ऽ अब कुछ ऐसा लगता है तीर्थस्थल तीर्थ कम पर्यटन क्षेत्र अधिक बन गये हैं। चलो वृन्दावन, मथुरा चार धाम बालाजी आदि। संमवतः पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये मंदिर मूर्तियों का विस्तार हो रहा है। भीड़ है कि हर जगह बढ़ रही है।लेकिन सबसे अधिक दुविधा दर्षन से नहीं भक्ति के ढोंग करने से है ।
अखबार में पढ़ा अपने बच्चों के नाम देवी देवताओं पर रखें ।रखे तो बहुत समय से नाम भगवान के नाम पर ही रखे जाते हैं यं तो अब ही हो गया है कि अब विदेषी नाम अधिक पसंद किये जाने लगे हैं भगवान् के नाम पुराना फैषन हो गया है हां यदि कोई अलग सा नाम होता है जैसे सान्वी लक्ष्मी जी का तो उसे पसंद कर लिया जाता हे नहीं तो पाष्चात्य नामों की ओर रुझान हो गया है ।वैसे भगवान् के नाम पर नाम रखने की कहने का तात्पर्य तो है कि हमारे मु।ह से इस बहाने भगवान् का नाम निकलेगा । लेकिन तब का क्या जब बच्चे को मारेंगे और अबे तबे करके बुलायेंगंे,- राम के बच्चे कहां मर गया आने में इतनी देर क्यों लगा दी। मुरारी तू मानेगा नहीं पिटेगा क्या ,षिव जरा ग्राहक को जूते दिखा ग्राहक को पहना ठीक से तब कहां होगी भावना।
अब नया फैषन आया हे कपड़ों पर देवी देवताओं की तस्वीरों की छपाई करना उनके वस्त्र पहनना फिर उसे धोना कूटना फट जाये तो पोंछा बनाना कितनी भावनात्मक भगवान् की आराधना है ।पहले रामनामी दुप्पट्टा पहना जाता था अब भी पहना जाता है लेकिन पहले उस दुप्पट्टे को पहनने वाला स्वयं धोता और सुखाता था पहले जब इसका प्रचलन था तब वह जमुना या गंगा जल से धोया जाता था और ष्षौच आदि के समय उतार दिया जाता था उसकी पवित्रता का ध्यान रखा जाता था लेकिन अब भक्ति भी फैषन हो गई हैजिस प्रकार से भक्ति व्यवसाय हो गई है उसी प्रकार भक्त भी व्यावसायिक हो गया है। भक्ति तो तिरोहित हो गई है ।
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