Monday, 13 September 2021

yadon ke dareeche

 ऽ यादों के दरीचे

भूली बिसरी बातें याद करना पुनः पुनः उस जीवन में बार बार लौटना है। एक बंद आलमारी की दराजों को झांकना कि किस कोने में क्या बचा है बार बार खोलते हैं कीाी कीाी ऐसी चीजें एकाएक सामने आ जाती हैं कि  हम चैंक उठते हैं यह भी हुआ था। पहली जिंदगी आज की जिंदगी से अलग जिंदगी थी । हर पल बदलता है वह नहीं लौटता है पर जब उसको याद करते हैं तो एक बार फिर लौट जाते हैं उसी दुनिया में जिसे हम पीछे छोड़ आये हैं । कीज्ञी कभी खुल जाता है सिम सिमक ा दरवाजा झुक जाती है पेडों की डालियां झुलाने के लिये,नदी उमड़कर पैरों तक आजाती है । खेतों में उमग उमग कर फसलें अपना रूप् दिखाती हैं सूरज था चांद तारे थे । टूटता तारा था तो टूटते पलकों के बाल और तारे से मांगते कोई सुनहरा सा ख्वाब। ध्रुव की कहानी थी तो सप्तऋषि की पहचान उड़ते  परिंदे चिडियों की चहचहाहट और झींगुर की झनकार। अब सप्तऋषि गूगल पर ढूंढते हैं। चांद देखा तो था कभी भाग भाग कर करवाचैथ के दिन तो कितनी बार  उसे ढूंढते हलकी सी ललाइ्र लिये आभा भी आती तो  शोर मचाते निकल आया आगया आगया । छत छत चंांद चमक उठता अब तो चांद भी टीवी में देख लिया जाता है कौन छत पर मरे जाकर । ठंडी हवा एसी से आना । बूंदों की टपटप हथेली पर लेना । आंगन में आती बौछारों में नहाना मां का चिल्लाना पर बार बार भीगने के लिये इस कमरे से उस कमरे में जाना दिखाना बचा रहे हैं पर हाथ में बौछार लेना । अब भारी पर्दों के बाहर केवल एसी के डिब्बे पर पड़ती बौछारों से लगता है बारिश आ रही है नही ंतो उसका आना और जाना एक एहसास भर है। न जाने कितने दिन हो गये बरसात में भीगे हुए।दरवाजे के पीछे छिपकर हो हो कर डराना इमली के चियों के लिये लड़ना उनसे हुक्का या हुक्की खेलना ।

सरदी में गुनगुनी घूप में सारे घर का छत पर सिमट आना और पड़ोसन का मां से नई डिजाइन स्वेटर  के लिये सीखना या सिखाना । बड़ी पापड़ चिप्स बनाना  


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