Monday, 24 April 2023

कितने भक्त हैं हम

 एक लेख पढ़ रही थी जिसमें लेखक अपने अंदर आई उदासीनता को काम में व्यस्त कर समाप्त करता है और अपने स्टोर के एक कोने को वृन्दावन का सा वातावरण दे देता हे । कपड़ों पर कृष्ण की तरह तरह की तस्वीर छापता है बालकृष्ण राजाधिराज कृष्ण की गोपालक कृष्ण की ं मन प्रसन्न है उसके तन पर कृष्ण विराजमान हैं पर आगे मेरी उदासीनता बढ़ गई । उस वस्त्र को प्रातः नल के नीचे साबुन लगा कर रगड़ कर  कूट कर साफ करने की कल्पना से ही सिहर उठी कहां हम कृष्ण के स्वरूप को अचक हाथों से नहला धुला कर श्रंगार करते हैं सजाते हैं  वही कृष्ण  उतरे बस्त्रों के साथ गंधाते हुए कोने में पड़े हैं ।उनके ष्षरीर को तेजाब युक्त साबुन से रगड़ा जा रहा है कूटा जा रहा है उनको गर्म धूप में लटकाया जा रहा है फिर गर्म प्रैस उनके बदन पर घुमाई जा रही है । ऐसा प्रतिदिन कान्हा झेलते हैं। कैसी है यह हमारी आस्था। कृष्ण तन पर हैं मन में जरा भी नहीं । अगर मन पर होते तो क्या अपने इष्ट को इतना कष्ट देते।

 हम हिन्दू न धर्म पुजारी हैं न ईष्वर को मानने वाले हैं केवल अपने स्वार्थ के पुजारी हैं।कण कण में बसा भगवान् कितना कष्ट उठा रहा है भक्तों को प्रसन्न करने के लिये तभी तो विवाह के निमन्त्रण पत्र बिना गणेष या भगवान् की तस्वीर  के छपते नहीं हैं फिर वे निमन्त्रण पत्र कूड़ा उठाने के काम में आकर कूड़े के ढेर पर पड़े रहते हैं । कितने सच्चे भक्त हैं हम हमारी जय हो ।


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