दो घंटे बाद छः बजे रास्ता खुला सब आगे निकल जाना चाहते थे लेकिन एक एक दल की गाड़िया निकाली जा रही थीं, शुरू ही में खतरनाक कच्चा संकरा ऊबड़ खाबड़ रास्ता था वहीं से सड़क बनना प्रारम्भ हो रही थी एक दम ढलान और छोटा रास्ता खाई की तरफ झुका हुआ जरा सा भी यदि पहिया टेढ़ा पड़े तो गाड़ी सौ फुट नीचे गहरी खाई में गिर पडेआगे भी अभी सड़क बन रही थी और संकरा रास्ता था लेकिन इतना खतरनाक नहीं। पहाडों पर हरियाली थी पहाड़ी नदी भी ष्शांत बह रही थी। ज्यों ज्यों आगे बढ़ते गये रास्ता बेहद सुरम्य होता चला गया झरने नदी वृक्ष से सारा रास्ता ढका
था । जाते समय जो नदी की गर्जना प्रकृति के भयंकर रूप का आभास दे रही थी वह ष्शांत कल कल म्ेंा बदल चुकी थी ।
झांग मू के उसी होटल में रुकना था लेकिन होटल तक पहुॅचना मुष्किल था जाम की स्थिति थी कुछ देर जाम खुलने का इंतजार किया फिर पैदल ही होटल तक पहुॅंचे चार मंजिल पर कमरा मिला सीढ़िया चढ़ना भारी लग रहा था कमरा गैलरी अैार बाथरूम के पास मिला बाथ रूम का पानी बहकर कमरे में आ रहा था मन धिनाने लगा । मैनेजर सुन ही नहीं रहा था जरा सा जोर देकर कहने पर एक दम गरम हो गया और बिफर कर बोला अभी सामान उठाओ और नहीं तो मैं फेंक दूॅंगा यही कमरा है रहना हो तो रहो। बीनू भाई ने मामला षांत कराया लेकिन वे विलक्षण तनाव के पल थे । मैनेजर ने पानी निकलवाया दूसरा कोई कमरा था नहीं बहुत मुष्किल से रात बैठे हुए काट दी ।
बीनू भाई का कहना था प्रातः चीनी सीमा को पार करना है जल्दी चले जायेंगे और चैकपोस्ट पर बैठेंगे । पहले पहल पहुॅंच जायेंगे तो जल्दी नंबर आ जायेगा नहीं तो बहुत देर हो जायेगी और सारा कार्यक्रम बिगड़ जायेगा। प्रातः साढ़े छः बजे से सबका चैकपोस्ट पर पहुॅचना प्रारम्भ हो गया यद्यपि चैकपोस्ट दस बजे खुलना था हमारा दल वहॉं पहुॅचने वाला पहला दल था यह सब बीनू भाई और अवतार के अब तक के यात्रा अनुभवों का परिणाम था कि हमें परेषानी नहीं उठानी पड़ रही थी । हमारे बाद अन्य यात्री दल आने लगे । खुली सड़क और चार घंटे खड़ा रहना असंभव लग रहा था हाथेंा में सामान था कोई चारा नजर नहीं आ रहा था सड़क पर ही कोई नैपकिन कोई रुमाल और कोई छोटी तौलिया बिछाकर किनारे पर दो दो तीन तीन के गुट में बैठ गये। सड़क पर बैठने में हंसी भी आ रही थी। लग रहा था सड़क किनारे भिखारीबैठे हों । उस समय न रुतबे का ख्याल था न इज्जत का न अमीरी का न गरीबी का । बस सब सड़क पर बैठे थे हम सब सड़के के आदमी थे ।
एकाएक घड़ी पर नजर गई सात बजकर सात मिनट सातवां महिना सब जोड़ते गये सातवां साल वाह क्या संयोग है । तभी दूसरे दल की महिला बोली ,‘ एक बात बताऊं आज सप्तमी है ।’ कुछ देर सात के संयोग पर चर्चा होती रही सबका विदा का समय था एक दूसरे का पता आदि लिया जाने लगा । साढ़ नौ बजे चैक पोस्ट खुल गया । अपने अपने नम्बर हाथ में लेकर चैक पोस्ट पर पंक्तिबध्द खड़े हो गये और सीमा पार करते गये ।
अब हम नेपाल की सीमा में आ रहे थे । गाड़ियॉं मैत्री पुल तक छोड़ने वाली थीं हम सब तो बाहर आ गये पर गाड़ियों को चैकपोस्ट पार करने में समय लग गया जिस ग्रुप की गाड़ी का नम्बर दिखता वह चिल्लाने लगता आ गई आ गई । हम सब को आगे कोदारी के रैस्टोरेंट पर मिलना था । लौटने पर मैत्री पुल पर किसी प्रकार की चैकिंग नहीं हुई । झांग मू ऊचाई पर है और कोदारी यद्यपि पहाड़ी इलाका है पर काफी निचाई पर पहाड़ काट काट कर रास्ता बनाया है औरकाफी तीखा ढलान है करीब आठ किलो मीटर वाला यह रास्ता दूर दूर तक आस पास का षहर दिखाता चलता है ।जहॉं से गाड़ी ली थी वहीं गाड़ी रुक गई । ड्रइवर उस समय बहुत अच्छी तरह पेष आया था अब वह हॅंसकर हिन्दी में बात कर रहा था ष्शेरपा भी दुआ सलाम कर पहली बार गाड़ी में से सामान निकालता नजर आया नहीं तो गाड़ी रुकते ही गाड़ी से उतरकर गायब हो जाता था । किसी किसी गाड़ी का ष्शेरपा बहुत मददगार थे बाद में ज्ञात हुआ यह एक विद्या है उन लोगों ने उसे समय समय पर अच्छी टिप दी । प्रेम नामक ष्शोरपा बहुत अच्छा गायक था । जब अलग अलग शेरपा गाड़ी में बैठते तब उनकी अलग अलग विषेषताऐं पता चलती थीं । कोई बहुत हॅंसमुख तो कोई वाचाल, कोई पता ही नहीं चलता था कि वह गाड़ी में बैठा है कोई सोने में माहिर गाड़ी में बैठते ही गहरी नींद में सोजाता । कुक आदि बहुत प्रेम से खाना खिलाते यह देख लेते थे कि कौन खा रहा है कौन नहीं उनकी कोषिष रहती वह कुछ तो खाले । षेरपा और कुक मिलाकर बीस जन का दल था ।
मैत्री पुल पार करके हम कोदारी बारह बजे तक पहुॅंच गये सबको वहीं भोजनालय पर एकत्रित होना था । एक एक कर सब आते गये , उससे पूर्व अपने पासपोर्ट और परिचयपत्र दिखाने थे वह चैकपोस्ट वहीं होटल के पास बना था । होटल पर ही बचे हुए युआन बदल लिये कुछ युआन संग्रह के लिये रखे । सबसे पहले चाय की इच्छा हो रही थी जैसे जैसे पहाड़ों से नीेचे उतरे खाना स्वतः अच्छा लगने लगा । चाय चाय करते सब होटल के पीछे बरामदे में एकत्रित हुए वहॉ डोन नदी किनारे से बह रही थी पर्वतीय नदियों का सौंदर्य अदभुत् होता है स्वछ फेनिल जल लिये नदी बच्ची की तरह कूदती सी आगे बढ़ती है ।
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