जीवन ही अनवरत यात्रा हैण् कहते है चौसठ लाख योनियों के बाद मनुष्य जन्म मिलता है जन्मसे जन्म की यात्रा बचपन से बुढ़ापे की यात्राए अर्न्तयात्रा यह चलती रहती हैं निरंतर चलती है इस यात्रा में कही भी पलभर रुकने कीए ठहरने की गुंजाइश नही है इस यात्रा के पलों को और यादों से सजा दे। धरती के अनेक रूप उसके रूपों को देखना जैसे ईश्वर के स्वरूप को देखना कैसी अदभुत रचना है कहीं समुंदर है तो कहीं ऊँचे पहाड़ कहने को समुंदर समुंदर है पर एक रंग रूप प्रकृति नहींए उसके भी अपने रूप हैं पहाड़ों पर कहीं सूरज पल पर ठहरा है तो कहीं उसकी चोटी पर बैठा चकित सा देख रहा है कि किधर जाऊँ कहीं हरियाली तो कहीं झरनेए नदी उनके साथ.साथ अपने पॉव जो छाप छोड़ते जाते हैं और यात्रियों के लिये प्रकृति से तादात्म्य होगी उसकी मनोहारी छटा के रस से सराबोर होंगे वे चलते.चलते जीवन के दर्शन का साकार करेंगे कुछ छुटेगा तो आगे नया मिलेगा कभी ऊँचे किले जो अब वीरान हैं तो कहीं बड़े बड़े महल जिनमें आज भी पुराने स्मृति चित्र शेष हैं। उनके साथ उस समय को जीवन में लौट जाते हैं कैसी थी उस समय की संस्कृति सभ्यता। यात्रा संस्कृति की यात्रा बन जाती है।
यात्रा के साथ जीवन के अनेक रूप साथ चलते है अनेक जीवन साथ चलते हैं या दिन जीवन यात्रा के पड़ाव होते है।
हम चौदह यात्री चौदह रंग सबका अलग स्वभाव अलग पसंद पर उस समय सब एक थे एक स्वर सबकी बातों में झलक रहा था।
स्व॰डॉ॰ मनोरमा शर्मा के नेतृत्व में हम बिना किसी भय के घूम रहे थे जैसे अपने शहर में घूम रहे हो वतन से दूर अपने.अपने घर से अकेले आये हैं यह ऐहसास ही नहीं था लग रहा हैं सभा से उठकर सब चल दिये हों साथ में अरस्तू और शशांक प्रभाकर थे ही अगर कुछ भागदौड़ करनी हुई तो है हमें क्या करना है हम सबको तो बस पीछे.पीछे चलना है कहां जाना है कहां ठहरना है क्या लेना है क्या देना है इससे हमें कोई मतलब नहीं सब कुछ हाजिर। श्रीमती किरन महाजनए डॉ॰शैलबालाए डॉ॰ राजकुमारी शर्मा जैसे मित्र। शायद जिंदगी में इतना कभी नहीं हंसे होंगे जो चारों मिलकर हंसते रहते विशेष एक दूसरे की टांग ही खींचते रहते। संभवतः चाय की केतली का बटन दबाने में एक प्रतिशत कष्ट होात नब्बे प्रतिशत कष्ट इस बात के लिए कर लेते कहां है किरन भाभी चाय का मन है ढूँढ़ कर लाओ। सबसे अधिक मजा सबके खाने के समान के डिब्बों को खाली करने में आता था। डॉ॰ चित्रलेखा सिंहए डॉ॰ सरोज भार्गवए वंदना सकारिया झुककर आगे हो पीछे हो फोटोग्राफी ही करती चल रही थी शायद चीन का हर फूल हर कलात्मक वस्तु उनके कैमरे में कैद हो गई थी। उनका कैमरा पूरा चीन कैद कर लाया था। योग प्रशिक्षक नंदनी ने इतने दिन में सबको योग कौशल सिखा दिया उस समय तो सब यही सोच रहे थे कि अब प्रतिदिन योग करके अपने शरीर में फुर्तीला चुस्त बनायेंगे अब कितने संकल्प पूरे होते है कितने करते हैं यह तो दूध का ऊफान है घर पहुँचते ही ठंडा सब वहीं का वहीं ओशो तो सबका बच्चा था सबका मातृत्व तृप्ति पा रहा था सबसे पहले उसे ही देखा जाता कहाँ है क्या खाया क्या पिया ठीक है अच्छा लग रहा है। रजनी जी मस्त मस्त सबके साथ थीं ही ऐसी यात्रा भुलाई नहीं जाती हो सकता है चीन का चमकदार रंग फीका पड़ जाय पर सहयात्रियों के साथ बिताये पल कभी नहीं स्मृति पटल से जायेंगे।
No comments:
Post a Comment