Sunday, 9 February 2025

gandhi ji aur ahinsa

 एक बार काका कालेलकर ने गांधीजी ने अहिंसा के बारे में  तरह तरह के सवाल पूछे। इस पर वे नाराज हो गये,और बोले ‘मान लिया कि तुम्हें अहिंसा मुझसे प्राप्त हुई ,लेकिन जब तुमने उसे अपना लिया,तो वह तुम्हारी हो गई। अब हर बात में,हर क्षेत्र में मुझसे पूछ पूछकर अहिंसा के स्वरूप का निर्णय मत करो ।’

अहिंसा को जीवन में उतारने का प्रयोग मैं अपनी सारी जिंदगी कर रहा हूं,और मुझे उसका साक्षात्कार एक ढंग से हो रहा है। जब तुम अपने जीवनानुभव के बल पर अहिंसा के निजी प्रयोग करोगे,तब तुम्हें शायद दूसरा ही दर्शन होगा । अहिंसा है तो एक सार्व भौम जीवन सिद्धान्त,लेकिन उसके रूप अनेक हो सकते हैं। और वे सब रूप अहिंसा के ही सच्चे स्वरूप माने जायेंगे। सवाल पूछकर मेरी अहिंसा विशेष स्पष्टता से समझ जाओगे ,और उसी का प्रचार करोगे ,तो वह तुम्हारी अहिंसा नहीं होगी। अहिंसा को तुमने पूर्ण हृदय से स्वीकार किया है। अब अपने ही ढंग से ,जीवन द्वारा अहिंसा की उपासना करो 


Saturday, 8 February 2025

Bhartiy dharm

 अमेरिकी पादरी रेवेरेन्ड आवार भारत में ईसाई धर्म के प्रचार के लिये आये थे। स्थान ,स्थान पर हिंदू धर्म की निंदा और ईसाई धर्म की प्रशंसा कर रहे थे। उनकी बातें सुनकर वहाँ उपस्थित सीताराम गोस्वामी ने उनसे कहा,‘ आप बिना जाने समझे हिंदू धर्म की निन्दा क्यों कर रहे हैं? आपको चाहिये हिंदू धर्म के संबंध में कहने से पहले उसे भलीभंाति समझ लें।’

पादरी आवार को भी लगाा कि बिना किसी धर्म को समझे उसकी निंदा करना ठीक नहीं। उनहोंने संस्कृत मराठी भाषा का अध्ययन किया। जैसे जैसे उनके आगे हिन्दू धर्म के अगाध ज्ञान के पन्ने खुलते गये वे हिन्दू धर्म के प्रति नत मस्तक होते गये। अंत में उनहोंने अमरीकन मिशन को पत्र लिखा‘ भारत मेंसैंकडों ईसाई हैं अर्थात् ईसा जैसे अनेकों संत हो गये हैं। अतः भारत में ईसाईधर्म के प्रचार का औचित्य नहीं है । भारत वर्ष सत्य धर्म का अगाध समुद्र है। अतः मैं मिशन से त्याग पत्र देता हूं। आज के बाद मैं ईसाई धर्म का प्रचार नहीं करूंगा। इतना ही नहीं अपनी आठ लाख की संपत्ति जो अमेरिका में है उसे मैं भारतीय इतिहास शोधक मण्डल को अर्पित करता हंू जिससे मण्डल द्वारा भारतीय सद्ग्रन्थों का अनुवाद होता रहे।


Wednesday, 29 January 2025

tatayya aur madhumakhi

 ततैया और मधुमक्खी

ततैया और मधुमक्खी दोनों मित्र संग संग रहते थे लेकिन। जहॉ ततैया का स्वभाव रूखा और कठोर था मधुमक्खी बहुत मधुर स्वभाव की थी वह ततैया को अधिकतर टोकती कि इतने बुरे ढंग से सबसे व्यवहार मत किया करो। ततैया कहता तुम नहीं जानती मधुमक्खी बहन उसकी कोई सुनता भी नहीं है।‘ होगा लेकिन जबरदस्ती किसी का खाना पीना छीनना  भी अच्छा नहीं लगता।’ एक दिन दोनांे एक गुलाब के पौधे पर बैठे थे। पौधा पराग से भरा था उन्हें प्यास लग रही थी । आस पास कहीं पानी नहीं था। उन्होंने वही पराग पी लिया । पराग बेहद मीठा ंठडा था । उसे पीकर उनमें अदभुत् शक्ति, जाग गई। अब तो उन्होने निश्चय कर लिया कि रोज पानी की जगह पराग ही पिया करेंगे। ततैया को जब भी प्यास लगती वह उड़ता किसी भी फूल पर जा बैठता और उसमंे डंक चुभो देता और पराग पी जाता। मधुमक्खी टुकुर टुकुर देखती रहती । वो न मॉंग पाती न डंक चुभा पाती । एक दिन वह चमेली के फूल से बोली,‘ बहन प्यास लगी हैं जरा सा पराग दोगी’ तो चमेली बोली,‘ ऊपर से पी सको तो लेलो अंदर  डंक मत चुभाना तुम्हारा साथी ततैया तो आता है, जब देखो लंबा सा डंक चुभा कर पराग ले जाता है। मधुमक्खी दौड़ी दौड़ी गई और दो खोखली पतली नलियंॉ ले आई । अपने मुंह में लगा कर पीने लगी। उस दिन उसे इतना रस मिला कि उसका पेट एकदम भर गया । उसने ततैये से कहा कि जब रात को फूल बंद हो जाते है। तब रस नहीं मिलता ।  दोपहर में भी फूलों का रस सूख जाता हैं उसने छोटे छोटे घडे़ बनाने शुरू कर दिये और उनमें रस भर देती। अपने संगी साथी भी उसी काम में लगा लिये क्योकि फूल कहते कि रस लेलो नहीं तो बेकार जायेगा। ततैया ने भी घड़े बनाने शुरू किये लेकिन उसके डंक को देखते तो फूल डर जाते और उनका रस सूख जाता। उसके  कटोरे खाली ही रह जाते जबकि मधुमक्खी के हजारों घड़े भर जाते हैं।


Monday, 27 January 2025

Jeevan ka aarambh

 जीवन  का आरम्भ


यद्यपि विज्ञान ने इतनी तरक्की की है कि इंसान चांद पर जा पहुँचा है, परख नली शिशु उत्पन्न हो रहे हैं, अर्थात् प्रकृति के कार्यों पर, उसकी रचना पर, मानव अधिकार करना चाहता है। प्रारम्भ में पृथ्वी आग का गोला थी। जीवन उसमें असंभव था,लेकिन लाखों साल में जब ठंडी हुई उस पर पर्त दर पर्त चढ़ती गई, फिर भीषण वर्षा ने चारों और पानी ही पानी कर दिया और वातावरण में कार्बनडाई आक्साइड और अमोनिया भर गई। बिजली गिरने से सूर्य की प्रखर किरणांे से अनेकों रासायनिक परिवर्तन हुए तो छोटे छोटे जीवणुओं की उत्पत्ति हुई। लेकिन फिर भी पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ कैसे हुआ नहीं जान पाया है ? जीवन का आरम्भ जैली के से नन्हे कण से हुआ या किसी और तरह से यह केवल अनुमान मात्र है।

    स्वयं हमारा षरीर छोटे छोटे करोड़़ांे जीवाणुओं से मिलकर बना है। कालचक्र से ये जीवाणु दो प्रकार के बन गये। काई वैक्टीरिया एक तरफ और दूसरी तरफ प्रोटोजा। प्रथम प्रकार से वनस्पति का निर्माण हुआ, दूसरे प्रकार से जीव जन्तु का। इस प्रकार से हम कह सकते हैं जीव जन्तुओं का पिता प्रोटोजा है, जिसका जन्म समुद्र में हुआ। सर्वप्रथम काई ने फोटो सिन्थेसिस षैली के आधार पर आक्सीजन का निर्माण आरम्भ किया ,लेकिन उसके भी कई लाख साल, अब से करीब बारह अरब वर्ष पहले पृथ्वी पर आया। 

जीवन का प्रारम्भ समुद्र में हुआ ,लेकिन पृथ्वी के स्थान पर उभरने से जमीन का और पहाड़ों का निर्माण हुआ और ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगी। पृथ्वी पर सर्वप्रथम जिस प्राणी का आविर्भाव हुआ वह था, एम्फीबियन जो पानी और जमीन दोनों पर जीवित रह सकता था। कभी एक बार यह जीवाणु अधिक विकसित फेफेड़ों के साथ उत्पन्न हुआ और सूखी जमीन पर जीवित रहने में सफल हुआ। धीरे धीरे उनकी मात्रा बढ़ी, साथ ही ऊँचाई बढ़ती गई। ये जन्तु करीब 70,000,000 वर्ष पहले उत्पन्न हुए। ये बहुत भयानक और षक्तिषाली जन्तु ब्रोन्टोसोरस कहलाया है। चमड़ा, माँस और हड्डियों का विषाल पिंड, करीब 25 मीटर लम्बा, यह जीव अपने अगले पैरों पर बड़ी मुष्किल से खड़ा हो पाता था। विषाल षरीर के मुकाबले दिमाग बहुत छोटा और अक्ल बहुत कम होती थी। कुछ जन्तु नीचे नीचे आकाष में उड़ने लगे थे, वे पक्षियों के पूर्वज पैट्रोसॉरस थे। 

कई लाख साल बाद इतने विषाल पषुओं के बीच स्तन पायी जीव उत्पन्न हुआ ,यद्यपि षरीर अधिक बड़ा नहीं था लेकिन दिमाग बड़ा था और इसलिये वह विषाल जीवों के बीच अपने को बचा सका। 

फिर हिमयुग आया जिसमें तापमान 0 डिग्री से भी चालीस पचास डिग्री नीचे चला गया यह उन विषाल पषुओं के लिये विनाषकारी रहा लेकिन स्तनपायी जीव और पक्षियों के लिये विषेष नुकसानदायी नहीं रहा क्योंकि उनकी रगों में गर्म ख्ूान था। प्रकृति ने उनका षरीर बालों ओर पंखों से ढक दिया था, जबकि विषाल षरीर और रेंगने वाले जीव ठन्डे रक्त वाले थे, साथ ही सादा चमड़ी से अपने को जीवित नहीं रख पाये और समाप्त हो गये। जो बच गये थे वे थे मगर ,कछुआ, साँप और छिपकलियाँ। हिम युग कई साल तक चला। बीच बीच में कुछ वातावरण गर्म होता उस समय स्तनपायी जीवों और पक्षियों की प्रजातियाँ बढ़ती गईं। एक प्रकार का दो मीटर लम्बा भेड़िया, नुकीले दाँतों वाला षेर, पाँच मीटर लम्बे डैने वाले 

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गिद्ध । अन्य नई प्रजातियां उत्पन्न हुईं वे थे भैसें, बैल ,घोड़े और मैमथ, (हाथी का पूर्वज) गंेडा, हिप्पो, हाथी , ये बच गये। नई कुत्ते बिल्लियों की जातियाँ उत्पन्न हुईं। इस प्रकार आधी से अधिक पषु पक्षियों की जाति 30,000,000 साल पहले मौजूद थीे। 

हिम युग के समय ही जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण उत्पत्ति हुई थी वे थे आदिमानव, ये कुछ कुछ वनमानुष जैसे थे। अफ्रीका के मैदानों मंे घूमते थे तथा सीधे दो पैरों पर चलते थे। ये अपने हाथों का उपयोग करना जानते थे। ये करीब 101, 120 सेन्टीमीटर लम्बे होते थे। पहला आदि मानव करीब 5000,000 साल पहले प्रगट हुआ, लेकिन आधुनिक मानव 35,000 साल पहले बन पाया। 

मनुष्य का प्रादुर्भाव कैसे हुआ इसके विषय में वैज्ञानिक कुछ भी कहें या चार्ल्स डार्विन कि मनुष्य पहले बंदर था, परंतु मनुष्य की उत्पत्ति विष्व के लिये एक उपलब्धि है। संसार की हलचलों का केन्द्रबिन्दु, ईष्वर की कल्पना की पूर्णता। जिसे हम कल्पना के अलग अलग रूपों

में पाते हैं।

ग्रीक मानते हैं मनुष्य की उत्पत्ति देवों के साथ साथ हुई । देवों या उनकी उत्पत्ति मिट्टी से हुई। उनके अनुसार मानव का निर्माण प्रामिथियस ने मिट्टी पानी से किया। बाइबिल में मनुष्य की उत्पत्ति दो प्रकार से दी है, ब्रह्मांड के पुनर्निर्माण के समय हुई उथल पुथल से । दूसरी मान्यता है कि मनुष्य का निर्माण मिट्टी से हुआ । पहले जीवन कैसा था, वैसा ही था जैसा आज है या किसी अन्य रूप में था। बहुत से प्रश्न उठ खड़े होते हैं, जिनमें से कुछ के उत्तर प्राणियों के प्राप्त जीवाश्मों से ज्ञात होता है। सबसे पुराना जीवाश्म पचास करोड़ वर्ष पुराना है। ये जीवाश्म पत्थर पर पड़ी छाप, हड्डियाँ या बर्फ में दबे कंकालों से बने हैं। पत्थर पर या अन्दर जमीन पर जीव की अनुकृति छप जाती है और जीव मिट्टी बन जाता है। इसी प्रकार कहीं-कहीं ऐसे विशाल प्राणियों के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं या बिखरे कंकाल प्राप्त हुए हैं जिन्हें जोड़ने से विचित्र प्राणियों के आस्तित्व  के विषय में आधार बना।

अधिकतर जीवाश्म बलुआ मिट्टी में पाये जाते हैं। बालू एवं अन्य पदार्थ जब एक जगह एकत्रित होकर कठोर हो जाते हैं तब उसके अन्दर पड़ा पदार्थ भी उसी अवस्था में पत्थर बन जाता है। इसी प्रकार जब बालू मिट्टी पर पड़े जीव पर मिट्टी पड़ जाती है और कठोर हो जाती है तब जीव का जीवाश्म प्राप्त हो जाता है।समुद्री जीव मरकर समुद्र में डूब जाता है। पृथ्वी पर होती उथल-पुथल में कभी समुद्र का हिस्सा ऊपर उठ जाता है और उसमें पडे,़ पड़े मृत पदार्थ जीवाश्म के रूप में ऊपर आ जाते हैं।

कुछ जीवाश्म जीव के ही पत्थर बन जाने पर प्राप्त होते हैं। पत्थर पर पड़े मृत जीव पर पानी पड़ पड़कर उसका मांस मज्जा बह जाता है और तरह-तरह के रासायनिक पदार्थ उस पर पड़-पड़कर उसकी आकृति कठोर हो जाती है। कभी-कभी रासायनिक पदार्थ एकत्रित नहीं होते, लेकिन खाली ढांचे का आकार मात्र रह जाता है। इससे जीव की आकृति ज्ञात हो जाती है। कभी-कभी पूरा जीव बर्फ में हजारों साल बाद भी दबा मिल जाता है।

सबसे पुराना जीवाश्म पचास करोड़ वर्ष पुराना है। ये जीव बिना मेरुदंड वाले थे। रीढ़ वाले जीव बाद में धीरे-धीरे बने। इनका विकास भी इसी क्रम में हुआ रीढ़ बनने के साथ इनमें पंख, डैने आदि विकसित हुए और प्रजातियाँ बनीं। मछलियों के शरीर में फेफड़े विकसित हुए और कई करोड़ वर्ष बाद, प्रलय होने के बाद मछलियाँ सृष्टिकर्त्ता बनीं और विभिन्न 

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जलचर, उभयचर की उत्पत्ति हुई। ये जल और थल दोनों पर समय बिताते थे। दस करोड़ वर्षों तक पृथ्वी पर राज्य करने के बाद यह जीवन भी समाप्त हुआ और डायनोसोर का जमाना आया। डायनोसोर का अर्थ है भयानक छिपकली। लगभग बीस करोड़ वर्ष तक इनका साम्राज्य रहा और ये पृथ्वी को हिलाते कंपाते रहे। ये सरीसृप प्रजाति के थे।

रीढ़ की हड्डी वाले जानवरों में मछली, चिड़िया और स्तनपायी जानवर आते हैं और बिना रीढ़ वालों में रंेगने वाले प्राणी। ये जीव रीढ़ की हड्डी रहित अवश्य थे लेकिन आजकल के रीढ़ की हड्डी रहित जीवों की भांति मात्र सरकने वाले जीव नहीं थे। इनका पीठ का हिस्सा आम चौपायों की तरह धरती से ऊपर उठा रहता था।

 पृथ्वी पर नभ, जल और थल पर अलग-अलग रूपों में विकसित होकर करोड़ों वर्ष तक राज्य करते रहे, फिर एकाएक विलुप्त हो गये और फिर हिमयुग आया और सृष्टि संहार हुआ। आस्टिन टैक्सस विष्वविद्यालय के वैज्ञानिकांे ने अध्ययन के बाद बताया है मैक्सिको के निकट 81 किलो मीटर बड़े आकार की उल्का पृथ्वी से टकराई जिसकी ताकत 1000 करोड़ बमों के बराबर थी। इसकी वजह से हजारों किमी क्षेत्र में आग लग गई साथ ही सुनामी पैदा हुई। पृथ्वी पर मौजूद 75 प्रतिषत जीव खत्म हो गये थे । इस टकराव के कारण सूर्य की किरणें लंबे समय के लिये पृथ्वी पर आने से रुक गईं, इससे तापमान में भारी गिरावट आई। डायनोसोर जैसे बड़े जीव खत्म हो गये ।

एक अरब वर्ष तक पृथ्वी पर बर्फ की चादर ढकी रही। मौसम ने रंग बदला और जीवन विकसित हुआ और इस बार स्तनपायी जीवों का विकास हुआ। मनुष्य इन्हीं का विकसित रूप है ,लेकिन करोड़ों वर्ष पुरानी पृथ्वी पर जीव जन्तुओं का ही साम्राज्य रहा है। मनुष्य तो केवल चालीस हजार साल पुराना है।










Friday, 24 January 2025

kabhi 26 jqnuary Tyohar Tha

 26 जनवरी  स्वाधीनता पर्व


   यद्यपि आजादी 1947 में मिली और स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त है। 26 जनवरी 1950 से गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाना प्रारम्भ हुआ,वह भी केवल एक साधारण मार्च पास्ट से  ,लेकिन यह अब भारत का सर्वाधिक गौरवपूर्ण दिवस बन गया है। भारत में तीन दिवस राष्ट्रीय घोषित हैं, गणतन्त्र दिवस, स्वाधीनता दिवस, व 2 अक्तूबर। हमारा संविधान इसी दिन पारित हुआ था।

,26 जनवरी जब राष्ट्रीय पर्व है तो उसे कैसे नहीं मनाया जाता।आज की पीढ़ी ने तो आजादी की जंग देखी नहीं उन्होंने परतन्त्रता भोगी नहीं तो कैसे उन्हें उसके महत्व का पता लगेगा किताबी बात और भोगे यथार्थ में उतना ही अन्तर है जितना अनन्त आकाश और धरती में। 

अब उससे जुड़े समारोह में भारत की सैन्य षक्ति, सामाजिक विकास तथा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्षित करने का माध्यम है। 1952 से आम चुनाव की घोषणा इसी दिन से हुई और 1952 में प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डा॰राजेन्द्रप्रसाद ने कार्यभार संभाला ।

गणतन्त्र दिवस की परेड प्रारम्भ होने से पहले प्रधानमंत्री षहीदस्मारक अमर जवान ज्योति पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। यह स्मारक 1962 चीन के आक्रमण के बाद ष्षहीदों की स्मृति में बनाया गया। श्रद्धा सुमन अर्पित करने ठीक नौ बजे प्रधानमंत्री पहुंचते हैं तब लतामंगेषकर द्वारा प्रदीप द्वारा सुरबद्ध गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ बजाया जाता है जिसे सुनकर पंडित नेहरू की आंख में आंसू आ गये थे । सेना के तीनों अंग अपने प्रथम नागरिक, राष्ट्राघ्यक्ष सर्वोच्च सेनापति, राष्ट्रपति को और झंडे को सलामी देते हुए अपनी बटालियन के साथ मार्च पास्ट करते हुए निकलते हैं। वायुसेना थलसेना और नौसेना के साथ अर्द्धबल  सैनिक ,एन सी सी कैडेट स्कूली बच्चे अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्रपति के घुड़सवार अंगरक्षक जो उनके साथ रहते हैं वे बेहतरीन फौजी होते हैं यह स्वतंत्र इकाई होती है ।

 विदेषी राष्ट्राध्यक्ष इसके मुख्य अतिथि होते हैं और 21 तोपांे की सलामी दी जाती है । सभी राज्य अपने राज्य की विषेष्ताओं का प्रदर्षन झांकियों के माध्यम से करते हैं। सेना के तीनों अंग अपनी षक्ति का प्र्रदर्षन झांकियों के माध्यम से करते हैं । हाथी पर बहादुर बच्चे भी गुजरते हैं जिन्हें राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में सम्मानित किया जाताहै। हवाई जहाज से तरह तरह के करतब दिखाये जाते हैं फूलों की बारिष, व कबूतर उड़ाने के साथ परेड समप्त हो जाती है।।

गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या पर लालकिले पर एक बृहद कवि सम्मेलन का आयोजन होता है ।

27 जनवरी को विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी होती है । षाम के समय माारतीय सषस्त्र सेनाओं के बैंड संगीतमय प्रस्तुतियां देते हैं। 60 मिनट के इस कार्यक्रम में 1000 सैन्य संगीतकार हिस्सा लेते हैं। सारे जहां से अच्छा गीत के साथ समापन होजाता है। सभी सरकारी इमारतों पर बिजली की रोषनी की जाती है । राष्ट्रपति भवन दुत्हन की तरह सजाया जाता है

यद्यपि हमने भी पराधीनता के दिन बचपन में जिये जो जानता ही नही था कि क्या आजादी क्या गुलामी। उसकी दुनिया माँ की गोद तक सीमित थी लेकिन नई नई पाई आजादी की खुशियों को जिया था। वो उत्साह देखा है 15 अगस्त, छब्बीस जनवरी का स्वागत भी दीवाली की तरह होता तो 30 जनवरी को गम में डूबे भारत को भी देखा ठीक 11 बजे भोपू बज उठता और पूरा शहर स्थिर हो जाता उसकी आंख नीची होती और श्रद्धा से हाथ जोडे़ सब स्वतः खड़े हो जाते । एक मिनट के लिये शहर स्थिर हो जाता। बस, रिक्शे, तांगे सब रुक जाते थे अब 30 जनवरी को क्या है यह भी बताना पड़ता है। कुछ दिन बाद कार्यालयों में टंगे चित्र जो साल में एक बार पुछ जाते हैं घूल के पीछे खो जायेंगे, और गांधी कौन ? तब कौन से गांधी बच्चों को याद आयेेंगे नही कहा जा सकता।

25 जनवरी से शहर में चहल पहल शुरू हो जाती। पान की दुकान और सारे बाजार में आठ बजे रेडियो पर प्रसारित होने वाले राष्ट्रपति के भाषण को सुनने के लिये ठठ लग जाते थे। तब तक ट्रॉजिस्टर नहीं आया था हाँ रेडियो अवश्य थे वे भी हर घर में नहीं । रेडियो का आकार भी आज के टी वी जैसा बड़ा लंबा ऊँचा था । बड़े ध्यान से भाषण सुना जाता दम साध कर उस समय बाजार में चहल पहल रहती पर कान भाषण पर रहते । पूरे बाजार में पतली कागज की पन्नी की रंग बिरंगी या तीन रंग की तिकोनी झंडिया क्रिस क्रास ढंग से लगाई जातीं यह काम शाम से ही प्रारम्भ हो जाता। जगह जगह ग्रामोफोन लग जाते पहले  ग्रामोफोन पूरे दस लीटर की बाल्टी के से आकार के होते थे फिर छोटे बनने लगे थे।

प्रातःकाल भोर की बेला से ही देश भक्ति के गाने प्रारम्भ हो जाते , 6 बजे से वहाँ प्रभात फेरी निकलती इसमें शहर के सभी नेता व उत्साही कार्यकर्त्ता शहर के गणमान्य व्यक्ति नारे लगाते व देश भक्ति के गीत गाते निकलते। उसके बाद सभी स्कूलों के छात्रों की दो दो की पंक्तिबद्ध कतार निकलती हर स्कूल का बैनर दो स्काउट पकड़े चलते थे। हर स्कूल में स्काउट को प्रशिक्षण दिया जाता उनकी यूनीफॉर्म खाकी रंग की पैन्ट शर्ट व कैप रहती। लैफ्ट राइट लैफ्ट राइट करते स्काउट जाते दो दो की पंक्ति में ही सभी स्कूलों के बच्चे वंदे मातरम्, भारत माता की जय, करते या गीत गाते निकलते सभी स्कूल वहाँ से बड़े  मैदान में एकत्रित होते और वहाँ सम्मलित रूप से झंडारोहण किया जाता। झंडारोहण ठीक आठ बजे होता । झंडारोहण में जन गन मन के बाद ही वंदे मातरम् गाया जाता । उस समय छात्र छात्राऐं सांस्कृतिक कार्यक्रम विशेष रूप से एक्शन सोंग प्रस्तुत करते । 26 जनवरी का महत्व बताया जाता बूंदी तो मिलती ही थी। उसके पश्चात् सभी छात्र-छात्राएँ अपने अपने स्कूल में चले जाते जहाँ दोपहर तक खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रम होते, दूसरे दिन का अर्थात् 27 जनवरी का बच्चों को अवकाश दिया जाता। आवश्यक नहीं था सभी छात्र छात्राएँ प्रभातफेरी में जाये जो नहीं जाना चाहते थे उन्हें सीधे स्कूल जाना होता था पर काफी बच्चे हर स्कूल से रहते थे।

हर चौराहे पर हर गली के नाके पर ग्रामोफोन लगा रहता जहाँ पर गाने बजते रहते उस समय का सबसे अधिक प्रिय और चलने वाला गाना था ‘ये देश है वीर जवानों का’ अलबेलों का मस्तानो का’ यह गाना आज भी बरात के सामने नाचने वालों का भी उतना ही प्रिय है सबसे अच्छा पैर इसी धुन पर उठता है। ‘ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन’ जहॉ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा’ गूंजने लगते थे ।

हर व्यक्ति के कुर्ते, शर्ट, ब्लाउज आदि पर तिरंगा झंडा लगा रहता था। हर दुकान पर घर पर प्रातः काल ही झंडा लगा दिया जाता था तब न तो झंडा लगाना प्रतिबंधित था न उसका आकार प्रतिबंधित था हमारे घर पर पिताजी प्रातः काल ही 21 फुट लंबा और सात फुट चौड़ा तिरंगा झंडा लोहे की रोड से बंधवाते थे। दुछत्ती पर बंधा वह झंडा हवा के साथ शान से लहराता और बाजार में दूर से दिखाई देता था। फिर प्रारम्भ होते थे हर दल के जुलूस कॉग्रेस, जनसंघ, सोशलपार्टी और भी कई दल। पर दल बहुत नहीं थे अब तो हर गली मुहल्ले का अपना दल है।

 शाम के समय झांकियाँ निकलती थीं स्कूलों की, कार्यालय व विभागों की। व्यक्तिगत लोगों की झांकियाँ निकलती थी।

 अधिकांश झांकियाँ देश भक्ति पर आधारित होती थीं। झांकियो के साथ उस विभाग के व्यक्ति होते थे। उसके बाद खुली बग्धी में गणमान्य व्यक्ति निकलते थे प्रारम्भ हाथी से होता और अन्त 4 घोड़ांे पर बैठे सिपाहियों से। बहुत से स्कूल शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम करते थे। खाने में भी उस दिन विशेष रूप से खीर पूरी बनाई जाती और पूरी भी तीन रंग की हरी पीली और सफेद। खीर में केसर इतनी रहती कि उसमें काफी पीला पन आ जाता था।

और यही हाल करीब करीब हर घर में होता था।

      अब तो स्कूलों में भी 26 जनवरी के नाम पर सिर्फ झंडारोहण होता है और धूप में बैठे बच्चों को केला, फ्रूटी या बिस्कुट दे दिये जाते है हो गई 26 जनवरी। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस क्यों है अलग अलग यह तो कतई नहीं जानते बल्कि एक बच्चे ने बड़ा ही मजेदार उत्तर दिया उसने बताया 15 अगस्त को पाकिस्तान बना और 26 जनवरी को हिन्दुस्तान। न उत्साह स्कूल जाने का बच्चों को क्या करना है कुछ होता तो है नहीं ’आजादी का अर्थ ही उनकी निगाह में अलग है वे निजात चाहते हैं भारतीय संस्कृति से ,अपने ऊपर लगे  प्रतिबंधों से ।



Thursday, 23 January 2025

Shanti peace

 इस साल को सफल बनाने के लिए - सोचो कि मैं  दूसरों को किस तरह प्रोत्साहन और प्रेरणा दूं- प्रेरणा और प्रोत्साहन पाने का यह पहला सिद्धान्त है ।

आज को संभालो-कल हुई भूलों को भुला दो ,कल आने वाली चिंताओं का इंतजार न करो।

सबसे  वफादारी की आशा करो,सबके साथ वफादारी करो। भगवान् ने हर मनुश्य को बल दिया है । उस बल को बढ़ाओ- अपनी कमजोरियों से ऊपर उठने में मदद मिलेगी।

अपने से ऊँची चीजों,ऊचे आदमियों को देखो- पाओगे कि पहले तुम अधिक कार्य और सेवा करने पा रहे हो।

व्यक्तियों से ,वस्तुओं और योजनाओं से अच्छाई की आशा करो 

हर चीज से शांति की अपेक्षा रखो - शांति पाओगे।

कोई भी निर्णय करते समय प्रभु की इच्छा को समझने की कोशिश करो- जरूर वह तुम्हें राह दिखायेगा।

नेपोलियन ने मिस्त्र पर आक्रमण किया तो वह अनेक विद्वानों को प्राचीन सभ्यता सम्पन्न देश में शोधकार्य के लिये अपने साथ ले गया । अभियान के समय जब शत्रु प्रत्याक्रमण करते तब माल से लदे गधों और पांडित्य से लदे विद्वानों की रक्षा करनी पड़ती। जब शत्रु चारों ओर से धावा करते तब नेपोलिसन आज्ञा देता‘,घेरा बनाओ ,गधों और पंडितों को बीच में रखो ।’

ये सेवंटस अर्थात पंडित देश प्रेमी ,साहसी और कष्टसहिष्णु थे । ये समाज सेवा का ही विचार रखते थे,फिर भी आत्मरक्षा के लिएये सैनिकों के आश्रित थे। गधों के साथ उनकी भी रक्षा करनी पड़ती थी । बुद्धिजीवियों,पंडितों और विद्वानों को ऐसी आश्रित दशा छोड़नी चाहिए।-महात्मा गांधी


Subhash chand bose

 सुभाषचंन्द्र बोस


भारत माता को आजादी देने के लिये अनेकों वीर पूरी निष्ठा कर्मठता  से उठ खडे़ हुए थे। उनमें जिस नाम को भूल नहीं पाते हैं वह है नेताजी सुभाष चंद बोस का नाम विख्यात स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद बोस का जन्म 23 जनवरी को बर्मा में हुआ था। सुभाष चंद बोस के पिता श्री जानकी नाथ बोस पूर्वी बंगाल के चौबीस परगना कोवलिया ग्राम के रहने वाले थे। लेकिन कटक मंे वकालत करने के लिये रहने आ गये। माता प्रभा देवी धार्मिक विचारों वाली तो थीं लेकिन अन्धवश्विास एवं धर्म कार्यों में विश्वास नहीं था वे राम कृष्णपरमहंस की परम भक्त थी तथा स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित थीं। मॉं के विचारों का प्रभाव बालक सुभाष पर पड़ा।

बालक सुभाष की शिक्षा पॉच वर्ष की उम्र में प्रारम्भ इुई। ग्यारह वर्ष की उम्र में रेवेनशा कालेजियट स्कूल में प्रवेश लिया। स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित किशोर सुभाष ने सत्य की खोज में घर छोड़ दिया । स्थान स्थान पर भ्रमण किया कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिल रही थी जैसे प्यासे का मीठे  जल की तलाश थी वे ज्ञान की खोज मंे घूमते हुए मथुरा पहॅंुचे और वहीं स्वामी परमानंद दास से मिले उनको विवेकानन्द के विचारों से प्रभावित देख परमानन्द दास ने उन्हे बनारस के राम कृष्ण मिशन के स्वामी ब्रह्मानंद से मिलने के लिये भेज दिया लेकिन स्वामी ब्रह्मानंद सुभाष की किशोर उम्र देखकर स्वामी ब्रहम्मानंद ने उन्हें सलाह दी कि पहले घर परिवार की जिम्मेदारी पूरी करें अपनी शिक्षा पूरी करें सन्यास इतनी छोटी उम्र में नहीं लें।

बचपन में ही सुभाष बहुत दयालु थे । वे किसी का दुःख देख नहीं पाते थे । उनकेेेेे घर के सामने एक बूढी भिखारिन थी उसे भीख मांगकर जीवन यापन करते देख उन्हें ऐसा लगता वे इतना अच्छा जीवन जी रहे हैं और इतनी बूढ़ी भिखारन कितने कष्ट में है। सुभाष का स्कूल तीन किलो मीटर दूर था वे बस से जाया करते थे वे भिखारन को देने के लिये बस का किराया बचाकर भिखारन को दे देते। उनके स्कूल के पास भी एक बुढ़िया रहती थी उसको भी वे खना खिला देते थे वह बीमार हुई तो सुभाष दस दिन तक उसकी सेवा करते रहे जब तक वह ठीक नहीं हो गई ।

नेताजी सुभाष चंद बोस एक बार रेल यात्रा कर रहे थे उस डिब्बे में एक अंग्रेज महिला और सुभाष बाबू के अलावा और कोई नहीं था । सुभाष बाबू किताब पढ़ने में तललीन थे कि अचानक उस महिला ने सुभाष बाबू से कहा,‘ अपने पासे  का सारा रुपया पैसा और कीमती सामान मेरे हवाले कर दो नहीं तो मैं ष्षोर मचाकर अगले स्टेषन पर तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगी कि तुम मेरे साथ छेड़खानी कर रहे थे।’

सुभाषबाबू ने बहरेपन का अभिनय करते हुए इषारे से कहा,‘मैडम आपने जो कुछ कहा मैं सुन नहीं सका क्योंकि मैं जन्म से बहरा हूं बेहतर होगा कि जो कुछ आप कहना चाहती हैं उसे आप एक कागज पर लिख दें। महिला ने फौरन अपना मंतव्य लिखकर नोटबुक सुभाष बाबू को थमा दी। नोटबुक जेब के हवाले करते हुए सुभाषबाबू ने उस अंग्रेज महिला से कहा,‘ अब आप ष्षौक से ष्षोर मचा सकती हैं ।’ अंग्रेज महिला को अब जाकर समझ आया कि वह खुद के खिलाफ सबूत लिखित रूप में दे चुकी है,बेचारी बड़ी ष्षर्मिंदा हुई और क्षमा मांगने लगी 


Tuesday, 21 January 2025

Newsletter 2 upvaas

 

1. "हमारी दादी-नानी का ज्ञान अब विज्ञान ने भी माना..."

2. "उपवास से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ जानिए..."

3. " परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम..."

नमस्कार,

हमारी दादी-नानी हमेशा कहा करती थीं "पेट ही परमात्मा है", और आज आधुनिक विज्ञान ने साबित कर

दिया कि वे कितनी सही थीं! हमारी भारतीय संस्कृति में करवा चौथ, नवरात्रि और एकादशी जैसे व्रतों के

माध्यम से उपवास की प्राचीन परंपरा गहराई से बसी हुई है, और अब नवीनतम शोध इसकी पुष्टि कर रहे हैं।

जैसा कि हमारे शास्त्र कहते हैं "अन्नमय कोश से ब्रह्मांड तक", वैज्ञानिक भी पा रहे हैं कि उपवास केवल

आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम नहीं है - यह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी एक शक्तिशाली उपाय है।

मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ाने से लेकर कोशिकाओं की मरम्मत को बढ़ावा देने तक, इसके लाभ

उल्लेखनीय हैं।

 

आज के इस युग में, जब फ़ूड डिलीवरी और रात के समय खाना-पीना आम बात हो गई है, हमारी पारंपरिक

उपवास की विद्या एक सुंदर संतुलन प्रदान करती है। जैसा कि कहावत है, "जब जागो तब सवेरा"। चाहे वह

इंटरमिटेंट फास्टिंग हो या पारंपरिक व्रत, भोजन से प्रत्येक सचेत विराम शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक

विकास दोनों के लिए अवसर प्रदान करता है।

याद रखें, हमारे बुजुर्गों ने हमें सिखाया था: "संयम में शक्ति है"। आज की प्रचुरता के इस युग में, यह प्राचीन प्रथा

हमें कृतज्ञता, अनुशासन और जागरूकता विकसित करने में मदद करती है।

आइए इस कालातीत ज्ञान का सम्मान करें जो हमारी सांस्कृतिक विरासत को आधुनिक वैज्ञानिक समझ से

जोड़ता है। आखिरकार, जैसा कि हम कहते हैं, "पुराना सोना है"!

Tuesday, 14 January 2025

makar sankrati

 मकर संक्रांति




‘माघ मकरगत रवि जब होई ,तीरथ पतिहि आव सब कोई ’... तुलसीदास 

जब सूर्य मकर राषि में, प्रवेष करता है तो ब्रह्माण्ड के सभी देवी देवता तीर्थकर प्रयाग पर एकत्रित होते है।मकर संक्रांति का पर्व आध्यातिमक और वैज्ञानिक दोनों ही दृ िटयों से महत्वपूर्ण हैों

मकर संक्राति सूर्य उपासना का दिन है सूर्य पृथ्वी का आधार है पृथ्वी पर जीवन सूर्य से ही है इसीलिये उसे सविता भी कहते हैं। जीवन का आधार ज्ञान का आधार सम्पूर्ण विष्व को प्रकाषित करने वाले तेजपुंज अर्थात् ज्ञान का प्रकाष फैलाने वाला,पृथ्वी पर जीवन के साथ ही सूर्याेपासना प्रारम्भ हुई। वैदिक काल से जिनकी उपासना की जाती है क्योंकि सम्पूर्ण सौर मंडल सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करता है।और परिक्रमा पूरी होने पर  वह दिशा बदल कर उत्तर की ओर बढ़ता हैसूर्य स्वयं ही बदलाव का अधिपति है इसी को उत्तरायण की स्थिति कहते हैं। भारतीय वर्ष की स्थिति सूर्य से ही चलती है । इसी दिन से हमारी धरती एक नये वर्श में नयी गति में प्रवेष करता है ।साथ ही सूर्य यात्रा पथ भी बदलता है


हिन्दू धर्म में वर्ष को दो भागों में बांटा है उत्तरायण और दक्षिणायन इसी प्रकार माह को भी दो भागों में बांटा है शुक्लपक्ष और कृष्ण पक्ष

‘तमसो मा ज्योर्तिगमय ’हे सूर्यदेव हमे अंधकार से प्रकाष की ओर ले चलो। सूर्य महर्षि कष्यप व अदिति के पुत्र है उनकी दो पत्नियों संज्ञा व छाया है। उनके छः संतान है। सूर्य हर माह एक राषि पर भ्रमण करते हैं अर्थात् 12 महिने और बारह राषियाँ इस प्रकार हर माह एक संक्राति होती है। जब सूर्य मकर राषि मंे प्रवेष करता है तब मकर संक्राति होती है और इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। बारह राषियों में छः राषियों में सूर्य उत्तरायण होते है ये है मकर से मिथुन तक ओर कर्क से धनु राषि तक सूर्य दक्षिणायन होते है। ये पृथ्वी के छः माह देवताओं के रात और दिन हैं । उत्तरायण के छः माह देवताओं का एक दिन और दक्षिणायन के छः माह देवताओं के एक रात होती हैं। उत्तरायण काल को दो वेदों मे पुण्य काल माना है और साधना और सिद्धियों का फलीभूती करण काल । यह मुक्तिकाल है भीष्म पितामाह ने उत्तरायण काल मंे ही प्राण त्यागे। 

सूर्य कर्क संक्राति काल में दक्षिणायन और मकर संक्राति काल में उत्तरायण हो जाते है। कर्क संक्राति के समय सूर्य की पीठ हमारी ओर होती है और रथ का मुँह दक्षिण की ओर। मकर संक्राति काल से उत्तर की ओर पीठ पृथ्वी और मुख होता है। इस प्रकार उत्तरायण में सूर्य देव हमारे निकट होते है। ये पृथ्वी की ओर कुछ ढलते जाते है। नये साल में हिंदुओं का  पहला पर्व मकर संक्राति होता है। जब मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है । तब मकर संक्राति का त्यौहार मनाया जाता है।

इस दिन से सूर्य की क्रांति में परिवर्तन  होना शुरू हो जाता है । इस त्यौहार में बसंत का आगाज होता है । यह त्यौहार हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है । पृथ्वी अपने नये स्प में ढलने लगती है इसलिये यह दिन अपने आप ष्षुभ हो जाता है। मकर संक्राति का दिन निष्चित है यही एक दिन ऐसा है भारतीय त्यौहारों में जो अंग्रेजी माह के अनुसार 14 जनवरी को पड़ता है लेकिन अब 21 वी सदी मंे यह 15 जनवरी को पड़ता है 19 वीं सदी मेें 12 या 13 जनवरी को पडता था। स्वामी विवेकानन्द का जन्म मकर संक्राति को हुआ था जबकि अग्रेजी तारीख में 12 जनवरी 1863 ई॰ में हुआ था। 75 वर्ष बाद एक दिन बढ़ जाता है। बीसवी षताब्दी के प्रारम्भ में यह 13 जनवरी केा आती थी फिर 14 जनवरी और अब 21 वी सदी में यह 15 जनवरी को पड़नी प्रारम्भ हो गई है क्योकि हर चौथे वर्ष लीप ईयर होने से एक दिन बढ़ जाता है। 

मंकर संक्राति के पीछे दो पौराणिक कथाऐं है।  राजा भगीरथ अपने पुरखे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिये षिव जी की आराधना करके गंगा को पृथ्वी पर लाये थे गंगा के वेग को षिव जी ने अपनी जटाओं में सभांला वहाँ से षिव ने अपनी एक लट खोली ओर गंगा की एक धारा पृथ्वी पर बढ़ी। आगे भगीरथ और पीछे पीछे गंगा। गंगोत्री से हरिद्वार प्रयाग होते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुँची यहीं पर कपिल मुनि ने सगर पुत्रों को क्रोधागिन से भस्म कर दिया था। 

वह दिन मकर संक्राति ही थी जिस दिन उनका भगीरथी के द्वारा तर्पण किया गया। आज वह गंगा सागर तीर्थ के रूप में माना जाता है। गंगा सागर के संगम स्थल पर नहाने से मोक्ष प्राप्त होता हे 

मकर संक्राति के दिन ही पितृ भक्त परषुराम ने अपनी माता का मस्तक पिता की आज्ञा मानकर काट दिया था। पिता के प्रसन्न होने पर वर माँगने की कहने पर परषुराम ने कहा था कि उनकी माँ को पुर्नजीवित कर दें। उनकी माता पुर्नजीवित हो गई यह दिन मकर संक्राति का पर्व है। 

मकर संक्राति पोंगल ,लोहिड़ी ,माघी ,मोगली ,बिहु,व खिचड़ी आदि नामों से है मकर संक्रांति की यह भी मान्यता है  िकइस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्रान्त करने के लिये व्रत किया था। मान्यता है इस दिन भगवान् अपने पु.त्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हें चॅंकि शनि देव मकर  राशि के स्वामी हैं ।

मकर संक्राति इस बात की ओर इंगित करती है कि अब षीत ़ऋतु की विदाई है और ग्रीष्म ऋतु आने वाली है। भारत में हर दो माह ऋतु परिवर्तन होते हैं। परंपराओं के अनुसार सूय्र तिल तिल आगे बढ़ता है इसलिये इस दिन तिल के विभ्सिन्न मिष्ठान बनाये जाते हैं ष्षीत ऋतु की विदाई अर्थात् तिल गुड़ ष्षीत ऋतु के खाद्य पद्धार्थ खाओ और दान कर पुण्यलाभ करेा। 

मकर संक्राति पूरे भारतवर्ष में अलग अलग नाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में उसे पौगल उत्सव कहते है। नव उर्त्सजित पोंगल चावल का भोग लगाया जाता है व सेवन किया जाता है। नृत्य आदि समारोह से अन्न भंडारण का यह समारोह मनाया जाता है। 

हर की पौड़ी ब्रह्मकुंड पर सूर्य के संक्रमण काल का सर्वाधिक महत्व माना जाता हे।सूर्य के उत्तरायण में प्रवेष और मकर राषि होने पर ये किरणें हरिद्वार में ब्रह्मकुंड में सीधे प्रक्षेपण करती हैं। हरिद्वार के ब्रह्मकुंड की भौगोलिक स्थिति रेखांष व अक्षांष की स्थितियों में इस समय अनुकूल बैठती है

उत्तर प्रदेश- दान पर्व है। उत्तर भारत में खिचड़ी का विषेष महत्व होता है। खिचड़ी ही खाई जाती है व दान की जाती है इस दिन 14 वस्तुएंे दान कर अगले जन्म के लिये संचयित किया जाता है। अक्षय पुण्य का लाभ मिलता है। इस दिन इलाहाबाद में संगम पर एक माह तक लगने वाले माह मेले की शुरूआत होती है ।उत्तर भारत में गंगा यमुना के तटों पर बसे कस्बे और षहरों में मलों का आयोजन होता हे


 पंजाब में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। अग्नि की परिक्रमा के साथ नवजीवन को षुभ कामनाऐं देते हुए अग्नि को तिल गुड़ मूंगफली मक्का आदि का भोग लगाते है।‘ दे मा लोहड़ी तेरी जीवे जोड़ी ’बोलते हुए परिक्रमा लगाते है। प्रचलित कथा के अनुसार कंस ने भगवान् कृष्ण को मारने के लिये लोहित नामक राक्षसी को भेजा था,सिंधी समाज भी मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले लाल लोही का पव्र मनाता है ।

राजस्थान मे इसे पंतग उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस चौदह प्रकार के पकवान ब्राह्मणों और सुहागिन स्त्रियों को बाँटा जाता है। 

महाराष्ट्र मे यह पर्व भोगी, संक्राति करिदिन के रूप से मनाया जाता है। यह तीन भाग में मनाया जाता है। संक्राति से एक दिन पहले खिचड़ी व गुड़ की रोटी का सेवन किया जाता है। संक्राति के दिन सभी लोग एक दूसरे को तिल गुड बाँटते है साथ ही साथ बोलते जाते है तिल-गुड़ धा आणि गोड गोड करिदिन अर्थात् संक्राति के बाद वाले दिन घिरडे ताऐं का सेवन किया जाता है। इसे तिलगुल भी कहते है। सुहागन महिलाऐं एक स्थान पर एकत्रित होकर हल्दी कुमकुम की रस्म करती हैं और उपहार स्वरूप बर्तन भेंट करती है।

मध्यप्रदेष में यह पर्व मकर संक्राति के रूप में मनाया जाता है और तिल गुड़ लड्डू कपास नमक बर्तन आदि दान मंदिरों और ब्राह्मणों को दिया जाता है। 

केरल में इसे ओणम नाम से जाना जाता है। ओणम में घरों मे रंगोली बनाई जाती है तिल घी कंबल आदि दान की जाती है। 

असम मे बिहू के रूप में यह त्यौहार मनाय जाता है। पानी में तिल डालकर स्नान करने के प्ष्चात् तिल दान करने का प्रचलन है। भूने अनाजों से वयंजन तैयार करती है। जिसे कराई कहा जाता है। 

दान का व तिल के दान का महत्व संपूर्ण भारतवर्ष में किसी न किसी रूप से अवष्य किया जाता है और इन दिनों षीत ऋतु अपने पूर्ण रूप में होती है। तिल की तासीर गर्म है स्नान में तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है तिल त्वचा के कीटाणाओं को समाप्त कर तैलीयता प्रदान करता है। 

बंगाल में इस दिन गंगा सागर का मेला आयोजित होता है सारे तीरथ कर बार बार गंगा सागर एक बार । एक बार गंगा सागर में स्नान करने से जाने अनजाने सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।गंगा सागर पहले साल में एक बार ही जाया जा सकता था क्योंकि मकर संक्रांति के दिन यहद्वीप समुद्र में उभरता था फिर सागर में जाता था।

केरल में सबरीमाला मंदिर में अयप्पा भगवान की पूजा की जाती हैं। इसे विलाक्कू महोत्सव कहते है। सुदूर पर्वतों पर एक दिव्य आभा मकर संक्राति ज्योति का दर्षन करने आती है। इसे ओणम भी कहते है। 

तमिलनाडू में मकर संक्राति दीपावली के समान धूमधाम से मनाई जाती है इसे चार दिन गन्ने की फसल कटने की खुषी के रूप में पोंग’ पर्व मना कर करते है। इसे पांेगल कहते हैं। 

दक्षिण भारत में मकर संक्राति पर एक विषाल मेले का आयोजन किया जाता है। मधु कैटभ          असुरों का विनाष करके मंदार पर्वत के नीचे स्थित सरोवर में विष्णु भगवान ने स्नान किया था। इस दिन इस सरोवर में स्नान करने से पाप नष्ट होते हैं कुरूक्षेत्र में भी स्नान किया जाता हैं। 

हरियाणा और पंजाब में इसे तिलचौली कहा जाता है। संध्या काल होते ही अग्नि की पूजा करते हैं और तिल गुड़ चावल आदि की आहुति दी जाती है। इसे माधी भी कहते है।

कष्मीर घाटी में षिष्ुार संक्रात कहते है। 

आन्ध्रप्रदेष में पेंड़ा पनडुगा कहते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में घुघुती कहते है। घुघुती प्रवासी पक्षियों को वापस बुलाने की प्रथा के रूप में मनाते है। प्रतीकात्मक रूप में काल कोऐ को इंगित करते है और आटे को गुड़ मिलाकर तरह तरह के आकार दे रोटी तलते है। 

मध्यप्रदेष में संनकुआ नामक स्थान पर इस उत्सव को मनाते है और सिंध नदी में स्नान का विषेष महत्व है। सिंधू नदी को अडसठ तीर्थो का भानजा रूप माना जाता है इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है। 

बिहार में यह पर्व पवित्र नदियों में स्नानकर दाल चावल तिल गुड़ धान का दान किया जाता है उड़द की दाल की खिचड़ी सब्जियॉं डाल कर बनाई और परिजनों को खिलाई जाती है। 

कर्नाटक में इसे येल्लू बेला कहा जाता है पवित्र नदी में स्नान कर सूर्य की आराधना करके परिजनों को एल्लू बेला कहकर तिल के पद्धार्थ बाँटे जाते है। इस दिन अपने मवेषियों को सजाते हैं (किच्चू,हैसोधू) एक प्रकार का अनुष् ठान करते है। 

गुजरात में यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन उत्तरायण और दूसरे दिन बासी उत्तरायण मनाते है। गोवा में मकर संक्राति का पर्व महाराष्ट्र की तरह ही मनाते है। 

गुरू गोरख नाथ की तपस्थली गोरखनाथ मंदिर में हर वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर खिचड़ी मेला आयोजित किया जाता हे ।


पंजाब में लोहड़ी के रूप मे मनाया जाता है। अग्नि की परिक्रमा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने मक्कांे की आहुति दी जाती है। लोग आपस में गजक और रेवड़िया बाँटते है। नई बहू, नये बच्चे के लिए लोहड़ी धूमधाम से मनाते है ।

इस दिन खिचड़ी  दान का महत्व है। 

महाराष्ट्र- विवाहित महिलाएं एक दूसरे के घर जाकर हल्दी व रोली का टीका लगाती है, गोद में सुहाग का सामान व ताजा फल-बेर डाले जाते हैं तथा तिल, गुड़ देते हैं और कहते है ‘तिल गुड़ ध्या अणि गोड़ गोड़ बोल’ अर्थात् तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो ।

बंगाल- उत्तर प्रदेश की तरह गंगा सागर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। तिल का दान किया जाता है। ‘सारे तीरथ  बार बार गंगा सागर एक बार ’

तमिलनाडू-  पोंगल के रूप में चार दिन मनाया जाता है। पहला दिन- भोगी पोंगल । इस दिन कूड़ा-कड़कट इकट्ठा करके जलाया जाता है। दूसरा दिन - सूर्य पोंगल, इस दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है। तीसरा दिन- गटटू पोंगल इस दिन पशुधन की पूजा की जाती है।                  चौथा- कन्या पोंगल, इस दिन स्नान के पश्चात् मिट्टी के बर्तन में खीर बनाने का रिवाज है। खीर का सूर्य को भोग लगाने के बाद प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है । इस दिन बेटी-जंवाई को निमंत्रित किया जाता है। 

असम - यह माघबिहू या मांगाली  बिहू के नाम से मनाया जाता है। बिहू एक कृषि प्रधान पर्व है। नई फसल लहलहाने का उत्साह 

राजस्थान में सुहागन सास को बायना देकर आर्शीवाद लेती है। चौदह सौभाग्य सूचक वस्तुओं का पूजन कर उनका  दान किया जाता है। 

मान्यता है। इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते है। शनि देव मकर राशि के स्वामी है । अतः इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इसी दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिये मकर संक्राति के दिन का चुनाव किया था ।

इस दिन का दान सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता है। पतंग बाजी भी की जाती है। गुजरात में विशेष रूप से प्रकाश से नई ऊर्जा देने के लिये सूर्य देव को धन्यवाद देने का यही तरीका है। 

राम इक दिन पतंग उड़ाई

इंद्रलोक मंे पहुँचा जाई  

मीठे गुड़ में मिल गया तिल 

उड़ी पतंग और खिल गए दिल

जीवन में बनी है सुख और शान्ति 

मुबारक हो आपको मकर संक्राति





डा॰ शशि गोयल                 

 सप्तऋषि अपार्टमेंट     

 जी -9 ब्लॉक -3  सैक्टर 16 बी


newsletter 1

 प्रिय मित्र,

सादर नमस्कार ��

हमारे प्राचीन ग्रंथ हमें याद दिलाते हैं .वसुधैव कुटुम्बकम्-ु। परंतु आज के इस डिजिटल युग में, हम इस शाश्वत ज्ञान को भूलते जा रहे हैंए और नफरत सुबह के व्हाट्सएप संदेशों से भी तेज़ी से फैल रही है।

जैसे एक बूंद विष पूरे दूध के बर्तन को ज़हरीला बना देता हैए वैसे ही नफरत . चाहे वो ऑनलाइन हो या ऑफलाइन . हमारे समाज को बांटने की शक्ति रखती है। सोशल मीडिया पर गुस्से भरी टिप्पणियों से लेकर धर्म, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव तक, यह विष हमारी दैनिक जीवन में रिस रहा है।

लेकिन गांधीजी के वचन याद कीजिए-  आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।- हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत हमें एक बेहतर राह दिखाती है। भगवद गीता हमें सिखाती है कि वास्तविक शक्ति नफरत में नहीं, करुणा में निहित है। जैसा कि हम हिंदी में कहते हैं, - जहाँ करुणा, वहाँ करुणा-ु।इस तत्काल प्रतिक्रिया और त्वरित संदेशों के युग में, आइए थोड़ा रुकें और सोचें। चाहे परिवार के व्हाट्सएप ग्रुप पर कोई असहमति हो या ट्विटर पर कोई गरम बहसए हम क्रोध के बजाय समझ के साथ जवाब दे सकते हैं।हमारे पूर्वज जानते थे कि नफरत जलते हुए कोयले को पकड़ने जैसी है . यह दूसरों से ज्यादा हमें हीनुकसान पहुंचाती है। आइएए हम अपनी विविधता को गले लगाएं और अपनी साझा मानवता का जश्नमनाएं। आखिरकार, जैसा कि हर भारतीय बच्चा सीखता है,एकता में बल है-।

आइए, हम अपने डिजिटल स्थानों को भी अपने घर जैसा बनाएं, जहाँ हर मेहमान को देवता माना जाता

है ;अतिथि देवो भव।


Sunday, 12 January 2025

Abhishapt heera

 अभिशाप की छाया में                          डा. शशि गोयल


 अभिशप्त हीरा: वाशिंगटन के स्मिथ सोनियन म्यूजियम में बुलेटप्रूफ कांच के पीछे एक बेहद नीली चमक वाला हीरा रखा हुआ है । हीरे का नाम है होप डायमंड ।

हैरी विंसटन नामक प्रसिद्ध  जौहरी के कथाअनुसार होप इस पृथ्वी का सबसे अव्छा सुन्दर हीरा है । यह बसंत का खुशनुमा दिन है। कोमल नीला, यह ठंडा नहीं है इसमें जीवन है आप इससे बात कर सकते हैं , गा सकते हैं  लेकिन इसका इतिहास खून से रंगा हुआ है। यह नीला हीरा 112 ं5 कैरेट था और बर्मा के पागान राज्य में राम सीता के मंदिर में था । वहॉं से  इसे एक फ्रेंच जैाहरी  जीन बैप्टिस्ट ने  चुरा लिया और उसके स्थान पर एक साधारण हीरा रख दिया,और यहीं से इस हीरे का खूंरेजी इतिहास प्रारम्भ हुआ। जिस पुजारी ने  जीन बैपिस्ट की हीरा चुराने में सहायता की वह तड़प तड़प कर मरा । कहा जाता है जीन बैपिस्ट की मौत भी भूखे  कुत्तों के  नोच नोच कर खाने से हुई । लुई चौदहवें ने इसे दिल के आकार का करवा दिया । इसका वजन 65 ं 5 कैरेट रह गया । किंग लुइस चौदहवें ने इसे पहना साथ ही उस पर चेचक का प्रकोप हुआ । उसने वह हीरा अपनी खूबसूरत चहेती रानी मातेस्पॉ को उपहार में दे दिया । शीघ्र ही वह कुछ गलतफहमियों के कारण राजा की नजरों से गिर गई ।लुई पन्द्रहवें ने वह हीरा अपनी महारानी बैरी को दिया जिन्हें 1793 में सूली पर चढ़ना पड़ा । लुई सोलहवें ने इसे अपनी प्यारी रानी मैरी अन्तोनी को दिया । मेरी अन्तोनी ने उस हीरे को  अपने एक प्रेमी को दे दिया और तीनों को फ्रांस क्रांति के तहत सूली पर चढ़ना पड़ा ।

   फ्रांस की क्रांति के बाद यह हीरा गार्दे म्यूबल्स में प्रदर्शन हेतु रखा गया। मेयती नामक चोर ने यह हीरा वहॉं से चुरा लिया । शीघ्र ही मेयती पकड़ लिया गया और उसका सिर कलम कर दिया गया । अब यह एक अंग्रेज जौहरी के पास आया इसका वजन 44.5 कैरेट रह गया था । शीघ्र ही वह जौहरी कंगाल हो गया। उसने इस हीरे को  90.000 पाउंड में हेनरी थामस होप को  बेच दिया । यहीं से इसका नाम होप डायमंड पड़ा । अब तक इसके तीन हिस्से हो चुके थे । एक 44.5 कैरेट जो होप परिवार के पास था दूसरा 13.75 कैरेठ जो चार्ल्स,डयूक ऑफ वार्नसेविक, के पास था जिन्हें 1874 में अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति को नीलाम करने के लिये मजबूर होना पड़ा। तीसरा हिस्सा 1.74 कैरेट का पेरिस की एक फर्म के पास था जिसने उसे लंदन के एक व्यापारी के हाथ बेच दिया। होप परिवार की तीन पीढ़ियॉं  इस अभिशप्त हीरे ने नष्ट कर दीं । दीवालिया होने के साथ ही होप की पत्नी दूसरे व्यक्ति के साथ चली गई और हीरा होप के दूसरे रिश्तेदार के पास चला गया। फ्रेंकल ने यह हीरा फ्रांस के एक जौहरी कैलाट को बेच दिया जो एकाएक अपना मानसिक संतुलन खो बैठा  और निराशा के क्षणों में उसने आत्महत्या करली ।

इसका अगला मालिक एक रूसी राजकुमार बना उसने  अपनी पत्नी को गोली मार दी । होप डायमंड की अन्य मालिक जर्मन महिला भी इसके  अभिशाप से ग्रस्त हुई और अपनी संपूर्ण सम्पत्ति गंवा बैठी अंत यहॉं हुआ कि उसकी प्रतिदिन की आय केवल दो डालर रह गई । इसके पश्चात् यह हीरा एक ग्रीक दलाल के हाथ आया लेकिन दलाल और उसका पूरा परिवार एक कार दुर्घटना में मारा गया। वहॉं से यह हीरा तुर्की के एक सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय के पास आया । सुल्तान ने इस हीरे को अपनी प्यारी बेगम जुबैदा को दिया। जुबैदा बहुत दिन से सुल्तान की हत्या करने की सोच रही थी। इस उपहार के बाद उसने  अपनी योजना को  कार्यरूप में परिणित करना चाहा लेकिन उसका प्रयास सफल नहीं हुआ बल्कि सुल्तान ने ही उसे  मार दिया ।

कुछ समय पश्चात् युवराज ने बगावत करदी । राज्यकोष खाली हो गया और सुल्तान को अपने सभी जवाहरात पेरिस के  बाजार में बेचने पड़े । अमेरिका के मैक्लीन ने  112,000 डालर में उसे खरीदा लेकिन तुरंत बाद ही उसका युवा पुत्र कार दुर्घटना में मर गया स्वयं मैक्लीन की मौत भी अकाल हुई । श्रीमती मैक्लीन के विषय में भी कहा जाता है कि मानसिक रूप से अस्वस्थ होकर ही उसने आत्महत्या कर ली ।1947 में इस हीरे को  नीलामी में प्रसिद्ध व्यापारी हैरी  विन्सटन ने खरीदा । दस वर्ष हीरा  उसके पास रहा और आर्थिक रूप से  विन्सटन को एक के  बाद एक  नुकसान हुआ । अंत में उसने डाक द्वारा हीरा स्मिथ सोनियन संग्रहालय में भेज दिया । कहा जाता है कि डाकिया तक इसके अभिशाप से न बच सका और उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति आग की भेंट चढ़ गई स्वयं वह दुर्घटना ग्रस्त हो गया । 



hum nahin rakhtey devi devtaon par shrddha

 ☺एथेनिक लुक अर्थात् भारतीय संस्कृति को दर्शाती कला,यह कला हर प्रकार की कलाओं में दिख रही है,चाहे घर की सजावट हो वस्त्र हो बिस्तर चादर हो चाहे जूते चप्पल,विवाह का निमन्त्रण पत्र या पूजा पठ के । कहीं ओम् कहीं स्वास्तिक कहीं बुद्ध कहीं राम कृष्ण। सबका प्रयोग अधिक से अधिक हो रहा है। कुर्तो पर राधा कृष्ण और दूसरे दिन वह कुर्ता पीट पीट कर धोया जा रहा है। बुद्ध सीट कवर पर कुशन कवर पर मौन तपस्यारत हैं। देखने वाला मोहित है और कुछ देर बाद बुद्ध को पीछे दावकर और नीचे दावकर बैठा है,पेट खराब है तो बार बार सुंघा भी रहा है।

बिस्तर के चादर पर राधा कृष्ण रास रचा रहे हैं और फिर उन पर बच्चे कूद फांद रहे हैं और रात को स्वयं रास रचा रहे हैं। रंगोली सजाई है ऊँ  स्वास्तिक गणपति सब सजाये फिर झाडू फिर गई कोई आस्था नहीं कोई विश्वास नहीं ।

बड़ी बड़ी देवी देवताओं की मूर्तियां बनार्इ्रं,जोर शोर से स्थापना की दस दिन तक पूजा की,उसके आगे घंटे घड़ियाल बजाये नाचे गाये फिर नाचते गाते पानी में पटक आये,बस बहुत हुआ चलो गड्ढे में। गणेशजी अच्छे प्रथम पूजियत हैं सिर पटक पटक कर रो रहे होंगे,पिताजी माताजी मुझे अंतिम पूजियत करदो । हर जगह चिपका दिये जाते हैं,चाहे निमन्त्रण पत्र हो चाहे विवाह की पीली चिठ्ठी ,सबसे ऊपर गणेश जी विराजमान होते हैं और फिर तारीख निकलते ही कूड़ेदान के हवाले फिर सड़क पर पड़े गणेशजी अपनी किस्मत  को रोते हैं। कार्ड अधिकतर घरों में कूड़ा उठाने ,कांच बिखर जाये उसे उठाने के काम भी आता है।

सड़क पर ,चौराहों पर बाल्टी में देवी देवताओं की तस्वीर सप्ताह के दिनों के हिसाब से लेकर बच्चे दौड़ते रहते हैं फिर कहीं भी सड़क पर उन्हें रखकर कुछ खापीकर उन्हीं हाथों से उन्हें उठा फिर आसामी ढूंढने लगते हैं । कितनी पवित्रता है कितनी आस्था हमारी अपने ईश्वर में । हमारा ईश्वर सरल चित्त सब सहता है 


Friday, 10 January 2025

aao hum bacca ho jayen

 ‘ आओ हम बच्चा हो जायें’


कोराना की वजह से छुट्टियाँ हो गई मां बाप की आफत आगयी  गर्मियों की छुट्टियाँ तो  दो महिने की होती हैं  होते ही झगड़ा टंटा शुरू हो जाता है।यह तो पता ही नहीं कब स्कूल खुलेंगे। सब कुछ गड़बड़ सब कुछ झाला। न सोने का ठीक न जागने का। स्कूल बंद होने वाले है सोचकर ही मांओ को झरझुरी आ जाती है । सारा दिन ऊधम न तकिये का पता होगा न चादर का घर तो लगेगा ही नहीं कि साफ हुआ है । जिंदगी मंे चलते चलते जैसे तूफान आ जाये। सबसे पहला नियम सुबह उठने का टूटेगा। पाँच बजे बच्चों को तैयार कर बच्चों केा स्कूल भेजने के बाद चाय की चुस्कियों के बीच अखबार या एक झपकी नींद ,और दस बजे तक काम खत्म कुछ शापिंग वापिंग लंच ................ टीवी सीरियल कुछ काम। दोपहर तक जिंदगी सैट हो जाती है बच्चे आये खाना हुआ बच्चो के पंसदीदा चैनल चले मतलब एक रुटीन लाइफ सब कुछ फायदे में एक नियम के चलते। कामकाजी महिला तो उनका भी अपना रुटीन........ लेकिन छुट्टियाँ बाप रे बाप .......... एक तूफान .......... एक झंझावात जो सुबह से सब कुछ बिगाड़ देता है । नौ बजे तक बच्चे हिलने का नाम नहीं लेते........

.. 

‘‘मॉम छुट्टियाँ है सो लेने दो.............. मतलब इंतजार करो कि कमरा कब एक सा हो कब नाश्ता हो कब फ्री हो। उसके बाद नाश्ते में क्या बनाया है ............... नो ...बोरिंग...................... कुछ अभी अभी 

पती पत्नी कुछ भी खा लेते थे पर अब कुछ चाहिये बर्गर.............. कबाब पिज्जा चाउमिन......... और वो भी अकेले नहीं कुछ और भी साथ हो साथ ही .......... एक का कहना होगा पिज्जा तो दूसरा कहेगा उ्रत्तपम लगे रहो बेटा । आया ऊँट पहाड़ के नीचे बहुत अपनी मम्मीसे भी बनवा बनवा कर खाया है तुम कैसे झुझलाओगी। दूसरी समस्या है बोर होने की। उठते ही बोर होना शुरू कर देते है..................... बोर की समस्या में उलझने बढ़ जाती है........... और मोबाइल एक मात्र विकल्प रह जाता है .......अगर टीवी देखें तो.... देखेा भई टीवी देखो और रिमोट आपके कब्जे से गायब,कोई सास बहू का सीरियल नहीं , न बच्चो के पापा ष्षेयर देख सके  न न्यूज। आवाज सुनाई देगी षिंगषैंग ,डोरेमोन आदि आदि । 

तो क्यों न कुछ दिन बच्चो के साथ आप भी बच्चा बन जाये उस समय को एन्जॉय करें व कुछ दिन के लिये अपनी जिंदगी को बैग में बंद कर अलमारी में टाँग दे और निकाल ले बच्चो की टंगी जिंदगी आपकी अपनी पुरानी जिंदगी । सुबह बच्चों को लेकर पार्क में जायें अगर पास में खेत आदि हो तो वहाँ जाये, बच्चे पौधों को बढ़ता देखेंगे जब प्रतिदिन पहले दिन से बड़े होते पौधे को देखेंगे तो स्वयं मन कहेगा, मम्मा हम भी पेड़ लगायेंगे हम भी पौधे लगायेंगे और कुछ गमले कुछ पौधे आपके घर में सज जायेंगे । यदि जमीन हो तो नहीं तो गमले में कुछ सब्जियोें वाले पौधे लगायें एक एक बेल ही बच्चों में नवीन स्फूर्ति प्रदान करेगी । एक लौकी भी आयेगी तो ‘लौकी बाप रे बाप आप ही खाना वाक्य सुनने में महरूम हो जायेंगे।’ हमारी लौकी है........... उनका उस दिन का भोजन त्यौहारी हो जायेगा। बिस्तर ठीक करना है एक जिम्मेदारी देकर ठीक मत कराइये दूसरे दिन ही बिस्तर ठीक करने के नाम चेहरा उतर जायेगा। खेलते हुए ही ठीक कराइये। बच्चों को हर काम में खेल चाहिये वे सीधे ढंग से कुछ नहीं कर सकते चलो एक कोना उछाल कर बिछवाया साथ दूसरे दिन खुद कहेंगे मम्मा पलंग ठीक करते हैं। कुछ देर किचन मंे भी साथ लें चलो देखें आपसे आलू जल्दी छिलता है या मैं प्याज जल्दी काटती हूँ। किसके स्लाइस सबसे अच्छे कटते है........ अपने अनगढ़ हाथों से बनाये कटलेट चाहे तलने से पहले आप ने ठीक कर दिये थे उन्हें बहुत स्वाद आयेगा.......... जल्दी जल्दी काम समेटो ........ फिर खेलेंगे। गर्मी में बाहर नहीं निकल सकते इन्डोर गेम तैयार है नये खेल कम्प्यूटर बगैरह कुछ देर ही ठीक है आप कैरम, ताश आदि  निकालिये ......... लूडो चाइनीज चैकर, शतरंज सब ओर से उनका ध्यान हटा देंगे पर आपको भी खेलना होगा आप हटे कि कि चिपके टीवी से अब तो मोबाइल अधिक प्रिय है। 

चाइनीज व्हिस्पर, जापानीज व्हिस्पर, नेम प्लेस एनीमल  थिंग आदि  ऐसे खेल है जो कभी बोर नहीं होने देते ,रात को सब लोग इन्हें खेलंे बच्चे उस समय का इंतजार करेंगे। पढ़ने की आदत सबसे अच्छी होती है। बच्चों को कॉमिक्स आदि  देैं। साथ ही पढ़कर वैसा ही कुछ सोचकर लिखने का कहें किताबें खरीदना पैसा बर्बाद करना नहीं है पुस्तकें सबसे अच्छी मित्र होती है। वे आपको अनजाने मंे कितनी जिंदगियों के साथ जोड़ देती हैं । जितने पात्र है उतने पात्रों को जी लेते है। सच जब कथा का हम उम्र बालक पहाड़ पर चढ़कर गुफा में घुसकर बहती नदी के तेज वहाब में पैर रखता है तो खुद के पैरो में भी सनसनाहअ होने लगती है। किताबों में भी चिड़ियाँ चहचहाती हैं। झरने ऊँचाई से कलकल की ध्वनि करते गिरते हैं तो आँखों में उनकी फेनिल धार साकार हो उठती है हर पुस्तक के साथ एक नया संसार खुल जाता है........तो क्यों न सबसे अच्छे दोस्त को बच्चो का दोस्त बनायें। 

साथ ही मॉं बाप अर्थात् बच्चों के दादा दादी  भी घर में हांे तो सोने में सुहागा, मिलकर आइसक्रीम बनायें  मीठा बनायें बाजार का तो बंद खाना घर में ही तरह तरह के व्यंजन बनाये और बचचों को  ष्षामिल करें आज तुम कुछ बना कर दिखाओ । कुछ देर चहल कदमी, कुछ देर काम करायें खट्टा कुछ मीठा नमकीन कुछ तीखा करते बच्चों को बोर न होने दें खुद भी बच्चा बनकर जिन्दगी अपनी बढ़ाये क्योंकि हर दिन उठने के साथ हम अपने जीवन की किताब का एक पृष्ठ उलट लेते हैं, पीछे पलटिये बच्चा बनिये बच्चों के साथ। 


purane panne

 प्रधानमंत्री जापान

सैनफ्रैंसिसको में जिस सन्धि पर आपको हस्ताक्षर करने के लिये मजबूर किया गया है वह हम ऐशियावासियों के लिये बढ़े शोक और दुःख का कारण है। जापान जैसे वीर राष्ट्र को अपने बचाव के लिये अमरीकन सेना की आवश्यकता पडेगी,यह तो सफेद झूठ है । अमरीका को विश्वास हो चुका है कि एक न एक दिन रूस के साथ युद्ध होगा ही और इसलिये वह आपकी जन्म भूमि में अपने अड्डे बनाना चाहता हे। अमरीका ने पहलेएशिया में मित्रों की खोज की किन्तु उसने दोस्मी का हाथ यों बढ़ाया जैसे दासों को इशारे से बुलाया जाता है। 

अब कही कोई मित्र न मिला,तो अब डालर और एटमबम के बल पर एशियाई राष्ट्रों को अपने फन्दे में लाना चाहता है ।जापान शीघ्र ही फिर अपने पैरों पर खड़ा होगा ,ऐसा मुझे पूरा विश्वास है ।एशिया का कल्याण जापान चीन और भारत की मै़ी में है ।


Tuesday, 7 January 2025

astha parv Mahakumbh

 आस्थापर्व महा कुंभ

कुंभ मेला हिन्दुओं का सबसे अधिक दिन चलने वाला सबसे बड़ा मेला है। यह आस्था पर्व है अमृत की खोज। अमृत स्नान, एक महायज्ञ ,यह भारतीय संस्कृति का प्रतीक है जो एक अभिलाषा का संधान है, जिसके लिये एक स्थान पर सबसे बड़ा मानव समागम होता है । हर वर्ग ,हर वर्ण के लिये समान श्रद्धा का संगम है। हर व्यक्ति को अमृत संधान का हक है इस मेले को देखकर लगता है कि यह विराट का एकाकार स्वरूप है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार मृत्युलोक में राजाओं  की सभा में दुर्वासा ऋषि को सुगन्धित पुष्पों की माला भेंट की गई। दुर्वासा ऋषि साधु संत थे। इतनी सुगंधित माला उन्होंने सोचा यह तो राजा महाराजाओं के योग्य है। उन्होंने देवराज इन्द्र को वह माला भेंट कर दी। इंद्र ने वह हार  अपने हाथी की सूंड पर पहना दिया। तभी दुर्वासा किसी कार्यवष लौट कर इंद्र के पास आये तो उन्होंने अपने द्वारा दिये हार को हाथी को दिये जाने पर अपमानित अनुभव किया। दुर्वासा तो अपने क्रेाध के लिये प्रसि़द्ध हैं ही ,उनहोंने इन्द्र कोष्षाप दे दिया कि वे अपना तेज खो देंगे ।

देवतागण परेषान हो उठे अपना तेज खोने का अर्थ आस्तित्व की समाप्ति। वे षिवजी के पास आये। षिवजी ने समस्या समाधान विष्णुजी के पास बताया। विष्णु भगवान् ने कहा तेज प्राप्ति का मात्र उपाय अमृत पान है, वह समुद्र के गर्भ में है। समुद्र मंथन अकेले देवताओं के बस में नहीं था ,वैसे भी वे अपनीष्षक्ति खो चुके थे इसलिये उन्हें दानवों से समझौता करना पड़ा। समुद्र मंथन देवता और दानवों की आपसी सहमति से किया गया। समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले। सबसे अंत में धन्वन्तरि अमरत्व पेय का घड़ा लिये अवतरित हुए। देवताओं ने छल से सभी रत्न हस्तगत कर लिये थे अंत में अमृत कुंभ को भी जब देवता स्वयं ही ले लेना चाहते थे । तब देवासुर महासंग्राम हुआ। महासंग्राम के समय असुरों से बचाने के लिये अमृतघट की रक्षा का दायित्व देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को सौंप दिया गया था । सूर्य चंद्र वृहस्पति और षनि इस कार्य में जयंत के सहयोगी बने ।

असुर अमृतघट की खोज कर रहे थे जब ज्ञात हुआ कि घट जयंत के पास है तो असुर उसको ढूंढने लगे । जयंत अमृतघट को लेकर भागा । वह बारह स्थानों पर विश्राम के लिये रुका इनमें से चार मृत्युलोक में थे। वे स्थान थे हरिद्वार ,प्रयाग,गोदावरी तट -नासिक और क्षिप्रा का 

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तट- उज्जयनी। अमृतघट को रखने में उन चारों स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गईं और वे  स्थान कुंभ क्षेत्र बन गये। दुर्वासा ऋषि के ष्षाप से जुड़ा था इसलिये विषेष रूप से धर्म संम्प्रदायों से जुड़ता चला गया। साधु सन्यासी संत मोक्ष की प्राप्ति की आकांक्षा से यहां कल्पवास करने के लिये पहुंचते हैं। श्रद्धा और विष्वास ने साधु सन्यासियों के साथ साथ गृहस्थों को भी आकर्षित किया और आस्था विष्वास का महामेला बन गया । कल्पवास के समय पूर्ण संयम श्रद्धा विष्वास के साथ ईष्वर का स्मरण करते हुए चालीस दिन गंगा के तट पर बिताते हैं, इस समय आहार संयमित होता है। कल्पवास के समय षिविर के बाहर तुलसी का बिरवा लगाते हैं और जौ बोते हैं। विष्वास है कि जौ के पौघे के बढ़ने के साथ उनके घर की सुख समृद्धि का विकास होगा ।

स्कंद पुराण में कहा गया - पृथिव्यंा कुंभ पर्वस्य,    चतुर्थ भेद उच्यते,

                    चतुः स्थले निपतनात्,    सुधा कुम्भस्य भूतले

                    विष्णु द्वारे प्रयागे व अवन्तयां गोदावरी तटे

                    सूर्येन्दु गुरू संयगात      तद्राषो तत्वसरे ’

पुराण में ब्रह्मा जी कहते हैं- चतुरः कुंभाष्चतुर्घा  ददामि

 कुंभराषि पर वृहस्पति का और मेषराषि पर सूर्य का योग होने में हऱिद्वार में कुभ का योग बनता है। सिंह राषि पर वृहस्पति एवम् मेष  राषि पर सूर्य का योग होने  पर उज्जयनी में कुंभ योग बनता है। वृष्चिक राषि पर वृहस्पति का योग होने पर नासिक में कुंभ योग बनता है। माधमास की अमावस्या को वृहस्पति का वृषराषि में संचरण होता है तब प्रयाग में कुंभयोग बनता है । यह स्थिति बारह वर्ष बाद बनती है। चंद्र सूर्य और वृहस्पति कोणात्मक स्थिति में होते हैं तब प्रयाग की पावन पुण्य भूमि पर अमृत वर्षा होती है ।

इनमें स्नान के लिये सूर्य के उत्तरायण होने की विषिट तिथियों को स्नान का योग बनता है वह है मकर संक्रान्ति,मौनी मावस्या बसंत पंचमी । इन तिथियों पर ष्षाही स्नान होता है स्नान की परंपरा छ तिथियों को है मकरसंक्राति ,पौष पूर्णिमा,मौनी अमावस्या,बसंत पंचमी,माघ पूर्णिमा,महाषिवरात्रि।

 ष्षाही स्नान के लिये महामंडलेष्वरों में अनबन होने लगी थी । कभी कभी लड़ाई झगड़े तक की नौबत आ जाती थी। हर पीठ के मठाधीष अपने को श्रेष्ठ कह पहले स्नान करना चाहते थे। तब ब्रिटिष काल में उनके स्नान का क्रम तय हो गया था। सबसे पहले महा निर्वाणी का 

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स्नान तय है , नागा गोसाई,वैष्णव वैरागी संत फिर उदासी और अंत में निर्मल अखाड़ा के संत महंत स्नान करते हैं।

आदि षंकराचार्य ने षैव सम्प्रदाय का गठन किया जिसकी दसष्षाखायें हैं इन षाखाओं में जिन व्यक्तियों को दीक्षित कर नाम दिये गये है उनके नाम के आगे अब वर्तमान दीक्षित संत का नाम लगाया जाता है। इसे योग पट्ट कहते हैं,ये नाम हैं गिरि ,पुरी ,भारती वन अरण्य पर्वत सागर तीर्थ ,आश्रम और सरस्वती । इन्हें दषनाम से संबोधित किया जाता था ।

आदि गुरू षंकराचार्य ने चार मठ या पीठ स्थापित किये ये भारत के चारो कोनों पर थे । गोवर्धन पुरी,द्वारकाष्षारदा पीठ,श्रंगेरी पीठ, और ज्योतिर्मय और हरपीठ पर एक मुख्य षिष्य को नियुक्त किया जिन्हें परमहंस कहा जाता था ,लेकिन 1800 से वे महामंडलेष्वर कहलाये जाने लगे । 

एक बार पार्वती जी ने षिवजी से पूछा क्या वास्तव में संगम स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है’ षिवजी पार्वती जी की बात सुनकर मुस्कराये और बोले ‘चलो परीक्षा करलें।’

गंगातट पर स्नान करने वालों की भीड़ लगी हुई थी,षिवजी वहीं तट पर षव की तरह लेट गये । देवी पार्वती विलाप करने लगीं। उनके चारों ओर भीड़ इक्कट्ठी हो गई। पार्वती जी भीड़ से कहने लगीं,‘ भगवान् षिव ने उन्हें वरदान दिया है कि ऐसे तीर्थयात्री के स्पर्ष से मेरे पति जीवित हो जायेंगे जो पापी न हो,परंतु यदि पाप जिसने किया हो वह व्यक्ति छुएगा तो वह मर जायेगा । मरने की बात सुनकर भीड़ छंटने लगी लेकिन एक आदमी आगे आया और बोला गंगा पाप मोक्षणी है कोई न कोई पाप तो किया ही होगा,मैं गंगा स्नान कर पाप मुक्त होकर आता हूं, फिर आपके पति को स्पर्ष करूंगा,अवष्य आपके पति जीवित हो जायेंगे। वह गंगा में डुबकी लगा कर आया जैसे ही षव को छूने को हुआ षिवजी अपने असली स्वरूप में प्रगट हुए और उस व्यक्ति को वरदान दिया ।

कुंभ के विषय में सबसे प्राचीन उल्लेख चीन यात्री हवेनसांग के समय का मिलता है जो हर वर्ष सपरिवार आता था और संगम स्नानकर जो कुछ अपने साथ लाता था वह दान कर जाता था। इस मेले का वर्णन विदेषी यात्रियों की पुस्तकों में भी मिलता है। हवेन सांग ने लिखा ,प्रयाग में मेला कड़कड़ाती ठंड में लगा था,मीलों तक गंगा के किनारे तंबुओं का नगर बसा था। ठंड में हिन्दुओं को नहाते देखा देखकर,उनकी दृढ निष्ठा आस्था से मन प्रभावित हो उठता है।1871 में रूस की हेलेना पैट्रोविना ने भारत भ्रमण के समय यह मेला देखा था और उसके विषय में 1812 में प्रकषित पुस्तक ‘फ्राम दी के बस एण्ड जंगल ऑफ हिन्दुस्तान में कुंभ 


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मेले का वर्णन किया है‘ एक अदभुत् मेला देखा, हिन्दुओं की श्रद्धा आस्था और सांस्कृतिक एकता को पास से देखा ।

     एक अन्य चीनी यात्री होई लू पिन ने लिखा,‘हऱिद्वार में एक भव्य मेला देखा वहां अनेक राजा गरीबों को वस्त्र आदि दान कर रहे थे। हजारों लोगों को वस्त्र दान कर रहे थे। वे सोने की मुद्राऐं दान कर रहे थे । कुंभ मेला हिन्दू संस्कृति की आस्था विश्वास और एकता -अखंडता का महान पर्व है ।






डा॰ ष्षषि गोयल


Monday, 6 January 2025

purane panne

 

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