प्रातः काल चीन यात्रा का अंतिम दिन 15 जून था होटल का चैक इन समय 12 बजे होता है। उस दिन हम लोग ओशन पार्क जा रहे थे। श्रीमती शैल बाला, सरोज गौड़ आदि कुछ लोग वहाँ नहीं जा रहे थे उन लोगों को अभी काफी शापिंग करनी थी। बस तो थी नहीं दो टैक्सी पाँच व्यक्ति प्रति टैक्सी में करके हम लोग ओशन पार्क पहुँचे।
इसलिये सब ने अपना सामान पैक किया और दो डालर प्रति नग के हिसाब से वहाँ लॉकअप रूप में सामान रख दिया
चीनी कलैंडर में 2009 ईयर आफ ऑक्स है इसकी धमक हॉगकॉग में सुनाई दे रही थी खासतौर पर ओशन पार्क में।
ओशन पार्क समुद्र किनारे एक योग पार्क है दुनियाँ भर में प्रसि( यह पार्क हॉगकॉग के सबसे बड़े आकर्षणों में एक है और बच्चों के साथ छुट्टियाँ मनाने की बड़ी खास जगहों में एक है यहाँ शेर और डाल्फिन के करतब देखने के लिये ओशन थियेटर है। स्काई फेयर प्लाजा है केवल बाट किडस् वर्ल्ड है एम्यूजमेंट पार्क और इन सबसे ऊपर मछलियों का अद्भुत संसार है।
ओशन पार्क में घुसते ही सामने जोकर करतब दिखाते मिले। कार्टून चरित्र विशाल रूप में इधर-उधर घूमते बच्चों से हाथ मिला रहे थे। एक घेरे में कुछ जिमानास्टिक करते हुए बच्चे थे गजब का लोच था उनके शरीर में। फूलों से भरे रास्ते में जरा-जरा दूर पर वहाँ पर प्रदर्शित जानवर पक्षियों की आकृतियॉं लगी थीं। ऊँची पहाड़ी रास्ता कारपेट रास्ता था वहाँ से शुरू हुआ चिड़ियाधर । वहाँ पर आस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला शर्मीला पांडा थे। गोल-गोल गुथना-सा गोल-गोल आँखों का सफेद काला पांडा बहुत भोले सा चेहरे वाला लग रहा था।जाइंट पांडा यिंग यिंग को उस ओशियन पार्क में आये एक साल हो गया था। अब उसका परिवार हो गया था। दूसरे जाइंट पांडा का नाम कुंगफू पांडा था। तीन अलग अलग स्थान थे पांडा के । उसमें खेलते पांडा को देखने के लिये सब रूक जाते थे। शेर थे, एक विशाल पॉंड में डाल्फिन थी उनका शो तीन बजे होता था। इसलिये केवल उन्हें देखा। कुछ ने स्काई टॉवर पर राइड ली तो किसी ने अन्य राइड ली। ट्रेन पर ऊपर-नीचे की राइड बहुत फास्ट थीं। चित्रलेखा जी, मनोरमा जी, वन्दनी नन्दनी आदि ने डैªगन राइड ली बहुत तेज गति की राइड थी।
पतली सी पट्टियों पर तेज गति से ऊपर-नीचे गोलाकार घूमती राइड जिसका आधा हिस्सा समुद्र के ऊपर था रोमांच पैदा कर रहा था।बैलून राइड थी सौ मीटर ऊपर समुद्र के ऊपर आकाश में घूमने का अपना आनंद था।
एक गुफानुमा गैलरी थी उसका टिकिट अलग से लेना था उस में प्रवेश करते ही जैसे दूसरी दुनिया में आ गये गैलरी में अंधेरा था लेकिन ऊपर जैसे अथाह जल राशि हो उस पर मछलियाँ तैर रही थी तरह-तरह की, चौेड़े पंख नुमा गोल रंग बिरंगी बड़ी-छोटी एक करीब पाँच फुट की मछली ऊपर से गुजरी, चौड़ाई तो अधिक नहीं थी दो बालिश्त चौेड़ी पर सफेद तले पर मुँह था दो गोल भंवर सी काली आँख और दो नाक के छिद्र, चंद्राकार मुँह जैसे लाल लिपिस्टिक लगी हो बहुत ही खूबसूरत जलपरी सी। गैलरी पार करके दूसरी गैलरी में प्रवेश किया। एक तरफ विशाल इलाके को शीशे से घेर कर जल भरा था और उसे समुद्र तल का सा बनाया था तरह-तरह के जल-जीव वहाँ पर थे साथ ही समुद्री पौधे केकड़ा, आठ भुजाओं वाला आक्टोपस बड़ी-बड़ी मछलियाँ समुद्री जीवों का अपना पूरा संसार था।
गोलाकार घूमते तीन मंजिल से दिखाया गया था।समुद्रीय पौध, फूलों के घास, मूंगे की चट्टान, समुद्री जीवों के जीवाश्म तक वहाँ थे। बड़े छोटे शंख घोंघे, सीप विशाल तैरते कछुएं, छोटा जीव समुद्री घोड़ा था तो विशाल दरियाई घोड़ा भी समुद्री घोड़ा एक फुट के शीशे में दीवार में दिख रहा था। उन सबसे ऊपर भयानक शार्क मछली ऊपर से भूरी तो नीचे एकदम सफेद करीब पन्द्रह और दस फीट की शार्क थी।जब घूमती पास से निकलती तो स्वतः शीश के पास से पीछे हो जाते लगता कहीं घक्का देकर शीशी न तोड़ दे इतने पास से एक इंच की दूरी से भयंकर जीव को देखना रोमांचकारी अनुभव था। यद्यपि शीशे और हमारे बीच 3 फीट की दूरी पर रेलिंग थी शीशे को छूने की आज्ञा नहीं थी जरा जरा दूर पर गार्ड निगाह रखे हुए थे। मछलियों के लिये पहाड़ियां भी बनाई थी जिनमें कभी कभी अंदर मछलियाँ चली जाती थी। एक साइड में दीवार पर छोटे-छोटे जीवों को शीशे में दिखाया गया था। वहीं से एक कक्ष में बड़े-बड़े सिलेंड्रिकल आकार के नीले शीशे के करीब दस फुट ऊँचे और पॉच फुट आयताकार के जारों में विविध प्रकार की जैल फिश थी। अलग-अलग जार में अलग प्रकार की जैल फिश थी। लाल, पीली, बसंती, काली, हरी न जाने कितने रंग को जैल फिश रूई के से फाहे में निकलते लंबे-लंबे रेशे देखने में जितनी खूबसूरत लग रही थी। जैल फिश है छोटा जीव पर होता उतना ही खतरनाक है अगर कोई व्यक्ति उनकी चपेट में आ जाता है बेहद सूज जाता है खुजली मचती है और शरीर में जहर फैल जाता है। अंधेरे कक्ष में उन जारों पर हल्की-हल्की रोशनी थी। जैसे सुंदर शोपीस रखे हों।
आगे चलकर एम्यूजमेंट पार्क था।पास पास घेरे में छोटी छोटी दुकानंे जिसमें साथ खाने पीने का सामान पर सभी मांसाहारी था सैन्डविच वगैरह खाना नहीं चाहा क्योंकि सब शाकाहारी मांसाहारी एक साथ रखा था और उन्हीं हाथों से दे रहे थे।हम लोगों ने वहाँ पर भी नमकीन आदि ही लिया कुछ ने नूडल्स आदि लिये कुछ देर रूक कर हमने सबका इंतजार किया, वहाँ तक सब आगे-पीछे हो गये थे। रात्रि 12 बजे की हमारी फ्लाइट थी छः बजे तक होटल पहुँचना था क्योंकि दो घंटे का रास्ता था और दो घंटे पहले जाना पड़ता है सामान आदि निकालना था इसलिये वापसी यात्रा के लिये बाहर आये कुछ देर वहाँ बैठे ।ओशन थियेटर में बच्चों का कार्यक्रम व जादू के खेल आदि चल रहे थे। एक घेरे में तरह-तरह की चिड़ियाएँ थी सारस आदि थे उनका शो चल रहा था चिड़ियाएँ करतब दिखा रही थीं पंख फैला कर नाचना आदि पर यह सब कुछ देर ही देखा। बाहर फब्बारा चल रहा था वहाँ सबने फोटो खिंचाई एक यादगार के रूप में । लौटते में दूसरा मार्ग था। एक विशाल पेड़ पर कृत्रिम दानवीय चेहरा बना था थोड़ी-थोड़ी देर में उसके खुले मुँह से चिड़िया बाहर निकलती चहकती और अंदर चली जाती पूरे रास्ते फूलों के गुच्छे विभिन्न आकृति में सजाये हुए थे फूल भी भिन्न प्रकार के थे संभवतः पहाड़ी इलाके में पाये जाने वाले बड़े मोटे पत्ते और मोटी-मोटी पत्तियों के रंगबिरंगे फूल।
ओशन पार्क देखकर बहुत अच्छा लगा जैसे एक अद्भुत लोक में घूमे हों मन तो वहाँ के डिजनीलैण्ड को देखने का भी था लेकिन डिजनीलैण्ड के लिये दो दिन चाहिये थे। टैक्सियाँ तुरंत ही मिल गई करीब पाँच बजे हम अपने होटल पहुँच गये। सामान आदि निकलवाया । चाय की बहुत तलब लग रही थी लेकिन होटल के कमरे छोड़ चुके थे बैठने का स्थान कहीं भी नहीं था मनोरमा जी ने आग्रह करके होटल वालों से उनकी लॉबी जो बंद थी खुलवाई। चाय के लिये पूछा लेकिन होटल की तरफ से इंकार आ गया। हॉगकॉग के उस बाजार में सब प्रकार की दुकानें थी। लेकिन एक भी चाय की दुकान नहीं थी यद्यपि पानी कोल्डडिंªक आदि जगह-जगह मिल रहा था पानी और कोल्डड्रिंक के एक ही दाम थे।
वंदनी के पास छोटी सी केतली थी जिसमें दो कप पानी उबल जाता था सबके पास सूखा दूध और पत्ती के पाउच तो थे ही ,निकले और दो-दो कर चाय बनी, कप भी नहीं थे किसी प्रकार दो कप और चार-पाँच डिस्पोजेबल गिलास का इंतजाम हुआ और चाय बनाकर पी गई तब तक विदा लेने का समय आ गया बस भी आ गई और एक बार फिर सब हॉगकॉग एअरपोर्ट पर थे। इस बार हमारा लाउंज बत्तीस था। एअर पोर्ट पर सादा बरामदा व वाकिंग एक्सेलेटर दोनों थे कभी सादा पर कभी एक्सेलेटर पर चलकर 32 वें लाउंज पर पहुँचे कुछ देर में हॉगकॉग से विदा ली।चीन को बॉय करने के लिये हवाई जहाज की खिडकी से झांका पर किस हिस्से को बॉय कहते, वही चॉंद मुस्करा रहा था वही सागर था वही पर्वत श्रंखलाएं,हवा बदली नहीं थी,हॉं मकान ओझल हो गये थे,किस दिशा को बॉय करें,सब कुछ एक था दूर दूर तक दिगन्त अपनी एकता पर मुस्करा रहा था ।
11.55 पर हमारी उड़ान थी 2.5 पर हम देहली अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे। कई सामान की बैल्ट थी अंत में एक स्थान पर हमें सामान मिलता गया बाहर निकलते 4 बजे गये थे। सरोज भार्गव जी ने टैक्सी का इंतजाम कर रखा था हम सबनेएक-दूसरे से विदा ली। शीघ्र ही फिर मिलने के वायदे के साथ। सबके अपने-अपने इंतजाम था। हम पाँच किरन महाजन, डॉ॰ सरोज भार्गव, मैं श्रीमती शैलबाला एवम् सरोज गौड़ वापस आगरा आये प्रातः सात बजे हम फिर अपने-अपने घर में थे उत्साह से भरे हुए अनुभव का पिटारा लिये जिसे सबको सुनाने की उत्सुकता थीं।
दस दिन में जो कुछ गाइड के साथ मुख्य शहरों की मुख्य सड़कों पर दौड़ते वाहन में या पर्यटन स्थल पर बिना किसी दुभाषिये के घूमने मात्र से हम चीन की असली तस्वीर देख पा सकते थे। चीन का चेहरा क्या है?यह केवल चीनी गाइड ने टूटी-फूटी अटपटी अंग्रेजी में बताया क्या उसे हम सब कुछ मान पायेंगे। चीन की असली तस्वीर वहाँ के गांवो में है। असली जनता प्रमुख शहरों से दूर पुराने चीन में है। हमारा समय वहाँ की यात्रा का तब था जब ओलम्पिक की तैयारी थी। चीन अपना प्रभुत्व अपनी, चमक-दमक अपना स्वच्छ चेहरा विश्व को दिखाना चाहता था। इसलिये चीन की तस्वीर की एक उथली झलक ही हम दे सकते हैं। हाँ यह अवश्य है जो कुछ हमने बचपन में चीन के लिये पढ़ा था सुना था वह चीन अब नहीं है। वहीं अब छोटे पैर रखने के लिये लोहे के जूते पहने नहीं दिखे।
चीनी परम्परागत पोशाकें नहीं है आधुनिक चीन पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित चीन है लेकिन मेहनतकश साफ-सुथरा चीन एक कागज का टुकड़ा भी नहीं यद्यपि चीन में पेयजल का संकट है। पीने का पानी मंहगा पेेप्सी, कोला, जूस सस्ते हैं। लेकिन सड़कें रात्रि को धुलती है बड़े-बड़े पाइप और झाडू से।
पुराने चीन की तस्वीर थी हमारी निगाह में अफीम पीते पिनक में झुंड में बैठे लंबे चोगे, लंबी पतली मूँछे और सिर पर तिकोनी टोपी लगाये पीली रंगत वाले ठिगने लोग लेकिन अब वैसा कुछ भी नहीं दिखा। बल्कि दिखते हैंे कर्मठ लंबे पतले सूखसूरत चमकती त्वचा वाले लोग, महिलाओं के चेहरे पर तो मोती की सी आभा दिखाई देती हैं। आँखे अवश्य छोटी है कुछ चीनी व्यक्तियों की नाक भी अब उठी-उठी सी दिख रही थी।
अब लाल रंग में रंगा चीन नहीं है। माओ का प्रभाव कहीं नजर नहीं आया। माओ की बड़ी तस्वीर सिर्फ उनके स्मारक के बाहर दिखाई दी। अब एक से सैनिक वाले कपड़े कहीं नहीं दिखे। रंग-बिरंगे नये फैशन के पैंट-कोट या कमीज पैन्ट दिखाई दी। महिलाएँ व लड़कियाँ स्कर्ट पैन्ट टॉप पहने दिखे। काला रंग अधिक प्रचलन में दिखा।
बीजिंग की व्यस्ततम सड़कों, पुलो और फ्लाई ओवरों पर दौड़ती दुनिया थी। एक से एक कीमती कारें दिखी, सुंदर संुदर छोटी कार, छोटे-बड़े वाहन , मोटर साइकिल या स्कूटर बहुत कम दिखाई देते हैं।
साइकिल आज भी है ,फर्राटा भरती साइकिल ,सड़कों पर सबसे किनारे साइकिल ही चलती है एकदम तेज गति की साइकिलें लेकिन विदेशी-देशी कारें, ट्रक बस बहुतायत से हैं तेज गति अब चीन का मिशन है साथ ही ध्वनि प्रदूषण और
धुँआ प्रदूषण पर पूरी रोकथाम है उस पर नियन्त्रण है। कार आदि में हार्न है पर अत्यावश्यक होने पर ही बजाया जाता है। एक गति से गाड़ियाँ चलती चली जाती है, हार्न नहीं बजाया जाता है।चीन को प्रकृति ने संपदा भी खुल कर लुटाई है चीन में सर्वाधिक पहाड़ है सबसे बड़ा पठार है खनिज संपदाओं से धरती भरी हुई है। एवरेस्ट जिसे चीन में च्यू म्यू लैग मा फेंग कहते है विश्व की सबसे ऊँची चोटी है और सिकियांग की ‘आइटिंग’ समुद्र सतह से 505 फुट नीची है अतः ऊँचाई करीब 30,000 फुट तक बैठती है चीन की सीमा बारह देशों से मिलती है।
महिलाएँ चुस्त कर्मठ आत्मविश्वास से भरपूर दिखी। आलस्य नशा कहीं नहीं दिखा। बच्चे तो बहुत कम दिखे। एक बच्चे की संस्कृति ने अब जनंसख्या नियन्त्रण में ला दी है। चीन में पहला नाम माँ के द्वारा दिया रखा जाता है उसी को महत्व दिया जाता है।
बच्चों की नौ वर्ष तक की शिक्षा सरकार द्वारा मुफ्त दी जाती है, पाँच हजार युआन तक का खर्च साल में पढ़ाई में आता है बच्चा होस्टल में रहता है। हफ्ते में एक दिन बच्चा घर आता है। पढ़कर आते ही बच्चा जाब ढूँढ़ने लगता है। युवा होते
बच्चों पर संभवतः माँ-बाप का अंकुश या दबाव नहीं है खुले आम गले में बाहंे डालकर घूमते देखे जा सकते हैं।
कहने को एक दशक और कहा जाय मात्र दस साल में चीन का जो कायाकल्प हुआ है वह अकल्पनीय है दस वर्ष पूर्व के चीन और आज के चीन में जमीन आसमान का अन्तर है। पिछले बीस साल से अन्तर प्रारम्भ हुआ और अकथ्य अन्तर आज परिणामस्वरूप है।
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