Friday, 8 August 2025

kailash mansarover yatra 22

 एक   बहुत बड़ा गोल पत्थर था उस पर विचित्र सी आकृति बनी थी पर उसे लाना संभव नहीं था । इस बात पर  एक प्रसंग याद आ गया । जब हम मान सरोवर के लिये बढ़ रहे थे तब रास्ते में कैलाष के दर्षन हुए । उस समय उस पर ओम का चिन्ह उभर आया  कुछ देर बाद देखा तो लगा  यह तो अंग्रेजी का  ओम अर्थात् ओ एम बना है पहले तो ध्यान ही नहीं दिया। मैं साधारण रूप से  ओम पढ़ती रही फिर चिहुॅंक पड़ी अरे ये तो अंग्रेजी में ओम बना है । तभी  श्रीमती विजय लक्ष्मी बोलीं कुछ देर पहले मुझे तमिल में ओम लिखा दिखा था। कुछ देर बाद फिर ओम दिखने लगा था वहीं पास में एक पर्वत पर

विषाल गणपति की आकृति दिखरही थी । वहॉं आस पास के षिखरों पर सब  अलग अलग आकृतियॉं देख रहे थे ।

अभिषेक सम्पन्न हुआ सारी हवन सामिग्री की एक साथ आहुति दे दी गई लपटें ऊॅंची हो गईं उसकी गरमी अच्छी लग रही थी।आरती हुई प्रसाद में नारियल सबको वितरित किया गया । वापस टैन्ट में आकर सारा सामान डफल बैग में डाला जब तक खाना खाकर बाहर आये  सारा सामान ट्रक में लद चुका था ।

         यहॉं से प्रारम्भ हुआ मानसरोवर की कार द्वारा परिक्रमा लगाने का कार्यक्रम । वैसे तो पूरी परिक्रमा पैदल लगाई जाती है । 1982 में बाबूजी जब सरकार द्वारा आयोजित कैलाष मान सरोवर यात्रा में पैदल गये के तब उन्होंने  तीन दिन में 80 किलो मीटर की यात्रा पैदल पूरी की थी । तीन ही दिन कैलाष की परिक्रमा में लगे थे । पैदल मार्ग सरोवर के किनारे किनारे है और गाड़ी का मार्ग कुछ दूर से है। आधी  परिक्रमा दारचेन तक की यात्रा में लग जाती है  । परिक्रमा मार्ग अपने में अदभुत् है । सरोवर का हर रंग दिख रहा था जैसे अनंत तक केवल सरोवर हो  कैलाष हर मोड़ पर छिपता दिखता रहा । सबसे पहले परिक्रमा मार्ग पर चियू गोम्पा पड़ा यह एक टीले पर अवस्थित है । गर्भ गृह में कई बौघ्द तिब्बतीदेवी देवता एवम् मनी मंत्र लगे थे । पीतल की बड़ी बडी़ मूर्तियॉं थीं  मठ के लामा पुजारी गुलाबपाष से पवित्र जल छिड़क रहे थे  नन्हंे नन्हे घी के दीपक रखे थे जो युआन देकर जलाये जा सकते थे कुछ ने जलाये भी । चियू गोम्प के पास एक  पर्वत था उसकी मिट्टी बहुत पीली थी उस पर सूर्य की किरणें पड़ी तो वह झिलमिला उठा उपस्थित गोम्पा के निवासियों ने बताया उस पर्वत पर सोना पाया जाता है । 

छः किलो मीटर की यात्रा के बाद एक और गोम्पा पड़ा उसका नाम था सेरालुम गोम्पा । यह चियू गोम्पा से कहीं बड़ा था । इसमें करीब पन्द्रह पीतल की मूर्तियॉं दो फुट से लेकर सात फुट तक ऊॅंची थीं।  तिब्बती देवी देवताओं के स्वरूप हिन्दू देवी देवताओं से मिलते थे । एक सात फुट ऊॅंची मूर्ति को  विष्णु का स्वरूप कहा  जा सकता है । षिव स्वरूप भी थे और काली मॉं का रूप भी पर सब तिब्बती देवी देवता थे । सभी मूर्तियॉं पंक्तिबध्द ष्शीषे के ष्शो केस में लगी थीं । प्राचीन पॉंडुलिपियों के ये गोम्पा खजाना हैं । पतले पतले लम्बे टीन के डिब्बों में ये बंद थे । ये गोम्पा अघ्ययन के  विषय हैं।संस्कृति का अनमोल खजाना हैं वैसे तो कभी ये भारत की अनमोल धरोहर थी इसलिये भारतीय  संस्कृति ही रची बसी है । पूरे मार्ग में पर्वतों पर छोटे छोटे द्वार से बने थे वे साघु महात्माओं की तपस्थलियॉं थीं । उन पर्वत मालाओं पर अनेक धर्मों के  संत महात्मा अपने अपने ढंग से ईष्वरीय सत्ता को नमन  करते हैं ।


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