Thursday, 1 May 2025

jangadna

 


जातीय जन गणना 

चुनाव आने के साथ ही नये नये मुद्दे ढूंढे जाते हैं उसके आधार पर चुनाव जीतने के प्रयास किये जाते हैं। जातीय जनगणना का मुद्दा भी केवल चुनाव प्रेरित है। जातीय आधार पर बने संगठनों को कोई प्रश्रय नहीे मिलना चाहिए। कुछ संगठन जातीय जन गणना के लिये कटिबद्ध हैं इसके लिए वर्तमान साकार को निष्क्रिय व जाति विरोधी बताकर वोट बैंक हासिल रिना चाहती है और वर्तमान सरकार भी जातिगत जन गणना के लिए तैयार हो गई है। परन्तु जाति जन गणना क्यों होनी चाहिए उनके पास कोई जवाब नहीं है,बस यही देश हित में है जाति हित में है ,पर क्यों और कैसे ?

पहले ही मंडल कमीशन ने देश को आरक्षण में बांधकर उसको अकर्मण्यता की ओर धकेल दिया ह ैअब जातीय जन गणना कराकर सब अपने को आरक्षित कोटे में लाकर सरकारी लाभ लेना चाहते हैं अर्थात् बैठ कर रोटी तोड़ोया करोड़ों लोगों की महनत पर टांग पसारकर सोओ । 

पहले लोग कहते थे बेवकूफ मकान बनवाते हैं होशियार उसमें रहते हैं ’ अपनी जमापूंजी लगााकर कोई मकान बनाये इस आशा से कि जीवन का आधार रहेगा । बुड़ापे को सहारा रहेगा लेकिन निष्क्रििय लोगों के हित में कानून बनाये गये किरायेदार मजे में  कुछ पैसे देकर रहता है और बाद में घर उसका  मजे में मकान मालिक बन गये ।मकान बनाने वाले घर से भी गये और पैसे से भी। इसी प्रकार के कानून आरक्षण के हैं । योग्य व्यक्ति जूते चटखाते हैं और अयोग्य व्यक्ति मजे से मेज पर टांग रखकर हााि पर हाथ् रखे बैठे रहते है। काम करना आता नहीं काम करने की जरूरत क्या फोकट मे पैसे पाये जाओ , काम करने के लिए तो एक्सपर्ट रखने चाहिये पर वाह रे आरक्षण । देश को आगे ले जाने के लिए तो ये बैठे नहीं है ।3 फरवरी 1961 को लोहिया जी ने लिखा था कि हर व्रूक्ति आधुनिक होना चाहमा है जाति प्रथा विनाश की तो बात करता है पर उसके पास नई योजना नहीं है ।

आरक्षण के कारण सत्ता में से या नौकरशाही में से ऊंची जातियों को  च्युत रखकर  आरखित कोटे से आसीन कराया जाना चाहिये यह जाति व्यवस्था का ध्वस्त होना नहीं यी देश के गर्त में जाने की व्यवस्था है । क्या 90 95 प्रतिशत वाले प्रतिभाशाली का स्थान 33 प्रतिशत वाला लेगा तो वह अपनी मानसिक योग्यता के अनुसार ही कार्य करेगा ।यह देश कहत के लिए न होकर देश की व्यवस्था को अपाहिज करने की प्रक्रिया है । यह विकास में सबसे बड़ी बाधा है। इस कारण हाड़ तोड़ कामों का अवमूल्यन हो रहा हे। कुर्सीं तोडत्र निकम्मे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ रही है। यह भारत के जन जीवन की विषमता,अक्षमता और अयोग्यता का मूल कारण है इसलिए आरक्षण का जातीय आधार कैसे देश हित में होना सकता है ।आरक्षण का आधार जाति नहीं जरूरत है जिसे वास्तव में शिक्षा में व्यापार में आरक्षण की जरूरत है उसे सुविधाऐं उपलब्ध कराई जायें जातीयता के आधार पर नहीं । कौन देश के लिये काम कर रहा है कौन कर देकर देश को समृद्ध कर रहा है उसकी सहायता होनी चाहिये निठल्लों को बैठकर खिलाना देश को गर्त की ओर ले जाना है । 


Monday, 31 March 2025

virodhabhas News letter 4

 

हमारे चारों ओर विरोधाभास

संयुक्त राज्य अमेरिका आज के विरोधाभासों और विरोधाभासों का एक आदर्श केस अध्ययन प्रदान करता है।

अमेरिका के पास यकीनन दुनिया भर में सबसे उन्नत विज्ञान और चिकित्सा सुविधाएं हैं, फिर भी कुल मिलाकर] देश समग्र स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में खराब स्थान पर है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष डेरेक बोक ने कहा कि "औसत प्रति व्यक्ति आय दोगुनी या चौगुनी होने के बावजूद] लोग आज अनिवार्य रूप से 50 साल पहले की तुलना में अधिक खुश नहीं हैं"

एक हालिया अमेरिकी सर्वेक्षण में पाया गया कि 18 से 34 साल के केवल 25% लोगों ने खुद को "बहुत खुश" बताया।दुनिया भर में लगभग 300 मिलियन लोग (~3%) किसी किसी प्रकार के अवसाद से पीड़ित हैं। हर साल 800]000 से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं] जो विकसित दुनिया में 15 से 24 साल के बच्चों की मौत का दूसरा सबसे आम कारण आत्महत्या को सूचीबद्ध करने के लिए पर्याप्त है। अमेरिका में आत्महत्या की दर हाल ही में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।

मौजूदा बीमारियों की यह सूची और भी लंबी हो सकती है। कभी-कभी ऐसा महसूस हो सकता है कि हम प्रगति करने के बजाय पीछे की ओर जा रहे हैं] शायद इसका कारण प्रगति के संदर्भ में अलग-अलग क्षेत्रों में दिखाई देने वाला अंतर है।

यह एक केस क्यों है \

हमारी समस्या यह नहीं लगती कि हम समस्या से अवगत नहीं हैं।

हाल ही में हमारे उत्कर्ष पर चिंता की एक प्रकार की महामारी के रूप में चिंता बढ़ गई है।

स्व-सहायता पुस्तकें नियमित रूप से न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्ट सेलर्स सूची में शामिल होती हैं। स्व-सहायता शैली भी किताबों की दुकानों में दर्शनशास्त्र की तुलना में कई गुना अधिक स्थान रखती है। ऐसा प्रतीत होता है कि सर्वोत्तम जीवन जीने के तरीके से संबंधित विषयों पर टेडटॉक] पॉडकास्ट आदि का कोई अंत नहीं है। मनोवैज्ञानिक और तंत्रिका विज्ञानी]साथ ही पत्रकार जो अपने काम पर रिपोर्ट करते हैं] आज इन क्षेत्रों में घरेलू नाम बन सकते हैं। ओपरा ने बड़े पैमाने पर विभिन्न उपचारों के प्रचार पर आधारित एक साम्राज्य बनाया।

इसे हम अपनी राजनीति में भी देखते हैं. व्यवधान की जो विभिन्न ताकतें हम देख रहे हैं उनमें से अधिकांश अर्थ, उद्देश्य और अंततः फलने-फूलने के बारे में असुरक्षा से उत्पन्न हो सकती हैं।

क्योंकि अंतिम ज्ञानोदय भौतिक क्षेत्रों पर केंद्रित था] जबकि इसने उन विषयों से सबक हमारे अन्य क्षेत्रों में लागू करने की कोशिश की थी] लेकिन ऐसा करने में अक्सर श्रेणी संबंधी त्रुटियां हो गईं। इन अन्य क्षेत्रों में हमारे सुधार के लिए एक नए ज्ञानोदय या एक नए न्यूटन या कोपर्निकl क्रांति की आवश्यकता होगी। जिस तरह मौलिक नए भौतिक वैज्ञानिक विचारों ने नई दुनिया खोली] हमारी मानसिक और अंतःविषय दुनिया के बारे में नए विचार भी ऐसा ही कर सकते हैं।

 Akhil Gupta