Wednesday, 28 December 2022

भोजन भट्ट महान

 


 भोजन भट्ट महान् 


मथुरा तीन लोक से न्यारी और उसके प्रसि( चैबे अपने आप में निराले  भोजन भट्ट महान हैं। भांग पीकर दो ढाई किलो रबड़ी चट कर जाना बायें हाथ का खेल है उनके ऊपर अनेकों चुटकुले बनते हैं। बहुत प्रसि( चुटकुला है  वैसे हम चुटकुला ही मानते हैं पर सुनाने वाले सत्य घटना ही बताते हैं  ।

एक दूसरे प्रदेश का व्यक्ति मथुरा तीर्थ करने गया उत्सुकता से उनके भोजन के विषय में भी सुनी हुई बातों को आजमाना चाहा और एक चैबे से शर्त लगा बैठे कि ढाई किलो रबड़ी एक बार में खाकर दिखाये। वह चैबे नया लड़का सा बोला ,‘अभी आया ’थोड़ी देर बाद आकर,‘ बोला ठीक है मुुझे शर्त मंजूर है।’ दोनों हलवाई की दुकान पर पहुँचे। ढाई किलो रबड़ी तुलवाई गई और उस चैबे ने चकाचक रबड़ी खाकर पेटपर हाथ फेरा और शर्त के रुपये जेब के हवाले किये। तो उस व्यक्ति ने पूछा, ‘भई तुम शर्त मंजूर करने से पहले तुम कहाँ गये थे कोई पाचक वगरैह खाने गये थे क्या।’

चैबे शरमाता बोाल, नही अभी तक कभी इतनी रबड़ी एक साथ खाई नही थीं सो खाकर देखने गया था कि खा सकता हूँ या नहीं।

एक बहुत दुबला पतला मरियल सा साधु सा दिखने वाला व्यक्ति जो केवल कमर पर एक मैली सी धोती बांधे था बालों की जटा बनी हुई थी हमारे दरवाजे पर आ खड़ा हुआ,‘ भूखा हूँ कुछ खाने को मिल जायेगा क्या?’

मेरे पिताजी को साधु-सन्यासियों को खिलाने में सदा आनन्द आता रहा था। मेरी बहन की शादी होकर चुकी थी। बारात सुबह बिदा हुई थी। रात का बहुत भोजन बचा था साथ ही उत्तर भारतीय दावत का समस्त सामान कचैड़ी, लड्डू आदि सभी पर्याप्त मात्रा में थे। पिताजी ने तुरंत उन साधु की पत्तल लगवाई और हाथ जोड़ कर बोले,‘ महराज जी प्रेम से पाओ।’ ‘बच्चा! वह साधु मुस्कराया और बोला, खिलाने मंे घबड़ायेगा तो नहीं?’ ‘अरे महाराज क्या बता करते हैं... ’पिताजी ने उपेक्षा से कहा, मन में सोचा डेढ़ पसली का आदमी और ऐसे कह रहा है न जाने कितना खायेगा।और हम सामान लाते लाते थक गये पिताजी उनकी पत्तल में सामान रखते जा रहे थे वह व्यक्ति 91 तर पूरी, चवालीस कचैड़ी, पचपन लड्डू खाने के साथ दो किलो के करीब रायता दो किलो करीब सभी सब्जियाँ चट कर गया और पिता से बोला अभी और श्र(ा है क्या? 

‘जैसा हुकुम करे बाबा’ पिताजी विस्मय से उस पतले दुबले व्यक्ति को देखते बोले।

‘बच्चा रबड़ी और खिलादें तो ईश्वर भला करेगा।’

और कोई व्यक्ति होता तो पिताजी पावभर रबड़ी मंगाते पर उस साधु की तरफ शंका से देखते बोले,‘ महराज जरा बता देते कितनी मंगाऊँ।’ ‘वैसे तो जिजमान तेरी श्र(ा है! पर पूछ रहा है तो दो सेर मंगा दे।’ दो सेर रबड़ी खाकर जब वह 

साधु उठा तो उसका पेट जो पहले अंदर धंसा था बस जरा-सा ऊपर था। वह सब सामान कहाँ गया आश्चर्य से कम से कम पन्द्रह मिनट स्तब्ध खड़े रह गये।




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