Thursday, 7 August 2025

Kailask mansarover yatra 21

  दो बजने के साथ ही पूरे कपड़ों में लदे फदे एक एक कर सब बाहर आने लगे  । कभी कैलाष की ओर कभी मानसरोवर की ओर कभी आकाष की ओर देख रहे थे  मान सरोवर के बिलकुल निकट से  भी यात्रियों की आवाज आ रही थी संभवतः वे आश्रम में टिके यात्री थे । कुछ देर चारों ओर देखने के बाद धर्म परिचर्चा भजन जाप आदि प्रारम्भ हो गया । दो घंटे बीत गये एक एक कर यात्री टैन्टों में घुसने लगे  कुछ नहीं  है आस छोड़ दी । मुझ जैसे अभी कुछ टिके थे शायद कुछ  दिख ही जाय मुझे तो नींद वैसे भी नहीं आनी थी, मुझे नींद अपने बिस्तर के अलावा कहीं नहीं आती है ,बहुत हुआ तो एक दो झपकी ही आती हैं, विषष छोटे से टैन्ट में  तो बाहर ही बैठे क्या बुरा है । मान सरोवर के किनारे  बैठे यात्री भी लौट गये । गोयल साहब  तो टैन्ट से निकले ही नहीं थे बंसल साहब टैन्ट से सिर  निकाल कर आकाष की ओर देख रहे थे । चारों ओर देखते मैंने देखा पष्चिम दिषा से दो चमकदार तारे तेज गति से  मान सरोवर की ओर बढ़ रहे हैं सभवतः मिसाइल गति से  ‘ आरहे  हैं आ रहे हैं ’ मैं चिल्लाई वे ठीक  ऊपर पहुॅंच  चुके थे  और विलुप्तहो गये  सबने देखा पर  तब तक वे जा चुके थे  बंसल साहब का सिर आकाष की ओर था उन्होंने भी देखे तो शायद देवता ही थे  यदि चुप रहती तो तो शायद लोप न होकर मान सरोवर में उतरते  मैंने क्यों आवेष में चिल्लाया । ष्शायद इंसान की नजर से बच कर ही आते हैं ।  अब विष्वास हो गया देवता आते हैं तो ज्योत भी आती होगी । पॉंच बजने को आये अब नहीं आयेगी अब सब तंबू में घुस गये मैं भी घुस गई । लेकिन झिरी से अपनी निगाहें कैलाष पर टिकाये रखी । एक चमत्कार देखने को मिला शायद दूसरा भी मिल जाये । झिरी से ठंडी हवा घूम घूम कर घुसने का प्रयास कर रही थी । पर आषा साथ नहीं छोड़ रही थी । एक दो मिनट को सिर  इधर उधर रखती  तो लगता  उसी समय न आजायें और मैं देखने से वंचित रह जाऊॅं  पर भोर हो गई ।

        पहली किरन के साथ विषाल लाल गोला सूर्य का सामने आया । नीला पानी भी हलका लाल सा दिखने लगा । तीखी हवा हड्डियों तक पहुॅच रही थी । बादल भी अपनी धमा चौकड़ी मचाये हुए था । कैलाष की झलक दिखती और वह बादलों में छिप जाता । गुरला मान्धाता जैसे षिव को  नमन कर रहा हो ।

आगे का पड़ाव दारचेन था । वहॉं एक रात रुक कर परिक्रमार्थी परिक्रमा को  जाने वाले थे । हम अठारह जन दारचेन में  ही रुकने वाले थे । दोपहर दो बजे तक मान सरोवर पर रुकना था। उसके बाद दारचेन की यात्रा थी इसलिये एक बार फिर स्नान लाभ करने मान सरोवर पर पहंुॅचे। इस समय पानी वर्फीला ठंडा था। हमने रुद्राक्ष की माला को मान सरोवर में स्नान कराया  और षिव अर्चना के साथ उसे रखा साथ ही स्वयं स्नान किया । इस बार अधिक देर रुकने की हिम्मत नहीं हुई । कभी कभी मोटी मोटी बूॅंदे आ जाती और एक दम  धूप खिल जाती । सरोवर से  कुछ रेती छोटी छोटी  थैलियों में डाली तथा छोटे छोटे षिला खंड सरोवर से निकालें एक गोता खोर काफी आगे से  जाकर हमारे लिये षिला खंड बीन कर लाया ।इन्हें हम शिव स्वरूप् ही मान कर लाये थे ।

उस दिन सहयात्रियों ने निष्चय किया था कि रुद्राभिषेक किया जायेगा । रात्रि वाले हवन कुंड के स्थान को ही साफ करके हवन कुंड तैयार किया । यह देखकर हैरानी हुई कि सबके बैगों से अभिषेक की सामिग्री निकल रही थी । सूखा दूध मान सरोवर के जल से  घोल तैयार किया गया । ष्शहद   नारियल लकड़ी आदि सब वस्तुऐं एक एक कर निकलने लगीं श्री निवासन के पास तो पारद षिवलिंग था ही अन्य कई षिवलिंग निकल आये घेरा बनाकर मंत्रोच्चार के साथ रुद्राभिषेक प्रारम्भ हुआ । पूर्ण प्रक्रिया में चार घंटे लग गये  बार बार कैलाष मुस्कराते हुए आर्षीवाद देने आ उपस्थित होते और बार बार बादलों के पर्दे के पीछे चले जाते। वुंदावन में बिहारी जी के मंदिर में दर्षन प्रक्रिया में हर मिनट के बाद बिहारीजी के सामने पर्दा खींच दिया जाता है इसके पीछे मन्तव्य है कि लोग टकटकी लगाकर बिहारी जी के दर्षन करते हैं उन्हें नजर न लग जाय इसलिये पर्दा खींच दिया जाता है । संभवतः कैलाष को नजर न लग जाय इसलिये बार बार बादल 

पर्दा बन उनके सामने आ जाते थे ।

आस पास  सेे कई छोटे छोटे  आकृतियों वाले और मोती की आभा वाले पत्थर एकत्रित किये कहते हैं मान सरोवर में मोती हैं और हंस उन मोतियों को चुगते हैं । लेकिन वहॉं  अनेकों  बार आने वाले ष्शेरपा आर साधु बता रहे थे कि उन्होंने कभी मोती नहीं देखे । हॉं सरोवर तट पर  छोटे छोटे पत्थर थे  जिन में सीपियों की आभा थी । कुछ पत्थरों में रुपहली चमक थी तो किसी में सर्प की आकृति तो किसी में गणपति की आकृति थी । अब यह भी कहा जा सकता है-

जाकी रही भावना जैसी 

प्रभु मूरत तिन देखी तैसी । 


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