कवियों से क्षमा सहित खेद रहित
नाच हो या गाना , खाना हो या पीना हो सर्र से कवियों पर चिट्ठी पहुंच जायेगी फलां दिन कवि सम्मेलन है आप सादर आमंत्रित हैं,और कुछ नखरे से कुछ अखरे से कुछ बकरे से मंच पर हाजिर होते हैं और बैठे होते हैं जनता के यथार्थवादी भुक्तभोगी लोग, जिनकी जेबों में भी कुछ टीपी कुछ लीपी कविताऐं होती हैं कि अवसर मिले तो थोड़ा सा बदला कवियों से वो भी लेलें कि तुमको इतनी देर मैंने झेला अब तुम भी झेलो।
यहां कवि सम्मेलन में उठती आवाजें एक भी मेरी नहीं है हां जो जो शब्द कानों में पड़े वो ही हैं इसलिये सभी आदरणीय कवियों से क्षमा चाहते हुए जनता जनार्दन की आवाज सुना रही हंू
कल तक तो यहीं था
मेरा घर कहां गया (रमेश गौड़)
अवैध निर्माण होगा काॅरपोरेशन वाले उठा ले गये होंगे
कितना जिया कितना मरा
यह सवाल खुद से पूछा ( रमानाथ अवस्थी)
डाक्टर की फीस देदेते वही बता देता न देते तो पूरा मर जाते
एक ने वाह भरी पीछे से आवाज आई क्यों बजा रहा है साले दोबारा सुना देगा जल्दी निपटने दे।,तो दूसरा बोला जब खुद से ही पूछ रहा है तो हमें क्यों सुना रिया है , नींद में बोलने की बीमारी है क्या?
स्वतंत्रता मंगलमय हो
गोपाल प्रसाद व्यास
अमंगल तुम्हारे लिये होगा नेताओं का तो मंगल ही मंगल है जनता तो फ्राई है
सुमति सुरक्षा
कोई और कठिन शब्द नहीं मिला डिक्शनरी में
डाकिये ने द्वार खटख्टाया
अनबांचा पत्र लौट आया (माया गोविंद)
आगे से पूरा टिकिट लगाना नहीं लौटेगा
भवानी मिश्र जी ने शुरू किया ,मै गीत बेचता हूं, जी हां हजूर मैं गीत बेचता हूं
‘ नीचे उतर कर आओ एक ही गीत कब से बेच रहे हो हिसाब दो बिक्री कर दिया या नहीं
प्रार्थना मत कर मत कर मतकर( हरिवंश राय बच्चन)
तुम क्यों करोगे प्रार्थना मजे आ रहे हैं प्रार्थना तो हम कर रहे हैं जो सुने जा रहे हैं।
‘ मेरी मां ने पिल्ला पाला’ अभी कवि ने शरू ही किया था पीछे से आवाज आई
और मंच पर छोड़ दिया
अभी इतना ही कवि सम्मेलन तो होते रहते हैं आवाजें आती रहती हैं ये तो एक यादगार कवि सम्मेलन था ।
No comments:
Post a Comment