अब बराती होना और पहले बराती होने में बहुत अंतर है । बरात बहुत कीं । पहले बराती होने का मतलब होता था तीन दिन पांँच दिन के राजा जो लड़की वाले के सिर पर नाचते रहते थे ,‘अरे दूध में मेवा कम है , अरे ! यह क्या ? अभी तक नाश्ता नहीं आया ,झोल में घी तो डाला ही नहीं ।’ और घबड़ाया लड़की वाला मनुहार ही करता रहता था ।भर भर थैला सामान लाया करते थे ,मेवा , नमकीन आदि अब घराती बराती में फर्क ही नहीं । बहुत हुआ तो बराती के गले में एक माला डल जाती है फिर खाओ वैसे ही धक्के खाते हुए और जाओ घर ।
पर मैं यहाँ बात कर रही हूँ राम बरात की । हर शहर में राम बरात निकलती है । हमारे शहर मथुरा में भी राम बरात निकलती है । चुंकि हमारा घर मुख्य बाजार में था इसलिये वहाँ से बरात निकलती ही थी । क्योंकि बरात निकलते तीन चार घंटे बीत जाते थे और तरह तरह खोमचे सजे होते थे तो जाहिर है बच्चे खाने पीने की तैयारी के साथ देखने बैठते थे हम सब के पास तरह तरह के नमकीन की पुड़ियाऐं रहती थीं ।बारात के ढोल ताशे शुरू हुए गणेश जी की सवारी निकली। दो एक अन्य देवी देवताओं की सवारी आई इसके साथ ही एक शोर सा सुनाई दिया साथ ही जैसे सैलाब द्वारका धीश मंदिर की ओर भागने लगा ,हम कुछ समझ नहीं पाये और नई सवारी के लिये छत से झांक रहथे कि बहंगियेंा पर एक के बाद एक घायल निकलने लगे ।हम सब धक् रह गये यह कैसी बरात ? छोटे थे एकदम बडों से चिपक गये। हमें अंदर भेज दिया गया,पर डर समा गया था । ज्ञात हुआ जहां से बरात निकलनी प्रारम्भ हो रही थी ,एक पांच मंजिला मकान भीड़ पर गिर गया । यह अवश्य हुआ था कि राम जी का हाथी एकदम पीछे हो गया स्वरूपों को कुछ नहीं हुआ, पर उस हादसे में बहुत जान गईं और घायल हुए ।बरात की वे घायलों की झांकियाँ भूल नहीं पाती हूँ।शशि गोयल
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