Thursday, 30 December 2021

ye din ye mahine

 ये दिन ये महिने


कैलेंडर शब्द यूनान का है इसका अर्थ है मैं चीखता हूँ या में आवाज लगागा हूँ यूनान में पहले आवाज लगाकर कि कौन सा दिन और तारीख दे, किस दिन बाजार की बंदी है तथा किस तारीख को किराया वसूला जायेगा दिनों तारीखों और छुट्टियों का हिसाब रखने वाला यही शब्द बाद में कलैंडर में तब्दील हो गया।




भारतीय वर्ष छः )तुओं में बांटा गया है। बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर हेमन्त। भारतीय वर्ष का प्रारम्भ बसंत )तु से होता हैं जब सर्दी और पतझड़ के बाद वृक्षों पर नव पल्लवों का अंनुकरण प्रारम्भ होता है। इन )तुओं कको बारह मास में विमक्त किया गया है। मास का प्रारम्भ पूर्ण चन्द्र या पूर्णिमा के दिन से होता है। पन्द्रह दिन शुक्ल पक्ष और पन्द्रह दिन कृष्ण पक्ष के इस प्रकार  पूरा माह। इन माह के नाम हैं चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, क्चार, कार्तिक, पौष, माघ, फाल्गुन।

भारतीय विद्वानों ने हफ्तों के नाम ग्रहों पर आधारित किये क्योंकि ज्योतिष विद्या के अनुसार ग्रहों की स्थिति का हमारे जीवन पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है। पूरे वर्ष हम ग्रहों के प्रभाव में ही रहते है। अंग्रेजी महिनों के अनुसार यह मार्च से प्रारम्भ होता है। आधुनिक केलैंडर पश्चिमी कलैंडर पर आधारित है जो पूर्णतः रोमन केलैंडर हैं। रोमनवासियों ने दिन एवम् महिनों के नाम सूर्य चन्द्र एवम् यु( के देवी देवताओं के नाम पर रखे हैं या प्रसि( व्यक्तियों के नाम पर लेकिन ये नाम ही क्यों प्रयोग किये गये इनके पीछे भी कहानियाँ हैं।

रविवार ;ैनद.कंलद्धरू प्राचीन काल में आकाश में घूते आग के गोले को देख सभी हैरान थें। उसके विषय में कोइगर्् भी कुछ कहने में असमर्थ था। दक्षिणी यूरोप के निवासियों ने सोचा अवश्य कोई देवता है जो आग के गोले को आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक खींचता है। अपनी भाषा में उन्होंने इस शक्तिशाली देवता को नाम दिया सोल ;ैवसद्ध यह भाषा लैटिन थी। प्रथम दिन का नाम दिया सूर्य का दिन ;कपमे ैवसपेद्ध बाद में उत्तरी यूरोप के निवासियों ने भी सूर्य को आदर से नाम दिया लेकिन यह भाषा दूसरी थी यह अंगे्रजी थीं और नाम दिया सनानडेग ;ैनदंदकवमहद्ध जो वर्षों बाद बना सन-डे।

भारतीय विद्वानों के अनुसार भी सूर्य सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह हैं उनके अनुसार भी सूर्य को ही सर्वाधिक आदर दिया और प्रथम दिन का नाम रखा गया रविवार।

सोमवार ;डवद.कंलद्धरू दक्षिण यूरोप के निवासियों ने रात्रि में चांदी की तरह चमकती गेंद को भी पूरा सम्मान दिया लैटिन में उसका नाम था लूना ;स्नदंद्ध और दिन को नाम दिया चंद्र का दिन ;स्नदं कपमेद्ध उत्तरी यूरोप के व्यक्तियों ने चंद्रमा को सम्मान दिया और नाम रखा चंद्र का दिन ;डवदंद कंमलद्ध आधुनिक अंग्रेजी में जो हुआ डवदकंल 

भारतीय ने भी चंद्रमाको द्वितीय स्थान दिया नामकरण हुआ सोमवार।

मंगलवार ;ज्नमेकंलद्धरू रोमवासियों को विश्वास था कि एक यु( का देवता ट्यू ;ज्पूद्ध होता है एवम् वह उन्हीं यो(ाओं की सहायता करता है जो उसकी पूजा करते हैं किसी यो(ा की मृत्यु पर यु( का देवता युवा स्त्री सहयिकाओं के साथ  पर्वतीय निवास स्थान से उतरकर आता है और मृत यो(ा को अपने साथ ले जाता है जहाँ यो( की आत्मा शांत और सुंदर स्थान पर वास करती है।

इन्हीं यु( देवता को सम्मान दिया और सप्ताह के तीसरे दिन को नाम दिया टिउसडेग ;ज्नमेकंलद्ध अंग्रेजी में नाम हुआ टयूजडे ज्नमेकंल।

हिन्दुओं ने बाकी सब दिनों के नाम भी सूर्य के पास रहने वाले अन्य शक्तिशाली ग्रहों के नाम पर ही रखें। जैसे मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, शनि।

बुधवार वैडनैसडे ;ॅमकदमेकंलद्ध: उत्तरी यूरोप के निवासी मानते है कि सब देवताओं में शक्तिशाली है बोदन देवता। ये देवता ज्ञान की तलाश में स्थान स्थान पर घूमते हैं यहाँ तक कि ज्ञान अर्जन के लिये इन्हें अपनी एक आँख भी देनी पड़ी। दो काली चिड़ियाएँ इनके दोनों कंधों पर सवार रहती हैं। चिड़ियाएँ रात को नीचे पृथ्वी पर आती है और जाकर वोदन को सारी पृथ्वी पर घटनाऐ सविस्तार बताती हैं इस प्रकार वोदन की पृथ्वी पर घटी घटनाओं का ज्ञान रहता है। ऐसे देवता को एक दिन का नाम रख कर सम्मान दिया वैडनैसडे और अंगेजीह में हुआ वैडनैसडे ॅमकदमेकंल।

वृहस्पतिवार ;ज्ीनेकंलद्ध थर्सडे: पहले लोगों की समझ में नहीं आता था कि ये बादल और बिजली है क्या? एक पतली रेखा चमकती और भंयकर गड़गड़ाहट होती उन्होंने समझा यह किसी देवता की कोई क्रिया है उन्होंने उस देवता को नाम दिया थोर ;ज्ीवतद्ध। उनके अनुसार जब थोर देवता क्रोधित होते हैं एक विशाल हथौड़ा आकाश में फेकते है वह है बिजली और हथौड़ा फेकते समय वे बकरियों से जुते रथ पर दौड़ते हैं पहियों की आवाज ही गड़गड़ाहट है।

भयग्रस्त निवासियों ने देवता को प्रसन्न करने के लिये एक दिन उसे समर्पित किया नाम दिया थर्सडेग और अंग्रेजी में थर्सडे ;ज्ीनतेकंलद्ध।

शुक्रवार ;थ्तपकंलद्ध यूरोप के निवासियों के अनुसार एक सुन्दर सहृदय देवी हैं फ्रिग ओर ये पृथ्वी पर मृत यो(ाओं की देखभाल करती है। मृत व्यक्ति को अन्य देवतागण देवी फ्रिंग के पास ले जाते है जो उन्हें जीवन प्रदान करती है। जीवनदायनी देवी को एक दिन समर्पित किया फ्रिगडेग। अंग्रेजी ने उसे अपनी भाषा में परिवर्तित फ्राइडे थ्तपकंल।

शनिवार ;ैंजनतकंलद्ध: रोमवासी खेती बाड़ी का देवता सैटर्न मानते थे। उनके मतानुसार अच्छा या खराब मौसम सैटर्न की इच्छा पर निर्भर करता है उसकी के हाथ में वर्षा है। रोम का किसान खेती प्रारम्भ करने से पहले सैटर्न की पूजा करता है और किसी जानवर की बलि चढ़ाता है। उसी सैटर्न के नाम पर रोमवासियों ने एक ग्रह का नाम रखा सैटर्नीडैग और अंग्रेजी मेें नाम हुआ ;ैंजनतकंलद्ध।

जनवरी: प्रारम्भ में रोमन कलैंडर में दस ही महिने होते थे। एक रोमन सम्राट ने दो महिने और जोड़ने चाहे लेकिन उसके लिये दो नामों की आवश्यकता थी। उस समय रोमवासी एक दो मुँह वाले देवता जेनम में विश्वास करते थे जिनका एक मुँह भविष्य की ओर रहता था और एक अतीत की ओर। सम्राट ने सोचा एक माह का नाम जेनस के नाम पर रखना बहुत अच्छा रहेगा जिससे साल समाप्त होने पर व्यक्ति सोच सके कि बीते साल हमने क्या किया और आगामी वर्ष में क्या करना है इसलिये उन्होंने इस माह को कहना आरम्भ किया जेनरस ;श्रंदनंतपनेद्ध आज अंगेजी में इसे जनवरी ;श्रंदनंतलद्ध कहते है।

फरवरी ;थ्मइतनंतलद्धः अब सम्राट ने अन्य दूसरे महिने के लिये नाम ढूँढ़ना प्रारम्भ किया। सफाई करने को लैटिन में फैब्रम ;थ्मइतनतउद्ध कहते हैं सम्राट ने सोचा बहुत सी बातों के लिये हम पछताते हैं एक हमने ऐसा क्यों किया आगामी वर्ष में हम गलतियाँ न दोहराये और आगामी वर्ष साफ स्वच्छ रखें इसके लिये उसने साल के अंतिम माह को नाम दिया फ्रेवेरस ;थ्मइतनंतपनेद्ध अंग्रेजी में इसे फरवरी ;थ्मइतनंतलद्ध कहा जाता है।

पहले साल का प्रारम्भ मार्च से होता था लेकिन जूलियस सीजन के बाद में इन्हें वर्ष के प्रारम्भ में रख दिया था।

मार्च ;डंतबीद्ध: रोमन व्यक्ति एक अन्य यु( देवता मार्स ;उंतेद्ध में विश्वास रखते थे उन देवता केप्रति अपनी श्र(ा और आदर की अभिव्यक्ति प्रकट की और इस माह को नाम दिया। मार्टस ;डंतजपनेद्ध अंगे्रजी में मार्च कहा जाने लगा। 

अप्रैल ;।चतपसद्ध चतुर्थ माह में पौधे अंगड़ाई लेकर उठ बैठते हैं और चारों ओर फूल खिल उठते हैं। रोमनों ने प्रकृति के इस जागने को व्यक्त किया एक लैटिन शब्द एपीरियों ;व्चमतपवद्ध में जिसका अर्थ हैं जग जाना। उस माह को पुकारा गया एप्रिलिस और अंगे्रजी में एप्रिल ;।चतपसद्ध।

मई ;डंलद्ध मे या मई रोमनों के अनुसार बसंत की देवी माया नवीन पौधों की सुरक्षा करती हैं और उन्हें उगने में सहायता करती हैं जो मानव को जीवन प्रदान करते हैं। एक महिने को उन देवी को समर्पित किया और नाम दिया मायस ;उंपनेद्ध जो अंग्रेजी में पुकारा जाने लगा मई ;डंलद्ध।

जून ;श्रनदमद्ध: रोमनों के अनुसार जूनो सभी देवियों की देवी है। जूनस ;श्रनदपनेद्ध माहसकी मृत्यु के पश्चात उस माह को जूलियस कहा जाने लगा और अंग्रेजी तक आते आते बना जुलाई ;श्रनसलद्ध।

अगस्त ;।नहनेजद्ध: जूलियस सीजर की मृत्यु के कुछ वर्ष बाद सीजर के भतीजे अगस्टस ने रोमन साम्राज्य संभाला। अगस्टस की इच्छा थी कि वह भी सीजर के समान महान सम्राट कहलाये सो उसने इस माह का नाम बदल का अगस्टस रख दिया जो अगस्त कहलाने लगा। पहले जुलाई में अगस्त से एक दिन ज्यादा होता था उसने फरवरी में से एक दिन लेकर अपने नाम के माह में जोड़ दिया। इस प्रकार जुलाई और अगस्त दोनों में 31 दिन हो गये इस प्रकार अगस्टस अपने को सीजर के समकक्ष समझने लगा।

सैप्टम्ब्र, अक्टूबर, नवम्बर एवम् दिसम्बरः प्रारम्भिक रोमन कलैंडर में पहले केवल दस माह होते थे और उनके नाम नम्बरों पर आधारित थें सात के लिये लैटिन शब्द है सैप्टम, आठ के लिए ओक्टो, एवम् नौ के लिए नोवम् और लैटिन शब्द दिसम दस के लिये प्रयुक्त किया जाता था। इस प्रकार पुराने कलैंडर के सातवें, आठवें, नौवे, दसवें माह पुकारे जाने लगे। सैप्टम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, एवम् दिसम्बर। बाद में इसमें जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़ गये। लेकिन अब जनवरी फरवरी साल के प्रारम्भिक माह हैं और आधुनिक कलैंडर के अनुसार सितम्बर अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर माह के सातवें, आठवें, नवें एवम् दसवे माह नहीं है लेकिन फिर नामों का प्रयोग उसी ढंग से किया जाता है। का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया।

जुलाई ;श्रनसलद्ध: यूलियस सीजर रोम का महान् सम्राट था। जुलाई माह उसके जन्म का माह था।

सकी मृत्यु के पश्चात उस माह को जूलियस कहा जाने लगा और अंग्रेजी तक आते आते बना जुलाई ;श्रनसलद्ध।

अगस्त ;।नहनेजद्ध: जूलियस सीजर की मृत्यु के कुछ वर्ष बाद सीजर के भतीजे अगस्टस ने रोमन साम्राज्य संभाला। अगस्टस की इच्छा थी कि वह भी सीजर के समान महान सम्राट कहलाये सो उसने इस माह का नाम बदल का अगस्टस रख दिया जो अगस्त कहलाने लगा। पहले जुलाई में अगस्त से एक दिन ज्यादा होता था उसने फरवरी में से एक दिन लेकर अपने नाम के माह में जोड़ दिया। इस प्रकार जुलाई और अगस्त दोनों में 31 दिन हो गये इस प्रकार अगस्टस अपने को सीजर के समकक्ष समझने लगा।

सैप्टम्ब्र, अक्टूबर, नवम्बर एवम् दिसम्बरः प्रारम्भिक रोमन कलैंडर में पहले केवल दस माह होते थे और उनके नाम नम्बरों पर आधारित थें सात के लिये लैटिन शब्द है सैप्टम, आठ के लिए ओक्टो, एवम् नौ के लिए नोवम् और लैटिन शब्द दिसम दस के लिये प्रयुक्त किया जाता था। इस प्रकार पुराने कलैंडर के सातवें, आठवें, नौवे, दसवें माह पुकारे जाने लगे। सैप्टम्बर, अक्टूबर, नवम्बर, एवम् दिसम्बर। बाद में इसमें जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़ गये। लेकिन अब जनवरी फरवरी साल के प्रारम्भिक माह हैं और आधुनिक कलैंडर के अनुसार सितम्बर अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर माह के सातवें, आठवें, नवें एवम् दसवे माह नहीं है लेकिन फिर नामों का प्रयोग उसी ढंग से किया जाता है।


Monday, 27 December 2021

jeebh aur dant

 

जीभ और दाँत

एक बार जीभ और दाँत में लड़ाई हो गई दाँत बोले तू छोटी सी जीभ है कितनी कोमल है तेरी हम रक्षा इसलिये करते हैं कि तू हमारे द्वारा काटे सामान को पेट में घुमाती है हमारी वजह से तुझे तरह-तरह के स्‍वाद मिलते है।”

‘जीभ हसते हुए बोली तुम मेरी क्‍या रक्षा करोगे मैं अपनी रक्षा अपने आप करती हूँ। मैं तो तरह-तरह के स्‍वाद तुम्‍हें चखाता हूँ तुम तो बस कटावने हो काटते हैं।

‘छोड़ बित्‍ते भर की बातें इतनी बड़ी-बड़ी करती हैं जबकि दम जरा सा भी नहीं है जरा से में तोड़-मरोड़ कर फेंक दी जायेगी।’

मेरी वजह से बोल-बोल कर नेता कुर्सी पर बैठ जाते हैं तुम्‍हारा क्‍या योगदान है कुछ नहीं मैं नहीं होउँ तो भषण नहीं होगा और जनता कैसे फंसेगी।’

देख ले खुद ही कह रही है कि फंसाती है लोगों को बहुत मक्‍कार और फरेबी है तब भी हम तुझे बचाते हैं। तेरी वजह से तो इतना बड़ा महाभारत का युद्ध हुआ पर तब भी अपनी शान बढ़ायेगी। तेरी वजह से राम जी का बनवास हुआ भंवरा की जीभ ही तो चली थी तब भी अपनी जीभ हलेगी। तभी वहाँ से एक पहलवान गुजरा जीभ चिल्‍लाई ओये पहलवान।

पहलवान ने पलट कर देखा किसकी इतनी हिम्‍मत हुई एक पिद्दी से लड़के को खड़ा देख उसे गुस्‍सा आया और उसने जोर से एक मुक्‍का लड़के के मुँह पर जड़ दिया होता। वह चीत्‍कार कर उठे जीभ बाहर खीच लूँगा। अभी पहलवान का दूसरा मुक्‍का पड़ता कि जीभ बोली ‘अरे वाह! पहलवान जी क्‍या दम है मुक्‍के में क्‍या मारा है आपको नमन है प्रभु आप तो दुनिया के श्रेष्‍ठ पहलवान हैं।”

पहलवान मुस्‍कराया और लड़के के गाल थपथपा दिये। जीभ हंसी बोली “कहा अपनी रक्षा मैंने अपने आप करी या नहीं।”

दाँत सिमट कर रह गये।

Thursday, 23 December 2021

nari sashaktikaran

 

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Tuesday, 21 December 2021

उक्ति

 

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Monday, 13 December 2021

 होमई व्यारावाला

व्यावसायिक


गुलाम देश के दमघोटू वातावरण में जहाँ महिलाओं को खबरों में मुश्किल से स्थान मिलता था एक महिला ऐसी थी जो स्वयं खबर देती थी वह भी चित्रों के साथ भारत की प्रथम छाया, चित्रकार होमई हर खबर के चित्र लेने दौड़ पड़ती। उसके चित्र इतने जीवंत होते थे कि लाइफ-टाइम आदि पत्रिकाऐं उन चित्रों को हाथांे हाथ लेती थीं। उस समय के अधिकांश अग्रणी प्रकाशनों में उनके चित्र छपते थे।

होमई व्यारावाला को पहली महिला फोटोग्राफर होने का गौरव प्राप्त है। 1940 से 1970 के बीच के दौर में होमई ने देश की राजधानी और 40 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उससे जुड़े प्रमुख लोगों की जिदंगी के नायाब और अनछुए और अबूझे पहलुओं को कैद किया था वैसे तो होमई ब्रिटिश इंफार्मेशन सर्विस के लिये काम करती थी पर उन्हें फ्रीलांसर के रूप में भी काम करने की स्वतंत्रता मिली हुई थी। होमई भारतीय इतिहास के उन पलांे की साक्षी रही है जिनसे भारत का वर्तमान तैयार हुआ है। लार्ड मांउटवेटेन से लेकर मार्शल टीटो, ब्रिटेन की महारानी से लेकर जैकलिन कैनडी, नासिर, चाउ एन लाई आदि महत्वपूर्ण ेचेहरों को कैद किया है ।। 

13 दिसम्बर 1913 में जन्मी होमई का जन्म स्टेज कलाकार दोसाभाई हथीराम के यहाॅ गुजरात के नवासरी जिले में मफुसिल कस्बे में हुआ।  उनके पिता उर्दू पारसी थियेटर के कलाकार थे। यद्यपि पिता आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे लेकिन होमई की रुचि देखकर पिता ने उन्हें मुबंई आगे शिक्षा प्राप्त करने भेज दिया होमई को उसकी माँ ने मुंबई के एक कान्वेन्ट स्कूल में पढ़ाया। माँ अस्थमा की मरीज थी। होमई को घर का काम करके शिक्षा प्राप्त करने जाना होता था यहाँ तक कि कुँए से पानी तक भर कर लाना होता था। होमई 13 साल की थी जब वह मानेक्शा व्यारावाला से मिली। मानेक्शा दूर के रिश्तेदार तो थे ही उम्र में बड़े भी थे। होमई को अंकगणित पढ़ाने आते थे फोटोग्राफी का शौक उनके राॅलीफ्लैक्स कैमरे को देख कर ही लगा। 1938 से ही उन्होने फोटोग्राफी प्रारम्भ कर दी ।1941 में होमई ने  अपने साथी फोटोग्राफर मानेक्शा के साथ विवाह कर लिया।

1942 में होमई और मानेक्शा दोनों दिल्ली आ गये यहाँ प्रैस फोटोग्राफर के रूप में नियुक्ति मिल गई। प्रारम्भ की उसकी तस्वीरें बोम्बे क्रिमनल में छपी लेकिन मानेक्शा के नाम से ,क्योंकि उस समय किसी महिला फोटोग्राफर की कल्पना भी नही की जा सकती थी। बी॰ए॰ के बाद होमई ने जे जे स्कूल आॅफ आर्टस मुंबई में दाखिला ले लिया। तभी इलस्ट्रैड वीकली में होमई का फोटोग्राफ मुखपृष्ठ पर छपा 1942 में दम्पत्ति दिल्ली आ गये। होमई उस समय साड़ी पहनती थी क्योंकि साड़ी महिला के लिये उपयुक्त मानी जाती थी लेकिन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान और नेहरू जी का एक चित्र वह नीचे बैठकर एंगल बना रही थी कि उन्हें साड़ी के फटने की आवाज सुनाई दी उस दिन के बाद उन्होंनें सलवार कमीज पहनना प्रारम्भ कर दिया। होमई का उपनाम या छद्म नाम डालडा 13 था। उनकी प्रथम कार का नम्बर डीएलडी13 था । उनका जन्म 13 तारीख को हुआ उनकी शादी भी 13 साल की उम्र में हुई।

व्यारावालों की फोटोग्राफी की अनुपम कृतियाँ है नेहरू जी द्वारा 4 मार्च 1951 को प्रथम एशियन खेलों में शांति प्रतीक कबूतर उड़ाना, प्रथम झंडारोहण लाल किले पर, माउंटबेटन द्वारा भारत के प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ग्रहण,  राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अंतिम दिन फाइल पढ़ते हुए, फ्रेंकीलन रूसवेल्ट, आइजनहावर मार्टिन लूथरकिंग, जैकलीन कैनेडी शाहईरान, दलाई लामा का भारत प्रवेश। महात्मा गांधी की मौतनेहरू और शास्.ी जी केदाह संस्कार की तस्वीरें खींचीं

लेकिन आजादी के बाद न उन्हें राजनीति में रुचि रही और न ही फोटोग्राफी में । 26 मई 1969 को एकाएक मानेक्शा का स्वर्गवास हो गया। होमई ने उसके बाद फोटोग्राफी छोड़ दी। पुत्र फारूक ने उन्हें पिलानी बुला लिया वहाँ वे रिटायर्ड लाइफ व्यतीत करने लगंीं। 1975 में फारुक का विवाह हुआ। उसके विवाह के पश्चात होमई कलकत्ते स्थित एक आश्रम में रहने लगी लेकिन फारुक के बीमार होने के बाद वे वापस पिलानी आ गइ्र्र लेकिन 1988 को फारुक की कैंसर से मृत्यु हो गई। होमई बुरी तरह से टूट गई आखिर में बड़ोदरा में बस गई और एक गुमनाम जीवन जीने लगी भारतकी पहली महिला पत्रकार अकेली रहने लगीं वह भी टेलीफोन तक के बिना। उन्होंने अपना चित्र संग्रह दिल्ली स्थित अल काजी फाउन्डेशन आफ आर्ट को दान कर दिया । 1910 में उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया, 2011 में पद्यविभूषण से सम्मानित किया गया ।

97 साल की उम्र में 15 जनवरी 1912 को उन्होंने अंतिम सांस ली।गूगल ने उनके जन्म की 104 वीं जयन्ती पर डूडल के साथ सम्मानित किया ।




Monday, 6 December 2021

करोना काल

 आज भी बार बार सवाल उठता है करोना में चिकित्सा नहीं हुई,करोना में मजदूरों को खाना नहीं दिया गया भूखे मर रहे लोग,मंहगाई बढ़ रही है आदि आदि। करोना में जिस अप्रत्याशित रूप से बीमारी आई और एक दम आई सब लोग सरकार पर उंगली उठा रहे हैं। इतिहास को एक बार उठा कर देखें तो जब जब महामारी आइ्र है लाखों लोग काल कलवित इुए हैं टीका करण सालों साल बाद हुआ है। बस एक बात जानना चाहती हूं लोगों का कहना था डाक्टर नहीं है आक्सीजन नहीं है नर्सिंग स्टाफ नहीं है। हर वर्ष संख्या डाक्टरी पढ़ने वालों की बढ़ रही है नर्सिंग स्टाफ की भी बढ़ रही है उसी दर से जनता भी बढ़ रही है जितने डाक्टर निकलते हैं वो नियुक्त हो जाते हैं एकाएक महामारी आने से सबने शोर मचाया कि डाक्टर नहीं हैं तो क्या डाक्टरी पढ़ाई इतनी आसान है कि दो दिन में पढ़कर तैयार हो जायेंगे और नियुक्त हो जायेंगे जितने डक्टर देश में थे उन्होंने दिन रात अपनी सेवाऐं दीं क्या वे देश के लिये आवश्यक नहीं थे जो उनके लिये जिसे देखो कह रहा था डाक्टर नहीं हें उनहोंने दिन रात एक कर अपनी सेवाऐं दीं  क्या वे अनाथ थे उनके परिवार नहीं थे । एकाएक चिकित्सक पैदा हो जाते अमर बूटी खाकर और अनजान दुश्मन से बिना हथियार लड़ते उनको गरियाते रहे कितने ही डक्टर काल कलवित हुए शहीद का दर्जा उन्हें दिया जाना चाहिये न कि जर्बदस्ती बैठे लोगों को शहीद मानें जिन्होंने आम जनता का जितना नुकसान किया है शायद नेता उन्हें माफ करदे पर जनता कभी माफ नहीं करेगी क्योंकि उनकी वजह से जनता को बहुत कष्ट उठाना पड़ा ।डाक्टरों को प्रोत्साहन देने के लिये अगर उनके सम्मान में मोदी जी ने थाली घंटे बजवाये तो मजाक उड़ाने पर उन्हें शर्म नहीं आई । हद है नकारात्मक सोच की ।क्या उन डाक्टरों की जान जान नहीं थी जिन्होंने दिनरात सेवा की वे मना भी कर सकते थे कि हम मरने  के लिये नहीं हैं और हजारों डाक्टर पीड़ित भी हुए पर नहीं बिना सेचे समझे मजाक उड़ाना व्यक्तित्व की हीनता साबित करती है ।

Saturday, 4 December 2021

लघु कथा चलो कुछ हो जाये

 

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Friday, 3 December 2021

भारत गरीब नहीं है

 ऽ धार्मिक स्थलों पर खाने पीने रहने की सुविधा है पंचतारा श्रेणी तक के निवास स्थल हैं ं अब जनता के पास खूब पैसा है दिल खोलकर खर्च करता है इसलिये हर उत्सव का स्वरूप भव्य होता जा रहा है।कहा जायेगा अरे बहुत मंहगाई है पर त्यौहार पहले भी उमंग से मनाये जाते थे लेकिन इतने खर्चीले ढंग से नहीं । दीपावली पर नये कपड़े बनते थे उसका एक क्रेज था वह इसलिये कि त्यौहारों पर ही नये कपड़े बनते थे अब जब कहीं जाना है पहले नये कपड़े बनेंगे  कोई भी त्यौहार है नये कपड़े बनेंगे चाहे तीज हो राखी हो होली हो दीपावली हो वैसे कोई भी पसंद कपड़ा आया कोई कारण नहो तब भी खरीद लिया जाता है।सम्पन्न परिवारों में भी रोशनी की जाती थी लेकिन दीपक से पर अब पांच दिन तक पूरा घर रोशनी से नहाये रहता है कुछ तो देव दीपावली तक  रोशनी लगाये रखते हैं हजारों रुपये  के पटाखे धुऐं में उड़ा दिये जाते हैं। पहले लक्ष्मी गणेश की मिट्टी की मूर्ति लाई जाती सम्पन्न धरों में चांदी सोने की। मिट्टी की मूर्ति गमले में अधिकतर घरों में तुलसी का पौधा तो होता ही है उसमें रख दिया जाता था। वह गल जाती थी रंग कच्ची खड़िया के होते थे। लेकिन अब प्लास्टर आॅफपेरिस की बड़ी बड़ी मूर्तियां लाई जाती हैं जो न गलती हैं न टूटती हैं रंग रसायन युक्त होते हैं जो मिट्टी को जहरीला और बंजर बना देता है ।

Tuesday, 30 November 2021

sahitya bhooshan

 28 नबम्बर को  परम विद्वान डा ह्नदय नाथ दीक्षित जी द्वारा यशपाल सभागार लखनऊ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।सम्मान डा अमिता दुबे,ह्नदयनाथ दीक्षित जी  पंकजकुमार सदानंद गुप्ता जी शीतांशु जी द्वारा प्रदत्त किया गया।

बहुत ही अच्छा लगा इतने विद्वानों द्वारा सम्मानित होना लेकिन कहीं कसक रह गई, योगी जी  का न आना कुछ खुशी कम हो गई। कितना अच्छा  था मन जब तक यह था कि सम्मान योगी जी और दीक्षित जी द्वारा मिलेगा। अब कहां मिलेगा ऐसा अवसर ।

Friday, 26 November 2021

मनुष्य कृतघ्न क्यों

 

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Thursday, 25 November 2021

hindu dharm

 

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Tuesday, 23 November 2021

गाँव की ओर

 

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Friday, 19 November 2021

बेवकूफ ki san

 

 

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Wednesday, 17 November 2021

muktak

 जिसके कंधे पर पिता का हाथ है 

उसको सारी दुनिया का साथ है

जिनको मिलती हैं माॅं बाप की दुआऐं

हिम्मत नहीं सागर  उनकी नाव डुबाये ।


Tuesday, 16 November 2021

नौकर

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 अभी तक पकोड़े तलना काम नहीं माना जाता था यह काम नहीं है काम केवल सरकारी नौकरी है अब कुछ लोग बड़े बड़े  विज्ञापन दे रहे हैं कि बे टा नौकरी देने वाले बनो  कहीं कोई पूछ न ले कि बड़े नौकरी के वादे किये थे  क्या हुआ  वैसे  बचपन से आजतक इतनी उम्र का पड़ाव पार कर लिया पर  ये आशीर्वाद देते तो सुना कलक्टर बनो तरक्की करो पर आजतक यह कहते नहीं सुना अच्छी सी नौकरी करना आज भी हमारे समाज मैं नौकरी कैसी भी हो नौकर नौकर ही रहेगा पर विज्ञापन विज्ञापन है जनता को बहलालो जैसे भी होA

Sunday, 14 November 2021

किस्सा सच है कहानी

 किस्सा सच है



किस्सागोई का भी अपना आनन्द है ,जब चैपाल पर बैठे बुजुर्ग अपने हाथ पैर और चेहरे से अभिनय के साथ-साथ घटनाक्रम जोड़ते चलते है्र। बड़ा ही आनन्द आता है। अधिकतर हर गांव का कोई न कोई व्यक्ति ऐसा होता है जो कथा, गांव में घटी घटना या आसपास के इलाकों में धटी घटना को नमक मिर्च मिलाकर कभी-कभी खट्टी इमली की चटनी मिलाकर परोसते है। 

आजकल शहर से गांवों में कुछ रात बिताने का भी फैशन बढ़ता जा रहा है। आदर्श गांव बनाओ फिर उस गांव मे जाओ रहो बसो वह भी एक दो दिन बस,असली गांव में जाने की हिम्मत शहर से कम ही लोग करते है। हम मजबूर थे। हमारी नानी का घर आदर्श गांव नहीं था ज्यादा से ज्यादा पचास कच्चे पक्के मकान उन्हीं में गाॅंव प्रधान का मकान जमींदार का बाड़ा और कुछ मकान सरकारी क्वार्टर बगेरह था। उन्हीं में हमारी नानी की हवेली भी थी। नानी के घर छुटपन में तो आम जामुन तोड़ तोड़ कर खाने के लालच मेें जाते थे लेकिन पढ़ने लिखने में जुटने के बाद तो बहुत साल बाद ही जाना हुआ। वह भी माँ की जिद से एक बार हवेली देख आयें कैसी है। मामा पढ़ने शहर गये तो सीधे आस्ट्रेलिया पहुँच गये। बंद हवेली का विशाल फाटक मुतहा हवेली की तरह किर्र किर्र कर बोल उठा । माँ को अन्दर हवेली के निरीक्षण के लिये छोड़ मैं गांव की सैर को निकल पड़ा ‘राम राम काका’ चैपाल पर बैठे कुछ बुजुर्गो को देखकर मै रूक गया ।

‘खुस रहे लला कौन केे बिटवा हओ नथनिया के कि अमरिया के ’ भौचक्का सा इन  नामों को विश्लेषण कर रहा था कि एक और कम बुजुर्ग बोल उठे ,‘नाया दद्दू नथनिया का धेवता है अमरियो के बचुवा तो अंग्रेज है गये है वो काये आवेंगे अब गाम में नथनिया  की बिटिया आई है । हवेली देखन कू।’ पटवारी साहब की बिटिया आई है । माँ के आने की खबर सारे गांव में फैल गई थी। मैं देख रहा था कोई मट्ठा लेकर कोई पानी लेकर हवेली की ओर जा रही थी अर्थात् खाने पीने की समस्या का हल हो गया था। 

नथनिया अर्थात् नानी का नाम नत्थादेवी और अमरिया यानि मामा अमर नाथ गांव वालों के लिये विदेश सचिवालय मे उच्च पद पदस्थ अधिकारी आज भी घुटन्ना पहने गायों को हांकने वाला अमरिया था । गांव के स्कूल के शिक्षक भी वहीं बैठे थे । ‘अरे अमरिया तो बहुत बड़ा आदमी है गयाूे है वो का आयेगो अब। तभी सामने के मकान के चबूतरे पर एक भव्य व्यक्तित्व बाहर निकला लम्बे चैड़े गोरे लाल भभूका ,एक सा लेकिन बलिष्ठ बदन एकदम सफेद कुर्ता और धोती किसी भी साबुन के सफेदी के विज्ञापन के लिये उपयुक्त था। उसने मूढ़ा खिसकाया और अखबार लेकर खोल लिया। मेरी उत्सुक निगाहों को देख बुजुर्ग बोले,‘ अरे हमारे जमादार सहब है।’ जमादार साहब मै चैक उठा वर्तमान में जमादार का जो भी अर्थ हो ऐसा भव्य व्यक्तित्व और जमादार। शिक्षक मेरी उलझन भंाप गया।  अरे लला पहले जमेदार या जमादार गांव का बहुत इज्जतदार आदमी होता था। अब जमादार का अर्थ बदल गया है पर अब सब बाबू साहब कहने लगे है या आज भी  गांव की सभी समस्याओं का हल इन्हीं के पास है। इनके ससुर दस गांव के जमींदार थे। अकेली बेटी थी। ब्याह के बाद इनके दिन बदल गये। बड़ी किस्मत वाले हैं हमारे जमींदार साहब। 

"शेष  कल 

Wednesday, 10 November 2021

Asmaan

 

जब कभी छोटे-छोेटे दोनों पोते-पोती ऊबकर अपने कम्प्यूटर केा बंद कर मोबाइल को एक तरफ फैक कर मेरे गले में बाहें डाल कर मेरे इधर-उधर लेट जाते हैं और कहते हैं दादी कोई कहानी सुनाओ ,जैसे अनेकों चाँद तारे मेरे सामने बैठ गये हों । पहुँच जाती हूँ अपनी दादी की दुनिया में, जब शाम झुकने लगती और जी लेती चाची, ताई, बुआ  और अपनी दादी की दुनिया। घर की महिलायें  रसोई के काम केा समाप्त कर मुँह हाथ धोने ,दिनभर के कामों की वजह से गंदलाए कपड़ों को बदलने अपने अपने कमरों में चली जाती । हम सब भाई-बहनें खाना खा चुकते दादाजी, बाबूजी, ताऊजी बड़े चाचा व्यापार आदि से वापस आयें तो घर की बहुएँ साफ सुथरी दिखें । थालियों में खाना खिलाते में सब वही बैठती थी और दादी केा घेर कर हम सब मुँह हथेली पर रख बैठ जाते,‘ दादी ! दादी कहानी सुनाओ।’ एक कहता दादी भूत वाली  तो एक दो सिकुड़ कर दादी से सट जाते कोई कहता परियों वाली और झट से सबके चेहरे पर जैसे चाँदनी नृत्य करने लगती।  ढिबरी की रोशनी ऊपर आले में जलती अपने घर को तो काला करती रहती पर हमारे चेहरों को रोशन करती रहती थी। अगर तिलस्मी कहानी होती या राक्षस की कहानी तो बस दादी की आवाज गूंजती और सब सिकुड़ते एक दूसरे से चिपके दादी के चेहरे को देखते रहते। वातावरण रहस्यमय और भी हो जाता यदि हवा से लौ काँप उठती कभी देर से लोटती चिड़िया चिचिया उठती तो सबके हाथ पैर सिकुड़ जाते पर नहीं दादी यही सुनाओ।

अपने पोते पोती को कहानी सुनाते चलती जाती हूँ उस रहस्यमय वातावरण में लेकिन उस जैसा वातावरण लाख कोशिश करने पर भी नहीं बना पाती। चंद लाइन बोल पाती हूँ कहानी का किरदार न अभी जंगल पहुँच पाया न पहाड़ी पर वह सो जाते पर मेरी दादी के किरदार न जाने कितने राक्षस कितने सिर वाले सर्पों को मारता जाता किर्रकिर्र करता दरवाजा खुलता। चीखते गि( निकलता। छोटे से छोटा बच्चा भी नहीं सोता था कथा खत्म होने लगती छोटे-छोटे बच्चे एक एक कर वही लुढ़कने लगते तो माँए दूध लेकर आ जाती । दूध के गिलास सबको देकर छोटे बच्चों को ले जाती और बड़े वहीं दादी के बड़े से तख्त पर लेटने लगते कोई भी ताई, चाची, माँ आती सबको चादर आदि ओढ़ा जाती और बच्चे सपनीली दुनिया में परियोँ के साथ नाचते तलवार लेकर राक्षसों का संहार करते जाते कहानी सुनाते-सुनाते में उस दादी को जीने लगती हूँ। 

चिप्स, कुरकुरे, पीज्जा, वर्गर के लिय माँ से जिद करते हैं तो मैं माँ से यादों में चिपक जाती हूँ दाल पीसती खाना बनाती माँ की पीठ पर लटकना फिर चुपचाप खटाई चीनी हथेली पर रख किसी कोने में छिप कर चाटना। वैसे दूसरी मंजिल का जीना इस सब कामों के लिये सुरक्षित था। कतारे, इमली, खट्टी-मीठी गोलियाँ यह छिपकर खाना हमारा मुख्य खाना होता। छुट्टियों में तो पेटों में जैसे भूत बैठ जाते जो भी घर में होता नहीं बचता डिब्बे के डिब्बे साफ होते। सारा दिन 

धमा-चैकड़ी, बड़ा सा आंगन धूप हो या बारिश गरमी हो या सर्दी हम बच्चों के शोर से गुलजार रहता। जितनी महिलाएँ थी सब सब बच्चों की माँ थी कोई भी डांट जाता चिल्ला जाता खाने को पकड़ा जाता किसी भी का पल्ला खींच जो चाहते मांग लेते, याद आती है वो कई कई माँए और देखती हॅंू आज की माॅं बच्चे के मन पसंद खाने को भी लिये  उनके पीछे दौड़ती रहती हैं ।



















अन्दर से कमजोर हैं हम

 ऽ हम अपनी हस्ती तुरंत मिटा देते हैं । हमारे ऊपर सामने वाला हावी हो जाता है और हम उसकी भाषा में बात करने लगते हैं यहाॅं तक कि हमें अपने भगवान् पर भी विश्वास नहीं रहता कि हमारे सोचने से किसी को आशीर्वाद भी देंगे। हम तुरंत सामने वाले के भगवान् से ही अपनी बात करने को कहते हैं अर्थात् हमें अपने भगवान् पर भी भरोसा नहीं है। सामने वाले का भगवान् उसका है उसके लिये तुरंत उसके भगवान् को बुलाने लगेंगे । भूल कर भी अपने भगवान् से नहीं कहेंगे कि आप कुछ कृपा हमारे मित्र पर भी कर दो। नहीं पता नहीं नहीं की तो उनकी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी बताओ तो? इसलिये ईसाई से कहेंगे,यीशू आपका भला करें मुसलमान से कहेंगे अल्लाताला आपकी खैर करे सिख से कहेंगे वाहे गुरू की कृपा हो। पंजाबी से कहेंगे माता रानी की जय हो। भूलकर भी अपने किसी भगवान् का नाम नहीं लेंगे। कहीं भगवान् को सामने वाले का धर्म छू न ले । अंदर की बात है डरते हैं कि सामने वाला बुरा न मान ले ।

Sunday, 7 November 2021

कोक्रोच

 

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Wednesday, 27 October 2021

ye pardanasheen ankhen

 ऽ ये पर्दानशी आंखें

डालकर पर्दा न जाने क्या छिपाती हैं

चीरकर पर्दा किसी पर कहर ढाती हैं

इन पर्दानशी आंखों में कैसा जादू है

डाल दी नजरें तो सासें थम सी जाती हैं।

ईश्वर ने आकाश का पर्दा बनाया और उसके पीछे से सब पर नजर रखी अब आंख भीगी है, टेढ़ी है प्रसन्न है हम तो नहीं देख सकते वह हमें देख सकता है। इंसान ने भगवान को पीछे छोड़ दिया इतने बड़े आसमान की क्या जरूरत। दो छोटे वाले पहिये आंखों के सामने रख लिये उनके पीछे से दुनिया पर नजर है बहाना धूप का है पर रात में भी नेता-अभिनेता काला चश्मा लगाये पार्टी में देखे जा सकते है। काले चश्में के पीछे क्या है? कहते हंै नजरें सब कह देती हैं तो जब उस पर पर्दा ही पड़ गया तो कहते रहो कुछ अब वह जो देखेगा वही दिखेगा। 

काला चश्मा और सफेद कपड़े अब नेता की पहचान बन गये हैं जितना बड़ा नेता उतने सफेद कपड़े और उतना गहरा काला चश्मा किसी से नजरें नहीं मिले और उनकी नजर सबके हावभाव देखती रहे।

एक आम प्रचलन अब मृत्यु के समय चश्मा पहनने का हो गया है। उठावनी हो उठाला श्रद्धांजलि समारोह हो या दाह संस्कार। परिवार प्रमुख चश्मा लगाये दिखेंगे। भैया रोते आदमी को तो बार बार चश्मा पोंछना पड़ेगा और उतारना पड़ेगा दुःख होगा तो आंखे भरेंगी, भरंेगी तो टपकेंगी पर चश्मे के पीछे दुनिया समझेगी की रो रोकर लाल हुई आंखे होंगी इसलिये चश्मा लगाया है कि दुनिया दुःखी नजरें न देखे। नेता कभी रोता अच्छा लगता है नहीं न पर कभी जनता के साथ रो ले तो वो भी अच्छा लगता है। दाह संस्कार और मृत्यु विमान उठने के समय चश्मा न पहना तो सेलीबे्रटी क्या? अलग लगना चाहिये आंख में आंसू न आये तो जमाना तो न देखे कि आंख हंस रही है रो नहीं रही है चश्मा चढ़ाओ दुनिया को एक रंग में देखो काले रंग में।


Tuesday, 26 October 2021

जरा बता कर मरते

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Friday, 22 October 2021

sansani

 

 

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Wednesday, 20 October 2021

कवियों से खेद सहित

 कवियों से क्षमा सहित खेद रहित

नाच हो या गाना , खाना हो या पीना हो सर्र से कवियों पर चिट्ठी पहुंच जायेगी फलां दिन कवि सम्मेलन है आप सादर आमंत्रित हैं,और कुछ नखरे से कुछ अखरे से कुछ बकरे से मंच पर हाजिर होते हैं और बैठे होते हैं जनता के यथार्थवादी भुक्तभोगी लोग, जिनकी जेबों में भी कुछ टीपी कुछ लीपी कविताऐं होती हैं कि अवसर मिले तो थोड़ा सा बदला कवियों से वो भी लेलें कि तुमको इतनी देर मैंने झेला अब तुम भी झेलो।

यहां कवि सम्मेलन में उठती आवाजें एक भी मेरी नहीं है हां जो जो शब्द कानों में पड़े वो ही हैं इसलिये सभी आदरणीय कवियों से क्षमा चाहते हुए जनता जनार्दन की आवाज सुना रही हंू

कल तक तो यहीं था

मेरा घर कहां गया (रमेश गौड़)

अवैध निर्माण होगा काॅरपोरेशन वाले उठा ले गये होंगे

कितना जिया कितना मरा

यह सवाल खुद से पूछा ( रमानाथ अवस्थी)

डाक्टर की फीस देदेते वही बता देता न देते तो पूरा मर जाते

एक ने वाह भरी पीछे से आवाज आई क्यों बजा रहा है साले दोबारा सुना देगा जल्दी निपटने दे।,तो दूसरा बोला जब खुद से ही पूछ रहा है तो हमें क्यों सुना रिया है , नींद में बोलने की बीमारी है क्या?

स्वतंत्रता मंगलमय हो 

           गोपाल प्रसाद व्यास

अमंगल तुम्हारे लिये होगा नेताओं का तो मंगल ही मंगल है जनता तो फ्राई है

सुमति सुरक्षा

कोई और कठिन शब्द नहीं मिला डिक्शनरी में

डाकिये ने द्वार खटख्टाया

अनबांचा पत्र लौट आया (माया गोविंद)

आगे से पूरा टिकिट लगाना नहीं लौटेगा 

भवानी मिश्र जी ने शुरू किया ,मै गीत बेचता हूं, जी हां हजूर मैं गीत बेचता हूं

‘ नीचे उतर कर आओ एक ही गीत कब से  बेच रहे हो हिसाब दो बिक्री कर दिया या नहीं

प्रार्थना मत कर मत कर मतकर( हरिवंश राय बच्चन)

तुम क्यों करोगे प्रार्थना मजे आ रहे हैं प्रार्थना तो हम कर रहे हैं जो सुने जा रहे हैं।

‘ मेरी मां ने पिल्ला पाला’ अभी कवि ने शरू ही किया था पीछे से आवाज आई

और मंच पर छोड़ दिया

अभी इतना ही कवि सम्मेलन तो होते रहते हैं आवाजें आती रहती हैं ये तो एक यादगार कवि सम्मेलन था ।





Monday, 18 October 2021

chirraiya

 

 

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Sunday, 17 October 2021

thook laga kar roti banana

 

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Friday, 15 October 2021

josh mahilaon main

 अब एकल परिवार होने के कारण महिलाओं पर समय ही समय रहता है । साथ ही न रोक न टोक न संकोच असलिये समाज सेवा का एक नया जोश महिलाओं में उत्पन्न हो गया है किटी पार्टियों से तो बहुत अच्छा है कि समाज में अपना समय दे रही हैं महिलाओं के साथ साथ समाज में कोई कहीं भी भ्रष्टाचार दमन दलन आदि की नीति अपनाई जाती है तो महिलाऐं विरोध में उठ खड़ी होती हैं लेकिन चूड़ियां देकर विरोध प्रकट करने का मतलब है आप महिलाआंे को कमजोर मान रही हैं क्योंकि उसने चूड़ी पहन रखी है चूड़ी पहनना अर्थात आप पुरुष के समकक्ष न होकर महिलाओं के समकक्ष हैं जो पराधीन है निर्भर हैं अक्षम हैं कुछ कर नहीं सकती हैं उन महिलाओं में से हैं जो चुड़ी पहन कर घर में बैठी हैं अर्थात जो महिलाऐं गृहस्थी चला रही हैं वे भी अक्षम कमजोर वर्ग है । फिर महिलायें किस प्रकार से अपने को सक्षम साबित कर सकती हैं वे अधिकारी पर चूड़ी फेंक सकती हैं  िक वह टूट जाये 80 प्रतिशत महिलाओं के हाथ में चूड़ी या कड़े रहते हैं और इस श्रंगार को वो उतारना भी नहीं चाहती  पैन्ट शर्ट पहनने वाली महिला के साथ में कड़ा होगा पर होगा यह जरूरी नहीं है  िकवह सुहाग चिन्ह के रूप में पहने इसका मतलब है वे स्वयं स्वीकारोक्ति कर रही हैं कि वे चूड़ी पहनती हैं  वे कमजोर हैं वे असमर्थ हैं चूड़ी भेंट देकर चूड़ी का अपमान करना है यह स्वयं का अपमान है अपने धारण करने की वस्तु का अपमान कर स्वयं को गिराना है। अधिकारी पर चूड़ी फेंक कर मारती हैं  िकवे टूट जाती हैं यदि अधिकारी कहदे आप सक्षम हैं आप चूड़ी पहनना बंद करो लाओ आपकी चूड़ी मैं तोड़ देता हूं आप पुरुष समकक्ष हो जायेंगी । तब महिलाओं का रौद्र रूप देखने वाला होगा एक उबाल के लिये अच्छा फंडा ।

Saturday, 9 October 2021

naukri

 बार बार बेरोजगाारी का सवाल उठता है जब हमारी जनसंख्या 35 करोड़ थी तब भी पचास करोड़ हुई तब भी और आज 135 करोड़ है तब भी। वह समस्या यूंही बनी हुई है। इसका कारण क्या है?इसके आंकड़े देखे जाये ंतो भ्रामक हैं। मनस्थिति भ्रामक है। नौकरी ही देश का भविष्य है वह भी सरकारी नौकरी।मोदी जी द्वारा कहा गया कि पकौड़ा बेचना भी काम है उसके लिये मजाक बनाया जाता है परन्तु मेरे घर के सामने समोसे वाला है उसके तीन मकान हैं जिसमें रहता है पांच मंजिला मकान है गाड़ी है उसका बेटा पढ़कर प्राइवेट कंपनी में बैंगलोर में है। समोसे वाले का खर्च अपने बेटे से तीन चैथाई होगा जबकि वह सारे नाते रिश्ते अर्थात बहन बेटी  ताई चाची आदि से व्यवहार निभा रहा है। बेटे का अपना खर्च पूरा नहीं होता । बेहद मेहनत करता है स्तर पांच सितारीय है। एक बेटा सरकारी नौकरी में है वह केवल जिंदगी जी रहा है मेहनत नहीं करनी पड़ती ग्यारह बजे सोकर उठता है चाहे जब घर चला आता हैसरकारी पैन रजिस्टर आदि  उसके घर की शोभा बढ़ाते हैं सरकारी गाड़ी आती ह ैले जाती है छोड़ जाती है बीच में उसकी पत्नी को बाजार करा लाती है । उसके दो बहनें हैं जो पढ रही हैं हां  दोनों बहनों ने और उन दोनों की पत्नियां जो प्राइवेट छोटे स्कूल में टीचर हेैं ने नोकरी की अर्जी लगा रखी है इसप्रकार उस घर से चार अर्जियां बेकारों की हैं ।

Thursday, 30 September 2021

नारी शक्ति

 सूरज के क्रोड़ में बैठी नन्हीं सी किरण ने घोर अंधेरे में झांका यह पहाड़ी सदा अंधेरे में क्यों है मैं इसे क्यों नहीं रोशन कर सकती वह कूद पड़ी और अंधेरे से घिरी पहाड़ी मुस्करा उठी।

समय समय पर महिलाओं में वीरता और साहस का परिचय देकर आसपास की उन बुलंदियों को छुआ है जहाँ कल्पना भी नहीं पहुँच सकती थी अब कोई भी क्षेत्र ऐसा नही है जहाँ नारी की उपस्थिति न हो लेकिन सबसे पहले किसी भी क्षेत्र में कदम रखने के लिये असाधारण साहस कौशल वीरता होना आवश्यक है। सर्वप्रथम किसी भी क्षेत्र में कदम रखने वाली महिलाऐं श्रद्धा का पात्र हैं।

आज महिलाऐं पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति के नये-नये सोपान तय कर रही है आद्य शक्ति निरूपणी नारी शक्ति ‘जागृत’ हो गई है। विश्व शक्ति की अवधारणा नारी शक्ति के बिना अपूर्ण है। प्राचीन भारत में नारी को सम्मान जनक स्थान प्राप्त था और कोई भी कार्य बिना नारी अपूर्ण माना जाता था। लेकिन मुगल काल के दमन ने आम तौर पर भारतीय महिलाओं की स्थिति अवैतनिक गुलामों की सी कर दी थी उनका शौर्य बुद्धि कौशल पैरांे तलों रौंदे जाने लगा और पुरुष शासित समाज में महिलाओं की स्थिति नगण्य, एक कोने की शोभा मात्र हो गई थी, लेकिन उसमें से भी साहस से कोई न कोई चिनगारी बाहर निकल ही आती थी। उस चिनगारी से उत्साहित दूसरी ज्वाला धधक उठती । वह घर की ज्येाति थी तो वेदों के ज्ञान से महिमामंडित देवी पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो जाती थी। गांधारी दमयन्ती इनके उदाहरण है ताराबाई, चाँदबीबी, अहिल्याबाई, एक एक कर अनेकों क्षेत्रों में जरा सा भी अवसर पाने पर महिलाओं ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी अब तो कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है यद्यपि नारी का स्थान बराबरी का ही है माना दोयम दर्जे का जाता है लेकिन जिस काम में भी हाथ डालती है श्रेष्ठता ही सिद्ध करती है, प्रशासन हो खेलकूद हो या आकाश की ऊँचाइयाँ पहाड़ की चोटियाँ या अंटार्कटिक की बर्फीली वादियां। हर क्षेत्र में अपने अस्तित्व को अमरता दी है अब साहसी नारी को हम गिनतियों में नहीं गिन सकते हैं पहले नारियों के गुणगान करने खड़े होते थे तो चंद नाम गिनाकर सोचने लगते थे लेकिन अब कितने नाम गिनाये ये सोचने लगते है

दुःखव्रती निर्वाण उन्मद

ये अमरता नापते पग

---;महादेवी वर्मा


Sunday, 26 September 2021

 एक बेटी का दुःख




मैं कितनी मजबूर हो गई

अपने पन से दूर हो गई

जब तक थी छोटी अबोध मैं

नहीं जानती दुनियादारी

भोला मन था भोली बातें 

सबको लगती थी मैं प्यारी 

जैसे जैसे बड़ी हो गई

मैं अपनों से दूर हो गई

मैं हंसती तो दूनिया हंसती

मुझमें सबकी दुनिया बसती

उंगली पकड़ पिता की चलते

माँ के आंचल में जा छिपते

जितनी जितनी बड़ी हो गई

मैं ई्रश्वर से दूर हो गई

ईंट ईंट पर छाप पड़ी थी

जिस घर में मैं पली बढ़ी थी

जिस घर की प्यारी गुड़िया थी

देवी थी पावन कन्या थी

उस घर से मैं विदा हो गई

माँ इतना क्यों क्रूर हो गई।





Wednesday, 22 September 2021

dar se daro mat

 

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Saturday, 18 September 2021

गुलाबों का स्कूल छूटा है

 छुट्टी के बाद भागते आते बच्चे


स्कूल की छुट्टी


 बहारो क्षण भर को ठहरो

गुलाबों का स्कूल छूटा है

बादलो पल भर बस थम जाओ

आफताबों का स्कूल छूटा है

सागर ने झोली से उलीचे हैं नगीने

मोतियों का स्कूल छूटा है

चले आ रहे हैं कान्हा ही कान्हा

संदीपन गुरू का स्कूल छूटा है

बसन्ती पवन ठहर जा जरा सा

सरसों के फूलों का स्कूल छूटा है

चंदा की कक्षा से पढ़कर 

तारों का स्कूल छूटा है

उमड़ती घुमड़ती नदिया चली है

 लहरों का स्कूल छूटा है ।


Tuesday, 14 September 2021

बेरोजगारी

 बार बार बेरोजगाारी का सवाल उठता है जब हमारी जनसंख्या 35 करोड़ थी तब भी पचास करोड़ हुई तब भी और आज 135 करोड़ है तब भी। वह समस्या यूंही बनी हुई है। इसका कारण क्या है?इसके आंकड़े देखे जाये ंतो भ्रामक हैं। मनस्थिति भ्रामक है। नौकरी ही देश का भविष्य है वह भी सरकारी नौकरी।मोदी जी द्वारा कहा गया कि पकौड़ा बेचना भी काम है उसके लिये मजाक बनाया जाता है परन्तु मेरे घर के सामने समोसे वाला है उसके तीन मकान हैं जिसमें रहता है पांच मंजिला मकान है गाड़ी है उसका बेटा पढ़कर प्राइवेट कंपनी में बैंगलोर में है। समोसे वाले का खर्च अपने बेटे से तीन चैथाई होगा जबकि वह सारे नाते रिश्ते अर्थात बहन बेटी  ताई चाची आदि से व्यवहार निभा रहा है। बेटे का अपना खर्च पूरा नहीं होता । बेहद मेहनत करता है स्तर पांच सितारीय है। एक बेटा सरकारी नौकरी में है वह केवल जिंदगी जी रहा है मेहनत नहीं करनी पड़ती ग्यारह बजे सोकर उठता है चाहे जब घर चला आता हैसरकारी पैन रजिस्टर आदि  उसके घर की शोभा बढ़ाते हैं सरकारी गाड़ी आती ह ैले जाती है छोड़ जाती है बीच में उसकी पत्नी को बाजार करा लाती है । उसके दो बहनें हैं जो पढ रही हैं हां  दोनों बहनों ने और उन दोनों की पत्नियां जो प्राइवेट छोटे स्कूल में टीचर हेैं ने नोकरी की अर्जी लगा रखी है इसप्रकार उस घर से चार अर्जियां बेकारों की हैं ।


हिंदी वंदना

 भारत माँ का शृंगार है हिंदी  दीपित है माथे की बिंदी

हृदय नदी है हिंदी कलकल  बहती हिम से छूती सब दल 

हीन नहीं है दीन नहींे है  बहुत सबल भाषा है हिंदी 

मन वाणी को सार्थक करती विज्ञान जनित भाषा है हिंदी 

ओठों से चल दिल तक पहुॅंचे दिल से बोले वाणी हिंदी 

घूमो देखो सारी दुनिया  लेकिन घर का आंॅगन हिंदी 

देवांे की भाषा से निकली अमृत वाणी प्यारी हिंदी 


Monday, 13 September 2021

yadon ke dareeche

 ऽ यादों के दरीचे

भूली बिसरी बातें याद करना पुनः पुनः उस जीवन में बार बार लौटना है। एक बंद आलमारी की दराजों को झांकना कि किस कोने में क्या बचा है बार बार खोलते हैं कीाी कीाी ऐसी चीजें एकाएक सामने आ जाती हैं कि  हम चैंक उठते हैं यह भी हुआ था। पहली जिंदगी आज की जिंदगी से अलग जिंदगी थी । हर पल बदलता है वह नहीं लौटता है पर जब उसको याद करते हैं तो एक बार फिर लौट जाते हैं उसी दुनिया में जिसे हम पीछे छोड़ आये हैं । कीज्ञी कभी खुल जाता है सिम सिमक ा दरवाजा झुक जाती है पेडों की डालियां झुलाने के लिये,नदी उमड़कर पैरों तक आजाती है । खेतों में उमग उमग कर फसलें अपना रूप् दिखाती हैं सूरज था चांद तारे थे । टूटता तारा था तो टूटते पलकों के बाल और तारे से मांगते कोई सुनहरा सा ख्वाब। ध्रुव की कहानी थी तो सप्तऋषि की पहचान उड़ते  परिंदे चिडियों की चहचहाहट और झींगुर की झनकार। अब सप्तऋषि गूगल पर ढूंढते हैं। चांद देखा तो था कभी भाग भाग कर करवाचैथ के दिन तो कितनी बार  उसे ढूंढते हलकी सी ललाइ्र लिये आभा भी आती तो  शोर मचाते निकल आया आगया आगया । छत छत चंांद चमक उठता अब तो चांद भी टीवी में देख लिया जाता है कौन छत पर मरे जाकर । ठंडी हवा एसी से आना । बूंदों की टपटप हथेली पर लेना । आंगन में आती बौछारों में नहाना मां का चिल्लाना पर बार बार भीगने के लिये इस कमरे से उस कमरे में जाना दिखाना बचा रहे हैं पर हाथ में बौछार लेना । अब भारी पर्दों के बाहर केवल एसी के डिब्बे पर पड़ती बौछारों से लगता है बारिश आ रही है नही ंतो उसका आना और जाना एक एहसास भर है। न जाने कितने दिन हो गये बरसात में भीगे हुए।दरवाजे के पीछे छिपकर हो हो कर डराना इमली के चियों के लिये लड़ना उनसे हुक्का या हुक्की खेलना ।

सरदी में गुनगुनी घूप में सारे घर का छत पर सिमट आना और पड़ोसन का मां से नई डिजाइन स्वेटर  के लिये सीखना या सिखाना । बड़ी पापड़ चिप्स बनाना  


Friday, 10 September 2021

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Thursday, 9 September 2021

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Monday, 6 September 2021

कम ही कम है तनख्वाह

 

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Sunday, 5 September 2021

ये विज्ञापन

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