Wednesday, 3 September 2025

satrange desh main

 सतरंगे देश में



    ☺    मॉरीशस। छोटा सा द्वीप लेकिन प्रकृति ने जैसे सारी सुंदरता लुटा दी हो। मॉरीशस के हवाई अड्डे के प्रवेश द्वार पर सत्य ही लिखा है कि ‘स्वर्ग में आपका स्वागत है’ । डॉ॰ गिरीश गुप्ता जी के नेतृत्व में रैस्पैक्टेज संस्था के अन्तर्गत अठारह सदस्यीय दल 26 अगस्त को मॉरीशस के लिये रवाना हुआ। यद्यपि हमारा यह प्रवास एक वर्ष पूर्व था लेकिन वहाँ पर रहने की व्यवस्था का पुननिर्माण हो रहा था। इसलिये ठीक एक वर्ष बाद हमारा दल सद्भावना यात्रा के लिये रवाना हुआ। साढ़े नौ घंटे में से साढ़े सात घंटे समुद्र के ऊपर यात्रा कर हमारा विमान मॉरीशस के द्वीप पर पहुँचा तो देख कर ठगे से खड़े रह गये । बहुत स्थान का समुद्र देखा है लेकिन इतना शांत और सुंदर,‘ हरा समुंदर गोपी चंदन’ संभवतः यही से गये किसी यात्री की उक्ति होगी। 

चारों ओर नीला समुद्र उसके बाद हरा समुद्र, बीच में लाल माटी और हरियाली से परिपूर्ण द्वीप जैसे पन्ने की अंगूठी में मरकत और पन्ने के टुकड़े जड़े हों। सुनहरी बालू स्वर्ण का आभास देती है।

मॉरीशस के अंदर भारत धड़कता हेै। इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है 200 वर्ष पूरे हुए है । इसी वर्ष 2010 में उसके दो सौ वर्ष की जन्म शताब्दी मनाई गई है।मॉरीशस 61 किलोमीटर लंबा और 46 किलो मीटर चौड़ा है। इसकी गोद में कुछ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ है। बहुत ऊँचे पहाड़ नहीं है 600 मी. से 800 मी. तक की ऊँचाई वाले पहाड़ मिलते हैं।

           हवाई अड्डे पर हृदय को अभिभूत कर देने वाला स्वागत । हुआ यह तो ज्ञात था कि वहाँ भारत को सब पसंद करते है । भारतीय परिधान पहने श्रीमती इंदिरा वर्मा ;उच्चारण वामाद्ध मि. भवानी आदि उपस्थित थे उन्होंने हिंदी में स्वागत किया तो बहुत अच्छा लगा वैसे वहाँ की भाषा क्रेयाल है जो फ्रंेच भाषा का ही रूप है। इंगलिश का स्थान बाद में हैं। हिंदी  समझते सब है लिखना वहाँ सबको नहीं आता है। अब हिंदी भाषा भी पाठ्यक्रम में स्थान ले रही है। 

हवाई अड्डे से सीधे हमें पहले वहाँ लगी मॉरीशस के इतिहास की प्रदर्शनी में ले गये  यह पैते कुआ नामक स्थान पर थी प्रदर्शनी का अंतिम दिन था। वहाँ के जीवन का क्रमिक इतिहास था किस प्रकार फ्रेंच उन्हें यह प्रलोभन देकर ले गये थे कि मॉरीशस की मिट्टी में सोना है। खोदोगे तो सोने से मालामाल हो जाओगे बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश से तीन लाख लोग स्टीमरों में सवार होकर मॉरीशस पर पहुँचे। समुद्र में लंबी यात्रा में जो बीमार या संक्रमित हो गये उन्हें समुद्र में फेंक दिया और प्रारम्भ हुआ यातना का दौर । उन्हें खुले स्थान पर ठहराया गया  दिन भर उनसे मजदूरी कराई जाती और केवल खाने के लिये चावल और एक सब्जी दी जाती थी । बीमार पड़ने पर साधारण इलाज किया जाता गंभीर बीमार को समुद्र में फेंक दिया जाता। अप्रवासी घाट के रूप में उन दुर्दिनों को संरक्षित किया गया है उस स्थान को स्मारक के रूप में एक वर्तुलाकार चबूतरा बना कर सरंक्षित किया है जहाँ स्टीमर से उतरकर पूर्वजों नेे पहला कदम रखा।

प्रदर्शनी में फ्रेंच द्वारा दी जाने वाली यातनाओं को झांकियों के द्वारा दिखाया गया था । झांकियॉं जीवंत लग रही थी किस प्रकार पूर्वजों ने गरीबी, अत्याचार, यातना सही । यह सोच-सोच कर वहाँ के वासियों की आंखें आज भी नम हो जाती हैं। डोडो पक्षी वहाँ का राष्ट्रीय पक्षी है जो अब लुप्त है। जिस समय फ्रेंच व्यक्तियों ने मॉरीशस पर कदम रखा उस समय वहाँ केवल डोडो का साम्राज्य था । वह बहुतायत से पाया जाता था केवल मॉरीशस में ही यह पक्षी पाया जाता था। वह बेहद आलसी भारी भरकम पक्षी था । उसका मॉस नरम व लजीज था वह आसानी से शिकार हो जाता था। आज अपने साम्राज्य में उसकी केवल यादें है लेकिन है बहुतायत में । वहाँ हर वस्तु में डोडो का चिन्ह मिलता है। प्रदर्शनी में भी एक घेरे में डोडो पक्षी प्रदर्शित किया गया था संभवतः जिन-जिन रंग के पाये जाते थे सभी रंग के डोडो पक्षी बनाये थे।

प्रदर्शनी स्थल के सामने ही छोटा द्वीप था पैते दोआ जहाँ पर ब्रिटिश और फ्रेंच में यु( हुआ था और मॉरीशस ब्रिटिश के अधिकार में चला गया था।☺


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