प्रयांग और सागा के बीच ब्रह्मपुत्र नदी पड़ती है पूर्व में यह नदी फैरी से पार करनी पड़ती थी अब वहॉं पुल बन गया हैै प्रयांग तक का सफर सहज है । बहुत ऊॅंचा नीचा न होकर मैदानी सा है लेकिन पहाड़ सब जगह एक से थे । प्रयांग भी एक दम सुनसान स्थान है कहीं कहीं रेतीली मिट्टी की ईंटों के अधबने कमरे से दिख रहे थे । उन रेतीले कमरों को पार करके एक पक्की बिल्डिंग दिखाई दी वही हमारा ठहरने का स्थान था चारो ओर ऊॅंची चार दीवारी से घिरा बीच में बड़ा ख्ुाला स्थान तीन ओर कमरे एक कोने में बाथरूम आदि बने थे बीच में एक हॉल जो उनका सत्संग भवन था । हैरानी हुई इतने वीराने में इतना अच्छा गैस्ट हाउस ।
एक महंत भी अपना ग्रुप लाए थे वे अभी आये नहीं थे हर कमरे में तीन तीन पलंग कर दिये गये कमरे छोटे थे । हमें जो कमरा मिला उसे देख कर हम हैरान रह गये कि बड़ी अच्छी व्यवस्था है । कालीन रेषमी पर्दे, पलंग पर भी मोटे डनलप के गद्दे पर साटन की चादर , रेषमी झालर दार तकिये , सोफा । कमरा लोबान आदि से सुगंधित हो रहा था,अभी हम सामान रख ही रहे थे कि व्यवस्थापक भागा आया उसने गलती से हमें महंत जी का कमरा एलाट कर दिया था उसके माथे पर इतनी सर्दी में भी पसीना चुहचुहा आया था ‘ यह कमरा महंत जी का है वे आते ही होंगे प्लीज आप दूसरे कमरे में चलिये ’। धत्तेरे की आ गये अपनी औकात पर वही तीन फोल्डिंग पलंगो वाला कमरा पुराने गद्दों पर चादर जरूर धुली बिछी थी ।नहाने की व्यवस्था यहॉं भी थी ।पच्चीस युआन अर्थात पचहत्तर रुपये देकर आराम से गर्म पानी में नहा सकते थे परन्तु पानी की मात्रा और समय निर्धारित था दस मिनट और एक बाल्टी पानी । कुछ नहाये कुछ ने मानसरोवर के लिये स्नान मुल्तबी कर दिया ।चंद्रमा और नीचे उतर आया था । चतुर्दषी का चॉंद रात्रि में बिना बिजली के भी पूर्ण उजाला था । यहॉं केवल आठ से
दस बजे तक के लिये बिजली थी उसके बाद बंद कर दी गई । अपने सह यात्रियों में अहमदाबाद से आये बुजुर्ग दम्पति को हमने देखा वे चुपचाप ष्शांत सब काम किये जा रहे थे उन्हें किसी प्रकार की कोई परेषानी नहीं हो रही थी । वे निलायम् ट्रैकिंग पर भी बहुत आराम से गई जैसे इन सब की अभ्यस्त हों ।
ज्येाति की तबियत और बिगड़ गई । प्रयांग में जिला चिकित्सालय बस्ती में था उसे वहॉं ले जाया गया । यहॉं पर भीवही समस्या आयी मुख्य चिकित्सक ने कहा भर्ती करना पड़ेगा । भर्ती का मतलब था किसी का रुकना चिकित्सक ने दवा देदी और आक्सीजन का बड़ा सिलैंडर उपलब्ध कराया । प्रातः काल तक कुछ सुधार आ गया ।
अगला पड़ाव मान सरोवर था । उत्साह बढ़ गया प्रयांग से मान सरोवर का रास्ता अधिक कठिन नहीं है ।
भोले बाबा को याद करते मान सरोवर के लिये प्रातः यात्रा प्रारम्भ हुई । रेतीले पहाड़ों के पीछे वर्फ ढके पहाड़ भी दिखने लगे थे । बायीे ओर एक पर्वत पर वर्फ से ओम़¬ बना दिखाई दिया यह ओम पर्वत कहलाता है षिव का नाम उस पर्वत पर कह रहा था यह प्रदेष षिव का है । वैसे तो कण कण में षिव विराजते हैं पर यहॉं तो ओम¬ की मुहर लगी थी ।ओम परम ब्रह्म परमात्मा का स्वरूप है । ओम की साधना से सारे क्लेष मिट जाते हैं
‘ओमिति ब्रह्म । ओमितीदं सर्वम् ‘ ;तैत्तरीयोपनिषद् .
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