। वे पाठ याद करते रहे, लेकिन निकट बैठे नयनसुख ने हाथ जोड़कर विरजानन्द जी से निवेदन किया ‘‘महाराज ये दयानन्द सन्यासी है। उन्हें मारना तो उचित नहीं होगा । दण्डी स्वामी बोले ‘बहुत अच्छा आगे हम इसे आदर से पढ़ायेगें। बाद में संध्या काल कक्षा समाप्ति पर दयानन्द ने नयनसुख से कहा,‘ मेरे गुरू से कुछ भी क्यों कहा। अगर वे मारते हैं तो हित बुद्धि से जैसे कुम्हार घड़े को पीटपीट कर सुडौल बनाता है। उसी प्रकार गुरूदेव हमारी कल्यान कामना से वशीभूत हमें ताड़ित करते है।’ पूर्व में भी क्रोधवेश में दण्डी स्वामी ने कसकर एक बार लाठी उनकी भुजा पर मारी वह चोट जिंदगी भर बनी रही। इसे जब तब सिर माथे लगा लिया करते थे। वह उसे गुरू प्रसाद मानते थे। 

चोट इतनी तीव्र थी कि भुजा पर निशान बन गया लेकिन दयानन्द ने गुरू से कहा ‘गुरू महाराज मेरा शरीर कठोर है। आपके हाथ कोमल मारने से आपके सुकोमल हाथों में चोट आयेगी इसलिये मत मारा कीजिये ’स्वामी दयानन्द के यश की कीर्ति मथुरा नगर में फैल चुकी थी । एक बार दयानन्द पद्मासन लगाये समाधिस्थ थे एक महिला श्रद्धानत हो उनके चरणों में झुक गई उसके भीगे केश और वस्त्र दयानन्द जी के चरणों को स्पर्श करने लगे। स्वामी जी के नेत्र खुल गयें। वे माता माता कहकर उस स्थान से उठ गये। उनके हृदय में ग्लानि हुई और उन्होंने गोवर्धन के निकट एकान्त में निराहार तीन दिन तीन रात ध्यान चिंतन कर आत्म शोधन किया। दण्डी स्वामी बिना सूचना शिष्य की अनुपस्थिति से कुपित हो गये और  उनकी मत्र्सना की। शांति से दयानन्द गुरू के क्रोध को सहन करते रहे बाद में जब विरजानन्द शांत हुए तब उन्होने अपने प्रायश्चित की कथा सुनाई। स्वामी ने सुनकर भूरि भूरि प्रशंसा की और प्रसन्न हो गये। 

एक बार दण्डी स्वामी विरजानन्द का दूर का सम्बन्धी मथुरा आया उसने विरजानन्द से मिलना चाहा लेकिन उन दिनों विरजानन्द ने शिष्यों को आज्ञा दे रखी थी कि कोई भी हो मुझसे मिलने मेरे स्थान पर न आवे। वह दयानन्द जी से मिला और उनसे बहुत प्रार्थना की कि बस मैं दर्शन कर चला जाऊँगा बोलूँगा नहीं। दयानन्द जी ने बहुत कहा कि अगर बिना आज्ञा ले जाऊँगा तो गुरूजी अप्रसन्न हो जायेंगे । पर वह व्यक्ति बहुत प्रार्थना करने लगा। ‘अब दर्शन लाभ नहीं कर पाऊँगा तो फिर कभी नहीं कर पाऊँगा। बस चुपचाप दूर से दर्शन करके चला जाऊँगा।’ सहृदय दयानन्द उस व्यक्ति को अट्टालिका पर ले आये। उस व्यक्ति ने मौन रहकर दण्डी स्वामी के दर्शन किये और शनैः शनैः वापस चला गया । स्वामी दयानन्द भी आ गये लेकिन सीढ़ियाँ उतरते एक व्यक्ति मिला उसने विरजानन्द जी से पूछ लिया ‘दयानन्द के साथ जो व्यक्ति आया था कौन था।’’ यह जानकर कि दयानन्द किसी को लाये थे वह चुपचाप लौट गया’’ वे दयानन्द पर कुपित हुए ‘मुझे नेत्रहीन जान मेरे साथ छल किया तेरे लिये यह ज्योति हमेशा के लिये बंद होती है ।’ दयानन्द जी ने बहुत अनुनय विनय की लेकिन व्यर्थ। दयानन्द बहुत दुःखी हो गये। उधर विरजानन्द ने दण्ड तो दे दिया लेकिन अपने प्रिय शिष्य की अनुपस्थिति से बेचैन थे । जब नयनसुख ने क्षमा याचना की तो तुरंत दयानंद को क्षमा कर दिया। दोनों ही परम प्रसन्न हुए। 

दण्डी स्वामी दयानन्द को ‘कालजिह्य और कुलक्कर’ कहकर बुलाया करते थे। कालजिह्य अर्थात् जिसकी जिह्या असत्य के खंडन में काल के समान कार्य करे। कुलक्कर का अर्थ है खूंटा अर्थात् जो विपक्षी का परामूत करने में खूटे के समान दृढ़ हो। उनकी तर्क शैली पर विरजानन्द मोहित थे । वे कहते ‘दयानन्द’ मैने बहुत से विद्यार्थियों को पढ़ाया पर आनन्द तुम्हें पढ़ाने में आया। ऐसा आनन्द आज तक नहीं आया। गुरू शिष्य में घण्टो तर्क वितर्क होते रहते । अनेक गूढ तत्वों पर चर्चा परिचर्या होती। विरजानन्द कहते थे। मुझे अपना संचित ज्ञान सौपने में बड़ा संतोष हो रहा है। 

जिस समय दयानन्द ने पाठशाला छोड़ी उन्होंने आधा सेर लौंग दण्डी स्वामी के चरणों में रखते कहा ‘आपकी असीम कृपा रही। आपने मुझे विद्वान बना दिया। अब मैं देशाटन पर निकलना चाहता हूँ। आपकी सेवा में मेरे पास कुछ नहीं है। बस ये कुछ लौंग भेंट कर रहा हूँ। विरजानन्द ने नत शिष्य के  सिर पर स्नेह से हाथ रखा। उनकी वाणी रूद्ध हो गई, जी भर गया,‘ वल्स मैं ईश्वर से आपके लिये मंगलकामना करता हूँ । पर गुरू दक्षिणा में कुछ भिन्न वस्तु मांगता हूँ।’ 

दयानन्द ने कहा,‘ गुरूदेव आज्ञा दें यह सेवक आपकी आज्ञा शिरोधार्य करके मन वचन कर्म से निभायेगा’ । विरजानन्द ने कहा ‘मैं तुमसे तुम्हारे जीवन की दक्षिणा मांगता हूँ तुम प्रतिज्ञा करो। जब तक जीवित रहोगे आयविर्त में आर्षग्रन्थ का प्रचार, अनार्ष ग्रन्थों का खंडन करोगे तथा भारत मंे वैदिक धर्म की स्थापना हेतु अपने प्राण तक न्यौछावर कर दोगे, गुरू  दक्षिणा में यही वस्तु मुझे दान करो। सांसारिक किसी पदार्थ की मुझे चाह नहीं है। ’

स्वामी दयानन्द ने गद्गद् कंठ से कहा,‘ श्री महाराज देखेंगे कि उनका प्रिय शिष्य प्राण पण से आज्ञा का पालन किस प्रकार करता है।’ स्वामी दयानन्द ने अपने बाजुओं मंे गुरू के चरणो को भरा और नत सिर कर अंतिम प्रणाम किया। गुरू ने भी स्नेहिल हाथ फेरते कहा,‘ जाओ दयानन्द ईश्वर आपको सुख सफलता प्रदान करे। आपके मनोरथ सिद्ध हों’। इसकि पश्चात् संवत् 1923 को स्वामी दयानन्द आगरा होते हुए मथुरा गुरू के चरणों मं वंदना करने गये। एक सुवर्ण मुद्रा और एक मलमल का थान भेंट किया। भागवत खंडन की पुस्तक के विषय में बताया। गुरू अपने सुयोग्य शिष्य से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए। गुरू चरणों में कुछ दिन बिताने का लोभ दयानन्द नही छोड़ पायें और कई अपनी शंकाओं का समाधान करते रहे। फिर वहाँ से दयानन्द कुम्भ मेले                 में चले यह गुरू शिष्य का अंतिम मिलन था। 

क्वार वदी 13, 1925 को स्वामी दयानन्द को अपने गुरू की मृत्यु का समाचार मिला। सुनकर सन्न रह गये। कुछ देर कुछ न कह सके फिर बोले ‘आज व्याकरण का सूर्य अस्त हो गया’’ जिस दयानन्द को सगे सम्बन्धियों का विछोह न हिला सका गुरू से विछोह की सुनकर हिल गये । सच्चे गुरू शिष्य के सम्बन्ध की अलौकिकता का अनुपम उदाहरण है।


डा॰ शशि गोयल

सप्तऋषि अपार्टमेंट

जी -9 ब्लाॅक -3  सैक्टर 16 बी

आवास विकास योजना, सिकन्दरा

आगरा 282010 ॰9319943446

म्उंपस दृ ेींेीपहवलंस3/हउंपसण्बवउ


Thursday, 23 June 2022

maa sharde

 माॅं तुम ज्ञान देने वाली हो

जब चारों ओर संषय होने लगता है

तब हम कहाॅं जाएॅं 

तुम्हारी छवि का घ्यान ही हमारी 

अज्ञानता को दूर कर देता है 

ष्षारदे हम एक दीप जलाते हैं 

और बस इतना जानते हैं 

कई लयबद्ध सितार बज रहे हैं 

तो वह भी आपकी उपासना कर रहे हैं 


Monday, 20 June 2022

kirch kirch baten

 तू है तेरे आस्तित्व के लिये दुनिया से लड़ा था मैं 

दुःख आया तो तू कहाॅं है तू कहीं नहीं है अड़ा था मैं 


जर्रे जर्रे में तू है तो बता ए ईष्वर

नन्हीं बच्ची को कुचलने वाले में नहीं था क्या तू ?


दरख्त पर बैठी चिड़िया को बाज लेकर उड़ गया

कुछ देर पहले चिड़िया ने भी कीड़े का घर उजाड़ा था।


लोग तो धरती से आसमान में उठ झूम उठते हैं 

पर यह चांदनी देखो  आसमान से धरती पर आकर खुष है ।


झूम झूम कर नृत्य कर गीत गा रहा था भगवान् तेरे

नीचे गड्ढ़ा आ गया तो मुॅह से गाली निकली।


भूखे पेट में अग्नि इस कदर घधकती है कि

कड़कड़ाते जाड़े में भी आसमान की चादर ओढ़ कर सो जाते हैं

डा॰ ष्षषि गोयल   


Thursday, 19 May 2022

mahgai

 मंहगाई डायन खाये जात है और केदारनाथ धाम में पट खुलने वाले दिन पांच लाख यात्री पहुंच गये । रहने की किराया होटल में बीस हजार रु रोज में भी उपलब्ध नहीं था ।

होटल की थाली पहुंच से बाहर ,प्रतिदिन एक नये होटल का उद्घाटन,मघ्यम वर्ग के होटलों  वेटिंग, बीस पच्चीस मिनट इंतजार,

 दोसौ रु का परांठा निम्न मध्य वर्ग का पूरा परिवार अपनी पसंद का परांठा मंगा रहा ।


जोमेटो आदि कंपनिया नई ऊंचाइयों पर। घर घर पहुंचा रहे पिज्जा आदि ।

जिस बस्ती से घर घर निकलती है सुबह बच्चों का खाना बनाकर,चैका बर्तन ,सफाई करने महिलाऐं उन हर घर में फ्रिज कूलर किसी किसी घर में एसी भी ।


पैट्रोल मंहगा चैराहों पर एक बार में बत्ती पार करना मुश्किल गाड़ियों की लंबी कतार, घर का हर सदस्य अकेला अपनी कार से एक ही आॅफिस पहुंचते हैं। बड़ी बड़ी गाड़ियों की बिक्री बढ़ी।


Friday, 13 May 2022

mother teresa

 


मदर टेरेसा


बारह वर्ष की नन्हीं बालिका जब कलकत्ता में सेवा कार्य कर रही मिशनरी संस्था के पत्र बल्गेरिया स्थित अपने स्कूल में सुनती पीड़ितो की व्यथा कथा सुन उसका कोमल हृदय व्यथित हो उठता और वह उनकी पीड़ा हर लेने का व्याकुल हो उठती बालिका ने तभी निश्चय कर लिया कि बड़ी होकर वे कलकत्ता जाकर पीड़ितो की सेवा करेगी। यही बालिका आज की ममतामयी माँ टेरेसा है 

18 वर्ष की कैशोर्य अवस्था में सन 1928 में उन्हें भारत आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहाँ वे दार्जलिंग में शिक्षा ग्रहण करके कलकत्ता के सेंट मेरी हाई स्कूल में अध्यापन करने लगी। अध्यापन कार्य वे लगन और रुचि के साथ अवश्य करती थी परंतु अपने को संबंधित वह किसी सेवा संस्था से ही करना चाहती थी।

फरवरी 1948 में उन्होंने रोम के पोप को एक आवेदन पत्र भेजा। उसमें उन्होंने निवेदन किया था कि वे कलकत्ता की झोपड़पट्टियों में काम करना चाहती है। सेवा कार्य हेतु पटना जाकर नर्स का प्रशिक्षण किया दिसम्बर में उन्होंने अपना स्कूल खोल लिया। उनकी सहायता के लिये दस सिस्टर अन्य भी आईं।

अब माँ टेरेसा दुनियाँ द्वारा टुकराये और फेंके गये शिशुओं को ले आती। जिन रोगियों को घर वाले भी हाथ लगाने से कतराते थे उनकी सेवा करने लगी। उनके महत्त्व कार्य से प्रभावित होकर कलकत्ता महापालिका ने 1952 मंें काली माँ के मंदिर से सटे हुई धर्मशाला को मदर टेरेसा को सेवाकार्य के लिये दे दिया। माँ ने उसका नाम रखा ‘निर्मल हृदय’ उसमें माँ ने मृतप्राय सड़क पर फेंके व्यक्तियों को लाकर रखा और उनकी सेवा की।

काली माँ के मंदिर का पुजारी इनका विरोधी हो उठा क्योंकि ये सभी जाति के व्यक्तियों को लाकर सेवा करती थी। उनके लिये उसने जोर लगाया कि धर्मशाला खाली करे दे। एक बार तो भीड़ इतनी उग्र हो उठी कि पुलिस बुलानी पड़ी जब प्रुलिस अधीक्षक आये तब उन्होंने देखा माँ टेरेसा एक संड़ाध भरे कीड़े पड़े व्यक्ति के घावों को साफ कर रही है और ऐसे कई रोगी वहाँ और उपस्थित है। वे भीड़ से बोले जो कार्य यह महिला कर रही है अगर तुम लोगों के घर की कोई स्त्री करने के तैयार हो तो मैं इन्हें अभी यहाँ से निकाल दूँ।

भीड़ सिरे झुकाकर चली गई। स्वंय काली माँ का पुजारी हैजे से पीड़ित होने पर घर से निकाल दिया गया। वह माँ की शरण में आया। अतः तब माँ तुमि काली कहता चिर निद्रा में सो गया।

धीरे धीरे मदर टेरेसा ने भारत के उन शहरों में अपने आश्रम खोल रखे है निराश्रितों के लिये 25 आश्रम है। 25 आश्रम अनाथ बच्चों के लिये, 70 स्कूल, 285 चिकित्सालय और 58 कुष्ठ रोग केन्द्र खोले है। उनके महत काय्र के लिये लगा न मुक्त हस्त दान किया और उन्हें पुरस्कार दिये।

सन् 1962 में उन्हें पदम्श्री से सम्मानित किया गया। उन्हें अनेको राष्ट्रीय एवम् अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार लेकिन पुरस्कार की राशि उन्होंने आश्रमों में लगादी। 

6 जनवरी 1971 को उन्हें शांति पुरस्कार मिला। इस पुरस्कार में उन्हें 21,500 डालर की राशि मिली अक्तूबर 1981 में उन्हें 50 हजार पौंड का कैनेडी अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिला 1972 में 34 हजार पौंड का टेपलेशन पुरस्कार दिया गया तथा अक्टूबर सन् 1979 को उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।



Monday, 18 April 2022

Tamba

 

Rkkack

csUtkfeu jksySaM ds vuqlkj Hkkjrh; rkezd`fr;k Hkkjrh; vkn”kZ lknxh laLd`fr dk ifjpk;d gS A ftl izdkj MseLdl esa LVhy bZftIV esa lksus dh dyk dk lkuh ugha gS nf{k.k Hkkjr ds rkacs ds dke dh lkuh ugha gS A Hkkjr esa rkacs dk iz;ksx izkIr eksgu tksnM+ks dh u`R;kaxuk ¼2500 ls 1700 chlh ½A fo”ks’kKksa ds vuqlkj nzfo.k lH;rk ls iwoZ dh gSA

 fr#oYyh ftys esa rkeziYyh unh ds fdukjs cls xkao vkfnpSukywj esa lkroha lnh ls 13oha lnh rd iYyo vkSj pksy jktkvksa ds le; ls fofHkUu I”kq if{k;ksa dh vkd`fr;ka cukbZ tkrh FkhaA nsorkvksa dh vkd`fr;ka dsR;wj oknkykFkj =qouqdkuq dqEcdksye] LokeheykbZ f”koiqje vkfn esa ikbZ xbZa

rhljh  o pkSFkh  lnh esa xzsukbV ls cus nsoh nsork dh LFkkiuk eafnj ds vanj gksrh Fkh A eafnj ds izkax.k esa ,slh cLrqvksa dh ewfrZ gksuh pkfg;s Fkh tks o’kkZ /kwi gok lg lds A blh us us rkacs ds uVjkt vkfn cukus ds fy;s izsfjr fd;kA pksy vkSj ratkoj jktkvksa ds le; rkacs dh dyk vius pje mRd’kZ ij Fkh og rkacs dk Lo.kZ ;qx Fkk A rkacsa dh ewfrZ;ka cukus dh dyk dks e/kq fp”re ;k lkbj fizn~;q dgrs gSa A

durbhagy

 हम भारतवासियों का यह दुर्भाग्य है कि हम विदेशी आक्रान्ताओं को सदा अपना सिरमौर बना कर अपनी सभ्यता संस्कृति को छोड़ उनकी विरासतों को ओढ़कर खुश होते हैं कि हम कितने विद्वान हैं कि हम आक्रान्ताओं की भाषा उपयोग में ला रहे हैं हम आक्रान्ता की पंक्ति में आ गये हम विद्वान हो गये हैं। यही हम हिंदी के साथ कर रहे हैं ।हिन्दी में काव्य की अनेक पद्वतियां हैं लेकिन हम हिन्दी काव्य विधा में जब तक  चार छः उर्दू के  कठिन शब्द नहीं डाल लेंगे तब तक कविता  अपूर्ण मानेंगे । संभवतः मैं उर्दू भाषा जरा भी नहीं जानती केवल जो शब्द स्वतः आ गये हैं वे ही प्रयोग में लाती हूं, शायद विरोध का एक कारण हो सकता है अज़ल गज़ल से मैं विरक्त हूं परन्तु जब मैं हिन्दी कविता में अत्यधिक उर्दू के शब्दों का प्रयोग  सुनती हॅू तो मेरा उस कविता से मोह भंग हो जाता है चाहे कितनी भी अच्छी हो मेरे हाथ ताली बजाने से इंकार कर देते हैं । संभवतः मुझे हिन्दी से मोह है खिचड़ी बीमारों के लिये होती है।

Tuesday, 8 March 2022

mahila sashakti karan

 महिला सशक्तीकरण 


एक पिंजरे  में कैद  चिडिया और आसमान में उडान भरती चिडिया के स्वभाव में खासा अंतर हेाता है। पिंजरे में कैद चिडिया संुन्दर भले ही हो मगर वह चहचहाती नहीं है। झालक जाती है आॅखे में समाई मजबूरी सहमेपन का सा भाव जबकि आसमान में उडान भरती चिडिया की आॅखों में झलकती है आत्मविश्वास की चमक ।,वह दिल खोलकर चहचहाती है। उसमें चुनोंतियो से जूझने का हौसला भी पैदा होता है। यही हौसला महिला में शक्ति पैदा करता है। उसे कभी कल्पना चावला तो कभी इंदिरा नुेहरू तो कभी किरण बेदी बनाता है। वह पूरे दम खम से संघर्षरत है। वह अपने चारो ओर बंधी अर्गला को काटकर अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुई है। वह पायलट बनकर देश की आर्थिक प्रगति में भागीदार बनती है। राजनेता बनकर देश की नीतियांे और विकास कार्य में अपना पक्ष रखती है। घर और बाहर दोनों का भार बखूबी निभाती है, आज की नारी अपने आस्तित्व को पहचानने की पहल कर रही हेै अपने अधिकारों के लिये सजग है। प्रंेम  जबतक आकर्षण के रूप में है तब तक प्रेमी प्रेमिका दोनों मालिक होते हैं विवाह में परिवर्तित होते ही मालिक नौकर का भाव आ जाता है और नारी नौकर होने का सुख भोगती है उसमें ही मस्त रहती है पर जहाॅं जरा सा मलिक बनने की ओर कदम बढ़ाना चाहती है या हक की बात करती है तो झगड़ा होने लगता है। तब प्रेम युद्ध की स्थिति पैदा कर देता है सन् 1960 के दशक में महिला सशक्तीकरण एक मुद्दा एक विचार बना । यह आंदोलन  भारत ही में नहीं विश्व में फैला । अर्थात  नारी पुरुषों के समान किसी भी देश में सक्षम और सशक्त नहीं है। उसे दोयम दर्जो का स्थान मिला हुआ है । विश्व भर में अनेक योजनाऐं महिला सशक्तीकरण के लिये चलाई गयी हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने तो एक पृथक कार्यक्रम चलाया हेै।

 यद्यपि अभी भी शारीरिक हिंसा और उत्पीडन की शिकार हैं लकिन अब सामाजिक न्याय और आर्थिक संबलता की ओर कदम बढ़ा कर गरीब अनपढ और पिछडें समाज की महिलाएॅं जो अधिक उत्पीडन का शिकार होती हैं, अब अन्याय के खिलाफ उठकर खडी हो गई हेैं वे अपना हक मांग रही हैं। उसके लिये हर चुनौती का सामना कर रही है। उदाहरण है बुदेलाखंड की पांच सौ औरतों का गुलाबी गिरोह। एक अर्धशिक्षित महिला संपतदेवी द्वारा संगठित यह गिरोह है। सरकारी महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खडा हुआ है। इस गिरोह की सबसे बडी उपलब्धि-,, राशन काला बाजार में जाने से रोकना है। संपत देवी  का कहना हेै देश आसानी सें तो आजाद हुआ नही हैं अरे जान एक बार जायेगी दस खलनायक हमें परेशान करे क्या ? पूरा बुदेलखण्ड हमारे साथ हेै। देश के कई राज्यों में महिलाओं ने स्वशक्ति स्वयं सहायता समूह बना लिये हैं इसने आर्थिक आत्मानिर्मरता के क्षेत्र में क्रंाति लादी है।विश्व महिला दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में की थी, लेकिन इसका आरम्भ बहुत पहले ही हो गया था। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ मंे ही महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति सजगता आ गई थी । यूरोप में बदलाव आ रहा था। 1911 मंे काोपेनहेग जर्मनी मंे सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की क्लारा जेटिकन ने विश्व महिला दिवस का विचार रखा और 19 मार्च को यूरोप के बहुत से देशों में पहली बार विश्व महिला दिवस का आयोजन हुआ। इसमें 10 लाख से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों ने भाग लिया । यह दिवस महिलाओं के ही नहीं  एक तरह से सभी के लिये सामाजिक न्याय व  समानता की आवाज उठाता रहा। अमेरिका मंे भी अपने अधिकारों के प्रति चेतना जाग्रत हो रही थी । 1908 मंे करीब 1500 महिलाओ ने सड़क पर आकर पहली बार यह आवाज उठाई कि उन्हें वोट का अधिकार मिले । 28 फरवरी 1909 को वहाॅ महिलाओं ने अपना पहला महिला दिवस मनाया और यह सिलसिला 1913 तक चलता रहा यूरोप मंे 1913 में विश्व महिला दिवस की तिथि 8 मार्च तय की गई और इसी तारीख को बाद में संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिली। इस एक शताब्दी का सफर महिलाओं के लिये आगे और आग जाने तमाम उपलब्धियों का सफर है।


 जम्मू कश्मीर की महिलाओं ने अतंकवादियों के खिलाफ स्वयं हथियार उठा लिये हैं। अवामी नामक इस संगठन की महिआएॅं कहती हैं अपने ऊपर अत्याचार कराने से अच्छा मरना, मारना सीख लें। उत्तरांचल झारख्ंाण्ड मध्य प्रदेश मेें महिलाआंे द्वारा शराब विरोधी अंदोलन चलाये गये । आदमियांे की शराब खोरी की वजह से महिलाओं को जो उत्पीडन सहना पडता है, उसके खिलाफ लामबंदी कर हजारों लीटर शराब नष्ट कर दुकाने बंद कराई । यहाॅ महिलाओ ने अपनी शक्ति का उपयोग संगठित होकर किया अपने को कमजोर नही माना । एकता  में संगठन में बहुत शवित हैं जो कमी प्राकृतिक रूप से महिला  मंे है कि वह निर्बल रह जाती हैं अबला नही ,शारीरिक रूप से उसमें पुरुष का सामना करने की शाक्ति नही है तो उसे संगठित होकर पूरा किया जा सकता हेै । अरब देश की महिलाण्ें भी पुरुष सत्तात्मकता के खिलाफ उठ खड़ी हुई हैं। इसके लिये उन्होंने भीषण यातनायें सहीं । प्रताड़ना यौन उत्पीड़न आदि सहन किया। उनका कहना है पितृसत्तात्मक व्यवस्था के हटे बिना आजादी मुमकिन नहीं । इसके लिये उन्होंने जगह जगह प्रदर्शन कर कुछ कानून अपने हित में कराये ।

जहा तक अधिकारों की बात है, अधिकार लडकर नही प्राप्त किये जा सकते हैं महिलाओं को भी पूरे अधिकार प्राप्त हेैं पर क्या महिलाएं अपने हर अधिकार के लिये कानून का दरवाजा खटखटायेगी। क्योकि शोषण महिलाओं का हर कदम पर है और कारण हैं वह अपने को आश्रित मानती हेै। आर्थिक स्वतन्त्रता इतना आत्म विश्वास दे देती हैं कि वह अपने अधिकार अपने आप जान  जाती हेै।

 कुछ अधिकार ऐसे हैं जिन्हे माॅ को बच्ची को देने होंगे । स्वयं ही जब अपने को सीमित कर लेगी तो कैसे वह अपनी बच्ची को इस योग्य बनायेगी कि वह पुरुषेां के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके। आर्थिक स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक नहीं कि काम काजी ही हो  जो कामकाजी महिलाएॅ दोहरी जिंदगी जी कर और भी पिसती ंहैं आर्थिक स्वतन्त्रता मिलती है, पर परिवार छिन जाता है। जहा एकल परिवार है वह्राॅ महिला नौकरी कर लेती हैं पर जब बच्चे होते हैं तब समस्या रहती है, तब परिवार की इच्छा होती है।वह चाहती है कि कोई बच्चे को संभाले तब वह नौकरी करे। घरेलू महिलाएॅं कम उपयोगी नहीं होती हैं। वह परिवार का पालन पोषण बच्चों की शिक्षा दीक्षा का पूरा भार वहन करती हैं ऐसे में उसे आर्थिक स्वतन्त्रता रहनी चाहिये। विवाह के साथ ही यह निश्चय रहना चाहिये कि यंिद परिवार चलाने की जिम्मेदारी उसकी है तो अर्थ की देख भाल भी उसकी जिम्मेदारी है। एक विश्वास ,एक आत्म विश्वास पैदा होगा और स्वतन्त्र निर्णय मी तब ही ले पायेगी बस दृढता होती चाहिये अपने आस्तित्व की लडाई, के लिये अपने को अंदर से मजबूत करना चाहिये। भारत की महिलाओं के सामने बहुत सी चुनौतियाॅं हैं । यद्यपि कदम दर कदम हर चुनौती का जबाव देती नारी आगे और आगे बढ़ती जा रही है । कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाॅं नारी पुरुष से पीछे है। साड़ी कपड़ा जेवर चैके चुल्हे से कहीं ऊपर उसे दुनिया नजर आने लगी हैं 

नारी में अदम्य शक्ति है वह जो मन में ठान लेती है पूरा ही करके मानती है । देश की प्रगति समाज की प्रगति महिलाओं की प्रगति पर निर्भर है । महिला समाज की निर्माता हैं ।महिलाऐं  पुरुष की भाग्य रेखा हैं। समाज की राष्ट्र की घुरी हैं महिलाऐं । दूसरों की दया या मेहरबानी की ओर देखना  यही स्त्री को कमजोर बनाता है। स्त्री अपने हाथ में महिला दिवस का झुनझुना पाकर उसे खुशी खुशी बजाती है पर क्या यह स्वर्य महिलाओं के लिये सार्थक प्रयास है। एक दिन क्यों 365 दिन महिलाओ के है और हर दिन को अपना दिन मानकर अपने को मजबूत किया जा सकता है। तब ही महिला सशक्तीकरण सार्थक होगा नही तो ऐसे ही महिला रिरियाती रहेगी अपने अधिकार मांगती  रहेगी मांगने वाला तो हमेशा दोयम होता है। तो दोयम क्यों बने, दाता हैं जन्मदाता, जीवन दाता आगे भी दाता ही बने। महिलाओं को यदि अपना अधिकार लेना है तो दूसरी महिलाओं को अधिकार देेने होंगे । अपनी इज्जत कराने के लिये दूसरी महिलाओं को भी स्थान देना होगा तभी पुरुष वर्चस्व में सेंध लगेगी । 

डा॰ शशि गोयल                         

सप्तऋषि अपार्टमेंट

जी -9 ब्लाॅक -3  सैक्टर 16 बी

आवास विकास योजना, सिकन्दरा

आगरा 282010मो ॰9319943446

म्उंपस दृ ेींेीपहवलंस3/हउंपसण्बवउ



Saturday, 26 February 2022

mahrshi Dayanand

 महर्षि दयानन्द महान समाज सुधारक

महर्षि दयानन्द महान समाज सुधारक ,ऐसे वक्त मे अपने विचारों को लेकर खड़े हुए जब देष अंधविष्वासों मे जकड़ा हुआ था। बार बार दासता की जंजीरों की वजह से बहुत सी कुरीतियाॅं व्याप्त थी। कट्टर मानस के व्यक्ति देष को गर्त ओर ले जा रहे थे। ऐसे समय महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में फरवरी 12 को कर्षन जी के यहाँ मोरवी राज्य के टंकारा नगर के जीवापुर मुहल्ले में हुआ । उनका मूल नाम मूलषंकर था लेकिन प्यार से उन्हें दयाराम भी कहा जाता था। 

उनकी षिक्षा 5 वर्ष की अवस्था में प्रारम्भ हुई पिता परम षिवभक्त थे। चैदवें वर्ष की आयु में दयाराम को पिता ने षिव जी का व्रत षिव रात्रि को रखने के लिये कहा। षिव रात्रि को उनसे अनुष्ठान कराकर पूजा बिठाई उसमें पुजारी का सोना निषेध होता है। एक चूहा षिवजी की मूर्ति पर चढ़े अक्षत खाने लगा। मूल जी के मस्तिक में झंझावत उठ खड़ा हुआ। षिव तो दुर्दांत दैत्य दलनकारी है। और एक छोटा सा जीव उनके सिर पर विराजमान है वे उसे हटा नही पा रहे। उसने अपने प्रश्न का समाधान पिता से चाहा पर पिता के इस समाधान से संतुष्टि नही मिली कि यह पाषाण मूर्ति पूजा है । यदि पाषाण है तो पूजा कैसी? यहीं से वे मूर्ति पूजा विरोधी हुए । बहन की व अपने चाचा की विसूचिका से मृत्यु से उन्हें वैराग्य हुआ। 22 वर्ष की अवस्था में अपने विवाह की तैयारियाँ होते देख वे घर से भाग गये। श्रंगृवेरी मठ द्वारका जा रहे एक सन्यासी पूर्णानन्द ने इनका नाम दयानंद सरस्वती रखा। तब से वे अनेक स्थानों पर भ्रमण करते ज्ञान प्राप्त करते रहे और सन् 1880 में कार्तिक शुक्ला द्वितीया को वे मथुरा आये वहाँ दण्डी स्वामी विरजानंद से शिक्षा लेने पहुँेेचे। वे आर्ष साहित्य समर्थक थे। वे उन्हें कालजिव्ह और कुलक्कर कहते थे। (कालजिव्ह का अर्थ है जिसकी जिव्हा असत्य का खंडन करे) कुलक्कर का अर्थ है खूंटा ( जो विपक्षी को पराभूत करने में द्वृढ हो) वे वेदों को सत्य मानते थे। 

तीन वर्ष उनके पास अध्ययन कर वे 1863 मेें सेठ गुल्लामल के बाग आगरा में ठहरे। वे जगह जगह प्रवचन करते। अठारह पुराण मूर्ति पूजा शैव शाक्य ,रामानुज सम्प्रदाय तन्त्रग्रन्थ ,काम मार्ग, भाँग, शराब आदि का खंडन करते उन्होंने पहली पाठशाला कासगंज में 1870 में बनाई। कासंगज में एक दिन युद्धरत दो साड़ों को  सींग पकड़ कर इतनी जोर से धक्का दिया कि दोनों का मुँह आकाश की ओर उठ गया। 

1890 में महर्षि अनूपशहर पहुँचे वहाँ एक पंडित ने महर्षि को पान में जहर दिया लेकिन योग की न्यौती किया से महर्षि ने विष को बाहर कर दिया पूरे देश में महर्षि ने व्याख्यान दिये। वे संस्कृत में व्याख्यान देते थे। केशवदेव ने महर्षि कांे हिन्दी में व्याख्यान देने को कहा तबसे दयानन्द हिन्दी में व्याख्यान देने लगे। आर्य समाज की स्थापना चैत्र प्रतिपदा संवत् 1932 सन् 1837 को गिर गाँव में हुई। 

परन्तु ज्यों ज्यों उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई उनके दुश्मन बढ़ते गये। पंडितों आदि को अपना व्यवसाय खतरे में लगा। पूरे जीवन काल में उन्हें 10 बार विष देने का प्रयास किया गया। सन् 1883 मई 28 को अजमेर फिर पाली से जोधपुर पहुँचे जुलाई के अन्त में जोधपुर नन्ही वेश्या के प्रेम को छोड़ने के लिये जोधपुर नरेश को पत्र लिखा। 30 सितम्बर को अथवा 1 अक्टूबर को रात्रि के समय चोलमिश्र के हाथ दूध पीकर जब सो गये तो उदरशूल से जी मिचलाने लगा। तीन बार वमन हुआ। चोलमिश्र अथवा जगन्नाथ पंडित ही था जिसने महर्षि के दूध में जहर दिया था उसे नन्ही वेश्या ने जहर दिया था। पंडित ने जहर तो दे दिया लेकिन पश्चाताप् से भर उठा।महर्षि को ज्ञात हुआ जो उन्होंने  उसे रूपये देकर तत्काल नेपाल निकाल जाने के लिये कहा। ‘मैं किसी को कैद कराने नही आया संसार मात्र को मुक्त कराना मेरा कर्तव्य है।’ 30 अक्टूबर दीपावली के दिन संध्या 6 बजे 

  महर्षि दयानन्द ने जाति को कर्म से बांधा जन्म से नहीं उन्होंने  ईश्वर को सृष्टि का निमित्त एवम् प्रकृति को अनादि शाश्वत माना। राष्ट्रीय जागरण समाजिक पुनरुत्थान में स्त्रियों की भागीदारी करने के पक्ष में थे। 

महर्षि दयानन्द महान समाज सुधारक ही नहीं थे। उन्होंने स्वराज्य की प्रथम जोत जलाई। वे ही थे जो पराधीन भारत में यह कहने का साहस कर सके कि आर्यावर्त ( भारत ) भारतीयों का है। प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के सूत्रधार भी दयानंद सरस्वती थे । 1857 की क्रान्ति की संपूर्ण योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में तैयार की गई थी। 1855 को हरिद्वार में एकान्त स्थान पर उन्होने अजीमुल्ला, नाना साहेब, बाला साहिब, तात्या टोपे तथा बाबू कंुवर सिंह से मुलाकात की और देश की आजादी के लिये योजना तैयार की। 

1857 की क्रान्ति की असफलता पर दयानन्द सरस्वती ने हतोत्साहित क्रान्तिकारियों में अपने इस कथन से प्राण फूंक दिया‘ स्वतन्त्रता संघर्ष कभी असफल नहीं होता । भारत धीरे धीरे एक सौ वर्ष में परतन्त्र बना है। अब इसकी स्वतन्त्रता प्राप्ति में बहुत से अनमोल प्राणियों की आहुतियां डाली जायेगी। अनेको ग्रंथ लिखे सत्यार्थ प्रकाश प्रमुख ग्रंथ है। 

दयानन्द सरस्वती महान समाज सुधारक योगी दार्शनिक पाखंड विरोधी भारत को एक महान देश बनाने उसका कायाकल्प करने की भावनाओं से ओतप्रोत थे । 







Sunday, 13 February 2022

Mahila sashaktikaran

 महिला सशक्तीकरण 


एक पिंजरे  में कैद  चिडिया और आसमान में उडान भरती चिडिया के स्वभाव में खासा अंतर हेाता है। पिंजरे में कैद चिडिया संुन्दर भले ही हो मगर वह चहचहाती नहीं है। झालक जाती है आॅखे में समाई मजबूरी सहमेपन का सा भाव जबकि आसमान में उडान भरती चिडिया की आॅखों में झलकती है आत्मविश्वास की चमक ।,वह दिल खोलकर चहचहाती है। उसमें चुनोंतियो से जूझने का हौसला भी पैदा होता है। यही हौसला महिला में शक्ति पैदा करता है। उसे कभी कल्पना चावला तो कभी इंदिरा नुेहरू तो कभी किरण बेदी बनाता है। वह पूरे दम खम से संघर्षरत है। वह अपने चारो ओर बंधी अर्गला को काटकर अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुई है। वह पायलट बनकर देश की आर्थिक प्रगति में भागीदार बनती है। राजनेता बनकर देश की नीतियांे और विकास कार्य में अपना पक्ष रखती है। घर और बाहर दोनों का भार बखूबी निभाती है, आज की नारी अपने आस्तित्व को पहचानने की पहल कर रही हेै अपने अधिकारों के लिये सजग है। प्रंेम  जबतक आकर्षण के रूप में है तब तक प्रेमी प्रेमिका दोनों मालिक होते हैं विवाह में परिवर्तित होते ही मालिक नौकर का भाव आ जाता है और नारी नौकर होने का सुख भोगती है उसमें ही मस्त रहती है पर जहाॅं जरा सा मलिक बनने की ओर कदम बढ़ाना चाहती है या हक की बात करती है तो झगड़ा होने लगता है। तब प्रेम युद्ध की स्थिति पैदा कर देता है सन् 1960 के दशक में महिला सशक्तीकरण एक मुद्दा एक विचार बना । यह आंदोलन  भारत ही में नहीं विश्व में फैला । अर्थात  नारी पुरुषों के समान किसी भी देश में सक्षम और सशक्त नहीं है। उसे दोयम दर्जो का स्थान मिला हुआ है । विश्व भर में अनेक योजनाऐं महिला सशक्तीकरण के लिये चलाई गयी हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने तो एक पृथक कार्यक्रम चलाया हेै।

 यद्यपि अभी भी शारीरिक हिंसा और उत्पीडन की शिकार हैं लकिन अब सामाजिक न्याय और आर्थिक संबलता की ओर कदम बढ़ा कर गरीब अनपढ और पिछडें समाज की महिलाएॅं जो अधिक उत्पीडन का शिकार होती हैं, अब अन्याय के खिलाफ उठकर खडी हो गई हेैं वे अपना हक मांग रही हैं। उसके लिये हर चुनौती का सामना कर रही है। उदाहरण है बुदेलाखंड की पांच सौ औरतों का गुलाबी गिरोह। एक अर्धशिक्षित महिला संपतदेवी द्वारा संगठित यह गिरोह है। सरकारी महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खडा हुआ है। इस गिरोह की सबसे बडी उपलब्धि-,, राशन काला बाजार में जाने से रोकना है। संपत देवी  का कहना हेै देश आसानी सें तो आजाद हुआ नही हैं अरे जान एक बार जायेगी दस खलनायक हमें परेशान करे क्या ? पूरा बुदेलखण्ड हमारे साथ हेै। देश के कई राज्यों में महिलाओं ने स्वशक्ति स्वयं सहायता समूह बना लिये हैं इसने आर्थिक आत्मानिर्मरता के क्षेत्र में क्रंाति लादी है।विश्व महिला दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में की थी, लेकिन इसका आरम्भ बहुत पहले ही हो गया था। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ मंे ही महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति सजगता आ गई थी । यूरोप में बदलाव आ रहा था। 1911 मंे काोपेनहेग जर्मनी मंे सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की क्लारा जेटिकन ने विश्व महिला दिवस का विचार रखा और 19 मार्च को यूरोप के बहुत से देशों में पहली बार विश्व महिला दिवस का आयोजन हुआ। इसमें 10 लाख से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों ने भाग लिया । यह दिवस महिलाओं के ही नहीं  एक तरह से सभी के लिये सामाजिक न्याय व  समानता की आवाज उठाता रहा। अमेरिका मंे भी अपने अधिकारों के प्रति चेतना जाग्रत हो रही थी । 1908 मंे करीब 1500 महिलाओ ने सड़क पर आकर पहली बार यह आवाज उठाई कि उन्हें वोट का अधिकार मिले । 28 फरवरी 1909 को वहाॅ महिलाओं ने अपना पहला महिला दिवस मनाया और यह सिलसिला 1913 तक चलता रहा यूरोप मंे 1913 में विश्व महिला दिवस की तिथि 8 मार्च तय की गई और इसी तारीख को बाद में संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिली। इस एक शताब्दी का सफर महिलाओं के लिये आगे और आग जाने तमाम उपलब्धियों का सफर है।


 जम्मू कश्मीर की महिलाओं ने अतंकवादियों के खिलाफ स्वयं हथियार उठा लिये हैं। अवामी नामक इस संगठन की महिआएॅं कहती हैं अपने ऊपर अत्याचार कराने से अच्छा मरना, मारना सीख लें। उत्तरांचल झारख्ंाण्ड मध्य प्रदेश मेें महिलाआंे द्वारा शराब विरोधी अंदोलन चलाये गये । आदमियांे की शराब खोरी की वजह से महिलाओं को जो उत्पीडन सहना पडता है, उसके खिलाफ लामबंदी कर हजारों लीटर शराब नष्ट कर दुकाने बंद कराई । यहाॅ महिलाओ ने अपनी शक्ति का उपयोग संगठित होकर किया अपने को कमजोर नही माना । एकता  में संगठन में बहुत शवित हैं जो कमी प्राकृतिक रूप से महिला  मंे है कि वह निर्बल रह जाती हैं अबला नही ,शारीरिक रूप से उसमें पुरुष का सामना करने की शाक्ति नही है तो उसे संगठित होकर पूरा किया जा सकता हेै । अरब देश की महिलाण्ें भी पुरुष सत्तात्मकता के खिलाफ उठ खड़ी हुई हैं। इसके लिये उन्होंने भीषण यातनायें सहीं । प्रताड़ना यौन उत्पीड़न आदि सहन किया। उनका कहना है पितृसत्तात्मक व्यवस्था के हटे बिना आजादी मुमकिन नहीं । इसके लिये उन्होंने जगह जगह प्रदर्शन कर कुछ कानून अपने हित में कराये ।

जहा तक अधिकारों की बात है, अधिकार लडकर नही प्राप्त किये जा सकते हैं महिलाओं को भी पूरे अधिकार प्राप्त हेैं पर क्या महिलाएं अपने हर अधिकार के लिये कानून का दरवाजा खटखटायेगी। क्योकि शोषण महिलाओं का हर कदम पर है और कारण हैं वह अपने को आश्रित मानती हेै। आर्थिक स्वतन्त्रता इतना आत्म विश्वास दे देती हैं कि वह अपने अधिकार अपने आप जान  जाती हेै।

 कुछ अधिकार ऐसे हैं जिन्हे माॅ को बच्ची को देने होंगे । स्वयं ही जब अपने को सीमित कर लेगी तो कैसे वह अपनी बच्ची को इस योग्य बनायेगी कि वह पुरुषेां के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके। आर्थिक स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक नहीं कि काम काजी ही हो  जो कामकाजी महिलाएॅ दोहरी जिंदगी जी कर और भी पिसती ंहैं आर्थिक स्वतन्त्रता मिलती है, पर परिवार छिन जाता है। जहा एकल परिवार है वह्राॅ महिला नौकरी कर लेती हैं पर जब बच्चे होते हैं तब समस्या रहती है, तब परिवार की इच्छा होती है।वह चाहती है कि कोई बच्चे को संभाले तब वह नौकरी करे। घरेलू महिलाएॅं कम उपयोगी नहीं होती हैं। वह परिवार का पालन पोषण बच्चों की शिक्षा दीक्षा का पूरा भार वहन करती हैं ऐसे में उसे आर्थिक स्वतन्त्रता रहनी चाहिये। विवाह के साथ ही यह निश्चय रहना चाहिये कि यंिद परिवार चलाने की जिम्मेदारी उसकी है तो अर्थ की देख भाल भी उसकी जिम्मेदारी है। एक विश्वास ,एक आत्म विश्वास पैदा होगा और स्वतन्त्र निर्णय मी तब ही ले पायेगी बस दृढता होती चाहिये अपने आस्तित्व की लडाई, के लिये अपने को अंदर से मजबूत करना चाहिये। भारत की महिलाओं के सामने बहुत सी चुनौतियाॅं हैं । यद्यपि कदम दर कदम हर चुनौती का जबाव देती नारी आगे और आगे बढ़ती जा रही है । कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाॅं नारी पुरुष से पीछे है। साड़ी कपड़ा जेवर चैके चुल्हे से कहीं ऊपर उसे दुनिया नजर आने लगी हैं 

नारी में अदम्य शक्ति है वह जो मन में ठान लेती है पूरा ही करके मानती है । देश की प्रगति समाज की प्रगति महिलाओं की प्रगति पर निर्भर है । महिला समाज की निर्माता हैं ।महिलाऐं  पुरुष की भाग्य रेखा हैं। समाज की राष्ट्र की घुरी हैं महिलाऐं । दूसरों की दया या मेहरबानी की ओर देखना  यही स्त्री को कमजोर बनाता है। स्त्री अपने हाथ में महिला दिवस का झुनझुना पाकर उसे खुशी खुशी बजाती है पर क्या यह स्वर्य महिलाओं के लिये सार्थक प्रयास है। एक दिन क्यों 365 दिन महिलाओ के है और हर दिन को अपना दिन मानकर अपने को मजबूत किया जा सकता है। तब ही महिला सशक्तीकरण सार्थक होगा नही तो ऐसे ही महिला रिरियाती रहेगी अपने अधिकार मांगती  रहेगी मांगने वाला तो हमेशा दोयम होता है। तो दोयम क्यों बने, दाता हैं जन्मदाता, जीवन दाता आगे भी दाता ही बने। महिलाओं को यदि अपना अधिकार लेना है तो दूसरी महिलाओं को अधिकार देेने होंगे । अपनी इज्जत कराने के लिये दूसरी महिलाओं को भी स्थान देना होगा तभी पुरुष वर्चस्व में सेंध लगेगी । 

डा॰ शशि गोयल                         

सप्तऋषि अपार्टमेंट

जी -9 ब्लाॅक -3  सैक्टर 16 बी

आवास विकास योजना, सिकन्दरा

आगरा 282010मो ॰9319943446

म्उंपस दृ ेींेीपहवलंस3/हउंपसण्बवउ



Sarojni Naydo on her birthday

 श्रीमती सरोजनी नायडू

प्रथम राज्यपाल

पन्द्रह अगस्त 1947 ,भारत ने आजादी की सांस ली और नये जीवन के लिये अपने पग बढ़ाये। विशाल साम्राज्य और प्रशासनिक नेतृत्व से अनजान नेताओं पर ही सबकी आँखे टिक गई। शासन की बागडोर संभालना क्या आसान काम था ? केन्द्र में कांगे्रस ने शासन संभाला। स्व॰ राजेन्द्र प्रसाद सर्वोच्च पद पर आसीन हुए, और जवाहर लाल नेहरू प्रधान मंत्री। हर राज्य में कांगे्रस के ही प्रतिनिधि राज्यपाल बनाये गये। उत्तर प्रदेश विस्तार और जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है उसके लिये जो राज्यपाल चुनी गई वो थीं श्रीमती सरोजनी नायडू। उस पद को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा  ‘मैं अपने को  कैद कर दिये गये जंगल के पंछी सा अनुभव कर रही हॅूं ।’ स्वतन्त्र भारत में महिलाओं के लिये शासन में पहला कदम। उन्होंने राज्यपाल के पद पर आरूढ़ होने के बाद अपना भाषण दिया।

”हे संसार के स्वतंत्र राष्ट्रो, हम अपनी स्वतंत्रता के दिन हम आपकी स्वतंत्रता के लिये प्रार्थना करते हैं। हमारा सतत महान संघर्ष था। अनेकांे वर्षों तक चलने वाला और अनेकों की बलि लेने वाला यह संघर्ष था नाटकीय संघर्ष। मुख्य रूप से यह अज्ञात लाखों वीरों का एक संघर्ष था। उस शक्ति में परिवर्तित उन स्त्रियों का संघर्ष था जिसकी वे पूजा करती हैं। वह युवकों का संघर्ष था, अचानक स्वयं शक्ति, बलिदान और आदर्शो में परिवर्तित।

आज हम दुःखों की कड़ाही से दोबारा पैदा हुए हैं। संसार के राष्ट्रो! में तुम्हें अपनी भारत माता के नाम अभिवादन करती हूँ। मेरी माता जिसकी छत पर वर्फ का छप्पर है, जीवित समुद्र जिसकी दीवालें हैं जिसके दरवाजे हमेशा तुम्हारे लिये खुले हैं। क्या तुम शरण या सहायता चाहते हो, क्या तुम पे्रम या सद्भावना चाहते हो, आओ, भारत जो कभी अतीत में मरा नहीं था जो भविष्य में अनश्वर रहेगा और संसार को अंतिम शांति की ओर ले जायेगा।“

सरोजनी नायडू का जन्म 1979 ई॰ में 13 फरवरी को हैदराबाद में हुआ। पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एवम् माता वरदा सुन्दरी की आठ संतानों में वे प्रथम संतान थी। अघोरनाथ मूलतः बंगाल के एक गाँव ब्रहमनगर के निवासी थे। वे रसायन शास्त्र के पंडित थे उन्होेंने ऐडिनबरा जाकर रसायनशास्त्र की डिग्री प्राप्त की थी। वे कट्टर ब्रह्म समाजी थे और ब्रह्म समाज के संस्थापक श्री केशवचंद्र सेन के शिष्य थे। अघोरनाथ भाषाविज्ञ थे।

उन्हें भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंगे्रजी, जर्मन, फ्रेंच और हिबू्र आदि भाषाएं भी भली प्रकार आती थी। उनका कई शिक्षण संस्थाओं से संबंध था तथा हैदराबाद काॅलेज के प्राचार्य थे। उन्होंने राजनीति में भी हाथ आजमाया। राजनीति में प्रवेश कर कांग्रेस के मेम्बर बने फलस्वरूप उन्हें हैदराबाद काॅलेज से निकाल दिया गया लेकिन इतने विद्वान आदमी को निष्कासित करने पर उन्हें अफसोस हुआ और उन्हें दोबारा प्रार्थना करके बुला लिया गया। यही काॅलेज बाद में उस्मानिया काॅलेज के नाम से जाना गया। अघोरनाथ का संबंध अनेक उच्चशिक्षण संस्थाओं से था इसलिये घर में अनेक विद्वान आते तब स्वाभाविक रूप से सरोजनी उनसे सीखती रहीं और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का ज्ञान प्राप्त करती रहीं उन्होंने जातीय एकता का पाठ इन्हीं मेहमानों से पढ़ा।

अपने घर के वातावरण के बारे में उनके कवि भाई द्वारा लिखी पंक्तियाँ ‘ज्ञान और संस्कृति का संग्रहालय, अद्भुत लोगों से भरा हुआ चिड़ियाघर,’ इनमें से कुछ रहस्यवाद की ओर झुके हुये थे, क्यांेकि हमारा घर सबसे लिये एक समान खुला हुआ था।’ इनकी माॅं वरद सुंदरी बाग्ंला में कविता करती थीं।

ज्ञान संस्कृति और चेतना उन्हें बचपन ही में प्राप्त हो गई थी, तथा अनेक भाषाएंे धाराप्रवाह बोलना आ गया था। पिता ने उन्हें अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलाना प्रारम्भ किया, क्योंकि उनकी बुद्धि चातुर्य से प्रभावित थे और चाहते थे वे कोई महान वैज्ञानिक या गणितज्ञ बनें। लेकिन भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है यह वो नहीं जानते थे, कठोरता और नीरसता के विपरीत वे कोकिल कंठी कवियत्री और राजनीतिज्ञ के रूप में उभरीं। यथार्थ से अधिक वे कल्पना लोक में विचरती थीं। उन्होंने एक स्थान पर लिखा है, ”ग्यारह वर्ष की उम्र में मैं बीजगणित के एक सवाल के ऊपर आहें भर रही थी, वह ठीक नहीं बन रहा था किन्तु उसकी जगह एकाएक पूरी कविता सूझ गई, मैने उसे लिख डाला। उस दिन मेरा कवि जीवन प्रारम्भ हो गया। तेरह वर्ष की अवस्था में मैंने एक लम्बी कविता लिखी ”ए लेडी आफ द लेक“ छः दिन में तेरह सौ पक्तियों की यह रचना लिखी तथा दो हजार शब्दों का फारसी भाषा का नाटक ‘माहेर मुनीर’ लिखा। ‘एक संपूर्ण भावनामय कृति जिसे मैंने बिना सोचे बिचारे क्षणोन्माद में ही लिखना प्रारम्भ कर दिया था वह भी केवल चिकित्सक की अवहेलना के लिये क्योंकि उन्होंने कहा था कि मैं बहुत बीमार हूँ और मुझे किताब को हाथ भी नहीं लगाना चाहिये।“

इस नाटक की कुछ प्रतियाॅं पिता अघोरनाथ ने मित्रों और रिश्तेदारों के बीच बाॅंटी एक प्रति हैदराबाद निजाम के पास भी भेजी वे उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। 

ं हैदराबाद में लड़कियों की शिक्षा के लिये कोई भी शिक्षण संस्थान नहीं था अतः उनकी शिक्षा मद्रास में हुई। उन्होंने मैट्रिक में सर्वोच्च अंक प्राप्त किये।

मैट्रिक के पश्चात कुछ दिन वे केवल कविता और गीत रस माधुरी का आस्वादन करती रही। उन्हीं दिनों डाॅ॰ गोविन्द राजलू नायडू के प्रति उनके मन में कोमल भावनाएं जन्म लेने लगीं लेकिन अघोरनाथ जानकर क्षुब्ध हो गये,  उसका कारण था एक तो डाॅ॰ नायडू विधुर थे एवम् सरोजनी से उम्र में बड़े भी थे। सरोजनी की उम्र उस समय पन्द्रह वर्ष थी जबकि नायडू पच्चीस छब्बीस के थे। दूसरे वे छोटी उम्र में लड़कियों के विवाह के विरुद्ध थे, तीसरे जातिगत भिन्नता भी थी। 1895 में  अघोरनाथ ने उच्च शिक्षा के लिये उन्हें लंदन भेज दिया। हैदराबाद निजाम द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान की गई । वहाँ विभिन्न प्रकार से ज्ञानार्जन करने लगी। दो वर्ष वहाँ अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। साथ ही वे कविता लिखती रहीं । हैदराबाद निजाम द्वारा उन्हें आगे पढ़ने के लिये वजीफा दिया गया। प्रेम का अंकुर लंदन प्रवास के दौरान और पुष्ट हो गया।

लंदन से लौटकर विवाह की चर्चा चली और सरोजनी ने अपना निश्चय सुना दिया कि वह डा॰ गोविन्द राजलू नायडू से ही विवाह करेंगी। अंत में उनके माता-पिता को उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे झुकना पड़ा और दो सितम्बर 1898 को विवाह डाॅ॰ गोविन्द राजलू नायडू से हो गया।

प्रेम सुख शांति के मध्य वे अपनी जिन्दगी जी रही थीं। उनके चार संतान हुई, जयसूर्य, पद्या, रणधीर एवम् लीलामणि। साथ ही उनकी काव्य निर्झरणी बहती रही, और सरोजनी का नाम अंग्रेजी काव्य जगत में बड़े आदर से लिया जाने लगा।

सन् 1902 में सरोजनी नायडू गोपाल कृष्ण गोखले के संपर्क में आई और उनकी अनन्य भक्त हो गई। उन्हें गुरू रूप में श्रद्धा के पुष्प अर्पित करती थीं, उनके गुणों का प्रभाव उन पर पड़ा । उससे वे सदा आप्लावित रहीं। 1905 में उनकी काव्य कृति ‘गोल्डन थ्रैसहोल्ड’ प्रकाश में आई ।  गाँधी जी से सरोजनी नायडू की मुलाकात 1914 में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भिक दौर के समय हुई। गोखले और सरोजनी लंदन में थे। गाँधीजी को महात्मा की उपाधि मिल चुकी थी। वे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों के लिये लड़ रहे। गोखले ने उन्हें लंदन आने के लिये आमंत्रित किया जहाँ अंग्रेजी सरकार को देने के लिये स्मृति पत्र तैयार करना था। सरोजनी नायडू ने लिखा है ”आश्चर्य  की बात है महात्मा गाँधी से मेरी मुलाकात 1914 के यूरोपीय महायुद्ध  शुरू होने के ठीक पहले लंदन में हुई। जहाँ उन्होंने सत्याग्रह के सिद्धान्त का श्री गणेश किया था और अपने देश वासियों के लिये, जो कि उस समय ऋणी बंधुआ मजदूर थे, के लिये विजय प्राप्त की।“

प्रथम दर्शन में सरोजनी नायडू अवाक् थी कि इस व्यक्ति में ऐसा क्या है जो सब उन्हें आदर और श्रद्धा से महात्मा कहते हैं, परन्तु जैसे-जैसे उनके परिचय की गति बढ़ी वे स्वयं उसी श्रद्धा में डूब गई और भारत लौटने पर जगह-जगह जनता को गाँधीजी के संदेश सुनाने लगी। गाँधीजी के संदेशों के माध्यम से सरोजनी नायडू भी जनता में जानी जाने लगीं। गाँधीजी के लंदन से वापस आने के बाद उनके हर कार्य को बढ़ाने में सहायता करने लगीं। 1918 में बम्बई के कांगे्रस अधिवेशन में ‘जागो शक्ति’ कविता सुनाकर अपना ध्यान आकर्षित कर लिया। उन्होंने कुशलता से राष्ट्रीय आंदोलंनों का नेतृत्व किया। गाॅंव गांव घूमकर देश प्रेम का संदेश जन जन के बीच पहुॅंचाती रहीं । वे बहुभाषाविज्ञ थी। प्रदेश और क्षेत्र के अनुसार उनकी भाषा में भाषण देतीं। उनके व्यक्तव्य जन मानस को झकझोर देते थे । 1925 में वे कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षा बनीं और 1932 में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका गईं 

1919 में अंग्रेजी सरकार ने रौलेट एक्ट पास किया। गाँधी जी के साथ-साथ सरोजनी नायडू ने भी जगह-जगह घूमकर उस एक्ट का विरोध किया। और बड़ी-बड़ी सभाओं में भाषण देकर उस एक्ट का विरोध किया। जलियाँवाला बाग कांड के बाद गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन प्रारम्भ किया। लेकिन साथ ही हिंसा भी तांडव करने लगी। चैराचैरी में थाना जलाया गया। पिं्रस आफ वेल्स के आगमन पर हिंसा भड़की और दंगाइयों ने खून की नदियाँ बहा दी। सरोजनी नायडू ने उन दिनों बहुत साहस और धीरज से काम लिया। वे दंगाइयों के बीच घुस जातीं ओर पीड़ितों की सहायता करतीं। घायलों को अस्पताल भिजवातीं। महात्मा गाँधी सरोजनी नायडू के त्याग और सेवाओं से अत्याधिक प्रभावित थे। उन्होंने वेलगाँव कांग्रेस अधिवेशन में कहा था ‘ सरोजनी एक ऐसी स्त्री है जिसे मेरा स्थान लेना है। ’

गाँधीजी जब जेल में थे उनके आदेश पर धरसाना जाकर नमक भंडार पर अधिकार करना था। उन्हें वहाँ नमक कानून तोड़ने पर जेल की सजा दी गई। 1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव के पास होने में गांँधीजी के साथ सरोजनी नायडू को भी आगा खाँ महल में बंद किया गया।

देश के लिये कार्य करते हुए साहित्य रचना के लिये भी समय निकाल लेती थी और अपनी मधुर वाणी से जनता में नया मंत्र फूंक देती। जो उन्हें सुनता मंत्र मुग्ध हो जाता। उनकी वाणी में रस था ओज था माधुर्य था। वाणी में वाग्देवी फूट पड़ती थी और रस निर्झरणी वह उठती थी। वे भारत की कोकिला नाम से जानी जाती थीं। स्वयं गाँधीजी उन्हंे भारत कोकिला और हिन्दुस्तान की बुलबुल कहते थे। उनके ‘समय के शब्द ’ और ‘टूटे पंख’ नामक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए ।

श्रीमती नायडू को भाषण देने के लिये कभी तैयारी नहीं करनी पड़ी। अपने लिये तैयार भाषण भी कभी पढ़ कर नहीं दिये। 1947 में लाल किले ‘ऐशियाई सम्बन्ध सम्मेलन’ आयोजित किया गया। सरोजनी नायडू सम्मेलन की अध्यक्षा चुनी गईं ।  अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा ”आप लोग जो गहरी पहाड़ी, घाटियों से चलकर रंगीन समुद्रों की विशाल छातियों पर तैरकर प्रभात और अंधकार के बादलों पर सवार होकर आये हैं उनमें से कितने इस बात को समझते हैं कि आज यहाँ हम एशिया के हृदय में ही नहीं बल्कि भारत के दिल की गहराई और केन्द्र में खड़े हैं। यहाँ एशिया की एकता का अविनाशी वचन के लिए एकत्रित हुए है जिससे कि विध्वंसों के बीच की दुनिया केा पीड़ा दुःख शोषण कठिनाई गरीबी, अज्ञान, विपत्ति में और मौत से छुड़ाया जा सके।

1949, 2 मार्च को सरोजनी नायडू ने इस संसार से विदा ली और एक कोयल की कूक शांति से सो गई। आज भी सरोजनी नायडू जन्म दिवस ”महिला दिवस“ के रूप में मनाया जाता है। 13 फरवरी 1964 को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में 15 नये पैसे का  एक डाक टिकिट जारी किया ।


Wednesday, 5 January 2022

sarkari yojnayen

 सरकारी योजनाओ में पलीते लगाते लोग सरकार की तरफ से कोई भी योजना लागू होती है उससे सम्बन्धित अधिकारियों की बल्ले बल्ले हो जाती है और जनता त्रस्त होती है चाहे वह उनके हित में हो पर वह अहितकर होकर रह जाती है और विपक्ष को कुछ दिन गाने का अवसर मिल जाता है। 

नोटबंदी काले धन को बाहर लाने के लिये की गई अभी भी अनेको नेताओं और सरकारी अधिकारियों को टटोला जायेगा तो स्विस बैंक से अधिक धन इनके फटे कुर्तो की जेबों से निकल आयेगा। उधर बैंक कर्मियों ने खूब काला धन कमाया उनके घर अंदर से सज गये बैंक बैलेंस बढ़ गया और जनता बेरोजगार हुई। 

कन्याधन, विधवा पेशन, वृद्धजन पेंशन बंधी लेकिन सब सरकारी अधिकारियों के रिश्तेदारों को मिली ओर अच्छी भली सधवा औरतें विधवा हो गई चालीस साल के आदमी 65 साल के हो गये असली वृद्धाऐं विधवाऐं चक्कर लगाती रह गई। 

विकलांग धन योजना के तहज पट्टी पैर में बाँधकर लोग विकलांग हो गये और सही विकलांग बाहर ही भीख माँग रहे हैं। क्योंकि दूर जा ही नही सकते। भिखारी गाड़ियों में चल रहे हैं। शौचालय के नाम पर अधिकारियों के घर बने गये और शौचालय जगह जगह बने हैं पर उन पर ताले जड़े या पानी नहीं है।