Thursday, 23 January 2025

Subhash chand bose

 सुभाषचंन्द्र बोस


भारत माता को आजादी देने के लिये अनेकों वीर पूरी निष्ठा कर्मठता  से उठ खडे़ हुए थे। उनमें जिस नाम को भूल नहीं पाते हैं वह है नेताजी सुभाष चंद बोस का नाम विख्यात स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद बोस का जन्म 23 जनवरी को बर्मा में हुआ था। सुभाष चंद बोस के पिता श्री जानकी नाथ बोस पूर्वी बंगाल के चौबीस परगना कोवलिया ग्राम के रहने वाले थे। लेकिन कटक मंे वकालत करने के लिये रहने आ गये। माता प्रभा देवी धार्मिक विचारों वाली तो थीं लेकिन अन्धवश्विास एवं धर्म कार्यों में विश्वास नहीं था वे राम कृष्णपरमहंस की परम भक्त थी तथा स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित थीं। मॉं के विचारों का प्रभाव बालक सुभाष पर पड़ा।

बालक सुभाष की शिक्षा पॉच वर्ष की उम्र में प्रारम्भ इुई। ग्यारह वर्ष की उम्र में रेवेनशा कालेजियट स्कूल में प्रवेश लिया। स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित किशोर सुभाष ने सत्य की खोज में घर छोड़ दिया । स्थान स्थान पर भ्रमण किया कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिल रही थी जैसे प्यासे का मीठे  जल की तलाश थी वे ज्ञान की खोज मंे घूमते हुए मथुरा पहॅंुचे और वहीं स्वामी परमानंद दास से मिले उनको विवेकानन्द के विचारों से प्रभावित देख परमानन्द दास ने उन्हे बनारस के राम कृष्ण मिशन के स्वामी ब्रह्मानंद से मिलने के लिये भेज दिया लेकिन स्वामी ब्रह्मानंद सुभाष की किशोर उम्र देखकर स्वामी ब्रहम्मानंद ने उन्हें सलाह दी कि पहले घर परिवार की जिम्मेदारी पूरी करें अपनी शिक्षा पूरी करें सन्यास इतनी छोटी उम्र में नहीं लें।

बचपन में ही सुभाष बहुत दयालु थे । वे किसी का दुःख देख नहीं पाते थे । उनकेेेेे घर के सामने एक बूढी भिखारिन थी उसे भीख मांगकर जीवन यापन करते देख उन्हें ऐसा लगता वे इतना अच्छा जीवन जी रहे हैं और इतनी बूढ़ी भिखारन कितने कष्ट में है। सुभाष का स्कूल तीन किलो मीटर दूर था वे बस से जाया करते थे वे भिखारन को देने के लिये बस का किराया बचाकर भिखारन को दे देते। उनके स्कूल के पास भी एक बुढ़िया रहती थी उसको भी वे खना खिला देते थे वह बीमार हुई तो सुभाष दस दिन तक उसकी सेवा करते रहे जब तक वह ठीक नहीं हो गई ।

नेताजी सुभाष चंद बोस एक बार रेल यात्रा कर रहे थे उस डिब्बे में एक अंग्रेज महिला और सुभाष बाबू के अलावा और कोई नहीं था । सुभाष बाबू किताब पढ़ने में तललीन थे कि अचानक उस महिला ने सुभाष बाबू से कहा,‘ अपने पासे  का सारा रुपया पैसा और कीमती सामान मेरे हवाले कर दो नहीं तो मैं ष्षोर मचाकर अगले स्टेषन पर तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगी कि तुम मेरे साथ छेड़खानी कर रहे थे।’

सुभाषबाबू ने बहरेपन का अभिनय करते हुए इषारे से कहा,‘मैडम आपने जो कुछ कहा मैं सुन नहीं सका क्योंकि मैं जन्म से बहरा हूं बेहतर होगा कि जो कुछ आप कहना चाहती हैं उसे आप एक कागज पर लिख दें। महिला ने फौरन अपना मंतव्य लिखकर नोटबुक सुभाष बाबू को थमा दी। नोटबुक जेब के हवाले करते हुए सुभाषबाबू ने उस अंग्रेज महिला से कहा,‘ अब आप ष्षौक से ष्षोर मचा सकती हैं ।’ अंग्रेज महिला को अब जाकर समझ आया कि वह खुद के खिलाफ सबूत लिखित रूप में दे चुकी है,बेचारी बड़ी ष्षर्मिंदा हुई और क्षमा मांगने लगी 


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