ऽ एक किले की आत्मा
जर्जर अकेला खड़ा है
विषाल वृक्षों की बाहों में
झाड़ झंखाडों की उंगली थामे
प््रातीक्षा में
स्ूानी पगडंडियों को देखते हुए
षायद कोई पदचाप कोई आहट हो
फिर गीत संगीत की धुन सुनाई दे
ढोल ताषों की आवाज
हो रेषमी कपड़ों की सरसराहट
ईष्वर का आव्हान करते
सुखों को दुखों को बयान करते
सूनी दीवारों को आंखें फाड़ देखते
पत्तों की हल्की जुंबिष
थरथरा देती है मन को
पीछे से आती है आहट
तलवारों की झनकार
छमछम नर्तकियां
वाह वाह की आहट
खनकते प्याले
जागते रहो के स्वर
सरकती भारी जंजीरें
कन्याओं की चीखें
और पत्थर हुआ आदमी
समा गये हैं मुझ में
न जाने कितने रक्त
लहूलुहान नींव में
चारो ओर सन्नाटा
चीखना चाहते हैं
सब कुछ पत्थर है
बस धड़क रहा है सीना
जो कहता है यहां कभी
महान षासक जन्मा था
वह था वह था ।
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