प्रवेश द्वार के पास ही एक छोटा मार्ग प्रथम तल पर जाने के लिये है वहॉं एक संग्रहालय स्थित है। यह संग्रहालय कई कक्षों में विभक्त है। यहॉं सभी पूर्व गुरुओं के जीवन से संबंधित कथाऐं हस्त निर्मित चित्रों के माध्यम से वर्णित हैं तो आजादी की लड़ाई का भी चित्रों के माध्यम से वर्णन संरक्षित है। गुरुओं के अस्त्र शस्त्र उनसे संबंधित वस्तुऐं यहॉं भी रखी हैं । 1982 के हमले में खंडित हुए अकालतख्त और हरमंदिर साहब की पेंटिंग भी चित्रित है
तथा उसके नीचे जो लिखा है उसका भावार्थ है ‘ इंंिदरा ने इस पवित्रस्थान को अपवित्र किया इसलिये उसकी हत्या हुई ,उसने जैसा किया वैसा पाया ’ ।
गुरू पर्व से पहले दिन हम स्वर्ण मंदिर में थे रोशनी से मंदिर झिलमिला उठा था उसकी छाया पवित्र सरोवर में हजारों दीपकों का आभास दे रही थी । तीन बजे के समय दिन में हजारों स्कूली बच्चे कतारबद्ध मंदिर के लिये जुलूस के रूप में आये साथ ही विभिन्न अखाड़े अपना प्रदर्शन करते चल रहे थे। यह गुरूगोविंद सिंह के बेटों की याद में निकलता है । कलाकार अपना कौशल दिखाते चलते हैं जैसे चक्काघुमाना ,कोड़ा घुमाना, अग्नि मुॅह से निकालना आदि । स्वर्ण मंदिर में जो एहसास होता है वह है एकता का , संगठनात्मक शक्ति का, समर्पण , विनयभाव का पावनता का इन सबसे ऊपर भव्यता का ।
जलियॉं वाला बाग - स्वर्ण मंदिर से कुछ आगे है श्रद्धा का मंदिर अल्फ्रेड पार्क । भव्यता से बिलकुल दूर एक साधारण सा पुराना रास्ता जिसने ऐसा भयानक मंजर देखा है कि अच्छे अच्छे दिलेरों की रूह कॉंप जाये । कहा जाता है गोली कांड के समय तो वह रास्ता रोक दिया गया था लेकिन फिर उसने वहॉं से गुजरती लाशों को देख कर खून के ऑंसू अवश्य बहाये होंगे , तब उसे अपने छोटेपन का पतलेपन का ऐहसास हुआ होगा उसने सोचा होगा काश मैें अन्य पार्कों की तरह चारो ओर से खुला रास्ता क्यों न हुआ। स्वर्ण मंदिर की भीड़ से दूर चंद लोग थे उस पवित्र मंदिर में। बाहर से आये पर्यटक या स्कूलों से पिकनिक मनाने आये बच्चे ,कॉलेज से भागे प्रेमी ही थे । युगल जो शहीद स्मारक के पीछे बैठे रास रचा रहे थे। यह वही स्थान है जनरल डायर ने क्रूरता का इतिहास रचा। आम निरीह जनता का समाधिस्थल एक पब्लिक पार्क में तब्दील हो चुका था। बीच बीच में विशेष स्थानों पर निर्माण करा दिये गये हैं और छोटे छोटे बोर्ड लगा दिये गये हैं,कुछ दीवालों पर गोलियों के निशानों पर घेरे बना दिये गये हैं । यहीं समाप्त हो जाती है 13 अप्रैल 1919 को शहीद हुए दो हजार शहीदों की गाथा। एक छोटा सा संग्रहालय है जिसमें उस क्रूर हत्याकांड की तस्वीरें और शहीद ऊधमसिंह का चित्र है जिसने 19 साल बाद जनरल डायर को मार गिराया। शहीदों की स्मृति में ज्योति के आकार का स्मारक है इसके आगे अमर ज्योति जलती रहती है शहीदी कुऐं को भी स्मृति स्वरूप दिया गया है लेकिन एकदम अंधेरा होने के कारण दिन में भी कुए को देख पाना असंभव है बल्कि एक तरफ बना ऐसा लगता है कोई गैस्ट हाउस बना है ।
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