Saturday 17 February 2024

chunav

 चुनाव की तैयारियों के साथ ही सत्तारूढ र्पाअी की कमिया निकालना प्रारम्भ हो जाता है। बिषेश

रूप से ऐसे मुद्दे उठाये जाते हैं जो जनता से जुड़े होते हैं लेकिन उन मुछ्ों को उठाना और वायदा करना एक बात है उनको पूरा करना बिलकुल अलग है ।

सबसे पहले सवाल नौकरियों का उठता है । युवाओं की बेकारी का उठता है और कहा जाता है सरकार नौकरी दे ।हर व्यक्ति सरकारी नौकरी लेना चाहता है कारण पैसा अंत तक मिलता रहता हे ,दूसरी सबसे बड़ा कारण हैकाम नहीं करना पड़ेगा । सरकारी नौकरी का मतलब हरामखोरी होगया है । कितना भी भ्रश्टाचार मुक्त कहलें पर बिना लिये दिये तो मृत्यु सार्टीफिकेट भी नहीं बनता है । अब सरकारी नौकरी ऐसे ही तो मिल नहीं गई पूरा पैसा खर्च किया गया था उसे पाने के लिये तो वसूला तो जायेगा ही ।देष जाये गर्त में इसकी किसे चिंता है फिर दूसरी पार्टी कैसे खड़ी होगी वह कहेगी देष गर्त में जा रहा है विकास नहीं हो रहा है।क्योंकि सरकारी नौकर काम नहीं करना चाहते।


Thursday 14 December 2023

Niyam to niyam hain

 


नियम तो नियम है नियमों का क्या

नियम तो नियम है इनके लिये सोचना क्या ये तो हैं ही टूटने के लिये। बनते हैं टूटते हे बनते हैं टूटते हैं और नियम बनते हंै किस के लिये। उस से सम्बन्धित सभी कर्मचारी, पुलिस, अधिकारी सबकी पीढ़ियाँ तर जाती हैं। जब जेब ढीली पड़ जाती है तब नियम की याद आ जाती है कि चलो नियम ढीले पड़ गये हैं कसा जाय जेब भी टाइट चल रही है।

पाॅलिथिन बंद... हल्ला, होहल्ला गाय मरती है, नाले चोक होते हैं मिट्टी खराब होती है लेकिन मिट्टी खराब हो जाती है छोटे दुकानदारों की, ठेले वालों की एकदम से थैलियाँ जब्त, साथा ही फाइन। लाला चल अब कुछ दिन मौज कर अब अगली बार तुझ पर हाथ नहीं डालेंगे। और ठेले वाला धड़ल्ले से फिर थैलियाँ देता है सबकी जेब भी भर जाती है और पाॅलिथिन अभियान खत्म।

दूसरे विभाग का अभियान चालू होता है । जब जिस चैराहे पर याद आती है और उसमें भी देखते हैं ,कौन मरगिल्ला पिद्दी सा है। सूट बूट वाले या दबंग से शान से बिना हैलमेट चलते हैं और उसकी बगल का टूटा सा स्कूटर  चलने वाला पकड़ में आता है  जेब में पैसे नहीं हैं बेटा  घर जा बेटा पैसे  जा चाहे सिर फोड़ या टांग कटा।

नियम बना 10 बजे तक बैंडबाजा बरात का मोहल्लो के बरातघर बंद शोर से ट्रैफिक से जनता है परेशान हैरान जिसकी लाठी उसकी भैंस जो दबंग है 12 बजे तक शोर मचाये, बाजे बजाये, गोली दागे पटाखे चलाये बम फोड़े।

जनता के कान फूटे, बीमार मरे दिल के मरीज की धड़कन बंद हो तो क फर्क पड़ता है शादी तो एक दिन होनी है मुहल्ले के कान तो रोज फूटते है सुबह 4 बजे ढोल नगाड़े से शुरू हो जाता है। बाबुल की दुआएं अब चाहे बाबुल कितना ही सुखी संसार के लिये दुआ देगा पर मुहल्ले का मुहल्ला बददुआ देगा जैसे तूने हमारी नींद उड़ाई भगवान तुम्हारी नींद उड़ाई जैसे तुमने हमे उठाये रखा है भगवान तुम सबको उठाये। अब शादी में कियन तो है कि जब तक पूरे जोश से बासुरी धुन न गाई बजाई जाय शादी शादी न मानी जाती।


Saturday 9 December 2023

taiyari laghuktha

 


तैयारी

82 वर्षीय दादाजी के चारों ओर परिवार के लोग खड़े थे। दादी जी ने उनके कान के लौ देखे उदासी से बोली, बहू बस अब आखिरी समय आ गया है।

उनकी आँखों से मलमल आँसू गिरने लगे। बहू उन्हें सांत्वना देती उनकी पीठ पर हाथ रख लिया। डाॅक्टर ने भी मुआयना किया बेटा क्या देख रहा है उल्टी सांस चल रही है सुबकते दादी ने कहा। 

अम्मा डाॅक्टर साहब को अपना काम करने दो, बड़े बेटे ने रोका। सबकी आँखे घिरी हुई थी।

डाॅक्टर साहब ने फिर नया बनाया और पकड़ाते कहा, देखिये कहकर चले गये। पर बूढ़ी आँखों ने जमाना देखा था बहु से बोली, अब कुछ घंटो के मेहमान है देखो बहू ओढया बिछइया का और नाग पानी का देख लीजो सर्द है रजाई वगरेह सब निकलवा ले बड़े संदूके में गद्दे रखे हैं।

बड़ी बहू और छोटी बहू दोनों की आँख मिली इंतजाम के लिये उठ गई जरा घर भी ठीक करो छोटी आने जाने वाले आयेंगे पानी वगेरह का इंतजाम भी रखना पड़ेगा। अरे वो मेरे कमरे का गीजर खराब है एकदम नहाने वालो की लाइन लगेगी शामू जा बिजली वाले का बुला ला।

छोटी बहू कमरों की साफ सफाई में लग गई बड़ी बहू ने अपने बेटे की बहू से कहां बेटा अब दादाजी का कुछ ठीक नही है जरा सब तैयारी रखना सब आयेंगे जायेंगे।

पाते की बहू ने आईना देखा गाड़ी उठाई तुरंत तैयारी के लिये ब्यूटीपालेर चली गई फैशियल वगेरह करा लूँ। सोचकर।


news letter

 इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के दौरान जैसे.जैसे मुझे दुनिया के बारे में व्यापक जानकारी मिली और मैं अधिक विश्लेषणात्मक होता गया, मेरी आस्थाएं विकसित होती गईं। मेरे द्वारा धारण की गई मान्यताओं के संबंध में बहुत सारी संज्ञानात्मक असंगतियाँ उत्पन्न होने लगीं। लेकिन जैसे.जैसे मेरी मान्यताएँ विकसित होती गईं, मुझे धर्म में मूल्य फिर भी मिलता रहा। अंतर यह था कि मैंने धर्मों को एक विषय के रूप में नहीं देखना शुरू कर दिया था।

पूर्ण निश्चितता या ष्ईश्वर का वचनष्, लेकिन अर्थ और सत्य की कभी न खत्म होने वाली खोज से भी अधिक। इस तरह से देखने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकांश धर्म की व्याख्या शाब्दिक के बजाय रूपक के रूप में की जाती है। इससे बदले में  सभी धर्मों को एक.दूसरे के साथ विरोधाभासी देखे बिना, उनमें ज्ञान ढूंढना आसान हो जाता है। बल्कि, वे सभी एक साझा मानव अर्थ.निर्माण परियोजना का हिस्सा हैं जो एक प्रजाति के रूप में हमारे पूरे इतिहास में चल रही है। निःसंदेहए यह सब मेरे दिमाग में पूरी तरह से स्थापित होने में समय लगा।

हिंदू जीवन के चार चरणों में विश्वास करते हैं. ब्रह्मचर्य ;अनुशासनद्ध, गृहस्थ ;आनंदद्ध, वानप्रस्थ ;सीखनाद्ध, और संन्यास ;सेवानिवृत्तिद्ध। हालाँकि उस समय मैं इसके बारे में पूरी तरह से सचेत 


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नहीं था, यह तीसरे चरण, वानप्रस्थ की मेरी अपनी व्यक्तिगत खोज थी, जिसने मुझे एडवांस्ड लीडरशिप इनिशिएटिव ;एएलआईद्ध कार्यक्रम में हार्वर्ड में अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।


Thursday 30 November 2023

News letter

 जैसे.जैसे मैं बड़ा होता गया हूं, मुझे उतना ही अधिक आश्चर्य होता है कि वयस्कों के लिए समृद्धि इतनी अधिक जटिल क्यों लगती है, और हम इसे सरल बनाने के लिए क्या कर सकते हैं। पूरे मानव इतिहास में बहुत लंबे समय से, हमारे पास खुशी के लिए कई नुस्खे हैं, लेकिन हममें से सबसे बुद्धिमान लोग भी समृद्धि के ऐसे मॉडल को स्पष्ट करने में विफल रहे हैं जिसे हर कोई समझ सके और उसका पालन कर सके। कवियों, दार्शनिकों और कलाकारों की जटिल भाषा में बहुत सुंदरता हो सकती है, लेकिन जैसा कि सर आइजैक न्यूटन ने एक बार लिखा था, ‘सच्चाई हमेशा सरलता में पाई जाती है, न कि चीजों की बहुलता और भ्रम मेंष्। तो मानव के उत्कर्ष का सूत्र कुछ सरल, कुछ शब्दों में अभिव्यक्त होने वाला क्यों नहीं होना चाहिए ?

महसूस हो रहा है कि कुछ छूट रहा है

मैंने एक भाग्यशाली जीवन जीया था, एक सफल करियर बनाया था, वित्तीय स्थिरता हासिल की थी और मेरा एक विस्तृत परिवार था जो मुझसे प्यार करता था और मुझे वह भावनात्मक सहारा प्रदान करता था जिसकी मुझे ज़रूरत थी। मैंने आईआईटी, भारत के एमआईटी के समकक्ष और फिर स्टैनफोर्ड में सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की, और भारत में तीन प्रतिष्ठित कंपनियों दृ 

हिंदुस्तान यूनिलीवर, रिलायंस इंडस्ट्रीज और ब्लैकस्टोन के साथ काम किया। ब्लैकस्टोन में मेरी आखिरी नौकरी एक सपनों की नौकरी थी और इसमें सभी सुविधाएं शामिल थीं दृ पैसा, प्रसिद्धि, शक्ति और दोस्त। मैंने उनकी तलाश नहीं की, लेकिन वे प्रचुर मात्रा में आए मेरी व्यावसायिक सफलता के कारण जिसका परिणाम नहीं था।☺


Wednesday 29 November 2023

bridges

 1जॉन स्टुअर्ट मिलj] बर्ट्रेंड रसेल और जॉन मेनार्ड कीन्स ने सदियों पहले लोगों को सलाह दी थी] साधनों से ऊपर लक्ष्य को महत्व दें और उपयोगी की तुलना में अच्छे को प्राथमिकता दें"। हम इन बुद्धिमान दार्शनिकों द्वारा दोहराए गए सदियों पुराने ज्ञान पर ध्यान देने में असफल हो जाते हैं क्योंकि हमारी समकालीन संस्कृति में हम साधनों में इतने व्यस्त हो गए हैं कि हम साध्य को भूल गए हैं या अधिक सटीक रूप से कहें तो साधन और साध्य उल्टे हो गए हैं। दूसरे शब्दों में] हमारे साधन ही हमारे साध्य बन गये हैं। साधन-साध्य व्युत्क्रमण (एमईआई) की यह घटना जीवन के सभी क्षेत्रों में] व्यक्तियों] संगठनों] समाजों और देशों के स्तर पर हो रही है] हमें इसकी जानकारी भी नहीं है। जब हम इस तथ्य को भूल जाते हैं कि पैसा] प्रसिद्धि और शक्ति एक साधन हैं] साध्य नहीं और उनके तात्कालिक सुखों और जाल में फंस जाते हैं] तो हम गलती करते हैं और फलने-फूलने से चूक जाते हैं।

अमेरिका राष्ट्रीय स्तर पर साधन-साध्य व्युत्क्रम का एक प्रमुख उदाहरण है। विशेष रूप से अमेरिका का हवाला देना महत्वपूर्ण है क्योंकि] नोबेल पुरस्कार विजेता वैक्लाव हेवेल के शब्दों में]  दुनिया जिस दिशा में जाएगी] उसके लिए संभवतः संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी लेता है"।

Bridges across humanity

 ण् तो वास्तव में फलने.फूलने के लिए हमें क्या चाहिए? विश्वास करें या न करें, उत्तर आपके विचार से कहीं अधिक निकट हो सकता है . और जब हम बच्चों का निरीक्षण करते हैं, तो उनके फलने.फूलने की आधारशिला आश्चर्यजनक रूप से सरल होती है।

मैं हमेशा छोटे बच्चों को खेलते हुए देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ। वे इस पल में पूरी तरह व्यस्त हैं, वे पूरी तरह डूबे हुए हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि कौन देख रहा होगा। वे अपनी भावना या स्नेह दिखाने में कभी नहीं हिचकिचाते, इसे निर्बाध रूप से बहने देते हैं, चाहे खुशी से गले लगाकर या जोर से हंसकर। जिज्ञासा के ये बंडल छोटे स्पंज की तरह काम करते हैंए जो कुछ भी उनके सामने प्रस्तुत किया जाता है, या जो कुछ भी वे खोजते और खोजते हैं उसे सोख लेते हैं। एक फूल की तरह जिसे पूरी तरह से खिलने के लिए हवा, पानी और सूरज के सही संतुलन की आवश्यकता होती है, बच्चे केवल प्यार करना, सीखना और खेलना चाहते हैं . और जब वे इन तीन आवश्यक गतिविधियों में संलग्न होते हैं तो वे फलने.फूलने की स्थिति में होते हैं। और क्या होगा अगर हम भी प्यार, सीखो और खेलो या एलएलपी को प्राथमिकता दें ? शायद हम भी खिल उठेंगे