Friday, 2 August 2024

Sahas katha

 घोड़े की पीठ पर दस हजार मील


आगे हमारा रास्ता हरा भरा था बेहद लुभावना वनस्पति विज्ञानी के लिये तो स्वर्ग ही था। पगडंडी बॉस के बड़े बड़े झुरमुटों के बीच से होती बढ़ रही थी हरे हरे नन्हीं महीन पत्तियों के मोहक पौधे थे। किसी किसी पहाड़ी पर बड़े विचित्र पेड़ थे जिन पर से जड़े सांपो की तरह लहराती लटक रही थीं इन जड़ो पर बड़ा आलू की तरह के बाल लगे थे।

कभी कभी हमें अपना रास्ता गहरी खाइयों में से बनाना पड़ता था जिसके दोनों ओर पहाड़ की दीवार ऐसी लगती मानो आकाश चूम लेगी। एकाएक रास्ता एकदम टेढ़ा मेढ़ा हो गया बेहद फिसलना और चिकना कहीं खड्डेदार सब सवार और जानवर सभी पसीने से तरबतर हो गये थे।  जरा दूर चलकर हमें सांस लेने के लिये रूक जाना पड़ता था इस प्रकार हम ऊपर और ऊपर चढ़ते जा रहे थे। 

    एक एक की हम हमेशा कतार में आगे बढ़ते थे। एक दिन धीरे धीरे सकरे रास्ते को पार कर रहे थे गाटो बहुत अधिक किनारे पर चला गया , ढीली चट्टान घोड़े के पिछले पैर के नीचे से सरक गई और वह गहरी खाई की ओर गिरने लगा। मैं सांस रोक कर भयानक हादसे को देख रहा था कि एक करिश्मा हुआ एक अकेले मजबूत पेड़ ने उसका रास्ता रोक लिया। घोड़ा जैसे ही पेड़ टकराया वह रुक गया। अपना महमेज लिया और नीचे उतरने लगा कांपते जानवर के पास पहुँचकर उसकी काठी खोलने लगा मुझे डर था कि वह हिलकर नीचे न गिर पड़े। मुझे अपनी इनीगिनी संपत्ति का बहुत ख्याल था। घोड़ा हिनहिना रहा था लेकिन उसकी हिनहिनाहट में भय था।

घोडे़ की काठी उतारने के बाद मुझे लगा घोड़े को ऊपर से ही सीधा किया जा सकता। अंत में उसे ऊपर चढ़ाया गया लेकिन गाटो ने एक टांग मेंढक की तरह फैला ली मैं नीचे था। मुझे डर था गाटो नीचे न गिर पड़े और उसके संग संग नीचे चला जाऊं।

मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था इतनी जोर से कि लग रहा था कि वह फट जायेगा लेकिन जब हम दोंनो ही सही सलामत रास्ते पर आ गये रास्ता मुझे स्वर्ग सा लगने लगा। मैंने काठी के झोले में देखा करिश्मे में मिले जीवन का जश्न मनाया जाये लेकिन वह खाली था। हम एक चश्मे के पास पहुँचे तब हमने खूब नहाया।

अपूरमैक नदी पार करने के बाद हम जिस प्रदेश में आये वह कल्पनातीत ऊबड़ खाबड़ था। जरा से पुल के नीचे गहरी घाटी दर्रे और खड्डे थे, पगडंडी गहरी  दर्रे और घुमावदार घाटियों में थी। मेरे मित्र की दशा गिरती जा रही थी वह अपने हाथों का प्रयोग नहीं कर पा रहा था चेहरे पर हुए संक्रमण के वह दाढ़ी भी नही बना पा रहा था। घावों से मवाद वह कर उसकी दाढ़ी पर सूख गया जिससे उसका चेहरा भयावह हो उठा था। 

कुछ चढ़ाइयाँ तो वास्तव में दिल थर्रा देने वाली थी लेकिन हमें अपने जानवरों पर अधिक भार नहीं डालना था। एक हरी भरी पहाड़ों की घाटी के गाँव में हमने अपना डेरा डाला। वहाँ हमने अपने खच्चर बदले जिसके बदले गाँववालों ने मनमाने दाम वसूल किये वे हमारी मजबूरी जानते थे कि हमें या तो खच्चरों का दाम देना पड़ेगा। साथी के घावों का इलाज भी जरूरी था अंत में पांच दिन तक उस गाँव में रुके रहने के बाद अंत में हम आगे बढ़ने लायक हो गये।

अयाकुचों पहुँचते ही एक डॉक्टर केा अपने मित्र को दिखाया क्योंकि उसके हाथ का मांस सड़ने लगा था। वहाँ से मि॰ सन को वाहन द्वारा रलुबै पर वहाँ सेड़ेना द्वारा नीचे लीमा तक पहुँचाया गया जहाँ वहाँ के सबसे अच्छे होटल में हम ठहरे जब कि वह बेहद गंदा था लेकिन हमने वहाँ पेट भर भोजन किया और जानवरों को खिलाया और गहरी नींद में सोये।

अब हमारे सामने एन्डीज की दूसरी शृंखला थी घोड़े बेहद अच्छी अवस्था में था। कोई दुर्घटना ही अब हमें लीमा और विफर पैसिफिक समुद्र तक पहुँचने से रोक सकती थी।

कुछ दिन बाद मि॰ डब्लू भी यात्रा के लायक तैयार हो गये लारी में बैठकर यात्रा पूरी करनी थी लेकिन अभी उसने यात्रा प्रारम्भ ही की थी कि भारी वर्षा प्रारम्भ हो गई मैं उनसे तीन साल बाद जब मिला तब उन्होंने बताया कि उनका वह दुस्साहसिक यात्रा का वहीं अंत हो गया था क्योंकि पहाड़ी दरकने से रास्ता बंद होने की वजह से लारी आगे न बढ़ सकी। आगे बने पुल बाढ़ से बह गये और लीमा पहुँचने के लिये उसे दो गाटिया तार पर बंधी टोकरियों पर पार करनी पड़ी वहाँ दो महिने में उसके घाव भर गये केवल पहली एन्डीज की पर्वत शृंखला की यादगार स्वरूप कुछ निशान रह गये। 


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