Wednesday, 20 August 2025

Kailash Mansarover yatra antim

 बहुत दिन बाद गर्म तवे की रोटी अच्छी लगी । यात्रा के दौरान सबके वजन चार चार पॉंच पॉंच किलो घट गये थे  लेकिन उत्साह नहीं घटा था सबको लग रहा था यात्रा जल्दी खत्म हो गई । बस तैयार थी सामान लद चुका था ।नेपाल का रास्ता हमारा इंतजार कर रहा था जहॉं पर बस खड़ी थी वहॉं पर विषाल झरना था वह काफी ऊंचाई से कई चट्टानों पर गिर रहा था सीढ़ी सीढ़ी वह नीचे आ रहा था उस झरने का सौंदर्य उस पर पड़ रही सूर्य किरणों से द्विगुणित हो रहा था एक स्थान पर दुग्ध धवल फेनिल जल गिरकर ष्वेत धार बना रहा था वहीं उसके पास की धार में लालिमा थी उसके 

पास नीला और बैंगनी रंग की आभा दे रहा था नीचे  सारी चट्टानों का जल जहॉं गिर रहा था वहॉं जाकर सारा हल्के नीले जल में परिवर्तित हो रहा था वेग अत्यन्त तेज था जब बादल छा जाते रंग बदल जाते  ऐसे दृष्य कम ही देखने को मिलते हैं 

प्रकृति का कोमल और भयंकर दोनों रूप सामने थे दूर से दृष्य बहुत सुंदर था लेकिन वेग इतना तीव्र था कि यदि जराकिसी का पैर फिसल जाये तो उसका बचना असंभव था ।

    कोदारी से नेपाल तक कोषी नदी बहती है ।कोषी नेपाल जाकर अलग अलग नाम से जानी जाती है ऊपर पर्वतों पर  सीमा दिखाई दे रही थी इस तरफ नेपाल उस तरफ चीन की सीमा थी ।षाम को  नेपाल का बाजार देखा  वहॉं का पुराना बाजार देखा ,प्रसिध्द बाजार भाट भटेली देखा ।नेपाल में आठ बजे तक बाजार बंद हो जाते हैं । 

प्रातः वहॉं का प्रसिध्द स्वर्ण पैगोडा देखा वहॉं बुध्द की विषाल स्वर्ण प्रतिमा है । मुख्य पैगोडा में चारों ओर दीप प्रज्वलित कर  मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है । बंदर वहॉं पर बहुत थे  । कात्यायनी देवी का और महालक्ष्मी का मंदिर उसी परिसर में बना है । वहॉं बौध्द और हिंदू धर्म का संगम देखने को मिला । भिखारी वहॉं भी सीढ़ियों पर बैठे थे । एक बारह तेरह वर्ष की लड़की करीब एक साल के षिषु को लेकर बैठी थी,‘ बच्चे के दूध के लिये पैसे देदो ’ ।

‘क्या यह तेरा बच्चा है ’ चौंक कर पूछा ।

लड़की एकदम सकपका गई और बोली ‘नहीं मेरा भाई है ’

‘तो मॉं कहॉं है ’ वह शायद मेरे जवाब  सवाल से घबरा गई और बच्चा लेकर भाग गई ।

एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति हॅंसने लगा वह बोला ,‘ अरे यह तो ऐसे ही चलता है ,मॉं किसी दूसरे कोने पर मॉंग रही होगी कभी इससे बड़ा ले आती है ’। वह रोजदर्षन के लिये आता था ।

स्वर्ण पैगोडा के पूरे रास्ते में मनी मंत्रों के बहुत से कक्ष हैं इनमें विषाल मनी मंत्र बने थे अंदर जाकर अनुयायी उन्हें घुमा रहे थे  कोई कोई मनी मंत्र तो दस फुट ऊॅंचा और दस ही फुट का धेरा होगा सभी पीतल के  लेकिन एकदम चमकते हुए संभवतः स्वर्ण पॉलिष थी या उनकी सफाई प्रतिदिन होती थी । महीन पच्चीकारी का उन पर काम हो रहा था। लकड़ी का सामान वहॉं बहुतायत में मिलता है । पूजा में घी का दीपक व इलायची दाना चढ़ाया जाता है । स्नान आदि के पष्चात् सुप्रसिध्द व्यवसायी प्रेम प्रकाष जी व उनकी धर्मपत्नी जी से मिले दोनों ही बहुत सहज सरल स्वभाव के विनम्र  व्यक्ति तो थे ही उच्चकोटि की सेवा भावना रखने वाले थे । नेपाल की कई समाज सेवी संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर रहकर समाज की सेवा कर रहे थे ।

          एक बजे तक हमें एअरपोर्ट पहुॅचना था क्योंकि तीन बजे की फ्लाइट थी इसलिये प्रेमप्रकाष जी से विदा लेकर आखिरी बार सब सहयात्री भोजन कक्ष में एकत्रित हुए । एक परिवार की तरह सब रहे थे इसलिये सबको बिछड़ने का गम था । श्रीमती विजयक्ष्लमी व कुमारी उमा अभी नेपाल के अन्य पर्यटन स्थलों की सैर करने के लिये रुकी थीं  । विमान तीन बजे के स्थान पर चार बजे उड़ा बार बार तकनीकी खराबी की वजह से रुक जाता था ।

      सांयकालीन बादल सूर्य सब आकाष में अठोलियॉं कर रहा थे । आकाष बादलों से भरा था । बादलों के बीच धुंध से घिरा जब बादलों को चीर कर ऊपर  उठा तो थरथराने लगा  । एक बार फिर नीचे बादलों का अदभुत संसार दिखाई दिया । जैसे सागर में ज्वार उठा हो  विषाल मछलियॉं तैर रही हों कहीं लग रहा था अंटार्कटिका की वर्फीली चट्टानों पर श्वेत भालू खेल रहे हों । कहीं आइसक्रीम के पेड़ दिखते तो कहीं विषाल खरगोष कूदते नजर आते वहॉं पर खाली जगह होती तो लगता गहरा नीला जल है । आकाष में तैरते कब दिल्ली आ गई पता ही नहीं चला ।  नई दिल्ली एअरपोर्ट पर उस दिन कोई विदेषी मेहमान आने वाला थे पिछले दरवाजे से पूरा टर्मिनल पार करके आना पड़ा हाथों में वजन के थैले  मान सरोवर का जल आदि लिये । उस समय अपना ही वजन संभाले नहीं संभल रहा था ,रास्ता बेहद लंबा लग रहा था नीचे जैसे ही बाहर आये  बहुत से व्यक्ति पंक्तिबध्द मालाऐं लिये खड़े थे हम  प्रसन्न होने का नाटक ही कर रहे थे कि वाह मानसरोवर होकर आये हैं इसलिये हमारा सम्मान हो रहा है  हम कतार के बीच से निकलतेचले गये एक भी माला नहीं पड़ी पता चला कोई सुप्रसिघ्द स्वामी जी आने वाले हैं उनका इंतजार कर रहे हैं । हमारी  कार हमारा इंतजार कर रही थी हम सब आगरा के लिये चले तब तक स्वामी जी नहीं आये थे । रात्रि दस बजे हम अपने घर पहुॅच गये । वहॉं तो स्वगत नहीं हुआ परन्तु जब छोटी छोटी गंगाजली में मानसरोवर का जल और  मान सरोवर के जल से स्नान कराई माला मित्र जनों को दी तो वे गद्गद् हो गये  । बहुतों ने पैर छुए कि आप महान् तीर्थ करके आये हैं आपके चरण छूकर हमें भी कुछ पुण्य मिलेगा । हम करने वाले नहीं थे यह तो विधाता ही है जो हम से करवाता है हम सब उसके आभारी हैं उन्होंने महेन्द्र भाई साहब और ष्शोभा भाभी को माध्यम बनाया हम उनके भी आभारी हैं न उनका संबल और साथ मिलता न हम जा पाते  । ऐसा लगा ‘हम तीर्थ करने नहीं तीर्थ बनने जा रहे हैं । हम अपने को कैलाष बनायें ।कैलाष बनने के लिये चार अहर्ताऐं हैं । एक तो कैलाष बहुत ऊॅंचा है दूसरा कैलाष बहुत गहरा है , तीसरा कैलाष बहुत उज्वल है चौथा कैलाष बहुत ष्शीतल है ।


Tuesday, 19 August 2025

Kailash Mansarover yatra 30

 दो घंटे बाद छः बजे रास्ता खुला सब आगे निकल जाना चाहते थे लेकिन एक एक दल की गाड़िया निकाली जा रही थीं, शुरू ही में खतरनाक कच्चा संकरा ऊबड़ खाबड़ रास्ता था वहीं से सड़क बनना प्रारम्भ हो रही थी एक दम ढलान और छोटा रास्ता खाई की तरफ झुका हुआ जरा सा भी यदि पहिया टेढ़ा पड़े तो गाड़ी सौ फुट नीचे गहरी खाई में गिर पडेआगे भी अभी सड़क बन रही थी और संकरा रास्ता था लेकिन इतना खतरनाक नहीं। पहाडों पर हरियाली थी पहाड़ी नदी भी ष्शांत बह रही थी। ज्यों ज्यों आगे बढ़ते गये  रास्ता बेहद सुरम्य होता चला गया  झरने नदी वृक्ष से  सारा रास्ता ढका

 था । जाते समय जो नदी की गर्जना प्रकृति के भयंकर रूप का आभास दे रही थी वह ष्शांत कल कल म्ेंा बदल चुकी थी ।

     झांग मू के उसी होटल में रुकना था लेकिन होटल तक पहुॅचना मुष्किल था जाम की स्थिति थी कुछ देर जाम खुलने का इंतजार किया फिर पैदल ही होटल तक पहुॅंचे  चार मंजिल पर कमरा मिला सीढ़िया चढ़ना भारी लग रहा था कमरा गैलरी अैार बाथरूम के पास मिला बाथ रूम का पानी बहकर कमरे में आ रहा था मन धिनाने लगा । मैनेजर सुन ही नहीं रहा था जरा सा जोर देकर कहने पर एक दम गरम हो गया और बिफर कर बोला अभी सामान उठाओ और नहीं तो मैं फेंक दूॅंगा यही कमरा है रहना हो तो रहो। बीनू भाई ने मामला षांत कराया लेकिन वे विलक्षण तनाव के पल थे  । मैनेजर ने पानी निकलवाया दूसरा कोई कमरा था नहीं बहुत मुष्किल से रात बैठे हुए काट दी ।

      बीनू भाई का कहना था प्रातः चीनी सीमा को पार करना है जल्दी चले जायेंगे और चैकपोस्ट पर बैठेंगे । पहले पहल पहुॅंच जायेंगे तो जल्दी नंबर आ जायेगा नहीं तो बहुत देर हो जायेगी और सारा कार्यक्रम बिगड़ जायेगा। प्रातः साढ़े छः बजे से सबका चैकपोस्ट पर पहुॅचना प्रारम्भ हो गया यद्यपि चैकपोस्ट  दस बजे खुलना था हमारा दल वहॉं पहुॅचने वाला पहला दल था यह सब बीनू भाई और अवतार के अब तक के यात्रा अनुभवों का परिणाम था कि हमें परेषानी नहीं उठानी पड़ रही थी । हमारे बाद अन्य यात्री दल आने लगे । खुली सड़क और चार घंटे खड़ा रहना असंभव लग रहा था हाथेंा में सामान था कोई चारा नजर नहीं आ रहा था  सड़क पर ही कोई नैपकिन कोई रुमाल और कोई छोटी तौलिया बिछाकर किनारे पर दो दो तीन तीन के गुट में बैठ गये। सड़क पर बैठने में हंसी भी आ रही थी। लग रहा था सड़क किनारे भिखारीबैठे हों । उस समय न रुतबे का ख्याल था न इज्जत का न अमीरी का न गरीबी का । बस सब सड़क पर बैठे थे हम सब सड़के के आदमी थे ।

    एकाएक घड़ी पर नजर गई सात बजकर सात मिनट सातवां महिना सब जोड़ते गये सातवां साल वाह क्या संयोग है । तभी दूसरे दल की महिला बोली ,‘ एक बात बताऊं आज सप्तमी है ।’ कुछ देर सात के संयोग पर चर्चा होती रही सबका विदा का समय था एक दूसरे का पता आदि लिया जाने लगा । साढ़ नौ बजे चैक पोस्ट खुल गया । अपने अपने नम्बर हाथ में लेकर चैक पोस्ट पर पंक्तिबध्द खड़े हो गये  और सीमा पार करते गये ।

            अब हम नेपाल की सीमा में आ रहे थे  । गाड़ियॉं मैत्री पुल तक छोड़ने वाली थीं  हम सब तो बाहर आ गये पर गाड़ियों को चैकपोस्ट पार करने में समय लग गया  जिस ग्रुप की गाड़ी का नम्बर दिखता वह चिल्लाने लगता आ गई आ गई । हम सब को  आगे कोदारी के रैस्टोरेंट पर मिलना था । लौटने पर मैत्री पुल पर किसी प्रकार की चैकिंग नहीं हुई । झांग मू ऊचाई पर है और कोदारी यद्यपि पहाड़ी इलाका है पर काफी निचाई पर पहाड़ काट काट कर रास्ता बनाया है औरकाफी तीखा ढलान है करीब आठ किलो मीटर वाला यह रास्ता दूर दूर तक आस पास का षहर दिखाता चलता है ।जहॉं से गाड़ी ली थी वहीं गाड़ी रुक गई । ड्रइवर उस समय बहुत अच्छी तरह पेष आया था अब वह हॅंसकर हिन्दी में बात कर रहा था ष्शेरपा भी दुआ सलाम कर पहली बार  गाड़ी में से सामान निकालता नजर आया  नहीं तो गाड़ी रुकते ही गाड़ी से उतरकर गायब हो जाता था । किसी किसी गाड़ी का ष्शेरपा बहुत मददगार थे  बाद में ज्ञात हुआ यह एक विद्या है उन लोगों ने उसे  समय समय पर अच्छी टिप दी । प्रेम नामक ष्शोरपा बहुत अच्छा गायक था । जब अलग अलग शेरपा गाड़ी में बैठते तब उनकी अलग अलग विषेषताऐं पता चलती थीं । कोई बहुत हॅंसमुख तो कोई वाचाल, कोई पता ही नहीं चलता था कि वह गाड़ी में बैठा है कोई सोने में माहिर  गाड़ी में बैठते ही गहरी नींद में सोजाता । कुक आदि बहुत प्रेम से खाना खिलाते यह देख लेते  थे कि कौन खा रहा है कौन नहीं  उनकी कोषिष रहती वह कुछ तो खाले । षेरपा और कुक मिलाकर बीस जन का दल था  ।

   मैत्री पुल पार करके हम कोदारी बारह बजे तक पहुॅंच गये सबको वहीं भोजनालय पर एकत्रित होना था । एक एक कर सब  आते गये , उससे पूर्व अपने पासपोर्ट और परिचयपत्र दिखाने थे  वह चैकपोस्ट वहीं होटल के पास बना था  । होटल पर ही बचे हुए युआन बदल लिये  कुछ युआन  संग्रह के लिये रखे  । सबसे पहले चाय की इच्छा हो रही थी जैसे जैसे पहाड़ों से नीेचे उतरे खाना स्वतः अच्छा लगने लगा । चाय चाय करते सब होटल के पीछे बरामदे में एकत्रित हुए वहॉ  डोन नदी किनारे से बह रही थी पर्वतीय नदियों का सौंदर्य अदभुत् होता है स्वछ फेनिल जल लिये नदी बच्ची की तरह कूदती सी आगे बढ़ती है ।  


Saturday, 16 August 2025

Kailash mansarover yatra 29

 लौटने पर रुकने के सभी स्थान वही थे  चार बजे तक सागा पहुॅंच गये किसी प्रकार का तनाव नहीं था अब पर्यटन के मूड में थे । सामान आदि कमरे में पहुॅचाकर बाजार देखने चले गये  वहॉं से आगरा और देहली बेटी को फोन किया बहुत स्पष्ट आवाज । बाजार वहॉं जल्दी बंद हो जाते हैं वैसे भी बहुत कम आबादी वाला क्षेत्र नजर आ रहा था होटल के नीचे ही बाजार था यहॉं पर भी लड़कियॉं अधिक सक्रिय थीं  अधिकांष लड़कियों ने पैन्ट कोट पहन रखा था ।चीन में पैकिंग की सुंदरता या सामान की सुंदरता पर अधिक ध्यान दिया जाता है ।  ज्ञात हुआ वहॉं दो तरह का माल तैयार किया जाता है एक तो टिकाऊ पर मंहगा होता है एक सस्ता ओर सुंदर लेकिन उस माल की कोई गारंटी नहीं होती । सब जगह चीनी भाषा में ही लिखा हुआ था । 

     सागा से आठ बजे तक रवाना हो गये थे । झांग मू के लिये चार बजे तक पहुॅंचना था क्योंकि चार बजे  रास्ता खुलना था वह भी निष्चित समय के लिये उस समय जो निकल जायेगा वह निकल जायेगा नहीं तो वहीं रुकना पड़ेगा अर्थात खुले में या गाड़ी में  फिर कितनी देर बाद खुले वह राम भरोसे  । 

      प्रातः आठ बजे तक हम्हारी गाड़ियॉं रवाना हो गईं लेकिन अहमदाबाद के जडेआ की गाड़ी कुछ आगे जाकर खराब हो गई। सबको चिंता हो गई रास्ता बेहद ऊबड़ खाबड़ था दूर दूर तक कोई नहीं किसी प्रकार से दो तीन गाड़ियों के ड्राइवरोंने मिलकर उसे ठीक किया बार बार जरा चले फिर फुक फुक कर गाड़ी कूदे और बंद हो जाये । सब मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना करने लगे अब तक सब ठीक किया है आगे भी सब ठीक करे ं । गाड़ी कुछ दूर और चली फिर बंद होगई लेकिन जिस स्थान पर गाड़ी रुकी बहुत मनोरम था  छोटा सा लकड़ी का पुल उसके नीचे छिछली नदी उसमें रंग बिरंगी छोटी

 छोटी मछलियॉं । कुछ लोग पुल से लटक लटक कर नदी की तेज धारा में पैर डुबा रहे थे तो कुछ किनारे पर मछलियों को देख रहे थे कि गाड़ी ठीक होगई शोर मचा और चढ़ चढ़ कर  गंतव्य की ओर रवाना हो गये ।

   खाने के लिये जहॉं भी काफिला रुकता था पूरी यात्रा में देखा वह स्थान हर आयेाजकों द्वारा निष्चित किया हुआ था क्योंकि हर काफिला वहीं रुकता था अपने रुकने के कुछ निषान छोड़ जाता था आगे बढ़ जाता। इस बार खाने के लिये जहॉं रुके थे वहॉं दो दल पहले से ही रुके हुए थे पता लगा एक यात्री दल के पास खाना नहीं है उनका ट्रक नहीं आया था। हमारे दल के यात्रियों ने कम कम लेकर बाकी खाना उनके दल को दे दिया   ।

        सागा से झांग मू के  बीच रास्ते में चैकपोस्ट बना था सब गाड़ियों की चैकिंग हो रही थी एक गाड़ी पीछे रह गई थी चैकिंग साथ होनी थी इसलिये आगे भी नहीं बढ़ सकते थे । करीब पौन घंटा इंतजार के  बाद वह गाड़ी आई । पता लगा वह गाड़ी भी रास्ते में खराब हो गई थी दोनों खराब गाड़ियों को आगे करके चले जिससे कि यदि अब खराब हों तो उनके यात्रियों को  किसी भी प्रकार अपनी गाड़ियों में लिया जाये क्योंकि अब समय नष्ट नहीं किया जा सकता था । परंतु निर्विघ्न निलायम तक पहुॅंच गये  । अभी तक कहीं भी हरियाली नहीं मिली थी हॉं निलायम् आने के साथ साथ हरियाली मिलने लगी । आते समय  रात्रि का समय था इसलिये निलायम् का रास्ता नहीं देख पाये थे । लौटने पर निलायम् पर नहीं रुके अगला पड़ाव झांग मू था । झांग मू का रास्ता भी आते में अंधेरे में पार किया था लेकिन झांग मू में हिरयाली के साथ साथ खेत घर मकान आदि दिखाई दिये साथ ही सरसों का खेत देख कर अच्छा लगा । झागमू पार करने के लिये दो घंटे  रुकना पड़ा मान सरोवर का ष्शुष्क वातावरण और  ऊॅचाई कम होने के कारण भूख खुलने लगी थी । पानी की बड़ी बड़ी बूॅंदे गिर रही थी  बंद गाड़ी में बैठना बहुत मुष्किल लग रहा था, जैसे दम घुट रहा हो ,जरा सी झिरी करली । अन्य दलों की गाड़ियॉं भी आने लगी । ऊॅंचा नीचा रास्ता पार करते  सुबह का खाया सब पच गया था  सबकी गाड़ियों में रखे  नमकीन खुलने लगे  कुछ लोग चादर डालकर घास में बैठ गये  पिकनिक का सा माहौल हो गया ।☺


Friday, 15 August 2025

Kailash Mansarover 28

 बारह बजे के करीब अपने दल के यात्री दिखने प्रारम्भ हुए एक एक कर सब आते गये सबसे पहले गोयल साहब व अमेरिका के बर्मन दिखाई दिये  सौ मीटर का पहाड़ी रास्ता तीन घुमावदार मोड़ और प्रतीक्षा रत हम लोग  दल के अंतिम यात्री तक आते आते एक घंटा लगा । सबसे बुजुर्ग भी घोड़े पर आराम से चलते हुए आ गये।हम सब अपनी अपनी कार में सवार बाकी आधी मानसरोवर की यात्रा के लिये  प्रयांग की ओर बढ़ लिये  ।

      मान सरोवर का विस्तृत फैलाव, राक्षस ताल की भुजाऐं और बार बार लुकता छिपता कैलाष देखते करीब छः बजे प्रयांग पहुॅंचे वहॉं एक अदभुत् नजारा हमारा इंतजार कर रहा था । समानान्तर दूरी पर दो दो  विषाल इंद्रधनुष अपनी छटा बिखेर रहे थे। प्रयांग का रास्ता धूल भरा मैदानी सा है पास के पहाड़ ष्शुष्क बिना हरियाली व बिना आबादी के उसमें उगा यह गैस्टहाउस रेगिस्तान में नखलिस्तान सा लगा उस पर हल्की धूप हल्के बादल हल्की छिटपुट बारिश और दो दो इंद्रधनुष मानो इंद्र और कामदेव दोनों अपने धनुष ताने खड़े हों  पीछे से उभरी पहाड़ियॉं। पहाड़ियों के पीछे श्वेत धवल बादल स्वयं में षिखर लग रहे थे । ष्शीघ्र ही अंधियारी ने सितारे टंगा ऑचल फैला दिया । सारी रात सितारों और बादलों का लुका छिपी का खेल चलता रहा  बिजली वहॉं दस बजे तक रही लेकिन चतुर्थी का चॉंद अपनी रोषनी बिखेर रहा था इसलिये बिजली की कमी अधिक अखरी नहीं ।

प्रातः प्रयॉंग से चलने लगे तो बहुत अधूरापन लग रहा था गाड़ी में बैठ तो गये पर ऐहसास था कुछ रह गया  आखिरी बार कैलाष की ओर मुॅह कर नमन किया ।पर्वतों के ऊॅंचे षिखरों को देखा यद्यपि मान सरोवर के ऊपर तारों के रूप में ऋषियों  को देखा यह सौभाग्य कम नहीं था बिना किसी बिघ्न बाधाके यहॉं तक की यात्रा पूरी हो गई लेकिन फिर भी मनमें कसक थी कि कई ऐसे लोग मिले जिन्होंने किसी न किसी रूप में भोले बाबा के दर्षन किये  या मॉं जगदम्बा से साक्षात्कार हुआ। किसी न किसी रूप में चमत्कारिक अनुभव हुए थे हमें क्यों नहीं हुआ सोचते हुए पर्वत षिखरों की ओर नजर घुमाई साथ ही हृदय स्तब्ध रह गया एक विषाल पर्वत की चोटी हलकी नीली होगई और चट्टान पर षिव के  ऊर्ध    भाग का अक्स उभर आया सब कुछ नील वर्णी एक एक अंग स्पष्ट ऑंख कान नाक तीसरा नेत्र सिर पर जटा, गले में सर्प विष्वास ही नहीं हुआ । मैंने गोयल साहब से कहा  ‘देखो देखो पर्वत श्रंखला के बीच में देखो ’ इधर उधर देखकर बोले  ‘हॉं अच्छा दृष्य है। ’

‘नहीं उस पर्वत पर देखो साक्षात षिव स्वरूप उभरा हुआ है विषाल षिव ’कहते हुए नमन किया ।

‘ऐसा कुछ नहीं है तुम्हारे मन ने देखा है पहाड़ यहॉं के सुंदर है दूर पर वर्फ से ढके दिख रहे हैं  ।  मैं चुप होगई और षिव अक्स को देखती रही फिर किसी से नहीं कहा क्योंकि मखौल उड़ने का डर लगा मन ही मन प्रभु की अनुकंपा से स्तंम्भित थी । ईष्वरीय सत्ता को मैं बार बार नमन करती हॅूं शक्ति है और रहेगी लेकिन वास्तव में उसका क्या रूप है क्या रंग है कोई नहीं कह सकता षिव का यही स्वरूप रचा बसा है तो संभवतः मन ने  गढ़ लिया  ‘लगे रहो मुन्ना भाई का किरदार याद आ गया संभवतः यह भी एक  भ्रम है जो मेरी अंतरात्मा ने गढ़ लिया 


Thursday, 14 August 2025

Kailash Mansarover yatra 27

 दोपहर को सब फिर एक कमरे में एकत्रित हुए तरह तरह के अनुभव लोकगीत चुटकुले हास्य कविताओं का दौर चल ही रहा था कि महेन्द्र भाईसाहब और बीनू भाई बदहवास से आते दिखाई दिये दिल धक से रह गया क्या गोयल साहब भी हैं पर और कोई नहीं दिखा जब तक बात सामने न आये  दिल बस भोले बाबा को याद कर रहा था बस सब कुछ कुषल ही हो । महेन्द्रभाई साहब लंगड़ा रहे थे। पता चला महेन्द्र भाई साहब का घोड़ा नया था उसने उन्हें पटखनी देदी । बीनू भाई की भी तबियत बिगड़ गई थी इसलिये दोनों वापस आ गये । मल्हम आदि लगा कर महेन्द्र भाईसाहब के क्रेप बैन्डेज बांधी और बुखार की दवा दी । वे लेट गये  पूछा और सब  का कैसा चल रहा है । पता चला रात भर तेज पानी  पड़ा था जल थल सब एक हो गया था ,‘हे भगवान् तेरे दर पर हैं सबकी रक्षा करना ’ जब सब कुछ ठीक होगया तब बीनू भाई ने बताया,‘जब चले थे पानी थम गया था और आगे यात्रा प्रारम्भ हो गई थी । पहले दिन सारे रास्ते पानी रहा था और रात भर तेज वारिष हुई बिस्तर एक तरह पानी में तैर रहा था छोटे छोटे तम्बुओं में एक में दो व्यक्ति थे और पहाड़ी पर से ठंडा पानी  बह रहा था पर प्रातः जब वे वापस आने के लिये चले तब पानी ठहर गया था और परिक्रमा वाले यात्री आगे बढ़ गये थे ।

   एक बार फिर सभा प्रारम्भ हो गई इस बार हास्य कविताओं का दौर प्रारम्भ हुआ। अंकलेष्वर की कमला बहन हस्तरेखा पढ़ना जानती थीं  वे सबका हाथ देखने लगीं साथ साथ सुनने सुनाने का दौर भी चल रहा था । एक बात बार बार मन में कौंध रही थी चार बार यात्रा करके आये बीनू भाई जब आगे नहीं जा सके तो बाकी के सब कैसे जायेंगे और फिर जब दल का मुखिया वापस आ गया तो बाकी सबका ध्यान कौन रखेगा वैसे अवतार बहुत बार जा चुका था परिक्रमा का गाइड एक बीस बाईस साल का लड़का था वह चौदह बार परिक्रमा कर आया था।  

    प्रातः 12 बजे तक यात्रा वापस दारचेन से आठ किलोमीटर आगे से आनी थी । हम लोगों ने सभी सामान पैक किया दारचेन को अलविदा कहा और गाड़ियों में भरकर परिक्रमार्थियों को लेने चल दिय । आने वाले यात्रियों के लिये नाष्ता साथ लिया उस दिन तरह तरह के पकौड़े बने थे क्यों कि बीनू भाई ने बताया था कि यात्रा का अंतिम पड़ाव है और वहॉं  नाष्ता नहीं खोला गया होगा ।

     जिस स्थान पर हम रुके वह  पर्वत के पास खाली स्थान था वहॉं सब गाड़ियॉं खड़ी हो गईं  कुछ अन्य गाड़ियॉं भी थी उनके यात्री भी अपने सह यात्रियों का इंतजार कर रहे थे  दूर से कलकल करती नदी बहती आरही थी  पर्वतीय मोड़  से एकाएक  परिक्रमार्थी प्रकट होता और जिसके साथ का व्यक्ति होता वह दूर से उसका स्वागत चिल्ला चिल्लाकर करने लगता । अपने दल का अभी एक भी यात्री नहीं आया था हम लोग गाड़ियों सेउतर कर   नदी के जल में पॉव देकर बैठते  कभी इध उधर घूम आते । अंत में थक कर पास ही गोल गोल पत्थरों के ढूह से पड़े थे उन पर बैठ गई  एक व्यक्ति आकर बोला इन पत्थरों पर मत बैठिये । प्रष्नवाचक दृष्टि से उस व्यक्ति की ओर देखा तो बोला ,‘इन पर  ओम नमः षिवाय लिखा है ’ । 

चौंक गई यह तो देखा था उन पर कुछ खुदा है पर ध्यान नहीं दिया हर पत्थर पर बांग्ला भाषा में  ं ओम नमःषिवाय लिखा था अद्भुत  ,वहॉं जितने भी गोल गोल पत्थर थे हजारों की संख्या में सब पर जैसे  सधे हाथों से छेनी हथैाडे़ लेकर करीब आधा सेंटीमीटर गहरे और चार चार  इंच बड़े  अक्षर खुदे हुए थे । मैं जिसे पत्थरों की ढेरी समझ रही थी  वह किसी की आस्था थी विष्वास था लेकिन इतनी मात्रा में ओम नमः षिवाय किसने और क्यों लिखे कब खोदे कोई नहीं बता पाया। और फिर खोद कर क्यों यूंही छोड़ दिये, ऐसा कोई जानकार मिला नहीं बाकी तो हमारे जैसे  यात्री थे । जरा सी भाषा का  फेर होते ही वे  पत्थर मात्र थे षिव हो गये एक न दो नहीं सैंकड़ों हजारों कुछ पत्थर नदी में भी दिख रहे थे 


Wednesday, 13 August 2025

mansarover yatra 26

 पिट्ठू का ठेकेदार दिखा । पिट्ठू उसको घेर कर खड़े हो गये । एक एक यात्री से ठेकेदार पर्ची उठवाता जिसका नाम खुलता वह पिट्ठू खुष हो जाता और यात्री के साथ हो जाता । उन पिट्ठुओं को देखकर बचपन की परियों की कहानियॉं  याद आ गईं जिसमें परी के साथ बौना भी होता  । पिट्ठू  अर्थात वह इंसान जो  परिक्रमा में आपके साथ आपका सामान पीठ पर लेकर कदम दर कदम चलेगा ।झरने पहाड़ आपका हाथ पकड़कर पार करायेगा जहॉं घोड़े साथ छोड़ देते हैं पिट्ठू निरंतर साथ रहता है। भाषा की समस्या यहॉं सामने आती है लेकिन सांकेतिक भाषा काम कर जाती है पानी खाना रुकना बैठना चलना सोना ऐसे संकेत हैं जो सार्व भैमिक हैं । अधिकतर पिट्ठूओं ने लंबा चोगा पहन रखा था  जादूगरों जैसा ऊपर गोल नुकीली फुंदने वाली टोपी पैरों में फर वाले जूते । गले में बड़े बड़े मनकों की मालाऐं । कुछ पिट्ठुओं ने घेर वाली ऊनी फ्राक ऊनी पाजामा व गोल टोपी लगा रखी थी । एक पिट्ठू मेरे पास ही खड़ा था छोटा कद करीब चार फुट का लंबी फुदने वाली टोपी ऊनी फ्राक ढीला पाजामा मोटी मोटी नाक गोल चेहरा परी कथा के सात बौनों में से एक बौना सामने हो जब किसी दूसरे का नाम निकलता वह निराष हो जाता  । घोड़े कम थे पर पिट्ठू बहुतायत में । पिट्ठू की 

कीमत घोड़ों से आधी भी नहीं है । गोयल साहब ने पर्ची उठाई नाम निकला वह एकदम खिलखिला उठा  एक दम उछलने सा लगा और तुरंत बैग हाथ से ले लिया ।

   धोड़े आने में देर हो रही थी जो पैदल जाने वाले थे वे  आगे चल दिये  याकों पर सामिग्री लद गई वे भी बढ़ दिये लेकिन घोड़े नहीं आये सभी  वापस जाने वाले साथी डेरे पर चल दिये हम और शोभा भाभी रह गये  मन था घोड़े वाले यात्री भी चले जायें  लेकिन ड्राइवर हल्ला मचाने लगा  उसे दो दिन मिल रहे थे वह पास ही गॉंव जाना चाहता था । मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना की और बधाई देकर वापस चल दिये ।  स्तम्भ वाला स्थान आया  हमने परिक्रमा लगाने के लिये कहा तो ड्राइवर ने कहा देर हो जायेगी करीब आधा किलोमीटर की परिक्रमा तो थी ही एक परिक्रमा उसने गाड़ी से लगवा दी तीन लगवाने के लिये तैयार नहीं हुआ क्योंकि डीजल  तो खर्च होता । वैसे चीन में डीजल पैट्रोल के दाम बहुत कम हैं । अंदर ही अंदर अपनी विवषता से आहत थे अपने ष्शरीर को ऐसा क्यों बना लिया कि हम नहीं जा सके जबकि हम कहीं अधिक उम्र के  व्यक्ति पैदल जा रहे थे  । सबसे अधिक आष्चर्य 85 वर्ष के बुजुर्ग को देखकर हो रहा था जिनका अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या पर नियन्त्रण नहीं है चलने में लगता है हवा के झोंके से गिर जायेंगे वे ही सबसे आगे चल रहे थे ।।

 जिसने भी उनसे मना किया कि आप न जाइये पलटकर बोले आपको क्या? मैं जा रहा हॅूं अपनी मर्जी से जा रहा हॅूं मुझे कुछ हो जाये आप वहीं छोड़ आना। पैदल यात्री मैदान के बाद दो पहाड़ियों के बीच होकर कैलाष क्षेत्र में प्रवेष कर रहे थे ।और हम विवश से देख रहे थे ।एक तरफ न जाने की निराशा दूसरे साथी कं इसप्रकार के क्षेत्र में जाना जो बहुत मुश्किल है दारचेन पहुॅंच कर सभी बचे यात्री अपनी थकान मिटाने कपड़े आदि धोने में लग गये । गैस्ट हाउस से कुछ दूर चलकर गरम पानी के स्नानघर बने थे पच्चीस युआन अर्थात पचहत्तर रूपये में नहाने को मिल रहा था अब यह सुविधा हर पड़ाव पर मिलने लगी है हॉं रुपयों में  कम बढ़ अवष्य है।

      ज्येाति की तबियत खराब हो रही थी उसे जरा जरा देर में गर्म पानी और ग्लूकोज पीना पड़ रहा था उसकी सॉंस बेहद फूल रही थी निमोनिया का भी असर था। उसके लिये गरम पानी मैंने वहीं ला दिया और चादर लगा दी उसने गर्म पानी से हल्का सा स्पंज किया और कपड़े बदल लिये  ।सुरमई शाम का नजारा दारचेन में अदभुत् था तीन संध्याऐं तीन तरह की रहीं  । बादलों के बीच में सूर्य की किरणों कीलुका छिपी और बैंगनी लाल नीले रंग का सम्मिश्रण वाला आकाष नवीन जगत की संरचना कर रहा था । 

रंग बिरंगी मालाऐं पहने और हाथ में लिये तिब्बती बालाऐं फिर चक्कर लगाने लगीं कुछ कुछ सबने निषानी हेतु खरीदा । खाने के बाद  जडेजा ,नाथूभाई डोरिक ,सुरेष नाहर आदि सभी एक कमरे में एकत्रित हुए और सबने तन्मयता से  भजन गीत आदि गाये ।पास ही यात्रियों की आवक जावक हो रही थी ज्येति बेचैन थी  बार बार उसका अस्थमा उखड़ आता था दम दम पर उसे  गर्म पानी देना पड़ रहा था।उसकी देखभाल मैं ही कर रही थी क्योंकि वह अकेली ही यात्रा कर रही थी 


Tuesday, 12 August 2025

kailashmansarover yatra 25

 ष्शान्त नदी की कलकल में एक संगीत था गोल पत्थरों पर लुढ़कती फिसलती वह बढ़ रही थी कुछ पत्थर चमकीले थे । 

नंदी पर्वत पर कहीं वर्फ नहीं थी । अष्ठपाद पर कहीं कहीं जमी वर्फ थी । लेकिन कैलाष पूर्ण रूप से वर्फ से ढका था वर्फ भी एकदम सफेद दूरतक दिखने वाले अन्य वर्फीले हिमषिखरों में सबसे सफेद सबसे उज्वल ।मन नहीं हो रहा था ऐसे मनोरम स्थान से हटने का लेकिन वापस आना पड़ा । दारचेन के गैस्ट हाउस में लाइन से कमरे बने थे सामने बड़ा सा मैदान एक ओर पुरानी परिपाटी का ष्शौचालय । पानी की व्यवस्था के लिये कहीं झरने या नदी से  सीधा पाइप  लाकर वहॉं खुले मैदान में डाल दिया गया था । पानी ठंडा वर्फीला था सभी महिला यात्री वस्त्र धोने में लग गई वहीं मैदान में डोरी बांध कर वस़् त्र सुखा दिये गये । बार बार मोटी मोटी बूॅंदे पड़ जाती । सषंकित महिलाऐं अपने 

वस्त्रों को देखने लगतीं एक क्षण तीव्र हवा चली और कुछ कपड़ों ने उड़ान भरनी प्रारम्भ करदी तो सबको पकड़ा गया । 

ष्शाम झुकने के साथ ही बादलों ने आकाष में तरह तरह की रंग बिरंगी तस्वीरें बनानी प्रारम्भ करदीं । सूर्य ने अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विषाल रूप ले लिया लाल पीला और बादल भी उन्हीं रंगों में रंग गये पहले सातों रंग  अपना सौंदर्य बिखेर रहे थे   कुछ देर तक आकाष लाल पीला रहा फिर एक दम अंधेरा एकदम कालिमा छा गई जैसे  एक दम यवनिका गिरा दी हो सूर्य अस्त होगया एक अमिट छाप छोड़कर ।

यहॉं एक एक कमरे में चार चार लोग थे  । प्रातः दस बजे परिक्रमार्थियों को प्रस्थान करना था उनका सामान अलग बैग मेंनिकाला गया। छाता , टार्च, बरसाती ,जूते इनर  एक जोड़ी कपड़े, एक जोडी जूते और, खाने पीने का छोटा छोटा सामान छोटी छोटी थैलियों में मेवा चूरन टाफी आदि रख ली थी । प्रातः दस बजे सभीयात्री होडेचू गॉंव की ओर रवाना हुए यह दारचेन से आठ किलो मीटर की दूरी पर है । करीब पॉंच किलोमीटर की दूरी पर एक विषाल पीतल का स्तम्भ मिला याक के सींगों पर बंधा चारों ओर पॉच रंग की झंडिया कहा जाता है जो कैलाष की परिक्रमा न लगा पाये तो इस स्थान की 

तीन परिक्रमा लगा ले उतना ही पुण्य लाभ होता है । कुछ ने उतरकर परिक्रमा लगाई कुछ ने गाड़ियों से लगाई कुछ केवलहाथ जोड़कर नमन कर चले  हमारी गाड़ी कुछ पीछे रह गई थी इसलिये  हम उतर नहीं पाये सोचा लौट कर परिक्रमा देंगे । सभी गाड़ियॉं एक विषाल मैदान में जाकर रुकीं पर न वहॉं घोड़ा न ठेकेदार था न पिट्ठू का ठेकेदार । हॉं एक बीस बाइस साल का नौजवान आया वह परिक्रमार्थियों का गाइड था। एक तरफ कुछ घोड़े व याक थे लेकिन वह दूसरे यात्री दल के थे । यात्री दलों का कैलाष की ओर जाने का क्रम चालू हो गया पर हमारे दल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी बार बारबॅूंदे आजाती सब गाड़ियों में चढ़ जाते बंद होती फिर घोड़ों की राह देखने लगते । गाइड बार बार कह रहा था घोड़े आ रह हैं  । दूर एक घोडा़ें का दल आता दिखाई दिया लेकिन वह भी दूर ही रुक गया । वह भी हमारे दल के लिये नहीं था ।

 घोड़े वहॉं डेढ़सौ मात्र हैं  याक भी  कम पड़ने लगे हैं क्योंकि अब यात्री अधिक जाने लगा है । याक सामान ढ़ोने के काम आता है इस पर खाने पीने का सामान  तंबू आदि ले जाये जाते हैं ।

        घेाड़े किस किस को चाहिये  यह मान सरोवर पर ही तय हो गया था । यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी इस वजह से घोड़ों के दाम भी बढ़ गये थे अगर दूसरा आदमी तयषुदा रेट से अधिक दे देता है तो धोड़े वाले ठेकेदार मुकर भी जाते हैं  इसीलिये दलाल के माध्यम से धोड़े तय किये गये थे  । जैसे जैसे घोड़े आने में समय लग रहा था परेषानी बढ़ रही थी ।पहले दिन की दस किलोमीटर की यात्रा थी एक बज गया था । अभी घोड़े नहीं दिख रहे थे  जो सहयात्रियों को छोड़ने आये थे एक एक गाड़ी करके वापस चल दी । गोयल साहब और महेन्द्र भाई साहब परिक्रमा पर जा रहे थे बारिष का

रुख बढ़ता जा रहा था अब बूॅंदें फुहारों में परिवर्तित हो गईं थीं । मन अनजानी आषंकाओं से धिर रहा था कठिन यात्रा है पानी निरंतर पड़ रहा है । भोले बाबा आपकी शरण में आ रहे हैं आप ही रक्षा करना 




Monday, 11 August 2025

Kailash mansarover yatra 24

 कैलाष ष्शैल षिखरं प्रतिकम्पायमानं

कैलाष सषषर््ङग दषाननेन,

 यः पादपद्यपरिवादन मादधान-

स्तं ष्शंकरं ष्शरणदं ष्शरण व्रजामि ।

 कैलाष पर्वत के षिखर के समान ऊॅंेचे ष्शरीर वाले दषमुख रावण के द्वारा हिलायी जाती हुई कैलाष गिरि की चोटी को जिन्होंने अपने कर कमलों से ताल देकर स्थिर कर दिया, उन शरणदाता भगवान् श्री शंकर की मैं ष्शरण लेता हॅूं ।

 राक्षस ताल के पानी में सीसे की मात्रा अधिक है वहॉं की मिट्टी भी भारी है । कैलाष जल यहीं राक्षस ताल में आता है गुरला मांधाता का जल मान सरोवर में जाता है ।

हम अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ रहे थे  दारचेन में गैस्ट हाउस में हमने सामान रखा और फिर सब गाड़ियों में बैठकर अष्टपाद और नंदी पर्वत के दर्षन हेतु चल दिये  । दारचेन से आठ किलोमीटर दूर अष्टपाद वह स्थान है जहॉं प्रथम जैन तीर्थंकर )श्ऋषभ देव ने तपस्या की और ज्ञान प्राप्त किया और यहीं पर निर्वाण प्राप्त किया । अष्टपाद कैलाष षिखर के पास ही स्थित है कैलाष के  एक ओर नंदी पर्वत है  और एक ओर अष्टपाद । जिस समय हम अष्टपाद के लिये चले हमें यही ज्ञात था कि हम ़.ऋषभ देव की निर्वाण स्थली देखने जा रहे हैं  करीब डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई थी । अष्टपाद चौकोर सा पर्वत है।अष्टपाद के पास से झरना नीचे गिर रहा था उसने गिरकर नदी का रूप ले लिया था अष्टपाद पर कहीं कहीं वर्फ जमी हुई थी । रास्ते में छोटे बड़े षिला खंडों को एक दूसरे पर जमाया हुआ था तिब्बती लोगों की मान्यता है कि पत्थरों को आकार देकर वे ईष्वर से सुख शान्ति की  प्रार्थना करते हैं । कोई कोई आकृति चारपॉंच फुट ऊची तक थी ।

तरह तरह का आकार दिया गया था  गुजरिया का स्वरूप तो कोई सैनिक सा ,कोई ऐसा लग रहा था बंदर बैठा हुआ है । हैट पहने अंग्रेज साहब,सिर पर मटकी लिये  पनिहारिन कहीं  सिर पर कपड़ा बांधे लग रहा था हल उठाये किसान चलाआ रहा है वैसे अधिकतर स्तूप का सा स्वरूप लिये हुए थे ।

आधाकिलोमीटर तक की चढ़ाई में मुझे परेषानी नहीं आई फिर मुष्किल पड़ने लगी धीरे धीरे सॉंस फूलने की प्रक्रिया बढ़ने लगी । मैं वहीं नदी किनारे चट्टानों पर बैठ गई ।नदी का स्वरूप जैसे नमन कर रहा हो  घनघोर बादल छा रहे थे बीच बीच में बड़ी बड़ी बूॅंदे टपक जाती । धीरे धीरे बादल सरकने लगे सामने एक उज्वल हिमषिखर चमकने लगा जो कुछ बादलों के पर्दे के पीछे से बाहर आया वह अदभुत् था । वह कैलाष था इतने पास जो ऊपर चढ़ रहे हैं वे तो लग रहा था उसे छू ही लेंगे ।  देखने में पास था  लेकिन दस किलो मीटर की दूरी थी ।एक एक कर सारे बादल छॅंट गये । हॉं एक काला बादल द्वितीया के  चॉंद  के समान षिखर पर ऐसा छाया  कि षिखर ऊपर से  गोलाकार चमकने लगा । सूर्य के प्रकाष में उसमें अदभुत् चमक आ गई थी  बायीं तरफ नीचे सूर्य की किरण एक स्थान पर ऐसे पड़ रही थी करीब दो फुट वृताकार का सितारा चमक उठा यह तो नीचे से दिख रहा था वह स्थान मॉं  पार्वती का माना जाता है। इस मैं भोलेबाबा की कृत्य कृत्य हॅूं जो उन्न्होंने दर्षन दिये । बहुत देर तक उस अदभुत् दर्षन को आत्मसात करती रही । काला बादल सरक गया । पूर्ण षिखर फिर सामने था । बहुत देर तक सितारा चमकता रहा फिर धुंध में खो गया कुछ बॅूंदें फिर पड़ने लगीं। ऊपर पहुॅंच कर गोयल साहब व अन्य ने अष्टपाद की परिक्रमा की उसके अंदर गुफा बनी थी वहॉं जाकर देखा ।उस गुफा में बड़े बड़े कमरे  से बने हैं । वर्फ अंदर दीवारों छत पर लटक 

रही थी एक खंभे पर एक आकृति वर्फ से बनी हुई थी । पानी बहकर लम्बी लम्बी वर्फ की नोक सी लटक रही थी उस पर चेहरे की आकृति स्पष्ट दिख रही थी जैन धमर््ा में माना जाता है यह आकृति .ऋषभ देव की है 


Sunday, 10 August 2025

Kailashmansarover yatra 23

 विदेषों में और आनार्य संस्कुतियों में भी षिव के स्वरूपों का वर्णन मिलता है । ईजिप्ट में स्फिंक्स को वहॉं के विद्वानों ने षिव के नन्दी रूप में माना है । काउन्ट जान्स जन्ना ने ईजिप्ट में नील नदी के तट पर षिवलिंग ओर षिव मंदिरों की भरमार का वर्णन किया हे ‘ वहॉं ईजिप्ट में नील नदी के किनारे  अमोन के मंदिरों की भरमार उसी प्रकार है जिसप्रकार भारत मेंगंगा नदी के किनारे षिव के मंदिरों की ’। रोमन संस्कृति में इटली के ऊपर आल्प्स पर्वत मालाओं को कैलाष का रूपान्तर स्वीकारा है जहॉं से इन्द्रादि देवता वज्र के रूप में बिजलियॉं गिराते हैं ।सेरालुम गोम्पा से करीब दो किलोमीटर आगे दल की एक गाड़ी में कुछ परेषानी आ गई सब गाड़ियॉं रुक गईं सब यात्री उतर उतर के दृष्यों का आनंद लेने लगे । वहीं पर एक व्यक्ति ने बताया सेरालुम गोम्पा के सामने  मानसरोवर के किनारे की मिट्टी बहुत पवित्र मानी जाती है । वहॉं की मिट्टी पूजा में रखी जाती है वह मिट्टी भी सुनहली है उसमें सोना पाया जाता है । वही सबसे पवित्र स्थान माना जाता है । अब क्या हो सकता था पहले पता ही नहीं चला नहीं तो  जरा सी मिट्टी वहॉं की  ले आते  बहुत दुःख हुआ  जरा सी जानकारी न होने से  एक महत्वपूर्ण सूत्र छूट गया । किसी भी यात्रा पर जाने से पूर्व पूर्ण जानकारी लेना आवष्यक होती है तभी पूर्ण आनंद लिया जा सकता है ।

मान सरोवर के जल पर एक दो छोटी चिड़िया और पहाड़ी कौवे उड़ते दिख रहे थे हंस दूर दूर तक नहीं दिखे थे । एक मोड़ आया और दो हंस पानी में किलोल करते दिखाई दिये  कभी पंख फड़फड़ाकर  पैरों पर पानी में खड़े हो जाते फिर तैरने लगते । पहले  बार बार झपकी आरही थी हंस दिखाई देते ही ऑंख खुल गई कुछ दूर पर फिर चार हंस दिखाई दिये  दूध से उज्वल लम्बी गर्दन पीली चोंच  अर्थात् मान सरोवर में हंस हैं यह निष्चित है ।

राक्षस ताल मान सरोवर से  तीस किलोमीटर की दूरी पर है राक्षस ताल और मानसरोवर दोनों मनुष्य के दो नेत्रों के समान हैं बीच में नासिका के समान उठी हुई पर्वतीय भूमि है जो दोनों को पृथक करती है विषाल पर कुछ लम्बा सा कहते हैं  आकाष से देखने पर लगता है कोई बॉंहे फैलाये खड़ा है । राक्षस ताल का जल भी निर्मल स्वच्छ लग रहा था पर उस पर हल्की  कालिमा सी थी उसे असुर ताल भी कहा जाता है उसके जल का कोई आचमन भी नहीं करता है न नहाता है ।

 राक्षस ताल अर्थात रावण का ताल । यहीं पर लंकाधिपति रावण ने घोर तपस्या की षिवजी को  प्रसन्नकरने के लिये एक एक कर अपने नौ सिर चढ़ा दिये तो षिवजी   उसकी भक्ति देख प्रसन्न हो उठे । और बोले ,‘राक्षस राज वर मांगो ’ रावण ने कहा  मुझे अतुल बल दें और मेरे मस्तक पूर्ववत् हो जायें ’ भगवान् ष्शंकर ने उसकी अभिलाषा पूर्ण की इस वर की प्राप्ति से देवगण और ़ऋषिगण बहुत दुःखी हुए । उन्होंने नारद जी से पूछा ‘देवर्षि ! इस दुष्ट रावण से हम लोगों की रक्षा किस प्रकार से हो?’ नारद जी ने कहा ‘ आप लोग जायें मैं इसका उपाय करता हॅूं  ।’ तब जिस मार्ग से रावण जा रहा था, उसी मार्ग से वीणा बजाते नारद जी उपस्थित हो गये  और बोले ,‘ राक्षसराज! तुम धन्य हो तुम्हें देखकर असीम प्रसन्नता हो रही है। तुम कहॉं से आ रहे हो और बहुत प्रसन्न दीख रहे हो  ?’ रावण ने कहा ऋषिवर ! मैंने आराधना करके षिवजी को प्रसन्न किया है।’ रावण ने सभी वृतान्त ऋषि के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया। उसे सुनकर नारद जी ने कहा ,‘ राक्षस राज षिव तो उन्मत्त हैं , तुम मेरे प्रिय षिष्य हो इसलिये कह रहा हॅूं तुम उन पर विष्वास मत करो  और लौटकर उनके दिये वरदान को प्रमाणित करने के लिये कैलाष को उठाओ । यदि तुम उसे उठा लेते हो तो तुम्हारा अब तक का प्रयास सफल माना जायेगा । ’ अभिमानी रावण लौटकर कैलाषपर्वत उठाने लगा। ऐसी स्थिति देखकर षिवजी ने कहा -यह क्या हो रहा है तब पार्वती जी ने हंसते हुए कहा,‘आपका षिष्य आपको गुरु दक्षिणा दे रहा है। जो हो रहा है,वह ठीक ही है यह बलदर्पित अभिमानी रावण का कार्य है ऐसा जानकर षिवजी ने उसे षाप देते हुए कहा‘ अरे दुष्ट ष्शीघ्र तुझे मारने वाला उत्पन्न होगा’ यह सुनकर नारद जी वीणा बजाते चल दिये ।


Friday, 8 August 2025

kailash mansarover yatra 22

 एक   बहुत बड़ा गोल पत्थर था उस पर विचित्र सी आकृति बनी थी पर उसे लाना संभव नहीं था । इस बात पर  एक प्रसंग याद आ गया । जब हम मान सरोवर के लिये बढ़ रहे थे तब रास्ते में कैलाष के दर्षन हुए । उस समय उस पर ओम का चिन्ह उभर आया  कुछ देर बाद देखा तो लगा  यह तो अंग्रेजी का  ओम अर्थात् ओ एम बना है पहले तो ध्यान ही नहीं दिया। मैं साधारण रूप से  ओम पढ़ती रही फिर चिहुॅंक पड़ी अरे ये तो अंग्रेजी में ओम बना है । तभी  श्रीमती विजय लक्ष्मी बोलीं कुछ देर पहले मुझे तमिल में ओम लिखा दिखा था। कुछ देर बाद फिर ओम दिखने लगा था वहीं पास में एक पर्वत पर

विषाल गणपति की आकृति दिखरही थी । वहॉं आस पास के षिखरों पर सब  अलग अलग आकृतियॉं देख रहे थे ।

अभिषेक सम्पन्न हुआ सारी हवन सामिग्री की एक साथ आहुति दे दी गई लपटें ऊॅंची हो गईं उसकी गरमी अच्छी लग रही थी।आरती हुई प्रसाद में नारियल सबको वितरित किया गया । वापस टैन्ट में आकर सारा सामान डफल बैग में डाला जब तक खाना खाकर बाहर आये  सारा सामान ट्रक में लद चुका था ।

         यहॉं से प्रारम्भ हुआ मानसरोवर की कार द्वारा परिक्रमा लगाने का कार्यक्रम । वैसे तो पूरी परिक्रमा पैदल लगाई जाती है । 1982 में बाबूजी जब सरकार द्वारा आयोजित कैलाष मान सरोवर यात्रा में पैदल गये के तब उन्होंने  तीन दिन में 80 किलो मीटर की यात्रा पैदल पूरी की थी । तीन ही दिन कैलाष की परिक्रमा में लगे थे । पैदल मार्ग सरोवर के किनारे किनारे है और गाड़ी का मार्ग कुछ दूर से है। आधी  परिक्रमा दारचेन तक की यात्रा में लग जाती है  । परिक्रमा मार्ग अपने में अदभुत् है । सरोवर का हर रंग दिख रहा था जैसे अनंत तक केवल सरोवर हो  कैलाष हर मोड़ पर छिपता दिखता रहा । सबसे पहले परिक्रमा मार्ग पर चियू गोम्पा पड़ा यह एक टीले पर अवस्थित है । गर्भ गृह में कई बौघ्द तिब्बतीदेवी देवता एवम् मनी मंत्र लगे थे । पीतल की बड़ी बडी़ मूर्तियॉं थीं  मठ के लामा पुजारी गुलाबपाष से पवित्र जल छिड़क रहे थे  नन्हंे नन्हे घी के दीपक रखे थे जो युआन देकर जलाये जा सकते थे कुछ ने जलाये भी । चियू गोम्प के पास एक  पर्वत था उसकी मिट्टी बहुत पीली थी उस पर सूर्य की किरणें पड़ी तो वह झिलमिला उठा उपस्थित गोम्पा के निवासियों ने बताया उस पर्वत पर सोना पाया जाता है । 

छः किलो मीटर की यात्रा के बाद एक और गोम्पा पड़ा उसका नाम था सेरालुम गोम्पा । यह चियू गोम्पा से कहीं बड़ा था । इसमें करीब पन्द्रह पीतल की मूर्तियॉं दो फुट से लेकर सात फुट तक ऊॅंची थीं।  तिब्बती देवी देवताओं के स्वरूप हिन्दू देवी देवताओं से मिलते थे । एक सात फुट ऊॅंची मूर्ति को  विष्णु का स्वरूप कहा  जा सकता है । षिव स्वरूप भी थे और काली मॉं का रूप भी पर सब तिब्बती देवी देवता थे । सभी मूर्तियॉं पंक्तिबध्द ष्शीषे के ष्शो केस में लगी थीं । प्राचीन पॉंडुलिपियों के ये गोम्पा खजाना हैं । पतले पतले लम्बे टीन के डिब्बों में ये बंद थे । ये गोम्पा अघ्ययन के  विषय हैं।संस्कृति का अनमोल खजाना हैं वैसे तो कभी ये भारत की अनमोल धरोहर थी इसलिये भारतीय  संस्कृति ही रची बसी है । पूरे मार्ग में पर्वतों पर छोटे छोटे द्वार से बने थे वे साघु महात्माओं की तपस्थलियॉं थीं । उन पर्वत मालाओं पर अनेक धर्मों के  संत महात्मा अपने अपने ढंग से ईष्वरीय सत्ता को नमन  करते हैं ।


Thursday, 7 August 2025

Kailask mansarover yatra 21

  दो बजने के साथ ही पूरे कपड़ों में लदे फदे एक एक कर सब बाहर आने लगे  । कभी कैलाष की ओर कभी मानसरोवर की ओर कभी आकाष की ओर देख रहे थे  मान सरोवर के बिलकुल निकट से  भी यात्रियों की आवाज आ रही थी संभवतः वे आश्रम में टिके यात्री थे । कुछ देर चारों ओर देखने के बाद धर्म परिचर्चा भजन जाप आदि प्रारम्भ हो गया । दो घंटे बीत गये एक एक कर यात्री टैन्टों में घुसने लगे  कुछ नहीं  है आस छोड़ दी । मुझ जैसे अभी कुछ टिके थे शायद कुछ  दिख ही जाय मुझे तो नींद वैसे भी नहीं आनी थी, मुझे नींद अपने बिस्तर के अलावा कहीं नहीं आती है ,बहुत हुआ तो एक दो झपकी ही आती हैं, विषष छोटे से टैन्ट में  तो बाहर ही बैठे क्या बुरा है । मान सरोवर के किनारे  बैठे यात्री भी लौट गये । गोयल साहब  तो टैन्ट से निकले ही नहीं थे बंसल साहब टैन्ट से सिर  निकाल कर आकाष की ओर देख रहे थे । चारों ओर देखते मैंने देखा पष्चिम दिषा से दो चमकदार तारे तेज गति से  मान सरोवर की ओर बढ़ रहे हैं सभवतः मिसाइल गति से  ‘ आरहे  हैं आ रहे हैं ’ मैं चिल्लाई वे ठीक  ऊपर पहुॅंच  चुके थे  और विलुप्तहो गये  सबने देखा पर  तब तक वे जा चुके थे  बंसल साहब का सिर आकाष की ओर था उन्होंने भी देखे तो शायद देवता ही थे  यदि चुप रहती तो तो शायद लोप न होकर मान सरोवर में उतरते  मैंने क्यों आवेष में चिल्लाया । ष्शायद इंसान की नजर से बच कर ही आते हैं ।  अब विष्वास हो गया देवता आते हैं तो ज्योत भी आती होगी । पॉंच बजने को आये अब नहीं आयेगी अब सब तंबू में घुस गये मैं भी घुस गई । लेकिन झिरी से अपनी निगाहें कैलाष पर टिकाये रखी । एक चमत्कार देखने को मिला शायद दूसरा भी मिल जाये । झिरी से ठंडी हवा घूम घूम कर घुसने का प्रयास कर रही थी । पर आषा साथ नहीं छोड़ रही थी । एक दो मिनट को सिर  इधर उधर रखती  तो लगता  उसी समय न आजायें और मैं देखने से वंचित रह जाऊॅं  पर भोर हो गई ।

        पहली किरन के साथ विषाल लाल गोला सूर्य का सामने आया । नीला पानी भी हलका लाल सा दिखने लगा । तीखी हवा हड्डियों तक पहुॅच रही थी । बादल भी अपनी धमा चौकड़ी मचाये हुए था । कैलाष की झलक दिखती और वह बादलों में छिप जाता । गुरला मान्धाता जैसे षिव को  नमन कर रहा हो ।

आगे का पड़ाव दारचेन था । वहॉं एक रात रुक कर परिक्रमार्थी परिक्रमा को  जाने वाले थे । हम अठारह जन दारचेन में  ही रुकने वाले थे । दोपहर दो बजे तक मान सरोवर पर रुकना था। उसके बाद दारचेन की यात्रा थी इसलिये एक बार फिर स्नान लाभ करने मान सरोवर पर पहंुॅचे। इस समय पानी वर्फीला ठंडा था। हमने रुद्राक्ष की माला को मान सरोवर में स्नान कराया  और षिव अर्चना के साथ उसे रखा साथ ही स्वयं स्नान किया । इस बार अधिक देर रुकने की हिम्मत नहीं हुई । कभी कभी मोटी मोटी बूॅंदे आ जाती और एक दम  धूप खिल जाती । सरोवर से  कुछ रेती छोटी छोटी  थैलियों में डाली तथा छोटे छोटे षिला खंड सरोवर से निकालें एक गोता खोर काफी आगे से  जाकर हमारे लिये षिला खंड बीन कर लाया ।इन्हें हम शिव स्वरूप् ही मान कर लाये थे ।

उस दिन सहयात्रियों ने निष्चय किया था कि रुद्राभिषेक किया जायेगा । रात्रि वाले हवन कुंड के स्थान को ही साफ करके हवन कुंड तैयार किया । यह देखकर हैरानी हुई कि सबके बैगों से अभिषेक की सामिग्री निकल रही थी । सूखा दूध मान सरोवर के जल से  घोल तैयार किया गया । ष्शहद   नारियल लकड़ी आदि सब वस्तुऐं एक एक कर निकलने लगीं श्री निवासन के पास तो पारद षिवलिंग था ही अन्य कई षिवलिंग निकल आये घेरा बनाकर मंत्रोच्चार के साथ रुद्राभिषेक प्रारम्भ हुआ । पूर्ण प्रक्रिया में चार घंटे लग गये  बार बार कैलाष मुस्कराते हुए आर्षीवाद देने आ उपस्थित होते और बार बार बादलों के पर्दे के पीछे चले जाते। वुंदावन में बिहारी जी के मंदिर में दर्षन प्रक्रिया में हर मिनट के बाद बिहारीजी के सामने पर्दा खींच दिया जाता है इसके पीछे मन्तव्य है कि लोग टकटकी लगाकर बिहारी जी के दर्षन करते हैं उन्हें नजर न लग जाय इसलिये पर्दा खींच दिया जाता है । संभवतः कैलाष को नजर न लग जाय इसलिये बार बार बादल 

पर्दा बन उनके सामने आ जाते थे ।

आस पास  सेे कई छोटे छोटे  आकृतियों वाले और मोती की आभा वाले पत्थर एकत्रित किये कहते हैं मान सरोवर में मोती हैं और हंस उन मोतियों को चुगते हैं । लेकिन वहॉं  अनेकों  बार आने वाले ष्शेरपा आर साधु बता रहे थे कि उन्होंने कभी मोती नहीं देखे । हॉं सरोवर तट पर  छोटे छोटे पत्थर थे  जिन में सीपियों की आभा थी । कुछ पत्थरों में रुपहली चमक थी तो किसी में सर्प की आकृति तो किसी में गणपति की आकृति थी । अब यह भी कहा जा सकता है-

जाकी रही भावना जैसी 

प्रभु मूरत तिन देखी तैसी । 


Wednesday, 6 August 2025

kailash mansarover yatra 20

 केवल दैवीय प्रतिभा प्राप्त कवि या कलाकार अपनी कविता या कूॅची से झील पर सूर्योदय  और सूर्यास्त के सौंदर्य का वर्णन कर सकते हैं  । मानसरोवर का जल मीठा है । पूर्णिमा पर मानसरोवर का सौंदर्य वर्णनातीत है । सूर्यास्त के समय पूरा कैलाष क्षेत्र अग्नि पुंज बन जाता है एक क्षण के लिये ऑंखें चाैंधिया जाती हैं दूसरे ही पल सामने केवल कैलाष का रजत षिखर होता है । रात्रि को चारों ओर नीलाभ आकाष होता है लेकिन धरती पर हिम के कण बरस रहे होते हैं 

इसीलिये कहा गया है ,

मान सरोवर कौन परसे

बिन बादल हिम बरसे  ।

         इसीलिये मानसरोवर हर व्यक्ति का ध्यान खींचता है कवि हो या चित्रकार,मनोवैज्ञानिक हो या जीवविज्ञानी,या पर्यावरण विद हो या भूगोलवैज्ञानिक इतिहासज्ञ षिकारी या खिलाड़ी स्केटर या स्कीइंग  करने वाला हो समाज वैज्ञानिक हो शरीर विज्ञानी खजाने की खोज में जाना हो या आत्मा की खोज में साधू  हो या संत ,बूढ़ा हो या जवान या महिला हर एक के लिये यह खोज की वस्तु है ।

        वैसे तो मान सरोवर के तट पर एक आश्रम बन गया है लेकिन उसमें यात्री दल रुका हुआ था । हमें टैन्टों में रुकना था । ष्शीघ्रता से ट्रक में से  सामान उतार कर ष्शेरपाओं ने टैन्ट खड़े कर दिये । चार बाई छः के इस टैन्ट में दो दो व्यक्ति के रुकने की व्यवस्था थी । एक बड़ा टैन्ट भोजन व्यवस्था के लिये ख़ड़ा कर दिया गया । शाम झुकने को आई स्नान की ष्शीघ्रता थी । हल्की हल्की हवा चल रही थी । दाहिनी ओर  कैलाष पूर्ण गरिमा से खड़ा बादलों से बात कर रहा था। टैन्ट में सामान रख स्नान के कपड़े लेकर हम मान सरोवर की ओर बढ़  लिये ।

     मान सरोवर विषाल सरोवर दूर दूर तक सुनहला और झुक आई शाम की बेला की ललाई लिये था कहीं हल्का नीला कहीं गहरा नीला ।इतनी  ऊॅंचाई पर स्वच्छ जल का इतना विषाल बहुरंगी आभा लिये सरोवर मुग्ध कर रहा था । पवित्र जल को स्पर्ष किया सोचा था बेहद ठंडा बर्फीला जल होगा लेकिन यह क्या जैसे सद् गुनगुना था । सूर्य की प्रखर किरणों ने  उसे गुनगुनाहट प्रदान कर दी थी । आनंद आ गया । सुना था जल इतना ठंडा होता है कि पैर सुन्न हो जाते हैं  लेकिन यहॉं तो स्नान योग्य जल था  ,षारीरिक तापमान का । बालू में जल में भी नुकीली कुष घास थी  जब घुटनों तक जल आया तब बैठकर  स्नान किया । देखते देखते तीव्र ठंडी हवाऐं चलने लगी सब एक एक कर बाहर निकल आये । जैसे जन्म जन्म की आकांक्षा परिपूर्ण हुई हो । एक तृप्ति का भाव । ज्योति ने भी स्नान लाभ लिया ।

     श्री निवासन दम्पत्ति उम्र संभवतः बत्तीस चौंतीस के आसपास बैंगलौर के थे पर दुबई रह रहे थे षिव के परम उपासक थे  उन्हें पूजा आराधना विधिवत् करने का विषेष ज्ञान था । सामान की लिस्ट में  हवन सामिग्री लाने का भी लिखा था  हमने एक पैकेट हवन सामिग्री रख ली थी । स्नान के बाद श्री निवासन दम्पत्ति ने हवनकुंड वहॉं पड़े गोल गोल पत्थरों को रखकर बनाया और हवन प्रारम्भ हुआ यात्रियों ने निष्चय किया  कि उस दिन तो हवन करेंगे और  दूसरे दिन प्रातः अभिषेक करेंगें क्योंकि हवन में समय लगना था हवन कुंड के सामने अपने अपने बैग लेकर यात्री बैठ गये । किसी के बैग से  आम की लकड़ी किसी के बैग से घी का डिब्बा  धूप  आदि निकलने लगे । और यज्ञ आरम्भ हुआ । ठंडी हवा पूर्ण वेग से चलने लगी  अंदर तक कंपकंपी हो रही थी अग्नि बहुत मुष्किल से प्रज्वलित हुई । बार बार कैलाष  हमारे हवन को देखने  सुनहरी आभा बिखराते बाहर आ जाता फिर बादलों की ओट में छिप जाता । मंत्रोच्चार के साथ जब ओम नमः 

षिवाय का जाप  प्रारम्भ हुआ लगा दिगदिगन्त से एक ही आवाज उठ रही है ओम । धीरे धीेरे सूर्य गुरला मांधाता के पीछे छिप गया पहले लाल फिर सुनहरी आभा और एकदम अंधकार। अभी चॉंद निकला नहीं था गहन अंधकार में यदि कुछ चमक रहा था तो श्वेत उज्वल हिम मंडित कैलाष । मान सरोवर के चारों ओर सभी षिखर हिम मंडित थे लेकिन 

अंधकार की कालिमा के साथ एक होगये थे लेकिन कैलाष ही था कि वह दमक रहा था जैसे उसके अंदर से प्रकाष फूट रहा हो । कहीं कुछ तो है वहॉं की बर्फ दमकती है या वहॉं ऐसी जड़ी बूटियॉं हैं जिनसे प्रकाष फूटता है या देवाधिदेव षिव,मॉं पार्वती, विनायक , कार्तिकेयके तन की आभा है । वराह पुराण में मान सरोवर के चारों ओर की पर्वत श्रंखलाओं केनाम वर्णित हैं । मानसरोवर के पूर्व में प्रसिध्द पर्वत श्रंखला है विकंग ,मणिश्रंग ,सुपात्र, महोपल ,महानील ,कुम्भ सुविन्दु ,मदन वेणुनद,सुमेदा निदााध और देव पर्वत पष्चिम  में राक्षस ताल और रावण हरदा , दक्षिण में त्रिषिखर,गिरिश्रेष्ठ षिषिर, कपि,षताक्ष,तुरग,सानुमान्,ताम्राक्ष,विषष्वेतोदन, समूल,सरल,रत्नकेतु,एकूमल,महाश्रंग, गजूमल, ष्शावक ,पंच शैल ,गुरला मांधाता और कैलाष । उत्तर में हंसकूट,बशहंस,कपि ळजल,गिरिराज ,इंद्रषैल,सानुमान् नील कनकश्रंग,षतश्रंग ,प्ष्श्कर एवम् भारुचि हैं।

       यज्ञ की समाप्ति के बाद खाना खाकर सब अपने अपने टैन्टों में घुस गये  इस निष्चय के साथ कि  दो बजे  उठकर सरोवर के किनारे बैठेंगे क्योंकि जो कुछ भी हमें बताया गया था उन पल का अब हमें इंतजार था । हमें बताया गया था पूर्णिमा की  रात मान सरोवर  पर अदभुत रात होती है चॉंद जमीन पर उतर आता है ष्श्वेत चॉंदनी में जब आगरा का ताजमहल मोती सा चमकने लगता है तो कैलाष की तो बात ही क्या होगी । सुना था दो ज्येतियॉं कैलाष से उतरकर मान सरोवर में स्नान कर वापस कैलाष पर जाती हैं । तीसरी बात जो हमें बताई गई थी तारों के रूप में ऋषि मुनि भोर में 

स्नान करने आते हैं ।


Tuesday, 5 August 2025

kailash mansarover 19

 ओम सृष्टि का आदि स्वर है ।नाद और घ्वनि का मूल स्वरूप । यही है यह पराबीजाक्षर ।‘मैं हॅूं देखो तो  ’ जैसे विषाल सलेट पर  सफेद चाक से ओम बना दिया हो  चारों ओर घेरा भी बना था । ओम पर्वत दूर तक दिखाई देता रहा ।

एक छोटा सा कस्तूरी हिरन का छौना गाड़ी को  टुकुर टुकुर देखता रहा  फिर कुलांचे मारकर भाग लिया। एक दो  खरगोष भी दिखाई दिये । कहीं कहीं बालू  सूर्य की किरणों में हीरकनी सी चमक रही थी । कई कई  कण चमकते तो ऐसा तारे जमीं पर बिछ गये हों यमुना किनारे  गंगा किनारे  समुद्र तट पर सिक्ता के कण चमकते देखे हैं  लेकिन इतना तीव्र प्रकाष निकलते नहीं देखा ं संभवतः सूर्य पास दिख रहा था । दूर दूर तक   पूरे रास्ते ये कण चमकते रहे ।ज्यों ज्यों मान सरोवर पास आता जा रहा था रोमांच बढ़ता  जारहा था बार बार मोड़ पर जरा सी झलक दिखती तो सब चीखने लगते मान सरोवर मानसरोवर । एक चिर आकांक्षी प्रतीक्षा का अंत होने वाला था ।

      मानसरोवर से तीन किलो मीटर पूर्व एक समतल पहाड़ी स्थान दिखाई दिया । पतला सा स्तम्भ पॉंच रंग की झंडियॉं बंधी थीं  । प्रकृति के पॉंच तत्व के रूप में खंभे से बंधीं थी । ड्राइवर ने गाड़ी से उसकी परिक्रमा की और एक ओर गाड़ी रोक दी । बादल छाये हुए थे ज्ञात हुआ यहीं  कैलाष के प्रथम दर्षन होते हैं । कुछ देर बाद ही एक  ष्श्वेत उज्वल मनोहर षिखर बादलों से झांका । कुछ ही देर में सूर्य भी चमक उठा और षिखर  सुनहरा चमकने लगा । बादल धीरे धीरे हटे और पूर्ण कैलाष हमारे सामने था स्वतः उस भव्य दर्षन के लिये  हाथ जुड़ गये । नेत्र छलछला उठे कितने सौभाग्याषाली हैं हम जो यह दृष्य देख रहे हैं  । एक एक कर सब वहॉं बैठ गये अधिकतर के  नेत्रों से प्रेमाश्रु बह रहे थे  क्षण भर को भी  ऑंखे हटाने का मन  नहीं कर रहा था क्योकि अधिकतर षिखर बादलों से ढका रहता है प्रथम दृष्टि दर्षन दुर्लभ हैं। ज्ञातहुआ कभी कभी तो कई कई घ्ंाटे लोग खड़े रहते हैं पर  कैलाष सामने नहीं आते । वहॉं से हटने का मन तो नहीं कर रहाथा पर समय अपनी गति पकड़ रहा था और मान सरोवर में स्नान करना था यदि वहॉं देर हो जाती है तो ष्शाम के स्नान नहीं हो पायेंगे । कैलाष का चित्र खींचा जाने लगा सब दल में  कुछ बैठ गये कुछ खड़े हो गये  । चित्र खींचा गया  हमने  अलग से भी  खिंचवाई लेकिन आगरा आकर जब सीडी डैवलप कराई तब केवल बादल ही आये  जबकि जब फोटो खींची षिखर चमक रहा था । फोन कर बाद में अन्या साथियों से पूछाा उन्होंने भी कहा ओम की फोटो नहीं आई।

  कैलाष षिखर को  वंदन कर आगे की यात्रा के लिये चल दिये । अगला पड़ाव मान सरोवर था । तीन किलोमीटर की रोमांचक यात्रा पूर्ण हुई । ठीक मान सरोवर के तटपर गाड़ियॉं पहुॅंची तट करीब सौ मीटर की दूरी पर होगा ।

     हिमालय का सबसे  खूबसूरत क्षेत्र कैलाष मानसरोवर दिल्ली से 865 किलोमीटर दूर है कैलाष के सामने 32 किलोमीटर दूर मान सरोवर  या पवित्र मानस सरोवर संस्कृत ष्शब्द मानस व सरोवर से मिलकर बना है इसका ष्शाब्दिक अर्थ मन का सरोवर है यह सरोवर  ब्रह्मा जी की संकल्प ष्शक्ति से  सृष् िके आरम्भ में निर्मित हुआ था । यह झील सबसे अधिक पवित्र  आकर्षक है । संसार की सभी झीलों में सबसे सुंदर।भारतीय पौराणिक आख्यानों में इसका बहुत महत्व है । यह झील जादुई सी रहस्यमय लगती है।षांत नीलमणि सी यह झील तिब्बत की पहाड़ियों पर झूला सी झूलती नजर आती है यह समुद्र तल से 14950 फुट है इसकी परिधि 88 किलोमीटर कभी थी अब 52 किलोमीटर है इसकी गहराई 300 फुट है सर्दियों में यह झील जम जाती है और बसंत के साथ पिघलना प्रारम्भ कर देती है । इससे सरयू व ब्रह्मपुत्र दो बड़ी नदियॉ निःसृत हैं यहॉं कुमदा नाम से सती देवी का ष्शक्ति पीठ है यहॉं सती की दाहिनी हथेली गिरी थी । पितरों के श्राध्द के लिये यह तीर्थ प्रायः सर्वोत्तम माना गया है यहॉं तप करने से तत्काल सिध्दि मिलती है । बौध्द धर्म में भी इसे  पवित्र माना गया है ऐसा कहा जाता है कि रानी  माया से भगवान् बुध्द की पहचान यहीं हुई थी 


Saturday, 2 August 2025

Kailashmansarover yatra 18

  प्रयांग और सागा के बीच  ब्रह्मपुत्र नदी पड़ती है पूर्व में यह नदी फैरी से पार करनी पड़ती थी अब वहॉं पुल बन गया हैै प्रयांग तक का सफर सहज है ।  बहुत ऊॅंचा नीचा न होकर मैदानी सा है लेकिन पहाड़ सब  जगह एक से थे  ।  प्रयांग भी  एक दम सुनसान स्थान है कहीं कहीं रेतीली मिट्टी की ईंटों के अधबने कमरे से दिख रहे थे । उन रेतीले कमरों को  पार करके  एक पक्की बिल्डिंग दिखाई दी वही हमारा ठहरने का स्थान था  चारो ओर  ऊॅंची चार दीवारी से घिरा बीच में बड़ा  ख्ुाला स्थान तीन ओर कमरे एक कोने में बाथरूम आदि बने थे  बीच में एक हॉल जो उनका सत्संग भवन था । हैरानी हुई इतने वीराने में इतना अच्छा गैस्ट हाउस ।

         एक महंत भी अपना ग्रुप लाए थे  वे अभी आये नहीं थे हर कमरे में तीन तीन पलंग कर दिये गये कमरे छोटे थे । हमें जो कमरा मिला उसे देख कर हम हैरान रह गये कि बड़ी अच्छी व्यवस्था है । कालीन रेषमी पर्दे, पलंग पर भी मोटे डनलप के गद्दे पर साटन की चादर , रेषमी झालर दार तकिये  , सोफा । कमरा लोबान आदि से सुगंधित हो रहा था,अभी हम सामान रख ही रहे थे कि व्यवस्थापक भागा आया उसने गलती से हमें महंत जी का कमरा  एलाट कर दिया था उसके माथे पर इतनी सर्दी में भी पसीना चुहचुहा आया था ‘ यह कमरा महंत जी का है वे आते ही होंगे  प्लीज आप दूसरे कमरे में चलिये  ’। धत्तेरे की आ गये अपनी औकात पर वही तीन  फोल्डिंग  पलंगो वाला कमरा पुराने गद्दों पर चादर जरूर धुली बिछी थी ।नहाने की व्यवस्था यहॉं भी थी ।पच्चीस युआन अर्थात पचहत्तर रुपये देकर आराम से गर्म पानी में नहा सकते थे  परन्तु पानी की मात्रा और समय निर्धारित था दस मिनट और एक बाल्टी पानी । कुछ नहाये कुछ ने मानसरोवर के लिये स्नान मुल्तबी कर  दिया ।चंद्रमा और नीचे उतर आया था  । चतुर्दषी का चॉंद रात्रि में बिना बिजली के भी पूर्ण उजाला था । यहॉं  केवल आठ से

 दस बजे तक के लिये  बिजली थी उसके बाद बंद कर दी गई । अपने सह यात्रियों में अहमदाबाद से आये बुजुर्ग दम्पति को  हमने देखा  वे चुपचाप ष्शांत सब काम किये जा रहे थे उन्हें किसी प्रकार की कोई परेषानी नहीं हो रही थी । वे निलायम् ट्रैकिंग पर भी बहुत आराम से गई जैसे इन सब की अभ्यस्त हों ।

   ज्येाति की तबियत और बिगड़ गई । प्रयांग में जिला चिकित्सालय बस्ती में था उसे वहॉं ले जाया गया । यहॉं पर भीवही समस्या आयी  मुख्य चिकित्सक ने कहा  भर्ती करना पड़ेगा । भर्ती का मतलब था किसी का रुकना चिकित्सक ने दवा देदी और आक्सीजन का बड़ा सिलैंडर उपलब्ध कराया  । प्रातः काल तक   कुछ सुधार आ गया । 

अगला पड़ाव मान सरोवर था । उत्साह बढ़ गया प्रयांग से  मान सरोवर का रास्ता अधिक कठिन नहीं है ।

भोले बाबा को याद करते  मान सरोवर के लिये प्रातः यात्रा प्रारम्भ हुई ।  रेतीले पहाड़ों के पीछे वर्फ ढके पहाड़ भी दिखने लगे थे । बायीे ओर एक पर्वत पर  वर्फ से ओम़¬ बना दिखाई दिया यह ओम पर्वत कहलाता है षिव का नाम उस पर्वत पर  कह रहा था  यह प्रदेष षिव का है । वैसे तो कण कण में षिव विराजते हैं पर यहॉं तो ओम¬ की मुहर लगी थी ।ओम परम ब्रह्म परमात्मा का  स्वरूप है ।  ओम की साधना से सारे क्लेष मिट जाते हैं 

‘ओमिति ब्रह्म । ओमितीदं सर्वम् ‘  ;तैत्तरीयोपनिषद् .


Friday, 1 August 2025

kailash mansarover yatra 17

 सागा में चीन का वर्चस्व है तिब्बती नहीं दिखाई दिये । होटल में भी सभी लड़कियॉं व पुरुष चीनी ही थे । बाजार में चीनी सामान की अनेक दुकानें सजी थीं  वहॉं पर  सामान में क्वालिटी से ज्यादा सुंदरता पर अधिक बल दिया जाता है हमें बताया गया उत्तम क्वालिटी का सामान भी उपलब्ध है पर बहुत मंहगा है  जो सस्ती होती है सुंदर होती है पर टिकाऊ नहीं होती । हर वस्तु की पैकिंग बहुत सुंदर थी । लड़कियों का पहनावा मुख्यतः पैन्ट ष्शर्ट कोट या स्कर्ट कोट ही दिखा । पुरुष भी कोट पैन्ट या स्वेटर और ढीले ढीले पाजामा में दिखे । होर्डिंग बैनर सभी पर केवल चीनी भाषा का  ही प्रयोग था कहीं कहीं  हिंदी लिखी देखकर आष्चर्य ही हुआ । रात्रि में कमरे में  तीन तीन लोगों की व्यवस्था थी हमारे कमरे का तीसरा  साथी  गाइड अवतार था पर वह रात में  वहीं बाहर ही सोता रहा । हमने कहा कि जिस कमरे में चुष हैं उस कमरे में चले जाओ या हम एक कमरे में महिलाऐं और एक कमरे में पुरुष सो जायेंगे ।

    प्रतिदिन की दिनचर्या के अनुसार प्रातः आठ बजे प्रयांग के लिये प्रस्थान करना था जल्दी जल्दी सब  समय से  तैयार थे । खाना बनाने वाले ष्शेरपा इतने मुस्तैद रहते थे कि आष्चर्य होता था। हर प्रदेष का खाना खिला रहे थे  छोटे छोटे उत्तपम, बड़ा सांभर अर्थात् दक्षिण भारतीय खाना तैयार था श्रीमती विजय लक्ष्मी गुप्ता एकदम प्रसन्न हो उठीं कि आज तो उनका मन पसंद खाना मिल रहा था । पूरे रास्ते ष्शेरपाओं ने इटैलियन पास्ता , उत्तर भारतीय पूड़ी बेड़वीं,राजस्थानी दाल वाटी, बिहार का लिट्टा चोखा आदि बनाया ।  पेय पदार्थ भी  सब प्रकार के रहते थे । सूप चाय कॉफी ,दूध बॉर्नविटा ष्शहद नीबू  आदि ।

         सागा से प्रयांग की दूरी 160 किलोमीटर तक है । अब कुछ उतरना था । प्रयांग 14750 फुट समुद्र तल से ऊॅंचाई पर स्थित है। प्रयांग का रास्ता भी  सूना है केवल कहीं कहीं चरागाह  दिख जाते हैं । प्रयांग में कहीं कहीं घोडे़ नजर आने लगे थे सड़क बन रही थी केवल दो तीन मजदूर दिखाई दिये वे निष्ठा से काम कर रहे थे ।  सागा से प्रयांग  के रास्ते में कई किलोमीटर तक हनुमान लेक चलती गई । इस लेक का जल देखने में सुनहरा लगता है कहा जाता है वहॉं के वासी हनुमान जी कभी कभी भक्तों को  अपनी उपस्थ्तिि का एहसास कराते हैं । हमसे पहले  आये ग्रुप के प्रमोद बाबू व ममता बंसल ने बताया था कि उन्होंने एक विषाल साये को  बराबर चलते और फिर झील में विलुप्त होते  देखा था  सुनकर एक  श्रध्दा का एहसास हुआ था परंतु हमें ऐसा कोई  अनुभव नहीं हुआ । जल बेहद शंात था । ढलते सूर्य ने  जैसे  उस पर स्वर्ण बिखरा दिया हो  । कहीं कहीं छोटे पक्षी तैरते नजर आये । लेक पूरे रास्ते हमारे साथ साथ चलती रही । इस रास्ते पर भी एक नदी  पार करनी पड़ी नदी  कुछ उफान पर थी तथा वेग भी तेज था ड्राइवर सभी इन परिस्थितियों के लिये तैयार थे  हमें रोमांच हो रहा था लग रहा था पानी गाड़ी में भर जायेगा मछलियॉं टकरा रही थीं । एक दो गाड़ियॉं जरा अटकीं पर सब निकल गई ।मनोहारी दृष्य था आगे चौडा़ रेतीला मैदान सब उतर कर  प्रकृति का आनंद लेने लगे ,ठंडे बहते पानी मेंपैर डालकर खड़ा होना नीचे से धरती सरकती महसूस होना,म नही नहीं कर रहा था वह स्थान छोड़ने का  लेकिन आगे की यात्रा जारी रखनी थी ‘ जल्दी करो के स्वर के साथ ही सब चढ़ कर चल दिये