Monday, 8 September 2025

manavta ke par pul 5

 घटक एकण्दूसरे के विपरीत होने के बजाय प्रत्येक जोड़ी को पूरक के रूप में देखा जाता हैए प्रत्येक का अस्तित्व दूसरे पर निर्भर करता है। यिन और यांग कैसे बातचीत करते हैं इसकी उचित समझ मनुष्य के लिए अपने आसपास की दुनिया को समझने के लिए आवश्यक मानी जाती है। यही कारण है कि कन्फ्यूशीवाद और ताओवाद दोनों में भविष्यवाणी यया भाग्य बतानेद्ध प्रथाओं का समृद्ध इतिहास है। यिन और यांग की रूपरेखा को एक शक्तिशाली भविष्य कहनेवाला उपकरण माना जाता था क्योंकि यह ब्रह्मांड के क्रम को बहुत सटीक और निर्बाध रूप से वर्णित करता था। एक ही दुनिया का अर्थ निकालने की खोज में विज्ञान और धर्म की दुनिया के ओवरलैप होने का एक और उदाहरण प्रदान करने के लिएए 

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अग्रणी क्वांटम भौतिक विज्ञानी नील्स बोह्र पर विचार करेंए जो यिनण्यांग और व्यवहारों की पूरकता के बीच पाई गई समानता से बहुत प्रभावित हुए थे। क्वांटम स्तर पर कणों के बीच देखी गई पूरकता के कारण उन्होंने केंद्र में यिनण्यांग प्रतीक के साथ हथियारों का एक पारिवारिक कोट डिजाइन किया।

 यहां तक कि हमारी जैसी मानवरूपी प्रजाति को भी एहसास हुआ है कि ब्रह्मांड में एक असाधारण व्यवस्था है जो हमसे स्वतंत्र है ण् ज्वारए तारे याए घर के करीबए जिस तरह से हमारी कोशिकाएं विभाजित होती हैं और बढ़ती हैं। विविध जीवनरूपों के जाल में एक व्यवस्था है जो हमसे कहीं अधिक लंबे समय से अस्तित्व में है। गैलापागोस द्वीप समूह की अद्भुत जैव विविधता के माध्यम से चल रहे तार्किक क्रम को समझकर ही चार्ल्स डार्विन प्राकृतिक चयन के अपने सिद्धांतों को तैयार करने में सक्षम हुए थे। इस तरह से देखने का आदेश दिया गया था कि पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ विशिष्ट रूप से अपने विशिष्ट वातावरण के लिए अनुकूलित थींए प्रत्येक की अपनीण्अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अलगण्अलग आकार की चोंच होती थीं।

 समय और स्थान के पारए हम ब्रह्मांड में दिखाई देने वाली व्यवस्था का वर्णन करने के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं। हम अपने विश्वदृष्टिकोण और व्यवहार को तदनुसार लगातार समायोजित कर रहे हैं। संस्कृतियों और धर्मों में विश्वासों और विचारों की यह विविधता ब्रह्मांड के रहस्यों को किसी डरावनी चीज़ के बजाय सुंदर और रोमांचक चीज़ में बदल देती है। क्या ब्रह्माण्ड में कोई मौलिक व्यवस्था हैघ् क्या इन सबके पीछे कोई उच्च शक्ति हैघ् यदि ब्रह्माण्ड इस प्रकार पूर्वनिर्धारित है तो क्या हमारे पास सचमुच स्वतंत्र इच्छा हैघ् या क्या यह सब कथित क्रम कुछ ऐसा है जो मुख्य रूप से हमारे दिमाग में मौजूद हैघ् हमारे चारों ओर व्यवस्था की इस भावना के प्रति हमारी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिएघ् ये वे प्रश्न हैं जिनसे सभी धर्म जूझते रहे हैं। 

मेरा अपना रुख यह है कि ब्रह्मांड को क्रमबद्ध देखने से मुझे अपने सीमित ज्ञान को पहचाननेए खुद को व्यापक दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलती है। मैं मृत्यु को नहीं समझताए लेकिन मुझे विश्वास है कि मृत्यु ब्रह्मांड की प्राकृतिक व्यवस्था का हिस्सा है और यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि मेरा जीवन कैसा होना चाहिए। मैं अपने जन्म के लिए जिम्मेदार नहीं थाए न ही मैं अपनी मृत्यु के लिए जिम्मेदार हूंए लेकिन मुझे इस विचार से शांति है कि मैं ब्रह्मांड में आदेश का पालन करते हुए एक दिन मर जाऊंगा। मेरे लिएए आस्था का अर्थ अघुलनशील प्रश्नों के बारे में अंध और हठधर्मी विश्वास होना कम है और मेरे नियंत्रण से परे चीजों के प्राकृतिक क्रम पर भरोसा करना अधिक है। व्यवस्थित ब्रह्मांड में मेरा विश्वास मुझे जीवन में शांति लाता है। हालाँकि मैं चीज़ों के बारे में अपनी धारणाएँ बनाए रखता हूँए लेकिन वे नए अनुभवों और उन लोगों के साथ बातचीत के कारण जीवन भर बदलती और विकसित होती 


रही हैं जो मुझसे बहुत अलग हैं। धर्म की विद्वान मैरिएन मोयार्ट लिखती हैंए श्परिपक्व आस्था महत्वपूर्ण आस्था के बाद की आस्था है। यह विश्वास इस दृढ़ विश्वास पर आधारित है कि सत्य परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों के बीच संवाद में खुले स्थान में उभरता है।श् 14 इस प्रकार का विश्वास मैं अपने जीवन में विकसित करने का प्रयास करता हूं। 


Sunday, 7 September 2025

manavta ke par pul 4

 लेकिन अधिकांश पुस्तकों द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण विभिन्न धर्माें के विवरण को खत्ते में डालना है  । हम इसे अलग तरीके से देख रहे हैं। हम प्रमुख विषय लेते हैं और दिखाते हैं कि कैसे अधिकांश धर्मों में उसी विषय के कुछ प्रकार होते हैं इस क्षैतिज दृष्टिकोण को अपनाकर ;एक विषय लेकर और दिखा कर कि यह विभिन्न धर्मों और अन्य ज्ञान प्रणालियों का हिस्सा कैसे हैद्ध, हमारा लक्ष्य है हमारे पाठकों के लिए विभिन्न धर्मों के बीच पुल बनाने और प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें प्रत्येक विषय पर विचार करना होगा और अलग.अलग विषयों पर आगे.पीछे जाना होगा  और जितनी बार चाहें। इससे परस्पर.धार्मिकता और गहरी होगी ,अनुभव और उम्मीद है कि केंद्रीय चित्रण में यह हमारा किताब का षोध बहुत अधिक प्रभावी होगा यदि हम धर्म को एक प्रमुख अर्थ.निर्माण3 तकनीक के रूप में देखें

 जैसा कि मनुष्यों ने सभी सभ्यताओं में उपयोग किया है, यह हमें एक तार्किक कारण देता है सभी धर्मों का सम्मान करनाण् अर्थ प्रकट करने का हमारा साझा तरीका हमारे अलग.अलग संदर्भों के कारण अलग.अलग और पर निर्भर भी है हमने अपना संज्ञानात्मक टूलकिट किस हद तक विकसित किया है। हम फिर से दौरा करेंगे अंतिम अध्याय में अधिक विस्तार से अर्थ.निर्धारण, क्योंकि यह इनमें से एक है प्रमुख जानकारियां जो हम आपके साथ साझा करना चाहते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हम चाहते हैं लोगों को उस खूबसूरत विविधता से प्यार करने और उसका जश्न मनाने में मदद करें जो मौजूद है। हम इस विविधता को खतरे के बजाय एक अवसर के रूप में देखते हैं।

जब मैंने इनके बारे में गहराई से जानने का विचार मन में लाना शुरू किया समानताएं, मुझे मेरे दोस्तों ने अलग.अलग दिव्यता के स्कूलों से सावधान किया थारू ‘प्रत्येक धर्म की विशिष्टताओं के बारे में मत भूलना।’ मैंने वह सलाह गंभीरता से लीण् मैं विविध विशिष्टताओं का हम धर्मों में वैसे ही पाते हैं सम्मान और सराहना करता हूं जैसे मैं हमारे अस्तित्व के सभी पहलुओं में विविधता की सराहना करता हूं।


Wednesday, 3 September 2025

Amritsar 3

 प्रवेश द्वार के पास ही एक छोटा मार्ग प्रथम तल पर जाने के लिये है वहॉं एक संग्रहालय स्थित है। यह संग्रहालय कई कक्षों में विभक्त है। यहॉं सभी पूर्व गुरुओं  के जीवन से संबंधित कथाऐं  हस्त निर्मित चित्रों के माध्यम से वर्णित हैं तो आजादी की लड़ाई का भी चित्रों के माध्यम से वर्णन संरक्षित है। गुरुओं के अस्त्र शस्त्र उनसे संबंधित वस्तुऐं यहॉं भी रखी हैं । 1982 के हमले में खंडित हुए अकालतख्त और हरमंदिर साहब की पेंटिंग भी चित्रित है 

तथा उसके नीचे जो लिखा है उसका भावार्थ है ‘ इंंिदरा ने इस पवित्रस्थान को अपवित्र किया इसलिये उसकी  हत्या हुई ,उसने  जैसा किया वैसा पाया ’ ।

  गुरू पर्व से पहले दिन हम स्वर्ण मंदिर में थे  रोशनी से  मंदिर झिलमिला उठा था उसकी छाया पवित्र सरोवर में हजारों  दीपकों का आभास दे रही  थी । तीन बजे के समय दिन में हजारों  स्कूली बच्चे कतारबद्ध मंदिर के लिये जुलूस  के रूप में आये साथ ही विभिन्न अखाड़े अपना प्रदर्शन करते चल रहे थे। यह गुरूगोविंद सिंह के बेटों की याद में निकलता है । कलाकार  अपना कौशल दिखाते चलते हैं  जैसे चक्काघुमाना ,कोड़ा घुमाना, अग्नि मुॅह से निकालना आदि । स्वर्ण मंदिर में जो एहसास होता है वह है एकता का , संगठनात्मक शक्ति का, समर्पण , विनयभाव का पावनता का  इन सबसे  ऊपर भव्यता का ।

  जलियॉं वाला बाग  - स्वर्ण मंदिर से  कुछ आगे है श्रद्धा का मंदिर अल्फ्रेड पार्क । भव्यता से  बिलकुल दूर एक  साधारण सा  पुराना रास्ता जिसने ऐसा भयानक मंजर देखा है कि अच्छे अच्छे दिलेरों की रूह कॉंप जाये । कहा जाता है गोली कांड के समय तो वह रास्ता रोक दिया गया था लेकिन फिर उसने वहॉं से गुजरती लाशों को देख कर खून के ऑंसू अवश्य बहाये  होंगे , तब उसे अपने छोटेपन का पतलेपन का ऐहसास हुआ होगा उसने सोचा होगा  काश मैें अन्य  पार्कों की तरह चारो ओर से खुला रास्ता क्यों न हुआ। स्वर्ण मंदिर की भीड़ से दूर चंद लोग थे उस पवित्र मंदिर में। बाहर से  आये पर्यटक या स्कूलों से पिकनिक मनाने आये बच्चे ,कॉलेज से भागे प्रेमी  ही थे । युगल जो शहीद स्मारक के पीछे बैठे रास रचा रहे थे। यह वही स्थान है जनरल डायर ने क्रूरता का इतिहास रचा। आम निरीह जनता का समाधिस्थल एक पब्लिक पार्क में तब्दील हो चुका था। बीच बीच में विशेष स्थानों पर निर्माण करा दिये गये हैं और छोटे छोटे  बोर्ड लगा दिये गये हैं,कुछ दीवालों पर गोलियों के निशानों पर घेरे  बना दिये गये हैं । यहीं  समाप्त हो जाती है 13 अप्रैल 1919 को शहीद हुए दो हजार शहीदों की गाथा। एक  छोटा सा संग्रहालय है जिसमें उस क्रूर हत्याकांड की तस्वीरें और शहीद ऊधमसिंह का चित्र है जिसने 19 साल बाद जनरल डायर को मार गिराया। शहीदों की स्मृति में ज्योति के आकार का स्मारक है इसके आगे अमर ज्योति जलती रहती है शहीदी कुऐं को भी स्मृति स्वरूप दिया गया है लेकिन एकदम अंधेरा होने के  कारण दिन में भी कुए को देख पाना असंभव है बल्कि एक तरफ बना ऐसा लगता है कोई गैस्ट हाउस बना है ।


satrange desh main

 सतरंगे देश में



    ☺    मॉरीशस। छोटा सा द्वीप लेकिन प्रकृति ने जैसे सारी सुंदरता लुटा दी हो। मॉरीशस के हवाई अड्डे के प्रवेश द्वार पर सत्य ही लिखा है कि ‘स्वर्ग में आपका स्वागत है’ । डॉ॰ गिरीश गुप्ता जी के नेतृत्व में रैस्पैक्टेज संस्था के अन्तर्गत अठारह सदस्यीय दल 26 अगस्त को मॉरीशस के लिये रवाना हुआ। यद्यपि हमारा यह प्रवास एक वर्ष पूर्व था लेकिन वहाँ पर रहने की व्यवस्था का पुननिर्माण हो रहा था। इसलिये ठीक एक वर्ष बाद हमारा दल सद्भावना यात्रा के लिये रवाना हुआ। साढ़े नौ घंटे में से साढ़े सात घंटे समुद्र के ऊपर यात्रा कर हमारा विमान मॉरीशस के द्वीप पर पहुँचा तो देख कर ठगे से खड़े रह गये । बहुत स्थान का समुद्र देखा है लेकिन इतना शांत और सुंदर,‘ हरा समुंदर गोपी चंदन’ संभवतः यही से गये किसी यात्री की उक्ति होगी। 

चारों ओर नीला समुद्र उसके बाद हरा समुद्र, बीच में लाल माटी और हरियाली से परिपूर्ण द्वीप जैसे पन्ने की अंगूठी में मरकत और पन्ने के टुकड़े जड़े हों। सुनहरी बालू स्वर्ण का आभास देती है।

मॉरीशस के अंदर भारत धड़कता हेै। इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है 200 वर्ष पूरे हुए है । इसी वर्ष 2010 में उसके दो सौ वर्ष की जन्म शताब्दी मनाई गई है।मॉरीशस 61 किलोमीटर लंबा और 46 किलो मीटर चौड़ा है। इसकी गोद में कुछ छोटी-छोटी पहाड़ियाँ है। बहुत ऊँचे पहाड़ नहीं है 600 मी. से 800 मी. तक की ऊँचाई वाले पहाड़ मिलते हैं।

           हवाई अड्डे पर हृदय को अभिभूत कर देने वाला स्वागत । हुआ यह तो ज्ञात था कि वहाँ भारत को सब पसंद करते है । भारतीय परिधान पहने श्रीमती इंदिरा वर्मा ;उच्चारण वामाद्ध मि. भवानी आदि उपस्थित थे उन्होंने हिंदी में स्वागत किया तो बहुत अच्छा लगा वैसे वहाँ की भाषा क्रेयाल है जो फ्रंेच भाषा का ही रूप है। इंगलिश का स्थान बाद में हैं। हिंदी  समझते सब है लिखना वहाँ सबको नहीं आता है। अब हिंदी भाषा भी पाठ्यक्रम में स्थान ले रही है। 

हवाई अड्डे से सीधे हमें पहले वहाँ लगी मॉरीशस के इतिहास की प्रदर्शनी में ले गये  यह पैते कुआ नामक स्थान पर थी प्रदर्शनी का अंतिम दिन था। वहाँ के जीवन का क्रमिक इतिहास था किस प्रकार फ्रेंच उन्हें यह प्रलोभन देकर ले गये थे कि मॉरीशस की मिट्टी में सोना है। खोदोगे तो सोने से मालामाल हो जाओगे बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश से तीन लाख लोग स्टीमरों में सवार होकर मॉरीशस पर पहुँचे। समुद्र में लंबी यात्रा में जो बीमार या संक्रमित हो गये उन्हें समुद्र में फेंक दिया और प्रारम्भ हुआ यातना का दौर । उन्हें खुले स्थान पर ठहराया गया  दिन भर उनसे मजदूरी कराई जाती और केवल खाने के लिये चावल और एक सब्जी दी जाती थी । बीमार पड़ने पर साधारण इलाज किया जाता गंभीर बीमार को समुद्र में फेंक दिया जाता। अप्रवासी घाट के रूप में उन दुर्दिनों को संरक्षित किया गया है उस स्थान को स्मारक के रूप में एक वर्तुलाकार चबूतरा बना कर सरंक्षित किया है जहाँ स्टीमर से उतरकर पूर्वजों नेे पहला कदम रखा।

प्रदर्शनी में फ्रेंच द्वारा दी जाने वाली यातनाओं को झांकियों के द्वारा दिखाया गया था । झांकियॉं जीवंत लग रही थी किस प्रकार पूर्वजों ने गरीबी, अत्याचार, यातना सही । यह सोच-सोच कर वहाँ के वासियों की आंखें आज भी नम हो जाती हैं। डोडो पक्षी वहाँ का राष्ट्रीय पक्षी है जो अब लुप्त है। जिस समय फ्रेंच व्यक्तियों ने मॉरीशस पर कदम रखा उस समय वहाँ केवल डोडो का साम्राज्य था । वह बहुतायत से पाया जाता था केवल मॉरीशस में ही यह पक्षी पाया जाता था। वह बेहद आलसी भारी भरकम पक्षी था । उसका मॉस नरम व लजीज था वह आसानी से शिकार हो जाता था। आज अपने साम्राज्य में उसकी केवल यादें है लेकिन है बहुतायत में । वहाँ हर वस्तु में डोडो का चिन्ह मिलता है। प्रदर्शनी में भी एक घेरे में डोडो पक्षी प्रदर्शित किया गया था संभवतः जिन-जिन रंग के पाये जाते थे सभी रंग के डोडो पक्षी बनाये थे।

प्रदर्शनी स्थल के सामने ही छोटा द्वीप था पैते दोआ जहाँ पर ब्रिटिश और फ्रेंच में यु( हुआ था और मॉरीशस ब्रिटिश के अधिकार में चला गया था।☺


Monday, 25 August 2025

Amritsar 2

 आगे बांये हाथ पर ही दो मंजिला भवन था इसका मुॅंह पूर्व में था यहॉं हर समय लंगर चलता रहता है। यहॉं भी सीढ़ियॉं चढ़कर पहुॅंचते ही पैर धोने के लिये जल प्रवाहित होता रहता है । कार सेवक लंगर खाने आने वालों को कटोरा और थाली पकड़ाते जाते हैं । घुमावदार जीना और बड़े बरामदे को पारकर विशाल हाल था बाद में देखा वैसा ही एक कक्ष नीचे था एक बार में हजार आदमी बिछी पट्टियों पर बैठते चले जाते हैं  दो लाइने पूरी होते ही छिलके वाली उरद की दाल डाल दी जाती दूसरा आदमी कटोरों में पानी देता जाता और एक आकर रोटी डालता जाता। रोटी थाली में न देकर आपको दोनों हाथ फैलाकर हाथ पर लेनी पड़ेगी हर दो पंक्ति को खाना देने के साथ ही एक आकर वाहे गुरू की प्रार्थना करा जाता उसके साथ प्रारम्भ होता लंगर पाना। मुश्किल से एक बार की पॉंत में पन्द्रह मिनट लगे। तुरंत सफाई होकर दूसरी पॉंत बैठने लगी पन्द्रह मिनट में जब तक हम लंगर पाकर उठे पूरा कक्ष भर चुका था और हमारे उठते ही दोबारा पंक्ति बैठनी शुरू हो गई थी उतना ही बड़ा कक्ष निचली मंजिल पर था उसके अलावा भी लोग अपने बर्तनों में खाना लेकर सीढ़ियों आदि पर बैठ कर खा रहे थे। उस स्थान पर बैठकर पतली दाल और रूखी रोटी भी अमृततुल्य लगी थी शायद यही कहावत चरितार्थ होती है भूख में किवाड़ पापड़ लगना। बड़े बड़े देगों में जाली से धिरे कक्ष में दाल पकती रहती है बड़े तवे पर निरंतर रोटियॉं सिकती हैं । बाहर कटोरियों में हलुआ मिलता है। खाने वाले अपनी थाली उठाकर बाहर रखी बड़ी नादों में डालते जाते हैं वहॉं भी कार सेवक उन्हें धोकर पहुॅंचाते जाते हैं  जैसे सब एकसूत्र में बंधे हैं न किसी से जात पूछने की जरूरत न किसी को काम पूछने की जरूरत, आते हैं और सामर्थ्य भर काम कर मत्था टेक चले जाते हैं । 1

     इस परिसर में ही मंजी साहब का विशाल सम्मेलन हॉल है। परिक्रमा मार्ग पर ही मुख्य मंदिर से पूर्व प्रसादम् है ।  सब जगह गुरुमुखी ही प्रयोग की गई है इस वजह से कहांॅं क्या लिखा है पढ़वाना पड़ा । वहॉंपर ढका हुआ बरामदा  है पर्यटक वहॉं बैठ कर विश्राम भी करता है और प्रसाद खरीदने के लिये लाइन में लगता है। प्रसाद के लिये  कई खिड़कियॉं बनी हैं। शुध्द घी का गर्म गर्म हलुआ प्रसाद के लिये थाली में दिया जाता है।

  सरोवर के मध्य में स्थित हरमंदर साहब के लिये जाने के लिये पुल बना है ंपुल दो भागों में रेलिंग द्वारा विभक्त है एक तरफ से जाने के लिये और एकतरफ से लौटने के लिये । हरमिंदर साहब में घुसने से पूर्व ही एक काउन्टर पर आपके हाथ से चढ़ावे का थाल ले लिया जाता है और दोने में चढ़ा हुआ प्रसाद दे दिया जाता है। थाल अपने आप प्रसाद स्थान पर पहुॅंचा दिया जाता है ।

   हरमंदिर साहब लगता है अनेकों स्वर्णकमल सरोवर में झांक रहे हांे । मंदिर में प्रवेश के साथ ही  खुल जाता है खुल जा सिम सिम का द्वार  स्वर्णखचित रंगीन पत्थरों से पच्चीकारी , एक अदभुत संसार। दीवार पर , छत पर सब तरफ स्वर्ण और  कीमती पत्थरों से बेल बूटे कमल आदि बनाये गये हैं । बीचबीच में पूर्व गुरुओं की  जीवन की झलक भी दिखाई गई है । रंग बिरंगे झाड़फानूस  की रोशनी में झिलमिलाता है । प्रथम तल पर गुरूग्रन्थ साहब  स्थापित हैं । निरंतर उसका पाठ रागी करते रहते हैं । द्वितीय तल पर भी गुरूग्रन्थ साहब का अखंड पाठ करने  का नियम धारण करने  वाले पाठ करते रहते हैं । यहॉं गुरूग्रन्थ साहब का स्वरूप विशाल है । कम से कम  तीन फुट लंबा  ढ़ाई फुट चौड़ा उसका आकार होगा । द्वितीय तल की भी छत और दीवारों पर भी उसी प्रकार से पच्चीकारी हो रही है । प्रथम तलपर जहॉं सरोवर का जल मंदिर के फर्श को छू रहा है उसे  हर की पौड़ी कहते हैं । श्रद्धालु  वहॉं आचमन करते हैं । बाहर कढ़ा प्रसाद मिलता है ।

 मुख्य मंदिर से आगे परिक्रमा मार्ग पर अकाल तख्त सबसे प्रमुख गुरूद्वारा है । यहीं से सिखों के लिये आज्ञा जारी होती है । यहॉं सर्चोच्च आसन स्थित है । अकाल तख्त की स्थापना छठे गुरू हर गोविंद सिंह ने की थी । भवन में अभी नया निर्माण हो रहा है । यहॉं गुरुओं के पुराने अस्त्र शस्त्र, भेंट में प्राप्त मूल्यवान वस्तुऐं,आभूषण आदि रखे हैं । यहॉं रात्रि में गुरूग्रन्थ साहिब को पूर्ण सम्मान के साथ सुखासन के लिये  लाया जाता है । एक 

विशाल नगाड़ा भी यहॉं रखा है जिस समय गुरूग्रन्थ साहब की सवारी यहॉं से  जाती है नगाड़ा बजाया जाता है । तुरही बजती है फिर हाथ में  तलवार लिये उनके  अंगरक्षक निकलते हैं सिर पर चौकी पर गुरूग्रन्थ साहब की सवारी निकलती है। भीड़ स्वतः ही काई की तरह फटती सवारी को स्थान देती जाती है दर्शन के लिये श्र्रद्धा से  हाथ जोड़े सिर नवाये श्रद्धालु  पंक्ति बध्द खड़े हो जाते हैं । अकाल तख्त के सामने ही दो  निशान साहब  स्थापित हैं ।इसके अलावा गुरूद्वारा अटलराय , गुरूद्वारा धड़ा साहब , गुरूद्वारा शहीदगंज , गुरूद्वारा गुरूवख्श सिंह ,बेर बाबा बुडढाजी ,श्शहीद बुंगा बाबा दीप सिेह, लाची बेरी आदि स्थित हैं । सभी गुरूद्वारों के शिखर सुनहरे हैं ।


Saturday, 23 August 2025

Amritsar Sifli da ghar

 अमृतसर, सिफली - दा घर, जहॉं परमेश्वर की कृपा बरसती है। गुरूग्रन्थ साहब में अमृतसर को परम पवित्र धर्मस्थल माना गया है। इस शहर का इतिहास बहुत साल पुराना है।  इसकी स्थापना 1579 में हुई थी । इसके आस्तित्व में आने का इतिहास गुरुनानक देव से प्रारम्भ होता है। कहते हैं एक बार गुरु नानक मरदाना के साथ यात्रा पर जा रहे थे। एक रमणीक   स्थान देखकर नानक देव रुक गये। उस स्थान पर उन्होंने विश्राम करते हुए कहा कि इस स्थान पर रमणीक सरोवर होगा जिसका जल अमृत के समान होगा। कालान्तर में 1570 में तृतीय गुरु अमरदास को सम्राट अकबर ने नये नगर हेतु जमीन प्रदान की। कहा जाता है गॉंव वालों ने भी गुरु अमर दास को अपनी जमीन प्रदान की। आज भी पुराना शहर चारों ओर से एक दीवार से धिरा है और इसके बीस प्रवेश द्वार हैं । जो भी हो इसकी स्थापना तृतीय गुरू अमरदास द्वारा हुई। स्थापना के समय  कार सेवा के लिये आई बीबी रजनी व उनके कोढ़ग्रस्त पति एक जलाशय में नहाया करते थे। कुछ दिन में देखा कि कोढ़ग्रस्त पति का कोढ़ धीरे धीरे ठीक हो गया तो सब आश्चर्य चकित रह गये। गुरू अमरदास ने कहा,‘अवश्य यह जलाशय चमत्कारी है’। उन्हंे गुरु नानक की वाणी का पता था उन्हें लगा यही वह स्थान है जिसके विषय में नानक देव ने कहा था। उन्होंने वहॉं विशाल सरोवर का निर्माण कराया। बीच में एक चबूतरा बनवाया जहॉं बैठ कर वे प्रवचन किया करते थे। उस चबूतरे पर बैठकर श्रद्धालु बड़े मनोयोग से गुरूवाणी सुनते। उस सरोवर को लोग अमृत सरोवर कहने लगे। उसी के नाम पर नगर का नाम भी अमृतसर पड़ गया ।

1588 में गुरू अर्जुन देव ने उस चबूतरे पर एक  मंदिर का निर्माण प्रारम्भ कराया। इसे नाम दिया गया हरमंदिर साहब । ईंट गारे से निर्मित एक साधारण संरचना थी इस पर सोने की परत नहीं चढ़ी थी । उसमें गुरूग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई। 18वीं शताब्दी में यह तीन बार आक्रान्ताओं के क्रोध का शिकार हुआ। 1757,1762 और 1765 में तीन बार इसे तहस नहस किया गया। लेकिन सिख श्रद्धालुओं ने हिम्मत न हारकर बार बार इसे बनवाया। वर्तमान स्वरूप महाराजा रणजीत सिंह जी के द्वारा दिया गया। 1803 में पंजाब के शासक रणजीत सिंह ने मुख्य 

गुम्बद पर  कांस्य चादर चढ़वाई फिर उसे सोने के पत्तर से ढकवाया।धीरे धीरे श्रद्धालुओं द्वारा उस पर स्वर्ण की पर्तें चढ़वाई जाने लगीं। एक अनुमान के अनुसार इस मंदिर में लगा सोना लगभग 400 किलो तक था । देश विदेश के श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर इसमें स्वर्ण का काम करवाते हैं । निरंतर इसकी सुनहली आभा बढ़ती जा रही है । करीब 1600 किलोग्राम से भी अधिक सोना इस मंदिर में  लग चुका था । 1995 से 1999 के बीच बर्मिघम के दो सिख संगठनों ने मुख्य गर्भगृह पर पूरी तरह से फिर से सोने का आवरण चढ़वाया  अब 160 किलोग्रम सोने से मंदिर के चार प्रवेशद्वारों पर बने गुंबदों को भी उसी तरह मढ़ा जा रहा है जैसे मंदिर के मुख्य गर्भगग्रह पवित्र हर मिंदर साहिब की छत मढ़ी है ।  उसी तरह अैार भी निरंतर निर्माण जारी है । अब पूरे विश्व में अमृतसर  के नाम से शहर जाना जाता है और सरोवर का स्थान स्वर्ण मंदिर।

स्वर्ण मंदिर में प्रवेश के साथ ही ऐसा लगता है साक्षात गुरूवाणी गुरू के मुॅंह से सुनी जा रही हो। प्रतिदिन इसका स्वरूप सुन्दर से सुन्दरतम होता जा रहा है। दूर से ही श्वेत और स्वर्णिम आभा पूरी कलात्मकता से मोह लेती है।

विशाल फाटक में बाहर ही जूते चप्पल का स्थान बना है पानी की धाराओं के  बीच पैरों को धोते हुए मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही दिखता है सरोवर का स्वच्छ नीला जल। ऊपर ही विशाल घड़ी लगी है। सीढ़ियॉं उतरकर सबसे पहले पवित्र सरोवर के जल को हाथ में लेकर नेत्रों से लगाया। बंद आंखों के आगे स्वाभाविक रूप से एक तेजस्वी पवित्र चेहरा आ गया जिसे मन ही मन नमन कर आगे देखा। सामने ही स्वर्ण मंदिर था ऐसा लग रहा था संगमरमर की सीपी में स्वर्णिम मोती रखा हो,मुख्य मंदिर हरमिंदर साहब सरोवर के मध्य स्थित है । प्रारम्भ होता है परिक्रमामार्ग ,जिसपर लोगों के पैर न जलें इसके लिये कालीन की पट्टियॉं बिछा दी गई हैं उसी मार्ग के  बांये हाथ पर अनेक छोटे बड़े भवन स्थित हैं । हम अभी चारो ओर देख ही रहे थे कि एक सरदारनीजी आकर हम सबके सिर ढका गयीं  साथ ही ताकीद कर गयीं  मंदिर में जब तक हैें सिर पर से कपड़ा नहीं हटना चाहिये न मुख्य मंदिर की ओर पीठ करना। साड़ी का पल्लू  अब था कि वह बार बार  ढलक जाता और कोई न कोई आकर टोक देता  ‘सिर ढक लो  हारकर कसकर कान पर लपेट लिया। बायें कोने पर पानी का स्थल जहॉं कटोरों में पीने के लिये  शीतल जल तेजी से वितरित हो रहा था उतनी ही तेजी से कुछ कार सेवक स्वेच्छा से उन कटोरों को धोने में लगे थे। यह देखकर बहुत अच्छा लग रहा था कि सिख दर्शनार्थी कार सेवा करना धर्म समझते हैं यह नहीं कि सारा कार्य मंदिर के कार्यकर्ताओं की ही जिम्मेदारी है। छोटे बड़े , धनी निर्धन का वहॉं कोई फर्क नहीं था। 


Wednesday, 20 August 2025

Kailash Mansarover yatra antim

 बहुत दिन बाद गर्म तवे की रोटी अच्छी लगी । यात्रा के दौरान सबके वजन चार चार पॉंच पॉंच किलो घट गये थे  लेकिन उत्साह नहीं घटा था सबको लग रहा था यात्रा जल्दी खत्म हो गई । बस तैयार थी सामान लद चुका था ।नेपाल का रास्ता हमारा इंतजार कर रहा था जहॉं पर बस खड़ी थी वहॉं पर विषाल झरना था वह काफी ऊंचाई से कई चट्टानों पर गिर रहा था सीढ़ी सीढ़ी वह नीचे आ रहा था उस झरने का सौंदर्य उस पर पड़ रही सूर्य किरणों से द्विगुणित हो रहा था एक स्थान पर दुग्ध धवल फेनिल जल गिरकर ष्वेत धार बना रहा था वहीं उसके पास की धार में लालिमा थी उसके 

पास नीला और बैंगनी रंग की आभा दे रहा था नीचे  सारी चट्टानों का जल जहॉं गिर रहा था वहॉं जाकर सारा हल्के नीले जल में परिवर्तित हो रहा था वेग अत्यन्त तेज था जब बादल छा जाते रंग बदल जाते  ऐसे दृष्य कम ही देखने को मिलते हैं 

प्रकृति का कोमल और भयंकर दोनों रूप सामने थे दूर से दृष्य बहुत सुंदर था लेकिन वेग इतना तीव्र था कि यदि जराकिसी का पैर फिसल जाये तो उसका बचना असंभव था ।

    कोदारी से नेपाल तक कोषी नदी बहती है ।कोषी नेपाल जाकर अलग अलग नाम से जानी जाती है ऊपर पर्वतों पर  सीमा दिखाई दे रही थी इस तरफ नेपाल उस तरफ चीन की सीमा थी ।षाम को  नेपाल का बाजार देखा  वहॉं का पुराना बाजार देखा ,प्रसिध्द बाजार भाट भटेली देखा ।नेपाल में आठ बजे तक बाजार बंद हो जाते हैं । 

प्रातः वहॉं का प्रसिध्द स्वर्ण पैगोडा देखा वहॉं बुध्द की विषाल स्वर्ण प्रतिमा है । मुख्य पैगोडा में चारों ओर दीप प्रज्वलित कर  मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है । बंदर वहॉं पर बहुत थे  । कात्यायनी देवी का और महालक्ष्मी का मंदिर उसी परिसर में बना है । वहॉं बौध्द और हिंदू धर्म का संगम देखने को मिला । भिखारी वहॉं भी सीढ़ियों पर बैठे थे । एक बारह तेरह वर्ष की लड़की करीब एक साल के षिषु को लेकर बैठी थी,‘ बच्चे के दूध के लिये पैसे देदो ’ ।

‘क्या यह तेरा बच्चा है ’ चौंक कर पूछा ।

लड़की एकदम सकपका गई और बोली ‘नहीं मेरा भाई है ’

‘तो मॉं कहॉं है ’ वह शायद मेरे जवाब  सवाल से घबरा गई और बच्चा लेकर भाग गई ।

एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति हॅंसने लगा वह बोला ,‘ अरे यह तो ऐसे ही चलता है ,मॉं किसी दूसरे कोने पर मॉंग रही होगी कभी इससे बड़ा ले आती है ’। वह रोजदर्षन के लिये आता था ।

स्वर्ण पैगोडा के पूरे रास्ते में मनी मंत्रों के बहुत से कक्ष हैं इनमें विषाल मनी मंत्र बने थे अंदर जाकर अनुयायी उन्हें घुमा रहे थे  कोई कोई मनी मंत्र तो दस फुट ऊॅंचा और दस ही फुट का धेरा होगा सभी पीतल के  लेकिन एकदम चमकते हुए संभवतः स्वर्ण पॉलिष थी या उनकी सफाई प्रतिदिन होती थी । महीन पच्चीकारी का उन पर काम हो रहा था। लकड़ी का सामान वहॉं बहुतायत में मिलता है । पूजा में घी का दीपक व इलायची दाना चढ़ाया जाता है । स्नान आदि के पष्चात् सुप्रसिध्द व्यवसायी प्रेम प्रकाष जी व उनकी धर्मपत्नी जी से मिले दोनों ही बहुत सहज सरल स्वभाव के विनम्र  व्यक्ति तो थे ही उच्चकोटि की सेवा भावना रखने वाले थे । नेपाल की कई समाज सेवी संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर रहकर समाज की सेवा कर रहे थे ।

          एक बजे तक हमें एअरपोर्ट पहुॅचना था क्योंकि तीन बजे की फ्लाइट थी इसलिये प्रेमप्रकाष जी से विदा लेकर आखिरी बार सब सहयात्री भोजन कक्ष में एकत्रित हुए । एक परिवार की तरह सब रहे थे इसलिये सबको बिछड़ने का गम था । श्रीमती विजयक्ष्लमी व कुमारी उमा अभी नेपाल के अन्य पर्यटन स्थलों की सैर करने के लिये रुकी थीं  । विमान तीन बजे के स्थान पर चार बजे उड़ा बार बार तकनीकी खराबी की वजह से रुक जाता था ।

      सांयकालीन बादल सूर्य सब आकाष में अठोलियॉं कर रहा थे । आकाष बादलों से भरा था । बादलों के बीच धुंध से घिरा जब बादलों को चीर कर ऊपर  उठा तो थरथराने लगा  । एक बार फिर नीचे बादलों का अदभुत संसार दिखाई दिया । जैसे सागर में ज्वार उठा हो  विषाल मछलियॉं तैर रही हों कहीं लग रहा था अंटार्कटिका की वर्फीली चट्टानों पर श्वेत भालू खेल रहे हों । कहीं आइसक्रीम के पेड़ दिखते तो कहीं विषाल खरगोष कूदते नजर आते वहॉं पर खाली जगह होती तो लगता गहरा नीला जल है । आकाष में तैरते कब दिल्ली आ गई पता ही नहीं चला ।  नई दिल्ली एअरपोर्ट पर उस दिन कोई विदेषी मेहमान आने वाला थे पिछले दरवाजे से पूरा टर्मिनल पार करके आना पड़ा हाथों में वजन के थैले  मान सरोवर का जल आदि लिये । उस समय अपना ही वजन संभाले नहीं संभल रहा था ,रास्ता बेहद लंबा लग रहा था नीचे जैसे ही बाहर आये  बहुत से व्यक्ति पंक्तिबध्द मालाऐं लिये खड़े थे हम  प्रसन्न होने का नाटक ही कर रहे थे कि वाह मानसरोवर होकर आये हैं इसलिये हमारा सम्मान हो रहा है  हम कतार के बीच से निकलतेचले गये एक भी माला नहीं पड़ी पता चला कोई सुप्रसिघ्द स्वामी जी आने वाले हैं उनका इंतजार कर रहे हैं । हमारी  कार हमारा इंतजार कर रही थी हम सब आगरा के लिये चले तब तक स्वामी जी नहीं आये थे । रात्रि दस बजे हम अपने घर पहुॅच गये । वहॉं तो स्वगत नहीं हुआ परन्तु जब छोटी छोटी गंगाजली में मानसरोवर का जल और  मान सरोवर के जल से स्नान कराई माला मित्र जनों को दी तो वे गद्गद् हो गये  । बहुतों ने पैर छुए कि आप महान् तीर्थ करके आये हैं आपके चरण छूकर हमें भी कुछ पुण्य मिलेगा । हम करने वाले नहीं थे यह तो विधाता ही है जो हम से करवाता है हम सब उसके आभारी हैं उन्होंने महेन्द्र भाई साहब और ष्शोभा भाभी को माध्यम बनाया हम उनके भी आभारी हैं न उनका संबल और साथ मिलता न हम जा पाते  । ऐसा लगा ‘हम तीर्थ करने नहीं तीर्थ बनने जा रहे हैं । हम अपने को कैलाष बनायें ।कैलाष बनने के लिये चार अहर्ताऐं हैं । एक तो कैलाष बहुत ऊॅंचा है दूसरा कैलाष बहुत गहरा है , तीसरा कैलाष बहुत उज्वल है चौथा कैलाष बहुत ष्शीतल है ।