मॉं
माँ
मैं रोता सुबकता
छिप जाताा था तेरे आंचल के साये में
सो जाता था निश्चिन्त
विलय हो जाता था मेरा आस्तित्व
तेरी गोद के आश्रय में
लगता है नितांत एकाकी हो गया हूँ
उस साये के हट जाने के बाद
द्वार पर बैठी ताकती रहती थी
दो आंखंे मेरे आने की राह
सुई का सरकता कांटा
टिकटिका देता था उसकी धड़कन
आकुल प्राणों को मिल जाती थी राहत
मेरी झलक मात्र से
अब उन आंखों को ढूढ़ता हूँ
उन आंखों के बंद हो जाने के बाद
कितने साये चलते फिरते
सरकते थे चारो ओर
एक ही छत के नीचे
हमारे दुःखों में खड़ी रहती थी
एक स्तभ्म की तरह
ठंडी छत का एहसास रहता था
तपती धुप में खड़े हैं
उस छत के हट जाने के बाद
तेरा थाली लेकर बैठना,
उबा देता था मुझको
क्यों जागती है मेरे लिये
झंुुझला देता था मुझको,
अपराध से भर उठता था मन
जब रात में सेकती गर्म रोटियाँ
बहुत याद आती है वे
ममता भरी रोटियॉं,
उन रोटियों के ठंडी हो जाने के बाद।
पहचान लेती थी,
मेरे हर कदम की चाप से
कैसा हूँ मै कैसा बीता है दिन
झिझकते हुए सहला देती थी
चुपचाप धीरे से सिर
आंखें मेरी चिंता से जाती थी घिर
बहुत याद आते हैं वे नरम गरम हाथ
उन हाथों के ठंडे हो जाने के बाद
2
मुझे मालुम है मां
मुझे मालुम है माँ तू बहुत रोई होगी
मेरे घर से चले जाने के बाद
मुझे मालुम हैं माँ काँप जाते होंगे तेरे हाथ
मेरे मन की चीज बनाने के बाद
नही चल पाता होगा कौर तेरे मुख में
खिसका देती होगी थाली आंसुओं के बहने के बाद
रोशनदान पर जब चिड़िया ने तिनके सजाये होंगे
छोटे छोटे से कोमल बच्चों को देखा होगा
मुँह में दाना लाकर डालती होगी दाना
उड़ना सिखाते ही हो गया होगा घांेसला खाली
मैं जानता हूँ माँ तू बहुत रोई होगी उनके उड़ जाने के बाद
मैंने देखी है तस्वीर के पीछे दो छोटे हाथो की छाप
सफाई के बाद भी तूने वह तस्वीर नहीं उतारी
मैंने चूमते देखा है उन नन्हीं छापों को
मेरे बड़े हो जाने के बाद
मुझे मालुम है तू बहुत रोई होगी छूकर उन छापों को
मेरे जाने के बाद
3
माँ तू चली गई
सूना घर आंगन है अब
ममता चली गई
तेरी गोद़ी में सर रख
कभी कभी सो जाता था
जैसे दुनिया के सब दुःख से
दूर बहुत हो जाता था।
वर्षा की बूंदों की टपटप
सुनकर बाहर जाता था
भीग न जाऊँ इस डर आंचल
बनता सिर पर छाता था
देर अगर हो जाये जरा भी
दरवाजे पर आ जाती थी
सारे देवी देव मनाकर
मेरी खैर मनाती थी
बस मैं खा लू सारी दुनिया
तब खाना खा लेती थी
कितनी भी खालूं मैं तब भी
थाली भरती जाती थी
जाने कैसे सुन लेती थी
हल्की सी मेरी आहट
जाने कैसे पढ़ लेती थी
मेरे मन की हर चाहत
छींक अगर आ जाये जरा भी
उसका दिल घक धक करता था
नजर लगाई किसी बला ने
राई नॉन उतरता था।
4
माँ बड़ी प्यारी है
कहने को माँ बड़ी प्यारी है
ईश्वर का रूप दुनिया में न्यारी है
बूढ़ी होने पर माँ नहीं सुहाती
पत्नी ही अच्छी जब घर में आ जाती
उसकी ही आवाज अच्छी लगती है
माँ तो करेले का साग लगती है
सुबह दिख जाये तो दिन भारी है
कहने को माँ बड़ी प्यारी है।
घर को सबने बाँट लिया
अच्छा अच्छा छाँट लिया
माँ केा सबने छोड़ दिया
उससे मुँह को मोड़ लिया
बूढ़ी माँ केवल जिम्मेदारी है
कहने को माँ बड़ी प्यारी है।
माँ बस तभी याद आती है
तस्वीर पर माला चढ़ जाती है
जब तक माँ प्यार से पकाती रही
तब तक घर में सुहाती रही
बूढ़ी माँ की एक रोटी भी भारी है
कहने को माँ बड़ी प्यारी है।
जिस बेटे का मुँह देख जीती थी माँ
जो था उसकी आंख का तारा
सारी दुनिया में केवल वही था वही
बुढ़ापे में उसने माँ को दुतकारा
माँ दुनिया में बस बेटे से हारी है
कहने को माँ बड़ी प्यारी है।
5
माँ तो चली गई
माँ तो चली गई दुनिया से
छोड़ गई सब कपड़े गहने
एक एक ईटों को बांटा
बांट लिये आभूषण सबने
प्यार दुलार नेह ममता की
साथ ले गई छाया अपने
हम बच्चों के हित में बांधे
पुड़िया पुड़िया कितने सपने
सारा तम आंचल में बांधा
चाँद सितारे टांगे कितने
माँ का आंचल ठंडक देता
धूप दुपहरी लगती तपने
माँ की गोदी गरमी देती
शीत लहर से लगते कपने
हाड़ कांपते माँ के अपने
लेकिन गोद गर्म होती है
बालक को गोदी में लेकर
माँ कपती कपती सोती है।
माँ तो इक बहती नदिया है
दर्द बहा ले जाती है
ममता की लहरों के संग संग
भीगा तन मन दे जाती है
माँ का एक शब्द ही केवल
धर्मग्रन्थ बन जाता है
आशीष भरा हाथ हो सर पर
सारा जीवन तर जाता है
माँ का जीवन गहरा सागर
दर्द तहों में दब जाता है
केवल प्यार झलकता चेहरा
लहरों के संग आ जाता है
माँ की पहनी धोती छटकर
मेरे हिस्से आई
माँ के तन की खुशबू सारी
मैंने उनमें पाई
भीग गई आंखे पा माँ को
तन से उन्हें लगाई
इसी रूप में माँ तू मेरे
पास सदा को आई
आंचल का सा साया लगता
मेरे सिर पर छाया
माँ की ममता नेह प्यार सब
मुझमें आ के समाया।
डा॰ शशि गोयल
सप्तऋषि अपार्टमेंट
जी -9 ब्लॉक -3 सैक्टर 16 बी
आवास विकास योजना, सिकन्दरा
आगरा 282010 ॰9319943446
म्उंपस दृ ेींेीपहवलंस3/हउंपसण्बवउ
मैं रोया परदेस में भीगा मां का प्यार
दुः.ख ने दुःख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
अभी जिन्दा है मां मुझे कुद नहीं होगा
मैं घर से चलता हूं दुआ साथ चलती है
सारे रिष्ते जेठ दुपहरी गर्म हवा आतिष अंगारे
झरना दरिया झील समंदर झीनी सी पुरवाई अम्मा
घर के झीने रिष्ते मैंने लाखों बार उघड़ते देचो
चुपके चुपें कर देती जाने कब तुरपाई अम्मा
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