झूठ के पाँव नही होते
हर व्यक्ति अपने चारो और एक घेरे का निर्माण करता है कि वह कैसा होना चाहिये या कैसा है? यदि वह उसके अनुरूप नही होता है तो झूठ का सहारा लेता है। जिससे वह समाज में अपने अनुरूप स्थान ले सके। आजकल मोबाइल ने सबसे अधिक झूठ बोलना सिखाया है। वह घर में बैठा होगा और कहेगा मैं दूसरे शहर में हूँ। लैंड लाइन फोन से तो यह निश्चित हो जाता था कि वह घर पर ही है। बात नही करनी है मैं गाड़ी चला रहा हूँ बाद में बात करूँगा और वह बाद फिर नही आता।
स्वंय की कमियों को छिपाना चाहता है श्रेष्ठ और श्रेष्ठ होना चाहता है अपनी कमियाँ होती हैं तो उसे झूठ के सहारे पूरी करता है। आमतौर पर यह सबसे अधिक डा॰ की डिग्री के लिये प्रयुक्त हो रहा है। किसी प्रसिद्ध डाक्टर के यहाँ नौकरी करके उसके यहाँ कम्पाउडरगिरी करने के बाद कुछ नाम सीख कर वह डाक्टर का बोर्ड लगा कर बस्तियों में दुकान खोल लेता है। ऐसे झोला छाप डाक्टर जनता के जीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं।
एक पी एच डी डिग्री प्राप्त डाक्टर होते हैं। अगर सहयोगी डाक्टर है तो वह क्यों नही है एकाएक वह डाक्टर लगाने लगता है। अब कोई डाक्टर की डिग्री देखने तो नही आ रहा है। एक लेख लिख कर उसे अपनी थीसिस बताकर डिग्री लगाने वाले उतने ही है जितने सड़क पर नीली बत्ती और हूटर लगाकर घूमने वाले आस पास अपने चारो ओर एक झूठ का वलय बनाकर आइ ए एस, पी सी एस अधिकारी के समकक्ष दिखाना।
परिवार में यदि एक व्यक्ति उच्च अधिकारी है उस घर का हर सदस्य अपने को अधिकारी ही बतायेगा और उसी ठसके से चलेगा। एम्बुलेन्स में सवारी बैठाकर टौल टैक्स बचाता सब बाधायें पार करना कितना आसान है बस एम्बुलेंस शब्द ही तो लिखा है और अधिक क्या झूठ बोला है। एक शब्द बस एक शब्द झूठ।
झूठ शादी विवाह में भी खूब चलता है चपरासी की नौकरी करने वाला अपने को उस कंपनी का मैनेजर बताकर लड़की फॉसता है। यह किस्सा सच है यद्यपि यह फिल्म कथाओं का विषय भी बन चुका है कि घर के नौकर ने अपने को मालिक बताकर एक अमीर लड़की फंसाई और एक नही अनेक केस ऐसे हुए है। शिक्षा नौकरी आदि सब में छोटा सा झूठ जिन्दगियो को बर्बाद कर देता है।
कभी कभी झूठ भय के कारण भी बोला जाता है इसका आरम्भ स्कूल कॉलेज के समय से ही हो जाता है। पढ़ाई नही की तो अध्यापिका से माँ की बीमारी का बहाना बना दिया कि घर का सब काम करना पड़ा और जब इस प्रकार के झूठ पकड़ जाते हैं तब एक के बाद एक झूठ का निर्माण कर अपने को बचाने का प्रयास किया जाता है।
झूठ सामाजिक व्यवस्थाओं की बजह से भी बोला जाता है अपने को समृद्ध परिवार का बताने के लिये महिलायें किटी पार्टी आदि में दिखावा करती हैं। पटरी से खरीदे वस्त्र को वे शहर की नामी दुकान का बताती हैं नकली आभूषण असली बताकर दिखावा करती हैं। कभी कभी इसके लिये उन्हें घर फूंक तमाशा भी करना पड़ता है। आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया। वह घर में क्लेश का कारण बनती है।
बच्चों के नम्बर में बारे में बहुत झूठ बोला जाता है। हर महिला का बच्चा क्लास का टॉपर होता है। अपने ऊपर हम झूठ के आवरण चढ़ा चढ़ाकर जिन्दगी को कठिन और कठिनतर बना लेते हैं। अगर सत्य न बता सके तो चुप रहें।
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