ऽ धार्मिक स्थलों पर खाने पीने रहने की सुविधा है पंचतारा श्रेणी तक के निवास स्थल हैं ं अब जनता के पास खूब पैसा है दिल खोलकर खर्च करता है इसलिये हर उत्सव का स्वरूप भव्य होता जा रहा है।कहा जायेगा अरे बहुत मंहगाई है पर त्यौहार पहले भी उमंग से मनाये जाते थे लेकिन इतने खर्चीले ढंग से नहीं । दीपावली पर नये कपड़े बनते थे उसका एक क्रेज था वह इसलिये कि त्यौहारों पर ही नये कपड़े बनते थे अब जब कहीं जाना है पहले नये कपड़े बनेंगे कोई भी त्यौहार है नये कपड़े बनेंगे चाहे तीज हो राखी हो होली हो दीपावली हो वैसे कोई भी पसंद कपड़ा आया कोई कारण नहो तब भी खरीद लिया जाता है।सम्पन्न परिवारों में भी रोशनी की जाती थी लेकिन दीपक से पर अब पांच दिन तक पूरा घर रोशनी से नहाये रहता है कुछ तो देव दीपावली तक रोशनी लगाये रखते हैं हजारों रुपये के पटाखे धुऐं में उड़ा दिये जाते हैं। पहले लक्ष्मी गणेश की मिट्टी की मूर्ति लाई जाती सम्पन्न धरों में चांदी सोने की। मिट्टी की मूर्ति गमले में अधिकतर घरों में तुलसी का पौधा तो होता ही है उसमें रख दिया जाता था। वह गल जाती थी रंग कच्ची खड़िया के होते थे। लेकिन अब प्लास्टर आॅफपेरिस की बड़ी बड़ी मूर्तियां लाई जाती हैं जो न गलती हैं न टूटती हैं रंग रसायन युक्त होते हैं जो मिट्टी को जहरीला और बंजर बना देता है ।
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