कभी बचपन मैं देखा था यद्यपि ताऊ चाचा सब अलग अलग घरों रहते थे क्योंकि एक घर मैं सब समां नहीं पपाते थे हम भाई बहन भी तो अच्छे खासे होते थे तब एक दो से कहाँ चलता था एक दो बच्चे गिने ही नहीं जाते थे अगर एक के यहाँ शादी है तो सुबह से ही सब बड़े काम संभल लेते काम की बनती और सब घरों के बच्चों को काम सौंप जाते तुम हलवाई के पास बैठना है तुम्हे मसाले हैं तुम्हे गद्दों बगैरह का इंतजाम करना है तुम्हे पत्तल सकोरे लेन हैं कोठियार पर रहती तै चची रोज आकर सब सामान तैयार कराती पापड़ मंगोड़ी यहाँ पूजा पंडित जी तक का सामान सब तैयार होता घर वाले भी उतना ही करते जितने और सब चुटकियों मैं शादी तयारी हो जाती एक चची कहती अरे तैयार कर दूँगी घर घर पापड़ बिलने चले जाते बेटी के यहाँ टंकी भर मंगोड़ी पापड़ जाते थे अब तो एक ही वाक्य सुनने को मिलेगा यहाँ यह सब मत भेजना उठेगा नहीं बाँटना आजकल कोई जानता नहीं। ऊपर से यह कि सब बाजार मैं मिलता है ताजा लाओ तीन चार दिन बारात रहती ढाई सौ घराती तीन बड़ी दावत पत्तल की दावतें घर के सदस्य इतने होते कि आराम से खाना होता पर अब महीनो से तैयारी होती है लोग हैं करने वाले दो होटल मैं दावत की खाली हाथ गए खाली हाथ आये। हाँ अब सब कुछ रेडी मेड है पर नहीं मिलता है तो परिवार का प्यार रिश्तों की सुगंध नहीं मिलती है नेग तेलों की रौनक जब गीत गेट नाचते सात दिन ग्यारह दिन सत्रह दिन निकल जाते न एक समारोह तब लगता शादी है पल पल गीतों के साथ ठट्ठों के साथ कभी कुंवारी कन्या पूज रही है कभी तेल चढ़ रहा है कभी तेल उतर हल्दी चढ़ रही है रतजगा हो रहा है हस्ते बोलते सारा परिवार उत्सव मनाता था अब एक शाम बस जैसे कोई गैरो की शादी है बारात के समय गए लिफाफा पकड़ाया खाना खाये घर आये हो गयी खास रिश्तेदार यहाँ शादी। शादी की एक शाम बस
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