बसंॅत का उपहार
बसॅंत तुम आये
ल्ेाकर मेरे लिये उपहार
प्रकृति का शंृगार
टांॅग दिये झूमर,पहनाये गलहार,
सूरज ने छीन लिये मुझ से आभूषण
तपती दोपहरी ले गई सुगंध
किरणों ने पत्तों का पोंछ दिया रंग
हवाओं ने उड़ेल दिये धूल के गुबार
बसंॅत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
सावन ने पहनाई सतरंगी चूनर
बादल ने छनकाये छनछनछन घूंॅधर
इठलाई नाची पहन लिया घूमर
तूफानों ने छीन ली मेरी अभिलाषा
मौन हुई मेरी मीठी सी भाषा
रणभेरी सी बज उठी घनघन घन टंकार
अंग अंग बिखर गया घायल हुए गात
बसंॅत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार ।
शरद की ठंडी सी बयार ने
मेरा मन मोहा था
लगाये थे सफेद बूटे मेरे आॅंचल में
चांॅद की चांॅदनी का बिछाया था बिछौना
रंग छिटका भी न पाई थी
हेमंत हो उठा था निठुर
चुराली मेरे पतों की नरमी
ढकने लगा चाँद तारों को
मेरी हरियाली से
अपने ठंडे पड़ते हाथों को
छिपा लिया था
छीनकर मेरी गरमी
बसॅंत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
शिशिर ने छीेना था जिसे
वर्फीली हवा ने बीना था जिसे
नोंच कर मेरे पंख
भर ली थी अपनी झोली
अपनी सफेद चूनर
टाँग दी मेरे माथे पर
बसंॅत तुम आये
लेकर मेरे लिये उपहार
टांॅग दिये झूमर पहनाये गलहार
कोयल के गीतों की मादक पुकार
हौले से छूती तन मकरंदी बयार
हरा हुआ धरती का मन
छाई फूलों की बहार
तुमने मेरी सूनी डालों को भर दिया
गदरा गई पाकर तेरा साथ
टांॅग दिये झूमर पहनाये गलहार
बसंॅत तुम आये
ल्ेाकर मेरे लिये उपहार
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