Sunday, 7 January 2018

चेहरा जरूरी है

एकल परिवार ने संवेदनशीलता  भी ख़त्म कर दी है अब किसी से किसी को कोई मतलब नहीं है अधिकांश बच्चे ौकरी करना पसंद करते हैं क्योंकि  प्रकार का बंधन अब उन्हें स्वीकार नहीं केवल वे और  परिवार उसके अंदर माँ बाप भी नहीं आते  विवाह   निमंत्रण रहता है  दावत के समय आये खाया पिया हाथ पोंछे और चल दिए इतने ही  होते हैं परन्तु मृत्यु तो ऐसा  विषय नहीं है  रौनक या मनोरंजन का साधन हो पर अब स्वांतना  का समय भी एक सजा है उठावनी मैं चेहरा दिखने जाते हैं कुछ तो ठीक पांच मिनट पहले ही पहुंचेंगे जिससे भीड़ से बच सकें सबसे अंत मैं पहुंचेंगे  घर परिवार के  पर हाथ जोड़ ने पहुंचते हैं सबसे पहले हाथ जोड़े और गायब चेहरा दिख दिया हो गया अफ़सोस अगर  कुछ पहले पहुँच गए तो घडी देखते रहेंगे कि कितनी देर और बैठना पड़ेगा अगर बोलने  पांच या दस मिनट  ले लेंगे तो उनकी बेचैनी देखने काविल होती है। एक परिवार के इकलौते युवा पुत्र की मृत्यु हो गई  ही भीड़ हो गई एक तो प्रतिष्ठित परिवार ऊपर से युवा मृत्यु जिसका जरा सा भी सम्बन्ध ता वह उठवनि मैं पहुंचा सबसे मिलना  तड़पती माँ और हताश बाप क लिए संभव नहीं था उस समय वहां कैसे बैठे थे यह उनका ईश्वर जनता था इसलिए यह घोषणा कर दी गई  वहीं से हाथ जोड़ लें आप सबकी हमारे साथ सहानुभूति है इसके लिए धन्यवाद    चेहरा ही नहीं दिखा सके तो  निराश हो गए बहुत से लोगों के शब्द थे बेकार ही आये समय  बर्बाद हो गया। 

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