जातीय जन गणना
चुनाव आने के साथ ही नये नये मुद्दे ढूंढे जाते हैं उसके आधार पर चुनाव जीतने के प्रयास किये जाते हैं। जातीय जनगणना का मुद्दा भी केवल चुनाव प्रेरित है। जातीय आधार पर बने संगठनों को कोई प्रश्रय नहीे मिलना चाहिए। कुछ संगठन जातीय जन गणना के लिये कटिबद्ध हैं इसके लिए वर्तमान साकार को निष्क्रिय व जाति विरोधी बताकर वोट बैंक हासिल रिना चाहती है और वर्तमान सरकार भी जातिगत जन गणना के लिए तैयार हो गई है। परन्तु जाति जन गणना क्यों होनी चाहिए उनके पास कोई जवाब नहीं है,बस यही देश हित में है जाति हित में है ,पर क्यों और कैसे ?
पहले ही मंडल कमीशन ने देश को आरक्षण में बांधकर उसको अकर्मण्यता की ओर धकेल दिया ह ैअब जातीय जन गणना कराकर सब अपने को आरक्षित कोटे में लाकर सरकारी लाभ लेना चाहते हैं अर्थात् बैठ कर रोटी तोड़ोया करोड़ों लोगों की महनत पर टांग पसारकर सोओ ।
पहले लोग कहते थे बेवकूफ मकान बनवाते हैं होशियार उसमें रहते हैं ’ अपनी जमापूंजी लगााकर कोई मकान बनाये इस आशा से कि जीवन का आधार रहेगा । बुड़ापे को सहारा रहेगा लेकिन निष्क्रििय लोगों के हित में कानून बनाये गये किरायेदार मजे में कुछ पैसे देकर रहता है और बाद में घर उसका मजे में मकान मालिक बन गये ।मकान बनाने वाले घर से भी गये और पैसे से भी। इसी प्रकार के कानून आरक्षण के हैं । योग्य व्यक्ति जूते चटखाते हैं और अयोग्य व्यक्ति मजे से मेज पर टांग रखकर हााि पर हाथ् रखे बैठे रहते है। काम करना आता नहीं काम करने की जरूरत क्या फोकट मे पैसे पाये जाओ , काम करने के लिए तो एक्सपर्ट रखने चाहिये पर वाह रे आरक्षण । देश को आगे ले जाने के लिए तो ये बैठे नहीं है ।3 फरवरी 1961 को लोहिया जी ने लिखा था कि हर व्रूक्ति आधुनिक होना चाहमा है जाति प्रथा विनाश की तो बात करता है पर उसके पास नई योजना नहीं है ।
आरक्षण के कारण सत्ता में से या नौकरशाही में से ऊंची जातियों को च्युत रखकर आरखित कोटे से आसीन कराया जाना चाहिये यह जाति व्यवस्था का ध्वस्त होना नहीं यी देश के गर्त में जाने की व्यवस्था है । क्या 90 95 प्रतिशत वाले प्रतिभाशाली का स्थान 33 प्रतिशत वाला लेगा तो वह अपनी मानसिक योग्यता के अनुसार ही कार्य करेगा ।यह देश कहत के लिए न होकर देश की व्यवस्था को अपाहिज करने की प्रक्रिया है । यह विकास में सबसे बड़ी बाधा है। इस कारण हाड़ तोड़ कामों का अवमूल्यन हो रहा हे। कुर्सीं तोडत्र निकम्मे लोगों की प्रतिष्ठा बढ़ रही है। यह भारत के जन जीवन की विषमता,अक्षमता और अयोग्यता का मूल कारण है इसलिए आरक्षण का जातीय आधार कैसे देश हित में होना सकता है ।आरक्षण का आधार जाति नहीं जरूरत है जिसे वास्तव में शिक्षा में व्यापार में आरक्षण की जरूरत है उसे सुविधाऐं उपलब्ध कराई जायें जातीयता के आधार पर नहीं । कौन देश के लिये काम कर रहा है कौन कर देकर देश को समृद्ध कर रहा है उसकी सहायता होनी चाहिये निठल्लों को बैठकर खिलाना देश को गर्त की ओर ले जाना है ।