उड़ती पतंग की डोर टूट जाती है
है से थी में बदल जाती है
आसमान में उड़ती है पतंग अनेकों
पर छत पर चरखी पड़ी रह जती है
चलते चलते चित्र बनाते बनाते
पत्थर में बदल जाती है
फूल पर अश्क बनकर ठहरी बूॅंद
मौत की फिसल पट्टी से सरक जाती है
No comments:
Post a Comment