ऽ समाज को देखने का अपना अपना नजरिया है गिलास आधा खाली है या आधा भरा। हमने एक महिला से पूछा आपका क्या ख्याल है स्त्रियों की स्थ्तिि पहले से बेहतर हुई है’। वह महिला बोली,‘महिलाऐं और दमित हुई हैं कोई स्थिति बेहतर नहीं है। पहले भी संसद में गिनी चुनी महिलाऐं थीं अब भी गिनी चुनी ही हैं जबकि आबादी तिगुनी से अधिक हो गई है षिक्षा ने पैर पसार लिये हैं।’
ऽ दूसरी महिला से पूछा वह बोली ,‘महिलाऐं हर स्थान पर अपने को स्थापित कर रही हैं।स्पेस में जा रही हैं तो बड़े बड़े पदों पर पहुंच रही हैं पुरुष से एक कदम आगे ही हैं महिलाऐं।’ तो यह अपना अपना नजरिया है ऐसे ही हर लेखक का दृष्टिकोण समाज को देखने का अलग हो सकता है और पाठक का समझने का । तुलसी दास के राम चरित मानस की व्याख्या हर व्याख्याकार अलग अलग ढंग से करता है ।
No comments:
Post a Comment