आगे बांये हाथ पर ही दो मंजिला भवन था इसका मुॅंह पूर्व में था यहॉं हर समय लंगर चलता रहता है। यहॉं भी सीढ़ियॉं चढ़कर पहुॅंचते ही पैर धोने के लिये जल प्रवाहित होता रहता है । कार सेवक लंगर खाने आने वालों को कटोरा और थाली पकड़ाते जाते हैं । घुमावदार जीना और बड़े बरामदे को पारकर विशाल हाल था बाद में देखा वैसा ही एक कक्ष नीचे था एक बार में हजार आदमी बिछी पट्टियों पर बैठते चले जाते हैं दो लाइने पूरी होते ही छिलके वाली उरद की दाल डाल दी जाती दूसरा आदमी कटोरों में पानी देता जाता और एक आकर रोटी डालता जाता। रोटी थाली में न देकर आपको दोनों हाथ फैलाकर हाथ पर लेनी पड़ेगी हर दो पंक्ति को खाना देने के साथ ही एक आकर वाहे गुरू की प्रार्थना करा जाता उसके साथ प्रारम्भ होता लंगर पाना। मुश्किल से एक बार की पॉंत में पन्द्रह मिनट लगे। तुरंत सफाई होकर दूसरी पॉंत बैठने लगी पन्द्रह मिनट में जब तक हम लंगर पाकर उठे पूरा कक्ष भर चुका था और हमारे उठते ही दोबारा पंक्ति बैठनी शुरू हो गई थी उतना ही बड़ा कक्ष निचली मंजिल पर था उसके अलावा भी लोग अपने बर्तनों में खाना लेकर सीढ़ियों आदि पर बैठ कर खा रहे थे। उस स्थान पर बैठकर पतली दाल और रूखी रोटी भी अमृततुल्य लगी थी शायद यही कहावत चरितार्थ होती है भूख में किवाड़ पापड़ लगना। बड़े बड़े देगों में जाली से धिरे कक्ष में दाल पकती रहती है बड़े तवे पर निरंतर रोटियॉं सिकती हैं । बाहर कटोरियों में हलुआ मिलता है। खाने वाले अपनी थाली उठाकर बाहर रखी बड़ी नादों में डालते जाते हैं वहॉं भी कार सेवक उन्हें धोकर पहुॅंचाते जाते हैं जैसे सब एकसूत्र में बंधे हैं न किसी से जात पूछने की जरूरत न किसी को काम पूछने की जरूरत, आते हैं और सामर्थ्य भर काम कर मत्था टेक चले जाते हैं । 1
इस परिसर में ही मंजी साहब का विशाल सम्मेलन हॉल है। परिक्रमा मार्ग पर ही मुख्य मंदिर से पूर्व प्रसादम् है । सब जगह गुरुमुखी ही प्रयोग की गई है इस वजह से कहांॅं क्या लिखा है पढ़वाना पड़ा । वहॉंपर ढका हुआ बरामदा है पर्यटक वहॉं बैठ कर विश्राम भी करता है और प्रसाद खरीदने के लिये लाइन में लगता है। प्रसाद के लिये कई खिड़कियॉं बनी हैं। शुध्द घी का गर्म गर्म हलुआ प्रसाद के लिये थाली में दिया जाता है।
सरोवर के मध्य में स्थित हरमंदर साहब के लिये जाने के लिये पुल बना है ंपुल दो भागों में रेलिंग द्वारा विभक्त है एक तरफ से जाने के लिये और एकतरफ से लौटने के लिये । हरमिंदर साहब में घुसने से पूर्व ही एक काउन्टर पर आपके हाथ से चढ़ावे का थाल ले लिया जाता है और दोने में चढ़ा हुआ प्रसाद दे दिया जाता है। थाल अपने आप प्रसाद स्थान पर पहुॅंचा दिया जाता है ।
हरमंदिर साहब लगता है अनेकों स्वर्णकमल सरोवर में झांक रहे हांे । मंदिर में प्रवेश के साथ ही खुल जाता है खुल जा सिम सिम का द्वार स्वर्णखचित रंगीन पत्थरों से पच्चीकारी , एक अदभुत संसार। दीवार पर , छत पर सब तरफ स्वर्ण और कीमती पत्थरों से बेल बूटे कमल आदि बनाये गये हैं । बीचबीच में पूर्व गुरुओं की जीवन की झलक भी दिखाई गई है । रंग बिरंगे झाड़फानूस की रोशनी में झिलमिलाता है । प्रथम तल पर गुरूग्रन्थ साहब स्थापित हैं । निरंतर उसका पाठ रागी करते रहते हैं । द्वितीय तल पर भी गुरूग्रन्थ साहब का अखंड पाठ करने का नियम धारण करने वाले पाठ करते रहते हैं । यहॉं गुरूग्रन्थ साहब का स्वरूप विशाल है । कम से कम तीन फुट लंबा ढ़ाई फुट चौड़ा उसका आकार होगा । द्वितीय तल की भी छत और दीवारों पर भी उसी प्रकार से पच्चीकारी हो रही है । प्रथम तलपर जहॉं सरोवर का जल मंदिर के फर्श को छू रहा है उसे हर की पौड़ी कहते हैं । श्रद्धालु वहॉं आचमन करते हैं । बाहर कढ़ा प्रसाद मिलता है ।
मुख्य मंदिर से आगे परिक्रमा मार्ग पर अकाल तख्त सबसे प्रमुख गुरूद्वारा है । यहीं से सिखों के लिये आज्ञा जारी होती है । यहॉं सर्चोच्च आसन स्थित है । अकाल तख्त की स्थापना छठे गुरू हर गोविंद सिंह ने की थी । भवन में अभी नया निर्माण हो रहा है । यहॉं गुरुओं के पुराने अस्त्र शस्त्र, भेंट में प्राप्त मूल्यवान वस्तुऐं,आभूषण आदि रखे हैं । यहॉं रात्रि में गुरूग्रन्थ साहिब को पूर्ण सम्मान के साथ सुखासन के लिये लाया जाता है । एक
विशाल नगाड़ा भी यहॉं रखा है जिस समय गुरूग्रन्थ साहब की सवारी यहॉं से जाती है नगाड़ा बजाया जाता है । तुरही बजती है फिर हाथ में तलवार लिये उनके अंगरक्षक निकलते हैं सिर पर चौकी पर गुरूग्रन्थ साहब की सवारी निकलती है। भीड़ स्वतः ही काई की तरह फटती सवारी को स्थान देती जाती है दर्शन के लिये श्र्रद्धा से हाथ जोड़े सिर नवाये श्रद्धालु पंक्ति बध्द खड़े हो जाते हैं । अकाल तख्त के सामने ही दो निशान साहब स्थापित हैं ।इसके अलावा गुरूद्वारा अटलराय , गुरूद्वारा धड़ा साहब , गुरूद्वारा शहीदगंज , गुरूद्वारा गुरूवख्श सिंह ,बेर बाबा बुडढाजी ,श्शहीद बुंगा बाबा दीप सिेह, लाची बेरी आदि स्थित हैं । सभी गुरूद्वारों के शिखर सुनहरे हैं ।
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