ऽ जिस राज्य से निकले मजदूर क्या उस राज्य केश्षासनाधिकारियों की या वहां के निवासियों की कोई जिम्मेदारी नहीं थी अच्छे अच्छे हमारे बुरे बुरे तुम्हारे इस नीति की विचारधारा पर नेता चल रहे हैं संवेदनाऐं मृत हैं मानवता है ही नहीं केवल दोषारोपण ही मानवता बन गई है बस टके भर की जीभ हिला दो करना धरना कुछ नहीं । जनता ने प्रषासन को गरियाया खूब लेकिन किस हद तक नीचता जनता ने दिखाई जब दवाओं और सिलैंडर के भाव एकदम बढ़ा दिये एक तरफ इंसान मर रहा था दूसरी तरफ पैसे की मार पड़ रही थी क्या यह सरकार की कमी थी । जहां एक की आवष्यकता थी 100 की जरूरत पड़ी तो क्या सिलैंडर हवा में पैदा हो जाते या आॅक्सीजन प्लांट अलादीन के चिराग की तरह तुरंत हाजिर हो जाते । और आॅक्सीजन प्लांट लग भी जाते तो आवष्यकता समाप्ति के बाद लगाने वाला क्या करता वैसे हर चीजबातों से तैयार नहीं होती क्ष्मता बढ़ाई जा सकती है तुरंत पर नये सिरे से इंडस्ट्री नहीं लग सकती रोम एक दिन में नहीं बन गया था। पर आज भी गरियाना सुनकर विरक्ति होती है इंसान कितना गिर सकता है । भगवान् माने जाने वाले चिकित्सकों ने भी पाप की गंगा में हाथ धोये।
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