प्रिय मित्र,
सादर नमस्कार ��
हमारे प्राचीन ग्रंथ हमें याद दिलाते हैं .वसुधैव कुटुम्बकम्-ु। परंतु आज के इस डिजिटल युग में, हम इस शाश्वत ज्ञान को भूलते जा रहे हैंए और नफरत सुबह के व्हाट्सएप संदेशों से भी तेज़ी से फैल रही है।
जैसे एक बूंद विष पूरे दूध के बर्तन को ज़हरीला बना देता हैए वैसे ही नफरत . चाहे वो ऑनलाइन हो या ऑफलाइन . हमारे समाज को बांटने की शक्ति रखती है। सोशल मीडिया पर गुस्से भरी टिप्पणियों से लेकर धर्म, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव तक, यह विष हमारी दैनिक जीवन में रिस रहा है।
लेकिन गांधीजी के वचन याद कीजिए- आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।- हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत हमें एक बेहतर राह दिखाती है। भगवद गीता हमें सिखाती है कि वास्तविक शक्ति नफरत में नहीं, करुणा में निहित है। जैसा कि हम हिंदी में कहते हैं, - जहाँ करुणा, वहाँ करुणा-ु।इस तत्काल प्रतिक्रिया और त्वरित संदेशों के युग में, आइए थोड़ा रुकें और सोचें। चाहे परिवार के व्हाट्सएप ग्रुप पर कोई असहमति हो या ट्विटर पर कोई गरम बहसए हम क्रोध के बजाय समझ के साथ जवाब दे सकते हैं।हमारे पूर्वज जानते थे कि नफरत जलते हुए कोयले को पकड़ने जैसी है . यह दूसरों से ज्यादा हमें हीनुकसान पहुंचाती है। आइएए हम अपनी विविधता को गले लगाएं और अपनी साझा मानवता का जश्नमनाएं। आखिरकार, जैसा कि हर भारतीय बच्चा सीखता है,एकता में बल है-।
आइए, हम अपने डिजिटल स्थानों को भी अपने घर जैसा बनाएं, जहाँ हर मेहमान को देवता माना जाता
है ;अतिथि देवो भव।
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