Wednesday, 20 August 2025

Kailash Mansarover yatra antim

 बहुत दिन बाद गर्म तवे की रोटी अच्छी लगी । यात्रा के दौरान सबके वजन चार चार पॉंच पॉंच किलो घट गये थे  लेकिन उत्साह नहीं घटा था सबको लग रहा था यात्रा जल्दी खत्म हो गई । बस तैयार थी सामान लद चुका था ।नेपाल का रास्ता हमारा इंतजार कर रहा था जहॉं पर बस खड़ी थी वहॉं पर विषाल झरना था वह काफी ऊंचाई से कई चट्टानों पर गिर रहा था सीढ़ी सीढ़ी वह नीचे आ रहा था उस झरने का सौंदर्य उस पर पड़ रही सूर्य किरणों से द्विगुणित हो रहा था एक स्थान पर दुग्ध धवल फेनिल जल गिरकर ष्वेत धार बना रहा था वहीं उसके पास की धार में लालिमा थी उसके 

पास नीला और बैंगनी रंग की आभा दे रहा था नीचे  सारी चट्टानों का जल जहॉं गिर रहा था वहॉं जाकर सारा हल्के नीले जल में परिवर्तित हो रहा था वेग अत्यन्त तेज था जब बादल छा जाते रंग बदल जाते  ऐसे दृष्य कम ही देखने को मिलते हैं 

प्रकृति का कोमल और भयंकर दोनों रूप सामने थे दूर से दृष्य बहुत सुंदर था लेकिन वेग इतना तीव्र था कि यदि जराकिसी का पैर फिसल जाये तो उसका बचना असंभव था ।

    कोदारी से नेपाल तक कोषी नदी बहती है ।कोषी नेपाल जाकर अलग अलग नाम से जानी जाती है ऊपर पर्वतों पर  सीमा दिखाई दे रही थी इस तरफ नेपाल उस तरफ चीन की सीमा थी ।षाम को  नेपाल का बाजार देखा  वहॉं का पुराना बाजार देखा ,प्रसिध्द बाजार भाट भटेली देखा ।नेपाल में आठ बजे तक बाजार बंद हो जाते हैं । 

प्रातः वहॉं का प्रसिध्द स्वर्ण पैगोडा देखा वहॉं बुध्द की विषाल स्वर्ण प्रतिमा है । मुख्य पैगोडा में चारों ओर दीप प्रज्वलित कर  मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है । बंदर वहॉं पर बहुत थे  । कात्यायनी देवी का और महालक्ष्मी का मंदिर उसी परिसर में बना है । वहॉं बौध्द और हिंदू धर्म का संगम देखने को मिला । भिखारी वहॉं भी सीढ़ियों पर बैठे थे । एक बारह तेरह वर्ष की लड़की करीब एक साल के षिषु को लेकर बैठी थी,‘ बच्चे के दूध के लिये पैसे देदो ’ ।

‘क्या यह तेरा बच्चा है ’ चौंक कर पूछा ।

लड़की एकदम सकपका गई और बोली ‘नहीं मेरा भाई है ’

‘तो मॉं कहॉं है ’ वह शायद मेरे जवाब  सवाल से घबरा गई और बच्चा लेकर भाग गई ।

एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति हॅंसने लगा वह बोला ,‘ अरे यह तो ऐसे ही चलता है ,मॉं किसी दूसरे कोने पर मॉंग रही होगी कभी इससे बड़ा ले आती है ’। वह रोजदर्षन के लिये आता था ।

स्वर्ण पैगोडा के पूरे रास्ते में मनी मंत्रों के बहुत से कक्ष हैं इनमें विषाल मनी मंत्र बने थे अंदर जाकर अनुयायी उन्हें घुमा रहे थे  कोई कोई मनी मंत्र तो दस फुट ऊॅंचा और दस ही फुट का धेरा होगा सभी पीतल के  लेकिन एकदम चमकते हुए संभवतः स्वर्ण पॉलिष थी या उनकी सफाई प्रतिदिन होती थी । महीन पच्चीकारी का उन पर काम हो रहा था। लकड़ी का सामान वहॉं बहुतायत में मिलता है । पूजा में घी का दीपक व इलायची दाना चढ़ाया जाता है । स्नान आदि के पष्चात् सुप्रसिध्द व्यवसायी प्रेम प्रकाष जी व उनकी धर्मपत्नी जी से मिले दोनों ही बहुत सहज सरल स्वभाव के विनम्र  व्यक्ति तो थे ही उच्चकोटि की सेवा भावना रखने वाले थे । नेपाल की कई समाज सेवी संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर रहकर समाज की सेवा कर रहे थे ।

          एक बजे तक हमें एअरपोर्ट पहुॅचना था क्योंकि तीन बजे की फ्लाइट थी इसलिये प्रेमप्रकाष जी से विदा लेकर आखिरी बार सब सहयात्री भोजन कक्ष में एकत्रित हुए । एक परिवार की तरह सब रहे थे इसलिये सबको बिछड़ने का गम था । श्रीमती विजयक्ष्लमी व कुमारी उमा अभी नेपाल के अन्य पर्यटन स्थलों की सैर करने के लिये रुकी थीं  । विमान तीन बजे के स्थान पर चार बजे उड़ा बार बार तकनीकी खराबी की वजह से रुक जाता था ।

      सांयकालीन बादल सूर्य सब आकाष में अठोलियॉं कर रहा थे । आकाष बादलों से भरा था । बादलों के बीच धुंध से घिरा जब बादलों को चीर कर ऊपर  उठा तो थरथराने लगा  । एक बार फिर नीचे बादलों का अदभुत संसार दिखाई दिया । जैसे सागर में ज्वार उठा हो  विषाल मछलियॉं तैर रही हों कहीं लग रहा था अंटार्कटिका की वर्फीली चट्टानों पर श्वेत भालू खेल रहे हों । कहीं आइसक्रीम के पेड़ दिखते तो कहीं विषाल खरगोष कूदते नजर आते वहॉं पर खाली जगह होती तो लगता गहरा नीला जल है । आकाष में तैरते कब दिल्ली आ गई पता ही नहीं चला ।  नई दिल्ली एअरपोर्ट पर उस दिन कोई विदेषी मेहमान आने वाला थे पिछले दरवाजे से पूरा टर्मिनल पार करके आना पड़ा हाथों में वजन के थैले  मान सरोवर का जल आदि लिये । उस समय अपना ही वजन संभाले नहीं संभल रहा था ,रास्ता बेहद लंबा लग रहा था नीचे जैसे ही बाहर आये  बहुत से व्यक्ति पंक्तिबध्द मालाऐं लिये खड़े थे हम  प्रसन्न होने का नाटक ही कर रहे थे कि वाह मानसरोवर होकर आये हैं इसलिये हमारा सम्मान हो रहा है  हम कतार के बीच से निकलतेचले गये एक भी माला नहीं पड़ी पता चला कोई सुप्रसिघ्द स्वामी जी आने वाले हैं उनका इंतजार कर रहे हैं । हमारी  कार हमारा इंतजार कर रही थी हम सब आगरा के लिये चले तब तक स्वामी जी नहीं आये थे । रात्रि दस बजे हम अपने घर पहुॅच गये । वहॉं तो स्वगत नहीं हुआ परन्तु जब छोटी छोटी गंगाजली में मानसरोवर का जल और  मान सरोवर के जल से स्नान कराई माला मित्र जनों को दी तो वे गद्गद् हो गये  । बहुतों ने पैर छुए कि आप महान् तीर्थ करके आये हैं आपके चरण छूकर हमें भी कुछ पुण्य मिलेगा । हम करने वाले नहीं थे यह तो विधाता ही है जो हम से करवाता है हम सब उसके आभारी हैं उन्होंने महेन्द्र भाई साहब और ष्शोभा भाभी को माध्यम बनाया हम उनके भी आभारी हैं न उनका संबल और साथ मिलता न हम जा पाते  । ऐसा लगा ‘हम तीर्थ करने नहीं तीर्थ बनने जा रहे हैं । हम अपने को कैलाष बनायें ।कैलाष बनने के लिये चार अहर्ताऐं हैं । एक तो कैलाष बहुत ऊॅंचा है दूसरा कैलाष बहुत गहरा है , तीसरा कैलाष बहुत उज्वल है चौथा कैलाष बहुत ष्शीतल है ।


Tuesday, 19 August 2025

Kailash Mansarover yatra 30

 दो घंटे बाद छः बजे रास्ता खुला सब आगे निकल जाना चाहते थे लेकिन एक एक दल की गाड़िया निकाली जा रही थीं, शुरू ही में खतरनाक कच्चा संकरा ऊबड़ खाबड़ रास्ता था वहीं से सड़क बनना प्रारम्भ हो रही थी एक दम ढलान और छोटा रास्ता खाई की तरफ झुका हुआ जरा सा भी यदि पहिया टेढ़ा पड़े तो गाड़ी सौ फुट नीचे गहरी खाई में गिर पडेआगे भी अभी सड़क बन रही थी और संकरा रास्ता था लेकिन इतना खतरनाक नहीं। पहाडों पर हरियाली थी पहाड़ी नदी भी ष्शांत बह रही थी। ज्यों ज्यों आगे बढ़ते गये  रास्ता बेहद सुरम्य होता चला गया  झरने नदी वृक्ष से  सारा रास्ता ढका

 था । जाते समय जो नदी की गर्जना प्रकृति के भयंकर रूप का आभास दे रही थी वह ष्शांत कल कल म्ेंा बदल चुकी थी ।

     झांग मू के उसी होटल में रुकना था लेकिन होटल तक पहुॅचना मुष्किल था जाम की स्थिति थी कुछ देर जाम खुलने का इंतजार किया फिर पैदल ही होटल तक पहुॅंचे  चार मंजिल पर कमरा मिला सीढ़िया चढ़ना भारी लग रहा था कमरा गैलरी अैार बाथरूम के पास मिला बाथ रूम का पानी बहकर कमरे में आ रहा था मन धिनाने लगा । मैनेजर सुन ही नहीं रहा था जरा सा जोर देकर कहने पर एक दम गरम हो गया और बिफर कर बोला अभी सामान उठाओ और नहीं तो मैं फेंक दूॅंगा यही कमरा है रहना हो तो रहो। बीनू भाई ने मामला षांत कराया लेकिन वे विलक्षण तनाव के पल थे  । मैनेजर ने पानी निकलवाया दूसरा कोई कमरा था नहीं बहुत मुष्किल से रात बैठे हुए काट दी ।

      बीनू भाई का कहना था प्रातः चीनी सीमा को पार करना है जल्दी चले जायेंगे और चैकपोस्ट पर बैठेंगे । पहले पहल पहुॅंच जायेंगे तो जल्दी नंबर आ जायेगा नहीं तो बहुत देर हो जायेगी और सारा कार्यक्रम बिगड़ जायेगा। प्रातः साढ़े छः बजे से सबका चैकपोस्ट पर पहुॅचना प्रारम्भ हो गया यद्यपि चैकपोस्ट  दस बजे खुलना था हमारा दल वहॉं पहुॅचने वाला पहला दल था यह सब बीनू भाई और अवतार के अब तक के यात्रा अनुभवों का परिणाम था कि हमें परेषानी नहीं उठानी पड़ रही थी । हमारे बाद अन्य यात्री दल आने लगे । खुली सड़क और चार घंटे खड़ा रहना असंभव लग रहा था हाथेंा में सामान था कोई चारा नजर नहीं आ रहा था  सड़क पर ही कोई नैपकिन कोई रुमाल और कोई छोटी तौलिया बिछाकर किनारे पर दो दो तीन तीन के गुट में बैठ गये। सड़क पर बैठने में हंसी भी आ रही थी। लग रहा था सड़क किनारे भिखारीबैठे हों । उस समय न रुतबे का ख्याल था न इज्जत का न अमीरी का न गरीबी का । बस सब सड़क पर बैठे थे हम सब सड़के के आदमी थे ।

    एकाएक घड़ी पर नजर गई सात बजकर सात मिनट सातवां महिना सब जोड़ते गये सातवां साल वाह क्या संयोग है । तभी दूसरे दल की महिला बोली ,‘ एक बात बताऊं आज सप्तमी है ।’ कुछ देर सात के संयोग पर चर्चा होती रही सबका विदा का समय था एक दूसरे का पता आदि लिया जाने लगा । साढ़ नौ बजे चैक पोस्ट खुल गया । अपने अपने नम्बर हाथ में लेकर चैक पोस्ट पर पंक्तिबध्द खड़े हो गये  और सीमा पार करते गये ।

            अब हम नेपाल की सीमा में आ रहे थे  । गाड़ियॉं मैत्री पुल तक छोड़ने वाली थीं  हम सब तो बाहर आ गये पर गाड़ियों को चैकपोस्ट पार करने में समय लग गया  जिस ग्रुप की गाड़ी का नम्बर दिखता वह चिल्लाने लगता आ गई आ गई । हम सब को  आगे कोदारी के रैस्टोरेंट पर मिलना था । लौटने पर मैत्री पुल पर किसी प्रकार की चैकिंग नहीं हुई । झांग मू ऊचाई पर है और कोदारी यद्यपि पहाड़ी इलाका है पर काफी निचाई पर पहाड़ काट काट कर रास्ता बनाया है औरकाफी तीखा ढलान है करीब आठ किलो मीटर वाला यह रास्ता दूर दूर तक आस पास का षहर दिखाता चलता है ।जहॉं से गाड़ी ली थी वहीं गाड़ी रुक गई । ड्रइवर उस समय बहुत अच्छी तरह पेष आया था अब वह हॅंसकर हिन्दी में बात कर रहा था ष्शेरपा भी दुआ सलाम कर पहली बार  गाड़ी में से सामान निकालता नजर आया  नहीं तो गाड़ी रुकते ही गाड़ी से उतरकर गायब हो जाता था । किसी किसी गाड़ी का ष्शेरपा बहुत मददगार थे  बाद में ज्ञात हुआ यह एक विद्या है उन लोगों ने उसे  समय समय पर अच्छी टिप दी । प्रेम नामक ष्शोरपा बहुत अच्छा गायक था । जब अलग अलग शेरपा गाड़ी में बैठते तब उनकी अलग अलग विषेषताऐं पता चलती थीं । कोई बहुत हॅंसमुख तो कोई वाचाल, कोई पता ही नहीं चलता था कि वह गाड़ी में बैठा है कोई सोने में माहिर  गाड़ी में बैठते ही गहरी नींद में सोजाता । कुक आदि बहुत प्रेम से खाना खिलाते यह देख लेते  थे कि कौन खा रहा है कौन नहीं  उनकी कोषिष रहती वह कुछ तो खाले । षेरपा और कुक मिलाकर बीस जन का दल था  ।

   मैत्री पुल पार करके हम कोदारी बारह बजे तक पहुॅंच गये सबको वहीं भोजनालय पर एकत्रित होना था । एक एक कर सब  आते गये , उससे पूर्व अपने पासपोर्ट और परिचयपत्र दिखाने थे  वह चैकपोस्ट वहीं होटल के पास बना था  । होटल पर ही बचे हुए युआन बदल लिये  कुछ युआन  संग्रह के लिये रखे  । सबसे पहले चाय की इच्छा हो रही थी जैसे जैसे पहाड़ों से नीेचे उतरे खाना स्वतः अच्छा लगने लगा । चाय चाय करते सब होटल के पीछे बरामदे में एकत्रित हुए वहॉ  डोन नदी किनारे से बह रही थी पर्वतीय नदियों का सौंदर्य अदभुत् होता है स्वछ फेनिल जल लिये नदी बच्ची की तरह कूदती सी आगे बढ़ती है ।  


Saturday, 16 August 2025

Kailash mansarover yatra 29

 लौटने पर रुकने के सभी स्थान वही थे  चार बजे तक सागा पहुॅंच गये किसी प्रकार का तनाव नहीं था अब पर्यटन के मूड में थे । सामान आदि कमरे में पहुॅचाकर बाजार देखने चले गये  वहॉं से आगरा और देहली बेटी को फोन किया बहुत स्पष्ट आवाज । बाजार वहॉं जल्दी बंद हो जाते हैं वैसे भी बहुत कम आबादी वाला क्षेत्र नजर आ रहा था होटल के नीचे ही बाजार था यहॉं पर भी लड़कियॉं अधिक सक्रिय थीं  अधिकांष लड़कियों ने पैन्ट कोट पहन रखा था ।चीन में पैकिंग की सुंदरता या सामान की सुंदरता पर अधिक ध्यान दिया जाता है ।  ज्ञात हुआ वहॉं दो तरह का माल तैयार किया जाता है एक तो टिकाऊ पर मंहगा होता है एक सस्ता ओर सुंदर लेकिन उस माल की कोई गारंटी नहीं होती । सब जगह चीनी भाषा में ही लिखा हुआ था । 

     सागा से आठ बजे तक रवाना हो गये थे । झांग मू के लिये चार बजे तक पहुॅंचना था क्योंकि चार बजे  रास्ता खुलना था वह भी निष्चित समय के लिये उस समय जो निकल जायेगा वह निकल जायेगा नहीं तो वहीं रुकना पड़ेगा अर्थात खुले में या गाड़ी में  फिर कितनी देर बाद खुले वह राम भरोसे  । 

      प्रातः आठ बजे तक हम्हारी गाड़ियॉं रवाना हो गईं लेकिन अहमदाबाद के जडेआ की गाड़ी कुछ आगे जाकर खराब हो गई। सबको चिंता हो गई रास्ता बेहद ऊबड़ खाबड़ था दूर दूर तक कोई नहीं किसी प्रकार से दो तीन गाड़ियों के ड्राइवरोंने मिलकर उसे ठीक किया बार बार जरा चले फिर फुक फुक कर गाड़ी कूदे और बंद हो जाये । सब मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना करने लगे अब तक सब ठीक किया है आगे भी सब ठीक करे ं । गाड़ी कुछ दूर और चली फिर बंद होगई लेकिन जिस स्थान पर गाड़ी रुकी बहुत मनोरम था  छोटा सा लकड़ी का पुल उसके नीचे छिछली नदी उसमें रंग बिरंगी छोटी

 छोटी मछलियॉं । कुछ लोग पुल से लटक लटक कर नदी की तेज धारा में पैर डुबा रहे थे तो कुछ किनारे पर मछलियों को देख रहे थे कि गाड़ी ठीक होगई शोर मचा और चढ़ चढ़ कर  गंतव्य की ओर रवाना हो गये ।

   खाने के लिये जहॉं भी काफिला रुकता था पूरी यात्रा में देखा वह स्थान हर आयेाजकों द्वारा निष्चित किया हुआ था क्योंकि हर काफिला वहीं रुकता था अपने रुकने के कुछ निषान छोड़ जाता था आगे बढ़ जाता। इस बार खाने के लिये जहॉं रुके थे वहॉं दो दल पहले से ही रुके हुए थे पता लगा एक यात्री दल के पास खाना नहीं है उनका ट्रक नहीं आया था। हमारे दल के यात्रियों ने कम कम लेकर बाकी खाना उनके दल को दे दिया   ।

        सागा से झांग मू के  बीच रास्ते में चैकपोस्ट बना था सब गाड़ियों की चैकिंग हो रही थी एक गाड़ी पीछे रह गई थी चैकिंग साथ होनी थी इसलिये आगे भी नहीं बढ़ सकते थे । करीब पौन घंटा इंतजार के  बाद वह गाड़ी आई । पता लगा वह गाड़ी भी रास्ते में खराब हो गई थी दोनों खराब गाड़ियों को आगे करके चले जिससे कि यदि अब खराब हों तो उनके यात्रियों को  किसी भी प्रकार अपनी गाड़ियों में लिया जाये क्योंकि अब समय नष्ट नहीं किया जा सकता था । परंतु निर्विघ्न निलायम तक पहुॅंच गये  । अभी तक कहीं भी हरियाली नहीं मिली थी हॉं निलायम् आने के साथ साथ हरियाली मिलने लगी । आते समय  रात्रि का समय था इसलिये निलायम् का रास्ता नहीं देख पाये थे । लौटने पर निलायम् पर नहीं रुके अगला पड़ाव झांग मू था । झांग मू का रास्ता भी आते में अंधेरे में पार किया था लेकिन झांग मू में हिरयाली के साथ साथ खेत घर मकान आदि दिखाई दिये साथ ही सरसों का खेत देख कर अच्छा लगा । झागमू पार करने के लिये दो घंटे  रुकना पड़ा मान सरोवर का ष्शुष्क वातावरण और  ऊॅचाई कम होने के कारण भूख खुलने लगी थी । पानी की बड़ी बड़ी बूॅंदे गिर रही थी  बंद गाड़ी में बैठना बहुत मुष्किल लग रहा था, जैसे दम घुट रहा हो ,जरा सी झिरी करली । अन्य दलों की गाड़ियॉं भी आने लगी । ऊॅंचा नीचा रास्ता पार करते  सुबह का खाया सब पच गया था  सबकी गाड़ियों में रखे  नमकीन खुलने लगे  कुछ लोग चादर डालकर घास में बैठ गये  पिकनिक का सा माहौल हो गया ।☺


Friday, 15 August 2025

Kailash Mansarover 28

 बारह बजे के करीब अपने दल के यात्री दिखने प्रारम्भ हुए एक एक कर सब आते गये सबसे पहले गोयल साहब व अमेरिका के बर्मन दिखाई दिये  सौ मीटर का पहाड़ी रास्ता तीन घुमावदार मोड़ और प्रतीक्षा रत हम लोग  दल के अंतिम यात्री तक आते आते एक घंटा लगा । सबसे बुजुर्ग भी घोड़े पर आराम से चलते हुए आ गये।हम सब अपनी अपनी कार में सवार बाकी आधी मानसरोवर की यात्रा के लिये  प्रयांग की ओर बढ़ लिये  ।

      मान सरोवर का विस्तृत फैलाव, राक्षस ताल की भुजाऐं और बार बार लुकता छिपता कैलाष देखते करीब छः बजे प्रयांग पहुॅंचे वहॉं एक अदभुत् नजारा हमारा इंतजार कर रहा था । समानान्तर दूरी पर दो दो  विषाल इंद्रधनुष अपनी छटा बिखेर रहे थे। प्रयांग का रास्ता धूल भरा मैदानी सा है पास के पहाड़ ष्शुष्क बिना हरियाली व बिना आबादी के उसमें उगा यह गैस्टहाउस रेगिस्तान में नखलिस्तान सा लगा उस पर हल्की धूप हल्के बादल हल्की छिटपुट बारिश और दो दो इंद्रधनुष मानो इंद्र और कामदेव दोनों अपने धनुष ताने खड़े हों  पीछे से उभरी पहाड़ियॉं। पहाड़ियों के पीछे श्वेत धवल बादल स्वयं में षिखर लग रहे थे । ष्शीघ्र ही अंधियारी ने सितारे टंगा ऑचल फैला दिया । सारी रात सितारों और बादलों का लुका छिपी का खेल चलता रहा  बिजली वहॉं दस बजे तक रही लेकिन चतुर्थी का चॉंद अपनी रोषनी बिखेर रहा था इसलिये बिजली की कमी अधिक अखरी नहीं ।

प्रातः प्रयॉंग से चलने लगे तो बहुत अधूरापन लग रहा था गाड़ी में बैठ तो गये पर ऐहसास था कुछ रह गया  आखिरी बार कैलाष की ओर मुॅह कर नमन किया ।पर्वतों के ऊॅंचे षिखरों को देखा यद्यपि मान सरोवर के ऊपर तारों के रूप में ऋषियों  को देखा यह सौभाग्य कम नहीं था बिना किसी बिघ्न बाधाके यहॉं तक की यात्रा पूरी हो गई लेकिन फिर भी मनमें कसक थी कि कई ऐसे लोग मिले जिन्होंने किसी न किसी रूप में भोले बाबा के दर्षन किये  या मॉं जगदम्बा से साक्षात्कार हुआ। किसी न किसी रूप में चमत्कारिक अनुभव हुए थे हमें क्यों नहीं हुआ सोचते हुए पर्वत षिखरों की ओर नजर घुमाई साथ ही हृदय स्तब्ध रह गया एक विषाल पर्वत की चोटी हलकी नीली होगई और चट्टान पर षिव के  ऊर्ध    भाग का अक्स उभर आया सब कुछ नील वर्णी एक एक अंग स्पष्ट ऑंख कान नाक तीसरा नेत्र सिर पर जटा, गले में सर्प विष्वास ही नहीं हुआ । मैंने गोयल साहब से कहा  ‘देखो देखो पर्वत श्रंखला के बीच में देखो ’ इधर उधर देखकर बोले  ‘हॉं अच्छा दृष्य है। ’

‘नहीं उस पर्वत पर देखो साक्षात षिव स्वरूप उभरा हुआ है विषाल षिव ’कहते हुए नमन किया ।

‘ऐसा कुछ नहीं है तुम्हारे मन ने देखा है पहाड़ यहॉं के सुंदर है दूर पर वर्फ से ढके दिख रहे हैं  ।  मैं चुप होगई और षिव अक्स को देखती रही फिर किसी से नहीं कहा क्योंकि मखौल उड़ने का डर लगा मन ही मन प्रभु की अनुकंपा से स्तंम्भित थी । ईष्वरीय सत्ता को मैं बार बार नमन करती हॅूं शक्ति है और रहेगी लेकिन वास्तव में उसका क्या रूप है क्या रंग है कोई नहीं कह सकता षिव का यही स्वरूप रचा बसा है तो संभवतः मन ने  गढ़ लिया  ‘लगे रहो मुन्ना भाई का किरदार याद आ गया संभवतः यह भी एक  भ्रम है जो मेरी अंतरात्मा ने गढ़ लिया 


Thursday, 14 August 2025

Kailash Mansarover yatra 27

 दोपहर को सब फिर एक कमरे में एकत्रित हुए तरह तरह के अनुभव लोकगीत चुटकुले हास्य कविताओं का दौर चल ही रहा था कि महेन्द्र भाईसाहब और बीनू भाई बदहवास से आते दिखाई दिये दिल धक से रह गया क्या गोयल साहब भी हैं पर और कोई नहीं दिखा जब तक बात सामने न आये  दिल बस भोले बाबा को याद कर रहा था बस सब कुछ कुषल ही हो । महेन्द्रभाई साहब लंगड़ा रहे थे। पता चला महेन्द्र भाई साहब का घोड़ा नया था उसने उन्हें पटखनी देदी । बीनू भाई की भी तबियत बिगड़ गई थी इसलिये दोनों वापस आ गये । मल्हम आदि लगा कर महेन्द्र भाईसाहब के क्रेप बैन्डेज बांधी और बुखार की दवा दी । वे लेट गये  पूछा और सब  का कैसा चल रहा है । पता चला रात भर तेज पानी  पड़ा था जल थल सब एक हो गया था ,‘हे भगवान् तेरे दर पर हैं सबकी रक्षा करना ’ जब सब कुछ ठीक होगया तब बीनू भाई ने बताया,‘जब चले थे पानी थम गया था और आगे यात्रा प्रारम्भ हो गई थी । पहले दिन सारे रास्ते पानी रहा था और रात भर तेज वारिष हुई बिस्तर एक तरह पानी में तैर रहा था छोटे छोटे तम्बुओं में एक में दो व्यक्ति थे और पहाड़ी पर से ठंडा पानी  बह रहा था पर प्रातः जब वे वापस आने के लिये चले तब पानी ठहर गया था और परिक्रमा वाले यात्री आगे बढ़ गये थे ।

   एक बार फिर सभा प्रारम्भ हो गई इस बार हास्य कविताओं का दौर प्रारम्भ हुआ। अंकलेष्वर की कमला बहन हस्तरेखा पढ़ना जानती थीं  वे सबका हाथ देखने लगीं साथ साथ सुनने सुनाने का दौर भी चल रहा था । एक बात बार बार मन में कौंध रही थी चार बार यात्रा करके आये बीनू भाई जब आगे नहीं जा सके तो बाकी के सब कैसे जायेंगे और फिर जब दल का मुखिया वापस आ गया तो बाकी सबका ध्यान कौन रखेगा वैसे अवतार बहुत बार जा चुका था परिक्रमा का गाइड एक बीस बाईस साल का लड़का था वह चौदह बार परिक्रमा कर आया था।  

    प्रातः 12 बजे तक यात्रा वापस दारचेन से आठ किलोमीटर आगे से आनी थी । हम लोगों ने सभी सामान पैक किया दारचेन को अलविदा कहा और गाड़ियों में भरकर परिक्रमार्थियों को लेने चल दिय । आने वाले यात्रियों के लिये नाष्ता साथ लिया उस दिन तरह तरह के पकौड़े बने थे क्यों कि बीनू भाई ने बताया था कि यात्रा का अंतिम पड़ाव है और वहॉं  नाष्ता नहीं खोला गया होगा ।

     जिस स्थान पर हम रुके वह  पर्वत के पास खाली स्थान था वहॉं सब गाड़ियॉं खड़ी हो गईं  कुछ अन्य गाड़ियॉं भी थी उनके यात्री भी अपने सह यात्रियों का इंतजार कर रहे थे  दूर से कलकल करती नदी बहती आरही थी  पर्वतीय मोड़  से एकाएक  परिक्रमार्थी प्रकट होता और जिसके साथ का व्यक्ति होता वह दूर से उसका स्वागत चिल्ला चिल्लाकर करने लगता । अपने दल का अभी एक भी यात्री नहीं आया था हम लोग गाड़ियों सेउतर कर   नदी के जल में पॉव देकर बैठते  कभी इध उधर घूम आते । अंत में थक कर पास ही गोल गोल पत्थरों के ढूह से पड़े थे उन पर बैठ गई  एक व्यक्ति आकर बोला इन पत्थरों पर मत बैठिये । प्रष्नवाचक दृष्टि से उस व्यक्ति की ओर देखा तो बोला ,‘इन पर  ओम नमः षिवाय लिखा है ’ । 

चौंक गई यह तो देखा था उन पर कुछ खुदा है पर ध्यान नहीं दिया हर पत्थर पर बांग्ला भाषा में  ं ओम नमःषिवाय लिखा था अद्भुत  ,वहॉं जितने भी गोल गोल पत्थर थे हजारों की संख्या में सब पर जैसे  सधे हाथों से छेनी हथैाडे़ लेकर करीब आधा सेंटीमीटर गहरे और चार चार  इंच बड़े  अक्षर खुदे हुए थे । मैं जिसे पत्थरों की ढेरी समझ रही थी  वह किसी की आस्था थी विष्वास था लेकिन इतनी मात्रा में ओम नमः षिवाय किसने और क्यों लिखे कब खोदे कोई नहीं बता पाया। और फिर खोद कर क्यों यूंही छोड़ दिये, ऐसा कोई जानकार मिला नहीं बाकी तो हमारे जैसे  यात्री थे । जरा सी भाषा का  फेर होते ही वे  पत्थर मात्र थे षिव हो गये एक न दो नहीं सैंकड़ों हजारों कुछ पत्थर नदी में भी दिख रहे थे 


Wednesday, 13 August 2025

mansarover yatra 26

 पिट्ठू का ठेकेदार दिखा । पिट्ठू उसको घेर कर खड़े हो गये । एक एक यात्री से ठेकेदार पर्ची उठवाता जिसका नाम खुलता वह पिट्ठू खुष हो जाता और यात्री के साथ हो जाता । उन पिट्ठुओं को देखकर बचपन की परियों की कहानियॉं  याद आ गईं जिसमें परी के साथ बौना भी होता  । पिट्ठू  अर्थात वह इंसान जो  परिक्रमा में आपके साथ आपका सामान पीठ पर लेकर कदम दर कदम चलेगा ।झरने पहाड़ आपका हाथ पकड़कर पार करायेगा जहॉं घोड़े साथ छोड़ देते हैं पिट्ठू निरंतर साथ रहता है। भाषा की समस्या यहॉं सामने आती है लेकिन सांकेतिक भाषा काम कर जाती है पानी खाना रुकना बैठना चलना सोना ऐसे संकेत हैं जो सार्व भैमिक हैं । अधिकतर पिट्ठूओं ने लंबा चोगा पहन रखा था  जादूगरों जैसा ऊपर गोल नुकीली फुंदने वाली टोपी पैरों में फर वाले जूते । गले में बड़े बड़े मनकों की मालाऐं । कुछ पिट्ठुओं ने घेर वाली ऊनी फ्राक ऊनी पाजामा व गोल टोपी लगा रखी थी । एक पिट्ठू मेरे पास ही खड़ा था छोटा कद करीब चार फुट का लंबी फुदने वाली टोपी ऊनी फ्राक ढीला पाजामा मोटी मोटी नाक गोल चेहरा परी कथा के सात बौनों में से एक बौना सामने हो जब किसी दूसरे का नाम निकलता वह निराष हो जाता  । घोड़े कम थे पर पिट्ठू बहुतायत में । पिट्ठू की 

कीमत घोड़ों से आधी भी नहीं है । गोयल साहब ने पर्ची उठाई नाम निकला वह एकदम खिलखिला उठा  एक दम उछलने सा लगा और तुरंत बैग हाथ से ले लिया ।

   धोड़े आने में देर हो रही थी जो पैदल जाने वाले थे वे  आगे चल दिये  याकों पर सामिग्री लद गई वे भी बढ़ दिये लेकिन घोड़े नहीं आये सभी  वापस जाने वाले साथी डेरे पर चल दिये हम और शोभा भाभी रह गये  मन था घोड़े वाले यात्री भी चले जायें  लेकिन ड्राइवर हल्ला मचाने लगा  उसे दो दिन मिल रहे थे वह पास ही गॉंव जाना चाहता था । मन ही मन भोले बाबा से प्रार्थना की और बधाई देकर वापस चल दिये ।  स्तम्भ वाला स्थान आया  हमने परिक्रमा लगाने के लिये कहा तो ड्राइवर ने कहा देर हो जायेगी करीब आधा किलोमीटर की परिक्रमा तो थी ही एक परिक्रमा उसने गाड़ी से लगवा दी तीन लगवाने के लिये तैयार नहीं हुआ क्योंकि डीजल  तो खर्च होता । वैसे चीन में डीजल पैट्रोल के दाम बहुत कम हैं । अंदर ही अंदर अपनी विवषता से आहत थे अपने ष्शरीर को ऐसा क्यों बना लिया कि हम नहीं जा सके जबकि हम कहीं अधिक उम्र के  व्यक्ति पैदल जा रहे थे  । सबसे अधिक आष्चर्य 85 वर्ष के बुजुर्ग को देखकर हो रहा था जिनका अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या पर नियन्त्रण नहीं है चलने में लगता है हवा के झोंके से गिर जायेंगे वे ही सबसे आगे चल रहे थे ।।

 जिसने भी उनसे मना किया कि आप न जाइये पलटकर बोले आपको क्या? मैं जा रहा हॅूं अपनी मर्जी से जा रहा हॅूं मुझे कुछ हो जाये आप वहीं छोड़ आना। पैदल यात्री मैदान के बाद दो पहाड़ियों के बीच होकर कैलाष क्षेत्र में प्रवेष कर रहे थे ।और हम विवश से देख रहे थे ।एक तरफ न जाने की निराशा दूसरे साथी कं इसप्रकार के क्षेत्र में जाना जो बहुत मुश्किल है दारचेन पहुॅंच कर सभी बचे यात्री अपनी थकान मिटाने कपड़े आदि धोने में लग गये । गैस्ट हाउस से कुछ दूर चलकर गरम पानी के स्नानघर बने थे पच्चीस युआन अर्थात पचहत्तर रूपये में नहाने को मिल रहा था अब यह सुविधा हर पड़ाव पर मिलने लगी है हॉं रुपयों में  कम बढ़ अवष्य है।

      ज्येाति की तबियत खराब हो रही थी उसे जरा जरा देर में गर्म पानी और ग्लूकोज पीना पड़ रहा था उसकी सॉंस बेहद फूल रही थी निमोनिया का भी असर था। उसके लिये गरम पानी मैंने वहीं ला दिया और चादर लगा दी उसने गर्म पानी से हल्का सा स्पंज किया और कपड़े बदल लिये  ।सुरमई शाम का नजारा दारचेन में अदभुत् था तीन संध्याऐं तीन तरह की रहीं  । बादलों के बीच में सूर्य की किरणों कीलुका छिपी और बैंगनी लाल नीले रंग का सम्मिश्रण वाला आकाष नवीन जगत की संरचना कर रहा था । 

रंग बिरंगी मालाऐं पहने और हाथ में लिये तिब्बती बालाऐं फिर चक्कर लगाने लगीं कुछ कुछ सबने निषानी हेतु खरीदा । खाने के बाद  जडेजा ,नाथूभाई डोरिक ,सुरेष नाहर आदि सभी एक कमरे में एकत्रित हुए और सबने तन्मयता से  भजन गीत आदि गाये ।पास ही यात्रियों की आवक जावक हो रही थी ज्येति बेचैन थी  बार बार उसका अस्थमा उखड़ आता था दम दम पर उसे  गर्म पानी देना पड़ रहा था।उसकी देखभाल मैं ही कर रही थी क्योंकि वह अकेली ही यात्रा कर रही थी 


Tuesday, 12 August 2025

kailashmansarover yatra 25

 ष्शान्त नदी की कलकल में एक संगीत था गोल पत्थरों पर लुढ़कती फिसलती वह बढ़ रही थी कुछ पत्थर चमकीले थे । 

नंदी पर्वत पर कहीं वर्फ नहीं थी । अष्ठपाद पर कहीं कहीं जमी वर्फ थी । लेकिन कैलाष पूर्ण रूप से वर्फ से ढका था वर्फ भी एकदम सफेद दूरतक दिखने वाले अन्य वर्फीले हिमषिखरों में सबसे सफेद सबसे उज्वल ।मन नहीं हो रहा था ऐसे मनोरम स्थान से हटने का लेकिन वापस आना पड़ा । दारचेन के गैस्ट हाउस में लाइन से कमरे बने थे सामने बड़ा सा मैदान एक ओर पुरानी परिपाटी का ष्शौचालय । पानी की व्यवस्था के लिये कहीं झरने या नदी से  सीधा पाइप  लाकर वहॉं खुले मैदान में डाल दिया गया था । पानी ठंडा वर्फीला था सभी महिला यात्री वस्त्र धोने में लग गई वहीं मैदान में डोरी बांध कर वस़् त्र सुखा दिये गये । बार बार मोटी मोटी बूॅंदे पड़ जाती । सषंकित महिलाऐं अपने 

वस्त्रों को देखने लगतीं एक क्षण तीव्र हवा चली और कुछ कपड़ों ने उड़ान भरनी प्रारम्भ करदी तो सबको पकड़ा गया । 

ष्शाम झुकने के साथ ही बादलों ने आकाष में तरह तरह की रंग बिरंगी तस्वीरें बनानी प्रारम्भ करदीं । सूर्य ने अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विषाल रूप ले लिया लाल पीला और बादल भी उन्हीं रंगों में रंग गये पहले सातों रंग  अपना सौंदर्य बिखेर रहे थे   कुछ देर तक आकाष लाल पीला रहा फिर एक दम अंधेरा एकदम कालिमा छा गई जैसे  एक दम यवनिका गिरा दी हो सूर्य अस्त होगया एक अमिट छाप छोड़कर ।

यहॉं एक एक कमरे में चार चार लोग थे  । प्रातः दस बजे परिक्रमार्थियों को प्रस्थान करना था उनका सामान अलग बैग मेंनिकाला गया। छाता , टार्च, बरसाती ,जूते इनर  एक जोड़ी कपड़े, एक जोडी जूते और, खाने पीने का छोटा छोटा सामान छोटी छोटी थैलियों में मेवा चूरन टाफी आदि रख ली थी । प्रातः दस बजे सभीयात्री होडेचू गॉंव की ओर रवाना हुए यह दारचेन से आठ किलो मीटर की दूरी पर है । करीब पॉंच किलोमीटर की दूरी पर एक विषाल पीतल का स्तम्भ मिला याक के सींगों पर बंधा चारों ओर पॉच रंग की झंडिया कहा जाता है जो कैलाष की परिक्रमा न लगा पाये तो इस स्थान की 

तीन परिक्रमा लगा ले उतना ही पुण्य लाभ होता है । कुछ ने उतरकर परिक्रमा लगाई कुछ ने गाड़ियों से लगाई कुछ केवलहाथ जोड़कर नमन कर चले  हमारी गाड़ी कुछ पीछे रह गई थी इसलिये  हम उतर नहीं पाये सोचा लौट कर परिक्रमा देंगे । सभी गाड़ियॉं एक विषाल मैदान में जाकर रुकीं पर न वहॉं घोड़ा न ठेकेदार था न पिट्ठू का ठेकेदार । हॉं एक बीस बाइस साल का नौजवान आया वह परिक्रमार्थियों का गाइड था। एक तरफ कुछ घोड़े व याक थे लेकिन वह दूसरे यात्री दल के थे । यात्री दलों का कैलाष की ओर जाने का क्रम चालू हो गया पर हमारे दल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी बार बारबॅूंदे आजाती सब गाड़ियों में चढ़ जाते बंद होती फिर घोड़ों की राह देखने लगते । गाइड बार बार कह रहा था घोड़े आ रह हैं  । दूर एक घोडा़ें का दल आता दिखाई दिया लेकिन वह भी दूर ही रुक गया । वह भी हमारे दल के लिये नहीं था ।

 घोड़े वहॉं डेढ़सौ मात्र हैं  याक भी  कम पड़ने लगे हैं क्योंकि अब यात्री अधिक जाने लगा है । याक सामान ढ़ोने के काम आता है इस पर खाने पीने का सामान  तंबू आदि ले जाये जाते हैं ।

        घेाड़े किस किस को चाहिये  यह मान सरोवर पर ही तय हो गया था । यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी इस वजह से घोड़ों के दाम भी बढ़ गये थे अगर दूसरा आदमी तयषुदा रेट से अधिक दे देता है तो धोड़े वाले ठेकेदार मुकर भी जाते हैं  इसीलिये दलाल के माध्यम से धोड़े तय किये गये थे  । जैसे जैसे घोड़े आने में समय लग रहा था परेषानी बढ़ रही थी ।पहले दिन की दस किलोमीटर की यात्रा थी एक बज गया था । अभी घोड़े नहीं दिख रहे थे  जो सहयात्रियों को छोड़ने आये थे एक एक गाड़ी करके वापस चल दी । गोयल साहब और महेन्द्र भाई साहब परिक्रमा पर जा रहे थे बारिष का

रुख बढ़ता जा रहा था अब बूॅंदें फुहारों में परिवर्तित हो गईं थीं । मन अनजानी आषंकाओं से धिर रहा था कठिन यात्रा है पानी निरंतर पड़ रहा है । भोले बाबा आपकी शरण में आ रहे हैं आप ही रक्षा करना