10वहॉं से हम बूढ़ा नीलकंठ गये । यहॉं पर भी बस करीब आधाकिलो मीटर पहले ही रोक दी गई दोनों ओर बाजार के बीच होकर एक खुले स्थान पर बने ऊॅंचे चबूतरे पर पहुॅचे। बीच में चौकोर कुॅड बनाथा उसमें ष्शेषषायी विष्णु की विषाल प्रतिमा लेटी थी। इस प्रतिमा को छः माह षिव का रूप दिया जाता है और छः माह विष्णु का रूप दिया जाता है प्रतिमा तक पहुॅंचने के लिये तलाव में छोटा सा रास्ता बना दिया गया है जिससे श्रध्दालु चरण स्पर्ष कर पाता है ।विषाल होते हुए भी यह प्रतिमा पानी पर तैरती रहती है । उसे रस्से से किनारे की तरफ बांधा हुआ है जैसे नाव का लंगर बना देते हैं ।
उस दिन बस इन दो ही स्थानों के दर्षन कर पाये । दो बजे हम होटल पहुॅंचे और दोपहर का भोजन किया । भोजन बुफे के रूप में लगा था उसमें सूप जूस तीन सब्जियॉं रोटी नॉन पूरी कढ़ी चावल आदि सब था ।
ष्शाम के चार बजे कैलाष मानसरोवर यात्रा के विषय में हमें सविस्तार समझाया जाना था कि हमें क्या क्या औरकिसप्रकार से करना है जिससे हम उस वातावरण को बिना किसी बाधा के पार कर सके कौन कौन सी आवष्यक वस्तुएॅंहैं जो हमें साथ रखनी हैं चार बजे ठीक हम हॉल में पहुॅंच गये यह पूर्व राजा का दरबार हॉल था । रिचा ट्रेवल्स के प्रतिनिधि के रूप में तीन चार व्यक्ति उपस्थित थे । लाबी में मिले तिलकधारी अहमदाबाद से आये थे उनका उन्होंने अपना परिचय बीनू भाई पटेल नाम से दिया । अहमदाबाद से अपने साथ सोलह यात्रियों का दल लेकर आये थे अन्य अठारह व्यक्ति अन्य प्रदेषों से थे । उत्तर प्रदेष से हम चार थे , दिल्ली से श्रीमती विजयलक्ष्मी एवम् कु.उमा,अंकलेष्वर से श्री सुरेष नाहर व कमला नाहर श्री नाथू भाई डोरेक श्रीमती कमला बेन डोरिक आये थे । कु0सुधामुंषी श्री मूलचंद सबला दम्पति,कु0ज्योति रतनपाल मुबई से आये थे कु0ज्योति व कु. सुधा मुंषी अकेली ही आई थीं । श्री विनोद, श्रीमती ष्शकुन्तला पटेल श्रीमती रमा जडेजा ये तीनों अमेरिका से आये थे । । अमेरिका से ही श्री बर्मन अकेले आये थे वे अपने बड़े भाई की पुत्री के विवाह में अमेरिका से आये थे उन्होंने इस प्रकार कार्यक्रम बनाया था कि वे मानसरोवर व चारधाम की यात्रा
कर सकें। अमेरिका में रह कर देवस्थलों के प्रति श्रध्दा देखकर अपनी भारतीयता पर गर्व होता है । भारतीय संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी हैं यह इन लोगों को देखकर लग रहा था ।
‘ आप अकेले कैसे यात्रा कर रहे हैं ,धर्मपत्नी साथ नहीं आईं ’ बर्मन साहब कोई बहुत बुजुर्ग नहीं हॉं प्रौढ़ता की ओर अग्रसर अवष्य थे ।
‘मेरी पल्नी को तीर्थ वीर्थ में अधिक विष्वास नहीं है । पर मैं भारत का कोना कोना झांकना चाहता हॅूं ’ उनके हृदय में भारत बसा था ।
दुबई से युवा दम्पत्ति श्री निवासन व दिव्या आये थे । वे संतान की कामना से षिव के दरबार में आये थे । इन सबसे ऊपर मुंबई के ही 82 वर्षीय बुजुर्ग अकेले आये थे । सबसे अधिक उत्साहित वे ही थे वे एक बार पहले भी मानसरोवर की यात्रा कर आये थे । उन्हें देखकर विष्वास हो गया कि हम यात्रा कर सकेंगे । इस प्रकार हमारा अपने सहयोगियों से परिचय हुआ ।
बीनू भाई व अवतार गाइड हमारे मार्गदर्षक थे । बीनू भाई कई बार यात्री दल लेकर मान सरोवर यात्रा पर जा चुके थे ।
बीनू भाई बुजुर्ग थे लेकिन योग आदि से अपनी कदकाठी मजबूत बनाये हुए थे । अवतार की उम्र अधिक नहीं थी बीस बाइस वर्ष का युवक होगा उसे देखकर नहीं लगता था कि वह इतने बड़े दल को ले जा सकने में सक्षम होगा ।
रिचा ट्रेवल्स के प्रतिनिधि,बीनू भाई व अवतार गाइड तीनों ने एक एक बार यात्रा का विवरण प्रस्तुत किया । हमें किस किस वस्तु की आवष्यकता पडेगी क्या क्या तकलीफ हो सकती है यह बताया । दिल का मरीज, सॉस का मरीज , गठिया ,उच्च रक्तचाप आदि के मरीजों के लिये यह यात्रा नहीं है । विषेष रूप से पेट सम्बघी रोग परेषान करते हैं । वह तो हर पर्वतीय क्षेत्र की यात्रा में ध्यान रखा जाता है । वहॉं पर पानी भारी होता है इसलिये पानी पर विषेष ध्यान दिया जाता है ।
चोट बुखार आदि की दवाऐं साथ रखनी होती हैं । क्रेप बैन्डेज आदि भी रखनी होती हैं ऊचा नीचा पहाड़ी रास्ता पैर रास्ता भटक सकता है ।
इनके अलावा कुछ दैनंदिन आवष्यक वस्तुऐं तो रहती हैं टार्च ,छतरी इनर आदि । सामान कम से कम हो वही अच्छा रहता है। सब वस्तुओं के छोटे पैक रहते हैं तो अच्छा रहता है । यद्यपि खाने पीने का सभी सामान समय समय पर उपलब्ध रहेगा पर अपनी आवष्यकतानुसार छोटे छोटे पैक नमकीन आदि के रखलेना अच्छा रहता है । कभी क्भी खाना खाने के समय खाना नहीं खा पाते हैं तब अपने पास रहना अच्छा रहता है । निराहार नहीं रहना है खाना अवष्य है । ज्यों ज्यों ऊपर चढते जायेंगे भूख खत्म होती जायेगी , लेकिन कैसे भी खाना अवष्य है । पानी भी अधिक से अधिक पीना है पानी ही आपको जीवन प्रदान करेगा। इसी प्रकार की छोटी छोटी लेकिन जीवनदायिनी बातों से अवगत कराया। साथ ही डफल बैग , स्लीपिंग बैग व जैकेट प्रदान की गई ।आवष्यक सामान जो आगे की यात्रा में साथ ले जाना था वह डफल बैग में डाल कर और जो सामान अबतक काम में ले लिया था या आकर काम में लेना था एक बैग में डालकर होटल के क्लॉक रूम में रख दिया । सनस्क्रीन लोषन हमारे पास नहीं था वहॉं तेज धूप और तीखी हवाओं से बचाव के लिये 40 प्रतिषत वाला सनस्क्रीन लोषन चाहिये था हाथ के ग्लब्स आदि भी चाहिये थे हम वहॉं का सुप्रसिध्द बाजार विषाल गये हमें ज्ञात हुआ मान सरोवर जल लाने के लिये प्लास्टिक केन भी यहीं से ले जानी पड़ेगी वहॉं नहीं मिलेगी सारा बाजार ,सारी प्लास्टिक की दुकानें देखलीं पर पॉंच लीटर की केन कहीं नहीं दिखी एक दुकान पर बहुत मुष्किल से दो कट्टी मिलीं 80 रु0 की एक । जिन केन को आगरा में यूॅं ही देदेते हैं उन्हें 80 रु. में खरीदने में बहुत बुरा लगा पर मजबूरी थी ।प्रातः सात बजे हम 35 यात्री दो बसों में कैलाष मानसरोवर की यात्रा के लिये रवाना हुए ।
जैसे ही बस ने एक कदम बढ़ाया समवेत् स्वर में भोले बाबा की जय का नारा गॅूंज उठा षिव के न जाने कितने जय कारे हैं कितने स्वरूप कितने नाम पर उस समय कैसी मनःस्थिति थी कि केवल भोले बाबा की जय का जयकारा ही गॅूंजा जैसे सब प्रदेष और
संस्कार एक हो गये हों । एक स्वर एक उद्विग्नता,एक श्रध्दा एक विष्वास। उसके बाद दूसरा नाम आया ‘उमापतिमहादेव की जय ’ यद्यपि होटल से हल्का फुल्का नाष्ता लेकर निकले थे लेकिन लोगों के अपने अपने डिब्बे खुलने लगे। अंकलेष्वर के सुरेष भाई,कमलाबेन ने गुजरात के प्रसिध्द थेपले खिलाये । पूरी यात्रा मे हमने हर प्रदेष के व्यंजनों का स्वाद लिया,साथ ही रीति रिवाजों से परिचित हुए । हमारी यात्रा के प्रबंधतंत्र ने हमारे हर प्रकार के भोजन की व्यवस्था बनाई थी 10
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