Saturday, 22 October 2022

मैं माती का नन्हा दीपक

 


मैं माटी का नन्हा दीपक



मैं माटी का नन्हा दीपक

चैराहे पर जला रात भर

चंदा तारे उडगन चमके

मैं ठंडी में गला रात भर,

तेज हवाऐं घूम घूमतीं 

मेरा आस्तित्व मिटाने को ,

लेकिन जब तक नेह भरा है,

बुझा नहीं वह पायेगी

जल जाऊं या बुझ जाऊं

अंतर नहीं अर्थ में है

अंत है केवल रोषन कर जग

गल गल कर है मिट जाना

जल जाऊं या मिट जाऊं

माटी में मैं मिल जाउंगा

फिर माटी से नया दीप बन

दीप से दीप जलाउंगा।


Thursday, 20 October 2022

पतंग

 उड़ती पतंग की डोर टूट जाती है

है से थी में बदल जाती है

आसमान में उड़ती है पतंग अनेकों

पर  छत पर चरखी पड़ी रह जती है



चलते चलते चित्र बनाते बनाते

पत्थर में बदल जाती है

फूल पर अश्क बनकर ठहरी बूॅंद

मौत की फिसल पट्टी से सरक जाती है 


Tuesday, 18 October 2022

deepavali shubh ho

  दीपावली

‘असतो मा सद्गमय,तमसो मा ज्योतिर्गमय्,मृत्योर्माऽमृतगमय।।

ष्षुभ कर्म ष्षुभ लाभ ष्षुभ कामनायें ष्षुभदीपावली

दीपावली-पर्व नये धान के आगमन का भव्य और भक्तिपूर्ण अभिनंदन है,आदि षक्ति कावंदन है। मन मंदिर का दीप आलोकित हो अज्ञान तिमिर का लोप हो। हम अपने हृदय के श्रद्धा सुमन विद्याावारिधि श्री गणेष और माता पदमासना के चरणों में अर्पित करते हैं माता महालक्ष्मी का न आदि है न अंत है वे आदिषक्ति हैं माहेष्वरी हैं योग सम्भूता हैं। उनके चरणों में हमारा ष्षत ष्षत नमन।

हमारी मंगल कामना है कि माता विष्णुप्रिया हमारे मन मंदिर का अंधकार दूर करें। हमारे आंगन में हर्ष की फुुलझड़ियां छूटें राक्षसी प्रवृतियों का अन्त हो। धर्म की स्थापना हो सत्य की विजय हो । राष्ट्र में व्याप्त भ्रष्टाचार दुराचार और और तिमिर का नाष हो सर्व, ज्ञान का आलोक बिखरे। हर देहरी दीपों से झिलमिला उठे चाहे वह देहरी द्वारकाधीष कृष्ण की होया दीन हीन विप्र सुदामा की हो। सर्वत्र आलोक बिखरे तभी यह महापर्व सार्थक होगा और हम भाक्त जन स्वर में स्वर मिलाकर कहेंगे ‘षुभदीपावली


Saturday, 15 October 2022

astha

 ऽ कई व्यक्ति अपने धर्म की अवमानना करने वालों की हत्या कर देते हैं लेकिन हिन्दू अपने देवी देवताओं का स्वयं अपमान करता है अपने विष्वास की हत्या करता है । नव दुर्गापर कन्या लांगुरा का पूजन घर घर किया जाता है उन्हें खाना खिलाकर वस़्त्र या कोई समान दिया जाता है साथ ही पूरी हलुआ चना। छोटे छोटे बच्चे दो पूरी खाकर जिनका पेट भर जाता है वह अतिरिक्त पूरियों का बोझा थैली में भरकर  एक घर से दूसरे घर भागते रहते हैं उनके लिये प्रमुख आकर्षण पैसे या मिलने वाली वस्तु है। उसदिन जगह जगह भंडारे होते हैं पेट और घर तो वैसे ही भर जाता है।बच्चे पूड़ी हलुआ सड़क पर फेंक पैसे और सामान रख लेते हैं । खाना सड़क पर घूल मिट्टी में लिथड़ता रहता है ।

इसी प्रकार देवी पर महिलाऐं लोटा ढारती हैं एक महिला देवी का श्रृंगार कर हटने भी नहीं पाती कि दूसरी आकर पानी डाल देती है  देवी के आगे रखीं पूरियां पानी में गल जाती हैं किसी के खाने योग्य नहीं रहतीं पुजारी  उनकी कोने में ढेरी लगाता जाता है लेकिन महिला अपना कर्म करती है और चल देती है । सुबह पुजारी मंदिर साफ करता है और उस ढेर को कूड़े के ढेर पर डाल देता है जिसे गाय कुत्ते भी मुंह नहीं लगाते। हे न अन्न का अपनमान और देवी के भोग का अपमान । वैसे हम भोग का एक दाना भी जमीन पर नहीं गिरने देना चाहते  लेकिन हम में आस्था का स्वरूप बिगड़ा हुआ है कहना न होगा आस्था है ही नहीं ।


Friday, 14 October 2022

muktak

 छोटी सी खता से भी हो जाये पानी 

हाथ न छोड़ो उसका पूरी जिंदगानी

छोटी सी पतवार भी काट देती है 

विषाल उफनते समंदर का पानी 

Wednesday, 12 October 2022

kavita astitva

 तू है तेरे आस्तित्व के लिये दुनिया से लड़ा था मैं 

दुःख आया तो तू कहाॅं है तू कहीं नहीं है अड़ा था मैं 

जर्रे जर्रे में तू है तो मुझे बता ए ईष्वर

नन्हीं बच्ची को कुचला गया तब क्या षीषे में जड़ा था

दरख्त पर बैठी चिड़िया को बाज लेकर उड़ गया

कुछ देर पहले चिड़िया ने भी कीड़े का घर उजाड़ा था।


लोग तो धरती से आसमान में उठ झूम उठते हैं 

    पर यह चांदनी देखो  आसमान से धरती पर आकर खुष है ।


Tuesday, 11 October 2022

rishte

 ऽ आज की तेज रफ्तार जिंदगी में यदि किसी चीज से पीछा छुड़ाया जाता है तो वह है रिष्ते। सबसे नजदीक रिष्ते, सब फालतू रिष्ते हैं ,बोझ बन गये हैं रिष्ते। आज के ग्लोबलाइजेषन के जमाने में जमीन तलाषने की दौड़ में अपनों के भी सिर पर पैर रखकर चलते जाते हैं ।‘इटस माई लाइफ ‘ की रट लगाने वाली इस पीढ़ी ने जिस एक अहम् रिष्ते के महत्व ,गरमाहट,अपनेपन को भुला दिया है वह है बंधुत्व का रिष्ता। क्या कारण है कि जो सबसे नजदीकी है अर्थात् भाई या बहन क्योंकि जिनका रक्त एक है जो एक मां से उत्पन्न हैं आजकल सर्वाधिक दुष्मन वे ही हैं ।पहले कहा जाता था भाई  मुसीबत में काम आयेगा चाहे कुछ भी हो लेकिन अब भाई ही सबसे बड़ा दुष्मन हो गया है पहले कहा जाता था दुःख सुख  रोग ष्षोक में र्भाई ही काम आयेगा । लेकिन अब  भाई ही इन साबका कारण बनता है उसे भाई की रोटी ही कड़वी लगती है उसे छीनने के लिये गैरों का फायदा चाहे हो जाये पर भाई रोटी कैसे खारहा है यह भाव बढ़ता जा रहा है।तीज त्यौहार पर  घरवालों से रौनक हो जाती है माना जाता है पर अब घर वाले जैसे कुढ़े से बैठे रहेंगे कि यह अच्छे से त्यौहार क्यों मना रहा है ।छुट्टियों में यदि भाई के यहां जायेंगे तो कहेंगे छुट्टी बरबाद हो गईं। अगर अब नजदीकी हो गया है वह है दोस्ताना। छुट्टियां दोस्तों के साथ बिताना रोमांचकारी है। इसका मुख्य कारण है बचपन में ही प्रतिस्पर्धा के बीज बो दिये जाते हैं और म न ही मन दुष्मन बना  दिया जाता है

Monday, 10 October 2022

dharm ka apmaan

 ऽ हिंदू धर्म स्वयं अपना धर्म खराब कर रहा है ।जिन मूर्तियों को पूजता है उन्हें नदी में समुद्र में या पेड़ों के नीचे रख कर इतिश्री कर लेता है जिन्हें आपने पूजा जिनपर आप झूठी उंगली भी नहीं रख सकते  वे  पड़ी रहती हैं कूड़े के ढेरों पर कुत्ते उन पर पेषाब करते हैं आप पर तब कोई असर नहीं होता ।गणेष चतुर्थी महाराष्ट्र का प्रमुख त्यौहार है। होता तो सभी राज्यों में है अब सब प्रदेषों में प्रमुखता से मनाया जाने लगा है अन्य प्रदषों में भी बड़ी बड़ी मूर्तियां रखी जाने लगी हैं यही हाल नव दुर्गा का है। नवदुर्गा बंगाल का प्रमुख त्यौहार है पर अब हर प्रदेष में उसी ढंग से मनाया जाने लगा है। पूर्व में नव दुर्गा  पर  कुछ प्रमुख  चैराहों पर पंडाल सजता था लेकिन अब हर प्रदेष में हर बस्ती हर चैराहे पर हर मुहल्ले में दुर्गाजी और गणेष जी की बड़ी बड़ी मूर्तियां सजाई जाती हैं। बस्तियों में विषेष रूप से सजते हैं नौ दिन तक नाच गाना आदि होता है फिर दसवें दिन विसर्जन किया जाता है। टैम्पो मिनी ट्रक आदि करके बस्ती वालेां के संग विसर्जन करने जाया जाता है इन सब पर  खूब पैसा खर्च किया जाता है।अष्लील गानों पर नाच गाना चलता रहता है सबसे अधिक दुःख होता है हिंदू धर्म मानने वालों का अपने देवी देवताओं की स्वयं के द्वारा की गई दुर्दषा । जब समुद्र के किनारे नदियों की तलहटी में और किनारों पर मीलों तक मूर्तिया रखी दिखती हैं टूटती हैं फूटती हैं तब किसी को दर्द नहीं होता ।

अब कपड़ों पर भी देवी देवता के प्रिंट आते हैं हम पहले तो तन पर पहनते हैं तन की गंदगी इन पर लगती है फिर पीट पीट कर उन्हें धोया जाता है फटने पर झााड़पोंछ के काम लिया जाता हैं कार्ड आदि पर देवी देवता की तस्वीर छापते हैं फिर वह कार्ड कूड़ा उठाने के काम आता है । अपने देवी देवता का अपमान जब हम स्वयं करते हैं तो दूसरे करें तो क्या बात है ।


Sunday, 9 October 2022

muktak

 लोग तो धरती से आसमान में उठ झूम उठते हैं 

पर यह चांदनी देखो  आसमान से धरती पर आकर खुष है ।

Saturday, 8 October 2022

pita ka hath

 जिसके कंधे पर पिता का हाथ है 

उसको सारी दुनिया का साथ है

जिनको मिलती हैं माॅं बाप की दुआऐं

हिम्मत नहीं सागर  उनकी नाव डुबाये ।


Friday, 7 October 2022

apna apna najriya

 ऽ समाज को देखने का अपना अपना नजरिया है गिलास आधा खाली है या आधा भरा। हमने एक महिला से पूछा आपका क्या ख्याल है स्त्रियों की स्थ्तिि पहले से बेहतर हुई है’। वह महिला बोली,‘महिलाऐं और दमित हुई हैं कोई स्थिति बेहतर नहीं है। पहले भी संसद में गिनी चुनी महिलाऐं थीं अब भी गिनी चुनी ही हैं जबकि आबादी तिगुनी से  अधिक हो गई है षिक्षा ने पैर पसार लिये हैं।’

दूसरी महिला से पूछा वह बोली ,‘महिलाऐं हर स्थान पर अपने को स्थापित कर रही हैं।स्पेस में जा रही हैं तो बड़े बड़े पदों पर पहुंच रही हैं पुरुष से एक कदम आगे ही हैं महिलाऐं।’ तो यह अपना अपना नजरिया है ऐसे ही हर लेखक का दृष्टिकोण समाज को देखने का अलग हो सकता है और पाठक का समझने का । तुलसी दास के राम चरित मानस की व्याख्या हर व्याख्याकार अलग अलग ढंग से करता है ।


Thursday, 6 October 2022

मेरा घर

 घर


मेरा घर बोलता है मुझसे

आंख झपकाता है कमरा

पलंग देख मुस्कराता है

चादर गरमाता है

स्ुाकून देता है घर

प्यारा प्यारा सा होता है घर

सारी दुनिया घूम आओ

अंतिम डगर है घर

थके पांव मंजिल आ जाये

अंतिम सफर का पड़ाव है घर


डाक्टरी पेशा

 ऽ डाक्टरी पेषे में व्यावसायिकता आ गई है इसके पीछे क्या  सामाजिक विषमताऐं नहीं हैं? आज हम देख रहे हैं कुछ व्यावसायिकश्कोर्स ऐसे हैं जिनमें 22 से 24््््् साल की उम्र में ही बच्चे उच्च वेतनमान पाने लगते हैं । वहां षुरूआत 30 हजार से काॅलेज कैॅपस से निकलते ही हो जाती है और यदि षीर्ष स्थान मिल जाता है तो एक करोड़ प्रति माह तक वेतन मिल जाता है। हर व्यक्ति को प्रतियोगिता से प्रवेष नहीं मिलता है तो डोनेषन 1 से 6 लाख तक है जब कि डाक्टरी पेषे में पहले चार साल  की पढ़ाई उसके बाद इन्टर्रनषिप । एम. बी .बी एस मा़त्र बीए की पढ़ाई रह गई है । विषे ज्ञता हासिल करना आवष्यक है उसका डोनेषन 20 से 50 लाख है। इस प्रकार डाक्टरी पढ़ाई करते व्यक्ति 30 से 32 साल का हो जाता है । करोड रुपया षिक्षा प्राप्त करने में लगता है़ उतना रुपया यदि बैंक ब्याज की भी मानें तो अच्छी खासी आय हो जाये। यदि गाॅंव में डयूटी लग जाती है तो  इसके लिये आना जाना आदि इतना खर्च हो जाता है कि 20 हजार की आय घर चलाने के लिये काफी नहीं होती ।

ब्हुत योज्ञता वाले डाक्टर की अधिक से अधिक 30 या 40 हजार की मैडीकल काॅलेज में नियुक्ति हो जाती है। ऐसे में अतिरिक्त आय के लिये पेषे में सेंध मारनी ही पड़ती है । नेता की प्रतिज्ञाऐं किसी डाक्टर से कम नहीं होती ,लेकिन नेता बनते ही सब भूल जाते हैं। सूखा प्रदेष में हो उनके घर बाढ़ आ जाती है बाढ़ हो तब तो सैलाब ही आ जाता है । चारों ओर के सामाजिक परिवेष को देखते हुए यदि डाक्टर थोड़ी बेईमानी महज अपने कमीषन के लिये करते हक्े तो क्या इसके पीछे यह भावना नही है कि बिलकुल सटीक इलाज हो जाये जब कि विज्ञान ने प्रगति  करली है और बीमारियों ने भी प्रगति कर ली है। साधारण बुखार भी मारक निकलता है तब दो   डाक्टर का ही माना जाता है कि ऐसा बेवकूफ डाक्टर है जाॅंच तक नहीं कराई । हर व्यक्ति डाक्टर के पास जाता है वह यह सोच कर जाता है कि उसे बहुत बडी बीमारी है । यदि़ सधारण दवा लिख देता है तो डाक्टर अयोग्य समझा जाता है । 


Sunday, 2 October 2022

ese the bapu

 ऐसे थे हमारे बापू


उन दिनों बापू बिहार के चंपारण जिले में थे ,आंदोलन अपने चरम पर था । बापू के पास   वाइसराय की  खबर आई कि षीध्र मिलें क्योंकि बात बहुत आवष्यकत है इसलिये हवाई  जहाज से आजायें  बापू ने कहा हवाई जहाज में भारत के   करोडों़ गरीब यात्रा नहीं कर सकते  तो वे कैसे सफर करेंगे, वे रेल मार्गं से ही  आयंेगे ।

गाॅधी जी ने मनु से यात्रा के लिये आवष्यक सामान लेकर रेल के तीसरे दर्ज का इतंजाम करनेके लिये कहा  साथ  ही   मनु बहन से कहा कि सामान कम लेना और तीसरे दर्जे का छोटा  डिब्बा लेना।

मनु बहन ने  डिब्बा तो छोटा चुना लेकिन वह दो भाग का था । एक में बापू के सोने का  इंतजाम था और दूसरे में सामान मनु बहन जानती थी कि जिसे भी पता चलेगा बापू वहाॅ से  गुजर रहे है लोगों की भीड़ होगी इसलिये बापू को असुविधा होगी ऊपर से खाना भी तैयार करना होता था।

पटना से रेल प्रातः 8 बजे रवाना हुई मार्च का महिना था । बापू 9 बजे भोजन करते  थे मनु बहन दूसरे डिब्बे खाना तैयार करने के बाद उस डिब्बे में आई जहाॅ बापू  बैठे थे वे कुछ लिख रहे थे बापू ने मनु बहिन से पूछा ,‘ कहाॅ थीं।’

‘दूसरे डिब्बे में खाना तैयार कर रही थी,’ ‘  जरा खिडकी से बाहर झांको ’ मनु बहन ने झांका तो देखा कई लोग दरवाजे के डंडे को पकड कर लटक रहे हैं । बापू ने मनु बहन को झिड़कते कहा,‘ इस दूसरे कमरे को तुमने कहा था ’मनु बहन बोली,‘ हाॅ मैंने सोचा यहीं खाना वगैरह बनेगा तो  आपको दिक्कत होगी।’

‘इसे कहते हैं ’’अन्धा प्रेम’’,’ बापू ने कहा ,‘तुम सैलून भी मांगती मिल जाता पर क्या षोभा देता है दूसरा कमरा भी सैलून के बराबर हो गया।’’

मनु बहन की आँखों से आंसू टपक पडे यह देखकर बापू बोले ’’अगर बात समझ रही हो तो ये आंसू मत टपकाओ, अगले स्टेषन पर स्टेषन मास्टर को बुलाना और सारा सामान यहीं लेआना’’।

मनु बहन ने सामान हटा लिया लेकिन मन नही मन घबरा रही थी कहीं बापू उपवास न कर बैठें उसकी भूल को वो अपनी भूल मान लेते हैं।

स्टेषन आया स्टेषन मास्टर के आने पर बापू ने कहा ’’यह लडकी मेरी पोती है भोली भाली है, इसे नहीं मालुम क्या करना है इसने दो कमरे ले लिये इसमें मेरा दोश है ,कहीं मेरी सीख में ही कोई कमी है पर अब दूसरा कमरा खाली कर दिया है बाहर जो लोग लटक रहे हैं उन्हें बैठाइये।’’

स्टेषन मास्टर ने कहा कि बापू परेषान न हों जो लटक रहे हैं उनके लिये दूसरा डिब्बा लग जायेगा।

बापू ने कहा ’’डिब्बा तो जरूरत है तो जरूर लगवाइये पर हमें भी जितनी जगह जरूरी है उतनी ही चाहिये बाकी आप उपयोग में लाइये।’’

जब बाहर लटकते लोग बैठ गये तब बापू चैन से बैठे।बात 1909 की है बापू अफ्रीका में थे वे गोरों के विरूð लड रहे थे उनका यष चारों और फैल गया था उनका  नाम बहुत आदर से लिया जाता था इसी प्रसंग में वे लन्दन गये वहाँ भारत की आजादी के लिये अनेक नवयुवक आगे बढ रहे थे उनमें सावरकर भी थे। सावरकर को ज्ञात हुआ कि गाँधी जी लन्दन में हैं उनहीं दिनों भारत के कुछ प्रमुख नेता भी लंदन में थे। उन नवयुवकों ने एक समा बुलाने का निष्चय किया और उसके लिये गाँधी जी को सभपति बनाया सभा  करने के लिये एक खुले स्थान का चयन किया गया जहाँ पहले सभी के लिये भोजन उसके बाद सभा का आयोजन था।

हर प्रंात के युवक वहाँ जुड़ने लगे ,आते और कोई न कोई काम अपने हाथ में ले लेते कोई झाडू लगा रहा था  कोई सब्जी साफ कर रहा था कोई काट रहा था उन्हीं में एक दुबला पतला हिन्दुस्तानी बैठकर सब्जियाँ काटने लगा। सभी हिन्दुस्तानी भारत के अलग-अलग राज्यों के थे कोई पहचानता नहीं था पर काम में लगे थे सब।

       दोपहर का खाना बनते खाते षाम हो गई वह दुबला पता हिन्दुस्तान थालियाँ साफ करने लगा। आखिर में सभा के उपप्रधान वहाँ आये उनकी नजर उस दुबले पतले हिन्दुस्तानी पर पडी वे चैंक पडे और आंखे फाड़ कर उस हिन्दुस्तानी को देखने लगे तो आसपास के नवयुवकों ने उपप्रधान से पूछा कौन हैं ये, क्यों?’

धीरे से उपप्रधान बोले,‘ गाँधी जी,’ एकदम से वह हाॅल भ्न भननाहट से गूॅज उठा,‘ गाॅधी जी गाॅधी जी’’

‘गाॅधी जी तो हमारे सभपति हैं वे यहाॅ ’सारे युवक दंग रह गये कोई उनके हाथ से थाली लेने लगा कोई जूना पर गांधी जी ने बराबर सबके साथ काम किया फिर सभापति बनकर भाशण दिया।.       .   .

आश्रमों में बापू का नियम था कि सब अपना काम अपने आप करें या मिलकर करें पर कोई सेवादार नहीं होगा। कोचरब आश्रम में भी सब काम अपने आप ही करते थे। आश्रम के लिये पानी भी कुएॅ से लाया जाता था कुॅआ सडक के दूसरी तरफ था पानी वहीं से भरकर लाया जाता था।

एक रात बापू को काम करते देर हो गई। सुबह नियमित समय पर उठकर आटा पीसने लगे पानी भरने का समय हुआ तब उस समय गाॅधी थकान महसूस कर रहे थे। साथ ही उनके सिर में दर्द भी होने लगाा।

आश्रम के लोगोें ने बापू से कहा कि अब बहुत काम कर लिया वे आराम करें पानी वे भर लेगें। लेकिन बापू  कुॅए पर पहुॅच गये और घड़ा मांगने लगे । एक भाई आश्रम से छोटे-छोटे बरतन उठा लाया और छोटे बालकों को बुला  लाया छोटे-छोटे बरतन बालकों को पकडा देते वे दौडकर आश्रम में बडे़ बरतन में डाल आते बापू की बारी वे भाई आने ही नही दे रहे थे बच्चे भी यह समझ गये थे कि बापू से इस समय वे काम नहीं कराना चाह रहे हैं तो पहले खड़े हो जाते और बापू की बारी से पहले ही बरतन हाथ में ले लेते।

   पर बापू भी कहाॅ मानने वाले थे वे आश्रम में कोई बरतन देखने लगे उन्हें कोई बरतन नहीं दिखा बच्चों को नहलाने का टब रखा था वे ही उठा लाये और उसे लेकर खडे हो गये भर दो इसे।’’

’’पानी खींचने वाले भाई अचकचा गये इसे कैसे उठायेगें उठा लूॅगा भर दो इसे’’।

वह व्यक्ति समझ गया बापू नहीं मानेगें। चुपचाप उन्हें घड़ा पकडा दिया।

बापू नोआखली में गली-गली घूम रहे थे। नोआखली की गलियाॅ बहुत संकरी थी साथ ही साथ गंदी भी बहुत  थी जगह-जगह नाक थूक मल पड़ा रहता था। बापू नंगे पैर चलते थे उन्हें देख देखकर बहुत दुःख हो रहा था। एक जगह चलते चलते एकदम रुके आस पास से पत्ते उठाये और बीच राह में पडे मल को उठाकर फेंक दिया।

मनु बहन पीछे-पीछे चल रही थी वह अचकचा कर बोली बापू क्यों षर्मिन्दा करते हैं मैं उठा देती खुद ही क्यों  साफ किया।’’  ‘क्यों मैंने कर दिया तो ,बापू नेकहा’’ कहने की बजाय खुद करने में  कुछ तकलीफ है’’? मनु बहन ने कहा ,‘अब इतने गाॅव वाले देख रहे हैं।’’

बापू बोले ,‘यह तो और भी अच्छा है इन लोगों को सबक मिलेगा ,देखना कल मुझे ये काम नहीं करने पडेगें।’’

‘हो सकता है केवल कल गाॅव वाले रास्ता साफ कर दें फिर न करें तब।’’

‘तब फिर तुम्हें देखने भेज दूंगा और अगर रास्ता गंदा मिला तो साफ कर जाऊँगा।’

दूसरे दिन बापू ने वास्तव में मनु बहन को रास्ता देखने भेजा। रास्ता गंदा ही था मनु बहन खुद ही रास्ता साफ  करने लगी गाॅव वालों ने देखा और बहुत षर्मिन्दा हुए और सबने मिलकर रास्ता साफ कर दिया और मनु बहन को बचन दिया कि आगे वे हमेेषा सड़कें साफ रखंेगें।

लौटकर मनु बहन ने गाॅधी जी को पूरा वर्णन बताया तो बापू बोले,‘ अरे तुमने पुण्य ले लिये यह तो मुझे करना  था चलो दो काम हुए एक तो अब सफाई रखेगें। दूसरा देखते हैं वचन निभाते हैं कि नहीं।’

सबका हिस्सा


सन् 1916 की बात है। लखनऊ में कांग्रेस का महाअधिवेशन था। गांधी जी उसमें सम्मलित होने आये थे। चम्पारन जिले में बहुत गरीबी हैं एवम् लोगों को बहुत कष्ट हैं जानकर गांधीजी चम्पारन पहुँचे। साथ में कस्तूर बा भी थीं राजकुमार शुल्क ने वहाँ के लोगों की कष्ट गाथा गांधीजी केा सुनाई। कस्तूबा घर घर जाकर वहाँ की औरतों से मिलने लगी। 

एक दिन कस्तूबा भितिहरवा गाँव में गयी। वहाँ किसान औरतों के कपड़े बहुत गंदे थे। बा ने औरतों को समझाया कि गंदगी से तरह-तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं इसलिये सफाई आवश्यक है।

इस पर एक गरीब किसान औरत, जिसके कपड़े बहुत गंदे थे, कस्तूरबा को अपनी झोंपड़ी मेें ले गयी और अपनी झांेपड़ी दिखला कर बोली ,‘माँ हम बहुत गरीब है हमारे घर में कुछ नहीं है। बस एक यही धोती है जो मेरी देह पर है,क्या पहनकर इस धोती का धोऊँ। अगर गांधी जी से कहकर मुझे एक धोती दिलवा दे तो में धोती साफ रखूँ।’

गांधीजी यह बात सुनकर सोच में पड़ गये। गरीबी की अति से वह अवाक् रह गये थे। उन्होंने सोचा लोगोे के पास तन ढकने के लिए पूरे कपड़े नहीं हैं और हम धोती, चादर कुर्ता, बनियान इतने कपड़े पहनते हैं। जब सबके पास कपड़े नहीं है तो हमें इतने कपड़े पहनने का क्या अधिकार है। 

बस गांधीजी ने उसी दिन से केवल लंगोटी पहनकर तन ढकने की प्रतिज्ञा कर ली।




डाॅ॰ शशि गोयल

3.28ए/2, जवाहरनगर रोड 

खंदारी चैराहा, आगरा-282008