Thursday, 14 December 2023

Niyam to niyam hain

 


नियम तो नियम है नियमों का क्या

नियम तो नियम है इनके लिये सोचना क्या ये तो हैं ही टूटने के लिये। बनते हैं टूटते हे बनते हैं टूटते हैं और नियम बनते हंै किस के लिये। उस से सम्बन्धित सभी कर्मचारी, पुलिस, अधिकारी सबकी पीढ़ियाँ तर जाती हैं। जब जेब ढीली पड़ जाती है तब नियम की याद आ जाती है कि चलो नियम ढीले पड़ गये हैं कसा जाय जेब भी टाइट चल रही है।

पाॅलिथिन बंद... हल्ला, होहल्ला गाय मरती है, नाले चोक होते हैं मिट्टी खराब होती है लेकिन मिट्टी खराब हो जाती है छोटे दुकानदारों की, ठेले वालों की एकदम से थैलियाँ जब्त, साथा ही फाइन। लाला चल अब कुछ दिन मौज कर अब अगली बार तुझ पर हाथ नहीं डालेंगे। और ठेले वाला धड़ल्ले से फिर थैलियाँ देता है सबकी जेब भी भर जाती है और पाॅलिथिन अभियान खत्म।

दूसरे विभाग का अभियान चालू होता है । जब जिस चैराहे पर याद आती है और उसमें भी देखते हैं ,कौन मरगिल्ला पिद्दी सा है। सूट बूट वाले या दबंग से शान से बिना हैलमेट चलते हैं और उसकी बगल का टूटा सा स्कूटर  चलने वाला पकड़ में आता है  जेब में पैसे नहीं हैं बेटा  घर जा बेटा पैसे  जा चाहे सिर फोड़ या टांग कटा।

नियम बना 10 बजे तक बैंडबाजा बरात का मोहल्लो के बरातघर बंद शोर से ट्रैफिक से जनता है परेशान हैरान जिसकी लाठी उसकी भैंस जो दबंग है 12 बजे तक शोर मचाये, बाजे बजाये, गोली दागे पटाखे चलाये बम फोड़े।

जनता के कान फूटे, बीमार मरे दिल के मरीज की धड़कन बंद हो तो क फर्क पड़ता है शादी तो एक दिन होनी है मुहल्ले के कान तो रोज फूटते है सुबह 4 बजे ढोल नगाड़े से शुरू हो जाता है। बाबुल की दुआएं अब चाहे बाबुल कितना ही सुखी संसार के लिये दुआ देगा पर मुहल्ले का मुहल्ला बददुआ देगा जैसे तूने हमारी नींद उड़ाई भगवान तुम्हारी नींद उड़ाई जैसे तुमने हमे उठाये रखा है भगवान तुम सबको उठाये। अब शादी में कियन तो है कि जब तक पूरे जोश से बासुरी धुन न गाई बजाई जाय शादी शादी न मानी जाती।


Saturday, 9 December 2023

taiyari laghuktha

 


तैयारी

82 वर्षीय दादाजी के चारों ओर परिवार के लोग खड़े थे। दादी जी ने उनके कान के लौ देखे उदासी से बोली, बहू बस अब आखिरी समय आ गया है।

उनकी आँखों से मलमल आँसू गिरने लगे। बहू उन्हें सांत्वना देती उनकी पीठ पर हाथ रख लिया। डाॅक्टर ने भी मुआयना किया बेटा क्या देख रहा है उल्टी सांस चल रही है सुबकते दादी ने कहा। 

अम्मा डाॅक्टर साहब को अपना काम करने दो, बड़े बेटे ने रोका। सबकी आँखे घिरी हुई थी।

डाॅक्टर साहब ने फिर नया बनाया और पकड़ाते कहा, देखिये कहकर चले गये। पर बूढ़ी आँखों ने जमाना देखा था बहु से बोली, अब कुछ घंटो के मेहमान है देखो बहू ओढया बिछइया का और नाग पानी का देख लीजो सर्द है रजाई वगरेह सब निकलवा ले बड़े संदूके में गद्दे रखे हैं।

बड़ी बहू और छोटी बहू दोनों की आँख मिली इंतजाम के लिये उठ गई जरा घर भी ठीक करो छोटी आने जाने वाले आयेंगे पानी वगेरह का इंतजाम भी रखना पड़ेगा। अरे वो मेरे कमरे का गीजर खराब है एकदम नहाने वालो की लाइन लगेगी शामू जा बिजली वाले का बुला ला।

छोटी बहू कमरों की साफ सफाई में लग गई बड़ी बहू ने अपने बेटे की बहू से कहां बेटा अब दादाजी का कुछ ठीक नही है जरा सब तैयारी रखना सब आयेंगे जायेंगे।

पाते की बहू ने आईना देखा गाड़ी उठाई तुरंत तैयारी के लिये ब्यूटीपालेर चली गई फैशियल वगेरह करा लूँ। सोचकर।


news letter

 इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के दौरान जैसे.जैसे मुझे दुनिया के बारे में व्यापक जानकारी मिली और मैं अधिक विश्लेषणात्मक होता गया, मेरी आस्थाएं विकसित होती गईं। मेरे द्वारा धारण की गई मान्यताओं के संबंध में बहुत सारी संज्ञानात्मक असंगतियाँ उत्पन्न होने लगीं। लेकिन जैसे.जैसे मेरी मान्यताएँ विकसित होती गईं, मुझे धर्म में मूल्य फिर भी मिलता रहा। अंतर यह था कि मैंने धर्मों को एक विषय के रूप में नहीं देखना शुरू कर दिया था।

पूर्ण निश्चितता या ष्ईश्वर का वचनष्, लेकिन अर्थ और सत्य की कभी न खत्म होने वाली खोज से भी अधिक। इस तरह से देखने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकांश धर्म की व्याख्या शाब्दिक के बजाय रूपक के रूप में की जाती है। इससे बदले में  सभी धर्मों को एक.दूसरे के साथ विरोधाभासी देखे बिना, उनमें ज्ञान ढूंढना आसान हो जाता है। बल्कि, वे सभी एक साझा मानव अर्थ.निर्माण परियोजना का हिस्सा हैं जो एक प्रजाति के रूप में हमारे पूरे इतिहास में चल रही है। निःसंदेहए यह सब मेरे दिमाग में पूरी तरह से स्थापित होने में समय लगा।

हिंदू जीवन के चार चरणों में विश्वास करते हैं. ब्रह्मचर्य ;अनुशासनद्ध, गृहस्थ ;आनंदद्ध, वानप्रस्थ ;सीखनाद्ध, और संन्यास ;सेवानिवृत्तिद्ध। हालाँकि उस समय मैं इसके बारे में पूरी तरह से सचेत 


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नहीं था, यह तीसरे चरण, वानप्रस्थ की मेरी अपनी व्यक्तिगत खोज थी, जिसने मुझे एडवांस्ड लीडरशिप इनिशिएटिव ;एएलआईद्ध कार्यक्रम में हार्वर्ड में अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।


Thursday, 30 November 2023

News letter

 जैसे.जैसे मैं बड़ा होता गया हूं, मुझे उतना ही अधिक आश्चर्य होता है कि वयस्कों के लिए समृद्धि इतनी अधिक जटिल क्यों लगती है, और हम इसे सरल बनाने के लिए क्या कर सकते हैं। पूरे मानव इतिहास में बहुत लंबे समय से, हमारे पास खुशी के लिए कई नुस्खे हैं, लेकिन हममें से सबसे बुद्धिमान लोग भी समृद्धि के ऐसे मॉडल को स्पष्ट करने में विफल रहे हैं जिसे हर कोई समझ सके और उसका पालन कर सके। कवियों, दार्शनिकों और कलाकारों की जटिल भाषा में बहुत सुंदरता हो सकती है, लेकिन जैसा कि सर आइजैक न्यूटन ने एक बार लिखा था, ‘सच्चाई हमेशा सरलता में पाई जाती है, न कि चीजों की बहुलता और भ्रम मेंष्। तो मानव के उत्कर्ष का सूत्र कुछ सरल, कुछ शब्दों में अभिव्यक्त होने वाला क्यों नहीं होना चाहिए ?

महसूस हो रहा है कि कुछ छूट रहा है

मैंने एक भाग्यशाली जीवन जीया था, एक सफल करियर बनाया था, वित्तीय स्थिरता हासिल की थी और मेरा एक विस्तृत परिवार था जो मुझसे प्यार करता था और मुझे वह भावनात्मक सहारा प्रदान करता था जिसकी मुझे ज़रूरत थी। मैंने आईआईटी, भारत के एमआईटी के समकक्ष और फिर स्टैनफोर्ड में सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की, और भारत में तीन प्रतिष्ठित कंपनियों दृ 

हिंदुस्तान यूनिलीवर, रिलायंस इंडस्ट्रीज और ब्लैकस्टोन के साथ काम किया। ब्लैकस्टोन में मेरी आखिरी नौकरी एक सपनों की नौकरी थी और इसमें सभी सुविधाएं शामिल थीं दृ पैसा, प्रसिद्धि, शक्ति और दोस्त। मैंने उनकी तलाश नहीं की, लेकिन वे प्रचुर मात्रा में आए मेरी व्यावसायिक सफलता के कारण जिसका परिणाम नहीं था।☺


Wednesday, 29 November 2023

bridges

 1जॉन स्टुअर्ट मिलj] बर्ट्रेंड रसेल और जॉन मेनार्ड कीन्स ने सदियों पहले लोगों को सलाह दी थी] साधनों से ऊपर लक्ष्य को महत्व दें और उपयोगी की तुलना में अच्छे को प्राथमिकता दें"। हम इन बुद्धिमान दार्शनिकों द्वारा दोहराए गए सदियों पुराने ज्ञान पर ध्यान देने में असफल हो जाते हैं क्योंकि हमारी समकालीन संस्कृति में हम साधनों में इतने व्यस्त हो गए हैं कि हम साध्य को भूल गए हैं या अधिक सटीक रूप से कहें तो साधन और साध्य उल्टे हो गए हैं। दूसरे शब्दों में] हमारे साधन ही हमारे साध्य बन गये हैं। साधन-साध्य व्युत्क्रमण (एमईआई) की यह घटना जीवन के सभी क्षेत्रों में] व्यक्तियों] संगठनों] समाजों और देशों के स्तर पर हो रही है] हमें इसकी जानकारी भी नहीं है। जब हम इस तथ्य को भूल जाते हैं कि पैसा] प्रसिद्धि और शक्ति एक साधन हैं] साध्य नहीं और उनके तात्कालिक सुखों और जाल में फंस जाते हैं] तो हम गलती करते हैं और फलने-फूलने से चूक जाते हैं।

अमेरिका राष्ट्रीय स्तर पर साधन-साध्य व्युत्क्रम का एक प्रमुख उदाहरण है। विशेष रूप से अमेरिका का हवाला देना महत्वपूर्ण है क्योंकि] नोबेल पुरस्कार विजेता वैक्लाव हेवेल के शब्दों में]  दुनिया जिस दिशा में जाएगी] उसके लिए संभवतः संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी लेता है"।

Bridges across humanity

 ण् तो वास्तव में फलने.फूलने के लिए हमें क्या चाहिए? विश्वास करें या न करें, उत्तर आपके विचार से कहीं अधिक निकट हो सकता है . और जब हम बच्चों का निरीक्षण करते हैं, तो उनके फलने.फूलने की आधारशिला आश्चर्यजनक रूप से सरल होती है।

मैं हमेशा छोटे बच्चों को खेलते हुए देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ। वे इस पल में पूरी तरह व्यस्त हैं, वे पूरी तरह डूबे हुए हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि कौन देख रहा होगा। वे अपनी भावना या स्नेह दिखाने में कभी नहीं हिचकिचाते, इसे निर्बाध रूप से बहने देते हैं, चाहे खुशी से गले लगाकर या जोर से हंसकर। जिज्ञासा के ये बंडल छोटे स्पंज की तरह काम करते हैंए जो कुछ भी उनके सामने प्रस्तुत किया जाता है, या जो कुछ भी वे खोजते और खोजते हैं उसे सोख लेते हैं। एक फूल की तरह जिसे पूरी तरह से खिलने के लिए हवा, पानी और सूरज के सही संतुलन की आवश्यकता होती है, बच्चे केवल प्यार करना, सीखना और खेलना चाहते हैं . और जब वे इन तीन आवश्यक गतिविधियों में संलग्न होते हैं तो वे फलने.फूलने की स्थिति में होते हैं। और क्या होगा अगर हम भी प्यार, सीखो और खेलो या एलएलपी को प्राथमिकता दें ? शायद हम भी खिल उठेंगे


Tuesday, 28 November 2023

Hindustan

 हिन्दुस्तान

हिन्दुस्तान हिंदू देष है पर हिंन्दू षब्द के लिये हमारे यहां इसे विषेष धर्म का पर्याय मान लिया गया है, जबकि सप्त सिन्धु अर्थात् यहां पर सात सिन्धु हैं। फारसी में हप्त हिन्दुस्तान हो जाने के कारण यह सिन्धु से हिन्दु हो गया। हिन्दुस्तान जहां पर हिन्दू रहते हैं और हिन्दू धीरे धीरे एक धर्म के रूप में प्रचलित हो गया जब कि यह जिस प्रकार इंगलैंड में रहने वाले अंग्रेज, अमेरिका में रहने वाले अमेरिकन हैं उसी प्रकार हिन्दुस्तान में रहने वाले हिंदू हैं।यह राष्ट्रीय एकता का षब्द हैं लेकिन अब इस एकता के लिये हमें भारतीय षब्द अपनाना हे । हम भारतीय हैं एक देष एक राष्ट्र ।

जो लोग एक विषिष्ट क्षेत्र में रहते हों जिनकी भूतकाल की स्मृतियों और भविष्य की आकांक्षायें समान हों और जिनमें एक होने की भावना और इच्छा हों वे एक राष्ट्र माने जाते हें ।जीवित मानव की तरह राष्ट्र के दो प्रमुख अंग हैं एक देष की धरती और दूसरी उसकी संस्कृति । धरती राष्ट्र का षरीर माना जाता है और संस्कृति उसकी आत्मा और दोनों के मेल से राष्ट्र बनता है ।

हिन्दुस्तान का जनमानस इस सारे विषाल क्षेत्र को एक देष और राष्ट्र मानता आया है, इसकी संस्कृति का आधार इसका चिन्तन और इसके साहित्य और कला में इसकी उपलब्धियां सभी महापुरुष और साझे सुख दुःख की स्मृतियां मिली जुली संस्कृति अथवा गंगा जमुनी संस्कृति की बात एकदम निरर्थक है, जब जमुना गंगा में मिल जाती है तो उसका पानी भी गंगाजल बन जाता है इसी प्रकार जो भी तत्व हिन्दुस्तान के साथ एक रूप हो गये  वे गंगाजल की तरह इस राष्ट्र का अभिन्न अंग बन गये । अलगाववाद की बात करने वाले राष्ट्र की अखंडता और एकता पर प्रहार है ।

राष्ट्र की एकता के लिये समर्पित भाव आवष्यक है उसके लिये मर मिटन की बात अपने को इसी राष्ट्र का मानने की बात । कुछ लोग इस विषाल देष की स्वाभाविक विभिन्नता के आधार पर बहुसंस्कृतिवाद वाला राष्ट्र कहा है। कोस कोस पर पानी कोस कोस पर बानी बदलती है ,परन्तु मन भारतीय हैै तो वह भारतीय ही रहेगा, अलगाववादियों का राष्ट्र की मूल धारणा में स्थान नहीं रहेगा ।

भारत में सबको अपन अपने ढंग से रहने सोचने और ईष्वर की पूजा करने का पूर्ण अधिकार है। ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। यह सह आस्तित्व का आधार है क्योंकि भारतीय मानव जाति को एक कुटुम्ब मानता है और कर्म पर विष्वास करता है। विचार स्वतंत्रता का पक्षधर है ,इसलिये राजनैतिक क्षेत्र में यह लोक तंत्र और पंचायत तंत्र का पक्षधर है । जहांतक मैं समझती हूं धर्म भाषा आदि से अलग मानवतावादी होना चाहिये ।


Monday, 27 November 2023

Bridges Across Humanity

            केवल एक सार्वभौमिक ईश्वर 

कुछ लोग ईश्वर शब्द के किसी भी वैध उपयोग से इनकार करेंगे क्योंकि इसका बहुत दुरुपयोग किया गया है। निश्चित रूप से यह सभी मानवीय शब्दों में सबसे बोझिल है। ठीक इसी कारण से यह सबसे अविनाशी और अपरिहार्य है। 1ऋ 

                                                                   . मार्टिन ब्यूबर 

सभी आस्तिक धर्मों मेंए चाहे वे बहुदेववादी हों या एकेश्वरवादीए ईश्वर सर्वोच्च मूल्यए सबसे वांछनीय अच्छाई का प्रतीक है। इसलिएए ईश्वर का विशिष्ट अर्थ इस बात पर निर्भर करता है कि किसी व्यक्ति के लिए सबसे वांछनीय अच्छा क्या है। 2 

                                                                    .एरिच फ्रॉम 

मुझे याद है जब स्टैनफोर्ड बिजनेस स्कूल के मेरे सहपाठीए डैन रूडोल्फए जो उस समय स्टैनफोर्ड बिजनेस मुझसे मिलने आए थे। स्कूल के मुख्य परिचालन अधिकारी थेए भारत में अपने परिवार के साथ कैलिफ़ोर्निया से मुझसे मिलने आए थे। । उनकी दो बेटियाँए क्रमशः सात और नौ वर्ष कीए जिनका पालन.पोषण एक कट्टर ईसाई परिवार में हुआए हिंदू पौराणिक कथाओं से काफी आकर्षित हुईं। 




1 मार्टिन बूबरए आई एंड तू ;न्यूयॉर्करू साइमन एंड शूस्टरए 1996द्धए 123.24। 

2 एरिच फ्रोमए द आर्ट ऑफ लविंगए फिफ्टीथ एनिवर्सरी एडिशन ;न्यूयॉर्करू हार्पर कॉलिन्सए 2006द्धए 



वे छोटी.छोटी मूर्तियां घर ले गईं, लक्ष्मी ;धन की देवीद्धए सरस्वती ;ज्ञान की देवीद्ध और गणेश ;सौभाग्य के देवताद्ध। बाद में एक दिनए जब एक बेटी कैलिफ़ोर्निया में स्कूल जा रही थीए तो उसकी माँ ने उत्सुकता से उसे परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ दीं। उसने अपनी माँ को उस खुले दिलए चंचल आत्मविश्वास से आश्वस्त किया जो छोटे बच्चे अक्सर प्रदर्शित करते हैंरू श्माँए चिंता की कोई बात नहीं है। उसने अपनी माँ को उस खुले दिलए चंचल आत्मविश्वास से आश्वस्त किया जो छोटे बच्चे अक्सर प्रदर्शित करते हैंरू श्माँए चिंता की कोई बात नहीं है। मेरी एक जेब में गणेश और दूसरी जेब में सरस्वती हैं इसलिए मेरा पूरा ख्याल रखा जाता है!श्


Wednesday, 25 October 2023

soch se bahar

 हम प्रकृति की सुंदरता पर मोहित होते हंै या मानव की कृतियों पर अहा! कितना सुंदर है अदभुत् है हमारे अंदर प्रेम की भावना उपजती है हम प्रेम करना सीखते हैं साथ ही हम में सहनश्षीलता आती है । दुराग्रहों को छोडना पड़ता है अपनी मान्यताओं को घर पर पोटली बाॅंधकर छोडना पड़ता है क्योंकि हमें जो दूसरे करते है वही करना पड़ता है। हमें उस स्थान से कायदे कानून रीति रिवाजों के हिसाब से चलना पड़ता है । यात्रा इंसान का इंसान से प्यार करना है दूसरों पर विष्वास करना सिखाती है हम इसी विष्वास के साथ या़त्रा पर निकलते हैं कि हमारे साथ पूरी दुनिया है हमारे देखने का नजरिया बदल जाता है हमारी दृष्टि बदलती है हमारी सोच में बदलाव आता है और जो कुछ दूसरे का अच्छा लगता है उसे अपमान का भाव आता है तो अपने दायरे से बाहर निकलते हैं एक खींची हुई रेखा सोच से बाहर ।


Saturday, 21 October 2023

koi kam chota nahin

 महिलायें अपना पत अपने आप खो रही हैं। दूसरे धर्म के लड़के किसी काम को छोटा नहीं मानते,उन्होंने रचनात्मक कलात्मक और क्रियात्मक सभी कामों पर कब्जा कर लिया है नौकरी नौकरी न चिल्लाकर प्रतिदिन के आवष्यक कामों को अपना लक्ष्य बनाया और उस पर कब्जा कर लिया । गाड़ी मैकेनिक,बिजली नल आदि के अच्छे कारीगर दूसरे धर्म के ही मिलेंगे और वे बिना झिझक के यह काम करते हैं जब कि हिन्दू सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहा है।

कौषल योजनाओं को बढ़ावा मिलना चाहिये,बचपन से ही केवल षिक्षा पुस्तकीय नहीं होनी चाहिये कलाकारी कारीगरी भी सिखानी चाहिये। छोटी उम्र से ही कल पुर्जों को खोलना लगाना आदि सिखाना चाहिये।इन सबके कारीगर दो दो तीन तीन हजार रुपये प्रतिदिन कमा रहे हैं अच्छे अच्छे इंजीनियर इतना नहीं कमाते होंगे। यह एक विचार है,केवल सरकारी नौकरी के लिये भागने से कहीं अच्छा अन्य काम है ।

आजकल हर परिवार का एक न एक बच्चा विदेष में है। षिक्षा यहां प्राप्त करते है ंसरकार और मां बाप उस पर पैसा खर्च करते हैं और जब ष्क्षिा प्राप्त कर लेते हैं तब विदेषों में बस कर नौकरी कर लेते हैं


Sunday, 15 October 2023

jeevan yatra hai

 जीवन यात्रा है 


यात्राएंे जीवन मे निर्भीकता लाती हंै हम यात्रा के समय अपने आपको पूर्ण रूपेण बदल लेते हैं हम हम नहीं होते उस समय हम अपने को जहाॅं होते हैं वहाॅ के वातावरण में बदल लेते हैं हम अपने को नहीं सामने वाले को देखते हैं तो वहीं की सोच उस समय अपनायेंगे। मैं हम मेें बदल जाता है हम देखते हंै हर जगह का इंसान एक ही है वही हंसना गाना रोना वही प्रकृति कहीं घने जंगल तो कहीं समुद्र लेकिन समुद्र में पानी किस तट से टकरा कर आया है नहीं कह सकते पहाड़ पर जमा बर्फ में किस देष के जल की बूंदे हैं पेड़ांेे के नीचे की मिट्टी किस प्रदेष से आंधी के संग आई है। इस मिट्टी में कौन कौन है किससे ष्षरीर के अंग समाहित है किस प्रदेष की जमीन से उड़ी है उसमें पवित्र आत्मा की खाक है या किसी पापी की कीडे मकोडे की हवा किस किस को छूकर आ रही है जिसे हम अस्पट मान रहें है हवा उससे लिपट कर आ रही है जैसे हमारे साथ छप्पा छाई खेल रही हो पहचान कौन किसके बदन के थपेड़े हंै या़त्रा में हम सब प्रदेशों के हम सफर हो जाते है। और हम स्वंय से दूर होकर उनमेें मिल जाते हैं। 

हम प्रकृति की सुंदरता पर मोहित होते हंै या मानव की कृतियों पर अहा! कितना सुंदर है अदभुत् है हमारे अंदर प्रेम की भावना उपजती है हम प्रेम करना सीखते हैं साथ ही हम में सहनश्षीलता आती है । दुराग्रहों को छोडना पड़ता है अपनी मान्यताओं को घर पर पोटली बाॅंधकर छोडना पड़ता है क्योंकि हमें जो दूसरे करते है वही करना पड़ता है। हमें उस स्थान से कायदे कानून रीति रिवाजों के हिसाब से चलना पड़ता है । यात्रा इंसान का इंसान से प्यार करना है दूसरों पर विष्वास करना सिखाती है हम इसी विष्वास के साथ या़त्रा पर निकलते हैं कि हमारे साथ पूरी दुनिया है हमारे देखने का नजरिया बदल जाता है हमारी दृष्टि बदलती है हमारी सोच में बदलाव आता है और जो कुछ दूसरे का अच्छा लगता है उसे अपमान का भाव आता है तो अपने दायरे से बाहर निकलते हैं एक खींची हुई रेखा सोच से बाहर ।



Friday, 13 October 2023

diya

 किसी ने कहा है

दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा

धरा को उठाओ गगन को झुकाओ

बहुत बार आई गई ये दिवाली

मगर तम जहां था वहीं पर टिका है।

कहने को तो दियों को जलाकर हम दिवाली उत्सव मना लेते हैं परंतु प्रेम  प्रकाष का प्रतीक दिया जलना तो दूर टिमटिमाता भी नहीं है। पूजा अर्चनाओं के लिये दिये जलाऐ जाते हैं पर मन के दीपक बुझे तो बुझे रह जाते हैं,आरती में भी मन प्रकाषित नहीं होता । दीपक प्रतीक है प्रकाष का,अंधकार को मिटाने को माटी का दिया काफी नहीं है मन को प्रकाषित करने का,

‘धरा को उठाओ गगन को झुकाओ धरती और आकाष की तरह मनुष्य मनुष्य में जो भेदभाव है वह मिटना चाहिये जो दबा है तिरस्कृत है उसे उठाया जाये उसे अपने पंख तोलने और पगों को नापने का हुनर दिया जाये गगन जितना ग्रहण करता हे उतना दान भी करना जानता है।


Wednesday, 11 October 2023

deep

 nh;s dk lca/k ek= feêh ds vkoj.k ;k ik= ls ugha gS fn;k ckrh vkSj rsy ls feydj gh fn;k dgykrk gS D;ksafd rhuksa ,d nwljs ds layXu gSa ,d nwljs ds iwjd gSa i`Fkd jgdj fdlh dh viuh igpku ugha gS nh;k rsy vkSj ckrh ,sls gh gSa tSls czãk fo".kq egs’kA vFkkZr l`tudrkZ vFkkZr iSnk djus okyk] ftl ij lc dqN fVdk gS tks lcdk vk/kkj gS]nhid Hkh og vk/kkj gS og vkdkj¼ik=½ gS ftlesa ykS dk izdk’k dk tUe gksrk gSA fo".kq vFkkZr~ ikyudrkZ j{kk djus okykA rsy fo".kq dk izrhd gStks ckrh dks ikyrk gS mlds iksj iksj esa lapfjr gksdj mls ftank j[krk gS vius iy iy ds lkFk ls ckrh dks mToZfjr j[krk gSA mlds izdk’k dh ijofj’k djrk gSA egs’k vFkkZr~ lagkj djus okyk ckrh egs’k dk izrhd gS ;g va/kdkj esa QSys vU;k; ,oa /kkj.kkvksa dk lQk;k djrh gS blfy;s nhid ,oe~ vFkZ esa czãk fo".kq egs’k dk Hkh izrhd gSA nh;k vk’kk dk izrhd gS]uweu psruk ,oe~ uohu izsj.kk gS nh;s ls Hk; ,oe~ Hkze dk fuokj.k gksrk gS nh;s esa izk.k lapkyu ,oe~ pSrU; ’kfDr gksrh gS A

Monday, 9 October 2023

hamari prtibha

 हमारे देष की प्रतिभा हमारे देष का पैसा सब विदेषियों के काम आ रहा है। हमारे देष में रह जाते हैं जबरन पास किये जा रहे  अयोग्य लोग और वे ही कुर्सियों पर आरूढ़ होकर भ्रष्ट व्यवस्था बनाते हैं काम आता नहीं है कुर्सी पर बैठते हैं खैनी चूना फांकते हैं, बस फाइलें इधर उधर करते हैं अयोग्य लोग अपनी कुर्सी बचाने में लगे रहते हैं बस कुर्सी और पैसा यही उनका लक्ष्य रहता है काम गया खड्डे में, जनता जाये भाड़ में नेताओं का वोट तो पक्का है वोट और नोट की राजनीति में आम आदमी मर रहा है पिस रहा है और देष ?

हमें आभारी होना चाहिये स्वामी विवेकानंद का जिन्होंने अकेले पहल की और दंनिया को भौचक्का कर दिया भारत का गौरव वापस दिलाय


Sunday, 8 October 2023

rangoli

 रंगोली अर्थात रंगों की श्रंगला । रंगोली के बिना कोई पर्व उत्सव मांगलिक कार्य आदि अपूर्ण माना जाता है। षिव गौरा ,रामसीता के विवाह में भी रंगोली सजाई गई यह प्रमाण ग्रन्थों में है। इन्द्र के इन्द्रलोक में अप्सरायें विषेष रूप से रंगोली पर नृत्य का ष्षुभारंभ करती थीं। रंगोली ष्षुभ का प्रतीक है। वास्तु के अनुसार रंगोली घर की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालती है और सकारात्मक ऊर्जा को लाती है।यह सुख समृद्धि और खुषहाली का प्रतीक है। रंगोली को उत्तम स्वास्थ का प्रतीक माना जाता है। रंगोली दीर्धायु प्रदान करने वाली होती है । जिस तरह से अनेक रंग मिलकर एक रंगोली बनाते हैं उसी तरह से रंगोली परिवार की एकजुअता को दिखाती है रंगोली के माध्यम से हम अपने भावों को प्रकट करते हैं रंगोली सफलता का प्रतीक मानी जाती है।

जियें जीवन का हर पल किसी उत्सव के मानिंद

न जरने कौन सा पल करदे जिंदगी से जुदा ।


Saturday, 7 October 2023

kya hum sahi hain

 क्या सही क्या गलत ? हम क्या खा रहे हैं -

मिर्च - बीटा कैरोटिन और विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है ,बंद नाक खोलने में सहायक है,खून के थक्के न बनने देने में सहायक है ,खाने का स्वाद बढ़ाती है। षिमला मिर्च लो कैलोरी है हरी मिर्च में लाल मिर्च के मुकाबले अधिक न्यूट्रिटैंट वेल्यू है।एन्टी आक्सीडेंट का अच्छा स्त्रोत है 45 ग्राम लाल मिर्च में 65 मिली ग्राम विटामिन सी होता है 100 प्रतिषत आर डी ए , ऊतक निर्माण और कैंसररोधी तत्व होते हैं। मिर्च में पाये जाने वाले कैप्सीसिन तत्व जिससे तीखापन आता है वह रक्त में थक्के बनने से रोकता है,गठियावात से बचाती है। कीमो थैरेपी से होने वाले दर्द को भी कम करती है। मिर्च से अल्सर होने या अपच की बीमारी होती हे यह सिद्ध नहीं हो सका है


Friday, 6 October 2023

lottery

 लाटरी

रोमन सम्राट आगस्टस व नीरो ने निर्माण कार्य के खर्च के लिये लाटरी आरम्भ की। इंगलैंड की रानी ऐलिजाबेथ प्रथम ने लाटरी पर पुरस्कार की अनुमति दी थी। हमारे भारत में केरल के साम्यवादी मंत्रिमंडल ने लाटरी षुरू करके खूब पैसा कमाया है इसके पूर्व रूस की साम्यवादी सरकार ने दूसरे महायुद्ध का खर्च निकालने  के लिये लाटरी चलायी और एक लाख रूबल पुरस्कार की घोषणा की। भारत में ब्रिटिष राज्य में ही लाटरी का पा्ररम्भ हो चुका था। 1789 में पीटर मैसे कैसीन नामक व्यापारी ने स्टाॅक एक्सचेंज की इमारत बनवाने के लिये लाटरी की योजना सोची। उस समय स्टार पागोडा वाला 3.50 रु॰ कीमत का सिक्का चलता था। ऐसे एक लाख पगोडा के इनाम की घोषणा की गई जिसमें पहला इनाम पांच हजार पागोडा का था,फिर ढाई ढाई हजार के दो, एक हजार के पांच, पांच सौ के दस,,ढाई सौ के बीस ,एक सौ के पचास और पचास के  सौ था बीस पागोडा के 3212 यानि कुल 3400 पुरस्कार रखे गये थे। इसके अलावा पहला टिकिट लेने वाले को 500 और आखिरी टिकिट खरीदने वाले के लिये 360 पगोडा का पुरस्ैकार रखा गया था ।


Saturday, 6 May 2023

adani ambani ka rona

 ऽ रात दिन अदानी अंबानी का रोना रोने वाले ,चिल्लाने वाले अपने गरेबां में झांक कर देखें वे समाज के लिये क्या कर रहे हैंकेवल नौकरियों का रोना रोते हैं सबको सरकारी नौकरी चाहिये वह भी इसलिये कि काम न करना पड़े हराम की खाना चाहते है। ।हराम की खाने के लिये सरकार की नौकरी चाहिये जो लाखों लोगों को नौकरी देरहे हैं उन्हें ठलुए लोग सरकारी माल हजम करने वाले गाली दे रहे हैं। उनका स्तर उतना ही है कि वे बस गाली देलें ं उन्हें देष का समाज का कुछ पता नहीं बस बाबूगिरी करले बस हो जायेगा। अगर अंबानी अदानी जैसे लोग नहीं होंगे तो देष की अर्थ व्यवस्था चैपट हो जायेगी। छोटे से छोटा व्यपारी यहां तक कि ठेले वाला भी एक को तो नौकरी दे ही रहा है और सरकारी नौकरी करने वाला केवल उन्ही व्यपारियों के टैक्स के पैसे से हराम की खा रहे हैं । कुर्सी तोड़ते हैं और चले जाते हैं। निठल्ले लोगों को बड़े व्यपारियों को देख कर जलन होती हैंयदि वे हवाई जहाज में चल रहे हैं तो अपनी मेहनत के पैसे से सरकारी पैसे से नहीं । उनके सिर पर रात दिन तलवार लटकी रहती है। व्यापारियों को गाली देने वाले सोच कर गाली दें सोचलें कि वे किसकी दी हुई रोटी ख रहे हो । सरकार भी नौकरी उन्हीं के दम पर देगी

केवल गाली देना अकर्मण्य लोगों का काम हैया विपक्षी नेताओंका क्यों कि उन्हें गद्दी जो नहीं मिली इसलिये रोत रहो। 70 साल से केवल यही सुना जा रहा है कि नौकरी नहीं नौकरी नहीं सबको नौकर बना दो मालिक मत बनने दो मालिक बन गये तो सिर उठायेंगे।


Monday, 24 April 2023

कितने भक्त हैं हम

 एक लेख पढ़ रही थी जिसमें लेखक अपने अंदर आई उदासीनता को काम में व्यस्त कर समाप्त करता है और अपने स्टोर के एक कोने को वृन्दावन का सा वातावरण दे देता हे । कपड़ों पर कृष्ण की तरह तरह की तस्वीर छापता है बालकृष्ण राजाधिराज कृष्ण की गोपालक कृष्ण की ं मन प्रसन्न है उसके तन पर कृष्ण विराजमान हैं पर आगे मेरी उदासीनता बढ़ गई । उस वस्त्र को प्रातः नल के नीचे साबुन लगा कर रगड़ कर  कूट कर साफ करने की कल्पना से ही सिहर उठी कहां हम कृष्ण के स्वरूप को अचक हाथों से नहला धुला कर श्रंगार करते हैं सजाते हैं  वही कृष्ण  उतरे बस्त्रों के साथ गंधाते हुए कोने में पड़े हैं ।उनके ष्षरीर को तेजाब युक्त साबुन से रगड़ा जा रहा है कूटा जा रहा है उनको गर्म धूप में लटकाया जा रहा है फिर गर्म प्रैस उनके बदन पर घुमाई जा रही है । ऐसा प्रतिदिन कान्हा झेलते हैं। कैसी है यह हमारी आस्था। कृष्ण तन पर हैं मन में जरा भी नहीं । अगर मन पर होते तो क्या अपने इष्ट को इतना कष्ट देते।

 हम हिन्दू न धर्म पुजारी हैं न ईष्वर को मानने वाले हैं केवल अपने स्वार्थ के पुजारी हैं।कण कण में बसा भगवान् कितना कष्ट उठा रहा है भक्तों को प्रसन्न करने के लिये तभी तो विवाह के निमन्त्रण पत्र बिना गणेष या भगवान् की तस्वीर  के छपते नहीं हैं फिर वे निमन्त्रण पत्र कूड़ा उठाने के काम में आकर कूड़े के ढेर पर पड़े रहते हैं । कितने सच्चे भक्त हैं हम हमारी जय हो ।


Friday, 24 March 2023

Doctor

 बहुत योज्ञता वाले डाक्टर की अधिक से अधिक 30 या 40 हजार की मैडीकल काॅलेज में नियुक्ति हो जाती है। ऐसे में अतिरिक्त आय के लिये पेषे में सेंध मारनी ही पड़ती है । नेता की प्रतिज्ञाऐं किसी डाक्टर से कम नहीं होती ,लेकिन नेता बनते ही सब भूल जाते हैं। सूखा प्रदेष में हो उनके घर बाढ़ आ जाती है बाढ़ हो तब तो सैलाब ही आ जाता है । चारों ओर के सामाजिक परिवेष को देखते हुए यदि डाक्टर बेईमानी महज अपने कमीषन के लिये करते हैं तो जब कि विज्ञान ने प्रगति  करली है और बीमारियों ने भी प्रगति कर ली है। साधारण बुखार भी मारक निकलता है तब दोष  डाक्टर का ही माना जाता है कि ऐसा बेवकूफ डाक्टर है जाॅंच तक नहीं कराई । हर व्यक्ति डाक्टर के पास जाता है वह यह सोच कर जाता है कि उसे बहुत बडी बीमारी है । यदि़ सधारण दवा लिख देता है तो डाक्टर अयोग्य समझा जाता है । 


Tuesday, 14 March 2023

swapn

 जब तक बीज गल नहीं जाता तब तक वृक्ष नहीं बनता। जब मनुष्य में से मैं मिट जाता है वह इष्ट में मिल जाता है।

सूर्य की आभा से प्रकृति भी चमत्कृत हो जाती है और अपना सोना सितारों से भरा थाल उसे समर्पित कर देती है।

ईष्वर की कृपा दृष्टि जिस पर पड़ती है उसके यष को फैलने से कोई रोक नहीं सकता ।

मैं सोई थेाड़ी देर स्वप्न में सैंकड़ों वर्ष गुजर गये।

एक ही कमरे में दस व्यक्ति सो रहे होंगे ,सबके स्वाप्न अलग अलग होंगे ।


Sunday, 12 March 2023

satta

 

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Tuesday, 24 January 2023

basant

 कब आयेगा बसंत


समाचार पत्र के 

मुखपृष्ठ पर

काले सफेद रंगों में

तस्वीर है फूलों की

आज बसंत है

अरे आया बसंत है

खिड़की खोल देती हूं

बसंत आओ देखूं बसंत

नहीं रंगे हैं वस्त्र

विदेष में बसे बच्चों को 

उत्साह से बताना चाहती हूं

आज आया है बसंत

पर यह उनका आज नहीं है

वे सोये हैं वर्फ की चादर में

सिकुड़े सिमटे गर्म घरों में

मोटे कोट और मोटी जीन्स में 

आया होगा बसंत मेरे गांव में

मां ने रंगी होगी साड़ी

भाई की टोपी कमीज

बहन का सलवार कुर्ता

बबूजी का रूमाल

नानी सजा रही होगीथाल में

ब्ेार गुड़िया गुड्डा रेवड़ी

सरस्वती जी की तस्वीर

धेवते ध्ेावतियों के लिये

चैपाल पर जुड़े होंगे फगुनिये

बंध रहा होगा होली का ढंाटा

ढोलक की थपक थपक थाप

हल्दी  लगेे हुए माथ 

बुजुर्गो के आषीषों के हाथ

नृत्य की झमक झमक झंकार 

सजे होंगे थापे द्वारद्वार

देवता के चरणों में गुलाल

मीठे चावल का भोग

 मचा होगा ष्षोर 

आज आया है बसंत

मैं ढूंढती हूं टीवी में बसंत

केवल कवियों की कविता में

और कहीं नहीं दिखा बसंत

वे ही सीरियल बहस

पंडितजी का समय चक्र

ष्षेयर बाजार के उतार चढ़ाव

ढूंढने लगती हूं बसंत

अपनी आलमारी में

मिलजाये कोई पीली साड़ी

कुछ देर ही सही मनालूं बसंत

कुछ देर ही सही मना लूं बसंत।


Sunday, 22 January 2023

bhakt aur bhakti

 ऽ अब कुछ ऐसा लगता है तीर्थस्थल तीर्थ कम पर्यटन क्षेत्र अधिक बन गये हैं। चलो वृन्दावन, मथुरा चार  धाम बालाजी आदि। संमवतः पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये मंदिर मूर्तियों  का विस्तार हो रहा है। भीड़ है कि हर जगह बढ़ रही है।लेकिन सबसे अधिक दुविधा दर्षन से नहीं भक्ति के ढोंग करने से है । 

अखबार में पढ़ा अपने बच्चों के नाम देवी देवताओं पर रखें ।रखे तो बहुत समय से नाम भगवान के नाम पर ही रखे जाते हैं यं तो अब ही हो गया है कि अब विदेषी नाम अधिक पसंद किये जाने लगे हैं भगवान् के नाम पुराना फैषन हो गया है हां यदि कोई अलग सा नाम होता है जैसे सान्वी लक्ष्मी जी का तो उसे पसंद कर लिया जाता हे नहीं तो पाष्चात्य नामों की ओर रुझान हो गया है ।वैसे भगवान् के नाम पर नाम रखने की कहने का तात्पर्य तो है कि हमारे मु।ह से इस बहाने भगवान् का नाम निकलेगा । लेकिन तब का क्या जब बच्चे को मारेंगे और अबे तबे करके बुलायेंगंे,- राम के बच्चे कहां मर गया आने में इतनी देर क्यों लगा दी। मुरारी तू मानेगा नहीं पिटेगा क्या ,षिव जरा ग्राहक को जूते दिखा ग्राहक को पहना ठीक से तब कहां होगी भावना।

अब नया फैषन आया हे कपड़ों  पर देवी देवताओं की तस्वीरों की छपाई करना उनके वस्त्र पहनना फिर उसे धोना कूटना फट जाये तो पोंछा बनाना कितनी भावनात्मक भगवान् की आराधना है ।पहले रामनामी दुप्पट्टा पहना जाता था अब भी पहना जाता है लेकिन पहले उस दुप्पट्टे को पहनने वाला स्वयं धोता और सुखाता था पहले जब इसका प्रचलन था तब वह जमुना या गंगा जल से धोया जाता था और ष्षौच आदि के समय उतार दिया जाता था उसकी पवित्रता का ध्यान रखा जाता था लेकिन अब भक्ति भी फैषन हो गई हैजिस प्रकार से भक्ति व्यवसाय हो गई है उसी प्रकार भक्त भी व्यावसायिक हो गया है। भक्ति तो तिरोहित हो गई है ।


Saturday, 21 January 2023

jab hum hans pade

 गर्मी के दिन थे ,बिजली थी कि बार बार धोखा दे जाती थी,पंखा बैठक का वैसे भी धीमा चलता था आजकल के से पंखे तो थे नहीं  किर्र किर्र करते चलते पर हवा तो लगती रहती थी पर बिजली चले जाने पर बड़ी मुष्किल होती थी ।

हम बच्चों को पंडितजी पढ़ाने आते थे । एक दिन बिजली चले जाने पर मां ने दुछत्ती पर गद्दा लगवा दिया। हवा ठंडी चल रही थी हमें काम देकर पंडित जी ऊंघने लगे। उन्होंने मसनद पर एक हाथ रखकर सिर टिकाया और आधी आधी टांग पसार ली । गदबदे ष्षरीर के पंडितजी की तोंद भी कुछ ज्यादा ही बड़ी थी ,जैसे घड़ा रखा हो , हवा के लिये उन्होंने फतुही ऊपर खिसका ली। हम बड़ी लगन से सवाल कर रहे थे कि धप की आवाज हुई और हड़बड़ा कर पंडितजी चीखे मरा रे। पास की छत से एक बंदर पता नहीं पंडितजी की टुंडी पर बने चंदन के गोल घेरे को क्या समझा कि उसे लेने कूद पड़ा सब चीखे तो छलांग लगा भाग गया, पंडितजी बंदर को नहीं देख पाये थे वो हकबकाये से देख रहे थे कि यह हुआ क्या था ।


Sunday, 15 January 2023

basant

 


     बसंॅत का उपहार


      बसॅंत तुम आये    

      ल्ेाकर मेरे लिये उपहार

      प्रकृति का शंृगार 

      टांॅग दिये झूमर,पहनाये गलहार,

      सूरज ने छीन लिये मुझ से आभूषण

तपती दोपहरी ले गई सुगंध 

किरणों ने पत्तों का पोंछ दिया रंग

हवाओं ने उड़ेल दिये धूल के गुबार 

बसंॅत तुम आये 

       लेकर मेरे लिये उपहार

      सावन ने पहनाई सतरंगी चूनर

      बादल ने छनकाये छनछनछन घूंॅधर

      इठलाई नाची पहन लिया घूमर

      तूफानों ने छीन ली मेरी अभिलाषा

      मौन हुई मेरी मीठी सी भाषा

      रणभेरी सी बज उठी घनघन घन टंकार

      अंग अंग बिखर गया घायल हुए गात

      बसंॅत तुम आये

      लेकर मेरे लिये उपहार ।


      शरद की ठंडी सी बयार ने 

मेरा मन मोहा था

लगाये थे सफेद बूटे मेरे आॅंचल में 

चांॅद की चांॅदनी का बिछाया था बिछौना

      रंग छिटका भी न पाई थी 

हेमंत हो उठा था निठुर 

चुराली मेरे पतों की नरमी

ढकने लगा चाँद तारों को 

      मेरी हरियाली से 

अपने ठंडे पड़ते हाथों को 

छिपा लिया था 

      छीनकर मेरी गरमी

      बसॅंत तुम आये 

      लेकर मेरे लिये उपहार


      शिशिर ने छीेना था जिसे

वर्फीली हवा ने बीना था जिसे 

नोंच कर मेरे पंख 

      भर ली थी अपनी झोली

अपनी सफेद चूनर 

      टाँग दी मेरे माथे पर 

बसंॅत तुम आये 

      लेकर मेरे लिये उपहार  

टांॅग दिये झूमर पहनाये गलहार 

कोयल के गीतों की मादक पुकार 

हौले से छूती तन मकरंदी बयार 

हरा हुआ धरती का मन 

      छाई फूलों की बहार 

तुमने मेरी सूनी डालों को भर दिया

गदरा गई पाकर तेरा साथ

टांॅग दिये झूमर पहनाये गलहार

      बसंॅत तुम आये 

      ल्ेाकर  मेरे लिये उपहार