Friday, 24 January 2025

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 26 जनवरी  स्वाधीनता पर्व


   यद्यपि आजादी 1947 में मिली और स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त है। 26 जनवरी 1950 से गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाना प्रारम्भ हुआ,वह भी केवल एक साधारण मार्च पास्ट से  ,लेकिन यह अब भारत का सर्वाधिक गौरवपूर्ण दिवस बन गया है। भारत में तीन दिवस राष्ट्रीय घोषित हैं, गणतन्त्र दिवस, स्वाधीनता दिवस, व 2 अक्तूबर। हमारा संविधान इसी दिन पारित हुआ था।

,26 जनवरी जब राष्ट्रीय पर्व है तो उसे कैसे नहीं मनाया जाता।आज की पीढ़ी ने तो आजादी की जंग देखी नहीं उन्होंने परतन्त्रता भोगी नहीं तो कैसे उन्हें उसके महत्व का पता लगेगा किताबी बात और भोगे यथार्थ में उतना ही अन्तर है जितना अनन्त आकाश और धरती में। 

अब उससे जुड़े समारोह में भारत की सैन्य षक्ति, सामाजिक विकास तथा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्षित करने का माध्यम है। 1952 से आम चुनाव की घोषणा इसी दिन से हुई और 1952 में प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डा॰राजेन्द्रप्रसाद ने कार्यभार संभाला ।

गणतन्त्र दिवस की परेड प्रारम्भ होने से पहले प्रधानमंत्री षहीदस्मारक अमर जवान ज्योति पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। यह स्मारक 1962 चीन के आक्रमण के बाद ष्षहीदों की स्मृति में बनाया गया। श्रद्धा सुमन अर्पित करने ठीक नौ बजे प्रधानमंत्री पहुंचते हैं तब लतामंगेषकर द्वारा प्रदीप द्वारा सुरबद्ध गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ बजाया जाता है जिसे सुनकर पंडित नेहरू की आंख में आंसू आ गये थे । सेना के तीनों अंग अपने प्रथम नागरिक, राष्ट्राघ्यक्ष सर्वोच्च सेनापति, राष्ट्रपति को और झंडे को सलामी देते हुए अपनी बटालियन के साथ मार्च पास्ट करते हुए निकलते हैं। वायुसेना थलसेना और नौसेना के साथ अर्द्धबल  सैनिक ,एन सी सी कैडेट स्कूली बच्चे अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्रपति के घुड़सवार अंगरक्षक जो उनके साथ रहते हैं वे बेहतरीन फौजी होते हैं यह स्वतंत्र इकाई होती है ।

 विदेषी राष्ट्राध्यक्ष इसके मुख्य अतिथि होते हैं और 21 तोपांे की सलामी दी जाती है । सभी राज्य अपने राज्य की विषेष्ताओं का प्रदर्षन झांकियों के माध्यम से करते हैं। सेना के तीनों अंग अपनी षक्ति का प्र्रदर्षन झांकियों के माध्यम से करते हैं । हाथी पर बहादुर बच्चे भी गुजरते हैं जिन्हें राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में सम्मानित किया जाताहै। हवाई जहाज से तरह तरह के करतब दिखाये जाते हैं फूलों की बारिष, व कबूतर उड़ाने के साथ परेड समप्त हो जाती है।।

गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या पर लालकिले पर एक बृहद कवि सम्मेलन का आयोजन होता है ।

27 जनवरी को विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ विजय चौक पर बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी होती है । षाम के समय माारतीय सषस्त्र सेनाओं के बैंड संगीतमय प्रस्तुतियां देते हैं। 60 मिनट के इस कार्यक्रम में 1000 सैन्य संगीतकार हिस्सा लेते हैं। सारे जहां से अच्छा गीत के साथ समापन होजाता है। सभी सरकारी इमारतों पर बिजली की रोषनी की जाती है । राष्ट्रपति भवन दुत्हन की तरह सजाया जाता है

यद्यपि हमने भी पराधीनता के दिन बचपन में जिये जो जानता ही नही था कि क्या आजादी क्या गुलामी। उसकी दुनिया माँ की गोद तक सीमित थी लेकिन नई नई पाई आजादी की खुशियों को जिया था। वो उत्साह देखा है 15 अगस्त, छब्बीस जनवरी का स्वागत भी दीवाली की तरह होता तो 30 जनवरी को गम में डूबे भारत को भी देखा ठीक 11 बजे भोपू बज उठता और पूरा शहर स्थिर हो जाता उसकी आंख नीची होती और श्रद्धा से हाथ जोडे़ सब स्वतः खड़े हो जाते । एक मिनट के लिये शहर स्थिर हो जाता। बस, रिक्शे, तांगे सब रुक जाते थे अब 30 जनवरी को क्या है यह भी बताना पड़ता है। कुछ दिन बाद कार्यालयों में टंगे चित्र जो साल में एक बार पुछ जाते हैं घूल के पीछे खो जायेंगे, और गांधी कौन ? तब कौन से गांधी बच्चों को याद आयेेंगे नही कहा जा सकता।

25 जनवरी से शहर में चहल पहल शुरू हो जाती। पान की दुकान और सारे बाजार में आठ बजे रेडियो पर प्रसारित होने वाले राष्ट्रपति के भाषण को सुनने के लिये ठठ लग जाते थे। तब तक ट्रॉजिस्टर नहीं आया था हाँ रेडियो अवश्य थे वे भी हर घर में नहीं । रेडियो का आकार भी आज के टी वी जैसा बड़ा लंबा ऊँचा था । बड़े ध्यान से भाषण सुना जाता दम साध कर उस समय बाजार में चहल पहल रहती पर कान भाषण पर रहते । पूरे बाजार में पतली कागज की पन्नी की रंग बिरंगी या तीन रंग की तिकोनी झंडिया क्रिस क्रास ढंग से लगाई जातीं यह काम शाम से ही प्रारम्भ हो जाता। जगह जगह ग्रामोफोन लग जाते पहले  ग्रामोफोन पूरे दस लीटर की बाल्टी के से आकार के होते थे फिर छोटे बनने लगे थे।

प्रातःकाल भोर की बेला से ही देश भक्ति के गाने प्रारम्भ हो जाते , 6 बजे से वहाँ प्रभात फेरी निकलती इसमें शहर के सभी नेता व उत्साही कार्यकर्त्ता शहर के गणमान्य व्यक्ति नारे लगाते व देश भक्ति के गीत गाते निकलते। उसके बाद सभी स्कूलों के छात्रों की दो दो की पंक्तिबद्ध कतार निकलती हर स्कूल का बैनर दो स्काउट पकड़े चलते थे। हर स्कूल में स्काउट को प्रशिक्षण दिया जाता उनकी यूनीफॉर्म खाकी रंग की पैन्ट शर्ट व कैप रहती। लैफ्ट राइट लैफ्ट राइट करते स्काउट जाते दो दो की पंक्ति में ही सभी स्कूलों के बच्चे वंदे मातरम्, भारत माता की जय, करते या गीत गाते निकलते सभी स्कूल वहाँ से बड़े  मैदान में एकत्रित होते और वहाँ सम्मलित रूप से झंडारोहण किया जाता। झंडारोहण ठीक आठ बजे होता । झंडारोहण में जन गन मन के बाद ही वंदे मातरम् गाया जाता । उस समय छात्र छात्राऐं सांस्कृतिक कार्यक्रम विशेष रूप से एक्शन सोंग प्रस्तुत करते । 26 जनवरी का महत्व बताया जाता बूंदी तो मिलती ही थी। उसके पश्चात् सभी छात्र-छात्राएँ अपने अपने स्कूल में चले जाते जहाँ दोपहर तक खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रम होते, दूसरे दिन का अर्थात् 27 जनवरी का बच्चों को अवकाश दिया जाता। आवश्यक नहीं था सभी छात्र छात्राएँ प्रभातफेरी में जाये जो नहीं जाना चाहते थे उन्हें सीधे स्कूल जाना होता था पर काफी बच्चे हर स्कूल से रहते थे।

हर चौराहे पर हर गली के नाके पर ग्रामोफोन लगा रहता जहाँ पर गाने बजते रहते उस समय का सबसे अधिक प्रिय और चलने वाला गाना था ‘ये देश है वीर जवानों का’ अलबेलों का मस्तानो का’ यह गाना आज भी बरात के सामने नाचने वालों का भी उतना ही प्रिय है सबसे अच्छा पैर इसी धुन पर उठता है। ‘ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन’ जहॉ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा’ गूंजने लगते थे ।

हर व्यक्ति के कुर्ते, शर्ट, ब्लाउज आदि पर तिरंगा झंडा लगा रहता था। हर दुकान पर घर पर प्रातः काल ही झंडा लगा दिया जाता था तब न तो झंडा लगाना प्रतिबंधित था न उसका आकार प्रतिबंधित था हमारे घर पर पिताजी प्रातः काल ही 21 फुट लंबा और सात फुट चौड़ा तिरंगा झंडा लोहे की रोड से बंधवाते थे। दुछत्ती पर बंधा वह झंडा हवा के साथ शान से लहराता और बाजार में दूर से दिखाई देता था। फिर प्रारम्भ होते थे हर दल के जुलूस कॉग्रेस, जनसंघ, सोशलपार्टी और भी कई दल। पर दल बहुत नहीं थे अब तो हर गली मुहल्ले का अपना दल है।

 शाम के समय झांकियाँ निकलती थीं स्कूलों की, कार्यालय व विभागों की। व्यक्तिगत लोगों की झांकियाँ निकलती थी।

 अधिकांश झांकियाँ देश भक्ति पर आधारित होती थीं। झांकियो के साथ उस विभाग के व्यक्ति होते थे। उसके बाद खुली बग्धी में गणमान्य व्यक्ति निकलते थे प्रारम्भ हाथी से होता और अन्त 4 घोड़ांे पर बैठे सिपाहियों से। बहुत से स्कूल शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम करते थे। खाने में भी उस दिन विशेष रूप से खीर पूरी बनाई जाती और पूरी भी तीन रंग की हरी पीली और सफेद। खीर में केसर इतनी रहती कि उसमें काफी पीला पन आ जाता था।

और यही हाल करीब करीब हर घर में होता था।

      अब तो स्कूलों में भी 26 जनवरी के नाम पर सिर्फ झंडारोहण होता है और धूप में बैठे बच्चों को केला, फ्रूटी या बिस्कुट दे दिये जाते है हो गई 26 जनवरी। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस क्यों है अलग अलग यह तो कतई नहीं जानते बल्कि एक बच्चे ने बड़ा ही मजेदार उत्तर दिया उसने बताया 15 अगस्त को पाकिस्तान बना और 26 जनवरी को हिन्दुस्तान। न उत्साह स्कूल जाने का बच्चों को क्या करना है कुछ होता तो है नहीं ’आजादी का अर्थ ही उनकी निगाह में अलग है वे निजात चाहते हैं भारतीय संस्कृति से ,अपने ऊपर लगे  प्रतिबंधों से ।



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