बहुत दिन बाद गर्म तवे की रोटी अच्छी लगी । यात्रा के दौरान सबके वजन चार चार पॉंच पॉंच किलो घट गये थे लेकिन उत्साह नहीं घटा था सबको लग रहा था यात्रा जल्दी खत्म हो गई । बस तैयार थी सामान लद चुका था ।नेपाल का रास्ता हमारा इंतजार कर रहा था जहॉं पर बस खड़ी थी वहॉं पर विषाल झरना था वह काफी ऊंचाई से कई चट्टानों पर गिर रहा था सीढ़ी सीढ़ी वह नीचे आ रहा था उस झरने का सौंदर्य उस पर पड़ रही सूर्य किरणों से द्विगुणित हो रहा था एक स्थान पर दुग्ध धवल फेनिल जल गिरकर ष्वेत धार बना रहा था वहीं उसके पास की धार में लालिमा थी उसके
पास नीला और बैंगनी रंग की आभा दे रहा था नीचे सारी चट्टानों का जल जहॉं गिर रहा था वहॉं जाकर सारा हल्के नीले जल में परिवर्तित हो रहा था वेग अत्यन्त तेज था जब बादल छा जाते रंग बदल जाते ऐसे दृष्य कम ही देखने को मिलते हैं
प्रकृति का कोमल और भयंकर दोनों रूप सामने थे दूर से दृष्य बहुत सुंदर था लेकिन वेग इतना तीव्र था कि यदि जराकिसी का पैर फिसल जाये तो उसका बचना असंभव था ।
कोदारी से नेपाल तक कोषी नदी बहती है ।कोषी नेपाल जाकर अलग अलग नाम से जानी जाती है ऊपर पर्वतों पर सीमा दिखाई दे रही थी इस तरफ नेपाल उस तरफ चीन की सीमा थी ।षाम को नेपाल का बाजार देखा वहॉं का पुराना बाजार देखा ,प्रसिध्द बाजार भाट भटेली देखा ।नेपाल में आठ बजे तक बाजार बंद हो जाते हैं ।
प्रातः वहॉं का प्रसिध्द स्वर्ण पैगोडा देखा वहॉं बुध्द की विषाल स्वर्ण प्रतिमा है । मुख्य पैगोडा में चारों ओर दीप प्रज्वलित कर मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है । बंदर वहॉं पर बहुत थे । कात्यायनी देवी का और महालक्ष्मी का मंदिर उसी परिसर में बना है । वहॉं बौध्द और हिंदू धर्म का संगम देखने को मिला । भिखारी वहॉं भी सीढ़ियों पर बैठे थे । एक बारह तेरह वर्ष की लड़की करीब एक साल के षिषु को लेकर बैठी थी,‘ बच्चे के दूध के लिये पैसे देदो ’ ।
‘क्या यह तेरा बच्चा है ’ चौंक कर पूछा ।
लड़की एकदम सकपका गई और बोली ‘नहीं मेरा भाई है ’
‘तो मॉं कहॉं है ’ वह शायद मेरे जवाब सवाल से घबरा गई और बच्चा लेकर भाग गई ।
एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति हॅंसने लगा वह बोला ,‘ अरे यह तो ऐसे ही चलता है ,मॉं किसी दूसरे कोने पर मॉंग रही होगी कभी इससे बड़ा ले आती है ’। वह रोजदर्षन के लिये आता था ।
स्वर्ण पैगोडा के पूरे रास्ते में मनी मंत्रों के बहुत से कक्ष हैं इनमें विषाल मनी मंत्र बने थे अंदर जाकर अनुयायी उन्हें घुमा रहे थे कोई कोई मनी मंत्र तो दस फुट ऊॅंचा और दस ही फुट का धेरा होगा सभी पीतल के लेकिन एकदम चमकते हुए संभवतः स्वर्ण पॉलिष थी या उनकी सफाई प्रतिदिन होती थी । महीन पच्चीकारी का उन पर काम हो रहा था। लकड़ी का सामान वहॉं बहुतायत में मिलता है । पूजा में घी का दीपक व इलायची दाना चढ़ाया जाता है । स्नान आदि के पष्चात् सुप्रसिध्द व्यवसायी प्रेम प्रकाष जी व उनकी धर्मपत्नी जी से मिले दोनों ही बहुत सहज सरल स्वभाव के विनम्र व्यक्ति तो थे ही उच्चकोटि की सेवा भावना रखने वाले थे । नेपाल की कई समाज सेवी संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर रहकर समाज की सेवा कर रहे थे ।
एक बजे तक हमें एअरपोर्ट पहुॅचना था क्योंकि तीन बजे की फ्लाइट थी इसलिये प्रेमप्रकाष जी से विदा लेकर आखिरी बार सब सहयात्री भोजन कक्ष में एकत्रित हुए । एक परिवार की तरह सब रहे थे इसलिये सबको बिछड़ने का गम था । श्रीमती विजयक्ष्लमी व कुमारी उमा अभी नेपाल के अन्य पर्यटन स्थलों की सैर करने के लिये रुकी थीं । विमान तीन बजे के स्थान पर चार बजे उड़ा बार बार तकनीकी खराबी की वजह से रुक जाता था ।
सांयकालीन बादल सूर्य सब आकाष में अठोलियॉं कर रहा थे । आकाष बादलों से भरा था । बादलों के बीच धुंध से घिरा जब बादलों को चीर कर ऊपर उठा तो थरथराने लगा । एक बार फिर नीचे बादलों का अदभुत संसार दिखाई दिया । जैसे सागर में ज्वार उठा हो विषाल मछलियॉं तैर रही हों कहीं लग रहा था अंटार्कटिका की वर्फीली चट्टानों पर श्वेत भालू खेल रहे हों । कहीं आइसक्रीम के पेड़ दिखते तो कहीं विषाल खरगोष कूदते नजर आते वहॉं पर खाली जगह होती तो लगता गहरा नीला जल है । आकाष में तैरते कब दिल्ली आ गई पता ही नहीं चला । नई दिल्ली एअरपोर्ट पर उस दिन कोई विदेषी मेहमान आने वाला थे पिछले दरवाजे से पूरा टर्मिनल पार करके आना पड़ा हाथों में वजन के थैले मान सरोवर का जल आदि लिये । उस समय अपना ही वजन संभाले नहीं संभल रहा था ,रास्ता बेहद लंबा लग रहा था नीचे जैसे ही बाहर आये बहुत से व्यक्ति पंक्तिबध्द मालाऐं लिये खड़े थे हम प्रसन्न होने का नाटक ही कर रहे थे कि वाह मानसरोवर होकर आये हैं इसलिये हमारा सम्मान हो रहा है हम कतार के बीच से निकलतेचले गये एक भी माला नहीं पड़ी पता चला कोई सुप्रसिघ्द स्वामी जी आने वाले हैं उनका इंतजार कर रहे हैं । हमारी कार हमारा इंतजार कर रही थी हम सब आगरा के लिये चले तब तक स्वामी जी नहीं आये थे । रात्रि दस बजे हम अपने घर पहुॅच गये । वहॉं तो स्वगत नहीं हुआ परन्तु जब छोटी छोटी गंगाजली में मानसरोवर का जल और मान सरोवर के जल से स्नान कराई माला मित्र जनों को दी तो वे गद्गद् हो गये । बहुतों ने पैर छुए कि आप महान् तीर्थ करके आये हैं आपके चरण छूकर हमें भी कुछ पुण्य मिलेगा । हम करने वाले नहीं थे यह तो विधाता ही है जो हम से करवाता है हम सब उसके आभारी हैं उन्होंने महेन्द्र भाई साहब और ष्शोभा भाभी को माध्यम बनाया हम उनके भी आभारी हैं न उनका संबल और साथ मिलता न हम जा पाते । ऐसा लगा ‘हम तीर्थ करने नहीं तीर्थ बनने जा रहे हैं । हम अपने को कैलाष बनायें ।कैलाष बनने के लिये चार अहर्ताऐं हैं । एक तो कैलाष बहुत ऊॅंचा है दूसरा कैलाष बहुत गहरा है , तीसरा कैलाष बहुत उज्वल है चौथा कैलाष बहुत ष्शीतल है ।