ऽ डाक्टरी पेषे में व्यावसायिकता आ गई है इसके पीछे क्या सामाजिक विषमताऐं नहीं हैं? आज हम देख रहे हैं कुछ व्यावसायिकश्कोर्स ऐसे हैं जिनमें 22 से 24््््् साल की उम्र में ही बच्चे उच्च वेतनमान पाने लगते हैं । वहां षुरूआत 30 हजार से काॅलेज कैॅपस से निकलते ही हो जाती है और यदि षीर्ष स्थान मिल जाता है तो एक करोड़ प्रति माह तक वेतन मिल जाता है। हर व्यक्ति को प्रतियोगिता से प्रवेष नहीं मिलता है तो डोनेषन 1 से 6 लाख तक है जब कि डाक्टरी पेषे में पहले चार साल की पढ़ाई उसके बाद इन्टर्रनषिप । एम. बी .बी एस मा़त्र बीए की पढ़ाई रह गई है । विषे ज्ञता हासिल करना आवष्यक है उसका डोनेषन 20 से 50 लाख है। इस प्रकार डाक्टरी पढ़ाई करते व्यक्ति 30 से 32 साल का हो जाता है । करोड रुपया षिक्षा प्राप्त करने में लगता है़ उतना रुपया यदि बैंक ब्याज की भी मानें तो अच्छी खासी आय हो जाये। यदि गाॅंव में डयूटी लग जाती है तो इसके लिये आना जाना आदि इतना खर्च हो जाता है कि 20 हजार की आय घर चलाने के लिये काफी नहीं होती ।
ब्हुत योज्ञता वाले डाक्टर की अधिक से अधिक 30 या 40 हजार की मैडीकल काॅलेज में नियुक्ति हो जाती है। ऐसे में अतिरिक्त आय के लिये पेषे में सेंध मारनी ही पड़ती है । नेता की प्रतिज्ञाऐं किसी डाक्टर से कम नहीं होती ,लेकिन नेता बनते ही सब भूल जाते हैं। सूखा प्रदेष में हो उनके घर बाढ़ आ जाती है बाढ़ हो तब तो सैलाब ही आ जाता है । चारों ओर के सामाजिक परिवेष को देखते हुए यदि डाक्टर थोड़ी बेईमानी महज अपने कमीषन के लिये करते हक्े तो क्या इसके पीछे यह भावना नही है कि बिलकुल सटीक इलाज हो जाये जब कि विज्ञान ने प्रगति करली है और बीमारियों ने भी प्रगति कर ली है। साधारण बुखार भी मारक निकलता है तब दो डाक्टर का ही माना जाता है कि ऐसा बेवकूफ डाक्टर है जाॅंच तक नहीं कराई । हर व्यक्ति डाक्टर के पास जाता है वह यह सोच कर जाता है कि उसे बहुत बडी बीमारी है । यदि़ सधारण दवा लिख देता है तो डाक्टर अयोग्य समझा जाता है ।
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