होमई व्यारावाला
व्यावसायिक
गुलाम देश के दमघोटू वातावरण में जहाँ महिलाओं को खबरों में मुश्किल से स्थान मिलता था एक महिला ऐसी थी जो स्वयं खबर देती थी वह भी चित्रों के साथ भारत की प्रथम छाया, चित्रकार होमई हर खबर के चित्र लेने दौड़ पड़ती। उसके चित्र इतने जीवंत होते थे कि लाइफ-टाइम आदि पत्रिकाऐं उन चित्रों को हाथांे हाथ लेती थीं। उस समय के अधिकांश अग्रणी प्रकाशनों में उनके चित्र छपते थे।
होमई व्यारावाला को पहली महिला फोटोग्राफर होने का गौरव प्राप्त है। 1940 से 1970 के बीच के दौर में होमई ने देश की राजधानी और 40 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उससे जुड़े प्रमुख लोगों की जिदंगी के नायाब और अनछुए और अबूझे पहलुओं को कैद किया था वैसे तो होमई ब्रिटिश इंफार्मेशन सर्विस के लिये काम करती थी पर उन्हें फ्रीलांसर के रूप में भी काम करने की स्वतंत्रता मिली हुई थी। होमई भारतीय इतिहास के उन पलांे की साक्षी रही है जिनसे भारत का वर्तमान तैयार हुआ है। लार्ड मांउटवेटेन से लेकर मार्शल टीटो, ब्रिटेन की महारानी से लेकर जैकलिन कैनडी, नासिर, चाउ एन लाई आदि महत्वपूर्ण ेचेहरों को कैद किया है ।।
13 दिसम्बर 1913 में जन्मी होमई का जन्म स्टेज कलाकार दोसाभाई हथीराम के यहाॅ गुजरात के नवासरी जिले में मफुसिल कस्बे में हुआ। उनके पिता उर्दू पारसी थियेटर के कलाकार थे। यद्यपि पिता आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे लेकिन होमई की रुचि देखकर पिता ने उन्हें मुबंई आगे शिक्षा प्राप्त करने भेज दिया होमई को उसकी माँ ने मुंबई के एक कान्वेन्ट स्कूल में पढ़ाया। माँ अस्थमा की मरीज थी। होमई को घर का काम करके शिक्षा प्राप्त करने जाना होता था यहाँ तक कि कुँए से पानी तक भर कर लाना होता था। होमई 13 साल की थी जब वह मानेक्शा व्यारावाला से मिली। मानेक्शा दूर के रिश्तेदार तो थे ही उम्र में बड़े भी थे। होमई को अंकगणित पढ़ाने आते थे फोटोग्राफी का शौक उनके राॅलीफ्लैक्स कैमरे को देख कर ही लगा। 1938 से ही उन्होने फोटोग्राफी प्रारम्भ कर दी ।1941 में होमई ने अपने साथी फोटोग्राफर मानेक्शा के साथ विवाह कर लिया।
1942 में होमई और मानेक्शा दोनों दिल्ली आ गये यहाँ प्रैस फोटोग्राफर के रूप में नियुक्ति मिल गई। प्रारम्भ की उसकी तस्वीरें बोम्बे क्रिमनल में छपी लेकिन मानेक्शा के नाम से ,क्योंकि उस समय किसी महिला फोटोग्राफर की कल्पना भी नही की जा सकती थी। बी॰ए॰ के बाद होमई ने जे जे स्कूल आॅफ आर्टस मुंबई में दाखिला ले लिया। तभी इलस्ट्रैड वीकली में होमई का फोटोग्राफ मुखपृष्ठ पर छपा 1942 में दम्पत्ति दिल्ली आ गये। होमई उस समय साड़ी पहनती थी क्योंकि साड़ी महिला के लिये उपयुक्त मानी जाती थी लेकिन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान और नेहरू जी का एक चित्र वह नीचे बैठकर एंगल बना रही थी कि उन्हें साड़ी के फटने की आवाज सुनाई दी उस दिन के बाद उन्होंनें सलवार कमीज पहनना प्रारम्भ कर दिया। होमई का उपनाम या छद्म नाम डालडा 13 था। उनकी प्रथम कार का नम्बर डीएलडी13 था । उनका जन्म 13 तारीख को हुआ उनकी शादी भी 13 साल की उम्र में हुई।
व्यारावालों की फोटोग्राफी की अनुपम कृतियाँ है नेहरू जी द्वारा 4 मार्च 1951 को प्रथम एशियन खेलों में शांति प्रतीक कबूतर उड़ाना, प्रथम झंडारोहण लाल किले पर, माउंटबेटन द्वारा भारत के प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ग्रहण, राजेन्द्र प्रसाद द्वारा अंतिम दिन फाइल पढ़ते हुए, फ्रेंकीलन रूसवेल्ट, आइजनहावर मार्टिन लूथरकिंग, जैकलीन कैनेडी शाहईरान, दलाई लामा का भारत प्रवेश। महात्मा गांधी की मौतनेहरू और शास्.ी जी केदाह संस्कार की तस्वीरें खींचीं
लेकिन आजादी के बाद न उन्हें राजनीति में रुचि रही और न ही फोटोग्राफी में । 26 मई 1969 को एकाएक मानेक्शा का स्वर्गवास हो गया। होमई ने उसके बाद फोटोग्राफी छोड़ दी। पुत्र फारूक ने उन्हें पिलानी बुला लिया वहाँ वे रिटायर्ड लाइफ व्यतीत करने लगंीं। 1975 में फारुक का विवाह हुआ। उसके विवाह के पश्चात होमई कलकत्ते स्थित एक आश्रम में रहने लगी लेकिन फारुक के बीमार होने के बाद वे वापस पिलानी आ गइ्र्र लेकिन 1988 को फारुक की कैंसर से मृत्यु हो गई। होमई बुरी तरह से टूट गई आखिर में बड़ोदरा में बस गई और एक गुमनाम जीवन जीने लगी भारतकी पहली महिला पत्रकार अकेली रहने लगीं वह भी टेलीफोन तक के बिना। उन्होंने अपना चित्र संग्रह दिल्ली स्थित अल काजी फाउन्डेशन आफ आर्ट को दान कर दिया । 1910 में उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया, 2011 में पद्यविभूषण से सम्मानित किया गया ।
97 साल की उम्र में 15 जनवरी 1912 को उन्होंने अंतिम सांस ली।गूगल ने उनके जन्म की 104 वीं जयन्ती पर डूडल के साथ सम्मानित किया ।
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