Friday, 13 October 2023

diya

 किसी ने कहा है

दिये से मिटेगा न मन का अंधेरा

धरा को उठाओ गगन को झुकाओ

बहुत बार आई गई ये दिवाली

मगर तम जहां था वहीं पर टिका है।

कहने को तो दियों को जलाकर हम दिवाली उत्सव मना लेते हैं परंतु प्रेम  प्रकाष का प्रतीक दिया जलना तो दूर टिमटिमाता भी नहीं है। पूजा अर्चनाओं के लिये दिये जलाऐ जाते हैं पर मन के दीपक बुझे तो बुझे रह जाते हैं,आरती में भी मन प्रकाषित नहीं होता । दीपक प्रतीक है प्रकाष का,अंधकार को मिटाने को माटी का दिया काफी नहीं है मन को प्रकाषित करने का,

‘धरा को उठाओ गगन को झुकाओ धरती और आकाष की तरह मनुष्य मनुष्य में जो भेदभाव है वह मिटना चाहिये जो दबा है तिरस्कृत है उसे उठाया जाये उसे अपने पंख तोलने और पगों को नापने का हुनर दिया जाये गगन जितना ग्रहण करता हे उतना दान भी करना जानता है।


No comments:

Post a Comment