एक ग्रीन पार्क बनाया गया है जहाँ तरह-तरह की कलाकृतियाँ लगाई गई है। एक तरह से संग्रहालय का रूप दिया गया। ओलंम्पिक मशाल लिये लड़कियों की आकृतियाँ तारों से बनाई गई । ओलंम्पिक प्रतीक चिन्ह को नाचता हुआ दिखाया गया । इसे नाम दिया गया है चाइनीज सील डांसिग बीजिंग’
इसमें चीन की पारंपरिक मुहर के साथ एक खिलाड़ी की नाचती व खुशी मनाती लाल रंग की आकृति है। यह आकृति चीनी चरित्र जिंग की है। यह प्रतीक चार संदेश देता है।
1. चीन की संस्कृति
2. चीन का लाल रंग
3. बीजिंग सम्पूर्ण विश्व से आये लोगो का सम्मान करता है।
4. चीन ओलंम्पिक के मुख्य उद्देश्य. सिटअस एल्टीयस फोर्टियस का पालन करता है जिसका अर्थ है तेज, ऊँचा और मजबूत।
एक मीनार पर गोलाकार निर्माण किया गया है। जहाँ से राष्टाªध्यक्ष ने ओलंम्पिक मशाल का उद्घाटन किया।
करीब 60 किलोमीटर की यात्रा के बाद हमारे सामने विश्व का सातवां आश्चर्य था। मंचूरिया और मंगोलिया की जन जातियों के लगातार बर्बर आक्रमण से बचाव के लिये चीन की विशाल दीवार पिन इन छांग छांग ;लंबा किलाद्ध का निर्माण किया गया चीन की दीवार को चाइनीज में चेंगचेंग कहा जाता है यह 2000 साल पहले क्विन के राज्यकाल ;221-207 ईसा पूर्वद्ध प्रारम्भ हुई उस समय सम्राट किन हुआंग का शासन था।इसे ईसा से पूर्व तीसरी शताब्दी के मध्य में सम्राट श्री हुआगटी ने बनवाया था। इन्होंने ही चीन के प्रथम साम्राज्य की स्थापना की थी।लिंआनिंग में हुशान से प्रारम्भ और पश्चिम में जिआंग गुआन दर्रे पर समाप्त हुई करीब 20 राज्य साम्राटो के शासन काल में बनी इसकी लंबाई 8,851.8 किलोमीटर है। मिंग के समय तक बनी। अलग अलग राज्यों ने अपनी अलग अलग दीवार बनाई और बाद में जोड़ी गई।सम्राट क्विन शिनहुन उन दीवारों को आपस में जोड़ने में सफल हुए यद्यपि इतनी विशाल दीवार तातारों के आक्रमण से बचाव के लिये बनाई गई लेकिन चंगेज खान का कहना था कि यह रक्षा के लिए काफी नहीं है। रक्षक खरीदे जा सकते हैं।अधिकतर दीवार तीन स्थानों से पर्यटन रूप से विकसित की गई है। बादलिंग सिमाताई और जिनशैनलिंग हम लोग बादलिंग की तरफ से चढ़े थे अब वहाँ कार व मिनी टेªेन से भी यात्रा की जाती है।
प्रथम व्यक्ति विलियम एडगर गेलने 1908 में इसे नापा था इसकी तुलना विशाल डैªगन से की जाती है जो जंगल में पसरा पड़ा है। यह दीवर उत्तर पूर्व में शानहाई ग्वान से पश्चिम में लोपमूर तक 6400 किलोमीटर लंबी है और इसे बनाने में लगभग 20 से 30 लाख चीनी मारे गये।विशाल चीन की दीवार कुछ ऊँचाई पर चढ़कर प्रारम्भ होती है। अलग-अलग स्थान से पहाड़ों की ऊँचाई अलग-अलग थी।देखने में किसी भारतीय किले की दीवार की तरह है इसकी मुख्य विशेषता है इसकी लंबाई ,यह दीवार 6 हजार किलोमीटर लंबी 6“ इस 4.2 एक बार में 2 ट्रक दौड़ सकते है । कहा जाता है इसके निर्माण में दस लाख मजदूर काल कलवित हुए। उन्हें उसी दीवार में चिनवा दिया गया था।काल कलवित मजदूर इसलिये भी दबाये गये एक तो हड्डियों से दीवार मजबूत हुई पौधों की जड़े गहराई में गई तथा जलाने का खर्च बचा।
एक तरफ छोटे-छोटे स्टाल लगे थे छोटी-छोटी बेंच पड़ी थी उनसे चीन का पहाड़ी नजारा अद्भुत लग रहा था। लहराती बलखाती कहीं ऊँची कहीं नीची दीवार दीख रही थी। जगह-जगह दीवार पर बुर्जियाँ बनी थी। कहीं 40 फुट ऊँचाई पर कहीं साठ फुट ऊँची तो कहीं सैनिकों के खड़े होने के लिये छोटी-छोटी तिवारियाँ बनी थी। दीवार की ऊँचाई ,सीढ़ियाँ ,फिर सादा सीढ़ी तक तो हम चढ़ गये डॉ॰ चित्रलेखा, वंदनी, नंदनी आदि काफी ऊँचाई तक चढ़ गई थीं।सीढ़ियॉं चढ़कर प्राकृतिक संपदा से ळभरपूर चीन को ऊॅंचाई से देखकर प्रसन्न हो रही थीं और हम जो जरा सी सीढ़ियॉं चढ़कर और चढ़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे दीवाल को कम उन सब को अधिक देख रहे थे । शैल बाला ने वहाँ की रानियों की पारम्परिक पोशाक पहन कर फोटो खिंचाई ।यह भी एक यादगार है क्योंकि उस स्थान में रम जाना उसके जैसा महसूस करने का प्रयास भी एक यायावरी का अंग है । वहाँ पर तरह-तरह की कलाकृतियाँ विशेष रूप से चीन की दीवार की प्रतिकृतियाँ मिल रही थी। छोटे-छोटे पैकेट में तरह-तरह के नमकीन आदि मिल रहे थे वे खरीद कर चखे। दीवार के दोनों ओर हरियाली थी। कहीं भी पहाड़ खाली नहीं दिख रहे थे। लौटते समय रास्ता दूसरा था। बहुत सुरम्य आडू चैरी के लदे
पेड़ों के बाग देखे।चैरी के लाल लाल पके फल गुच्छे में लटक रहे थे।एकदम पूरा बगीचा चैरी का था उन्हें छूने को तोड़ने को मन कर रहा था पर बस निकलती चली गई।
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