वर्ष तो बीत गया
पर हमारे अन्दर
न जाने कितने
एहसासों को भर गया
कितने पन्ने हवा मे
फडफडाते बदल गए
कली नीली और सुनहरी
स्याही मैं लिखी गई
कलेंडर बदल गया
कील नहीं बदली
जिया है जिसने हर दिन को
अपने साथ
पर हमारे अन्दर
कितने अहसासों को भर गया
लम्बा पथ नए नए निर्देशों के साथ
निकल गया अपनी रह पर
दे गया गुजरे वक्त की यादें
कुछ खट्टी कुछ मीती बातें
कुछ प्यार भरी मुलाकातें
आने वाले दिनों की नई फरियादें
हर दिन मैं जिन्दगी का दर्शन
जिन्दगी का अपना आकर्षण
पर हमारे अन्दर
न जाने कितने
एहसासों को भर गया
कितने पन्ने हवा मे
फडफडाते बदल गए
कली नीली और सुनहरी
स्याही मैं लिखी गई
कलेंडर बदल गया
कील नहीं बदली
जिया है जिसने हर दिन को
अपने साथ
पर हमारे अन्दर
कितने अहसासों को भर गया
लम्बा पथ नए नए निर्देशों के साथ
निकल गया अपनी रह पर
दे गया गुजरे वक्त की यादें
कुछ खट्टी कुछ मीती बातें
कुछ प्यार भरी मुलाकातें
आने वाले दिनों की नई फरियादें
हर दिन मैं जिन्दगी का दर्शन
जिन्दगी का अपना आकर्षण
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (04-01-2018) को "देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री फुले" (चर्चा अंक-2838) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूबसूरत रचना शशि जी,
ReplyDeleteकील नहीं बदली
जिया है जिसने हर दिन को
अपने साथ
पर हमारे अन्दर
कितने अहसासों को भर गया...