Wednesday, 17 January 2018

शादी तब और अब

कभी बचपन मैं देखा था यद्यपि ताऊ चाचा सब अलग अलग घरों  रहते थे क्योंकि एक घर मैं सब समां नहीं पपाते थे  हम भाई बहन भी तो अच्छे खासे होते थे तब एक दो से  कहाँ चलता था एक दो  बच्चे गिने ही नहीं जाते थे  अगर एक के यहाँ  शादी है तो सुबह से ही  सब बड़े  काम संभल लेते काम की  बनती और सब घरों के  बच्चों को काम सौंप  जाते तुम हलवाई के पास बैठना है तुम्हे मसाले हैं तुम्हे गद्दों बगैरह का इंतजाम  करना है तुम्हे पत्तल सकोरे लेन हैं   कोठियार पर रहती  तै चची रोज आकर सब सामान तैयार कराती पापड़ मंगोड़ी यहाँ  पूजा पंडित जी तक का सामान सब तैयार होता घर वाले भी उतना ही करते जितने और सब चुटकियों मैं  शादी  तयारी हो जाती एक चची कहती अरे   तैयार कर दूँगी घर घर पापड़ बिलने चले जाते बेटी के यहाँ टंकी भर मंगोड़ी पापड़ जाते थे अब  तो एक ही वाक्य सुनने को मिलेगा  यहाँ यह सब मत भेजना उठेगा नहीं बाँटना  आजकल  कोई जानता नहीं। ऊपर से यह कि सब बाजार मैं मिलता है ताजा लाओ  तीन चार दिन बारात रहती  ढाई सौ   घराती  तीन बड़ी दावत  पत्तल की  दावतें घर के सदस्य  इतने  होते कि  आराम से खाना होता पर अब महीनो  से तैयारी होती है  लोग  हैं  करने वाले दो  होटल मैं दावत की  खाली हाथ गए खाली हाथ  आये।  हाँ अब सब कुछ रेडी मेड  है पर नहीं मिलता है तो परिवार का प्यार रिश्तों की सुगंध नहीं मिलती है नेग तेलों की रौनक जब गीत गेट नाचते सात दिन ग्यारह दिन सत्रह दिन निकल जाते  न एक समारोह तब लगता शादी है  पल पल गीतों के साथ  ठट्ठों  के साथ कभी कुंवारी कन्या पूज  रही है  कभी तेल चढ़ रहा है कभी तेल उतर  हल्दी चढ़ रही है रतजगा हो रहा है हस्ते बोलते सारा परिवार उत्सव मनाता था अब एक शाम बस जैसे कोई गैरो की शादी है बारात के समय गए लिफाफा पकड़ाया खाना खाये घर आये हो गयी खास रिश्तेदार  यहाँ शादी।  शादी की एक शाम बस 

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