ओम सृष्टि का आदि स्वर है ।नाद और घ्वनि का मूल स्वरूप । यही है यह पराबीजाक्षर ।‘मैं हॅूं देखो तो ’ जैसे विषाल सलेट पर सफेद चाक से ओम बना दिया हो चारों ओर घेरा भी बना था । ओम पर्वत दूर तक दिखाई देता रहा ।
एक छोटा सा कस्तूरी हिरन का छौना गाड़ी को टुकुर टुकुर देखता रहा फिर कुलांचे मारकर भाग लिया। एक दो खरगोष भी दिखाई दिये । कहीं कहीं बालू सूर्य की किरणों में हीरकनी सी चमक रही थी । कई कई कण चमकते तो ऐसा तारे जमीं पर बिछ गये हों यमुना किनारे गंगा किनारे समुद्र तट पर सिक्ता के कण चमकते देखे हैं लेकिन इतना तीव्र प्रकाष निकलते नहीं देखा ं संभवतः सूर्य पास दिख रहा था । दूर दूर तक पूरे रास्ते ये कण चमकते रहे ।ज्यों ज्यों मान सरोवर पास आता जा रहा था रोमांच बढ़ता जारहा था बार बार मोड़ पर जरा सी झलक दिखती तो सब चीखने लगते मान सरोवर मानसरोवर । एक चिर आकांक्षी प्रतीक्षा का अंत होने वाला था ।
मानसरोवर से तीन किलो मीटर पूर्व एक समतल पहाड़ी स्थान दिखाई दिया । पतला सा स्तम्भ पॉंच रंग की झंडियॉं बंधी थीं । प्रकृति के पॉंच तत्व के रूप में खंभे से बंधीं थी । ड्राइवर ने गाड़ी से उसकी परिक्रमा की और एक ओर गाड़ी रोक दी । बादल छाये हुए थे ज्ञात हुआ यहीं कैलाष के प्रथम दर्षन होते हैं । कुछ देर बाद ही एक ष्श्वेत उज्वल मनोहर षिखर बादलों से झांका । कुछ ही देर में सूर्य भी चमक उठा और षिखर सुनहरा चमकने लगा । बादल धीरे धीरे हटे और पूर्ण कैलाष हमारे सामने था स्वतः उस भव्य दर्षन के लिये हाथ जुड़ गये । नेत्र छलछला उठे कितने सौभाग्याषाली हैं हम जो यह दृष्य देख रहे हैं । एक एक कर सब वहॉं बैठ गये अधिकतर के नेत्रों से प्रेमाश्रु बह रहे थे क्षण भर को भी ऑंखे हटाने का मन नहीं कर रहा था क्योकि अधिकतर षिखर बादलों से ढका रहता है प्रथम दृष्टि दर्षन दुर्लभ हैं। ज्ञातहुआ कभी कभी तो कई कई घ्ंाटे लोग खड़े रहते हैं पर कैलाष सामने नहीं आते । वहॉं से हटने का मन तो नहीं कर रहाथा पर समय अपनी गति पकड़ रहा था और मान सरोवर में स्नान करना था यदि वहॉं देर हो जाती है तो ष्शाम के स्नान नहीं हो पायेंगे । कैलाष का चित्र खींचा जाने लगा सब दल में कुछ बैठ गये कुछ खड़े हो गये । चित्र खींचा गया हमने अलग से भी खिंचवाई लेकिन आगरा आकर जब सीडी डैवलप कराई तब केवल बादल ही आये जबकि जब फोटो खींची षिखर चमक रहा था । फोन कर बाद में अन्या साथियों से पूछाा उन्होंने भी कहा ओम की फोटो नहीं आई।
कैलाष षिखर को वंदन कर आगे की यात्रा के लिये चल दिये । अगला पड़ाव मान सरोवर था । तीन किलोमीटर की रोमांचक यात्रा पूर्ण हुई । ठीक मान सरोवर के तटपर गाड़ियॉं पहुॅंची तट करीब सौ मीटर की दूरी पर होगा ।
हिमालय का सबसे खूबसूरत क्षेत्र कैलाष मानसरोवर दिल्ली से 865 किलोमीटर दूर है कैलाष के सामने 32 किलोमीटर दूर मान सरोवर या पवित्र मानस सरोवर संस्कृत ष्शब्द मानस व सरोवर से मिलकर बना है इसका ष्शाब्दिक अर्थ मन का सरोवर है यह सरोवर ब्रह्मा जी की संकल्प ष्शक्ति से सृष् िके आरम्भ में निर्मित हुआ था । यह झील सबसे अधिक पवित्र आकर्षक है । संसार की सभी झीलों में सबसे सुंदर।भारतीय पौराणिक आख्यानों में इसका बहुत महत्व है । यह झील जादुई सी रहस्यमय लगती है।षांत नीलमणि सी यह झील तिब्बत की पहाड़ियों पर झूला सी झूलती नजर आती है यह समुद्र तल से 14950 फुट है इसकी परिधि 88 किलोमीटर कभी थी अब 52 किलोमीटर है इसकी गहराई 300 फुट है सर्दियों में यह झील जम जाती है और बसंत के साथ पिघलना प्रारम्भ कर देती है । इससे सरयू व ब्रह्मपुत्र दो बड़ी नदियॉ निःसृत हैं यहॉं कुमदा नाम से सती देवी का ष्शक्ति पीठ है यहॉं सती की दाहिनी हथेली गिरी थी । पितरों के श्राध्द के लिये यह तीर्थ प्रायः सर्वोत्तम माना गया है यहॉं तप करने से तत्काल सिध्दि मिलती है । बौध्द धर्म में भी इसे पवित्र माना गया है ऐसा कहा जाता है कि रानी माया से भगवान् बुध्द की पहचान यहीं हुई थी
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