Saturday, 5 July 2025

cheen ke ve das din 11

दरवाजा के पार बड़ा-सा खुला स्थान था। इसमें गर्मियों में पानी भरा जाता था। जिससे महल ठंडा रहे  उसे पार करके काफी सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य महल था। यह थाई ह्त्येन या दीवाने आम कहा जाता है। महल के अहाते में बड़े-बडे़ नगाड़े रखे रहते थे जब सम्राट महल में प्रवेश करते थे तब उनचास बार आघात किये जाते और बाहर जाते तब 27 बार आघात किये जाते थे। सीढ़ियों के दोनों तरफ विशाल तांबे के बरतन रखे थे इनमें  पानी भरा जाता था। इसके बाद मुख्य महल आते हैं जो अलग-अलग रानी-महारानियों के आवास हैं। हर महल के द्वार के नाम भी अद्भुत हैं जैसे भूमध्य रेखादार। यह मुख्य प्रवेश द्वार है और 18 मीटर ऊँचा है। महल भिन्न-भिन्न शैली में बने थे तथा उनके नाम भी अलग थे। कहीं कलात्मक बेलबूटे बने थे तो कहीं लोक छाया का चित्रण था। छतें मेहराबदार व ढलान वाली गोल खपरैल की थीं। छतों पर रंग नारंगी व पीला था उस समय सम्राट के अलावा किसी को भी पीला रंग प्रयोग करना निषि( था।आम जनता के लिये हरा रंग था केवल वेनऐयू पुस्तकालय की छत काले रंग से रंगी है कहा जाता है काला रंग पानी का द्योतक है और आग बुझा सकता है। हर महल के बाहर संगमरमर के बरामदे फब्वारे बाग झरने आदि थे।निषि( नगरी के पाँच पुल कन्फ्यूशियस के पाँच सि(ान्त है मानवता, कर्मठता, बु(ि, विश्वास, उल्लास। मुख्य महल के सामने विशाल अहाता था यहाँ नववर्ष समारोह मनाया जाता था।चीनी नामों का अबर हम हिंदीकरएा करें तो  न जाने कैसे अर्थ बैठते हैं जो हमारी मानसिकता में फिट बैठते हैं । हॉं जो कुछ भी आन बान शान उा ामस की दिखाई दे रही थी उसको  कल्पना के साथ जोडऋ कर चले तो अपने कदम भी उसी प्रकार  उठने लगे । न जाने कितने वैभव शाली सम्राट यहाँ रहे और यही दफन होकर मिट्टी हो गये। निषिð नगरी के सिंहासन पर महल पर उनके राजसी पद चिन्हों के अलावा भी कुछ ऐसे पद चिन्ह पड़े थे जिन्होंने इस शहर के महल में उत्पात् मचाया,लूटपाट कर और सिंहासन पर बैठकर शाही तस्वीरें खिचवा कर शासकों से बदला लिया।ये थे 1900 में ईसाई विरोधी बक्सर विद्रोह केा दबाने के लिये गये ब्रिटिश सेना और ब्रिटिश सेना में भरती भारतीय सैनिक । 48 किलोमीटर लंबा विशाल नगर राजाओं की कब्रगाह बन कर रह गया। सौंदर्य कला, क्रूरता, उत्पीड़न का विरोधाभास समेटे नजर आता है।

उन्हीं का वंशज छिंग वंश का अंतिम सम्राट आर्यासन गैरा फू-ई अपना कुछ समय ही काट पाये बाकी समय कारावास में गुजारा था। इस सम्राट की कथा को लेकर ही सप्रसि( फिल्म ‘लास्ट एम्परर’ बनी थी। चीन की 1911 की क्रांति में डा. सुनयात सेन ने छिंग वंश का पतन किया और आयसिन गैरो फू-ई को कारावास में डाल दिया। अंतिम सम्राट फू ई की मृत्यु 1987 में बहुत गरीबी में हुई।

निषि( नगरी के द्वार पर एक विशाल पिशू बना था यह चीन का प्रमुख चिन्ह है।पिशू चार जानवरों के सम्मिश्रण से बना है इसका मुँह दस फिट चौड़ा डेªगन का है, धड़ घोड़े का और पैर शैर के ,पूँछ अजदहे की है। पेट विशाल होता है यह

खजाने का प्रतीक माना जाता है।विशाल कछुआ बड़ी उम्र का द्योतक है।

निषि( नगरी में ही एक महल को चंेगलिंग म्यूजियम का रूप दे दिया गया था। बीच में मिंग राजा विशाल सिंहासन

पर बैठे थे। सिंहासन के चारों ओर विभिन्न पक्षी, मोर, सारस आदि रखे थे हॉल के तीनों ओर शीशे में उस समय के राजा-महाराजाओं के रत्न, आभूषण, वस्त्र, मुद्राएंे, सोने, चाँदी, तांबे के पत्र, मुकुट आदि तथा सभी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ रखी थी।म्यूजियम में पाँच हजार वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन, तीन हजार  वर्ष पुराने तांबे के बर्तन, पन्द्रह सौ वर्ष पुराने पालिश और चित्रकारी की गये चीनी मिट्टी के बर्तन थे। तेरह सौ वर्ष पुराने लकड़ी पर नक्काशी के चित्र थे। देखने मंे लग ही नहीं रहे थे कि ये लकड़ी के बने है पाटरी अधिकतर नीले रंग की या लाल रंग की महीन कारीगरी की थी।नषि( नगरी का यह हॉल ऑफ हारमनी सबसे ऊँचा हॉल है, यह विशिष्ट उत्सव में काम आता था सम्राट का जन्मदिन, ताजपोशी आदि।यह लकड़ी से निर्मित विश्व का सबसे बड़ा निर्माण है बाहर सूर्य घड़ी थी जो उस समय 2 बजा रही थी।

इस हॉल के पीछे एक कमरा था जो बंद था लेकिन उसमें रोशनी थी वहॉं दरारों में लोग ऑंख लगा रहे थे तो हम सब भी एक एक झिरी से झांकने लगे।दूसरा क्या देख रहा है यह उत्सुकता स्वाभाविक है और उस वजह से नया भी देख लिया जाता है । उस झिरी के पीछे सम्रट का शयन कक्ष था । विशाल लकड़ी का पलंग था उस पर लाल पीली जरी की चादर बिछी थी।पूरे कक्ष में पच्चीकारी हो रही थी पर अधिक दिख नहीं रही था ।यह कक्ष बंद ही रखा जाता है ।

निषि( नगरी में ही जिगशान गार्डन था। बगीचे का रास्ता छोटी-छोटी कलात्मक पटरियों से बना था। जिन पर तरह-तरह की कारीगरी थी।कहते हैं यह एक पत्थर से बना है। तरह-तरह के फल-फूल के वृक्ष थे। नक्काशीदार तेारण बने थे वहीं पर एक कृत्रिम पहाड़ी बनी थी पहाड़ी से झरना बह रहा था। वहाँ पर बैठने के लिए स्थान बना था नीचे गुफा थी उस पर दो शब्द लिखे थे ‘जिंग शान’। पहाड़ी पर लिखा था ‘हिल ऑफ एक्यूमुलेटेड एलीगेंस’।

दोनों तरफ सीढ़ियाँ थी आधे रास्ते पर गुफा थी। गुफा मेहराबदार तथा ड्रैगन के आकार में थी। आधे रास्ते से पहाड़ी पर तांबे का प्रयोग किया गया था,वहॉ तांबे से एक हॉद बनाया गया था।  उसमें पानी एकत्रित किया जाता था और यह पानी ड्रैगन के सिर से गिरता रहता था। यहाँ पर तीन महल थे। यहाँ का मुख्य वृक्ष स्कालर वृक्ष कहलाता था यह साइप्रस वृक्ष बहुत प्राचीन है उसे बचाने के लिये निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं उसे तीन बड़े लोहे के पाइपों से बांध कर सहारा दिया गया है। यहाँ तो प्राचीन स्कॉलर वृक्ष को बांधा गया था। लेकिन रास्ते में मिले वृक्षों को सीधा रखने के लिए बांधा गया था। जिससे कि वे आगे-पीछे टेढ़े-मेढ़े न बढ़ें। सभी वृक्ष सीधे ही बढ़ रहे थे।

वहीं से हम आगे गये समर पैलेस के लिये। समर पैलेस छिंग डाइनेस्टी के समय निर्मित किया था। 1193 में सम्राट  ह्नांगच्यांग ने इस महल का निर्माण कराया इसका नाम चिन श्वेई यान अर्थात् सुनहरे पानी का बाग रखा लेकिन 

धीरे-धीरे नाम बदलकर ‘गार्डन ऑफ हारमनी’ हो गया। कन्प्यूशियस ने इसको ‘लॉंगेविटी ऑफ लाइफ ’ अर्थात् दीर्घजीवन बाग नाम दिया था इन में पश्चिमी हिस्सा यियान कहलाता था अर्थात् पुस्तकों का संग्रह ।1750 में सम्राट क्विऑन लॉंग के राज्य में पूर्व और पश्चिम दो भाग बनाये पूर्व को नाम दिया था, मैथेड कीपिंग रूम; पुस्तक लेखा कक्ष द्धऔर पश्चिम का नाम पुस्तक दीर्घा । सामने ही विशाल ड्रैगन पसरा हुआ था।ड्रैगन दीर्घायु का प्रतीक है फिनीक्स की मूर्तियॉं हैं ।फिनीक्स सुख सम्पत्ति का प्रतीक है। बड़े हॉल के दोनों ओर दोे पंख और पॉंच बांहें हैं । छिंग वंश के चौथे सम्राट ने इस बाग को बड़ा रूप दिया। सन् 1860 में अर्थात् यु( के समय ऐंग्लो ¦फ्रेंच  सैनिकों द्वारा यह बाग आग की भंेट चढ़ा दिया गया। इसका पुर्न निर्माण एम्प्रेस ने 1888 में मनोविनोद के लिये  किया लेकिन 1900 में एक बार फिर यह महल नष्ट हो गया था। साम्राज्ञी डाउजर ने तीन साल में इसका पुर्न निर्माण कराया। बार-बार मनोविनोद के लिये तैयार किये गये इस महल पर हुए खर्च को वसूला जनता से गया जिससे लोगों में विद्रोह की भावना घर करती गई ।10 अक्टूबर 1911 को सुनयात सेन के नेतृत्व में क्रांति हुई राजवंश का खात्मा हुआ।

समर पैलेस झील के किनारे है विशाल झील और उसके किनारे-किनारे बाग जिसमें तरह-तरह के वृक्ष, जड़ी-बूटियों के पौधे पुष्प आदि है समान चौड़ी सीढ़ियाँ कई भाग में थी उनके बीच की सीढ़ी से पहले झरने छोटे-छोटे पुल पार करने थे उसके बाद चौड़ी सीढ़ियाँ जो कई भागों में विभक्त थी बीच का रास्ता छोड़ कर दोनों इधर-उधर की सीढ़ियों पर क्रम से फूलों के छोटे-छोटे गमले सजे थे फूलों की जैसे चादर हो। लंबा लकड़ी का कारीडोर पार करके विशाल झील और मैदान एक विशाल बैल बैठी मुद्रा में था।बैल के लिये कहा जाता है वह बाढ़ को नियंत्रित करता है। लेक के पास ऐक लड़का ब्रश से दोनों हाथों से पट्टी पर चाइनीज लिख रहा था एक साथ दोनों हाथ तीव्र गति से चल रहे थे उसकी कला देख आश्चर्य हो रहा था यह भी नहीं कि एक से शब्द लिख रहा था यद्यपि हमारे लिये  चीनी लिपि चीलबिलाऊ बनाना ही थी लेकिन अलग अलग शब्द हैं यह तो समझ आ रहा था ।

 झीलके पास अनेकों छोटे-छोटे महल थे, शायद हर सम्राट के अपने समय के। चारों ओर कमरे बीच में अंागन ,हर मुख्य महल में और गैलरी में उस समय के सम्राट की यादगार वस्तुएँ रखी थी। पॉटरी, वस्त्र अन्य सजावटी सामान, खाने के बर्तन ताम्रपत्र आदि रखे थे। सब आलमारियों में सजे हुए थे। ।


Friday, 4 July 2025

cheen ke ve dus din 10

 चौक पार करके माओ त्से तुंग का स्मारक था विशाल लकड़ी का लाल रंग का द्वार था। उस पर बैंगनी और सुनहरे रंग से चित्रकारी थी । एक बड़ा बैनर उस स्मारक पर लगा था।उस पर लिखा था चेअरमैन माओ स्मृति हॉल’   उस पर माओ का चित्र था।माओ के चित्र के एक तरफ लिखा है ‘लांगलिव प्यूपिल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ और दूसरी तरफ लिखा है ‘लॉग लिव द ग्रेट यूनिटी ऑफ द वर्ल्डस प्यूपिल’ बड़े कक्ष के बीच में माओत्से तुंग की ममी संगमरमर के चबूतरे पर क्रिस्टल केस में रखी है। चारों ओर मोटी जंजीरों से जनता से दूरी बनाई हुई है।

इसका निर्माण माओ की मृत्यु ;दिसम्बर 1976द्ध के तुरंत बाद प्रारम्भ हो गया था। और 1 मई 1978 को इसे जनता के लिये खोल दिया गया। माओ का शव उनके चिरपिरचित वस्त्रों में था विशेष रसायन से चेहरे को जीवंत बनाया गया था लेकिन उस पर गुलाबी तैलीय आभा झलक रही थी। वहीं अन्य बड़े कक्षों में क्यू शाओ छी, चू , चाओ एन लाई और माओत्से तंुग की मूर्तिया लगी थी। दीवारों पर सूक्ति वाक्य लिखे थे जो हमारे लिये महज चित्रकारी थी।

एक विशाल हाल में समय-समय पर चीन द्वारा किये गये यु( उसके नायकों-शहीदों का इतिहास अंकित था तथा उसकी वीडिया क्लिपिंग लगातार चल रही थी।

यह स्थान निषि( नगरी ;फॉरबिडिन सिटीद्ध का ही दक्षिणी हिस्सा है यहाँ से निषि( नगरी के लिये जाने का मार्ग बंद कर दिया गया है। यह दरवाजा थ्येन आन मान गेट या शांति द्वार कहलाता है इस दरवाजे के ऊपर बनी छतरी पर ही से थ्येन आन मान चौक में एकत्रिक भीड़ को संबोधित कर लोकतांत्रिक चीन की घोषणा की गई थी।स्मृति हॉल के बाहर 5 पुल है बीच में बड़ा पुल सम्राट और साम्राज्ञी के लिये और छोटे पुल से सभी अधिकारी और मंत्रीगण के लिये, पुल से पहले द्वार पर दो विशाल शेर पहरा देते हुए हैं दो पुल के पास हैं। चाइनीज विश्वास करते हैं कि शेर बुरी आत्माओं से बचाता है।जिसे यह पता नगता यह पुल सम्राट साम्राज्ञी के लिये था तो उसी पुल से  पार जाना चाहा ,अब तो सब अपने राजा हैं अपने देश में होता तो उस पर  लिखा होता मंत्रियों के लिये केवल।

निषि( नगरी शहर का दिल है यह बीजिंग के केन्द्र में स्थित है इसे चाइनीज गू गौंग कहते हैं। क्योंकि कभी यह मिंग और ंिछंग वंश के सम्राटांे का निवास स्थान था।अब यह महलों का अजायबघर कहलाता है यह टिनामैन स्क्वायर के उत्तर में स्थित है यह विश्व का सबसे बड़ा महल समूह है। इसके चारों ओर छः मीटर गहरी खाई है और 10 मीटर ऊँचा परकोटा है इसमें 9,999 कमरे हैं। एक के बाद एक कई परकोटों से घिरे इन महलों में आम जनता का प्रवेश निषि( था। यह करीब सात लाख बीस हजार वर्गमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके निर्माण में चौदह साल लगे थे। उससे पूर्व राजधानी नानचिंग थी इसके निर्माण के बाद राजधानी यहाँ बनी । 

तृतीय सम्राट युंग ले के समय इसका निर्माण सन् 1407 में प्रारम्भ हुआ। इसकी छतें टाइल्स की व फर्श संगमरमर के बने हैं।चारों कोनो पर चार मीनारें है। एक लाख कारीगरों, दस लाख मजदूरों के 14 वर्ष के अथक श्रम के बाद 1420 में इनका निर्माण पूरा हुआ।यांग वंश की पांचवी पीढ़ी का समय था। कहा जाता है पत्थर फैंगशान से लाया गया है हर पचास मीटर के बाद सड़क किनारे एक कुँआ खोदा गया था। जिससे सड़क पर वर्फ पर पानी डालकर उस पर पत्थर सरकाया जा सके। निषि( नगरी कारीगरी का अद्भुत नमूना है। इसकी बाहरी दीवाल नीचे 8.6 मीटर है और ऊपर 6.66 मीटर चौड़ी है। इसका तिरछा आकार चढ़ने वाले के लिये बेहद थकाने वाला है। इसकी ईंटे सफेद चूने और चावल के माड़ से बनी है। सीमेंट, चावल के माड़ और अंडे की सफेदी , इन अद्भुत सामानों ने दीवार को अभेद्य बना दिया।चारों कोनों पर चार मीनारें हैं ।  

इस महल में सर्वप्रथम मिंग सम्राट च्यांग चू ने सन् 1420 में रहना प्रारम्भ किया। इन महलों में 419 सालों तक एक के बाद एक कर चौबीस सम्राटों ने निवास किया।तब तक जब आखिरी सम्राट को भीतरी दरबार से खींच कर निकाला गया 


था।

इसके चारों ओर खाई बनी हुई है। इसके अंदर आठ सौ महल बने हैं और नौ हजार कमरे हैं। चारों ओर चार दरवाजे हैं। हर प्रवेश द्वार पर पीशू की बैठी मूर्तियाँ बनी हैं। चारों दरवाजों के नाम हैं।दरवाजों के ऊपर खूबसूरत बुर्जियाँ बनी हैं जिनसे शहर और महलों को देखा जा सकता है।

1. थ्येन आनमन ;दक्षिणी द्वार शान्ति द्वारद्ध

2. शान वूमन ;उत्तर द्वार स्वर्गदारद्ध

3. तुंग-हा-मन ;पूर्वी दरवाजाद्ध

4. शी हा मन ;पश्चिमी दरवाजाद्ध

तिरस्कृत महलों और बाग बगीचों का विशाल परिसर कभी शाही परिवार और उसकी सेवा करने वाले हिजड़ों के लिये आरक्षित क्षेत्र था नाम इसका फॉरबिडिन अवश्य है परन्तु यह आश्चर्यजनक रूप से देश की संस्कृति का चरमोत्कर्ष दिखाता लाोकप्रिय पर्यटन स्थल है इसका कारण इसकी भव्यता और सुंदरता है । इसकी कलात्मकता और शिल्प सौंदर्य अदभुत् है ।निषि( नगरी दो भाग में विभक्त है दक्षिणी हिस्सा जहाँ से सम्राट राज्य कार्य किया करते थे। भीतरी हिस्सा जहाँ वे रानियों के साथ रहा करते थे। यह हमेशा रहस्यों के घेरे में और खजाने से भरपूर था। 


Wednesday, 2 July 2025

cheen ke ve das din 9

 

डिनर के डिब्बे रास्ते में एक इंडियन होटल से पैक कराये थे हमें मिल गये पर खाना इतना अधिक था कि पूरा खाया नहीं गया। पूरे पूरे डिब्बे नीचे सरका दिये । नींद आंखो से कोसों दूर थी । मन कर राि था बाहर देखा जाये पर जैसा ए सी रेल गाड़ियों में होता है चीन भी अलग नहीं है महंगा टिकिट लेकर आदमी अपने को कोटर में बंद कर लेता है ।प्रातः 7.30 पर ट्रेन बीजिंग स्टेशन पर पहुँच गई। वहाँ हमारा स्वागत सैफरीना नामक लड़की ने किया आगे बीजिंग यात्रा की गाइड यही सैफरीना थी। 

रेलवे स्टेशन से बाहर आये। बाहर आते ही लगा जैसे फूलों की नगरी में आ गये हों।   सौंदर्य का अदभुत उदाहरण दिख रहा था। देखकर आश्चर्य लग रहा था। पूरा बीजिंग फूलों के गमलों से पटा पड़ा था। उनमें पानी देने की व्यवस्था हर सड़क पर थी सड़क के किनारे-किनारे पाइप जा रहे थे। बीच-बीच में नीचे ही नल थे वहाँ पाइप लगा कर गमलों में पानी पहुँचाया जा रहा था। मालियांे की डेªस पीले   रंग की थी उस पर बैंगनी पट्टी थी।सूखे पत्ते उठाने के लिये डंडे में खुलने वाला डिब्बा लगा था उसमें पंजे जैसे यंत्र से कूड़ा उठाते जाते थे। वे बराबर काम में लगे हुए थे।पूरा रास्ता कलात्मक ढंग से सजे हुए फूलों से पूर्ण था। जैसे फूलों की दुनिया में आ गये हैं। जो अनेक रूप लेकर सामने था।  कहीं भी पौधों में सूखा-मुरझाया फूल पत्ती नहीं दिख रहे थे। ये फूल छः इंच के छोटे-छोटे गमलों मेें थे पता नहीं एक माह बाद भी उनका वही रूप रहा होगा। इनकी दोनों ओर चादर सी बनाई गई थी बीच में डिवाइडर के दोनों तरफ पन्द्रह इंच के गमलों में बड़े संुदर फूल वाले पौधे लगाये गये थे।सड़क पर एक तरफ फूलों से संुदर चित्रकारी की गई थी। चित्रकारी से मतलब फूलों के छोटे-छोटे गमलों को सड़क के किनारे कलात्मक अलग-अलग आकृति से सजाये थे जैसे परी, झरना, थाल कमल, का फूल, गुलाब के फूल उनके आकार के सांचों में छोटे-छोटे गमलों को सैट किया गया था देखने पर लग ही नहीं रहा था कि छोटे गमले सैट कियेे गये हैं लग रहा था उसी ढंग से फूल उगाये गये हैं।इसके लिये चीन ने चार करोड़ पौधे आयातित किये थे, आयात करना अलग है उनका उपयोग दूसरी बात है। डिवाइडर के दोनों ओर पतले लोहे के पाइप लगे थे उनके द्वारा रबर पाइप लगाकर रात्रि में सड़कें धुलती हैं। फूलों की यह व्यवस्था हर जगह मिली चाहे स्वर्ण मंदिर हो या निषि( नगर या पूरा शहर। यहाँ तक कि सीढ़ियों को या शहर के किनारे को रंग बिरंगे फूलों से सजाकर भित्ति चित्र का सा आभास दिया गया था।

चीन में सौंदर्यबोध हर जगह दिखाई देता है यहाँ तक कि ट्रांसफारमर तक ऐसा लग रहा था कोई मीनार खड़ी है। अगर खाली दीवार है तो उस पर तैल चित्र बने हुए है। संभवतः आने वाले ओलम्पिक की तैयारी में बीजिंग दुल्हन सा सजा तैयार था।

होटल कम्युनिकेशन पहुँच कर वहाँ हम फ्रैश हुए  बीजिंग दर्शन के लिए फिर बस में सवार होकर निकल पड़े और थ्येन आन मान चौक पहुँचे। यह चौक बहुत बड़ा था। यहाँ पर सम्राट यु( में जाने के लिये तैयार सैनिकों को उत्साहित करने के लिये भाषण देते थे लेकिन अब वह सभा आदि के काम आता है। पूरा चौक छोटी-छोटी ग्लेज्ड टाइल्स से बना हुआ था। उसे जंजीरों से घेरा हुआ था कभी इसे लाल चौक के नाम से भी जाना जाता था।  चीन की लोक सभा भी वहीं थी। एक तरफ रिवोल्यूशनरी संग्रहालय बना था। इसकी दीवार पर लिखा था ‘ए मोर ओपन चाइना वेट्स टु थाउजैंड ओलम्पिक्स’ दीवारों पर हर तरफ किसी न किसी जानवर का चेहरा बना हुआ था। यहीं से 1 अक्टूबर 1949 को माओत्से तुंग ने चीन में लोकतंत्र की घोषणा की थी।यह करीब 50 हेक्टेयर जमीन में फैला हुआ है।जूते-चप्पल एक तरफ उतार कर वहाँ जा सकते थे। हजारों आदमी दिन भर वहाँ घूमता होगा लेकिन टाइल्स एक दम चमक रही थी।इसके सभी स्मारक और संग्रहालयों पर देशप्रेम झलकता है।साम्राज्य विरोधी संघर्षों का प्रभाव है ।1989 का संघर्ष स्कवायर में विशाल रैलियों के साथ पहुॅंचा और

नजदीकी सड़कों पर विद्यार्थियों और मजदूरों के जन संहार के साथ खत्म हुआ, ये युवा सरकार विरोधी संघर्ष कर रहे थे ।

थ्येन आन मन स्वर्गिक शांति द्वार, आवाम के चीन का प्रतीक, राष्ट्र का हृदय कहा जाता है, इसके चौक के इर्द-गिर्द चीन की संसद, चीन का संग्रहालय चीनी क्रांति का संग्रहालय है।पहले टिनहैन मैन केवल सम्राट के लिये था इस को स्वर्गिक शांति द्वार कहा जाता था टिनहैन मान तीन शब्दों का समूह है टिन हैवन ;स्वर्गद्ध हैन पीस ;शांतिद्ध मान गेट ;द्वारद्ध द गेट ऑफ हेवनली पीस।1987 में आम जनता इस चौक पर पैर रख पाई थी।

       ‘हम घेरते रहे घेरते रहे जब तक कि हमारे लोहे के जूते टूट नहीं गये और तब बिना देखे हमें वह मिल गया जिसे चाह रहे थे’                                                                                   वाटर मारीजन मिंग डायनेस्टी उपन्यास

वहीं पर ग्रेट हाल आफ चीन था यह थ्येन मान चौक या टिनहैनमान स्क्वायर के पश्चिम में है ग्रेट हॉल का निर्माण केवल दस माह में अक्टूबर 1958 और सितम्बर 1959 में हो गया था इस भवन का एरिया 171,800 स्क्वायर मीटर है अर्थात् निषि( नगरी से भी बड़ा यह विश्व का सबसे बड़ा हाल है और दस विशाल निर्माण में से एक है।चौक पर ही पर लांग मार्च 


के शहीदों का स्मारक मध्य में बना है। शहीद स्तम्भ 1 अगस्त 1952 को बनना प्रारम्भ हुआ और अप्रैल 1958 को तैयार हुआ इसमें 1700 ग्रेनाइट की टाइल लगी हैं। यह स्तम्भ सफेद संगमरमर से बना है। 3794 मीटर लंबा है 50.44 मीटर चौड़ी पूर्व से पश्चिम ओर 61.59 मीटर लंबी उत्तर से दक्षिण है यह चीन का सबसे ऊँचा मोनूमेंट है यहाँ पर शहीदों को सुबह-शाम गार्ड आफ आनर दिया जाता है।उस पर लिखा है चाउएन लाई उद्गार ,‘यह उन शहीदों की स्मृति में है जिन्होंने स्वतन्त्रता के लिये यु( में अपनी जान निछावर की।’

उसके दोनों ओर दो स्मारक स्तम्भ बने हैं। ये उन हजारों छात्रों ओैर नागरिकांे की स्मृति में बने हैं जिनकी हत्या 4 जून 1989 को थ्येन आन मान चौक में आंदोलन के दौरान हुई। 1966 में जो दमन का महादौर चला और महान सांस्कृतिक क्रांति में बदला उसकी परिणति थी आंदोलन।


Monday, 30 June 2025

cheen ke ve das din 8

 वहाँ से हम यू-आन गार्डन चले यूआन गार्डन के रास्ते में ऊँचाई पर फ्लाई ओवर मिला उसके एक तरफ बराबर नहर चल रही थी जिसमें लोग मछली पकड़ रहे थे।पुल के एक तरफ पुरानी शैली के कुछ घर बने थे उसमें रहने वाले उन्हें बेच नहीं सकते हैं शंघाई सरकार उसे धरोहर के रूप में सुरक्षित कर रही है। वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते बारिश शुरू हो गई समय रुकने का था नहीं यूआन गार्डन के लिये उतरते ही बरसात ने धार का रूप ले लिये बस करीब आधा किलो मीटर दूर रूक गयी।उतरते-उतरते एक दम तेज बारिश होगई थी काफी चलना था।बारिश का रुकने का इंतजार करते तो ट्रेन भी पकड़नी थी बस रुकते ही छाता बेचने वाली चीनी स्त्रियाँ आ गई जो भी मूल्य मांगे उस समय देकर सबने छाते लिये और भागते हुए आगे बढ़े। बाजार से रास्ता लंबा पड़ता इसलिये एक दूसरे गार्डन में से होकर हम निकले चारों ओर बजरी का रास्ता सड़क की तरफ बड़े वृक्ष और झाड़ियां । रास्ते के दूसरी तरफ धार  दूर दूर तक गार्डन में जाने का मार्ग और हरियाली तालाब आदि 


दिख रहे थे पर हम उस समय भागते बस चले जा रहे थे। छतरी नाम के लिये थी,वह उस समय ऊपर उड़ और रही थी तो उसे रोकना और पड़ रहा था।।देखने का उत्साह था एक दूसरे को देखते भागते चले जा रहे थे गार्डन पार कर थोड़ा सा बाजार फिर भी पार करना पड़ा फिर आया यू गार्डन का छोटा सा लाल पत्थर का दरवाजा।

    यूआन   गार्डन अवश्य कहलाता है लेकिन  मिग व छिंग वंश के राजाओं का निवास स्थान था। उन्हीं के शासनकाल में इसका निर्माण हुआ। उस समय की कलात्मक शैली की छाप सब जगह है, गार्डन में जाने का मार्ग मेहराबदार लाल पत्थर का बना था। संभवतः यह शाही मार्ग था इधर-उधर बरामदे होंगे लेकिन अब यह बाजार में बदल गया है इसके दोनों ओर दुकानें थी। रास्ता करीब पाँच फुट चौड़ा था। रास्ता पार करके गार्डन का दरवाजा था। उस पर एक विशाल ड्रैगन बना था। चीन में डैªगन शुभ व शक्ति का प्रतीक माना जाात है।ड्रेगन लौकिक और अलौकिक शक्तियों का मालिक होता है वह स्वर्ग जाकर बादलों को और नमी को एकत्रित करता है और वर्षा को जीवन देता है।  गार्डन में 9 कक्ष बने थे षटकोण्ीय थे । हर कक्ष पुल द्वारा एक दूसरे से जुड़े थे ।छोटे छोटे  पुल, ये पुल लकड़ी के बने हुए थे। क्योंकि हर कक्ष के चारों ओर झील थी, झील करीब पाँच  फुट गहरी थी उसमें कमल खिले थे उनका रंग अधिकतर पीला, नांरगी था। तरह-तरह की छोटी-बड़ी मछलियाँ स्वच्छ पानी में घूमती नजर आ रही थीं।विशेष रूप से नारंगी रंग की मछलियॉं । एक भी कागज आदि का टुकड़ा नजर नहीं आ रहा था हर कक्ष के बाहर हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी। गार्डन जिग जैग स्थिति में बना था , 1400 वर्ष पुराने इस गार्डन में सिदूरी रंग का अधिक प्रयोग किया गया है।लौटकर आये तो डा॰ सरोज भार्गव बस में  बैठी नजर आईं बहुत क्रोध में थीं । एकदम किधर गायब हो गये सब के सब,  कम से कम  सब आ गये हैं यह तो देखना चाहिये ।    बरसात से भीगे तरबतर पर चहकते चेहरे अपराध बोध से ग्रस्त चुपचाप बैठ गये ।

   लौटते में ई-गार्डन पर रूके। ई गार्डन अर्थात् ‘खुशियों का बाग’ ई-गार्डन में सड़क किनारे ही दो बड़े-बड़े बाग थे बड़ा-सा जीना दोनों तरफ से चढकर छत थी। वहाँ से शंघाई का दोनों ओर का दृश्य दिख रहा था। वहाँ हांग पू नदी का विहंगम दृश्य दिखाई दिया उसमें छोटे जहाज चल रहे थै। शंघाई ईस्ट और वेस्ट दो भागों में बटा है पूर्व में पुराना शंघाई और पश्चिम में नया शंघाई है। नये शंघाई में टीवी टॉवर है नीचे दो विशाल ग्लोब बने थे ओरियंटल पर्ल टॉवर में यहाँ शंघाई कन्वेशन सेंटर बना हुआ है।ग्लोब तीन खंभों पर खड़े हैं अंदर इसके ऐतिहासिक संग्रहालय के साथ-साथ विभिन्न मनोरंजन के साधन हैं।यह सुना हुआ था देखने की इच्छाा थी पर  हांग पू नदी का  पाट चौड़ा था वहॉं से पर्ल टावर पहुॅंचने के लिये पूरा समय चाहिये था साढे़ पॉंच बज गये थे बादल पानी की वजह से लग रहा था शीघ्र निकलें । साढ़े छः बजे स्टेशन पहुॅंचना था        बीजिंग चीन की राजधानी है इसका अर्थ है उत्तरीय राजधानी। प्राचीन चीन की 9 बड़ी राजधानियों में से एक है इसकी आबादी 17 करोड़ है इसमें 16 नगर कस्बे हैं तथा 2 ग्रामीण क्षेत्रों में विभाजित है। शंघाई के बाद दूसरा सबसे बड़ा नगर है बीजिंग से पूर्व इसके कई नाम रहे झोगडू, डायड, बेईपिंग, पेनजिंग । 400 साल पहले फ्रांसीसी मिशनरीज ने पीकिंग शब्द का प्रयोग प्रारम्भ किया अब यह बीजिंग नाम से जाना जाता है।इसके आसपास देखने लायक कई आकर्षक दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थल हैं ।

बीजिंग की यात्रा हमने चीन की सुपर फास्ट टेªन से की। बारह घंटे का सफर था। यहाँ पर भी कुली नहीं थे। अपना

सामान स्टेशन पर ले जाना था । बस ने बाहर ही छोड़ दिया। काफी दूर तक समान ले जाना था। एक साथ दोनों अदद ले जाना मुश्किल था बैग अटैची साथ में हैंडबैग इतना समय था नहीं कि एक-एक करके ले जाय किसी तरह अटैची पर रखकर ही बैग खिसकाया पर बैलेंस नहीं बन पा रहा था। जैसे तैसे सामान खिसकाया और स्टेशन के गेट तक पहुॅंचे । पर ऊॅंचा नीचा रास्ता जीना आदि देखकर और यह जानकर कि प्लेटफार्म करीब आधा किलो मीटर तो और अंदर है दम निकल गई , पर जब पता लगा कि स्टेशन के दरवाजे पर आपका सामान ले जाने के लिये खुली गाड़ी मिल जाती है,दो डालर नग के हिसाब से तो चैन आया । सफर कैसा भी हो सामान कम से कम और उठा सकने वाला ले जाना चाहिये ।हल्के और मजबूत ब्रीफकेस होना चाहिये ।

10-10 युआन में हर एक का सामान टेªन के प्लेटफार्म तक पहुँच दिया गया। ठीक डिब्बे के गेट के सामने हमारे सामान की गाड़ी रूकी। गाड़ी में से सामान टेªेन में पहुँचा के अपनी सीटों का नंबर देखा। टेªन का हर डिब्बा कूपे जैसा था एक तरफ पूरी गैलरी थी जिस पर कालीन बिछा था। एक तरफ डिब्बे थे चार-चार सीट का डिब्बा था। अरामदेह सीट थी। सबसे पहले अपना-अपना सामान जमाया। उसके बाद चाय की फिक्र हुई वहाँ अटैडेंट से पानी मांगा तो थर्मस में एकदम उबला पानी दे गई और हो गया चाय का जुगाड़। डिसपोजेबल ग्लास चाय दूध के पैकेट थे ही वहीं चाय पी जैसे एक दम थकान चढ़ गई हो चाय से फ्रैश-फ्रैश महसूस करने लगे।


Sunday, 29 June 2025

cheen ke ve das din 7


शाम के सात बजे तक हम होटल लौटकर आ गये। दोपहर तो पूरियाँ खाली थी लेकिन इस समय भारतीय कच्चा खाना याद आ रहा था। दीपक जी ने बताया कि यहाँ से 10 किलोमीटर दूर एक पंजाबी रेस्टोरेंट है वहाँ बहुत अच्छा खाना मिलता है। कुछ ने वहीं सामने के बाजार से कुछ-कुछ मंगाकर खा लिया। लेकिन हम सात-आठ लोग एक जीप में भरकर इंडियन क्यूपाइन पंजाबी रैस्ट्रोरंेट चल दिये। रास्ते में हमने रात्रि में रोशन शंघाई शहर देखा। रात्रि में शंघाई ऐसा लग रहा था जैसे दीवाली की रात हो कई बड़ी-बड़ी इमारतों पर दीपावली की सी बल्बों की सजावट हो रही थी। साथ ही सभी इमारत 


रोशनी से भरपूर थी। दुकानें देर तक खुली रहती हैं इसलिये चहल-पहल भी रात में अच्छी थी। 

पहली मंजिल पर बने इस रेस्टोरेंट की साज-सज्जा राजस्थानी ढंग की थी  वेटर राजस्थानी पोशाक में थे। राजस्थानी लोकगीत का टेप चल रहा था। हमें वहाँ पहुँचते रात्रि 10 से ऊपर समय  हो गया था। रैस्टोरेंट 10 बजे तक चलता था। पर यह जानकर कि हम भारत से आये हैं और मात्र खाना खाने इतनी दूर से आये है सुनकर उन्होंने फिर से खाना बनाने का 

निश्चय किया जो कुछ बनाया जा सकता था बनाया ।

वेटर हिमाचल प्रदेश के नूरपुर का रहने वाला था। हम लोगों से बात कर बहुत खुश हुआ। वह चार साल से वहाँ काम कर रहा था। उस रैस्टोरेंट में भारतीय तो आते ही थे पर अन्य देश के लोग भी भारतीय व्यंजनों का स्वाद लेने आते थे। दीपक जी जब भी श्ंाघाई आते थे इसी रेस्टोरंेट में आते थे उसी रैस्टोरंेट में खाते थे गरम हल्का खाना बहुत अच्छा लग रहा था।

प्रातःकाल आठ बजे हमने अपना-अपना सामान पैक किया। होटल में तरह-तरह के नाश्ते लगे थे एक तरफ सब अमिष खाना और पीछे की तरफ सामिष खाना था। आमिष खाने में फ्रूट कटे हुए सजा रखे थे साथ ही साबुत भी रखे थे। कार्नफ्लैक्स की विभिन्न वैरायटी, वीन्स, बर्गर ,बन आदि थे फ्रूट कस्टर्ड, आइसक्रीम जूस काफी, चाय आदि सबने एक-एक सेब अपने -अपने बैग में रखे जिससे आगे की यात्रा में उसका उपयोग किया जा सके।साथ ही यह भी देखा हम ही नहीं अन्य देशों के  नागरिकों ने भी समान रखा यहॉं तक कि बन बर्गर आदि भी ।कितना मिलता है इंसान इंसान से । आखिरकार पैसा दिया है वसूलने में कुछ आनंद तो उठा लें ।

उस दिन हमें शंघाई घूमकर शाम 7.30 की टेªन से बीजिंग रवाना होना था इसलिये सारा सामान बस में ही रख लिया।

शंघाई जैसा कि पहले ही बताया यह समुद्र से घिरा है लेकिन हमने ऊॅंची ऊॅंची इमारतें ही देखीं ।यहाँ का मुख्य 

धंधा मत्स्य पालन और उन्हें देश-विदेश में भेजना है वहाँ के समुद्र को ‘ओम के सी कू’ कहते है। ओम समुद्र को कहते    ैैंहैंऔर कू गहरा के लिये प्रयुक्त होता है ।शंघाई हाउस की कीमत करीब 100 हजार स्क्वायर मीटर के हिसाब से है।

   एंजला चाऊ हमारी गाइड थी बहुत हँसमुख लड़की थी वह हमें वहॉं की इमारतों की विशेषता बताती जा रही थी साथ ही चीन की सभ्यता संस्कृति व सामाजिक व्यवस्थाओं के बिषय में बताती जा रही थी ।उसने कहा यहाँ महिलाऐं भाग्यवान है वे बाहर काम करती है और पुरुष घर पर काम करते है। पुरुष घर पर बैठे ताश आदि खेलते हैं।

ताओवाद यहाँ कई मंदिरों के रूप में है । सिटी गोल्ड टॅम्पल नगर का हृदय स्थल है ये तीन राजधानियों के जनरल गुआन यू को समर्पित है।  वेनमिआओ मंदिर कन्फ्यूसियस को समर्पित है। लागुहा, लिंगन मंदिर, जैड बु( मंदिर बौ( को समर्पित है। शंघाई में एवजयूजीअइुई में ईसाई धर्म के महत्वपूर्ण केन्द्र का चर्च है यह बड़ी चर्चाे में से एक है। शी शान वैसेलिका चीन का एक मात्र ईसाई तीर्थस्थल है।हम वहाँ से जेड बु( मंदिर गये। इसका निर्माण 1882 में हुआ इसे ‘यूफोशी’कहते हैं वैसे चीनी भाषा में ‘थान’ मंदिर को कहते है पर शंघाई में ‘शी’ मंदिर के लिये प्रयुक्त होता है।

मंदिर में बु( की विशाल जैड पत्थर से बनी मूर्ति थी 31“99 मीटर सफेद रंग की मूर्ति को एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया था।दरवाजा यद्यपि बड़ा था पर फिर भी इतना बड़ा नहीं था ।हम मूर्ति को देख रहे थे और दरवाजे को देख रहे थे पहले मूर्ति रखी और फिर मंदिर बनाया क्या ? 1882 में इस मूर्ति को बर्मा से यहाँ लाकर स्थापित किया गया उसक सामनेे एक छोटी लाल चंदन की बु( मूर्ति लेटी अवस्था में थी बु( मूर्ति का चेहरा चाइनीज था। उनके सामने एक चौकी पर एक रूई की गद्दी थी उस पर सिर रखकर लोग बु( को प्रणाम कर रहे थे। बु( वहाँ अवलोकितेश्वर नाम से ,कुयिन या कुन शिहयिन नाम से जानेे जाते हैं जिनका मूल सि(ान्त दया और सहनशक्ति है।पूरे मंदिर की दीवारों पर फूल-पत्तियों की चित्रकारी थी।

दूसरे मंदिर में नौ विशाल मूर्तियाँ  मंदिर के दोनों ओर थीं।उन पर सोने की पर्त थी या पालिश,लेकिन चमक सोने की दे रहीं थी । एक तरफ भविष्य बु( उनके सामने फसल के बु( ,भोजन के बु( उनके सामने बुरी आत्माऐं सबके चेहरे पर भाव भंगिमाऐं परिलक्षित हो रही थी। वर्तमान बोधिसत्व के सामने सीधे हाथ पर सुख स्वास्थ्य के लिये बु(, बायें हाथ पर

 ध्यान बु(ा थे। वर्तमान बु(ा के सामने अखंड ज्योति जल रही थी। उनके दोनों ओर दो उड़ती हुई परियॉं थी।एक ही हॉल में इतनी सारी मूर्तियॉं थी कि दुकान सी लग रही थी ।

एक विशाल घंटा था। विश्वास किया जाता था 108 बार बजा कर मनौती की जाती है पूर्ण होती है उक व्यक्ति घंटा बजा भी रहा था यदि समय होता तो शायद सब अपनी मनोकामना पूरी करने में लग जाते । उसके नीचे दस-दस पहरेदार थे। बैल्ट बु(ा व क्लाथ आफ क्वाइंडूग इनका नाम लेने से आत्मा शु( होती है इनका चेहरा स्त्री रूप में है पर है पुरुष । दो शिष्ट प्रभु और गुरु। अठारह अरिहन्त चारों ओर 20 शिष्य थे।सभी मूर्तियॉं कम से कम  तीस फुट ऊॅंची ऊॅंची और स्वर्णमंडित थी ं

एक संुदर-सा सफेद फूलों का वृक्ष था उस पर मान्यता का धागा या रिबन बंाधते हैं।सफेद ही धागों से बंधा पड़ा  था वह वृक्ष । एक विशाल स्तम्भ था उसके आगे आत्म शोधन किया जाता है। जेड के बु( के लिये कहा जाता है जेड हमारा जीवन बचाता है।सामने दो बड़े दीप स्तम्भ थे, वहाँ दीपक, अगरबत्ती जलाई जाती है। तरह-तरह के बोनासाई मंदिर परिसर में गमलों में सजे थे। सफेद पुष्प का छोटा पेड़ फूलों से लदा था।

दूसरी मंजिल पर रास्ते की दीवारों पर चित्रकारी हो रही थी एक पेटिंग में आत्म-शोधन प्रक्रिया दर्शित हो रही थी। छत पर 600 सिक्के जड़े थे वे चक्राधार रूप में थे कहा जाता है ये सिक्के बुरी नजर से बचाते हैं। चढ़ते हुए कानों में जैन धर्म का णमोकार मंत्र पड़ा ‘ऊँ नमो अरिहंताणम्’ सुनकर अचम्भा हुआ। वहाँ हमने पुराने चित्र कास्य और मिट्टी से बनी कलाकृतियाँ पांडुलिपियों आदि का संग्रह देखा। बौ( धर्म ग्रथों का संग्रह देखा।यह सब देखते जा रहे थे और सोच रहे थे कहां हैं हम  अलग ।

लिंगेन बु( मंदिर में हजार हाथ वाले बु( की विशाल प्रतिमा थी। इन्हें फ्लाइंग बु(ा कहा जाता है। वे पदमासन पर

विराजमान थे। जीवन में उपयोग में आने वाली सभी वस्तुऐं जैसे कमल, कलश, घंटा, शंख, चक्र तरह-तरह की जड़ी-बूटियाँ उनके हाथ में थी। इस मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ बृहद पत्थर की चौकी थीं जिन पर गुलाब और कमल के फूल खुदे थे। सामने बड़े-बड़े सुंदर काले पत्थर के दीप स्तम्भ थे।

वहाँ से अगले दर्शनीय स्थल से पहले हमारी बस शैसे पर्ल सिटी अर्थात् मोतियों  के विशाल शो रूम के सामने थी। बाहर से नहीं लग रहा था कि यह इतना बड़ा होगा। तसलों में बंद सीपिया पानी में पड़ी थी मुख्य द्वार के सामने झरना बना था उसके पानी में अनेकों सीपियॉं पड़ी थीं । एक लड़की ने हमें सीपी खोलकर मोती बनने की प्रक्रिया दिखाई छोटा सा मोती घोंघे के किनारे पड़ा था। उसने चिम्टी से घोंघा हटाकर मोती दिखाया हम देख तो उत्सुकता से रहे थे मानो विश्वास है कि मोती वहीं बना हक् पर बाद में आगे जाकर मुड़कर देखा उसने वैसे ही घोघे का बंद किया और फिर पानी में डाल  दिया ।अंदर मोतियो की ज्वैलरी, माला,गुच्छों का विशाल शोरूम था मोतियों को अलग-अलग नगीनों के साथ भी लगाया गया था मोती की आभा वाली क्रीम भी मिल रही थी जो लड़कियॉं क्रीम बेच रही थीं उनके चेहरे चमक रहे थे उससे प्रभावित सबने  क्रीम खरीदी पर इतने दिन बाद भी मैंने अभी तक किसी के चेहरे पर वह आभा देखी नहीं है ,उस समय तो यह लग रहा था कि सबके चेहरे ऐसे ही चमक उठेंगे।जल्दी-जल्दी सबने देखा कुछ लेना था लिया लेकिन समय हमारे पास कम था हमें अन्य दर्शनीय स्थलों पर जाना था बीच में भोजन के लिये रूकना था।  हम सब आगे बढ़े। वहीं पर हमारा लंच था।      

      रेस्टोरेंट बहुत साफ सुथरा था। दोनों तरफ खाने का सामान रखा था। वैज और नॉन वैज दोनों तरह के व्यंजन थे। लेकिन भारतीय व्यंजन से अलग। अधिकतर चीजें ब्लांच की हुई सब्जियॉं थी। पीली गाजर, फ्रेंचबीन्स, पत्तागोभी, नूडल्स आदि इनमें नमक भी नहीं था। एक वस्तु ऐसी थी देखने में छोटे हरे कमल के  फूल सी लग रही थी। रखी भी वैज खाने के साथ थी,लेकिन कोई भी अपरिचित वस्तु छूने में भी डर लग रहा था ।हमने वेटर से पूछा यह क्या है? उसने पूछा आप वैज है। या नॉन वैज। हमने कहा ‘वैज’ तो वह बोला यह आपके मतलब का नहीं है। क्या है? यह उसने नहीं बताया बहुत गौर से देखा देखने में बहुत सुंदर लग रहा था। पर समझ नहीं आया विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह नॉन वैज डिश है।अरे बाप रे कितना अच्छाा हुआ पूछ लिया  कहा  फिर वैज खाने के साथ क्यों रखी है , जो कुछ भी खाने में था सब खा नहीं रहे थे निगल रहे थे वहाँ का प्रिय पेय चाय अवश्य सबने शौक से पी क्योंकि उसे पीकर बहुत अच्छा लग रहा  था। कहावत हेै ‘खान क्या खा रहा हैं ‘पैसा खा रहा हूँ’ भूख में किवाड़ भी पापड़ होते है वही  हाल था। बाकी कमी जूस पीकर की।। मनोरमा जी ने हाथ नहीं लगाया  हमारे पास अभी कुछ पूरियॉं थीं उन्हें देखते ही  खुश हो गईं उन्होंने उससे काम चलाया। वास्तव में भारतीय खाने का जबाव नहीं है ।


Saturday, 28 June 2025

cheen ke ve das din 6

 प्रातःकाल हमें शंघाई के लिये निकलना था। रात्रि को ही अर्चना के रसोई घर में हमने शंघाई के लिये पूरी-सब्जी तैयार की क्योंकि एक दो को छोड़कर सभी पूर्ण शाकाहारी थे। यहाँ तक कि प्याज भी नहीं खाते थे। उनके लिये चीन के होटल, रैस्त्रंा में खाना बहुत मुश्किल था। खाने के पैकेट बना बना  कर रखे गये और सबको देदिये गये। वहॉं हिन्दुस्तानी खाना बनाने के लिये यद्यपि मिलता सब है पर बहुत मुश्किल से। अर्चना की दो प्राणी की गृहस्थी थी इसलिये आवश्यक

सामान सब अपने साथ ले गये थे । इतना एहसास तो था ही कि संभवतःउतना राशन वहॉं न मिल सके विशेष आटा ।और वास्तव में आटे के स्थान पर वहॉं मैदे का उपयोग होता है ।

प्रातःकाल बस से हम शंघाई के लिये रवाना हुए शाउसिंग के लिये शंघाई से आये तब अंधेरा था। लेकिन लौटने में दिन का उजाला था। दूर-दूर तक खुला और हरियाली। पर कहीं ऐसा नहीं लगा कि बहुत व्यस्त शहर है उनकी भाषा में गाँव है। सड़कें एकदम साफ थीं दोनों तरफ विलो वृक्ष तो थे ही अन्य भी बहुत प्रकार के वृक्ष थे। झील, पहाड़ी, फव्वारें आदि सब मार्ग का सौंदर्य बढ़ा रहे थे।

शंघाई पुलों के नीचे बसा है। एक के ऊपर एक फ्लाई ओवर थे जैसे हवा में झूल रहे हों। सात-सात फ्लाई ओवर एक के ऊपर एक थे। नीचे सड़क इधर-उधर बड़ी-बड़ी इमारतें हम उन इमारतों की ऊँचाइयों को देख पा रहे थे। मैट्रो अलग चल रही थी एक तरफ रेलवे  स्टेशन था। रेलवे स्टेशन पर लगा हम चीन में है। दूर तक केवल सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे । किनारे किनारे दोनों तरफ चम्पा के फूल थे। सफेद हलकी पीली आभा लिये खिल रहे थे। स्टेशन से निकल कर एक तरफ सुंदर फूल दूसरी तरफ नदी उस पर छोटे छोटे पुल जिस पर होकर पार जाना था।पतली गलियों को दीवार से घेर दिया गया था ।अंदर पुराने ढंग के घर है। बहुत-सी इमारतों पर सुनहरे शीशे लगे थे। जो सूर्य की रोशनी में सुनहरी आभा बिखेर रहे थे।

शंघाई में लिंगन  होटल में करीब ग्यारह बजे हमारी बस रूकी। होटल की मुख्य इमारत के बाहर अहाते में कृत्रिम पहाड़ी-झरने के रूप में प्राकृतिक दृश्य बनाया गया था परी की मूर्ति से उसे सुंदरता प्रदान की गई थी रिसैप्शन हॉल में बड़े-बड़े पीतल के गमलों में बॉंस के पौधे लगे थे उनकी टहनियों को विभिन्न आकृतियों का रूप दिया गया था। उनसे जाली सी बनाकर बोतल आदि की आकृति दी गई थी। हर गमले में उगे पौधे की कलात्मकता देखकर उनके धैर्य की प्रशंसा करनी पड़ेगी क्यांेकि उन्हें प्रारम्भ से ही आकृति देकर बढ़ाया गया होगा अब वे करीब पाँच-पाँच फुट हो गये थे। 

बड़े-बड़े मछलीघर लगे थे जिनमें रखी करीब दस इंच लंबी लाल मछलियाँ तैर रहीं थीं लाल मछली वहाँ समृ(ि का प्रतीक मानी जाती है इन्हें वहाँ रैड फोर्ड फिश कहा जाता है। चटक लाल रंग की ये मछलियाँ बहुत सुंदर लग रही थी एक-एक दो-दो काली मछलियाँ भी उसमें तैर रही थी। दरवाजे पर चीनी मिट्टी के बड़े-बड़े नीली चित्रकारी के जार रखे थे।

होटल शाउसिंग में भी देखा और लिंगेन में भी समान स्वयं हमें ही उठाना था। उठा-उठाकर लिफ्ट में रखना कमरे में

पहुँचाना सब हम सबने किया। चीन में कहीं भी कोई वेटर यह काम नहीं करता है पूरी यात्रा में सारा सामान स्वयं ही उठाना पड़ा था बस वाला भी बस से नीचे उतार देता था । अंदर होटल में ले जाना या होटल से बस तक भी लाने का काम स्वयं ही करना पड़ता था। वहाँ पर सामान रखने के लिये बस की सीट के नीचे तलघर बना था वहाँ बस की छत पर सामान नहीं रखा जाता  बस में बने छोटे-छोटे केबिन में केवल हैंड बैग रखे जाते थे।ड्रइवर सामान निकाल तो देता था पर जरा सा खिसकाता भी नहीं था ।

सब सामान तीसरी मंजिल पर बने कमरों में पहुँचाया। कमरे सुरुचिपूर्ण सज्जित व सुविधाजनक थे वहाँ पर भी गर्म पानी के थर्मस चाय-काफी के पैकेट आदि रखे थे। चाय बनाने का काम हम चार सहयात्रियों का हर जगह श्रीमती किरन महाजन ने ही किया । हम चारों मैं श्रीमती शैलबाला, डॉ॰ राजकुमारी शर्मा व श्रीमती किरन महाजन का सारा समय एक कमरे में बीतता था केवल सोने के समय अलग होते थे पूरे दिन की प्रक्रिया पर हँसी-मजाक चलता रहता था। समय बहुत ही सुखद बीता। मन चाय का करता था तो हर हालत में श्रीमती किरन महाजन को पकड़कर लाते थे कि चलो चाय बनाने का समय हो गया है। इसी प्रकार यात्रा के दस दिन बहुत ही सुखद और यादगार रहे।

शंघाई की यात्रा में दीपक जी हमारे साथ थे। दोपहर तो हो ही गई थी उस समय अधिक दूरी का कार्यक्रम तो बनाया नहीं जा सकता था इसलिये शहर घूमने की सोची गई एक टैक्सी में वहाँ पाँच लोग बैठ सकते थे हमने तीन टैक्सियॉं की  और शंघाई घूमने के लिये चल पड़े।

शंघाई शहर की स्थापना 5-9 वीं शताब्दी में हुई है। शंघाई दो शब्दों से मिलकर बना है शघ-ऊपर तथा हाई-सागर यह नाम सांग राजवंश शासन काल 11वीं शताब्दी में पहली बार सामने आया तब वहाँ एक नदी तथा एक गाँव इस नाम का था इसका अधिकारिक नाम है समुद्र के ऊपर या समुद्र तट पर बसा।  इसकी भाषा शंघाई ही है । यह चीन का विशालतम नगर है इनका क्षेत्रफल 7037 किमी. है इसकी जनसंख्या 14 करोड़ है। शंघाई कभी स्वतंत्र प्रशासकीय क्षेत्र था। शंघाई ने तरह-तरह की सभ्यता और प्रशासन झेले हैं इस पर अंग्रेज, जापानी आदि काबिज हुए। 1292 में युगं वंश के समय यह नगर बना। 1554 में जापानी आक्रमणकारियों से सुरक्षा हेतु चारदीवारी बनी। सांग कालीन यह शहर जुलाई 1921 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभुत्व में आया। और उसका मुख्यालय भी यही था। 1937-1945 के यु( के समय जापानियों ने 

इस पर कब्जा कर लिया था। सन् 1949 में चीनियों ने पुनः इसे कब्जे में कर लिया और सुनयात सेने के नेतृत्व में पीपल्स आर्मी ने वहाँ राष्ट्रीय सरकार का गठन किया। यह शहर सूती वस्त्र निर्माण के लिये विख्यात था अब यहाँ विश्व का सबसे बड़ा बदंरगाह है। बायी ओर हांगफु नदी जिसे पीली नदी या चीन का शोक भी कहा जाता है व दक्षिण के कुछ ओर यांगत्सी नदी के किनारे ,पूर्व में चीनी सागर है। है समुद्र से घिरा, पर समुद्र से बहुत दूर है।

आज ये विश्व का यह सबसे बड़ा व्यावसायिक केंद्र बना हुआ है। इसके बीच हांग यू नदी व वू सुग नदी का संगम है उसने इसे दो भागों में बाँट दिया है यहाँ सरकारी गैर सरकारी सभी कंपनियों के बड़े-बड़े दफ्तर हैं। पूरा शहर झील नदी झरनों आदि से आच्छादित है।शंघाई में पहुँचकर हमें लगा यहाँ जन सैलाब है परंतु सैलाब कारों का अधिक था छोटी-बड़ी कारें, बसें, ट्रक भाग रहे थे। दोनों तरफ बड़े-बड़े शो रूम थे। रंगीन शीशे का अधिक उपयोग हुआ था। वहाँ की सबसे पाश और भव्य शोरूमों से सज्जित नानंिकंग रोड देखी। वहाँ हर ब्रान्ड के शोरूम थे। बहुमंजलीय शोरूम देशी-विदेशी सभी प्रसि( ब्रान्ड थे वहाँ स्वयं चीन का कुछ नहीं दिख रहा था। वस्त्र ज्वैलरी एक्सेसरीज घड़ी आदि सभी नामी-गिरामी नाम वहाँ पर थे। कहा जाता है वह स्थान विश्व के सबसे मंहगे स्थानों में से एक है इसकी तुलना पेरिस से की जाती है वह सड़क पाँच किलोमीटर लंबी है। एक एक कर हम दुकानें देखते जा रहे थे और कह रहे थे  यह सामान हमारे यहॉं बहुत कम में मिल जाती है यहॉं से यह क्यों खरीदें ।

  हमने दीपक जी से कहा,‘भई,यह तो रहा यहॉं आने वाले अरबपतियों की खरीदारी का स्थान अब हमें हमारी जेब वाली जगह ले चलिये । कभी कभी स्थिति अजीब सी हो जाती है दीपक तो हमें वहॉं की सबसे अच्छी शॅपिंग की जगह दिखा रहे थे और हम जेब देख रहे थे साथ ही सोच रहे थे यही ब्रांड भारत में इससे आधे दाम पर मिलता है तो यहॉं से क्यों ख्रीदें और उस देश की बनी वस्तु देखें । एक मोड़ के पश्चात् ही एक ऐसे बाजार में आ गये जहॉं छोटी छोटी दुकानें थी,छोटे दरवाजों में होकर पतली सीढ़ियॉं ,सीढ़ियों  के हर मोड़ पर छोटी सी दुकान वहॉं पर कीमती से कीमती सामान मैाजूद था,डुप्लीकेट भी था,पैन की दुकान जूते चप्पल की दुकान,जरा लंबाई ठीक है तो सिर झुकाये रहना पड़ेगा । नानकिंग रोड पर जो वस्तु हजार रुपये की थी वहॉं दो सौ की थी। जो डुप्लीकेट बताया वह सामान भी बिलकुल फरक नहीं लग रहा था ।कपड़े भी हाथ में लेने पर वही एहसास दे रहे थे । डुप्लीकेट हो या कुछ पर वहॉं सबने जम कर खरीदारी की ।


Friday, 27 June 2025

cheen ke ve dus din5

 बारिश तेज थी भाग-भाग कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर दुकानों को देखा बारिश बंद होने का इंतजार करने का अर्थ था समय की बर्बादी। समाधि स्थल के किनारे-किनारे पाँचफुट चौड़ी नहर थी यद्यपि पानी बिलकुल काला था उसमें छोटी-छोटी नौकाएँ थीं जो पर्यटकों को नाव की सैर करा रही थी। छोटा सा लकड़ी का पुल बना था उसे पार करके एतिहासिक संग्रहालय था। 

वहीं चीनी व्यंजन भी थे। टोफू ;सोयाबीन के दूध से बने पनीरद्ध को तलकर मसाला मिलाकर दे रहे थे उसे चखा भी लेकिन तीव्र गंध थी किसी को भी पसंद नहीं आया।  वहाँ कुछ चीनी पर्यटकों ने हमारे दल का फोटो भी खींचा ।

अर्चना जयधारा उस दिन अपने स्कूल के कार्यक्रम और भारतीय दल के स्वागत की तैयारियों में लगी थी।

8 जनू को डब्लू. एस. एफ. का कार्यक्रम रेमिंग रोड स्थित औडीटोरियम में होना था अर्चना जयधारा और दीपकजी ने स्वागत की भव्य तैयारियाँ की थी। प्रातः ग्यारह बजे हम लोग औडीटोरियम के लिये गये रास्ते में हमने शाउसिंग का बाजार देखा वह वहाँ का थोक बाजार था बाजार चौड़ा व डबल मार्ग था। वहाँ दुकानें बड़ी-बड़ी व सामानों से विशेष कर सजावटी सामान खिलौने स्टेशनरी आदि से भरी पड़ीं थीं समझ लीजिये दिल्ली के सदर बाजार को एकदम चौड़ा कर लीजिये। गैंगडू होटल से ओडीटोरियम हम लोग रिक्शों में गये । रिक्शे थे तो भारतीय रिक्शों जैसे लेकिन चौड़े व सुविधाजनक थे। तीन या चार युआन तक भाड़ा लगा। एक रिक्शे में हम तीन-तीन आराम से बैठ गये ।

   दो बजे कार्यक्रम प्रारम्भ होना था शाउसिंग के ही एक ऐसे बाजार के विषय में अर्चना ने बताया जो बहुत कुछ मुंबई के लिंकन रोड और दिल्ली के जनपथ जैसा था वहाँ पर भी अधिकांश दुकानों पर महिलांए ही बिक्री कर रही थी वहाँ ा दुकानों पर बच्चों का सामान ही अधिक मिल रहा था बच्चों के कपड़े या टी शर्ट लेडीज टॉप मिल रहे थे। बहुत मुश्किल से एक दुकान पर वहां की प्रसि( सिल्क के नाइट सूट व सम्राट की पोशाक तीन साल तक के बच्चे के लिये मिली नहीं तो सब स्थान पर बच्चों की आम हौजरी की ड्रेस थीं कहीं-कहीं वहाँ की कारीगरी दिखी तो वे अच्छी लगी सबने कुछ-कुछ खरीदा। और ओडीटोरियम आ गये। बाद में सामान देखा तो सिल्क की राजसी पोशाक की थैली कहीं रह गई थी ।

ओडीटोरियम के बाहर काफी बड़ा आहता था वहाँ डॉ॰ सरोज भार्गव व डॉ॰ चित्ररेखा सिंह तथा वंदनी सकारिया ने अपनी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जिसे वहाँ के आने-जाने वाले लोगों ने बहुत पसंद किया। कुछ ने चित्र क्रय भी किये थे तथा कुछ ने आगे संपर्क हेतु पते आदि लिये।

स्टेज लाल पीले रंग से सजा था कुर्सियॉं सफेद कपड़े से ढकी थी उन्हें लाल कपड़े की पट्टी से बाँध कर फूल बनाया गया था। चारों ओर लाल बड़े-बड़े पर्दे थे चाइना का विशेष चिन्ह डैªगन भी दिखाई दे रहा था। फूलदानों में लिली के फूल पूरी गरिमा से खिल रहे थे  कार्यक्रम पेश करने वाली दो चीनी लड़कियाँ हमारे पास आई और अपनी अटपटी हिंदी में पूछने लगी कि क्या हम साड़ी पहनने में मदद कर देंगे। मेैं और शैलबाला ने उन दोनों लड़कियों को तैयार किया। यद्यपि ब्लाउज उनके नाप के नहीं थे उन्हें पिन आदि से उनके पहनने लायक किया उनकी साड़ी सधी रहे इसलिये कई-कई पिन लगाये। अपने को भारतीय परिधान में देख बार-बार दर्पण निहार रही थीं और खुशी से बाओ-बाओ कर रही थी जब माथे पर विंदी लगाई तो बहुत ही खुश हो रही थी। उन्हीं दोनों ने कार्यक्रम का संचालन किया कभी हिंदी में कभी अंग्रेजी में यह सब देखकर भारतीय भाषा की व्यापकता देखकर बहुत गर्व हो रहा था क्यों कि वहाँ केवल भारतीय ही नहीं चीनी परिवार भी थे और वे भी हिंदी में सब सुन रहे थे। पता लगा चीन में बहुत लोग हिंदी जानने और समझने का प्रयास कर रहे हैं

उन दिनों चीन में बड़े इलाकों में भूकम्प आ रहा था और जन  धन की बहुत हानि हो की चुकी थी कार्यक्रम का प्रारम्भ सिआचिन में हताहत एवम् मृत आत्माओं के लिये प्रार्थना की गई।

हम सबका पुष्प गुच्छ से स्वागत किया गया तथा सबका परिचय कराया गया। अरस्तू प्रभाकर विज्ञ ज्योतिषी है यह जानकर कार्यक्रम के बाद उनसे कई लोग मिले और उन्हें अपने घर आमंत्रित किया।

डॉ॰ मनोरमा शर्मा ने आचार्य कुल का परिचय देते हुए प्रेम का संदेश दिया तथा संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला , भारत और चीन के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधांे के विषय में बताया और कहा हमें संबंधों को सुधारने के सेतु के रूप में कार्य करना चाहिये।

ओडोटोरियम दो तिहाई भारतीयों से भरा था। जिसमें कई दंपत्ति आगरा के भी थे। अपने देश के व्यक्तियों को देखकर सब बहुत प्रसन्न हो रहे थे। हम सबसे मिलकर वतन की सॉंधी मिट्टी याद आ रही थी अपना गांव अपना देश जैसे हम में देख रहे थे। कार्यक्रम समाप्तिके बाद हमसे बार-बार भारत के विषय में पूछ रहे थे क्योंकि वहाँ का समाचार तंत्र कुछ ऐसा है जो अधिक जानकारी देश विदेश की नहीं देता है । एक एक बात हमसे जान लेना चाहते थे। पैसा जीवन में बहुत महत्व पूर्ण


है इस लिये कमाने की खातिर दूसरे देश चले तो जाते हैं पर अपनों से दूर एक वीरानापन ला देता है ।

   सांस्कृतिक कार्यक्रम गीत संगीत पर आधारित था नृत्य नाटिका, एकांकी ,नाटक, परी नृत्य बेहद मोहक थे। साथ ही भारतीय गानों पर आधारित कई नृत्य प्रस्तुत किये गये। सत्यम् शिवम् सुंदरम् गाने का प्रस्तुतिकरण अद्भुत था श्वेत लाल बार्डर की साड़ी पहनाकर समूह नृत्य के रूप में इस गाने की प्रस्तुति की गई थी अन्य सब कार्यक्रम में भी अधिकतर वेषभूषा साज-सज्जा भारतीय ही थी। गीतों का चयन व निर्देशन बहुत खूबसूरती से किया गया था। सभी कार्यक्रम अर्चना की निगरानी में तैयार किये गये थे समवेत् स्वर में जब ‘ऐ मालिक तेरे वंदे हम’ गाया गया तो लग ही नहीं रहा था कि हम चीन में किसी कार्यक्रम में है। भारतीय सभ्यता संस्कृति उसकी पावन मंत्र शक्ति , शुचिता भरे वातावरण से आडीटोरियम अद्भुत हो उठा था। और हम मंत्र मुग्ध थे । अपना तो सब को सर्व श्रेष्ठ लगता ही है पर चारों ओर प्रतिक्रिया स्वरूप देखा तो सभी बहुत तन्मयता से देख रहे थे ।

कार्यक्रम के अंत में हम सभी प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों द्वारा सभी प्रतिभागियों को पुरस्कृत कराया गया।