ऐसे थे हमारे बापू
उन दिनों बापू बिहार के चंपारण जिले में थे ,आंदोलन अपने चरम पर था । बापू के पास वाइसराय की खबर आई कि षीध्र मिलें क्योंकि बात बहुत आवष्यकत है इसलिये हवाई जहाज से आजायें बापू ने कहा हवाई जहाज में भारत के करोडों़ गरीब यात्रा नहीं कर सकते तो वे कैसे सफर करेंगे, वे रेल मार्गं से ही आयंेगे ।
गाॅधी जी ने मनु से यात्रा के लिये आवष्यक सामान लेकर रेल के तीसरे दर्ज का इतंजाम करनेके लिये कहा साथ ही मनु बहन से कहा कि सामान कम लेना और तीसरे दर्जे का छोटा डिब्बा लेना।
मनु बहन ने डिब्बा तो छोटा चुना लेकिन वह दो भाग का था । एक में बापू के सोने का इंतजाम था और दूसरे में सामान मनु बहन जानती थी कि जिसे भी पता चलेगा बापू वहाॅ से गुजर रहे है लोगों की भीड़ होगी इसलिये बापू को असुविधा होगी ऊपर से खाना भी तैयार करना होता था।
पटना से रेल प्रातः 8 बजे रवाना हुई मार्च का महिना था । बापू 9 बजे भोजन करते थे मनु बहन दूसरे डिब्बे खाना तैयार करने के बाद उस डिब्बे में आई जहाॅ बापू बैठे थे वे कुछ लिख रहे थे बापू ने मनु बहिन से पूछा ,‘ कहाॅ थीं।’
‘दूसरे डिब्बे में खाना तैयार कर रही थी,’ ‘ जरा खिडकी से बाहर झांको ’ मनु बहन ने झांका तो देखा कई लोग दरवाजे के डंडे को पकड कर लटक रहे हैं । बापू ने मनु बहन को झिड़कते कहा,‘ इस दूसरे कमरे को तुमने कहा था ’मनु बहन बोली,‘ हाॅ मैंने सोचा यहीं खाना वगैरह बनेगा तो आपको दिक्कत होगी।’
‘इसे कहते हैं ’’अन्धा प्रेम’’,’ बापू ने कहा ,‘तुम सैलून भी मांगती मिल जाता पर क्या षोभा देता है दूसरा कमरा भी सैलून के बराबर हो गया।’’
मनु बहन की आँखों से आंसू टपक पडे यह देखकर बापू बोले ’’अगर बात समझ रही हो तो ये आंसू मत टपकाओ, अगले स्टेषन पर स्टेषन मास्टर को बुलाना और सारा सामान यहीं लेआना’’।
मनु बहन ने सामान हटा लिया लेकिन मन नही मन घबरा रही थी कहीं बापू उपवास न कर बैठें उसकी भूल को वो अपनी भूल मान लेते हैं।
स्टेषन आया स्टेषन मास्टर के आने पर बापू ने कहा ’’यह लडकी मेरी पोती है भोली भाली है, इसे नहीं मालुम क्या करना है इसने दो कमरे ले लिये इसमें मेरा दोश है ,कहीं मेरी सीख में ही कोई कमी है पर अब दूसरा कमरा खाली कर दिया है बाहर जो लोग लटक रहे हैं उन्हें बैठाइये।’’
स्टेषन मास्टर ने कहा कि बापू परेषान न हों जो लटक रहे हैं उनके लिये दूसरा डिब्बा लग जायेगा।
बापू ने कहा ’’डिब्बा तो जरूरत है तो जरूर लगवाइये पर हमें भी जितनी जगह जरूरी है उतनी ही चाहिये बाकी आप उपयोग में लाइये।’’
जब बाहर लटकते लोग बैठ गये तब बापू चैन से बैठे।बात 1909 की है बापू अफ्रीका में थे वे गोरों के विरूð लड रहे थे उनका यष चारों और फैल गया था उनका नाम बहुत आदर से लिया जाता था इसी प्रसंग में वे लन्दन गये वहाँ भारत की आजादी के लिये अनेक नवयुवक आगे बढ रहे थे उनमें सावरकर भी थे। सावरकर को ज्ञात हुआ कि गाँधी जी लन्दन में हैं उनहीं दिनों भारत के कुछ प्रमुख नेता भी लंदन में थे। उन नवयुवकों ने एक समा बुलाने का निष्चय किया और उसके लिये गाँधी जी को सभपति बनाया सभा करने के लिये एक खुले स्थान का चयन किया गया जहाँ पहले सभी के लिये भोजन उसके बाद सभा का आयोजन था।
हर प्रंात के युवक वहाँ जुड़ने लगे ,आते और कोई न कोई काम अपने हाथ में ले लेते कोई झाडू लगा रहा था कोई सब्जी साफ कर रहा था कोई काट रहा था उन्हीं में एक दुबला पतला हिन्दुस्तानी बैठकर सब्जियाँ काटने लगा। सभी हिन्दुस्तानी भारत के अलग-अलग राज्यों के थे कोई पहचानता नहीं था पर काम में लगे थे सब।
दोपहर का खाना बनते खाते षाम हो गई वह दुबला पता हिन्दुस्तान थालियाँ साफ करने लगा। आखिर में सभा के उपप्रधान वहाँ आये उनकी नजर उस दुबले पतले हिन्दुस्तानी पर पडी वे चैंक पडे और आंखे फाड़ कर उस हिन्दुस्तानी को देखने लगे तो आसपास के नवयुवकों ने उपप्रधान से पूछा कौन हैं ये, क्यों?’
धीरे से उपप्रधान बोले,‘ गाँधी जी,’ एकदम से वह हाॅल भ्न भननाहट से गूॅज उठा,‘ गाॅधी जी गाॅधी जी’’
‘गाॅधी जी तो हमारे सभपति हैं वे यहाॅ ’सारे युवक दंग रह गये कोई उनके हाथ से थाली लेने लगा कोई जूना पर गांधी जी ने बराबर सबके साथ काम किया फिर सभापति बनकर भाशण दिया।. . .
आश्रमों में बापू का नियम था कि सब अपना काम अपने आप करें या मिलकर करें पर कोई सेवादार नहीं होगा। कोचरब आश्रम में भी सब काम अपने आप ही करते थे। आश्रम के लिये पानी भी कुएॅ से लाया जाता था कुॅआ सडक के दूसरी तरफ था पानी वहीं से भरकर लाया जाता था।
एक रात बापू को काम करते देर हो गई। सुबह नियमित समय पर उठकर आटा पीसने लगे पानी भरने का समय हुआ तब उस समय गाॅधी थकान महसूस कर रहे थे। साथ ही उनके सिर में दर्द भी होने लगाा।
आश्रम के लोगोें ने बापू से कहा कि अब बहुत काम कर लिया वे आराम करें पानी वे भर लेगें। लेकिन बापू कुॅए पर पहुॅच गये और घड़ा मांगने लगे । एक भाई आश्रम से छोटे-छोटे बरतन उठा लाया और छोटे बालकों को बुला लाया छोटे-छोटे बरतन बालकों को पकडा देते वे दौडकर आश्रम में बडे़ बरतन में डाल आते बापू की बारी वे भाई आने ही नही दे रहे थे बच्चे भी यह समझ गये थे कि बापू से इस समय वे काम नहीं कराना चाह रहे हैं तो पहले खड़े हो जाते और बापू की बारी से पहले ही बरतन हाथ में ले लेते।
पर बापू भी कहाॅ मानने वाले थे वे आश्रम में कोई बरतन देखने लगे उन्हें कोई बरतन नहीं दिखा बच्चों को नहलाने का टब रखा था वे ही उठा लाये और उसे लेकर खडे हो गये भर दो इसे।’’
’’पानी खींचने वाले भाई अचकचा गये इसे कैसे उठायेगें उठा लूॅगा भर दो इसे’’।
वह व्यक्ति समझ गया बापू नहीं मानेगें। चुपचाप उन्हें घड़ा पकडा दिया।
बापू नोआखली में गली-गली घूम रहे थे। नोआखली की गलियाॅ बहुत संकरी थी साथ ही साथ गंदी भी बहुत थी जगह-जगह नाक थूक मल पड़ा रहता था। बापू नंगे पैर चलते थे उन्हें देख देखकर बहुत दुःख हो रहा था। एक जगह चलते चलते एकदम रुके आस पास से पत्ते उठाये और बीच राह में पडे मल को उठाकर फेंक दिया।
मनु बहन पीछे-पीछे चल रही थी वह अचकचा कर बोली बापू क्यों षर्मिन्दा करते हैं मैं उठा देती खुद ही क्यों साफ किया।’’ ‘क्यों मैंने कर दिया तो ,बापू नेकहा’’ कहने की बजाय खुद करने में कुछ तकलीफ है’’? मनु बहन ने कहा ,‘अब इतने गाॅव वाले देख रहे हैं।’’
बापू बोले ,‘यह तो और भी अच्छा है इन लोगों को सबक मिलेगा ,देखना कल मुझे ये काम नहीं करने पडेगें।’’
‘हो सकता है केवल कल गाॅव वाले रास्ता साफ कर दें फिर न करें तब।’’
‘तब फिर तुम्हें देखने भेज दूंगा और अगर रास्ता गंदा मिला तो साफ कर जाऊँगा।’
दूसरे दिन बापू ने वास्तव में मनु बहन को रास्ता देखने भेजा। रास्ता गंदा ही था मनु बहन खुद ही रास्ता साफ करने लगी गाॅव वालों ने देखा और बहुत षर्मिन्दा हुए और सबने मिलकर रास्ता साफ कर दिया और मनु बहन को बचन दिया कि आगे वे हमेेषा सड़कें साफ रखंेगें।
लौटकर मनु बहन ने गाॅधी जी को पूरा वर्णन बताया तो बापू बोले,‘ अरे तुमने पुण्य ले लिये यह तो मुझे करना था चलो दो काम हुए एक तो अब सफाई रखेगें। दूसरा देखते हैं वचन निभाते हैं कि नहीं।’
सबका हिस्सा
सन् 1916 की बात है। लखनऊ में कांग्रेस का महाअधिवेशन था। गांधी जी उसमें सम्मलित होने आये थे। चम्पारन जिले में बहुत गरीबी हैं एवम् लोगों को बहुत कष्ट हैं जानकर गांधीजी चम्पारन पहुँचे। साथ में कस्तूर बा भी थीं राजकुमार शुल्क ने वहाँ के लोगों की कष्ट गाथा गांधीजी केा सुनाई। कस्तूबा घर घर जाकर वहाँ की औरतों से मिलने लगी।
एक दिन कस्तूबा भितिहरवा गाँव में गयी। वहाँ किसान औरतों के कपड़े बहुत गंदे थे। बा ने औरतों को समझाया कि गंदगी से तरह-तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं इसलिये सफाई आवश्यक है।
इस पर एक गरीब किसान औरत, जिसके कपड़े बहुत गंदे थे, कस्तूरबा को अपनी झोंपड़ी मेें ले गयी और अपनी झांेपड़ी दिखला कर बोली ,‘माँ हम बहुत गरीब है हमारे घर में कुछ नहीं है। बस एक यही धोती है जो मेरी देह पर है,क्या पहनकर इस धोती का धोऊँ। अगर गांधी जी से कहकर मुझे एक धोती दिलवा दे तो में धोती साफ रखूँ।’
गांधीजी यह बात सुनकर सोच में पड़ गये। गरीबी की अति से वह अवाक् रह गये थे। उन्होंने सोचा लोगोे के पास तन ढकने के लिए पूरे कपड़े नहीं हैं और हम धोती, चादर कुर्ता, बनियान इतने कपड़े पहनते हैं। जब सबके पास कपड़े नहीं है तो हमें इतने कपड़े पहनने का क्या अधिकार है।
बस गांधीजी ने उसी दिन से केवल लंगोटी पहनकर तन ढकने की प्रतिज्ञा कर ली।
डाॅ॰ शशि गोयल
3.28ए/2, जवाहरनगर रोड
खंदारी चैराहा, आगरा-282008