Monday, 27 January 2025

Jeevan ka aarambh

 जीवन  का आरम्भ


यद्यपि विज्ञान ने इतनी तरक्की की है कि इंसान चांद पर जा पहुँचा है, परख नली शिशु उत्पन्न हो रहे हैं, अर्थात् प्रकृति के कार्यों पर, उसकी रचना पर, मानव अधिकार करना चाहता है। प्रारम्भ में पृथ्वी आग का गोला थी। जीवन उसमें असंभव था,लेकिन लाखों साल में जब ठंडी हुई उस पर पर्त दर पर्त चढ़ती गई, फिर भीषण वर्षा ने चारों और पानी ही पानी कर दिया और वातावरण में कार्बनडाई आक्साइड और अमोनिया भर गई। बिजली गिरने से सूर्य की प्रखर किरणांे से अनेकों रासायनिक परिवर्तन हुए तो छोटे छोटे जीवणुओं की उत्पत्ति हुई। लेकिन फिर भी पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ कैसे हुआ नहीं जान पाया है ? जीवन का आरम्भ जैली के से नन्हे कण से हुआ या किसी और तरह से यह केवल अनुमान मात्र है।

    स्वयं हमारा षरीर छोटे छोटे करोड़़ांे जीवाणुओं से मिलकर बना है। कालचक्र से ये जीवाणु दो प्रकार के बन गये। काई वैक्टीरिया एक तरफ और दूसरी तरफ प्रोटोजा। प्रथम प्रकार से वनस्पति का निर्माण हुआ, दूसरे प्रकार से जीव जन्तु का। इस प्रकार से हम कह सकते हैं जीव जन्तुओं का पिता प्रोटोजा है, जिसका जन्म समुद्र में हुआ। सर्वप्रथम काई ने फोटो सिन्थेसिस षैली के आधार पर आक्सीजन का निर्माण आरम्भ किया ,लेकिन उसके भी कई लाख साल, अब से करीब बारह अरब वर्ष पहले पृथ्वी पर आया। 

जीवन का प्रारम्भ समुद्र में हुआ ,लेकिन पृथ्वी के स्थान पर उभरने से जमीन का और पहाड़ों का निर्माण हुआ और ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगी। पृथ्वी पर सर्वप्रथम जिस प्राणी का आविर्भाव हुआ वह था, एम्फीबियन जो पानी और जमीन दोनों पर जीवित रह सकता था। कभी एक बार यह जीवाणु अधिक विकसित फेफेड़ों के साथ उत्पन्न हुआ और सूखी जमीन पर जीवित रहने में सफल हुआ। धीरे धीरे उनकी मात्रा बढ़ी, साथ ही ऊँचाई बढ़ती गई। ये जन्तु करीब 70,000,000 वर्ष पहले उत्पन्न हुए। ये बहुत भयानक और षक्तिषाली जन्तु ब्रोन्टोसोरस कहलाया है। चमड़ा, माँस और हड्डियों का विषाल पिंड, करीब 25 मीटर लम्बा, यह जीव अपने अगले पैरों पर बड़ी मुष्किल से खड़ा हो पाता था। विषाल षरीर के मुकाबले दिमाग बहुत छोटा और अक्ल बहुत कम होती थी। कुछ जन्तु नीचे नीचे आकाष में उड़ने लगे थे, वे पक्षियों के पूर्वज पैट्रोसॉरस थे। 

कई लाख साल बाद इतने विषाल पषुओं के बीच स्तन पायी जीव उत्पन्न हुआ ,यद्यपि षरीर अधिक बड़ा नहीं था लेकिन दिमाग बड़ा था और इसलिये वह विषाल जीवों के बीच अपने को बचा सका। 

फिर हिमयुग आया जिसमें तापमान 0 डिग्री से भी चालीस पचास डिग्री नीचे चला गया यह उन विषाल पषुओं के लिये विनाषकारी रहा लेकिन स्तनपायी जीव और पक्षियों के लिये विषेष नुकसानदायी नहीं रहा क्योंकि उनकी रगों में गर्म ख्ूान था। प्रकृति ने उनका षरीर बालों ओर पंखों से ढक दिया था, जबकि विषाल षरीर और रेंगने वाले जीव ठन्डे रक्त वाले थे, साथ ही सादा चमड़ी से अपने को जीवित नहीं रख पाये और समाप्त हो गये। जो बच गये थे वे थे मगर ,कछुआ, साँप और छिपकलियाँ। हिम युग कई साल तक चला। बीच बीच में कुछ वातावरण गर्म होता उस समय स्तनपायी जीवों और पक्षियों की प्रजातियाँ बढ़ती गईं। एक प्रकार का दो मीटर लम्बा भेड़िया, नुकीले दाँतों वाला षेर, पाँच मीटर लम्बे डैने वाले 

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गिद्ध । अन्य नई प्रजातियां उत्पन्न हुईं वे थे भैसें, बैल ,घोड़े और मैमथ, (हाथी का पूर्वज) गंेडा, हिप्पो, हाथी , ये बच गये। नई कुत्ते बिल्लियों की जातियाँ उत्पन्न हुईं। इस प्रकार आधी से अधिक पषु पक्षियों की जाति 30,000,000 साल पहले मौजूद थीे। 

हिम युग के समय ही जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण उत्पत्ति हुई थी वे थे आदिमानव, ये कुछ कुछ वनमानुष जैसे थे। अफ्रीका के मैदानों मंे घूमते थे तथा सीधे दो पैरों पर चलते थे। ये अपने हाथों का उपयोग करना जानते थे। ये करीब 101, 120 सेन्टीमीटर लम्बे होते थे। पहला आदि मानव करीब 5000,000 साल पहले प्रगट हुआ, लेकिन आधुनिक मानव 35,000 साल पहले बन पाया। 

मनुष्य का प्रादुर्भाव कैसे हुआ इसके विषय में वैज्ञानिक कुछ भी कहें या चार्ल्स डार्विन कि मनुष्य पहले बंदर था, परंतु मनुष्य की उत्पत्ति विष्व के लिये एक उपलब्धि है। संसार की हलचलों का केन्द्रबिन्दु, ईष्वर की कल्पना की पूर्णता। जिसे हम कल्पना के अलग अलग रूपों

में पाते हैं।

ग्रीक मानते हैं मनुष्य की उत्पत्ति देवों के साथ साथ हुई । देवों या उनकी उत्पत्ति मिट्टी से हुई। उनके अनुसार मानव का निर्माण प्रामिथियस ने मिट्टी पानी से किया। बाइबिल में मनुष्य की उत्पत्ति दो प्रकार से दी है, ब्रह्मांड के पुनर्निर्माण के समय हुई उथल पुथल से । दूसरी मान्यता है कि मनुष्य का निर्माण मिट्टी से हुआ । पहले जीवन कैसा था, वैसा ही था जैसा आज है या किसी अन्य रूप में था। बहुत से प्रश्न उठ खड़े होते हैं, जिनमें से कुछ के उत्तर प्राणियों के प्राप्त जीवाश्मों से ज्ञात होता है। सबसे पुराना जीवाश्म पचास करोड़ वर्ष पुराना है। ये जीवाश्म पत्थर पर पड़ी छाप, हड्डियाँ या बर्फ में दबे कंकालों से बने हैं। पत्थर पर या अन्दर जमीन पर जीव की अनुकृति छप जाती है और जीव मिट्टी बन जाता है। इसी प्रकार कहीं-कहीं ऐसे विशाल प्राणियों के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं या बिखरे कंकाल प्राप्त हुए हैं जिन्हें जोड़ने से विचित्र प्राणियों के आस्तित्व  के विषय में आधार बना।

अधिकतर जीवाश्म बलुआ मिट्टी में पाये जाते हैं। बालू एवं अन्य पदार्थ जब एक जगह एकत्रित होकर कठोर हो जाते हैं तब उसके अन्दर पड़ा पदार्थ भी उसी अवस्था में पत्थर बन जाता है। इसी प्रकार जब बालू मिट्टी पर पड़े जीव पर मिट्टी पड़ जाती है और कठोर हो जाती है तब जीव का जीवाश्म प्राप्त हो जाता है।समुद्री जीव मरकर समुद्र में डूब जाता है। पृथ्वी पर होती उथल-पुथल में कभी समुद्र का हिस्सा ऊपर उठ जाता है और उसमें पडे,़ पड़े मृत पदार्थ जीवाश्म के रूप में ऊपर आ जाते हैं।

कुछ जीवाश्म जीव के ही पत्थर बन जाने पर प्राप्त होते हैं। पत्थर पर पड़े मृत जीव पर पानी पड़ पड़कर उसका मांस मज्जा बह जाता है और तरह-तरह के रासायनिक पदार्थ उस पर पड़-पड़कर उसकी आकृति कठोर हो जाती है। कभी-कभी रासायनिक पदार्थ एकत्रित नहीं होते, लेकिन खाली ढांचे का आकार मात्र रह जाता है। इससे जीव की आकृति ज्ञात हो जाती है। कभी-कभी पूरा जीव बर्फ में हजारों साल बाद भी दबा मिल जाता है।

सबसे पुराना जीवाश्म पचास करोड़ वर्ष पुराना है। ये जीव बिना मेरुदंड वाले थे। रीढ़ वाले जीव बाद में धीरे-धीरे बने। इनका विकास भी इसी क्रम में हुआ रीढ़ बनने के साथ इनमें पंख, डैने आदि विकसित हुए और प्रजातियाँ बनीं। मछलियों के शरीर में फेफड़े विकसित हुए और कई करोड़ वर्ष बाद, प्रलय होने के बाद मछलियाँ सृष्टिकर्त्ता बनीं और विभिन्न 

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जलचर, उभयचर की उत्पत्ति हुई। ये जल और थल दोनों पर समय बिताते थे। दस करोड़ वर्षों तक पृथ्वी पर राज्य करने के बाद यह जीवन भी समाप्त हुआ और डायनोसोर का जमाना आया। डायनोसोर का अर्थ है भयानक छिपकली। लगभग बीस करोड़ वर्ष तक इनका साम्राज्य रहा और ये पृथ्वी को हिलाते कंपाते रहे। ये सरीसृप प्रजाति के थे।

रीढ़ की हड्डी वाले जानवरों में मछली, चिड़िया और स्तनपायी जानवर आते हैं और बिना रीढ़ वालों में रंेगने वाले प्राणी। ये जीव रीढ़ की हड्डी रहित अवश्य थे लेकिन आजकल के रीढ़ की हड्डी रहित जीवों की भांति मात्र सरकने वाले जीव नहीं थे। इनका पीठ का हिस्सा आम चौपायों की तरह धरती से ऊपर उठा रहता था।

 पृथ्वी पर नभ, जल और थल पर अलग-अलग रूपों में विकसित होकर करोड़ों वर्ष तक राज्य करते रहे, फिर एकाएक विलुप्त हो गये और फिर हिमयुग आया और सृष्टि संहार हुआ। आस्टिन टैक्सस विष्वविद्यालय के वैज्ञानिकांे ने अध्ययन के बाद बताया है मैक्सिको के निकट 81 किलो मीटर बड़े आकार की उल्का पृथ्वी से टकराई जिसकी ताकत 1000 करोड़ बमों के बराबर थी। इसकी वजह से हजारों किमी क्षेत्र में आग लग गई साथ ही सुनामी पैदा हुई। पृथ्वी पर मौजूद 75 प्रतिषत जीव खत्म हो गये थे । इस टकराव के कारण सूर्य की किरणें लंबे समय के लिये पृथ्वी पर आने से रुक गईं, इससे तापमान में भारी गिरावट आई। डायनोसोर जैसे बड़े जीव खत्म हो गये ।

एक अरब वर्ष तक पृथ्वी पर बर्फ की चादर ढकी रही। मौसम ने रंग बदला और जीवन विकसित हुआ और इस बार स्तनपायी जीवों का विकास हुआ। मनुष्य इन्हीं का विकसित रूप है ,लेकिन करोड़ों वर्ष पुरानी पृथ्वी पर जीव जन्तुओं का ही साम्राज्य रहा है। मनुष्य तो केवल चालीस हजार साल पुराना है।










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