Friday, 26 September 2025

kuch kadvi kuch meethee

 23 नैन सो नैन नाहीं मिलाओ ( अरे बाबा भूलकर भी नहीं क्या ऑंख की महामारी मोल लेनी है क्या सूजी हुई ऑंख है )

24 खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों

इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों

( घ्यान रखना ऐसा लग रहा है तेरे मेरे पिताजी आ रहे हैं भाग ले )

     25 अच्छा तो हम चलते हैं 

( कहीं कल परसों के लिये न कह दे कल रेखा को समय दिया है परसों शान्ता को )

26 आप कितने भी पढ़े लिखे हो आपकी बीबी ने कह दिया आप नहीं समझोगे तो आप नहीं समझोगे

27 एक भालू चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो पर एक्सरसाइज न करने के नाते थुलथुल तो वह हो ही जाता है ।                          -ए ए मिलने

28  म्ेारा विश्वास है कि ईश्वर ने हमें निश्चित संख्या में दिल की घड़कनें दी हैं और मैं इतना बेवकूफ नहीं हॅंू कि कूदने और दौड़ने में इन्हें बरबाद करूं। -नील आर्म्सस्ट्रांग


Sunday, 21 September 2025

Manavta ke pae pul

 घटक एक.दूसरे के विपरीत होने के बजाय प्रत्येक जोड़ी को पूरक के रूप में देखा जाता हैए प्रत्येक का अस्तित्व दूसरे पर निर्भर करता है। यिन और यांग कैसे बातचीत करते हैं इसकी उचित समझ मनुष्य के लिए अपने आसपास की दुनिया को समझने के लिए आवश्यक मानी जाती है। यही कारण है कि कन्फ्यूशीवाद और ताओवाद दोनों में भविष्यवाणी ;या भाग्य बतानेद्ध प्रथाओं का समृद्ध इतिहास है। यिन और यांग की रूपरेखा को एक शक्तिशाली भविष्य कहनेवाला उपकरण माना जाता था क्योंकि यह ब्रह्मांड के क्रम को बहुत सटीक और निर्बाध रूप से वर्णित करता था। एक ही दुनिया का अर्थ निकालने की खोज में विज्ञान और धर्म की दुनिया के ओवरलैप होने का एक और उदाहरण प्रदान करने के लिएए 

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अग्रणी क्वांटम भौतिक विज्ञानी नील्स बोह्र पर विचार करेंए जो यिन.यांग और व्यवहारों की पूरकता के बीच पाई गई समानता से बहुत प्रभावित हुए थे। क्वांटम स्तर पर कणों के बीच देखी गई पूरकता के कारण उन्होंने केंद्र में यिन.यांग प्रतीक के साथ हथियारों का एक पारिवारिक कोट डिजाइन किया।

 यहां तक कि हमारी जैसी मानवरूपी प्रजाति को भी एहसास हुआ है कि ब्रह्मांड में एक असाधारण व्यवस्था है जो हमसे स्वतंत्र है . ज्वारए तारे याए घर के करीबए जिस तरह से हमारी कोशिकाएं विभाजित होती हैं और बढ़ती हैं। विविध जीवनरूपों के जाल में एक व्यवस्था है जो हमसे कहीं अधिक लंबे समय से अस्तित्व में है। गैलापागोस द्वीप समूह की अद्भुत जैव विविधता के माध्यम से चल रहे तार्किक क्रम को समझकर ही चार्ल्स डार्विन प्राकृतिक चयन के अपने सिद्धांतों को तैयार करने में सक्षम हुए थे। इस तरह से देखने का आदेश दिया गया था कि पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ विशिष्ट रूप से अपने विशिष्ट वातावरण के लिए अनुकूलित थींए प्रत्येक की अपनी.अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अलग.अलग आकार की चोंच होती थीं।

 समय और स्थान के पारए हम ब्रह्मांड में दिखाई देने वाली व्यवस्था का वर्णन करने के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं। हम अपने विश्वदृष्टिकोण और व्यवहार को तदनुसार लगातार समायोजित कर रहे हैं। संस्कृतियों और धर्मों में विश्वासों और विचारों की यह विविधता ब्रह्मांड के रहस्यों को किसी डरावनी चीज़ के बजाय सुंदर और रोमांचक चीज़ में बदल देती है। क्या ब्रह्माण्ड में कोई मौलिक व्यवस्था हैघ् क्या इन सबके पीछे कोई उच्च शक्ति हैघ् यदि ब्रह्माण्ड इस प्रकार पूर्वनिर्धारित है तो क्या हमारे पास सचमुच स्वतंत्र इच्छा हैघ् या क्या यह सब कथित क्रम कुछ ऐसा है जो मुख्य रूप से हमारे दिमाग में मौजूद हैघ् हमारे चारों ओर व्यवस्था की इस भावना के प्रति हमारी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिएघ् ये वे प्रश्न हैं जिनसे सभी धर्म जूझते रहे हैं। 


Thursday, 18 September 2025

manvta ke par pul

 कन्फ्यूशियस के समय में भगवान का एक करीबी सादृश्य मानवरूपी भगवान हो सकता है जिसे श्शांगण्दीश् कहा जाता हैए या बसए श्दीश्ए एक सर्वोच्च भगवान जो अन्य मानवरूपी देवताओं के एक समूह पर शासन करता हैए जिनके बारे में माना जाता है कि वे लोगों के कल्याण को सीधे प्रभावित करते हैं। लेकिन न तो तियान और न ही दीष् ण् जितने शक्तिशाली और महत्वपूर्ण हैं ण् चीन की मुख्यधारा की धार्मिकता में प्रमुखता से अपना रास्ता खोज पाते हैंए तब या अब। दाओवाद और कन्फ्यूशीवाद के उद्भव के दौरान प्राचीन चीन के मामले मेंए विद्वान रूथ एचण् चांग ने एक ईश्वर के बजाय स्थानीय देवताओं पर ध्यान केंद्रित करने की घटना का वर्णन किया हैरू

 जबकि आधिकारिक धर्म सर्वोच्च स्वर्ग पर केंद्रित थाए शासक न्यायालय के बाहर के लोगए हालाँकिए वे मुख्य रूप से स्थानीय पंथों और देवताओं की पूजा करते थे। वे देवत्व की व्यावहारिक क्षमताओं के बारे में अधिक चिंतित थेए और देवताओं और आत्माओं के बारे में उनकी अवधारणा उन चीजों पर केंद्रित थी 

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जो लोगों के कल्याण को प्रभावित करती थीं। प्रायश्चित्त करना यह समझने से अधिक महत्वपूर्ण था कि शक्तियाँ कहाँ से आईंए या शक्तियाँ अस्तित्व में क्यों थीं।15 व्यक्तिगत अनुभव सेए मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि यह विवरण भारत के धार्मिक परिदृश्य पर भी लागू हो सकता है। 

अंत मेंए बौद्ध धर्म को आम तौर पर पूरी तरह से नास्तिक के रूप में देखा जाता हैए जो ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करता है। हालाँकिए विशेष रूप सेए बुद्ध ने एक निर्माता ईश्वर के विचार को खारिज कर दिया। इसलिए बौद्ध एक व्यक्तिगत या चेतन ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं जिसने ब्रह्मांड का निर्माण कियाए लेकिनए जैसा कि लोकप्रिय लेखक और बौद्ध भिक्षु नयनापोनिका थेरा बताते हैंए वे अभी भी उन अनुभवों की सच्चाई को पहचानते हैं जिन्हें लोग ईश्वर के साथ जोड़ते हैं। 


Tuesday, 16 September 2025

samaj ka chehra

 ohj jkek;.k ds dHkh dHkh dksbZ n`'; pSuy cnyus esa vk tkrs gsa ,d LFkku ij jke dgrs gSa ek¡ bruh cnreht dSls gks ldrh gS e;kZnk iq#"kksÙke ds eq¡g ls ,slh Hkk"kk] ;g Hkk"kk fnekx dks lUu dj xbZA,sls gh /kuq"k ;K ds le; okD; lqukbZ iMk jke nks gks ldrs gSa ij ,d ds gksus ls nwljs dk egRo de rks ugha gks tkrk d``".k ds gksus ls Hkh"e dk egRo de rks ugha gks tkrk A vc fy[kus okys ls iwNks ­­=srk ;qx esa }kij ;qx dh ckr  A  

Vhoh lhfj;y cu jgs gSa izflf) ikus ds fy;s ,d gh dkUVsUV ij ckj ckj tjk cny dj lhfj;y cuk dj cksj dj jgs gSa muesa flok; cgw dk lkl llqj ls nqO;ogkj ;k ifr dk ckgj QkSt esa gksuk vkSj iRuh dk O;fHkpkj  fn[kk jgs gSa D;k ukjh bruh ve;kZfnr gS\ mldk bruk iru fn[kkuk 

Monday, 8 September 2025

manavta ke par pul 5

 घटक एकण्दूसरे के विपरीत होने के बजाय प्रत्येक जोड़ी को पूरक के रूप में देखा जाता हैए प्रत्येक का अस्तित्व दूसरे पर निर्भर करता है। यिन और यांग कैसे बातचीत करते हैं इसकी उचित समझ मनुष्य के लिए अपने आसपास की दुनिया को समझने के लिए आवश्यक मानी जाती है। यही कारण है कि कन्फ्यूशीवाद और ताओवाद दोनों में भविष्यवाणी यया भाग्य बतानेद्ध प्रथाओं का समृद्ध इतिहास है। यिन और यांग की रूपरेखा को एक शक्तिशाली भविष्य कहनेवाला उपकरण माना जाता था क्योंकि यह ब्रह्मांड के क्रम को बहुत सटीक और निर्बाध रूप से वर्णित करता था। एक ही दुनिया का अर्थ निकालने की खोज में विज्ञान और धर्म की दुनिया के ओवरलैप होने का एक और उदाहरण प्रदान करने के लिएए 

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अग्रणी क्वांटम भौतिक विज्ञानी नील्स बोह्र पर विचार करेंए जो यिनण्यांग और व्यवहारों की पूरकता के बीच पाई गई समानता से बहुत प्रभावित हुए थे। क्वांटम स्तर पर कणों के बीच देखी गई पूरकता के कारण उन्होंने केंद्र में यिनण्यांग प्रतीक के साथ हथियारों का एक पारिवारिक कोट डिजाइन किया।

 यहां तक कि हमारी जैसी मानवरूपी प्रजाति को भी एहसास हुआ है कि ब्रह्मांड में एक असाधारण व्यवस्था है जो हमसे स्वतंत्र है ण् ज्वारए तारे याए घर के करीबए जिस तरह से हमारी कोशिकाएं विभाजित होती हैं और बढ़ती हैं। विविध जीवनरूपों के जाल में एक व्यवस्था है जो हमसे कहीं अधिक लंबे समय से अस्तित्व में है। गैलापागोस द्वीप समूह की अद्भुत जैव विविधता के माध्यम से चल रहे तार्किक क्रम को समझकर ही चार्ल्स डार्विन प्राकृतिक चयन के अपने सिद्धांतों को तैयार करने में सक्षम हुए थे। इस तरह से देखने का आदेश दिया गया था कि पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ विशिष्ट रूप से अपने विशिष्ट वातावरण के लिए अनुकूलित थींए प्रत्येक की अपनीण्अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अलगण्अलग आकार की चोंच होती थीं।

 समय और स्थान के पारए हम ब्रह्मांड में दिखाई देने वाली व्यवस्था का वर्णन करने के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं। हम अपने विश्वदृष्टिकोण और व्यवहार को तदनुसार लगातार समायोजित कर रहे हैं। संस्कृतियों और धर्मों में विश्वासों और विचारों की यह विविधता ब्रह्मांड के रहस्यों को किसी डरावनी चीज़ के बजाय सुंदर और रोमांचक चीज़ में बदल देती है। क्या ब्रह्माण्ड में कोई मौलिक व्यवस्था हैघ् क्या इन सबके पीछे कोई उच्च शक्ति हैघ् यदि ब्रह्माण्ड इस प्रकार पूर्वनिर्धारित है तो क्या हमारे पास सचमुच स्वतंत्र इच्छा हैघ् या क्या यह सब कथित क्रम कुछ ऐसा है जो मुख्य रूप से हमारे दिमाग में मौजूद हैघ् हमारे चारों ओर व्यवस्था की इस भावना के प्रति हमारी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिएघ् ये वे प्रश्न हैं जिनसे सभी धर्म जूझते रहे हैं। 

मेरा अपना रुख यह है कि ब्रह्मांड को क्रमबद्ध देखने से मुझे अपने सीमित ज्ञान को पहचाननेए खुद को व्यापक दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलती है। मैं मृत्यु को नहीं समझताए लेकिन मुझे विश्वास है कि मृत्यु ब्रह्मांड की प्राकृतिक व्यवस्था का हिस्सा है और यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि मेरा जीवन कैसा होना चाहिए। मैं अपने जन्म के लिए जिम्मेदार नहीं थाए न ही मैं अपनी मृत्यु के लिए जिम्मेदार हूंए लेकिन मुझे इस विचार से शांति है कि मैं ब्रह्मांड में आदेश का पालन करते हुए एक दिन मर जाऊंगा। मेरे लिएए आस्था का अर्थ अघुलनशील प्रश्नों के बारे में अंध और हठधर्मी विश्वास होना कम है और मेरे नियंत्रण से परे चीजों के प्राकृतिक क्रम पर भरोसा करना अधिक है। व्यवस्थित ब्रह्मांड में मेरा विश्वास मुझे जीवन में शांति लाता है। हालाँकि मैं चीज़ों के बारे में अपनी धारणाएँ बनाए रखता हूँए लेकिन वे नए अनुभवों और उन लोगों के साथ बातचीत के कारण जीवन भर बदलती और विकसित होती 


रही हैं जो मुझसे बहुत अलग हैं। धर्म की विद्वान मैरिएन मोयार्ट लिखती हैंए श्परिपक्व आस्था महत्वपूर्ण आस्था के बाद की आस्था है। यह विश्वास इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि सत्य परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों के बीच संवाद में खुले स्थान में उभरता है।श् 14 इस प्रकार का विश्वास मैं अपने जीवन में विकसित करने का प्रयास करता हूं। 


Sunday, 7 September 2025

manavta ke par pul 4

 लेकिन अधिकांश पुस्तकों द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण विभिन्न धर्माें के विवरण को खत्ते में डालना है  । हम इसे अलग तरीके से देख रहे हैं। हम प्रमुख विषय लेते हैं और दिखाते हैं कि कैसे अधिकांश धर्मों में उसी विषय के कुछ प्रकार होते हैं इस क्षैतिज दृष्टिकोण को अपनाकर ;एक विषय लेकर और दिखा कर कि यह विभिन्न धर्मों और अन्य ज्ञान प्रणालियों का हिस्सा कैसे हैद्ध, हमारा लक्ष्य है हमारे पाठकों के लिए विभिन्न धर्मों के बीच पुल बनाने और प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें प्रत्येक विषय पर विचार करना होगा और अलग.अलग विषयों पर आगे.पीछे जाना होगा  और जितनी बार चाहें। इससे परस्पर.धार्मिकता और गहरी होगी ,अनुभव और उम्मीद है कि केंद्रीय चित्रण में यह हमारा किताब का षोध बहुत अधिक प्रभावी होगा यदि हम धर्म को एक प्रमुख अर्थ.निर्माण3 तकनीक के रूप में देखें

 जैसा कि मनुष्यों ने सभी सभ्यताओं में उपयोग किया है, यह हमें एक तार्किक कारण देता है सभी धर्मों का सम्मान करनाण् अर्थ प्रकट करने का हमारा साझा तरीका हमारे अलग.अलग संदर्भों के कारण अलग.अलग और पर निर्भर भी है हमने अपना संज्ञानात्मक टूलकिट किस हद तक विकसित किया है। हम फिर से दौरा करेंगे अंतिम अध्याय में अधिक विस्तार से अर्थ.निर्धारण, क्योंकि यह इनमें से एक है प्रमुख जानकारियां जो हम आपके साथ साझा करना चाहते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हम चाहते हैं लोगों को उस खूबसूरत विविधता से प्यार करने और उसका जश्न मनाने में मदद करें जो मौजूद है। हम इस विविधता को खतरे के बजाय एक अवसर के रूप में देखते हैं।

जब मैंने इनके बारे में गहराई से जानने का विचार मन में लाना शुरू किया समानताएं, मुझे मेरे दोस्तों ने अलग.अलग दिव्यता के स्कूलों से सावधान किया थारू ‘प्रत्येक धर्म की विशिष्टताओं के बारे में मत भूलना।’ मैंने वह सलाह गंभीरता से लीण् मैं विविध विशिष्टताओं का हम धर्मों में वैसे ही पाते हैं सम्मान और सराहना करता हूं जैसे मैं हमारे अस्तित्व के सभी पहलुओं में विविधता की सराहना करता हूं।


Wednesday, 3 September 2025

Amritsar 3

 प्रवेश द्वार के पास ही एक छोटा मार्ग प्रथम तल पर जाने के लिये है वहॉं एक संग्रहालय स्थित है। यह संग्रहालय कई कक्षों में विभक्त है। यहॉं सभी पूर्व गुरुओं  के जीवन से संबंधित कथाऐं  हस्त निर्मित चित्रों के माध्यम से वर्णित हैं तो आजादी की लड़ाई का भी चित्रों के माध्यम से वर्णन संरक्षित है। गुरुओं के अस्त्र शस्त्र उनसे संबंधित वस्तुऐं यहॉं भी रखी हैं । 1982 के हमले में खंडित हुए अकालतख्त और हरमंदिर साहब की पेंटिंग भी चित्रित है 

तथा उसके नीचे जो लिखा है उसका भावार्थ है ‘ इंंिदरा ने इस पवित्रस्थान को अपवित्र किया इसलिये उसकी  हत्या हुई ,उसने  जैसा किया वैसा पाया ’ ।

  गुरू पर्व से पहले दिन हम स्वर्ण मंदिर में थे  रोशनी से  मंदिर झिलमिला उठा था उसकी छाया पवित्र सरोवर में हजारों  दीपकों का आभास दे रही  थी । तीन बजे के समय दिन में हजारों  स्कूली बच्चे कतारबद्ध मंदिर के लिये जुलूस  के रूप में आये साथ ही विभिन्न अखाड़े अपना प्रदर्शन करते चल रहे थे। यह गुरूगोविंद सिंह के बेटों की याद में निकलता है । कलाकार  अपना कौशल दिखाते चलते हैं  जैसे चक्काघुमाना ,कोड़ा घुमाना, अग्नि मुॅह से निकालना आदि । स्वर्ण मंदिर में जो एहसास होता है वह है एकता का , संगठनात्मक शक्ति का, समर्पण , विनयभाव का पावनता का  इन सबसे  ऊपर भव्यता का ।

  जलियॉं वाला बाग  - स्वर्ण मंदिर से  कुछ आगे है श्रद्धा का मंदिर अल्फ्रेड पार्क । भव्यता से  बिलकुल दूर एक  साधारण सा  पुराना रास्ता जिसने ऐसा भयानक मंजर देखा है कि अच्छे अच्छे दिलेरों की रूह कॉंप जाये । कहा जाता है गोली कांड के समय तो वह रास्ता रोक दिया गया था लेकिन फिर उसने वहॉं से गुजरती लाशों को देख कर खून के ऑंसू अवश्य बहाये  होंगे , तब उसे अपने छोटेपन का पतलेपन का ऐहसास हुआ होगा उसने सोचा होगा  काश मैें अन्य  पार्कों की तरह चारो ओर से खुला रास्ता क्यों न हुआ। स्वर्ण मंदिर की भीड़ से दूर चंद लोग थे उस पवित्र मंदिर में। बाहर से  आये पर्यटक या स्कूलों से पिकनिक मनाने आये बच्चे ,कॉलेज से भागे प्रेमी  ही थे । युगल जो शहीद स्मारक के पीछे बैठे रास रचा रहे थे। यह वही स्थान है जनरल डायर ने क्रूरता का इतिहास रचा। आम निरीह जनता का समाधिस्थल एक पब्लिक पार्क में तब्दील हो चुका था। बीच बीच में विशेष स्थानों पर निर्माण करा दिये गये हैं और छोटे छोटे  बोर्ड लगा दिये गये हैं,कुछ दीवालों पर गोलियों के निशानों पर घेरे  बना दिये गये हैं । यहीं  समाप्त हो जाती है 13 अप्रैल 1919 को शहीद हुए दो हजार शहीदों की गाथा। एक  छोटा सा संग्रहालय है जिसमें उस क्रूर हत्याकांड की तस्वीरें और शहीद ऊधमसिंह का चित्र है जिसने 19 साल बाद जनरल डायर को मार गिराया। शहीदों की स्मृति में ज्योति के आकार का स्मारक है इसके आगे अमर ज्योति जलती रहती है शहीदी कुऐं को भी स्मृति स्वरूप दिया गया है लेकिन एकदम अंधेरा होने के  कारण दिन में भी कुए को देख पाना असंभव है बल्कि एक तरफ बना ऐसा लगता है कोई गैस्ट हाउस बना है ।


satrange desh main

 सतरंगे देश में



    ☺    मॉरीशस। छोटा सा द्वीप लेकिन प्रकृति ने जैसे सारी सुंदरता लुटा दी हो। मॉरीशस के हवाई अड्डे के प्रवेश द्वार पर सत्य ही लिखा है कि ‘स्वर्ग में आपका स्वागत है’ । डॉ॰ गिरीश गुप्ता जी के नेतृत्व में रैस्पैक्टेज संस्था के अन्तर्गत अठारह सदस्यीय दल 26 अगस्त को मॉरीशस के लिये रवाना हुआ। यद्यपि हमारा यह प्रवास एक वर्ष पूर्व था लेकिन वहाँ पर रहने की व्यवस्था का पुननिर्माण हो रहा था। इसलिये ठीक एक वर्ष बाद हमारा दल सद्भावना यात्रा के लिये रवाना हुआ। साढ़े नौ घंटे में से साढ़े सात घंटे समुद्र के ऊपर यात्रा कर हमारा विमान मॉरीशस के द्वीप पर पहुँचा तो देख कर ठगे से खड़े रह गये । बहुत स्थान का समुद्र देखा है लेकिन इतना शांत और सुंदर,‘ हरा समुंदर गोपी चंदन’ संभवतः यही से गये किसी यात्री की उक्ति होगी। 

चारों ओर नीला समुद्र उसके बाद हरा समुद्र, बीच में लाल माटी और हरियाली से परिपूर्ण द्वीप जैसे पन्ने की अंगूठी में मरकत और पन्ने के टुकड़े जड़े हों। सुनहरी बालू स्वर्ण का आभास देती है।

मॉरीशस के अंदर भारत धड़कता हेै। इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है 200 वर्ष पूरे हुए है । इसी वर्ष 2010 में उसके दो सौ वर्ष की जन्म शताब्दी मनाई गई है।मॉरीशस 61 किलोमीटर लंबा और 46 किलो मीटर चौड़ा है। इसकी गोद में कुछ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ है। बहुत ऊँचे पहाड़ नहीं है 600 मी. से 800 मी. तक की ऊँचाई वाले पहाड़ मिलते हैं।

           हवाई अड्डे पर हृदय को अभिभूत कर देने वाला स्वागत । हुआ यह तो ज्ञात था कि वहाँ भारत को सब पसंद करते है । भारतीय परिधान पहने श्रीमती इंदिरा वर्मा ;उच्चारण वामाद्ध मि. भवानी आदि उपस्थित थे उन्होंने हिंदी में स्वागत किया तो बहुत अच्छा लगा वैसे वहाँ की भाषा क्रेयाल है जो फ्रंेच भाषा का ही रूप है। इंगलिश का स्थान बाद में हैं। हिंदी  समझते सब है लिखना वहाँ सबको नहीं आता है। अब हिंदी भाषा भी पाठ्यक्रम में स्थान ले रही है। 

हवाई अड्डे से सीधे हमें पहले वहाँ लगी मॉरीशस के इतिहास की प्रदर्शनी में ले गये  यह पैते कुआ नामक स्थान पर थी प्रदर्शनी का अंतिम दिन था। वहाँ के जीवन का क्रमिक इतिहास था किस प्रकार फ्रेंच उन्हें यह प्रलोभन देकर ले गये थे कि मॉरीशस की मिट्टी में सोना है। खोदोगे तो सोने से मालामाल हो जाओगे बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश से तीन लाख लोग स्टीमरों में सवार होकर मॉरीशस पर पहुँचे। समुद्र में लंबी यात्रा में जो बीमार या संक्रमित हो गये उन्हें समुद्र में फेंक दिया और प्रारम्भ हुआ यातना का दौर । उन्हें खुले स्थान पर ठहराया गया  दिन भर उनसे मजदूरी कराई जाती और केवल खाने के लिये चावल और एक सब्जी दी जाती थी । बीमार पड़ने पर साधारण इलाज किया जाता गंभीर बीमार को समुद्र में फेंक दिया जाता। अप्रवासी घाट के रूप में उन दुर्दिनों को संरक्षित किया गया है उस स्थान को स्मारक के रूप में एक वर्तुलाकार चबूतरा बना कर सरंक्षित किया है जहाँ स्टीमर से उतरकर पूर्वजों नेे पहला कदम रखा।

प्रदर्शनी में फ्रेंच द्वारा दी जाने वाली यातनाओं को झांकियों के द्वारा दिखाया गया था । झांकियॉं जीवंत लग रही थी किस प्रकार पूर्वजों ने गरीबी, अत्याचार, यातना सही । यह सोच-सोच कर वहाँ के वासियों की आंखें आज भी नम हो जाती हैं। डोडो पक्षी वहाँ का राष्ट्रीय पक्षी है जो अब लुप्त है। जिस समय फ्रेंच व्यक्तियों ने मॉरीशस पर कदम रखा उस समय वहाँ केवल डोडो का साम्राज्य था । वह बहुतायत से पाया जाता था केवल मॉरीशस में ही यह पक्षी पाया जाता था। वह बेहद आलसी भारी भरकम पक्षी था । उसका मॉस नरम व लजीज था वह आसानी से शिकार हो जाता था। आज अपने साम्राज्य में उसकी केवल यादें है लेकिन है बहुतायत में । वहाँ हर वस्तु में डोडो का चिन्ह मिलता है। प्रदर्शनी में भी एक घेरे में डोडो पक्षी प्रदर्शित किया गया था संभवतः जिन-जिन रंग के पाये जाते थे सभी रंग के डोडो पक्षी बनाये थे।

प्रदर्शनी स्थल के सामने ही छोटा द्वीप था पैते दोआ जहाँ पर ब्रिटिश और फ्रेंच में यु( हुआ था और मॉरीशस ब्रिटिश के अधिकार में चला गया था।☺


Monday, 25 August 2025

Amritsar 2

 आगे बांये हाथ पर ही दो मंजिला भवन था इसका मुॅंह पूर्व में था यहॉं हर समय लंगर चलता रहता है। यहॉं भी सीढ़ियॉं चढ़कर पहुॅंचते ही पैर धोने के लिये जल प्रवाहित होता रहता है । कार सेवक लंगर खाने आने वालों को कटोरा और थाली पकड़ाते जाते हैं । घुमावदार जीना और बड़े बरामदे को पारकर विशाल हाल था बाद में देखा वैसा ही एक कक्ष नीचे था एक बार में हजार आदमी बिछी पट्टियों पर बैठते चले जाते हैं  दो लाइने पूरी होते ही छिलके वाली उरद की दाल डाल दी जाती दूसरा आदमी कटोरों में पानी देता जाता और एक आकर रोटी डालता जाता। रोटी थाली में न देकर आपको दोनों हाथ फैलाकर हाथ पर लेनी पड़ेगी हर दो पंक्ति को खाना देने के साथ ही एक आकर वाहे गुरू की प्रार्थना करा जाता उसके साथ प्रारम्भ होता लंगर पाना। मुश्किल से एक बार की पॉंत में पन्द्रह मिनट लगे। तुरंत सफाई होकर दूसरी पॉंत बैठने लगी पन्द्रह मिनट में जब तक हम लंगर पाकर उठे पूरा कक्ष भर चुका था और हमारे उठते ही दोबारा पंक्ति बैठनी शुरू हो गई थी उतना ही बड़ा कक्ष निचली मंजिल पर था उसके अलावा भी लोग अपने बर्तनों में खाना लेकर सीढ़ियों आदि पर बैठ कर खा रहे थे। उस स्थान पर बैठकर पतली दाल और रूखी रोटी भी अमृततुल्य लगी थी शायद यही कहावत चरितार्थ होती है भूख में किवाड़ पापड़ लगना। बड़े बड़े देगों में जाली से धिरे कक्ष में दाल पकती रहती है बड़े तवे पर निरंतर रोटियॉं सिकती हैं । बाहर कटोरियों में हलुआ मिलता है। खाने वाले अपनी थाली उठाकर बाहर रखी बड़ी नादों में डालते जाते हैं वहॉं भी कार सेवक उन्हें धोकर पहुॅंचाते जाते हैं  जैसे सब एकसूत्र में बंधे हैं न किसी से जात पूछने की जरूरत न किसी को काम पूछने की जरूरत, आते हैं और सामर्थ्य भर काम कर मत्था टेक चले जाते हैं । 1

     इस परिसर में ही मंजी साहब का विशाल सम्मेलन हॉल है। परिक्रमा मार्ग पर ही मुख्य मंदिर से पूर्व प्रसादम् है ।  सब जगह गुरुमुखी ही प्रयोग की गई है इस वजह से कहांॅं क्या लिखा है पढ़वाना पड़ा । वहॉंपर ढका हुआ बरामदा  है पर्यटक वहॉं बैठ कर विश्राम भी करता है और प्रसाद खरीदने के लिये लाइन में लगता है। प्रसाद के लिये  कई खिड़कियॉं बनी हैं। शुध्द घी का गर्म गर्म हलुआ प्रसाद के लिये थाली में दिया जाता है।

  सरोवर के मध्य में स्थित हरमंदर साहब के लिये जाने के लिये पुल बना है ंपुल दो भागों में रेलिंग द्वारा विभक्त है एक तरफ से जाने के लिये और एकतरफ से लौटने के लिये । हरमिंदर साहब में घुसने से पूर्व ही एक काउन्टर पर आपके हाथ से चढ़ावे का थाल ले लिया जाता है और दोने में चढ़ा हुआ प्रसाद दे दिया जाता है। थाल अपने आप प्रसाद स्थान पर पहुॅंचा दिया जाता है ।

   हरमंदिर साहब लगता है अनेकों स्वर्णकमल सरोवर में झांक रहे हांे । मंदिर में प्रवेश के साथ ही  खुल जाता है खुल जा सिम सिम का द्वार  स्वर्णखचित रंगीन पत्थरों से पच्चीकारी , एक अदभुत संसार। दीवार पर , छत पर सब तरफ स्वर्ण और  कीमती पत्थरों से बेल बूटे कमल आदि बनाये गये हैं । बीचबीच में पूर्व गुरुओं की  जीवन की झलक भी दिखाई गई है । रंग बिरंगे झाड़फानूस  की रोशनी में झिलमिलाता है । प्रथम तल पर गुरूग्रन्थ साहब  स्थापित हैं । निरंतर उसका पाठ रागी करते रहते हैं । द्वितीय तल पर भी गुरूग्रन्थ साहब का अखंड पाठ करने  का नियम धारण करने  वाले पाठ करते रहते हैं । यहॉं गुरूग्रन्थ साहब का स्वरूप विशाल है । कम से कम  तीन फुट लंबा  ढ़ाई फुट चौड़ा उसका आकार होगा । द्वितीय तल की भी छत और दीवारों पर भी उसी प्रकार से पच्चीकारी हो रही है । प्रथम तलपर जहॉं सरोवर का जल मंदिर के फर्श को छू रहा है उसे  हर की पौड़ी कहते हैं । श्रद्धालु  वहॉं आचमन करते हैं । बाहर कढ़ा प्रसाद मिलता है ।

 मुख्य मंदिर से आगे परिक्रमा मार्ग पर अकाल तख्त सबसे प्रमुख गुरूद्वारा है । यहीं से सिखों के लिये आज्ञा जारी होती है । यहॉं सर्चोच्च आसन स्थित है । अकाल तख्त की स्थापना छठे गुरू हर गोविंद सिंह ने की थी । भवन में अभी नया निर्माण हो रहा है । यहॉं गुरुओं के पुराने अस्त्र शस्त्र, भेंट में प्राप्त मूल्यवान वस्तुऐं,आभूषण आदि रखे हैं । यहॉं रात्रि में गुरूग्रन्थ साहिब को पूर्ण सम्मान के साथ सुखासन के लिये  लाया जाता है । एक 

विशाल नगाड़ा भी यहॉं रखा है जिस समय गुरूग्रन्थ साहब की सवारी यहॉं से  जाती है नगाड़ा बजाया जाता है । तुरही बजती है फिर हाथ में  तलवार लिये उनके  अंगरक्षक निकलते हैं सिर पर चौकी पर गुरूग्रन्थ साहब की सवारी निकलती है। भीड़ स्वतः ही काई की तरह फटती सवारी को स्थान देती जाती है दर्शन के लिये श्र्रद्धा से  हाथ जोड़े सिर नवाये श्रद्धालु  पंक्ति बध्द खड़े हो जाते हैं । अकाल तख्त के सामने ही दो  निशान साहब  स्थापित हैं ।इसके अलावा गुरूद्वारा अटलराय , गुरूद्वारा धड़ा साहब , गुरूद्वारा शहीदगंज , गुरूद्वारा गुरूवख्श सिंह ,बेर बाबा बुडढाजी ,श्शहीद बुंगा बाबा दीप सिेह, लाची बेरी आदि स्थित हैं । सभी गुरूद्वारों के शिखर सुनहरे हैं ।


Saturday, 23 August 2025

Amritsar Sifli da ghar

 अमृतसर, सिफली - दा घर, जहॉं परमेश्वर की कृपा बरसती है। गुरूग्रन्थ साहब में अमृतसर को परम पवित्र धर्मस्थल माना गया है। इस शहर का इतिहास बहुत साल पुराना है।  इसकी स्थापना 1579 में हुई थी । इसके आस्तित्व में आने का इतिहास गुरुनानक देव से प्रारम्भ होता है। कहते हैं एक बार गुरु नानक मरदाना के साथ यात्रा पर जा रहे थे। एक रमणीक   स्थान देखकर नानक देव रुक गये। उस स्थान पर उन्होंने विश्राम करते हुए कहा कि इस स्थान पर रमणीक सरोवर होगा जिसका जल अमृत के समान होगा। कालान्तर में 1570 में तृतीय गुरु अमरदास को सम्राट अकबर ने नये नगर हेतु जमीन प्रदान की। कहा जाता है गॉंव वालों ने भी गुरु अमर दास को अपनी जमीन प्रदान की। आज भी पुराना शहर चारों ओर से एक दीवार से धिरा है और इसके बीस प्रवेश द्वार हैं । जो भी हो इसकी स्थापना तृतीय गुरू अमरदास द्वारा हुई। स्थापना के समय  कार सेवा के लिये आई बीबी रजनी व उनके कोढ़ग्रस्त पति एक जलाशय में नहाया करते थे। कुछ दिन में देखा कि कोढ़ग्रस्त पति का कोढ़ धीरे धीरे ठीक हो गया तो सब आश्चर्य चकित रह गये। गुरू अमरदास ने कहा,‘अवश्य यह जलाशय चमत्कारी है’। उन्हंे गुरु नानक की वाणी का पता था उन्हें लगा यही वह स्थान है जिसके विषय में नानक देव ने कहा था। उन्होंने वहॉं विशाल सरोवर का निर्माण कराया। बीच में एक चबूतरा बनवाया जहॉं बैठ कर वे प्रवचन किया करते थे। उस चबूतरे पर बैठकर श्रद्धालु बड़े मनोयोग से गुरूवाणी सुनते। उस सरोवर को लोग अमृत सरोवर कहने लगे। उसी के नाम पर नगर का नाम भी अमृतसर पड़ गया ।

1588 में गुरू अर्जुन देव ने उस चबूतरे पर एक  मंदिर का निर्माण प्रारम्भ कराया। इसे नाम दिया गया हरमंदिर साहब । ईंट गारे से निर्मित एक साधारण संरचना थी इस पर सोने की परत नहीं चढ़ी थी । उसमें गुरूग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई। 18वीं शताब्दी में यह तीन बार आक्रान्ताओं के क्रोध का शिकार हुआ। 1757,1762 और 1765 में तीन बार इसे तहस नहस किया गया। लेकिन सिख श्रद्धालुओं ने हिम्मत न हारकर बार बार इसे बनवाया। वर्तमान स्वरूप महाराजा रणजीत सिंह जी के द्वारा दिया गया। 1803 में पंजाब के शासक रणजीत सिंह ने मुख्य 

गुम्बद पर  कांस्य चादर चढ़वाई फिर उसे सोने के पत्तर से ढकवाया।धीरे धीरे श्रद्धालुओं द्वारा उस पर स्वर्ण की पर्तें चढ़वाई जाने लगीं। एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर में लगा सोना लगभग 400 किलो तक था । देश विदेश के श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर इसमें स्वर्ण का काम करवाते हैं । निरंतर इसकी सुनहली आभा बढ़ती जा रही है । करीब 1600 किलोग्राम से भी अधिक सोना इस मंदिर में  लग चुका था । 1995 से 1999 के बीच बर्मिघम के दो सिख संगठनों ने मुख्य गर्भगृह पर पूरी तरह से फिर से सोने का आवरण चढ़वाया  अब 160 किलोग्रम सोने से मंदिर के चार प्रवेशद्वारों पर बने गुंबदों को भी उसी तरह मढ़ा जा रहा है जैसे मंदिर के मुख्य गर्भगग्रह पवित्र हर मिंदर साहिब की छत मढ़ी है ।  उसी तरह अैार भी निरंतर निर्माण जारी है । अब पूरे विश्व में अमृतसर  के नाम से शहर जाना जाता है और सरोवर का स्थान स्वर्ण मंदिर।

स्वर्ण मंदिर में प्रवेश के साथ ही ऐसा लगता है साक्षात गुरूवाणी गुरू के मुॅंह से सुनी जा रही हो। प्रतिदिन इसका स्वरूप सुन्दर से सुन्दरतम होता जा रहा है। दूर से ही श्वेत और स्वर्णिम आभा पूरी कलात्मकता से मोह लेती है।

विशाल फाटक में बाहर ही जूते चप्पल का स्थान बना है पानी की धाराओं के  बीच पैरों को धोते हुए मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही दिखता है सरोवर का स्वच्छ नीला जल। ऊपर ही विशाल घड़ी लगी है। सीढ़ियॉं उतरकर सबसे पहले पवित्र सरोवर के जल को हाथ में लेकर नेत्रों से लगाया। बंद आंखों के आगे स्वाभाविक रूप से एक तेजस्वी पवित्र चेहरा आ गया जिसे मन ही मन नमन कर आगे देखा। सामने ही स्वर्ण मंदिर था ऐसा लग रहा था संगमरमर की सीपी में स्वर्णिम मोती रखा हो,मुख्य मंदिर हरमिंदर साहब सरोवर के मध्य स्थित है । प्रारम्भ होता है परिक्रमामार्ग ,जिसपर लोगों के पैर न जलें इसके लिये कालीन की पट्टियॉं बिछा दी गई हैं उसी मार्ग के  बांये हाथ पर अनेक छोटे बड़े भवन स्थित हैं । हम अभी चारो ओर देख ही रहे थे कि एक सरदारनीजी आकर हम सबके सिर ढका गयीं  साथ ही ताकीद कर गयीं  मंदिर में जब तक हैें सिर पर से कपड़ा नहीं हटना चाहिये न मुख्य मंदिर की ओर पीठ करना। साड़ी का पल्लू  अब था कि वह बार बार  ढलक जाता और कोई न कोई आकर टोक देता  ‘सिर ढक लो  हारकर कसकर कान पर लपेट लिया। बायें कोने पर पानी का स्थल जहॉं कटोरों में पीने के लिये  शीतल जल तेजी से वितरित हो रहा था उतनी ही तेजी से कुछ कार सेवक स्वेच्छा से उन कटोरों को धोने में लगे थे। यह देखकर बहुत अच्छा लग रहा था कि सिख दर्शनार्थी कार सेवा करना धर्म समझते हैं यह नहीं कि सारा कार्य मंदिर के कार्यकर्ताओं की ही जिम्मेदारी है। छोटे बड़े , धनी निर्धन का वहॉं कोई फर्क नहीं था। 


Wednesday, 20 August 2025

Kailash Mansarover yatra antim

 बहुत दिन बाद गर्म तवे की रोटी अच्छी लगी । यात्रा के दौरान सबके वजन चार चार पॉंच पॉंच किलो घट गये थे  लेकिन उत्साह नहीं घटा था सबको लग रहा था यात्रा जल्दी खत्म हो गई । बस तैयार थी सामान लद चुका था ।नेपाल का रास्ता हमारा इंतजार कर रहा था जहॉं पर बस खड़ी थी वहॉं पर विषाल झरना था वह काफी ऊंचाई से कई चट्टानों पर गिर रहा था सीढ़ी सीढ़ी वह नीचे आ रहा था उस झरने का सौंदर्य उस पर पड़ रही सूर्य किरणों से द्विगुणित हो रहा था एक स्थान पर दुग्ध धवल फेनिल जल गिरकर ष्वेत धार बना रहा था वहीं उसके पास की धार में लालिमा थी उसके 

पास नीला और बैंगनी रंग की आभा दे रहा था नीचे  सारी चट्टानों का जल जहॉं गिर रहा था वहॉं जाकर सारा हल्के नीले जल में परिवर्तित हो रहा था वेग अत्यन्त तेज था जब बादल छा जाते रंग बदल जाते  ऐसे दृष्य कम ही देखने को मिलते हैं 

प्रकृति का कोमल और भयंकर दोनों रूप सामने थे दूर से दृष्य बहुत सुंदर था लेकिन वेग इतना तीव्र था कि यदि जराकिसी का पैर फिसल जाये तो उसका बचना असंभव था ।

    कोदारी से नेपाल तक कोषी नदी बहती है ।कोषी नेपाल जाकर अलग अलग नाम से जानी जाती है ऊपर पर्वतों पर  सीमा दिखाई दे रही थी इस तरफ नेपाल उस तरफ चीन की सीमा थी ।षाम को  नेपाल का बाजार देखा  वहॉं का पुराना बाजार देखा ,प्रसिध्द बाजार भाट भटेली देखा ।नेपाल में आठ बजे तक बाजार बंद हो जाते हैं । 

प्रातः वहॉं का प्रसिध्द स्वर्ण पैगोडा देखा वहॉं बुध्द की विषाल स्वर्ण प्रतिमा है । मुख्य पैगोडा में चारों ओर दीप प्रज्वलित कर  मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है । बंदर वहॉं पर बहुत थे  । कात्यायनी देवी का और महालक्ष्मी का मंदिर उसी परिसर में बना है । वहॉं बौध्द और हिंदू धर्म का संगम देखने को मिला । भिखारी वहॉं भी सीढ़ियों पर बैठे थे । एक बारह तेरह वर्ष की लड़की करीब एक साल के षिषु को लेकर बैठी थी,‘ बच्चे के दूध के लिये पैसे देदो ’ ।

‘क्या यह तेरा बच्चा है ’ चौंक कर पूछा ।

लड़की एकदम सकपका गई और बोली ‘नहीं मेरा भाई है ’

‘तो मॉं कहॉं है ’ वह शायद मेरे जवाब  सवाल से घबरा गई और बच्चा लेकर भाग गई ।

एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति हॅंसने लगा वह बोला ,‘ अरे यह तो ऐसे ही चलता है ,मॉं किसी दूसरे कोने पर मॉंग रही होगी कभी इससे बड़ा ले आती है ’। वह रोजदर्षन के लिये आता था ।

स्वर्ण पैगोडा के पूरे रास्ते में मनी मंत्रों के बहुत से कक्ष हैं इनमें विषाल मनी मंत्र बने थे अंदर जाकर अनुयायी उन्हें घुमा रहे थे  कोई कोई मनी मंत्र तो दस फुट ऊॅंचा और दस ही फुट का धेरा होगा सभी पीतल के  लेकिन एकदम चमकते हुए संभवतः स्वर्ण पॉलिष थी या उनकी सफाई प्रतिदिन होती थी । महीन पच्चीकारी का उन पर काम हो रहा था। लकड़ी का सामान वहॉं बहुतायत में मिलता है । पूजा में घी का दीपक व इलायची दाना चढ़ाया जाता है । स्नान आदि के पष्चात् सुप्रसिध्द व्यवसायी प्रेम प्रकाष जी व उनकी धर्मपत्नी जी से मिले दोनों ही बहुत सहज सरल स्वभाव के विनम्र  व्यक्ति तो थे ही उच्चकोटि की सेवा भावना रखने वाले थे । नेपाल की कई समाज सेवी संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर रहकर समाज की सेवा कर रहे थे ।

          एक बजे तक हमें एअरपोर्ट पहुॅचना था क्योंकि तीन बजे की फ्लाइट थी इसलिये प्रेमप्रकाष जी से विदा लेकर आखिरी बार सब सहयात्री भोजन कक्ष में एकत्रित हुए । एक परिवार की तरह सब रहे थे इसलिये सबको बिछड़ने का गम था । श्रीमती विजयक्ष्लमी व कुमारी उमा अभी नेपाल के अन्य पर्यटन स्थलों की सैर करने के लिये रुकी थीं  । विमान तीन बजे के स्थान पर चार बजे उड़ा बार बार तकनीकी खराबी की वजह से रुक जाता था ।

      सांयकालीन बादल सूर्य सब आकाष में अठोलियॉं कर रहा थे । आकाष बादलों से भरा था । बादलों के बीच धुंध से घिरा जब बादलों को चीर कर ऊपर  उठा तो थरथराने लगा  । एक बार फिर नीचे बादलों का अदभुत संसार दिखाई दिया । जैसे सागर में ज्वार उठा हो  विषाल मछलियॉं तैर रही हों कहीं लग रहा था अंटार्कटिका की वर्फीली चट्टानों पर श्वेत भालू खेल रहे हों । कहीं आइसक्रीम के पेड़ दिखते तो कहीं विषाल खरगोष कूदते नजर आते वहॉं पर खाली जगह होती तो लगता गहरा नीला जल है । आकाष में तैरते कब दिल्ली आ गई पता ही नहीं चला ।  नई दिल्ली एअरपोर्ट पर उस दिन कोई विदेषी मेहमान आने वाला थे पिछले दरवाजे से पूरा टर्मिनल पार करके आना पड़ा हाथों में वजन के थैले  मान सरोवर का जल आदि लिये । उस समय अपना ही वजन संभाले नहीं संभल रहा था ,रास्ता बेहद लंबा लग रहा था नीचे जैसे ही बाहर आये  बहुत से व्यक्ति पंक्तिबध्द मालाऐं लिये खड़े थे हम  प्रसन्न होने का नाटक ही कर रहे थे कि वाह मानसरोवर होकर आये हैं इसलिये हमारा सम्मान हो रहा है  हम कतार के बीच से निकलतेचले गये एक भी माला नहीं पड़ी पता चला कोई सुप्रसिघ्द स्वामी जी आने वाले हैं उनका इंतजार कर रहे हैं । हमारी  कार हमारा इंतजार कर रही थी हम सब आगरा के लिये चले तब तक स्वामी जी नहीं आये थे । रात्रि दस बजे हम अपने घर पहुॅच गये । वहॉं तो स्वगत नहीं हुआ परन्तु जब छोटी छोटी गंगाजली में मानसरोवर का जल और  मान सरोवर के जल से स्नान कराई माला मित्र जनों को दी तो वे गद्गद् हो गये  । बहुतों ने पैर छुए कि आप महान् तीर्थ करके आये हैं आपके चरण छूकर हमें भी कुछ पुण्य मिलेगा । हम करने वाले नहीं थे यह तो विधाता ही है जो हम से करवाता है हम सब उसके आभारी हैं उन्होंने महेन्द्र भाई साहब और ष्शोभा भाभी को माध्यम बनाया हम उनके भी आभारी हैं न उनका संबल और साथ मिलता न हम जा पाते  । ऐसा लगा ‘हम तीर्थ करने नहीं तीर्थ बनने जा रहे हैं । हम अपने को कैलाष बनायें ।कैलाष बनने के लिये चार अहर्ताऐं हैं । एक तो कैलाष बहुत ऊॅंचा है दूसरा कैलाष बहुत गहरा है , तीसरा कैलाष बहुत उज्वल है चौथा कैलाष बहुत ष्शीतल है ।


Tuesday, 19 August 2025

Kailash Mansarover yatra 30

 दो घंटे बाद छः बजे रास्ता खुला सब आगे निकल जाना चाहते थे लेकिन एक एक दल की गाड़िया निकाली जा रही थीं, शुरू ही में खतरनाक कच्चा संकरा ऊबड़ खाबड़ रास्ता था वहीं से सड़क बनना प्रारम्भ हो रही थी एक दम ढलान और छोटा रास्ता खाई की तरफ झुका हुआ जरा सा भी यदि पहिया टेढ़ा पड़े तो गाड़ी सौ फुट नीचे गहरी खाई में गिर पडेआगे भी अभी सड़क बन रही थी और संकरा रास्ता था लेकिन इतना खतरनाक नहीं। पहाडों पर हरियाली थी पहाड़ी नदी भी ष्शांत बह रही थी। ज्यों ज्यों आगे बढ़ते गये  रास्ता बेहद सुरम्य होता चला गया  झरने नदी वृक्ष से  सारा रास्ता ढका

 था । जाते समय जो नदी की गर्जना प्रकृति के भयंकर रूप का आभास दे रही थी वह ष्शांत कल कल म्ेंा बदल चुकी थी ।

     झांग मू के उसी होटल में रुकना था लेकिन होटल तक पहुॅचना मुष्किल था जाम की स्थिति थी कुछ देर जाम खुलने का इंतजार किया फिर पैदल ही होटल तक पहुॅंचे  चार मंजिल पर कमरा मिला सीढ़िया चढ़ना भारी लग रहा था कमरा गैलरी अैार बाथरूम के पास मिला बाथ रूम का पानी बहकर कमरे में आ रहा था मन धिनाने लगा । मैनेजर सुन ही नहीं रहा था जरा सा जोर देकर कहने पर एक दम गरम हो गया और बिफर कर बोला अभी सामान उठाओ और नहीं तो मैं फेंक दूॅंगा यही कमरा है रहना हो तो रहो। बीनू भाई ने मामला षांत कराया लेकिन वे विलक्षण तनाव के पल थे  । मैनेजर ने पानी निकलवाया दूसरा कोई कमरा था नहीं बहुत मुष्किल से रात बैठे हुए काट दी ।

      बीनू भाई का कहना था प्रातः चीनी सीमा को पार करना है जल्दी चले जायेंगे और चैकपोस्ट पर बैठेंगे । पहले पहल पहुॅंच जायेंगे तो जल्दी नंबर आ जायेगा नहीं तो बहुत देर हो जायेगी और सारा कार्यक्रम बिगड़ जायेगा। प्रातः साढ़े छः बजे से सबका चैकपोस्ट पर पहुॅचना प्रारम्भ हो गया यद्यपि चैकपोस्ट  दस बजे खुलना था हमारा दल वहॉं पहुॅचने वाला पहला दल था यह सब बीनू भाई और अवतार के अब तक के यात्रा अनुभवों का परिणाम था कि हमें परेषानी नहीं उठानी पड़ रही थी । हमारे बाद अन्य यात्री दल आने लगे । खुली सड़क और चार घंटे खड़ा रहना असंभव लग रहा था हाथेंा में सामान था कोई चारा नजर नहीं आ रहा था  सड़क पर ही कोई नैपकिन कोई रुमाल और कोई छोटी तौलिया बिछाकर किनारे पर दो दो तीन तीन के गुट में बैठ गये। सड़क पर बैठने में हंसी भी आ रही थी। लग रहा था सड़क किनारे भिखारीबैठे हों । उस समय न रुतबे का ख्याल था न इज्जत का न अमीरी का न गरीबी का । बस सब सड़क पर बैठे थे हम सब सड़के के आदमी थे ।

    एकाएक घड़ी पर नजर गई सात बजकर सात मिनट सातवां महिना सब जोड़ते गये सातवां साल वाह क्या संयोग है । तभी दूसरे दल की महिला बोली ,‘ एक बात बताऊं आज सप्तमी है ।’ कुछ देर सात के संयोग पर चर्चा होती रही सबका विदा का समय था एक दूसरे का पता आदि लिया जाने लगा । साढ़ नौ बजे चैक पोस्ट खुल गया । अपने अपने नम्बर हाथ में लेकर चैक पोस्ट पर पंक्तिबध्द खड़े हो गये  और सीमा पार करते गये ।

            अब हम नेपाल की सीमा में आ रहे थे  । गाड़ियॉं मैत्री पुल तक छोड़ने वाली थीं  हम सब तो बाहर आ गये पर गाड़ियों को चैकपोस्ट पार करने में समय लग गया  जिस ग्रुप की गाड़ी का नम्बर दिखता वह चिल्लाने लगता आ गई आ गई । हम सब को  आगे कोदारी के रैस्टोरेंट पर मिलना था । लौटने पर मैत्री पुल पर किसी प्रकार की चैकिंग नहीं हुई । झांग मू ऊचाई पर है और कोदारी यद्यपि पहाड़ी इलाका है पर काफी निचाई पर पहाड़ काट काट कर रास्ता बनाया है औरकाफी तीखा ढलान है करीब आठ किलो मीटर वाला यह रास्ता दूर दूर तक आस पास का षहर दिखाता चलता है ।जहॉं से गाड़ी ली थी वहीं गाड़ी रुक गई । ड्रइवर उस समय बहुत अच्छी तरह पेष आया था अब वह हॅंसकर हिन्दी में बात कर रहा था ष्शेरपा भी दुआ सलाम कर पहली बार  गाड़ी में से सामान निकालता नजर आया  नहीं तो गाड़ी रुकते ही गाड़ी से उतरकर गायब हो जाता था । किसी किसी गाड़ी का ष्शेरपा बहुत मददगार थे  बाद में ज्ञात हुआ यह एक विद्या है उन लोगों ने उसे  समय समय पर अच्छी टिप दी । प्रेम नामक ष्शोरपा बहुत अच्छा गायक था । जब अलग अलग शेरपा गाड़ी में बैठते तब उनकी अलग अलग विषेषताऐं पता चलती थीं । कोई बहुत हॅंसमुख तो कोई वाचाल, कोई पता ही नहीं चलता था कि वह गाड़ी में बैठा है कोई सोने में माहिर  गाड़ी में बैठते ही गहरी नींद में सोजाता । कुक आदि बहुत प्रेम से खाना खिलाते यह देख लेते  थे कि कौन खा रहा है कौन नहीं  उनकी कोषिष रहती वह कुछ तो खाले । षेरपा और कुक मिलाकर बीस जन का दल था  ।

   मैत्री पुल पार करके हम कोदारी बारह बजे तक पहुॅंच गये सबको वहीं भोजनालय पर एकत्रित होना था । एक एक कर सब  आते गये , उससे पूर्व अपने पासपोर्ट और परिचयपत्र दिखाने थे  वह चैकपोस्ट वहीं होटल के पास बना था  । होटल पर ही बचे हुए युआन बदल लिये  कुछ युआन  संग्रह के लिये रखे  । सबसे पहले चाय की इच्छा हो रही थी जैसे जैसे पहाड़ों से नीेचे उतरे खाना स्वतः अच्छा लगने लगा । चाय चाय करते सब होटल के पीछे बरामदे में एकत्रित हुए वहॉ  डोन नदी किनारे से बह रही थी पर्वतीय नदियों का सौंदर्य अदभुत् होता है स्वछ फेनिल जल लिये नदी बच्ची की तरह कूदती सी आगे बढ़ती है ।  


Saturday, 16 August 2025

Kailash mansarover yatra 29

 लौटने पर रुकने के सभी स्थान वही थे  चार बजे तक सागा पहुॅंच गये किसी प्रकार का तनाव नहीं था अब पर्यटन के मूड में थे । सामान आदि कमरे में पहुॅचाकर बाजार देखने चले गये  वहॉं से आगरा और देहली बेटी को फोन किया बहुत स्पष्ट आवाज । बाजार वहॉं जल्दी बंद हो जाते हैं वैसे भी बहुत कम आबादी वाला क्षेत्र नजर आ रहा था होटल के नीचे ही बाजार था यहॉं पर भी लड़कियॉं अधिक सक्रिय थीं  अधिकांष लड़कियों ने पैन्ट कोट पहन रखा था ।चीन में पैकिंग की सुंदरता या सामान की सुंदरता पर अधिक ध्यान दिया जाता है ।  ज्ञात हुआ वहॉं दो तरह का माल तैयार किया जाता है एक तो टिकाऊ पर मंहगा होता है एक सस्ता ओर सुंदर लेकिन उस माल की कोई गारंटी नहीं होती । सब जगह चीनी भाषा में ही लिखा हुआ था । 

     सागा से आठ बजे तक रवाना हो गये थे । झांग मू के लिये चार बजे तक पहुॅंचना था क्योंकि चार बजे  रास्ता खुलना था वह भी निष्चित समय के लिये उस समय जो निकल जायेगा वह निकल जायेगा नहीं तो वहीं रुकना पड़ेगा अर्थात खुले में या गाड़ी में  फिर कितनी देर बाद खुले वह राम भरोसे  । 

      प्रातः आठ बजे तक हम्हारी गाड़ियॉं रवाना हो गईं लेकिन अहमदाबाद के जडेआ की गाड़ी कुछ आगे जाकर खराब हो गई। सबको चिंता हो गई रास्ता बेहद ऊबड़ खाबड़ था दूर दूर तक कोई नहीं किसी प्रकार से दो तीन गाड़ियों के ड्राइवरोंने मिलकर उसे ठीक किया बार बार जरा चले फिर फुक फुक कर गाड़ी कूदे और बंद हो जाये । सब मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना करने लगे अब तक सब ठीक किया है आगे भी सब ठीक करे ं । गाड़ी कुछ दूर और चली फिर बंद होगई लेकिन जिस स्थान पर गाड़ी रुकी बहुत मनोरम था  छोटा सा लकड़ी का पुल उसके नीचे छिछली नदी उसमें रंग बिरंगी छोटी

 छोटी मछलियॉं । कुछ लोग पुल से लटक लटक कर नदी की तेज धारा में पैर डुबा रहे थे तो कुछ किनारे पर मछलियों को देख रहे थे कि गाड़ी ठीक होगई शोर मचा और चढ़ चढ़ कर  गंतव्य की ओर रवाना हो गये ।

   खाने के लिये जहॉं भी काफिला रुकता था पूरी यात्रा में देखा वह स्थान हर आयेाजकों द्वारा निष्चित किया हुआ था क्योंकि हर काफिला वहीं रुकता था अपने रुकने के कुछ निषान छोड़ जाता था आगे बढ़ जाता। इस बार खाने के लिये जहॉं रुके थे वहॉं दो दल पहले से ही रुके हुए थे पता लगा एक यात्री दल के पास खाना नहीं है उनका ट्रक नहीं आया था। हमारे दल के यात्रियों ने कम कम लेकर बाकी खाना उनके दल को दे दिया   ।

        सागा से झांग मू के  बीच रास्ते में चैकपोस्ट बना था सब गाड़ियों की चैकिंग हो रही थी एक गाड़ी पीछे रह गई थी चैकिंग साथ होनी थी इसलिये आगे भी नहीं बढ़ सकते थे । करीब पौन घंटा इंतजार के  बाद वह गाड़ी आई । पता लगा वह गाड़ी भी रास्ते में खराब हो गई थी दोनों खराब गाड़ियों को आगे करके चले जिससे कि यदि अब खराब हों तो उनके यात्रियों को  किसी भी प्रकार अपनी गाड़ियों में लिया जाये क्योंकि अब समय नष्ट नहीं किया जा सकता था । परंतु निर्विघ्न निलायम तक पहुॅंच गये  । अभी तक कहीं भी हरियाली नहीं मिली थी हॉं निलायम् आने के साथ साथ हरियाली मिलने लगी । आते समय  रात्रि का समय था इसलिये निलायम् का रास्ता नहीं देख पाये थे । लौटने पर निलायम् पर नहीं रुके अगला पड़ाव झांग मू था । झांग मू का रास्ता भी आते में अंधेरे में पार किया था लेकिन झांग मू में हिरयाली के साथ साथ खेत घर मकान आदि दिखाई दिये साथ ही सरसों का खेत देख कर अच्छा लगा । झागमू पार करने के लिये दो घंटे  रुकना पड़ा मान सरोवर का ष्शुष्क वातावरण और  ऊॅचाई कम होने के कारण भूख खुलने लगी थी । पानी की बड़ी बड़ी बूॅंदे गिर रही थी  बंद गाड़ी में बैठना बहुत मुष्किल लग रहा था, जैसे दम घुट रहा हो ,जरा सी झिरी करली । अन्य दलों की गाड़ियॉं भी आने लगी । ऊॅंचा नीचा रास्ता पार करते  सुबह का खाया सब पच गया था  सबकी गाड़ियों में रखे  नमकीन खुलने लगे  कुछ लोग चादर डालकर घास में बैठ गये  पिकनिक का सा माहौल हो गया ।☺


Friday, 15 August 2025

Kailash Mansarover 28

 बारह बजे के करीब अपने दल के यात्री दिखने प्रारम्भ हुए एक एक कर सब आते गये सबसे पहले गोयल साहब व अमेरिका के बर्मन दिखाई दिये  सौ मीटर का पहाड़ी रास्ता तीन घुमावदार मोड़ और प्रतीक्षा रत हम लोग  दल के अंतिम यात्री तक आते आते एक घंटा लगा । सबसे बुजुर्ग भी घोड़े पर आराम से चलते हुए आ गये।हम सब अपनी अपनी कार में सवार बाकी आधी मानसरोवर की यात्रा के लिये  प्रयांग की ओर बढ़ लिये  ।

      मान सरोवर का विस्तृत फैलाव, राक्षस ताल की भुजाऐं और बार बार लुकता छिपता कैलाष देखते करीब छः बजे प्रयांग पहुॅंचे वहॉं एक अदभुत् नजारा हमारा इंतजार कर रहा था । समानान्तर दूरी पर दो दो  विषाल इंद्रधनुष अपनी छटा बिखेर रहे थे। प्रयांग का रास्ता धूल भरा मैदानी सा है पास के पहाड़ ष्शुष्क बिना हरियाली व बिना आबादी के उसमें उगा यह गैस्टहाउस रेगिस्तान में नखलिस्तान सा लगा उस पर हल्की धूप हल्के बादल हल्की छिटपुट बारिश और दो दो इंद्रधनुष मानो इंद्र और कामदेव दोनों अपने धनुष ताने खड़े हों  पीछे से उभरी पहाड़ियॉं। पहाड़ियों के पीछे श्वेत धवल बादल स्वयं में षिखर लग रहे थे । ष्शीघ्र ही अंधियारी ने सितारे टंगा ऑचल फैला दिया । सारी रात सितारों और बादलों का लुका छिपी का खेल चलता रहा  बिजली वहॉं दस बजे तक रही लेकिन चतुर्थी का चॉंद अपनी रोषनी बिखेर रहा था इसलिये बिजली की कमी अधिक अखरी नहीं ।

प्रातः प्रयॉंग से चलने लगे तो बहुत अधूरापन लग रहा था गाड़ी में बैठ तो गये पर ऐहसास था कुछ रह गया  आखिरी बार कैलाष की ओर मुॅह कर नमन किया ।पर्वतों के ऊॅंचे षिखरों को देखा यद्यपि मान सरोवर के ऊपर तारों के रूप में ऋषियों  को देखा यह सौभाग्य कम नहीं था बिना किसी बिघ्न बाधाके यहॉं तक की यात्रा पूरी हो गई लेकिन फिर भी मनमें कसक थी कि कई ऐसे लोग मिले जिन्होंने किसी न किसी रूप में भोले बाबा के दर्षन किये  या मॉं जगदम्बा से साक्षात्कार हुआ। किसी न किसी रूप में चमत्कारिक अनुभव हुए थे हमें क्यों नहीं हुआ सोचते हुए पर्वत षिखरों की ओर नजर घुमाई साथ ही हृदय स्तब्ध रह गया एक विषाल पर्वत की चोटी हलकी नीली होगई और चट्टान पर षिव के  ऊर्ध    भाग का अक्स उभर आया सब कुछ नील वर्णी एक एक अंग स्पष्ट ऑंख कान नाक तीसरा नेत्र सिर पर जटा, गले में सर्प विष्वास ही नहीं हुआ । मैंने गोयल साहब से कहा  ‘देखो देखो पर्वत श्रंखला के बीच में देखो ’ इधर उधर देखकर बोले  ‘हॉं अच्छा दृष्य है। ’

‘नहीं उस पर्वत पर देखो साक्षात षिव स्वरूप उभरा हुआ है विषाल षिव ’कहते हुए नमन किया ।

‘ऐसा कुछ नहीं है तुम्हारे मन ने देखा है पहाड़ यहॉं के सुंदर है दूर पर वर्फ से ढके दिख रहे हैं  ।  मैं चुप होगई और षिव अक्स को देखती रही फिर किसी से नहीं कहा क्योंकि मखौल उड़ने का डर लगा मन ही मन प्रभु की अनुकंपा से स्तंम्भित थी । ईष्वरीय सत्ता को मैं बार बार नमन करती हॅूं शक्ति है और रहेगी लेकिन वास्तव में उसका क्या रूप है क्या रंग है कोई नहीं कह सकता षिव का यही स्वरूप रचा बसा है तो संभवतः मन ने  गढ़ लिया  ‘लगे रहो मुन्ना भाई का किरदार याद आ गया संभवतः यह भी एक  भ्रम है जो मेरी अंतरात्मा ने गढ़ लिया 


Thursday, 14 August 2025

Kailash Mansarover yatra 27

 दोपहर को सब फिर एक कमरे में एकत्रित हुए तरह तरह के अनुभव लोकगीत चुटकुले हास्य कविताओं का दौर चल ही रहा था कि महेन्द्र भाईसाहब और बीनू भाई बदहवास से आते दिखाई दिये दिल धक से रह गया क्या गोयल साहब भी हैं पर और कोई नहीं दिखा जब तक बात सामने न आये  दिल बस भोले बाबा को याद कर रहा था बस सब कुछ कुषल ही हो । महेन्द्रभाई साहब लंगड़ा रहे थे। पता चला महेन्द्र भाई साहब का घोड़ा नया था उसने उन्हें पटखनी देदी । बीनू भाई की भी तबियत बिगड़ गई थी इसलिये दोनों वापस आ गये । मल्हम आदि लगा कर महेन्द्र भाईसाहब के क्रेप बैन्डेज बांधी और बुखार की दवा दी । वे लेट गये  पूछा और सब  का कैसा चल रहा है । पता चला रात भर तेज पानी  पड़ा था जल थल सब एक हो गया था ,‘हे भगवान् तेरे दर पर हैं सबकी रक्षा करना ’ जब सब कुछ ठीक होगया तब बीनू भाई ने बताया,‘जब चले थे पानी थम गया था और आगे यात्रा प्रारम्भ हो गई थी । पहले दिन सारे रास्ते पानी रहा था और रात भर तेज वारिष हुई बिस्तर एक तरह पानी में तैर रहा था छोटे छोटे तम्बुओं में एक में दो व्यक्ति थे और पहाड़ी पर से ठंडा पानी  बह रहा था पर प्रातः जब वे वापस आने के लिये चले तब पानी ठहर गया था और परिक्रमा वाले यात्री आगे बढ़ गये थे ।

   एक बार फिर सभा प्रारम्भ हो गई इस बार हास्य कविताओं का दौर प्रारम्भ हुआ। अंकलेष्वर की कमला बहन हस्तरेखा पढ़ना जानती थीं  वे सबका हाथ देखने लगीं साथ साथ सुनने सुनाने का दौर भी चल रहा था । एक बात बार बार मन में कौंध रही थी चार बार यात्रा करके आये बीनू भाई जब आगे नहीं जा सके तो बाकी के सब कैसे जायेंगे और फिर जब दल का मुखिया वापस आ गया तो बाकी सबका ध्यान कौन रखेगा वैसे अवतार बहुत बार जा चुका था परिक्रमा का गाइड एक बीस बाईस साल का लड़का था वह चौदह बार परिक्रमा कर आया था।  

    प्रातः 12 बजे तक यात्रा वापस दारचेन से आठ किलोमीटर आगे से आनी थी । हम लोगों ने सभी सामान पैक किया दारचेन को अलविदा कहा और गाड़ियों में भरकर परिक्रमार्थियों को लेने चल दिय । आने वाले यात्रियों के लिये नाष्ता साथ लिया उस दिन तरह तरह के पकौड़े बने थे क्यों कि बीनू भाई ने बताया था कि यात्रा का अंतिम पड़ाव है और वहॉं  नाष्ता नहीं खोला गया होगा ।

     जिस स्थान पर हम रुके वह  पर्वत के पास खाली स्थान था वहॉं सब गाड़ियॉं खड़ी हो गईं  कुछ अन्य गाड़ियॉं भी थी उनके यात्री भी अपने सह यात्रियों का इंतजार कर रहे थे  दूर से कलकल करती नदी बहती आरही थी  पर्वतीय मोड़  से एकाएक  परिक्रमार्थी प्रकट होता और जिसके साथ का व्यक्ति होता वह दूर से उसका स्वागत चिल्ला चिल्लाकर करने लगता । अपने दल का अभी एक भी यात्री नहीं आया था हम लोग गाड़ियों सेउतर कर   नदी के जल में पॉव देकर बैठते  कभी इध उधर घूम आते । अंत में थक कर पास ही गोल गोल पत्थरों के ढूह से पड़े थे उन पर बैठ गई  एक व्यक्ति आकर बोला इन पत्थरों पर मत बैठिये । प्रष्नवाचक दृष्टि से उस व्यक्ति की ओर देखा तो बोला ,‘इन पर  ओम नमः षिवाय लिखा है ’ । 

चौंक गई यह तो देखा था उन पर कुछ खुदा है पर ध्यान नहीं दिया हर पत्थर पर बांग्ला भाषा में  ं ओम नमःषिवाय लिखा था अद्भुत  ,वहॉं जितने भी गोल गोल पत्थर थे हजारों की संख्या में सब पर जैसे  सधे हाथों से छेनी हथैाडे़ लेकर करीब आधा सेंटीमीटर गहरे और चार चार  इंच बड़े  अक्षर खुदे हुए थे । मैं जिसे पत्थरों की ढेरी समझ रही थी  वह किसी की आस्था थी विष्वास था लेकिन इतनी मात्रा में ओम नमः षिवाय किसने और क्यों लिखे कब खोदे कोई नहीं बता पाया। और फिर खोद कर क्यों यूंही छोड़ दिये, ऐसा कोई जानकार मिला नहीं बाकी तो हमारे जैसे  यात्री थे । जरा सी भाषा का  फेर होते ही वे  पत्थर मात्र थे षिव हो गये एक न दो नहीं सैंकड़ों हजारों कुछ पत्थर नदी में भी दिख रहे थे 


Wednesday, 13 August 2025

mansarover yatra 26

 पिट्ठू का ठेकेदार दिखा । पिट्ठू उसको घेर कर खड़े हो गये । एक एक यात्री से ठेकेदार पर्ची उठवाता जिसका नाम खुलता वह पिट्ठू खुष हो जाता और यात्री के साथ हो जाता । उन पिट्ठुओं को देखकर बचपन की परियों की कहानियॉं  याद आ गईं जिसमें परी के साथ बौना भी होता  । पिट्ठू  अर्थात वह इंसान जो  परिक्रमा में आपके साथ आपका सामान पीठ पर लेकर कदम दर कदम चलेगा ।झरने पहाड़ आपका हाथ पकड़कर पार करायेगा जहॉं घोड़े साथ छोड़ देते हैं पिट्ठू निरंतर साथ रहता है। भाषा की समस्या यहॉं सामने आती है लेकिन सांकेतिक भाषा काम कर जाती है पानी खाना रुकना बैठना चलना सोना ऐसे संकेत हैं जो सार्व भैमिक हैं । अधिकतर पिट्ठूओं ने लंबा चोगा पहन रखा था  जादूगरों जैसा ऊपर गोल नुकीली फुंदने वाली टोपी पैरों में फर वाले जूते । गले में बड़े बड़े मनकों की मालाऐं । कुछ पिट्ठुओं ने घेर वाली ऊनी फ्राक ऊनी पाजामा व गोल टोपी लगा रखी थी । एक पिट्ठू मेरे पास ही खड़ा था छोटा कद करीब चार फुट का लंबी फुदने वाली टोपी ऊनी फ्राक ढीला पाजामा मोटी मोटी नाक गोल चेहरा परी कथा के सात बौनों में से एक बौना सामने हो जब किसी दूसरे का नाम निकलता वह निराष हो जाता  । घोड़े कम थे पर पिट्ठू बहुतायत में । पिट्ठू की 

कीमत घोड़ों से आधी भी नहीं है । गोयल साहब ने पर्ची उठाई नाम निकला वह एकदम खिलखिला उठा  एक दम उछलने सा लगा और तुरंत बैग हाथ से ले लिया ।

   धोड़े आने में देर हो रही थी जो पैदल जाने वाले थे वे  आगे चल दिये  याकों पर सामिग्री लद गई वे भी बढ़ दिये लेकिन घोड़े नहीं आये सभी  वापस जाने वाले साथी डेरे पर चल दिये हम और शोभा भाभी रह गये  मन था घोड़े वाले यात्री भी चले जायें  लेकिन ड्राइवर हल्ला मचाने लगा  उसे दो दिन मिल रहे थे वह पास ही गॉंव जाना चाहता था । मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना की और बधाई देकर वापस चल दिये ।  स्तम्भ वाला स्थान आया  हमने परिक्रमा लगाने के लिये कहा तो ड्राइवर ने कहा देर हो जायेगी करीब आधा किलोमीटर की परिक्रमा तो थी ही एक परिक्रमा उसने गाड़ी से लगवा दी तीन लगवाने के लिये तैयार नहीं हुआ क्योंकि डीजल  तो खर्च होता । वैसे चीन में डीजल पैट्रोल के दाम बहुत कम हैं । अंदर ही अंदर अपनी विवषता से आहत थे अपने ष्शरीर को ऐसा क्यों बना लिया कि हम नहीं जा सके जबकि हम कहीं अधिक उम्र के  व्यक्ति पैदल जा रहे थे  । सबसे अधिक आष्चर्य 85 वर्ष के बुजुर्ग को देखकर हो रहा था जिनका अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या पर नियन्त्रण नहीं है चलने में लगता है हवा के झोंके से गिर जायेंगे वे ही सबसे आगे चल रहे थे ।।

 जिसने भी उनसे मना किया कि आप न जाइये पलटकर बोले आपको क्या? मैं जा रहा हॅूं अपनी मर्जी से जा रहा हॅूं मुझे कुछ हो जाये आप वहीं छोड़ आना। पैदल यात्री मैदान के बाद दो पहाड़ियों के बीच होकर कैलाष क्षेत्र में प्रवेष कर रहे थे ।और हम विवश से देख रहे थे ।एक तरफ न जाने की निराशा दूसरे साथी कं इसप्रकार के क्षेत्र में जाना जो बहुत मुश्किल है दारचेन पहुॅंच कर सभी बचे यात्री अपनी थकान मिटाने कपड़े आदि धोने में लग गये । गैस्ट हाउस से कुछ दूर चलकर गरम पानी के स्नानघर बने थे पच्चीस युआन अर्थात पचहत्तर रूपये में नहाने को मिल रहा था अब यह सुविधा हर पड़ाव पर मिलने लगी है हॉं रुपयों में  कम बढ़ अवष्य है।

      ज्येाति की तबियत खराब हो रही थी उसे जरा जरा देर में गर्म पानी और ग्लूकोज पीना पड़ रहा था उसकी सॉंस बेहद फूल रही थी निमोनिया का भी असर था। उसके लिये गरम पानी मैंने वहीं ला दिया और चादर लगा दी उसने गर्म पानी से हल्का सा स्पंज किया और कपड़े बदल लिये  ।सुरमई शाम का नजारा दारचेन में अदभुत् था तीन संध्याऐं तीन तरह की रहीं  । बादलों के बीच में सूर्य की किरणों कीलुका छिपी और बैंगनी लाल नीले रंग का सम्मिश्रण वाला आकाष नवीन जगत की संरचना कर रहा था । 

रंग बिरंगी मालाऐं पहने और हाथ में लिये तिब्बती बालाऐं फिर चक्कर लगाने लगीं कुछ कुछ सबने निषानी हेतु खरीदा । खाने के बाद  जडेजा ,नाथूभाई डोरिक ,सुरेष नाहर आदि सभी एक कमरे में एकत्रित हुए और सबने तन्मयता से  भजन गीत आदि गाये ।पास ही यात्रियों की आवक जावक हो रही थी ज्येति बेचैन थी  बार बार उसका अस्थमा उखड़ आता था दम दम पर उसे  गर्म पानी देना पड़ रहा था।उसकी देखभाल मैं ही कर रही थी क्योंकि वह अकेली ही यात्रा कर रही थी 


Tuesday, 12 August 2025

kailashmansarover yatra 25

 ष्शान्त नदी की कलकल में एक संगीत था गोल पत्थरों पर लुढ़कती फिसलती वह बढ़ रही थी कुछ पत्थर चमकीले थे । 

नंदी पर्वत पर कहीं वर्फ नहीं थी । अष्ठपाद पर कहीं कहीं जमी वर्फ थी । लेकिन कैलाष पूर्ण रूप से वर्फ से ढका था वर्फ भी एकदम सफेद दूरतक दिखने वाले अन्य वर्फीले हिमषिखरों में सबसे सफेद सबसे उज्वल ।मन नहीं हो रहा था ऐसे मनोरम स्थान से हटने का लेकिन वापस आना पड़ा । दारचेन के गैस्ट हाउस में लाइन से कमरे बने थे सामने बड़ा सा मैदान एक ओर पुरानी परिपाटी का ष्शौचालय । पानी की व्यवस्था के लिये कहीं झरने या नदी से  सीधा पाइप  लाकर वहॉं खुले मैदान में डाल दिया गया था । पानी ठंडा वर्फीला था सभी महिला यात्री वस्त्र धोने में लग गई वहीं मैदान में डोरी बांध कर वस़् त्र सुखा दिये गये । बार बार मोटी मोटी बूॅंदे पड़ जाती । सषंकित महिलाऐं अपने 

वस्त्रों को देखने लगतीं एक क्षण तीव्र हवा चली और कुछ कपड़ों ने उड़ान भरनी प्रारम्भ करदी तो सबको पकड़ा गया । 

ष्शाम झुकने के साथ ही बादलों ने आकाष में तरह तरह की रंग बिरंगी तस्वीरें बनानी प्रारम्भ करदीं । सूर्य ने अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विषाल रूप ले लिया लाल पीला और बादल भी उन्हीं रंगों में रंग गये पहले सातों रंग  अपना सौंदर्य बिखेर रहे थे   कुछ देर तक आकाष लाल पीला रहा फिर एक दम अंधेरा एकदम कालिमा छा गई जैसे  एक दम यवनिका गिरा दी हो सूर्य अस्त होगया एक अमिट छाप छोड़कर ।

यहॉं एक एक कमरे में चार चार लोग थे  । प्रातः दस बजे परिक्रमार्थियों को प्रस्थान करना था उनका सामान अलग बैग मेंनिकाला गया। छाता , टार्च, बरसाती ,जूते इनर  एक जोड़ी कपड़े, एक जोडी जूते और, खाने पीने का छोटा छोटा सामान छोटी छोटी थैलियों में मेवा चूरन टाफी आदि रख ली थी । प्रातः दस बजे सभीयात्री होडेचू गॉंव की ओर रवाना हुए यह दारचेन से आठ किलो मीटर की दूरी पर है । करीब पॉंच किलोमीटर की दूरी पर एक विषाल पीतल का स्तम्भ मिला याक के सींगों पर बंधा चारों ओर पॉच रंग की झंडिया कहा जाता है जो कैलाष की परिक्रमा न लगा पाये तो इस स्थान की 

तीन परिक्रमा लगा ले उतना ही पुण्य लाभ होता है । कुछ ने उतरकर परिक्रमा लगाई कुछ ने गाड़ियों से लगाई कुछ केवलहाथ जोड़कर नमन कर चले  हमारी गाड़ी कुछ पीछे रह गई थी इसलिये  हम उतर नहीं पाये सोचा लौट कर परिक्रमा देंगे । सभी गाड़ियॉं एक विषाल मैदान में जाकर रुकीं पर न वहॉं घोड़ा न ठेकेदार था न पिट्ठू का ठेकेदार । हॉं एक बीस बाइस साल का नौजवान आया वह परिक्रमार्थियों का गाइड था। एक तरफ कुछ घोड़े व याक थे लेकिन वह दूसरे यात्री दल के थे । यात्री दलों का कैलाष की ओर जाने का क्रम चालू हो गया पर हमारे दल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी बार बारबॅूंदे आजाती सब गाड़ियों में चढ़ जाते बंद होती फिर घोड़ों की राह देखने लगते । गाइड बार बार कह रहा था घोड़े आ रह हैं  । दूर एक घोडा़ें का दल आता दिखाई दिया लेकिन वह भी दूर ही रुक गया । वह भी हमारे दल के लिये नहीं था ।

 घोड़े वहॉं डेढ़सौ मात्र हैं  याक भी  कम पड़ने लगे हैं क्योंकि अब यात्री अधिक जाने लगा है । याक सामान ढ़ोने के काम आता है इस पर खाने पीने का सामान  तंबू आदि ले जाये जाते हैं ।

        घेाड़े किस किस को चाहिये  यह मान सरोवर पर ही तय हो गया था । यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी इस वजह से घोड़ों के दाम भी बढ़ गये थे अगर दूसरा आदमी तयषुदा रेट से अधिक दे देता है तो धोड़े वाले ठेकेदार मुकर भी जाते हैं  इसीलिये दलाल के माध्यम से धोड़े तय किये गये थे  । जैसे जैसे घोड़े आने में समय लग रहा था परेषानी बढ़ रही थी ।पहले दिन की दस किलोमीटर की यात्रा थी एक बज गया था । अभी घोड़े नहीं दिख रहे थे  जो सहयात्रियों को छोड़ने आये थे एक एक गाड़ी करके वापस चल दी । गोयल साहब और महेन्द्र भाई साहब परिक्रमा पर जा रहे थे बारिष का

रुख बढ़ता जा रहा था अब बूॅंदें फुहारों में परिवर्तित हो गईं थीं । मन अनजानी आषंकाओं से धिर रहा था कठिन यात्रा है पानी निरंतर पड़ रहा है । भोले बाबा आपकी शरण में आ रहे हैं आप ही रक्षा करना 




Monday, 11 August 2025

Kailash mansarover yatra 24

 कैलाष ष्शैल षिखरं प्रतिकम्पायमानं

कैलाष सषषर््ङग दषाननेन,

 यः पादपद्यपरिवादन मादधान-

स्तं ष्शंकरं ष्शरणदं ष्शरण व्रजामि ।

 कैलाष पर्वत के षिखर के समान ऊॅंेचे ष्शरीर वाले दषमुख रावण के द्वारा हिलायी जाती हुई कैलाष गिरि की चोटी को जिन्होंने अपने कर कमलों से ताल देकर स्थिर कर दिया, उन शरणदाता भगवान् श्री शंकर की मैं ष्शरण लेता हॅूं ।

 राक्षस ताल के पानी में सीसे की मात्रा अधिक है वहॉं की मिट्टी भी भारी है । कैलाष जल यहीं राक्षस ताल में आता है गुरला मांधाता का जल मान सरोवर में जाता है ।

हम अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ रहे थे  दारचेन में गैस्ट हाउस में हमने सामान रखा और फिर सब गाड़ियों में बैठकर अष्टपाद और नंदी पर्वत के दर्षन हेतु चल दिये  । दारचेन से आठ किलोमीटर दूर अष्टपाद वह स्थान है जहॉं प्रथम जैन तीर्थंकर )श्ऋषभ देव ने तपस्या की और ज्ञान प्राप्त किया और यहीं पर निर्वाण प्राप्त किया । अष्टपाद कैलाष षिखर के पास ही स्थित है कैलाष के  एक ओर नंदी पर्वत है  और एक ओर अष्टपाद । जिस समय हम अष्टपाद के लिये चले हमें यही ज्ञात था कि हम ़.ऋषभ देव की निर्वाण स्थली देखने जा रहे हैं  करीब डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई थी । अष्टपाद चौकोर सा पर्वत है।अष्टपाद के पास से झरना नीचे गिर रहा था उसने गिरकर नदी का रूप ले लिया था अष्टपाद पर कहीं कहीं वर्फ जमी हुई थी । रास्ते में छोटे बड़े षिला खंडों को एक दूसरे पर जमाया हुआ था तिब्बती लोगों की मान्यता है कि पत्थरों को आकार देकर वे ईष्वर से सुख शान्ति की  प्रार्थना करते हैं । कोई कोई आकृति चारपॉंच फुट ऊची तक थी ।

तरह तरह का आकार दिया गया था  गुजरिया का स्वरूप तो कोई सैनिक सा ,कोई ऐसा लग रहा था बंदर बैठा हुआ है । हैट पहने अंग्रेज साहब,सिर पर मटकी लिये  पनिहारिन कहीं  सिर पर कपड़ा बांधे लग रहा था हल उठाये किसान चलाआ रहा है वैसे अधिकतर स्तूप का सा स्वरूप लिये हुए थे ।

आधाकिलोमीटर तक की चढ़ाई में मुझे परेषानी नहीं आई फिर मुष्किल पड़ने लगी धीरे धीरे सॉंस फूलने की प्रक्रिया बढ़ने लगी । मैं वहीं नदी किनारे चट्टानों पर बैठ गई ।नदी का स्वरूप जैसे नमन कर रहा हो  घनघोर बादल छा रहे थे बीच बीच में बड़ी बड़ी बूॅंदे टपक जाती । धीरे धीरे बादल सरकने लगे सामने एक उज्वल हिमषिखर चमकने लगा जो कुछ बादलों के पर्दे के पीछे से बाहर आया वह अदभुत् था । वह कैलाष था इतने पास जो ऊपर चढ़ रहे हैं वे तो लग रहा था उसे छू ही लेंगे ।  देखने में पास था  लेकिन दस किलो मीटर की दूरी थी ।एक एक कर सारे बादल छॅंट गये । हॉं एक काला बादल द्वितीया के  चॉंद  के समान षिखर पर ऐसा छाया  कि षिखर ऊपर से  गोलाकार चमकने लगा । सूर्य के प्रकाष में उसमें अदभुत् चमक आ गई थी  बायीं तरफ नीचे सूर्य की किरण एक स्थान पर ऐसे पड़ रही थी करीब दो फुट वृताकार का सितारा चमक उठा यह तो नीचे से दिख रहा था वह स्थान मॉं  पार्वती का माना जाता है। इस मैं भोलेबाबा की कृत्य कृत्य हॅूं जो उन्न्होंने दर्षन दिये । बहुत देर तक उस अदभुत् दर्षन को आत्मसात करती रही । काला बादल सरक गया । पूर्ण षिखर फिर सामने था । बहुत देर तक सितारा चमकता रहा फिर धुंध में खो गया कुछ बॅूंदें फिर पड़ने लगीं। ऊपर पहुॅंच कर गोयल साहब व अन्य ने अष्टपाद की परिक्रमा की उसके अंदर गुफा बनी थी वहॉं जाकर देखा ।उस गुफा में बड़े बड़े कमरे  से बने हैं । वर्फ अंदर दीवारों छत पर लटक 

रही थी एक खंभे पर एक आकृति वर्फ से बनी हुई थी । पानी बहकर लम्बी लम्बी वर्फ की नोक सी लटक रही थी उस पर चेहरे की आकृति स्पष्ट दिख रही थी जैन धमर््ा में माना जाता है यह आकृति .ऋषभ देव की है 


Sunday, 10 August 2025

Kailashmansarover yatra 23

 विदेषों में और आनार्य संस्कुतियों में भी षिव के स्वरूपों का वर्णन मिलता है । ईजिप्ट में स्फिंक्स को वहॉं के विद्वानों ने षिव के नन्दी रूप में माना है । काउन्ट जान्स जन्ना ने ईजिप्ट में नील नदी के तट पर षिवलिंग ओर षिव मंदिरों की भरमार का वर्णन किया हे ‘ वहॉं ईजिप्ट में नील नदी के किनारे  अमोन के मंदिरों की भरमार उसी प्रकार है जिसप्रकार भारत मेंगंगा नदी के किनारे षिव के मंदिरों की ’। रोमन संस्कृति में इटली के ऊपर आल्प्स पर्वत मालाओं को कैलाष का रूपान्तर स्वीकारा है जहॉं से इन्द्रादि देवता वज्र के रूप में बिजलियॉं गिराते हैं ।सेरालुम गोम्पा से करीब दो किलोमीटर आगे दल की एक गाड़ी में कुछ परेषानी आ गई सब गाड़ियॉं रुक गईं सब यात्री उतर उतर के दृष्यों का आनंद लेने लगे । वहीं पर एक व्यक्ति ने बताया सेरालुम गोम्पा के सामने  मानसरोवर के किनारे की मिट्टी बहुत पवित्र मानी जाती है । वहॉं की मिट्टी पूजा में रखी जाती है वह मिट्टी भी सुनहली है उसमें सोना पाया जाता है । वही सबसे पवित्र स्थान माना जाता है । अब क्या हो सकता था पहले पता ही नहीं चला नहीं तो  जरा सी मिट्टी वहॉं की  ले आते  बहुत दुःख हुआ  जरा सी जानकारी न होने से  एक महत्वपूर्ण सूत्र छूट गया । किसी भी यात्रा पर जाने से पूर्व पूर्ण जानकारी लेना आवष्यक होती है तभी पूर्ण आनंद लिया जा सकता है ।

मान सरोवर के जल पर एक दो छोटी चिड़िया और पहाड़ी कौवे उड़ते दिख रहे थे हंस दूर दूर तक नहीं दिखे थे । एक मोड़ आया और दो हंस पानी में किलोल करते दिखाई दिये  कभी पंख फड़फड़ाकर  पैरों पर पानी में खड़े हो जाते फिर तैरने लगते । पहले  बार बार झपकी आरही थी हंस दिखाई देते ही ऑंख खुल गई कुछ दूर पर फिर चार हंस दिखाई दिये  दूध से उज्वल लम्बी गर्दन पीली चोंच  अर्थात् मान सरोवर में हंस हैं यह निष्चित है ।

राक्षस ताल मान सरोवर से  तीस किलोमीटर की दूरी पर है राक्षस ताल और मानसरोवर दोनों मनुष्य के दो नेत्रों के समान हैं बीच में नासिका के समान उठी हुई पर्वतीय भूमि है जो दोनों को पृथक करती है विषाल पर कुछ लम्बा सा कहते हैं  आकाष से देखने पर लगता है कोई बॉंहे फैलाये खड़ा है । राक्षस ताल का जल भी निर्मल स्वच्छ लग रहा था पर उस पर हल्की  कालिमा सी थी उसे असुर ताल भी कहा जाता है उसके जल का कोई आचमन भी नहीं करता है न नहाता है ।

 राक्षस ताल अर्थात रावण का ताल । यहीं पर लंकाधिपति रावण ने घोर तपस्या की षिवजी को  प्रसन्नकरने के लिये एक एक कर अपने नौ सिर चढ़ा दिये तो षिवजी   उसकी भक्ति देख प्रसन्न हो उठे । और बोले ,‘राक्षस राज वर मांगो ’ रावण ने कहा  मुझे अतुल बल दें और मेरे मस्तक पूर्ववत् हो जायें ’ भगवान् ष्शंकर ने उसकी अभिलाषा पूर्ण की इस वर की प्राप्ति से देवगण और ़ऋषिगण बहुत दुःखी हुए । उन्होंने नारद जी से पूछा ‘देवर्षि ! इस दुष्ट रावण से हम लोगों की रक्षा किस प्रकार से हो?’ नारद जी ने कहा ‘ आप लोग जायें मैं इसका उपाय करता हॅूं  ।’ तब जिस मार्ग से रावण जा रहा था, उसी मार्ग से वीणा बजाते नारद जी उपस्थित हो गये  और बोले ,‘ राक्षसराज! तुम धन्य हो तुम्हें देखकर असीम प्रसन्नता हो रही है। तुम कहॉं से आ रहे हो और बहुत प्रसन्न दीख रहे हो  ?’ रावण ने कहा ऋषिवर ! मैंने आराधना करके षिवजी को प्रसन्न किया है।’ रावण ने सभी वृतान्त ऋषि के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया। उसे सुनकर नारद जी ने कहा ,‘ राक्षस राज षिव तो उन्मत्त हैं , तुम मेरे प्रिय षिष्य हो इसलिये कह रहा हॅूं तुम उन पर विष्वास मत करो  और लौटकर उनके दिये वरदान को प्रमाणित करने के लिये कैलाष को उठाओ । यदि तुम उसे उठा लेते हो तो तुम्हारा अब तक का प्रयास सफल माना जायेगा । ’ अभिमानी रावण लौटकर कैलाषपर्वत उठाने लगा। ऐसी स्थिति देखकर षिवजी ने कहा -यह क्या हो रहा है तब पार्वती जी ने हंसते हुए कहा,‘आपका षिष्य आपको गुरु दक्षिणा दे रहा है। जो हो रहा है,वह ठीक ही है यह बलदर्पित अभिमानी रावण का कार्य है ऐसा जानकर षिवजी ने उसे षाप देते हुए कहा‘ अरे दुष्ट ष्शीघ्र तुझे मारने वाला उत्पन्न होगा’ यह सुनकर नारद जी वीणा बजाते चल दिये ।


Friday, 8 August 2025

kailash mansarover yatra 22

 एक   बहुत बड़ा गोल पत्थर था उस पर विचित्र सी आकृति बनी थी पर उसे लाना संभव नहीं था । इस बात पर  एक प्रसंग याद आ गया । जब हम मान सरोवर के लिये बढ़ रहे थे तब रास्ते में कैलाष के दर्षन हुए । उस समय उस पर ओम का चिन्ह उभर आया  कुछ देर बाद देखा तो लगा  यह तो अंग्रेजी का  ओम अर्थात् ओ एम बना है पहले तो ध्यान ही नहीं दिया। मैं साधारण रूप से  ओम पढ़ती रही फिर चिहुॅंक पड़ी अरे ये तो अंग्रेजी में ओम बना है । तभी  श्रीमती विजय लक्ष्मी बोलीं कुछ देर पहले मुझे तमिल में ओम लिखा दिखा था। कुछ देर बाद फिर ओम दिखने लगा था वहीं पास में एक पर्वत पर

विषाल गणपति की आकृति दिखरही थी । वहॉं आस पास के षिखरों पर सब  अलग अलग आकृतियॉं देख रहे थे ।

अभिषेक सम्पन्न हुआ सारी हवन सामिग्री की एक साथ आहुति दे दी गई लपटें ऊॅंची हो गईं उसकी गरमी अच्छी लग रही थी।आरती हुई प्रसाद में नारियल सबको वितरित किया गया । वापस टैन्ट में आकर सारा सामान डफल बैग में डाला जब तक खाना खाकर बाहर आये  सारा सामान ट्रक में लद चुका था ।

         यहॉं से प्रारम्भ हुआ मानसरोवर की कार द्वारा परिक्रमा लगाने का कार्यक्रम । वैसे तो पूरी परिक्रमा पैदल लगाई जाती है । 1982 में बाबूजी जब सरकार द्वारा आयोजित कैलाष मान सरोवर यात्रा में पैदल गये के तब उन्होंने  तीन दिन में 80 किलो मीटर की यात्रा पैदल पूरी की थी । तीन ही दिन कैलाष की परिक्रमा में लगे थे । पैदल मार्ग सरोवर के किनारे किनारे है और गाड़ी का मार्ग कुछ दूर से है। आधी  परिक्रमा दारचेन तक की यात्रा में लग जाती है  । परिक्रमा मार्ग अपने में अदभुत् है । सरोवर का हर रंग दिख रहा था जैसे अनंत तक केवल सरोवर हो  कैलाष हर मोड़ पर छिपता दिखता रहा । सबसे पहले परिक्रमा मार्ग पर चियू गोम्पा पड़ा यह एक टीले पर अवस्थित है । गर्भ गृह में कई बौघ्द तिब्बतीदेवी देवता एवम् मनी मंत्र लगे थे । पीतल की बड़ी बडी़ मूर्तियॉं थीं  मठ के लामा पुजारी गुलाबपाष से पवित्र जल छिड़क रहे थे  नन्हंे नन्हे घी के दीपक रखे थे जो युआन देकर जलाये जा सकते थे कुछ ने जलाये भी । चियू गोम्प के पास एक  पर्वत था उसकी मिट्टी बहुत पीली थी उस पर सूर्य की किरणें पड़ी तो वह झिलमिला उठा उपस्थित गोम्पा के निवासियों ने बताया उस पर्वत पर सोना पाया जाता है । 

छः किलो मीटर की यात्रा के बाद एक और गोम्पा पड़ा उसका नाम था सेरालुम गोम्पा । यह चियू गोम्पा से कहीं बड़ा था । इसमें करीब पन्द्रह पीतल की मूर्तियॉं दो फुट से लेकर सात फुट तक ऊॅंची थीं।  तिब्बती देवी देवताओं के स्वरूप हिन्दू देवी देवताओं से मिलते थे । एक सात फुट ऊॅंची मूर्ति को  विष्णु का स्वरूप कहा  जा सकता है । षिव स्वरूप भी थे और काली मॉं का रूप भी पर सब तिब्बती देवी देवता थे । सभी मूर्तियॉं पंक्तिबध्द ष्शीषे के ष्शो केस में लगी थीं । प्राचीन पॉंडुलिपियों के ये गोम्पा खजाना हैं । पतले पतले लम्बे टीन के डिब्बों में ये बंद थे । ये गोम्पा अघ्ययन के  विषय हैं।संस्कृति का अनमोल खजाना हैं वैसे तो कभी ये भारत की अनमोल धरोहर थी इसलिये भारतीय  संस्कृति ही रची बसी है । पूरे मार्ग में पर्वतों पर छोटे छोटे द्वार से बने थे वे साघु महात्माओं की तपस्थलियॉं थीं । उन पर्वत मालाओं पर अनेक धर्मों के  संत महात्मा अपने अपने ढंग से ईष्वरीय सत्ता को नमन  करते हैं ।


Thursday, 7 August 2025

Kailask mansarover yatra 21

  दो बजने के साथ ही पूरे कपड़ों में लदे फदे एक एक कर सब बाहर आने लगे  । कभी कैलाष की ओर कभी मानसरोवर की ओर कभी आकाष की ओर देख रहे थे  मान सरोवर के बिलकुल निकट से  भी यात्रियों की आवाज आ रही थी संभवतः वे आश्रम में टिके यात्री थे । कुछ देर चारों ओर देखने के बाद धर्म परिचर्चा भजन जाप आदि प्रारम्भ हो गया । दो घंटे बीत गये एक एक कर यात्री टैन्टों में घुसने लगे  कुछ नहीं  है आस छोड़ दी । मुझ जैसे अभी कुछ टिके थे शायद कुछ  दिख ही जाय मुझे तो नींद वैसे भी नहीं आनी थी, मुझे नींद अपने बिस्तर के अलावा कहीं नहीं आती है ,बहुत हुआ तो एक दो झपकी ही आती हैं, विषष छोटे से टैन्ट में  तो बाहर ही बैठे क्या बुरा है । मान सरोवर के किनारे  बैठे यात्री भी लौट गये । गोयल साहब  तो टैन्ट से निकले ही नहीं थे बंसल साहब टैन्ट से सिर  निकाल कर आकाष की ओर देख रहे थे । चारों ओर देखते मैंने देखा पष्चिम दिषा से दो चमकदार तारे तेज गति से  मान सरोवर की ओर बढ़ रहे हैं सभवतः मिसाइल गति से  ‘ आरहे  हैं आ रहे हैं ’ मैं चिल्लाई वे ठीक  ऊपर पहुॅंच  चुके थे  और विलुप्तहो गये  सबने देखा पर  तब तक वे जा चुके थे  बंसल साहब का सिर आकाष की ओर था उन्होंने भी देखे तो शायद देवता ही थे  यदि चुप रहती तो तो शायद लोप न होकर मान सरोवर में उतरते  मैंने क्यों आवेष में चिल्लाया । ष्शायद इंसान की नजर से बच कर ही आते हैं ।  अब विष्वास हो गया देवता आते हैं तो ज्योत भी आती होगी । पॉंच बजने को आये अब नहीं आयेगी अब सब तंबू में घुस गये मैं भी घुस गई । लेकिन झिरी से अपनी निगाहें कैलाष पर टिकाये रखी । एक चमत्कार देखने को मिला शायद दूसरा भी मिल जाये । झिरी से ठंडी हवा घूम घूम कर घुसने का प्रयास कर रही थी । पर आषा साथ नहीं छोड़ रही थी । एक दो मिनट को सिर  इधर उधर रखती  तो लगता  उसी समय न आजायें और मैं देखने से वंचित रह जाऊॅं  पर भोर हो गई ।

        पहली किरन के साथ विषाल लाल गोला सूर्य का सामने आया । नीला पानी भी हलका लाल सा दिखने लगा । तीखी हवा हड्डियों तक पहुॅच रही थी । बादल भी अपनी धमा चौकड़ी मचाये हुए था । कैलाष की झलक दिखती और वह बादलों में छिप जाता । गुरला मान्धाता जैसे षिव को  नमन कर रहा हो ।

आगे का पड़ाव दारचेन था । वहॉं एक रात रुक कर परिक्रमार्थी परिक्रमा को  जाने वाले थे । हम अठारह जन दारचेन में  ही रुकने वाले थे । दोपहर दो बजे तक मान सरोवर पर रुकना था। उसके बाद दारचेन की यात्रा थी इसलिये एक बार फिर स्नान लाभ करने मान सरोवर पर पहंुॅचे। इस समय पानी वर्फीला ठंडा था। हमने रुद्राक्ष की माला को मान सरोवर में स्नान कराया  और षिव अर्चना के साथ उसे रखा साथ ही स्वयं स्नान किया । इस बार अधिक देर रुकने की हिम्मत नहीं हुई । कभी कभी मोटी मोटी बूॅंदे आ जाती और एक दम  धूप खिल जाती । सरोवर से  कुछ रेती छोटी छोटी  थैलियों में डाली तथा छोटे छोटे षिला खंड सरोवर से निकालें एक गोता खोर काफी आगे से  जाकर हमारे लिये षिला खंड बीन कर लाया ।इन्हें हम शिव स्वरूप् ही मान कर लाये थे ।

उस दिन सहयात्रियों ने निष्चय किया था कि रुद्राभिषेक किया जायेगा । रात्रि वाले हवन कुंड के स्थान को ही साफ करके हवन कुंड तैयार किया । यह देखकर हैरानी हुई कि सबके बैगों से अभिषेक की सामिग्री निकल रही थी । सूखा दूध मान सरोवर के जल से  घोल तैयार किया गया । ष्शहद   नारियल लकड़ी आदि सब वस्तुऐं एक एक कर निकलने लगीं श्री निवासन के पास तो पारद षिवलिंग था ही अन्य कई षिवलिंग निकल आये घेरा बनाकर मंत्रोच्चार के साथ रुद्राभिषेक प्रारम्भ हुआ । पूर्ण प्रक्रिया में चार घंटे लग गये  बार बार कैलाष मुस्कराते हुए आर्षीवाद देने आ उपस्थित होते और बार बार बादलों के पर्दे के पीछे चले जाते। वुंदावन में बिहारी जी के मंदिर में दर्षन प्रक्रिया में हर मिनट के बाद बिहारीजी के सामने पर्दा खींच दिया जाता है इसके पीछे मन्तव्य है कि लोग टकटकी लगाकर बिहारी जी के दर्षन करते हैं उन्हें नजर न लग जाय इसलिये पर्दा खींच दिया जाता है । संभवतः कैलाष को नजर न लग जाय इसलिये बार बार बादल 

पर्दा बन उनके सामने आ जाते थे ।

आस पास  सेे कई छोटे छोटे  आकृतियों वाले और मोती की आभा वाले पत्थर एकत्रित किये कहते हैं मान सरोवर में मोती हैं और हंस उन मोतियों को चुगते हैं । लेकिन वहॉं  अनेकों  बार आने वाले ष्शेरपा आर साधु बता रहे थे कि उन्होंने कभी मोती नहीं देखे । हॉं सरोवर तट पर  छोटे छोटे पत्थर थे  जिन में सीपियों की आभा थी । कुछ पत्थरों में रुपहली चमक थी तो किसी में सर्प की आकृति तो किसी में गणपति की आकृति थी । अब यह भी कहा जा सकता है-

जाकी रही भावना जैसी 

प्रभु मूरत तिन देखी तैसी । 


Wednesday, 6 August 2025

kailash mansarover yatra 20

 केवल दैवीय प्रतिभा प्राप्त कवि या कलाकार अपनी कविता या कूॅची से झील पर सूर्योदय  और सूर्यास्त के सौंदर्य का वर्णन कर सकते हैं  । मानसरोवर का जल मीठा है । पूर्णिमा पर मानसरोवर का सौंदर्य वर्णनातीत है । सूर्यास्त के समय पूरा कैलाष क्षेत्र अग्नि पुंज बन जाता है एक क्षण के लिये ऑंखें चाैंधिया जाती हैं दूसरे ही पल सामने केवल कैलाष का रजत षिखर होता है । रात्रि को चारों ओर नीलाभ आकाष होता है लेकिन धरती पर हिम के कण बरस रहे होते हैं 

इसीलिये कहा गया है ,

मान सरोवर कौन परसे

बिन बादल हिम बरसे  ।

         इसीलिये मानसरोवर हर व्यक्ति का ध्यान खींचता है कवि हो या चित्रकार,मनोवैज्ञानिक हो या जीवविज्ञानी,या पर्यावरण विद हो या भूगोलवैज्ञानिक इतिहासज्ञ षिकारी या खिलाड़ी स्केटर या स्कीइंग  करने वाला हो समाज वैज्ञानिक हो शरीर विज्ञानी खजाने की खोज में जाना हो या आत्मा की खोज में साधू  हो या संत ,बूढ़ा हो या जवान या महिला हर एक के लिये यह खोज की वस्तु है ।

        वैसे तो मान सरोवर के तट पर एक आश्रम बन गया है लेकिन उसमें यात्री दल रुका हुआ था । हमें टैन्टों में रुकना था । ष्शीघ्रता से ट्रक में से  सामान उतार कर ष्शेरपाओं ने टैन्ट खड़े कर दिये । चार बाई छः के इस टैन्ट में दो दो व्यक्ति के रुकने की व्यवस्था थी । एक बड़ा टैन्ट भोजन व्यवस्था के लिये ख़ड़ा कर दिया गया । शाम झुकने को आई स्नान की ष्शीघ्रता थी । हल्की हल्की हवा चल रही थी । दाहिनी ओर  कैलाष पूर्ण गरिमा से खड़ा बादलों से बात कर रहा था। टैन्ट में सामान रख स्नान के कपड़े लेकर हम मान सरोवर की ओर बढ़  लिये ।

     मान सरोवर विषाल सरोवर दूर दूर तक सुनहला और झुक आई शाम की बेला की ललाई लिये था कहीं हल्का नीला कहीं गहरा नीला ।इतनी  ऊॅंचाई पर स्वच्छ जल का इतना विषाल बहुरंगी आभा लिये सरोवर मुग्ध कर रहा था । पवित्र जल को स्पर्ष किया सोचा था बेहद ठंडा बर्फीला जल होगा लेकिन यह क्या जैसे सद् गुनगुना था । सूर्य की प्रखर किरणों ने  उसे गुनगुनाहट प्रदान कर दी थी । आनंद आ गया । सुना था जल इतना ठंडा होता है कि पैर सुन्न हो जाते हैं  लेकिन यहॉं तो स्नान योग्य जल था  ,षारीरिक तापमान का । बालू में जल में भी नुकीली कुष घास थी  जब घुटनों तक जल आया तब बैठकर  स्नान किया । देखते देखते तीव्र ठंडी हवाऐं चलने लगी सब एक एक कर बाहर निकल आये । जैसे जन्म जन्म की आकांक्षा परिपूर्ण हुई हो । एक तृप्ति का भाव । ज्योति ने भी स्नान लाभ लिया ।

     श्री निवासन दम्पत्ति उम्र संभवतः बत्तीस चौंतीस के आसपास बैंगलौर के थे पर दुबई रह रहे थे षिव के परम उपासक थे  उन्हें पूजा आराधना विधिवत् करने का विषेष ज्ञान था । सामान की लिस्ट में  हवन सामिग्री लाने का भी लिखा था  हमने एक पैकेट हवन सामिग्री रख ली थी । स्नान के बाद श्री निवासन दम्पत्ति ने हवनकुंड वहॉं पड़े गोल गोल पत्थरों को रखकर बनाया और हवन प्रारम्भ हुआ यात्रियों ने निष्चय किया  कि उस दिन तो हवन करेंगे और  दूसरे दिन प्रातः अभिषेक करेंगें क्योंकि हवन में समय लगना था हवन कुंड के सामने अपने अपने बैग लेकर यात्री बैठ गये । किसी के बैग से  आम की लकड़ी किसी के बैग से घी का डिब्बा  धूप  आदि निकलने लगे । और यज्ञ आरम्भ हुआ । ठंडी हवा पूर्ण वेग से चलने लगी  अंदर तक कंपकंपी हो रही थी अग्नि बहुत मुष्किल से प्रज्वलित हुई । बार बार कैलाष  हमारे हवन को देखने  सुनहरी आभा बिखराते बाहर आ जाता फिर बादलों की ओट में छिप जाता । मंत्रोच्चार के साथ जब ओम नमः 

षिवाय का जाप  प्रारम्भ हुआ लगा दिगदिगन्त से एक ही आवाज उठ रही है ओम । धीरे धीेरे सूर्य गुरला मांधाता के पीछे छिप गया पहले लाल फिर सुनहरी आभा और एकदम अंधकार। अभी चॉंद निकला नहीं था गहन अंधकार में यदि कुछ चमक रहा था तो श्वेत उज्वल हिम मंडित कैलाष । मान सरोवर के चारों ओर सभी षिखर हिम मंडित थे लेकिन 

अंधकार की कालिमा के साथ एक होगये थे लेकिन कैलाष ही था कि वह दमक रहा था जैसे उसके अंदर से प्रकाष फूट रहा हो । कहीं कुछ तो है वहॉं की बर्फ दमकती है या वहॉं ऐसी जड़ी बूटियॉं हैं जिनसे प्रकाष फूटता है या देवाधिदेव षिव,मॉं पार्वती, विनायक , कार्तिकेयके तन की आभा है । वराह पुराण में मान सरोवर के चारों ओर की पर्वत श्रंखलाओं केनाम वर्णित हैं । मानसरोवर के पूर्व में प्रसिध्द पर्वत श्रंखला है विकंग ,मणिश्रंग ,सुपात्र, महोपल ,महानील ,कुम्भ सुविन्दु ,मदन वेणुनद,सुमेदा निदााध और देव पर्वत पष्चिम  में राक्षस ताल और रावण हरदा , दक्षिण में त्रिषिखर,गिरिश्रेष्ठ षिषिर, कपि,षताक्ष,तुरग,सानुमान्,ताम्राक्ष,विषष्वेतोदन, समूल,सरल,रत्नकेतु,एकूमल,महाश्रंग, गजूमल, ष्शावक ,पंच शैल ,गुरला मांधाता और कैलाष । उत्तर में हंसकूट,बशहंस,कपि ळजल,गिरिराज ,इंद्रषैल,सानुमान् नील कनकश्रंग,षतश्रंग ,प्ष्श्कर एवम् भारुचि हैं।

       यज्ञ की समाप्ति के बाद खाना खाकर सब अपने अपने टैन्टों में घुस गये  इस निष्चय के साथ कि  दो बजे  उठकर सरोवर के किनारे बैठेंगे क्योंकि जो कुछ भी हमें बताया गया था उन पल का अब हमें इंतजार था । हमें बताया गया था पूर्णिमा की  रात मान सरोवर  पर अदभुत रात होती है चॉंद जमीन पर उतर आता है ष्श्वेत चॉंदनी में जब आगरा का ताजमहल मोती सा चमकने लगता है तो कैलाष की तो बात ही क्या होगी । सुना था दो ज्येतियॉं कैलाष से उतरकर मान सरोवर में स्नान कर वापस कैलाष पर जाती हैं । तीसरी बात जो हमें बताई गई थी तारों के रूप में ऋषि मुनि भोर में 

स्नान करने आते हैं ।


Tuesday, 5 August 2025

kailash mansarover 19

 ओम सृष्टि का आदि स्वर है ।नाद और घ्वनि का मूल स्वरूप । यही है यह पराबीजाक्षर ।‘मैं हॅूं देखो तो  ’ जैसे विषाल सलेट पर  सफेद चाक से ओम बना दिया हो  चारों ओर घेरा भी बना था । ओम पर्वत दूर तक दिखाई देता रहा ।

एक छोटा सा कस्तूरी हिरन का छौना गाड़ी को  टुकुर टुकुर देखता रहा  फिर कुलांचे मारकर भाग लिया। एक दो  खरगोष भी दिखाई दिये । कहीं कहीं बालू  सूर्य की किरणों में हीरकनी सी चमक रही थी । कई कई  कण चमकते तो ऐसा तारे जमीं पर बिछ गये हों यमुना किनारे  गंगा किनारे  समुद्र तट पर सिक्ता के कण चमकते देखे हैं  लेकिन इतना तीव्र प्रकाष निकलते नहीं देखा ं संभवतः सूर्य पास दिख रहा था । दूर दूर तक   पूरे रास्ते ये कण चमकते रहे ।ज्यों ज्यों मान सरोवर पास आता जा रहा था रोमांच बढ़ता  जारहा था बार बार मोड़ पर जरा सी झलक दिखती तो सब चीखने लगते मान सरोवर मानसरोवर । एक चिर आकांक्षी प्रतीक्षा का अंत होने वाला था ।

      मानसरोवर से तीन किलो मीटर पूर्व एक समतल पहाड़ी स्थान दिखाई दिया । पतला सा स्तम्भ पॉंच रंग की झंडियॉं बंधी थीं  । प्रकृति के पॉंच तत्व के रूप में खंभे से बंधीं थी । ड्राइवर ने गाड़ी से उसकी परिक्रमा की और एक ओर गाड़ी रोक दी । बादल छाये हुए थे ज्ञात हुआ यहीं  कैलाष के प्रथम दर्षन होते हैं । कुछ देर बाद ही एक  ष्श्वेत उज्वल मनोहर षिखर बादलों से झांका । कुछ ही देर में सूर्य भी चमक उठा और षिखर  सुनहरा चमकने लगा । बादल धीरे धीरे हटे और पूर्ण कैलाष हमारे सामने था स्वतः उस भव्य दर्षन के लिये  हाथ जुड़ गये । नेत्र छलछला उठे कितने सौभाग्याषाली हैं हम जो यह दृष्य देख रहे हैं  । एक एक कर सब वहॉं बैठ गये अधिकतर के  नेत्रों से प्रेमाश्रु बह रहे थे  क्षण भर को भी  ऑंखे हटाने का मन  नहीं कर रहा था क्योकि अधिकतर षिखर बादलों से ढका रहता है प्रथम दृष्टि दर्षन दुर्लभ हैं। ज्ञातहुआ कभी कभी तो कई कई घ्ंाटे लोग खड़े रहते हैं पर  कैलाष सामने नहीं आते । वहॉं से हटने का मन तो नहीं कर रहाथा पर समय अपनी गति पकड़ रहा था और मान सरोवर में स्नान करना था यदि वहॉं देर हो जाती है तो ष्शाम के स्नान नहीं हो पायेंगे । कैलाष का चित्र खींचा जाने लगा सब दल में  कुछ बैठ गये कुछ खड़े हो गये  । चित्र खींचा गया  हमने  अलग से भी  खिंचवाई लेकिन आगरा आकर जब सीडी डैवलप कराई तब केवल बादल ही आये  जबकि जब फोटो खींची षिखर चमक रहा था । फोन कर बाद में अन्या साथियों से पूछाा उन्होंने भी कहा ओम की फोटो नहीं आई।

  कैलाष षिखर को  वंदन कर आगे की यात्रा के लिये चल दिये । अगला पड़ाव मान सरोवर था । तीन किलोमीटर की रोमांचक यात्रा पूर्ण हुई । ठीक मान सरोवर के तटपर गाड़ियॉं पहुॅंची तट करीब सौ मीटर की दूरी पर होगा ।

     हिमालय का सबसे  खूबसूरत क्षेत्र कैलाष मानसरोवर दिल्ली से 865 किलोमीटर दूर है कैलाष के सामने 32 किलोमीटर दूर मान सरोवर  या पवित्र मानस सरोवर संस्कृत ष्शब्द मानस व सरोवर से मिलकर बना है इसका ष्शाब्दिक अर्थ मन का सरोवर है यह सरोवर  ब्रह्मा जी की संकल्प ष्शक्ति से  सृष् िके आरम्भ में निर्मित हुआ था । यह झील सबसे अधिक पवित्र  आकर्षक है । संसार की सभी झीलों में सबसे सुंदर।भारतीय पौराणिक आख्यानों में इसका बहुत महत्व है । यह झील जादुई सी रहस्यमय लगती है।षांत नीलमणि सी यह झील तिब्बत की पहाड़ियों पर झूला सी झूलती नजर आती है यह समुद्र तल से 14950 फुट है इसकी परिधि 88 किलोमीटर कभी थी अब 52 किलोमीटर है इसकी गहराई 300 फुट है सर्दियों में यह झील जम जाती है और बसंत के साथ पिघलना प्रारम्भ कर देती है । इससे सरयू व ब्रह्मपुत्र दो बड़ी नदियॉ निःसृत हैं यहॉं कुमदा नाम से सती देवी का ष्शक्ति पीठ है यहॉं सती की दाहिनी हथेली गिरी थी । पितरों के श्राध्द के लिये यह तीर्थ प्रायः सर्वोत्तम माना गया है यहॉं तप करने से तत्काल सिध्दि मिलती है । बौध्द धर्म में भी इसे  पवित्र माना गया है ऐसा कहा जाता है कि रानी  माया से भगवान् बुध्द की पहचान यहीं हुई थी 


Saturday, 2 August 2025

Kailashmansarover yatra 18

  प्रयांग और सागा के बीच  ब्रह्मपुत्र नदी पड़ती है पूर्व में यह नदी फैरी से पार करनी पड़ती थी अब वहॉं पुल बन गया हैै प्रयांग तक का सफर सहज है ।  बहुत ऊॅंचा नीचा न होकर मैदानी सा है लेकिन पहाड़ सब  जगह एक से थे  ।  प्रयांग भी  एक दम सुनसान स्थान है कहीं कहीं रेतीली मिट्टी की ईंटों के अधबने कमरे से दिख रहे थे । उन रेतीले कमरों को  पार करके  एक पक्की बिल्डिंग दिखाई दी वही हमारा ठहरने का स्थान था  चारो ओर  ऊॅंची चार दीवारी से घिरा बीच में बड़ा  ख्ुाला स्थान तीन ओर कमरे एक कोने में बाथरूम आदि बने थे  बीच में एक हॉल जो उनका सत्संग भवन था । हैरानी हुई इतने वीराने में इतना अच्छा गैस्ट हाउस ।

         एक महंत भी अपना ग्रुप लाए थे  वे अभी आये नहीं थे हर कमरे में तीन तीन पलंग कर दिये गये कमरे छोटे थे । हमें जो कमरा मिला उसे देख कर हम हैरान रह गये कि बड़ी अच्छी व्यवस्था है । कालीन रेषमी पर्दे, पलंग पर भी मोटे डनलप के गद्दे पर साटन की चादर , रेषमी झालर दार तकिये  , सोफा । कमरा लोबान आदि से सुगंधित हो रहा था,अभी हम सामान रख ही रहे थे कि व्यवस्थापक भागा आया उसने गलती से हमें महंत जी का कमरा  एलाट कर दिया था उसके माथे पर इतनी सर्दी में भी पसीना चुहचुहा आया था ‘ यह कमरा महंत जी का है वे आते ही होंगे  प्लीज आप दूसरे कमरे में चलिये  ’। धत्तेरे की आ गये अपनी औकात पर वही तीन  फोल्डिंग  पलंगो वाला कमरा पुराने गद्दों पर चादर जरूर धुली बिछी थी ।नहाने की व्यवस्था यहॉं भी थी ।पच्चीस युआन अर्थात पचहत्तर रुपये देकर आराम से गर्म पानी में नहा सकते थे  परन्तु पानी की मात्रा और समय निर्धारित था दस मिनट और एक बाल्टी पानी । कुछ नहाये कुछ ने मानसरोवर के लिये स्नान मुल्तबी कर  दिया ।चंद्रमा और नीचे उतर आया था  । चतुर्दषी का चॉंद रात्रि में बिना बिजली के भी पूर्ण उजाला था । यहॉं  केवल आठ से

 दस बजे तक के लिये  बिजली थी उसके बाद बंद कर दी गई । अपने सह यात्रियों में अहमदाबाद से आये बुजुर्ग दम्पति को  हमने देखा  वे चुपचाप ष्शांत सब काम किये जा रहे थे उन्हें किसी प्रकार की कोई परेषानी नहीं हो रही थी । वे निलायम् ट्रैकिंग पर भी बहुत आराम से गई जैसे इन सब की अभ्यस्त हों ।

   ज्येाति की तबियत और बिगड़ गई । प्रयांग में जिला चिकित्सालय बस्ती में था उसे वहॉं ले जाया गया । यहॉं पर भीवही समस्या आयी  मुख्य चिकित्सक ने कहा  भर्ती करना पड़ेगा । भर्ती का मतलब था किसी का रुकना चिकित्सक ने दवा देदी और आक्सीजन का बड़ा सिलैंडर उपलब्ध कराया  । प्रातः काल तक   कुछ सुधार आ गया । 

अगला पड़ाव मान सरोवर था । उत्साह बढ़ गया प्रयांग से  मान सरोवर का रास्ता अधिक कठिन नहीं है ।

भोले बाबा को याद करते  मान सरोवर के लिये प्रातः यात्रा प्रारम्भ हुई ।  रेतीले पहाड़ों के पीछे वर्फ ढके पहाड़ भी दिखने लगे थे । बायीे ओर एक पर्वत पर  वर्फ से ओम़¬ बना दिखाई दिया यह ओम पर्वत कहलाता है षिव का नाम उस पर्वत पर  कह रहा था  यह प्रदेष षिव का है । वैसे तो कण कण में षिव विराजते हैं पर यहॉं तो ओम¬ की मुहर लगी थी ।ओम परम ब्रह्म परमात्मा का  स्वरूप है ।  ओम की साधना से सारे क्लेष मिट जाते हैं 

‘ओमिति ब्रह्म । ओमितीदं सर्वम् ‘  ;तैत्तरीयोपनिषद् .


Friday, 1 August 2025

kailash mansarover yatra 17

 सागा में चीन का वर्चस्व है तिब्बती नहीं दिखाई दिये । होटल में भी सभी लड़कियॉं व पुरुष चीनी ही थे । बाजार में चीनी सामान की अनेक दुकानें सजी थीं  वहॉं पर  सामान में क्वालिटी से ज्यादा सुंदरता पर अधिक बल दिया जाता है हमें बताया गया उत्तम क्वालिटी का सामान भी उपलब्ध है पर बहुत मंहगा है  जो सस्ती होती है सुंदर होती है पर टिकाऊ नहीं होती । हर वस्तु की पैकिंग बहुत सुंदर थी । लड़कियों का पहनावा मुख्यतः पैन्ट ष्शर्ट कोट या स्कर्ट कोट ही दिखा । पुरुष भी कोट पैन्ट या स्वेटर और ढीले ढीले पाजामा में दिखे । होर्डिंग बैनर सभी पर केवल चीनी भाषा का  ही प्रयोग था कहीं कहीं  हिंदी लिखी देखकर आष्चर्य ही हुआ । रात्रि में कमरे में  तीन तीन लोगों की व्यवस्था थी हमारे कमरे का तीसरा  साथी  गाइड अवतार था पर वह रात में  वहीं बाहर ही सोता रहा । हमने कहा कि जिस कमरे में चुष हैं उस कमरे में चले जाओ या हम एक कमरे में महिलाऐं और एक कमरे में पुरुष सो जायेंगे ।

    प्रतिदिन की दिनचर्या के अनुसार प्रातः आठ बजे प्रयांग के लिये प्रस्थान करना था जल्दी जल्दी सब  समय से  तैयार थे । खाना बनाने वाले ष्शेरपा इतने मुस्तैद रहते थे कि आष्चर्य होता था। हर प्रदेष का खाना खिला रहे थे  छोटे छोटे उत्तपम, बड़ा सांभर अर्थात् दक्षिण भारतीय खाना तैयार था श्रीमती विजय लक्ष्मी गुप्ता एकदम प्रसन्न हो उठीं कि आज तो उनका मन पसंद खाना मिल रहा था । पूरे रास्ते ष्शेरपाओं ने इटैलियन पास्ता , उत्तर भारतीय पूड़ी बेड़वीं,राजस्थानी दाल वाटी, बिहार का लिट्टा चोखा आदि बनाया ।  पेय पदार्थ भी  सब प्रकार के रहते थे । सूप चाय कॉफी ,दूध बॉर्नविटा ष्शहद नीबू  आदि ।

         सागा से प्रयांग की दूरी 160 किलोमीटर तक है । अब कुछ उतरना था । प्रयांग 14750 फुट समुद्र तल से ऊॅंचाई पर स्थित है। प्रयांग का रास्ता भी  सूना है केवल कहीं कहीं चरागाह  दिख जाते हैं । प्रयांग में कहीं कहीं घोडे़ नजर आने लगे थे सड़क बन रही थी केवल दो तीन मजदूर दिखाई दिये वे निष्ठा से काम कर रहे थे ।  सागा से प्रयांग  के रास्ते में कई किलोमीटर तक हनुमान लेक चलती गई । इस लेक का जल देखने में सुनहरा लगता है कहा जाता है वहॉं के वासी हनुमान जी कभी कभी भक्तों को  अपनी उपस्थ्तिि का एहसास कराते हैं । हमसे पहले  आये ग्रुप के प्रमोद बाबू व ममता बंसल ने बताया था कि उन्होंने एक विषाल साये को  बराबर चलते और फिर झील में विलुप्त होते  देखा था  सुनकर एक  श्रध्दा का एहसास हुआ था परंतु हमें ऐसा कोई  अनुभव नहीं हुआ । जल बेहद शंात था । ढलते सूर्य ने  जैसे  उस पर स्वर्ण बिखरा दिया हो  । कहीं कहीं छोटे पक्षी तैरते नजर आये । लेक पूरे रास्ते हमारे साथ साथ चलती रही । इस रास्ते पर भी एक नदी  पार करनी पड़ी नदी  कुछ उफान पर थी तथा वेग भी तेज था ड्राइवर सभी इन परिस्थितियों के लिये तैयार थे  हमें रोमांच हो रहा था लग रहा था पानी गाड़ी में भर जायेगा मछलियॉं टकरा रही थीं । एक दो गाड़ियॉं जरा अटकीं पर सब निकल गई ।मनोहारी दृष्य था आगे चौडा़ रेतीला मैदान सब उतर कर  प्रकृति का आनंद लेने लगे ,ठंडे बहते पानी मेंपैर डालकर खड़ा होना नीचे से धरती सरकती महसूस होना,म नही नहीं कर रहा था वह स्थान छोड़ने का  लेकिन आगे की यात्रा जारी रखनी थी ‘ जल्दी करो के स्वर के साथ ही सब चढ़ कर चल दिये  


Thursday, 31 July 2025

kailash mansarover yatra 16

 अगला पड़ाव सागा था रास्ते में कहीं कहीं जरा देर के लिये  ऐसे स्थानों पर यात्रा दल रुकता था जहॉं पर तिब्बतियों की चार पॉंच  तम्बू नुमा दुकानें  होती थीं जिनमें  यात्रा के उपयोग की वस्तुऐं रहती थीं। वहॉं भी तिब्बती महिलाऐं सामान बेच रही थीं । तरह तरह के नमकीन बिस्कुट टॉफी मनके मालाऐं रजाई पिन आदि साथ ही कोल्ड ड्रिंक आदि भी  रख रखे थे । उन तिब्बती बालाओं का श्रंगार देखने योग्य था । कान में बालियॉं या  झुमके। कई कई  मनकों की मालाऐं। केषों मेंतरह के पिन सजावटी कंघी आदि लगी हुई थी । वहॉं तिब्बती परिधान भी दिख रहे थे ै कुछ यात्रियों ने फोटो खींचना चाहा तो  वे एकदम छिटक कर बोली ,फोटो नइं , फोटो खंचना है तो पैसे दो ,उन्होंने सौ युआन तक मांगे ।

     सागा के रास्ते में एक  विषाल झील हमारे साथ साथ थी । कई किलो मीटर लम्बी इसे  तिब्बती पिगुत्सी लेक कहते हैं बेहद सुंदर स्वच्छ जल । सागा 16800 फुट की ऊॅंचाई पर है । यहॉं पर आक्सीजन 66प्रतिषत है । कुछ लोगों को यहॉं पर सॉंस लेने में असुविधा होने लगी। मुबई की ज्योति रतनपॉल पेषे से वकील थीं अकेली आईं थीं । उम्र पेंतीस के आसपास थी अविवाहित थी ं उनको सॉस लेने में परेषानी होने लगी कुछ दवाऐं सबके पास थीं कुछ डाक्टरी दवाऐं यात्रादल के साथ चल रहीं थी । छोटे छोटे सिलेंडर सबके साथ थे ही लेकिन उन्हें बेहद ठंड लग रही थी सॉंस की भी षिकायत हो ही गई थी । उनके कार के सहयात्री और ष्शेरपा पेम्बा ने उनकी देखभाल का जिम्मा उठाया । आगे की यात्रा  कर पायेंगी कि नहीं  भाई को खबर की जाय तो उन्होंने सिरे से नकार दिया ‘नहीं भाई ने बहुत मना किया था अकेली मत जाओ अब यदि पता चलेगा कि मेरी तबियत खराब हो गई तो बहुत गुस्सा होगें, मैं ठीक हो जाउॅंगी चिंता मत करो ’।

           ष्शाम होते होते हम सागा पहुॅंच गये । सागा पहुॅंचकर ज्योति को कई वस्त्र ओढ़ाकर लेटा दिया गया। चिकित्सा अधिकारी ने उन्हें दवा देदी। चिकित्सक का कहना था उन्हें अस्पताल में भरती करा दिया जाये लेकिन उनके साथ किसी को रुकना पड़ सकता था अपनी यात्रा बीच में छोड़ने के लिये किससे कहा जाता फिर लौट कर आने तक दस दिन का समय  बहुत परेषानी वाला होता। निष्चय यह रहा, देख रेख होती रहेगी आगे की यात्रा जारी रहेगी । रात तक कुछ बेहतर महसूस करने लगी ।

         सागा का होटल बहुत अच्छा था । तीन मंजिल  वाले होटल में सभी सुविधाऐं उपलब्ध थीं  लिफ्ट नहीं थी और हमें तीसरी मंजिल ही ठहरने के लिये मिली थी । एक कमरे में तीन  लोगों का  ठहरने का इंतजाम था। कमरे में पहुॅंचकर सबसे पहले नहाने  का प्रबन्ध देखा , दो दिन से स्नान नहीं हुआ था सोचा कैसे भी नहाया जाये । होटल सभी सुख सुविधाओंसे पूर्ण था लेकिन चीन में पानी की बहुत कमी है । अभी तक की यात्रा जैसे धर्म स्थलों के स्थान होते हैं वैसी थी लेकिन सागा के पॉंच सितारा होटल ने उसे लक्जरी में पहुॅंचा दिया । हर कमरे में कॉफी के पाउच ,चाय के पैकेट व गर्म पानी

 रखा था ही  काफी पी गई । पता लगा पानी आठ बजे आयेगा और केवल दो घंटे के लिये आयेगा  और एक ही समय पानी आयेगा ।अर्थात् इस समय नहाना  और सुवह के लिये भरकर रखना इस समय नहाकर  भी सुवह नहाकर ही चलना  चाहते थे क्योंकि  पता था  आगे प्रयांग में और दारचेन में नहाने की सुविधा नहीं है ।

        होटल के पीछे सैन्य छावनी थी होटल के कमरे में निर्देष था उधर की  तरफ देखना या फोटो खींचना निशिध्द है ।   नित्य नई तकनीक  विकसित हो रही हैं । उस तरफ दीवार ष्शीषे की थीं  यदि किसी के मन में गलत हो तो वह आराम से फोटो  खींच सकता था । । लेकिन हमने निर्देष का पूरा पूरा पालन किया लेकिन यह तो मानवीय प्रकृति है जिस वस्तु का निषेध होता है उसके लिये उत्सुकता भी होती है जरा सा पर्दे के पीछे से ही झांक कर देखा  अवष्य कि क्या है  परन्तु ऐसा कुछ नहीं था वहॉं सैनिकों की ड्रिल हो रही थी हम हट गये हमें बस इतनी उत्सुकता थी । हर देष का सैनिक अपनी मातृष्भूमि का रक्षक है हमारी उनके प्रति पूरी पूरी श्रध्दा है हमें उनसे कुछ लेना देना था नहीं  पर हॅंसी अवष्य आई कि जिस होटल में देष विदेष का हर नागरिक रुकता है वह ऐसे स्थान पर क्या सोच कर बनाया है । संभवतः कोई अधिक  महत्वपूर्ण  छावनी नहीं होगी ।

      नहाने के लिये होटल वालों से  बाल्टी मग  का प्रबन्ध करने के लिये कहा । एक बाल्टी मिली । नहाकर मग ,पानी के गिलास यहॉं तक कि डस्टबिन तक पानी से भरकर रख लिया सोचकर कि  आधी आधी बाल्टी से नहा लेंगे डस्टबिन के पानी  को अन्य प्रयोग में ले आयेंगे गिलास खाली बोतलों के पानी को  ब्रष आदि  के उपयोग के लिये रख लिया । सिर रात्रि को ही धेा लिया । एक बार लगा रात्रि में इतनी ठंड में सिर धेाकर बीमार न पड़ जायें लेकिन एक तो गर्म पानी का लोभ क्योकि सुबह तो रात का भरा सीमित मात्रा में ठंडा पानी ही मिलना था ऊपर से ऊबड़ खाबड़ धूल भरे रास्ते में बहुत ही ऊंचा नीचा होता रहा था एकाएक बीस डिग्री तक का  फर्क आ जाता था । कभी ठंडी हवाऐं तो कभी असह्य गर्मी। धूल ही धूल की वजह से ष्शीषा जरा भी नहीं खोला जा पा रहा था और बंद गाड़ी में ऊनी कपड़ों के साथ बहुत गर्मी लगती थी । बार बार ऊनी कपड़े पहनना और  उतारना यही  नाटक चलता रहता था । मंकी कैप जरा भी नहीं उतारने दी जाती थी हम महिलाओं को तो  सुविधा थी हम ष्शॉल औढ़ और उतार लेते थे । वहॉं यात्रा में इसी प्रकार के वस्त्रों का चयन करना पड़ता है कि आसानी से उन्हें पहना या उतारा जा सके । पैरों में सूती और पतले मोजे पहने थे ज्यादा ठंड लगने पर उसी पर दूसरा मोजा  आसानी से चढ़ जाता था ।


Tuesday, 29 July 2025

Kailash mansarover yatra 15

 होटल पर सभी यात्री वापस आ चुके थे खाना भी तैयार था खाने में इटैनियन पास्ता आदि था  । खाने के बाद कुछ देर सबने अपनी थकान मिटाई । कुछ बाजार निकल गये और हॉल में मिलने का समय रखा गया सात बजे  जहॉं  आगे का कार्यक्रम के विषय में बताया जायेगा । 

     निलायम् प्राकृतिक रूप से  बहुत खूबसूरत है स्वयं होटल ऊॅचाई पर स्थित था । बादल जैसे हम से हाथ मिलाने को आतुर थे । सात बजे हम हॉंल में पहुॅंचे  । प्राचीन ष्शैली का बना लकड़ी का  हॉल । बड़ी बड़ी लकड़ी की मंजूषाऐं रखी थीं  वे मंजषाऐं जो राज धरानों में होती थी महीन पच्चीकारी का काम था । प्राचीन भारत की याद तरोताजा करतीं लकड़ी की आलमारियॉं । पुराना कालीन यद्यपि रंगत खो चुका था पर अपने वैभव  की कहानी कह रहा था कि कभी यह भी ईरानी सौदागर लाये होंगे और इन पर न जाने किन किन हस्तियों के पद चिन्ह पडे़ होगे । बेहद सुंदर चित्रकारी थी कालीन की पैरों ने उस सुंदरता को रौंदने से पहले  एक बार सराहा जरूर होगा । चारों ओर खस्ता हॉल सोफा था गद्दियों में गर्द इतनी जमा हो गई थी कि जम कर पथरीली हो गई थी । सवा सात तक आठ यात्री ही एकत्रित हुए गणपति वंदना के साथ भजन प्रारम्भ हुए अधिकांष भजन षिव पर आधारित थे । आठ बजे तक बीनू भाई  व अन्य कुछ लोग आ गये  दूसरे दिन सागा जाना था ।

     सागा  की यात्रा 230 किलो मीटर है और ऊॅचाई अठारह हजार फुट समुद्रतल से है । यह यात्रा का सबसे कठिन मार्ग है । सारा रास्ता बेहद ऊबड़ खाबड़ है कभी सीधी खड़ी चढ़ाई दसपन्द्रह फुट की है तो  फिर एकदम  गहरी उतराई । गाड़ी हिचकोले लेती बढ़ रही थी । जगह जगह छोटी छोटी नदियॉं । दूर दूर तक लगता इंसान या जीव नाम की कोई चीज ही यहॉं नहीं है किसी प्रकार के चिड़िया या जानवर भी नहीं दिखाई दिये हॉं कभी कभी याक और बकरियॉं दिख जाती थीं । याक बड़े बड़े झबरीले बालों वाला भैंस से कुछ छोटा जानवर है । पहाड़ दूर पर थे  लेकिन रास्ता पथरीला पहाड़ी था

 बीच बीच में छोटी छोटी नदियॉं थीं । एक स्थान पर  चौड़ी पहाड़ी नदी पार करनी थी उस समय नदी में पानी कुछ ज्यादा आ गया था एक  निष्चित स्थान से नदी पार कर रहे थे हमारा ड्राइवर एकदम  एक्सपर्ट था उसने एक बार में नदी पार करली पानी दरवाजे तक आ गया था । कुछ देर रुके  उस चंद्राकार नदी के कलकल नाद को  सुना देखते देखते नदी में कुछ पानी और बढ़ गया ।उफ बस कुछ क्षण ही थे नही ंतो नदी पार करना मुश्किल होता, नदी पूरी नवयौवना लगने लगी ।

       सारी यात्रा में  रसोई पकाने वाले शेरपा दोपहर का भोजन सुबह ही पका कर बड़े बड़े स्टील के कैसे रोल में भरकर चलते थे ।  खाने के लिये रुकते और घड़ घड़ करके  कैसरोल लेकर शेरपा पंक्तिबध्द बैठ जाते  कागज या थर्माकोल की प्लेटों में खाना देते जाते । जैसे जैसे ऊचाई पर जाते जा रहे थे  खाने से अरुचि होती जा रही थी । प्रातः ही सबके लिये दो दो बोतल गर्म पानी दे दिया जाता  सब अपनी अपनी बोतलें भरकर साथ रखते थे । ठोस आहार से अरुचि हो रही थी लेकिन पेय पदार्थ या फल बहुत अच्छे लग रहे थे । और कुछ मुॅह में चल ही नहीं पारहा था संभवतः प्रकृति ने इसीलिये पहाड़ों पर तीर्थों पर साधु संतों का भोजन अन्न के स्थान पर फल कंदमूल आदि रखा इसका यही कारण होगा । भोजन के साथ फल जूस आदि भी उपलब्ध कराये जाते थे । बीनू भाई कई बार यात्रा कर चुके थे और जानते थे यात्रियों के लिये क्या अच्छा है क्या बुरा इसलिये जोर देकर  खाना खिलाते थे  सबकी तष्तरियों पर नजर रखते थे  यात्रा पूरी 

करनी है तो खाना अवष्य है कैसे खाया जाये ,कुछ समझ नहीं आता था किसी प्रकार कुछ गस्से  सटके जाते थे ।

पहाड़ों से बहते झरने तो दिखते थे लेकिन हरियाली कहीं नजर नहीं आती थी। हरियाली के नाम पर कहीं कहीं जरा जरा सी गोलाकार वनस्पति उगी हुई थी एकदम कड़ी कड़ी सी इसकी वहॉं पर सब्जी बनाकर खाई जाती है उसमें गुलाबी या  बैंगनी रंग के छोटे छोटे  फूल खिले थे , इसे वहां पहाड़ी प्याज कह रहे थे । स्थानीय लोगों ने बताया वे  सूखने के बाद भी वैसे ही रहते हैं 


Monday, 28 July 2025

Kailash mansarover yatra 14

 दस बाई दस के कमरे में चार पलंग पड़े थे । चढ़ने के लिये भी पलंग पर चढ़कर दूसरे पलंग पर जाना पड़ता था । बाथरूम दो थे कॉमन थे कमरे में पहुॅंचते सामान जमाते  चार बज गये । एक ग्रुप इंदौर का ठहरा हुआ था हम लोगों का आगमन और उन लोगों का यात्रा प्रवास साथ साथ हुआ। इंदौर के सभी व्यक्ति एक दूसरे के परिचित थे । दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर बिस्तर आदि बिछाकर लेटे ही थे कि भोर ने खिड़कियॉंे को थपथपाना प्रारम्भ कर दिया और साथ ही चाय गरम की आवाजें प्रारम्भ हो गई । टूर वालों का नियम था प्रातः छः बजे चाय आपके दरवाजे पर हाजिर होगी आपने आलस किया तो फिर ढॅंूढते रहिये चाय कहॉं है’ जल्दी जल्दी ब्रष करके चाय ली । नहाने का कोई स्थान नहीं था । पास पास  वॉषवेसिन लगे थे और दो ईट की दीवार की आड़ एक वाष वेसिन के पास थी वहीं आड़ में खड़े खडे दो मग बर्फीलापानी ष्शरीर पर डाला किसी प्रकार कपड़े बदले और कपड़ों को धोकर खिड़की से नीचे बाधॅंकर लटका दिया । अधिकांष ने स्नान नहीं किया ।

   निलायम् कैसा है देखने को मिला। कभी पास ही बादल दिखते तो कभी सूरज । दोनों आकाष में लुका छिपी का खेल खेल रहे थे । एक दूसरे को पकड़ने में बादल को कभी कभी पसीना आ जाता ,फिर खेलने लगते ।

    ग्यारह बजे ट्रैकिंग पर जाना था अभी तक सभी यात्री कह रहे थे परिक्रमा जरूर जायेंगे जिस में  स्वयं मैं भी थी । यह ट्रैकिंग हमारी परीक्षा थी कि हम परिक्रमा लगा पायेंगे या नहीं । नाष्ते में गर्म गर्म इडली पोहा आदि था । अभी तक खानापीना सहज था हमें विषेष हिदायत थी कि पेय पदार्थें का अधिक सेवन करें । बड़ी शान से स्कार्फ जूते  साथ में लैमनड्रप आदि जेब में डालकर ट्रैकिंग के लिये होटल के  पीछे के छोटे गेट से निकले ।

निलायम् में चीनी तिब्बती मिली जुली संस्कृति थी लेकिन सब स्थानों पर केवल चीनी भाषा में बोर्ड थे । जिस समय हम ट्रैकिंग पर सदल निकले हम शहर का नाम जानते थे कि हम निलायम् में हैं  लेकिन कहॉं ठहरे हैं यह ज्ञात नहीं था पीछे के छोटे गेट से निकले तो वहॉं नाम भी नहीं था। रात्रि में अंधेरे में  घुसे थे  बिजली की चमक में होटल के स्वरूप की झलक अवष्य देखी थी । 

  छोटी सी गली  के सहारे एक विषाल बौध्द मठ था मठ के बाहर लाइन से बड़े बड़े पीतल के मनी मंत्र लगे थे  उन्हें औरों की देखा देखी घुमाते हुए चल दिये ।मनीमंत्र  हलके से हिलाते ही गोल गोल घूमते थे । उनके अंदर ‘¬ मनि पदम् हुम् ’ कागज पर लिखकर डाला जाता है । यह हमारी संस्कृति के राम नाम बैंक जेैसा  ही है  कुछ सीढ़ियॉं चढ़े फिर कुछदूर सड़क और फिर चढ़ाई का स्थान एक किलो मीटर चढ़ते चढ़ते जैसे हौसले पस्त हो गये । सॉंस कितनी भी गहरी ली लेकिन दो कदम चढ़ते ही  हॉंफना ष्शुरू हो जाता । गोयल साहब का सहारा लेकर चढ़ने का प्रयास किया । हमें कहा गया था  कि यदि सॉंस फूले तो उल्टे होकर खड़े हो जॉंय पर मुझे उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ । आधे रास्ते पर ही मैंने हिम्मत हार दी ।

‘नहीं चढ़ पाउंगी, आप चढ़कर वापस आ जाइये  ’ मुझे पकड़ कर चढ़ाने पर  गोयल साहब पर दुगना दबाव पड़ रहा था । मेरे जैसे यात्री दल के कई लोग एक एक कर बैठते जा रहे थे  पर कुछ आराम से चढ़ रहे थे  । मन कुछ उदास हो गया , अपने पर क्रोध था कि क्यो अपना षरीर इतना खराब कर लिया । जितनी भोले षंकर कृपा कर सकते थे करदी अब वे भी कहॉं तक सहायता करेंगे । वयोवृध्द व्यक्ति को  सबने रोक दिया कि  मत चढ़िये यहीं बैठिये । मन में एक डर सा समाया कहीं यात्रा अधूरी न रह जाय ।

बार बार सुन रहे थे पिछले साल एक महिला यात्री की  हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई ।  पिछले ग्रुप में एक महिला यात्री की तबियत बिगड़ गई उसे इंदौर हैलीकॉप्टर से भेजा गया । एक यात्री दल में एक पुरुष यात्री की  हार्ट अटैक से तबियत गड़बड़ा गई उन्हें बचाया नहीं जा सका अंत में उनके बच्चों को आना पड़ा और वे लेकर गये ।

एकदम चिन्ता हो गई  कि अब क्या किया जाये आगे की यात्रा कैसे होगी अभी तो   हम ग्यारह हजार  चारसौ फिट की ऊॅचाई पर हैं  चढ़ना  अठारह हजार  तक की ऊॅचाई पर है । फिर सोचा  जो होगा देखा जायेगा अगर कुछ होगा तो मोक्ष मिल जायेगा  जिसकी सब कामना करते हैं । 

           गोयल साहब ने भी आगे ट्रैकिंग पर जाने से मना कर दिया । वे बोले ‘मैं तो चढ़ लूॅंगा पर बेकार  चलो  हम यहॉं निलायम् घूम लेते हैं  । हम उतर कर तो उसी रास्ते से आये  लेकिन एक मोड़ गलत मुड़ गये  और सीधे बाजार में पहंॅच गये । अब इधर उधर देखा कि होटल कैसे पहुॅंचे ? चारों ओर कोई भी भारतीय यात्री नहीं दिखा  न हमें होटल का नाम मालुम था एक दो से जानना चाहा कि  मान सरोवर यात्री कहॉं ठहरते हैं पर  भाषा  कोई समझ रहा नहीं था  मोबाइल तो किसी के पास था ही नहीं क्योकि चीन सीमा में घुसते ही  मोबाइल बंद हो जाते हैं  अलग कनैक्षन लेना पड़ता है पर पूर्वानुभवियों ने बताया था कि  कनैक्षन ले लो पर कुछ काम नहीं करता है । उससे अच्छा है वहीं  पीसीओ से बात कर ली जाय । रास्ता ढूंढते थकान होने लगी थी । बाजार में चीनी सामान भरा पड़ा था लेकिन छोटे छोटे रैंस्ट्रॅंा  ज्यादा थे  । 

इक्का दुक्का डेली नीडस की दुकानें थीं । नेपाल तिब्बत चीन में महिलाओं को अधिक सक्रिय देखा । दुकानों पर  अधिकतर महिलाएॅं ही बैठी थीं ।

अंदर ही अंदर अपने ऊपर खीझ होने लगी इतनी बड़ी नादानी कैसे  कर दी कि बिना जानकारी के कैसे  ऐसे चल दिये  वोभी अकेले  हम दो । कहीं बैठने की जगह नहीं थी  हिम्मत कर आगे बढ़ते गये  एक मोड़ कुछ पहचाना सा लगा उस पर निलायम् अंग्रेजी में लिखा था । एक मात्र वही बोर्ड अंग्रेजी में दिखा । यही तो अंधेरे में बिजली की चमक में दिखा था हम समझ रहे थे निलायम् स्थान का बोर्ड पर होटल का नाम  भी निलायम  ही है । एक दम पैरों में जान आ गई साथ ही यह षिक्षा  भी ली कि  दल से अलग न चले   कम से कम  ऐसे प्रदेष में और फिर  बिना जानकारी के  वह तो कभी नहीं 


Sunday, 27 July 2025

kailashmansarover yatra 13

 पतली सड़क एक तरफ पहाड़ जिनसे मोटी धार बहकर आ रही थी दूसरी तरफ नीचे से नदी की घोर गर्जना जैसे बहुत क्रोधित हो,कभी कइसके अलावा और कुछ नहीं । हम भी चुप थे । श्रीमती महेन्द्र कभी कभी झोंका ले लेती उनका सिर मेरे कंधे पर लुढकता फिर सीधी हो जातीं और इधर उधर देखने का प्रयास करतीं ।कभी किसी पक्षी या जानवर की चीत्कार सुनाई पड़ जाती। 

अभी प्रार्थना ठीक से पूरी भी नहीं हुई थी कि लगा विंड स्क्रीन पर पानी एकदम कम कम आ रहा है  नन्हीं नन्हीं फुुहारों के रूप में फिर वह भी एक दम बंद हो गया । यह कैसा चमत्कार इधर मन ने सोचा उधर पानी बंद ।‘अरे तब तो बाबा ने ही बुलाया है तब काहे की चिंता । सब रास्त्ेा सहज किये हैं तो यह भी अच्छी तरह कट जायेगा ’’ जैसे सारा भय छू मंतर हो गया।ऑंख अंधेरे को चीर कर देखने का प्रयास करने लगी । कभी कभी गाड़ी की छत पर एकदम पहाड़ का पानी गिरता और गाड़ी के चारों ओर झरना सा बन जाता या गाड़ी के प्रकाष में हरियाली चमक जाती ।

    करीब आधा रास्ता पार करने  पर गाडी  एक तरफ रुक गई । आगे भी गाड़ियॉं रुकी हुई थीं । क्यों रुकीं ? यह कैसे ज्ञात हो? ड्राइवर और गाड़ी में बैठा रहाष्शेरपा तुरंत उतर कर  अन्य ड्राइवरों से बात करने  लगे बस यह ज्ञात हुआ कुछ हो गया है ।

‘ हे षिव जी महाराज जो कुछ भी हुआ हो सब सकुषल हों ’ मन ही मन  हरपल  षिव जी याद आ रहे थे । इन्सान कितना स्वार्थी होता है यह उस समय के विचारों से ज्ञात हो सकता है एक तरफ सब सकुषल हों  सर्वहित भावना थी  पर साथ ही कहीं दबी दबी भावना यह थी कम से कम हमारे दल के किसी को कुछ न हो अर्न्तनिहित भावना हमारी यात्रा में विघ्न न पड़े ।षेरपा और ड्राइवर की भाषा मिली जुली तिब्बती हिन्दी थी और समझने में परेषानी नहीं थी । वे आपस में बात कर रहे थे  ‘कल यहीं तो हादसा हुआ था पर कुछ ही देर में चलो चलो का ष्शोर मच गया। एक गाड़ी जरा गरम हो गई थी  ठीक करली काफिला चल दिया। रात्रि दो बजे के आस पास हम निलायम् पहुॅंचे  गाड़ियॉं अंधेरे में खड़ी हो गईं बिजली थी नहीं  टार्च की रोषनीमें एक एक कर कमरे बुक होने लगे । सब कमरों को देख रहे थे अच्छे से अच्छा कमरा बुक कराने में लगे थे । हमारी यात्रा स्वतन्त्र थी हम चारों की बुकिंग नेपाल के प्रेमप्रकाष जी ने सीधे रिचा ट्रेवल्स से कराई थी इसलिये हमारे लिये आगे बढ़कर देखने वाला कोई था नहीं सबसे बाद में बचा हुआ कमरा पूरी यात्रा में हमारे हिस्से आता रहा इस पर कहीं कहीं बुराभी लगता रहा । घर से सोच कर चले थे अनजान प्रदेष में अनजान लोगों के बीच जा रहे हैं स्वयं परम पिता ने बुलाया है तो ध्यान भी वे ही रखेंगे । बदमजगी करके यात्रा  का मजा खराब और सहयात्रियों के साथ किसी प्रकार की असहजता महसूस नहीं करना चाहते थे । उस समय मन में षिव थे मॉं पार्वती थीं  तब ये सब बातें बहुत छोटी लग रही थीं । यात्रा का अपना आनंद होता है जहॉं विष्वास और श्रध्दा है वहॉं इन बातों की उपेक्षा करनी ही पड़ती है ।