ऽ कई व्यक्ति अपने धर्म की अवमानना करने वालों की हत्या कर देते हैं लेकिन हिन्दू अपने देवी देवताओं का स्वयं अपमान करता है अपने विष्वास की हत्या करता है । नव दुर्गापर कन्या लांगुरा का पूजन घर घर किया जाता है उन्हें खाना खिलाकर वस़्त्र या कोई समान दिया जाता है साथ ही पूरी हलुआ चना। छोटे छोटे बच्चे दो पूरी खाकर जिनका पेट भर जाता है वह अतिरिक्त पूरियों का बोझा थैली में भरकर एक घर से दूसरे घर भागते रहते हैं उनके लिये प्रमुख आकर्षण पैसे या मिलने वाली वस्तु है। उसदिन जगह जगह भंडारे होते हैं पेट और घर तो वैसे ही भर जाता है।बच्चे पूड़ी हलुआ सड़क पर फेंक पैसे और सामान रख लेते हैं । खाना सड़क पर घूल मिट्टी में लिथड़ता रहता है ।
इसी प्रकार देवी पर महिलाऐं लोटा ढारती हैं एक महिला देवी का श्रृंगार कर हटने भी नहीं पाती कि दूसरी आकर पानी डाल देती है देवी के आगे रखीं पूरियां पानी में गल जाती हैं किसी के खाने योग्य नहीं रहतीं पुजारी उनकी कोने में ढेरी लगाता जाता है लेकिन महिला अपना कर्म करती है और चल देती है । सुबह पुजारी मंदिर साफ करता है और उस ढेर को कूड़े के ढेर पर डाल देता है जिसे गाय कुत्ते भी मुंह नहीं लगाते। हे न अन्न का अपनमान और देवी के भोग का अपमान । वैसे हम भोग का एक दाना भी जमीन पर नहीं गिरने देना चाहते लेकिन हम में आस्था का स्वरूप बिगड़ा हुआ है कहना न होगा आस्था है ही नहीं ।
No comments:
Post a Comment