बार बार गोयल साहब भी कह रहे थे कि स्वास्थ ठीक रखो नहीं तो चलना मुष्किल हो जायेगा । वैसे षिव जी ने ही बुलाया है नहीं तो दो दिन में सब टिकिट मिलना कैसे संम्भव था । सब काम स्वतः ही हो रहे हैं बस घबराना सोचना बंद करो चल पायंेगे क्यों नहीं चल पायेंगे ।
नेपाल में रिचा ट्रैवल्स वालों से सुनिष्चित हो ही गया था । वे वहीं हमें काठमांडू ऐअरपोर्ट पर मिलने वाले थे । कैलाष मानसरोवर यात्रा में कपड़े एक के ऊपर एक तह के रूप में पहनने पड़ते हैं क्योंकि एकाएक सर्दी एकाएक गर्मी का एहसास होता है । श्री प्रमोद बंसल व श्रीमती ममता बंसल ने बताया बेहद ठंडा जल था मग से पानी डाला पानी में तो खड़े होने की हिम्मत ही नहीं थी । मग ,इनर स्वेटर आदि सब रखे । लेकिन कैलाष यात्रा पर जाने के लिये मौसम का भी ध्यान रखना आवष्यक है हर महिने का मौसम अलग होता है । बंसल दम्पत्ति को वर्फ मिली जबकि हम पन्द्रह बीस दिन बाद ही गये थे लेकिन हमें कहीं वर्फ नहीं मिली बस दूर पहाड़ो पर वर्फ चमक रही थी । हमारी आवष्यकताऐं अलग थीं वहॉं के वातावरण के विषय में अधिक बताया भी नहीं जा सकता क्योंकि अनुभव हर पल अलग था ।
23 जून को ईष्वर का नाम लेकर प्रातः दिल्ली के लिये प्रस्थान किया। एक बजे की फ्लाइट थी लेकिन फ्लाइट तीन बजे चली । एअरपोर्ट से जब हम चले तब 45 ं तापमान था । हवाईजहाज जिस समय 35,000 फुट की ऊॅंचाई पर था स्वतः हल्की हल्की ंठंड लगने लगी । जिस समय दिल्ली एअरपोर्ट छोड़ा आकाष में हल्के हल्के बादल थे पर धीरे धीरे बादलों के समूह ब़नते गये । नीचे से दिखने वाले बादल और ऊपर आकाष से दिखने वाले बादलों में बहुत अंतर है दोनों का स्वरूप बिलकुल अलग होता है । नीचे बादल लटके हुए तैरते नजर आते हैं तो ऊपर से बादल उठे हुए नजर आते हैं रूप तो नीचे से भी देखने पर बादल अलग प्रकार के बनाते और तैरते चलते हैं लेकिन हवाई जहाज से नीचे देखने पर बादलों का अपना संसार है ।
एक दूसरी दुनिया। कहीं हल्के कहीं गहरे सफेद वर्फ की तरह। कभी गहरे नीले सागर का रूप लेकर उसमें विषाल आकृतियॉं तैरती नजर आयेंगी कहीं हरियाली में वर्फ के बने वृक्ष नजर आयेंगे।आइसक्रीम का पर्वत वहॉं देखने को मिलता है कहीं कहीं जंगल में श्वेत जानवर नजर आते हैं श्वेत पक्षियों का संसार नजर आता है । सूर्य की रोषनी उन्हें वर्फ की सी ष्श्वेत रोषनी प्रदान करती है । कहीं कहीं लगता है विषाल नीले सागर में बड़े बड़े हिमखंड तैर रहे हैं ।
1 घटा 35 मिनट की उड़ान में हम एक धंटा बादलों के ऊपर रहे। कभी कभी घने बादलों को हवाई जहाज चीरता तो थरथराने लगता। जैसे जैसे हवाई जहाज नीचे आता गया नेपाल दिखता गया। जैसे मणि कंचन का कटोरा हो। नेपाल चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है जिनकी मिट्टी लाल मॅूगे के रंग की है।बीच बीच में हरे भरे वृक्ष और तलहटी में बसा नेपाल जिसके अधिकांष मकान लाल हैं। अब नई नई कई मंजिली इमारतें बनने लगी हैं और रंग बिरंगे रंगों ने प्रवेष लेलिया है इसलिये कुछ मकान अन्य रंग के दिखने लगे हैं पर पुराने इलाके में तो जैसे मॅंूगा बिखरा पड़ हो । नदी की धारा ऊपर से पीली सुनहरी दिख रही थी उनमें मिट्टी पहाड़ों से बहती आती लाल थी लेकिन आभास गहरे पीले रंग का हो रहा था ।
No comments:
Post a Comment