Saturday, 22 October 2022

मैं माती का नन्हा दीपक

 


मैं माटी का नन्हा दीपक



मैं माटी का नन्हा दीपक

चैराहे पर जला रात भर

चंदा तारे उडगन चमके

मैं ठंडी में गला रात भर,

तेज हवाऐं घूम घूमतीं 

मेरा आस्तित्व मिटाने को ,

लेकिन जब तक नेह भरा है,

बुझा नहीं वह पायेगी

जल जाऊं या बुझ जाऊं

अंतर नहीं अर्थ में है

अंत है केवल रोषन कर जग

गल गल कर है मिट जाना

जल जाऊं या मिट जाऊं

माटी में मैं मिल जाउंगा

फिर माटी से नया दीप बन

दीप से दीप जलाउंगा।


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