दस बाई दस के कमरे में चार पलंग पड़े थे । चढ़ने के लिये भी पलंग पर चढ़कर दूसरे पलंग पर जाना पड़ता था । बाथरूम दो थे कॉमन थे कमरे में पहुॅंचते सामान जमाते चार बज गये । एक ग्रुप इंदौर का ठहरा हुआ था हम लोगों का आगमन और उन लोगों का यात्रा प्रवास साथ साथ हुआ। इंदौर के सभी व्यक्ति एक दूसरे के परिचित थे । दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर बिस्तर आदि बिछाकर लेटे ही थे कि भोर ने खिड़कियॉंे को थपथपाना प्रारम्भ कर दिया और साथ ही चाय गरम की आवाजें प्रारम्भ हो गई । टूर वालों का नियम था प्रातः छः बजे चाय आपके दरवाजे पर हाजिर होगी आपने आलस किया तो फिर ढॅंूढते रहिये चाय कहॉं है’ जल्दी जल्दी ब्रष करके चाय ली । नहाने का कोई स्थान नहीं था । पास पास वॉषवेसिन लगे थे और दो ईट की दीवार की आड़ एक वाष वेसिन के पास थी वहीं आड़ में खड़े खडे दो मग बर्फीलापानी ष्शरीर पर डाला किसी प्रकार कपड़े बदले और कपड़ों को धोकर खिड़की से नीचे बाधॅंकर लटका दिया । अधिकांष ने स्नान नहीं किया ।
निलायम् कैसा है देखने को मिला। कभी पास ही बादल दिखते तो कभी सूरज । दोनों आकाष में लुका छिपी का खेल खेल रहे थे । एक दूसरे को पकड़ने में बादल को कभी कभी पसीना आ जाता ,फिर खेलने लगते ।
ग्यारह बजे ट्रैकिंग पर जाना था अभी तक सभी यात्री कह रहे थे परिक्रमा जरूर जायेंगे जिस में स्वयं मैं भी थी । यह ट्रैकिंग हमारी परीक्षा थी कि हम परिक्रमा लगा पायेंगे या नहीं । नाष्ते में गर्म गर्म इडली पोहा आदि था । अभी तक खानापीना सहज था हमें विषेष हिदायत थी कि पेय पदार्थें का अधिक सेवन करें । बड़ी शान से स्कार्फ जूते साथ में लैमनड्रप आदि जेब में डालकर ट्रैकिंग के लिये होटल के पीछे के छोटे गेट से निकले ।
निलायम् में चीनी तिब्बती मिली जुली संस्कृति थी लेकिन सब स्थानों पर केवल चीनी भाषा में बोर्ड थे । जिस समय हम ट्रैकिंग पर सदल निकले हम शहर का नाम जानते थे कि हम निलायम् में हैं लेकिन कहॉं ठहरे हैं यह ज्ञात नहीं था पीछे के छोटे गेट से निकले तो वहॉं नाम भी नहीं था। रात्रि में अंधेरे में घुसे थे बिजली की चमक में होटल के स्वरूप की झलक अवष्य देखी थी ।
छोटी सी गली के सहारे एक विषाल बौध्द मठ था मठ के बाहर लाइन से बड़े बड़े पीतल के मनी मंत्र लगे थे उन्हें औरों की देखा देखी घुमाते हुए चल दिये ।मनीमंत्र हलके से हिलाते ही गोल गोल घूमते थे । उनके अंदर ‘¬ मनि पदम् हुम् ’ कागज पर लिखकर डाला जाता है । यह हमारी संस्कृति के राम नाम बैंक जेैसा ही है कुछ सीढ़ियॉं चढ़े फिर कुछदूर सड़क और फिर चढ़ाई का स्थान एक किलो मीटर चढ़ते चढ़ते जैसे हौसले पस्त हो गये । सॉंस कितनी भी गहरी ली लेकिन दो कदम चढ़ते ही हॉंफना ष्शुरू हो जाता । गोयल साहब का सहारा लेकर चढ़ने का प्रयास किया । हमें कहा गया था कि यदि सॉंस फूले तो उल्टे होकर खड़े हो जॉंय पर मुझे उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ । आधे रास्ते पर ही मैंने हिम्मत हार दी ।
‘नहीं चढ़ पाउंगी, आप चढ़कर वापस आ जाइये ’ मुझे पकड़ कर चढ़ाने पर गोयल साहब पर दुगना दबाव पड़ रहा था । मेरे जैसे यात्री दल के कई लोग एक एक कर बैठते जा रहे थे पर कुछ आराम से चढ़ रहे थे । मन कुछ उदास हो गया , अपने पर क्रोध था कि क्यो अपना षरीर इतना खराब कर लिया । जितनी भोले षंकर कृपा कर सकते थे करदी अब वे भी कहॉं तक सहायता करेंगे । वयोवृध्द व्यक्ति को सबने रोक दिया कि मत चढ़िये यहीं बैठिये । मन में एक डर सा समाया कहीं यात्रा अधूरी न रह जाय ।
बार बार सुन रहे थे पिछले साल एक महिला यात्री की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई । पिछले ग्रुप में एक महिला यात्री की तबियत बिगड़ गई उसे इंदौर हैलीकॉप्टर से भेजा गया । एक यात्री दल में एक पुरुष यात्री की हार्ट अटैक से तबियत गड़बड़ा गई उन्हें बचाया नहीं जा सका अंत में उनके बच्चों को आना पड़ा और वे लेकर गये ।
एकदम चिन्ता हो गई कि अब क्या किया जाये आगे की यात्रा कैसे होगी अभी तो हम ग्यारह हजार चारसौ फिट की ऊॅचाई पर हैं चढ़ना अठारह हजार तक की ऊॅचाई पर है । फिर सोचा जो होगा देखा जायेगा अगर कुछ होगा तो मोक्ष मिल जायेगा जिसकी सब कामना करते हैं ।
गोयल साहब ने भी आगे ट्रैकिंग पर जाने से मना कर दिया । वे बोले ‘मैं तो चढ़ लूॅंगा पर बेकार चलो हम यहॉं निलायम् घूम लेते हैं । हम उतर कर तो उसी रास्ते से आये लेकिन एक मोड़ गलत मुड़ गये और सीधे बाजार में पहंॅच गये । अब इधर उधर देखा कि होटल कैसे पहुॅंचे ? चारों ओर कोई भी भारतीय यात्री नहीं दिखा न हमें होटल का नाम मालुम था एक दो से जानना चाहा कि मान सरोवर यात्री कहॉं ठहरते हैं पर भाषा कोई समझ रहा नहीं था मोबाइल तो किसी के पास था ही नहीं क्योकि चीन सीमा में घुसते ही मोबाइल बंद हो जाते हैं अलग कनैक्षन लेना पड़ता है पर पूर्वानुभवियों ने बताया था कि कनैक्षन ले लो पर कुछ काम नहीं करता है । उससे अच्छा है वहीं पीसीओ से बात कर ली जाय । रास्ता ढूंढते थकान होने लगी थी । बाजार में चीनी सामान भरा पड़ा था लेकिन छोटे छोटे रैंस्ट्रॅंा ज्यादा थे ।
इक्का दुक्का डेली नीडस की दुकानें थीं । नेपाल तिब्बत चीन में महिलाओं को अधिक सक्रिय देखा । दुकानों पर अधिकतर महिलाएॅं ही बैठी थीं ।
अंदर ही अंदर अपने ऊपर खीझ होने लगी इतनी बड़ी नादानी कैसे कर दी कि बिना जानकारी के कैसे ऐसे चल दिये वोभी अकेले हम दो । कहीं बैठने की जगह नहीं थी हिम्मत कर आगे बढ़ते गये एक मोड़ कुछ पहचाना सा लगा उस पर निलायम् अंग्रेजी में लिखा था । एक मात्र वही बोर्ड अंग्रेजी में दिखा । यही तो अंधेरे में बिजली की चमक में दिखा था हम समझ रहे थे निलायम् स्थान का बोर्ड पर होटल का नाम भी निलायम ही है । एक दम पैरों में जान आ गई साथ ही यह षिक्षा भी ली कि दल से अलग न चले कम से कम ऐसे प्रदेष में और फिर बिना जानकारी के वह तो कभी नहीं
No comments:
Post a Comment