Sunday 14 November 2021

किस्सा सच है कहानी

 किस्सा सच है



किस्सागोई का भी अपना आनन्द है ,जब चैपाल पर बैठे बुजुर्ग अपने हाथ पैर और चेहरे से अभिनय के साथ-साथ घटनाक्रम जोड़ते चलते है्र। बड़ा ही आनन्द आता है। अधिकतर हर गांव का कोई न कोई व्यक्ति ऐसा होता है जो कथा, गांव में घटी घटना या आसपास के इलाकों में धटी घटना को नमक मिर्च मिलाकर कभी-कभी खट्टी इमली की चटनी मिलाकर परोसते है। 

आजकल शहर से गांवों में कुछ रात बिताने का भी फैशन बढ़ता जा रहा है। आदर्श गांव बनाओ फिर उस गांव मे जाओ रहो बसो वह भी एक दो दिन बस,असली गांव में जाने की हिम्मत शहर से कम ही लोग करते है। हम मजबूर थे। हमारी नानी का घर आदर्श गांव नहीं था ज्यादा से ज्यादा पचास कच्चे पक्के मकान उन्हीं में गाॅंव प्रधान का मकान जमींदार का बाड़ा और कुछ मकान सरकारी क्वार्टर बगेरह था। उन्हीं में हमारी नानी की हवेली भी थी। नानी के घर छुटपन में तो आम जामुन तोड़ तोड़ कर खाने के लालच मेें जाते थे लेकिन पढ़ने लिखने में जुटने के बाद तो बहुत साल बाद ही जाना हुआ। वह भी माँ की जिद से एक बार हवेली देख आयें कैसी है। मामा पढ़ने शहर गये तो सीधे आस्ट्रेलिया पहुँच गये। बंद हवेली का विशाल फाटक मुतहा हवेली की तरह किर्र किर्र कर बोल उठा । माँ को अन्दर हवेली के निरीक्षण के लिये छोड़ मैं गांव की सैर को निकल पड़ा ‘राम राम काका’ चैपाल पर बैठे कुछ बुजुर्गो को देखकर मै रूक गया ।

‘खुस रहे लला कौन केे बिटवा हओ नथनिया के कि अमरिया के ’ भौचक्का सा इन  नामों को विश्लेषण कर रहा था कि एक और कम बुजुर्ग बोल उठे ,‘नाया दद्दू नथनिया का धेवता है अमरियो के बचुवा तो अंग्रेज है गये है वो काये आवेंगे अब गाम में नथनिया  की बिटिया आई है । हवेली देखन कू।’ पटवारी साहब की बिटिया आई है । माँ के आने की खबर सारे गांव में फैल गई थी। मैं देख रहा था कोई मट्ठा लेकर कोई पानी लेकर हवेली की ओर जा रही थी अर्थात् खाने पीने की समस्या का हल हो गया था। 

नथनिया अर्थात् नानी का नाम नत्थादेवी और अमरिया यानि मामा अमर नाथ गांव वालों के लिये विदेश सचिवालय मे उच्च पद पदस्थ अधिकारी आज भी घुटन्ना पहने गायों को हांकने वाला अमरिया था । गांव के स्कूल के शिक्षक भी वहीं बैठे थे । ‘अरे अमरिया तो बहुत बड़ा आदमी है गयाूे है वो का आयेगो अब। तभी सामने के मकान के चबूतरे पर एक भव्य व्यक्तित्व बाहर निकला लम्बे चैड़े गोरे लाल भभूका ,एक सा लेकिन बलिष्ठ बदन एकदम सफेद कुर्ता और धोती किसी भी साबुन के सफेदी के विज्ञापन के लिये उपयुक्त था। उसने मूढ़ा खिसकाया और अखबार लेकर खोल लिया। मेरी उत्सुक निगाहों को देख बुजुर्ग बोले,‘ अरे हमारे जमादार सहब है।’ जमादार साहब मै चैक उठा वर्तमान में जमादार का जो भी अर्थ हो ऐसा भव्य व्यक्तित्व और जमादार। शिक्षक मेरी उलझन भंाप गया।  अरे लला पहले जमेदार या जमादार गांव का बहुत इज्जतदार आदमी होता था। अब जमादार का अर्थ बदल गया है पर अब सब बाबू साहब कहने लगे है या आज भी  गांव की सभी समस्याओं का हल इन्हीं के पास है। इनके ससुर दस गांव के जमींदार थे। अकेली बेटी थी। ब्याह के बाद इनके दिन बदल गये। बड़ी किस्मत वाले हैं हमारे जमींदार साहब। 

"शेष  कल 

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